(2019)
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Acharya Prashant 21 min 323 reads
: आचाय� जी, �णाम! मो� के आकां�ी के �लए आ�मबोध है, �ज�ासु भी मु��त क� ही बात� करते ह�। ले�कन, आचाय� जी, मुझे तो मु��त और मो� आ�द के ��त उदासीनता ही है, और उदासीनता म� डर भी शा�मल है �या��क मु��त के कइ� अथ� होते ह�। ले�कन, आचाय� जी, गु�, �ेम, इ��र, क�णा आ�द �वषया� पर जब आप बोलते ह�, तो मेरे अंदर एक मीठ�-मीठ�-सी झंकार बज उठती है और साथ ही अहम् के �मटने का भाव भी आता है। यह �या बात है? कृपया माग�दश�न कर�। : मु��त माने मु��त क� छ�व नह�, मु��त माने सव��थम छ�वया� से ही मु��त। सदा से ही सामा�य जना� के �लए भी और आ�या��मक �ज�ासुआ� के �लए भी मु��त, मो�, �नवा�ण, ��लीनता इ�या�द श�द ज़रा डरावने ही रहे ह�। उसक� वजह यह नह� है �क ��लीनता म� या ���नवा�ण म� या आ�मबोध म� या मो� म� वा�तव म� कुछ भय�द है या �:खकारी है, ब��क इस�लए �या��क हमने उनके बारे म� छ�वयाँ बना ली ह�, �क़�से कर �लये ह�, कहा�नयाँ रच ली ह�। अब मुझे बताओ— �नवा�ण के �वषय म� अ�धकांशत: बोला �कसने? �या उ�हा�ने जो �नवा�ण पद पर आसीन �ए, जो मु�त �ए? उ�हा�ने तो बोला नह�, और बोला भी तो कम ही बोला, �या��क जो मु�त है, उसे ब�त इ�ा ही नह� रह जाती �क वह मु��त का वण�न करे। न उसे इ�ा रह जाती है और न ही उसे यह धारणा रह जाती है �क मु��त का वण�न �कया भी जा सकता है। जो मु�त है, वह सव��थम तो यही कहता है �क बोल� �या, बोलने को तो कुछ है नह�। “पहले ब�त कुछ था बोलने को, न जाने �कतने �क़�से-कहा�नयाँ बोलते ही रहते थे, अब �या बोल�! आओ �कसी और मु�े पर चचा� करते ह�। संसार क� बात करते ह�। संसार म� ब�त कुछ है म� �जस पर बोल सकता �ँ, पर अगर तुम मुझसे कहोगे �क मु��त पर बोलो, तो मेरे �लए बड़ा अटपटा हो जाएगा। और बाता� पर बुलवा लो – बोलो तो �:ख पर बोल �ँ, बोलो तो �म पर बोल �ँ, माया पर बोल �ँ, �म�या पर बोल �ँ, पर मो� पर �या बोलू?ँ ” तो उ�हा�ने ब�त बोला नह�। अ�धकांशत: �कसने बोला मु��त पर? �ज�ह� मु��त का कुछ पता नह�। हाँ, �ज�ह� मु��त क� शायद अ�भलाषा थी, �ज�ह� मु��त का आकष�ण था, तो वो आकष�ण के मारे ब�त कुछ बोल गए। और �फर, चलो बोला �जसने बोला, कुछ उ�हा�ने बोला जो मु�त थे, कुछ उ�हा�ने बोला जो अभी मु�त नह� थे, पर मु��त के बारे म� सदा सुना �कसने? �या मु�त पु�षा� क� ��च बच जाती है �क वह अभी मु��त के बारे म� �क़�से सुन�? मु�त को तुम मु��त का �ववरण दोगे, मु�त को तुम मु��त के गीत सुनाओगे, तो वह मु�कुराकर आगे बढ़ जाएगा। मु��त क� �यादातर बात� सुन� �क�हा�ने? जो ब� थे, �ज�ह� अभी मु��त का कुछ पता नह� है। उ�ह� मु��त क� �यास तो हो सकती है, पर वो मु�त �वयं नह� ह�। तो उनके कान म� जो भी बात� पड़�, उ�हा�ने उन बाता� से मु��त क� एक छ�व बना ली, और जो ब� मन है, वह जब मु��त क� छ�व बनाएगा तो �या रहते �ए बनाएगा? : ब� रहे �ए। : अब ब� रहते �ए ही वह त�वीर �कसक� ख�च रहा है? मु��त क�। यह तो गड़बड़ हो गइ� न। यह वैसे ही बात है जैसे �क शराबी साधु क� त�वीर बनाए, तो वह ख़ुद तो नशे म� �हल-डु ल रहा है, योगी क� त�वीर कैसी बनाएगा? वो भी �हली-डु ली ही त�वीर होगी। �जस चीज़ का तु�ह� कुछ पता ही नह�, उसक� तुम �या त�वीर बनाओगे! गड़बड़झाला होगा न? इसी�लए हमने मु��त को ले करके ख़ूब �क़�से बनाए ह�, और वो सबके-सब �क़�से गड़बड़ ह�, अ�पतु घातक ह�। इसी�लए हमने ‘मो�’ श�द अपनी नादानी म� अपने �लए डरावना बना �लया है।
एक वजह और भी है, उसको भी समझना। �कसके कान म� पड़ रही ह� मु��त क� बात�? जैसा हमने कहा �क उसके कान म� जो ब� है। जो ब� है, वह ब� है ही �या�? याद करो, कल हम कह रहे थे �क लगातार तु�हारे पास चुनाव उपल� है। जो ब� है, वह ब� है ही �या�? �या��क उसने बंधना� का चुनाव �कया। अब �जसने बंधना� का चुनाव �कया है, �न��त �प से वह मु��त और बंधन म� �कसको �े� मानता है? बंधन को �े� मानता है। यह बात तो उसके चुनाव से ही ��य� है। उसे अगर मु��त �े� लगती होती, तो चुनाव �कसका करता? : मु��त का। : उसने बंधन का चुनाव �कया है, मतलब उसक� धारणा म�, उसके मत म� बंधन ही �े� होगा, ठ�क? तो बंधन उसके �लए �े� है और उसक� ��� म� मु��त �न�नतर है, नीचे क� बात है न। अब एेसे मन से तुम अगर कहोगे �क मु�त हो जाओ, तो वा�तव म� तुम उससे �या कह रहे हो? तुम उससे कह रहे हो �क �े�तर को छोड़कर �न�नतर को चुन लो। बात को समझो, उसने �कसका चुनाव कर रखा है? : बंधन का। : बंधन का। उसके चुनाव से �या �प� होता है, �क उसके मू�यांकन म�, उसक� ��� म� �या �े� है? : बंधन। : बंधन। अब उसक� ��� म� बंधन �े� है, उसने बंधन चुन भी �लया; मु��त उसके �लए नीचे क� बात है। एेसे मन से, एेसे अहम् से तुम कह रहे हो �क मु��त ले लो, मु�त हो जाओ, �नवा�ण को �ा�त हो जाओ, तो उसको �या �दखाइ� दे रहा है? उसक� ��मत ��� को �या �दखाइ� दे रहा है? �क तुम उससे ऊँचा पद छोड़ करके �नचला पद चुनने को कह रहे हो। तो वह �नचले पद का वण�न भी कैसे करेगा? जैसे �कसी नीची चीज़ का �कया जाता है। (हँसी) इसी�लए वह मु��त को ले करके जो छ�व ख�चेगा, जो त�वीर बनाएगा, जो �क़�सा बनाएगा, वह �क़�सा �कसी �नचली चीज़ का होगा। वह कहेगा, “मु��त वह �जसम� सुख �छन जाता है।” तुम जाओ साधारण संसारी के पास, �कसी गृह�थ के पास, उससे कहो, "मु��त चा�हए?" अगर आदश�वादी होगा, तो कहेगा, "हाँ, बताओ �या बात है, थोड़ा सुन लेते ह�, वो भी �सफ़� तु�हारा मन रखने के �लए और अपने आदश�वाद क� र�ा के �लए।” अगर दो टू क बात करता होगा, तो कहेगा, “अरे! हटाओ तुम मु��त वग़ैरह, बेकार क� बात�। मुझे घर-गृह�थी संभालनी है, मु��त �कसको चा�हए?” जाओ �कसी माँ के पास, और उसको बोलो �क “माता जी, आपके पु� को आज ��, मु��त �ा�त हो गइ�।” वह �च�लाकर, पछाड़ खाकर वह� �गर जाएगी। तु�ह� �या लग रहा है, उ�सव मनाएगी? तु�हारी प�नी को कोइ� बता दे �क प�तदेव को �नवा�ण �मला है अभी-अभी, पहले तो तुमको दो-चार मारेगी, �फर पु�लस क� तरफ़ भागेगी। बोलेगी, “कौन है वह �जसने मेरे प�त को �नवा�ण �दलाया? कौन है मेरा ��मन?” और �सरा� को हटाओ, ख़ुद जो आ�या��मक �ज�ासु ह�, उनसे भी य�द अगर कह �दया जाए, “तु�ह� अभी त�काल मु��त �मली जाती है, चा�हए?” तो कौन राज़ी होने वाला है, �कसी को नह� चा�हए, है न? यह सब इसी�लए है �या��क मु��त का मू�यांकन कौन कर रहा है? : बंधन वाला। : बंधन वाला, और बंधन वाले के �लए तो मु��त �न��त ही एक �न�नतर चीज़ है जो इससे सा�बत होता है �क उसने चुनाव कर रखा है बंधन का, तो इस�लए हम घबराते ह� मु��त से। वा�तव म� हम मु��त से नह� घबराते, हमने मु��त को जैसे प�रभा�षत कर रखा है, उस प�रभाषा से घबराते ह�। हमने मु��त के बारे म� जो
बात� सुन रखी ह�, जो कहा�नयाँ सुन रखी ह�, मु��त को ले करके जो मा�यताएँ बना रखी ह�, हम उनसे घबराते ह�। मु��त डरावनी नह� है, मु��त का �स�ांत डरावना है, मु��त क� हमारी प�रभाषा डरावनी है। मु��त को हमने अपने बंधनयु�त हाथा� से छू -छू कर बड़ा मैला कर �दया है। मु��त नह� मैली हो सकती, मैला �या हो गया है? मु��त श�द मैला हो गया है, मु��त क� धारणा मैली हो गइ� है, तो इसी�लए �फर उसम� कोइ� आकष�ण नह� रहा। इसी�लए �नवा�ण अब बड़ा स�ता, बाज़ा�, �घसा �आ श�द हो गया है – '�नवा�ण कैफ़े', 'मो� टू थ�श'। अभी �नकल जाओ शहर म�, कल कर लेना यही, �गनना �क ��, आ�मा, मु��त, मो�, �नवा�ण, बोध इ�या�द श�द तु�ह� �कतने �ावसा�यक ��त�ाना� पर �मलते ह�। दज�न से नीचे कोइ� न �गन पाएगा। दाएँ देखोगे तो दाएँ , बाएँ देखोगे तो बाएँ , हर तरफ़ मु��त ही �बक रही है। अब एेसी बाज़ा� मु��त �कसको आक�ष�त करेगी? कहे �क “हटाओ मु��त, इससे अ�ा तो हमारा �ापार है, हमारी �कान है, हमारा घर है। दो छोटे-छोटे ब�चे ह�, माँ बीमार है, उसक� सेवा करनी है। मु��त! होगा �या मु��त से? शाम का राशन आ जाएगा? मु��त से नया फ़ोन आ जाएगा? मेरा पुराना ख़राब हो गया। मु��त से ब�चे क� फ़�स चली जाएगी? �या होगा मु��त से?” मु��त �या है? मु��त का मतलब है उसको छोड़ देना �जसक� तु�हारे �लए कोइ� वा�त�वक उपादेयता नह� है। मु��त का अथ� है इ�मानदारी से पूछना �क तुम कौन हो, और जो तुम हो, वह होते �ए तु�ह� वा�तव म� �या चा�हए। जो कुछ तु�ह� चा�हए, उसके अलावा बाक़� जो कुछ तुमने पकड़ रखा हो, �फर उसे बोझ जानकर �याग देना, यही मु��त है। समझ ही गए होगे �क मु��त का मतलब �सफ़� छोड़ना ही नह� है, मु��त का मतलब पाना भी है। जो तु�हारे �लए आव�यक हो, उसको पाना भी मु��त है। ले�कन देखो तु�हारी कहा�नया� म�, तु�हारी �क़�सा� म� कह� मु��त के साथ पाना संब� होता है? मु��त का मतलब ही यही होता है �क राजा अपना महल छोड़कर चल �दया और गृह�थ अपनी प�नी छोड़कर चल �दया, माँ अपना पु� छोड़कर चल दी, तो यह तो सब डरावना ही है। मोह ब�त डरता है। बंधन इस तरह क� बात� सुनेगा तो ब�त डरेगा। याद रखना, अहम् को पू�त� चा�हए, मृ�यु नह�। अहम् बीमार मरीज़ क� तरह है और बीमार मरीज़ ब�त �च�ला रहा है, ब�त छटपटा रहा है। अहम् उस बीमार मरीज़ क� तरह है जो ब�त �च�ला और छटपटा रहा है। तुमने मु��त के बारे म� जो �क़�से बना रखे ह�, जानते हो वो �क़�से �या कहते ह�? वो �क़�से कहते ह�, मरीज़ �च�लाता था, छटपटाता था, शोर मचाता था। उसको �च�क�सक के पास लाया गया और �च�क�सक ने उसको उसके �:ख से, उसक� यं�णा से, उसके शोर से, उसक� छटपटाहट से मु�त करने के �लए उसको ज़हर दे �दया, यही मु��त है। छटपटाते मरीज़ को ज़हर दे दो, यह मु��त है, एेसा तु�हारी कहा�नयाँ कहती ह�। कहा�नयाँ झूठ� ह�। ये कहा�नयाँ यूँ ही गढ़ ली ह� तुमने। तु�हारी कहा�नयाँ कहती ह�— मरीज़ शोर ब�त मचा रहा था, बड़ा �:ख था उसके जीवन म�, बड़ी वेदना, तो �च�क�सक ने उसको �वष दे �दया। �वष देते ही सारी चीख पुकार �क गइ�, है न? एेसी ह� तु�हारी कहा�नयाँ मु��त क�। अब इन कहा�नया� को सुन करके कोइ� भी डरेगा ही। वा�तव म� मु��त �या है? वा�तव म� मु��त यह है �क मरीज़ बीमार था, ब�त �च�ला रहा था, ब�त छटपटा रहा था, �च�क�सक ने �ेमपूव�क उसका इलाज �कया, उसको दवा दी, औष�ध दी और धीरे-धीरे �ेम के �पश� से और दवा के �भाव से वह मरीज़ ठ�क हो गया, और जब ठ�क हो गया, तो सारी चीख-पुकार, सारी वेदना बंद हो गइ�। एेसे �मलती है मु��त। मु��त का मतलब होता है मरीज़ को �वा��य �मल गया, मु��त का मतलब यह नह� होता �क मरीज़ को ज़हर �मल गया। हालाँ�क दोना� ही ��थ�तया� म� चीख-पुकार �क जाती है; मरीज़ �व�थ हो जाए तो भी उसका चीखना �क जाएगा और मरीज़ क� मृ�यु हो जाए तो भी उसका चीखना �क जाएगा। तुमने बड़ी उलटी कहा�नयाँ बना ली ह�। तु�हारी कहा�नया� म� मु��त का मतलब होता है �क मरीज़ को ख़�म ही
कर दो, और तुम �सहर उठते हो। �सहर उठना तु�हारा समझ म� भी आता है, कहा�नयाँ ही इतनी ख़तरनाक ह�। तु�हारी कहा�नयाँ ये ह� �क घर म� तनाव ब�त था तो घर का पु�ष तनाव को अल�वदा करके घर को छोड़छाड़कर स�यासी हो गया। यह �या है? यह है ज़हर दे देना �क मरीज़ ब�त बीमार है, ब�त तड़प रहा है, ज़हर ही दे दो उसको, ख़�म ही कर दो। जब�क वा�तव म� मु��त का �या अथ� �आ? �क घर म� तनाव ब�त था, तो �ेमपूव�क अ�या�म क� औष�ध से घर का इलाज �कया गया और �फर घर का तनाव �मट गया। यह है वा�त�वक मु��त। अब मुझे बताओ— �या यह मु��त भी डरावनी है? : नह�। : ले�कन आशा जी (��कता�), आपके पास मु��त का जो �क़�सा है, वह �वा��य क�, �च�क�सा क�, आ�या��मक औष�ध क� बात ही नह� करता, और �या� बात नह� करता, वह भी बता देता �ँ, �या��क इलाज करने के �लए �ेम चा�हए, �या��क इलाज करने के �लए संयम चा�हए, धैय� चा�हए, साधना चा�हए। ज़हर दे देने म� �या साधना है! रोगी ब�त �च�ला रहा हो, उसको ज़हर दे देने म� �म लगता है �या? पर धैय�पूव�क उसका इलाज करने म� संयम चा�हए, �म चा�हए, �ेम चा�हए, साधना चा�हए। वा�त�वक मु��त यह सब माँगती है, �या-�या माँगती है? �ेम, साधना, �म, संयम। यह सब अहम् करना नह� चाहता। अहम् न �ेम जानता है, न धैय� जानता है, न साधना जानता है, न संयम जानता है। तो वह एेसा �क़�सा गढ़ता ही नह� �जसम� यह सब शा�मल हो, �या-�या शा�मल हो? �म, �ेम, तप�या, संयम। अहम् एेसा �क़�सा गढ़े गा ही नह�। वह मु��त को ले करके यही बात बनाएगा �क मु��त से बचकर रहना, �या��क मु��त का मतलब होता है �क जो बीमार है, उसको मार दो। बीमार को मारना नह� है, बीमार को जीवन देना, �वा��य देना है। �या� देना है, उसक� भी वजह समझो, �या��क मृ�यु �वभाव नह�, अमरता �वभाव है। जो बीमार है, उसे तुम मृ�यु क� ओर भी ले जा सकते हो और उसे तुम �वा��य क� ओर भी ले जा सकते हो, �कधर को ले जाना चा�हए? बात नै�तकता क� नह� है, बात मॉरे�लटी क� नह� है; बीमार आदमी को मृ�यु क� ओर भी ले जाया जा सकता है और �वा��य क� ओर भी—म� आ�या��मक अथा� म� बात कर रहा �ँ, म� शारी�रक बीमारी क� बात नह� कर रहा—म� �कन बीमा�रया� क� बात कर रहा �ँ? म� बात कर रहा �ँ �म क�, मोह क�, �ोध क�, भय क�, इन बीमा�रया� क� बात कर रहा �ँ। जो बीमार है, उसे तुम मृ�यु क� ओर भी ले जा सकते हो। जो बीमार है, उसे तुम �वा��य क� ओर भी ले जा सकते हो। �कधर को ले जाना बेहतर है? : �वा��य क� ओर। : �वा��य क� ओर ले जाना �या� बेहतर है? : �वभाव है हमारा। : ब�ढ़या। �या��क मृ�यु अथा�त् गहरा भय, मृ�यु अथा�त् गहरा �म या मोह—ये �वा��य ह� ही नह�, ये �वभाव ह� ही नह�। तो तुम इनक� ओर �कसी को ले भी जाओगे तो तुमने उसक� कोइ� मदद नह� कर दी। हो सकता है �क ऊपर-ऊपर से उसक� चीख-पुकार बंद हो जाए पर भीतर-भीतर उसक� छटपटाहट, उसक� वेदना और बढ़ा दी तुमने, तो यह तुमने कोइ� इलाज नह� �कया। यह मु��त नह� है, यह तो और तुमने उसे महाबंधन म� डाल �दया। मु��त का मतलब है �क मरीज़ को ले ही जाना है �वा��य क� ओर; जो ��मत है, उसको बोध देना है; जो �ह�सा म� है, �ेष म� है, उसको �ेम देना है। अब बताओ, मु��त डरावनी है �या? बीमार को �वा��य देना मु��त है, इस मु��त म� कुछ डरावना है �या? �जसका जीवन �खा चल रहा है, उसक� शु�कता पर क�णा के छ�ट� मारना मु��त है। बताओ, इसम� कुछ डरावना है �या? अब नह� है न? पर तुमने मु��त का संबंध कभी �ेम से जोड़ा ही नह�। हमारी मा�यता म� तो मु��त का मतलब होता है �क कबूतर घायल था, तड़प रहा था, हमने कहा, “ब�त तड़प रहा है, गद�न मरोड़ दो इसक�।” एेसी मु��त तो भयावह है, एेसी मु��त से तो राम बचाए।
इसी�लए आपने आगे �लखा है �क जब म� बोलता �ँ �कसी भी �वषय पर, तो वह आपको अपे�तया �यादा भला लगता है, सुहाता है। कुछ आपने �लखा है �क मन झंकृत होने लगता है, कुछ �मठास अनुभव होती है। वा�तव म� म� जो कुछ बोल रहा �ँ, वह मु��त से और मु��त के �लए ही बोल रहा �ँ, भले ही म� उसम� मु��त का नाम लूँ या न लू।ँ तो अगर आपको मेरी बात� मीठ� लगती ह�, मेरी बाता� से आपक� मन वीणा झंकृत होती है, तो इसका मतलब आपको भी �या पसंद है? आपको भी तो मु��त ही पसंद है। म�ने कभी भी बोला हो, कुछ भी बोला हो, �कसी से भी �कसी भी �वषय पर बोला हो, बोला तो सदा एक ही ल�य से है। �या ल�य रखा है? : मु��त। : तो आपको अगर मेरी बात� सुहाती ह�, तो आपको भी मु��त ही ��य है। ले�कन आपको कौन-सी मु��त ��य है? असली मु��त, �क़�से-कहा�नया� वाली नह�। अब यह �कतनी �व�च� बात है! �क़�से-कहा�नयाँ मु��त क� बात इतनी �यादा करते ह�, ले�कन आपको आक�ष�त नह� कर पाते। म� हो सकता है �क मु��त क� बात न भी कर रहा �ँ, हो सकता है �क म� कोइ� ब�त सामा�य, साधारण-सी बात कर रहा �ँ, म� उसम� मु��त श�द का हो सकता है �क �योग ही न कर रहा �ँ, ले�कन �फर भी वह बात आपको ��य लगती है।
आपको मेरी बात� नह� ��य लगत�, वा�तव म� सबको एक ही स��तु ��य है और उस स��तु का नाम है ‘मु��त’। जब भी कभी कुछ हा�द�क �प से ��य लगे, जब भी कभी कुछ एेसा हो �क �जसके बारे म� आप कहने लगे �क �ह को छू गया, तो समझ लेना �क वह कुछ एेसा ही है जो एक बड़ी आंत�रक आज़ादी �दलाता है, नह� तो और कुछ नह� आपके मन को �पश� कर पाता, भले ही �फर उसको नाम कुछ भी �दया गया हो। नाम म� �या रखा है! �ेम माने मु��त। कल भी कहा था, आज पुनः याद �दला रहा �ँ। अगर �ेम है और �ेम का दावा है, तो तु�हारी उप��थ�त से, तु�हारे �भाव से तु�हारे ��यजन को मु��त ही �मलनी चा�हए। �ेम और मु��त अलग-अलग नह� चल सकते। समझना अ�े से— �ेम का मतलब ही यही है �क तु�हारे होने से हमारे बंधन कटते ह� और हमारा तु�हारे ��त दा�य�व यह है—दा�य�व माने �ज़�मेदारी, कल हमने इस श�द का �योग �कया था कइ� बार—और हमारा तु�हारे ��त दा�य�व ही यही है �क हम तु�हारे बंधन काटेगे, �ेम और कुछ है ही नह�। इस बात को अ�े से समझ ली�जए। इस �श�वर से आप और कुछ जानकर न जाएँ , इतना जान ल� �क �ेम का मतलब होता है �सरे के बंधना� को काटने म� सहायक होना, तो आपने सब सीख �लया, संसार म� जीने क�, �र�ते बनाने और �नभाने क� कला आ गइ� आपको। : बंधना� को काटना �सरे के बंधना� को काटना है? अपने बंधना� को पहले काटना पड़ेगा न �सरा� के बाद म�? : ब�ढ़या बात! तुम अपने बंधना� को काटने म� ब�त आगे बढ़ नह� पाओगे जब तक तुम �सरे के बंधना� को काटने म� सहायक नह� हो रहे हो। वा�तव म� यह धारणा ही �क “मेरे बंधन �सफ़� मेरे ह� और उनको म� ���तगत �प से काट सकता �ँ,” बंधन है। हम सबके बंधन एक से ह�, �या��क हम सब वृ��या� के तल पर एक ही ह�। �ज�ह� अपने बंधन काटने हा�, वो अपने बंधन काटते �ए �सरा� क� सहायता कर� और जो �सरे के बंधन काट रहे हा�, उ�ह� �दखाइ� देगा �क �सरे के बंधन नह� काट पाएँ गे जब तक उ�हा�ने अपने नह� काटे। तो पहले �या आया? कुछ नह� आया पहले, दोना� साथ-साथ आए। यह मुग� और अंडे वाली बात है। पहले �या आया? कुछ नह� आया पहले। �सरे क� सहायता करनी हो तो अपनी करो और अपनी सहायता करनी हो तो �सरे क� करो। तो जब मेरे पास लोग आते ह� जो �सरे क� सहायता करने के बड़े इ�ु क होते ह�, तो म� उनसे पूछता �ँ, “तुमने पहले अपनी सहायता करी?” और जो मेरे पास लोग आते ह� जो अपनी सहायता करने के बड़े इ�ु क होते ह�, कहते ह�, “बताइए, बताइए, आचाय� जी, हम� मु��त कैसे �मलेगी?” तो म� उनसे पूछता �ँ, “तुमने �सरे क� सहायता करी?”
ये दोना� पृथक बात� ह� ही नह�, एक काम �सरे के �बना हो ही नह� पाएगा, �या��क हम सब बड़ी पुरानी डोरा� से आपस म� संब� ह�। हम वा�तव म� अलग-अलग ह� ही नह�, पृथक ���त�व धोखा है; हम एक ही ह�। पृथकता धोखा है, कह सकते हो �क पृथकता ही बंधन है। इस पृथकता के भाव को काटो, और जब पृथकता के भाव को काटोगे तो अपनी भी मदद करोगे और �सरे क� भी करोगे, �या��क अब तुम और �सरा पृथक है ही नह�। जब दो ह� ही नह�, तो �या अपनी मदद, �या उसक� मदद? ख़ुद भी बचूग ँ ा, तुझे भी बचाऊँगा, और तुझे अगर बचाना चाहता �ँ तो मुझे भी बचना पड़ेगा। और कुछ? : एक दप�ण क� तरह है �जसम� हम अपने को देख सकते ह�। : कह सकते हो। ब�त तरह के उदाहरण �दए जा सकते ह�। मुग�-अंडे वाली बात थी, जब चलते हो तो दो पाँव होते ह� न, बताओ, दोना� म� से आगे कौन चलता है? दो पाँव होते ह�, दोना� म� से आगे-आगे कौन-सा चलता है? : एक क� सहायता से �सरा। : या एेसा है �क दायाँ ही आगे-आगे चलता है? तो बताओ न, एक को अगर आगे बढ़ाना है तो �या करना पड़ेगा? : �सरे को आगे बढ़ाना पड़ेगा। : यह है मु��त: अपनी, �सरा� क�; अपनी, �सरा� क�; अपनी, �सरा� क�। आगे कौन बढ़ा? दोना� एक साथ आगे बढ़े मु��त क� �दशा म�। और तुम कहो, “नह�, साहब, मुझे तो �सफ़� इसक� (हाथ क� एक उँ गली �दखाते �ए) मु��त चा�हए। यह म� �ँ, ये �सरे ह� (उसी हाथ क� �सरी उँ गली �दखाते �ए) * ।" जो �दखते अलग-अलग ह�, पर अगर ठ�क से देखो तो? ठ�क से देखो तो एक ही ह�। �दखते…? * (दोना� उँ ग�लया� के जोड़ क� ओर इशारा करते �ए) : अलग-अलग ह�। : पर तुम कहो �क नह�, मुझे तो बस इसको (हाथ क� एक उँ गली �दखाते �ए) मु��त तक प�ँचाना है, यह (�सरी उँ गली �दखाते �ए) पीछे छू टता रहे, �या��क यह तो �सरा है, यह तो पराया है, तो यह भी नह� प�ँचेगा। या तुम कहो �क नह�, नह�, हम तो बड़े �न�वाथ� ह�, हम� अपनी तो कोइ� परवाह ही नह�, �क हम तो जो करते ह�, बस प�रवार के �लए करते ह�—एेसे भी लोग �मल�गे, कह�गे, “अपनी मु��त से हम� कोइ� मतलब नह�, बस हमारा मु�ू और हमारी मु�नया, इनको मु��त �मल जाए।” ठ�क है, �बना अपनी मु��त के �दलवा लो मु�ू और मु�नया को मु��त। हो नह� सकता।
This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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(2018)
Acharya Prashant 11 min 912 reads
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: आचाय� जी, �णाम। आ�द शंकराचाय� जी इस �ोक म� सभी संयम�पी साधना� क� तुलना म� आ�म�ान को मो� का सा�ात् साधन बता रहे ह�। आचाय� जी, आ�म�ान �या होता है, उसे कैसे �ा�त �कया जाता है और उससे हमारे जीवन म� कैसे सुधार आता है? �प� बताने क� कृपा कर�, ध�यवाद। : शंकराचाय� कह रहे ह�, “बाक़� सब साधन एक तरफ़, मो� का सा�ात् साधन है आ�म�ान।” �या है आ�म�ान? आ�म माने 'म�'। हम जीते जाते ह�, कम� करते जाते ह� �बना कम� क� पूरी ���या को ग़ौर से देखे। कम� हो रहे ह�, कम� कहाँ से हो रहे ह�, कमा� के पीछे �या है, कमा� का कता� कौन है, इस पर ग़ौर करने क� हम न ज़�रत समझते ह�, न हम� अवकाश �मलता है, �या��क कमा� क� अ�वरल �ृंखला है, एक के बाद एक कुछ-न-कुछ हो ही रहा है। बीच म� कोइ� अंतराल आता नह� जब आप बैठ करके, �क करके, ठहरकर देख पाएँ �क जो कुछ हो रहा था, वह �या हो रहा था। जीवन कुछ एेसा है �क वह आपको लगातार ��त ही रखे है, उलझाए ही �ए है, जीवन स�रता लगातार ग�तमान है। कुछ-न-कुछ नया लगातार आपके सामने आ ही रहा है। कोइ�-न-कोइ� चुनौती आपके सामने है। कोइ� पल एेसा नह� है �जसने आपको छु �ी दे दी हो �क अभी कोइ� दा�य�व नह�, अभी कोइ� लं�बत देयता नह�। हमेशा कोइ�-न-कोइ� बात अधूरी है, कुछ-न-कुछ सम�या बनी ही �इ� है। तो नतीजा यह है �क घटनाएँ लगातार घट रही है और आप उन घटनाआ� पर ��त��या देने के �लए �ववश ह�। �या ��त��या दे रहे ह� आप, आपको यह समझने के �लए अलग से व�त नह� �मल रहा। आप सभी के जीवन म� एेसे �दन आए ह� न जब एक के बाद एक चुनौती या सम�या या काम खड़ा होता रहता है? और कइ� बार तो एक ही समय पर कइ� लं�बत काम सामने होते ह�, एेसा �आ है? और जो कुछ हो रहा है, वह बड़े अनायो�जत तरीके से हो रहा है। आपको पहले से पता नह� था �क दोपहर दो बजे �या ��थ�त सामने आ जाएगी और दोपहर साढ़े तीन बजे �या ��थ�त सामने आ जाएगी, आप नह� जानते थे। बस एक के बाद एक लगातार �वाह म� ��थ�तयाँ बदलती जा रही ह� और आप आब� ह� उनम� से हर ��थ�त को जवाब देने के �लए, कोइ� ��यु�र देने के �लए, ��त��या करने के �लए। तो जीवन हमारा एेसे बीतता है। �या �आ, �कसने �कया, अ�ा �कया, �क बुरा �कया, जो हो रहा है, वह कैसे हो रहा है, इस पर हम ग़ौर नह� कर पाते। आ�म�ान का मतलब होता है ठ�क तब जब जीवन क� ग�त चल रही है, आप इस बात के ��त जाग�क हो जाएँ �क आप �बना उस ग�त को रोके भी उस ग�त से बाहर हो सकते ह�। �कृ�तगत ग�त चलती रहती है और आप उस ग�त के म�य भी शू�य और शांत हो सकते ह�। जब आप उस ग�तशीलता से �र होकर, बाहर होकर खड़े हो जाते ह� तो आपको �दखाइ� देने लग जाता है �क यह चल �या रहा है—चलना माने ग�तमान होना—यह ग़लती �कसक� है, कौन कर रहा है, यह हरकत� कौन कर रहा है, यह काम पर �कसने डाला —यह आ�म�ान है।
तो आ�म�ान तो �फर बड़ी सीधी-सरल बात �इ�। आ�म�ान का मतलब �आ चलती �इ� चीज़ पर नज़र रखना। �या चल रहा है? �कृ�त का सतत् बहाव चल रहा है। आपको नज़र रखनी है। यह �या हो गया उस बहाव म�? अभी-अभी मुह ँ से श�द �नकल गया, उस श�द के पीछे कौन था? श�द के पीछे तीन हो सकते ह� – �कृ�त, अहम्, परमा�मा। आ�म�ान का मतलब है पता हो �क कह� पहले दो तो नह� थे। पहले दो म� भी अगर पहला था तो कोइ� बात नह�। आपके मुह ँ से �व�न �नकले तो वह आपक� डकार हो सकती है न? अगर आपके मुह ँ से डकार �नकली है, तो कता� कौन है? �कृ�त। यह वैसी-सी बात है �क बादल गरजे, �व�न �इ�, गरजने वाला कोइ� नह� था। �कसी के संक�प से गज�ना नह� �इ� है। आपके शरीर म� भी ब�त कुछ चलता रहता है जो �कृ�तगत है। वह वैसा ही है जैसे कोइ� पेड़ से प�ा झड़े। आपके पेट म� भोजन पक रहा है, इसम� आपका कोइ� संक�प नह� शा�मल है; यूँ ही हो रहा है। तो इस कम� का कता� कौन है? �कृ�त। आपके पेट म� भोजन पच रहा है, अभी कता� कौन है? �कृ�त। �जस चीज़ क� कता� �कृ�त ह�, हमने जान �लया �क उसक� कता� �कृ�त है। और आप भोजन �हण �या कर रहे ह�, इसका कता� कौन है? इसका कता� अहम् हो सकता है, अ�धकांशत: अहम् ही होता है। ब�त कम लोग होते ह� जो �कृ�त के अनुसार भोजन �हण कर�। �यादातर लोग भोजन �हण करते ह� अहम् के अनुसार। और एेसे लोग जो परमा�मा के अनुसार भोजन �हण कर�, वो और भी कम होते ह�। तो न�बे ��तशत लोग भोजन �हण करते ह� अहम् के अनुसार, नौ ��तशत लोग भोजन �हण करते ह� �कृ�त के अनुसार, और हा�गे एक ��तशत या उससे भी कम जो भोजन लेते ह� परमा�मा के अनुसार। आ�म�ान का मतलब �आ �क आपको साफ़ पता हो �क कम� के पीछे कौन है। यह अभी जो आपने �नवाला भीतर डाला, वह शरीर क� माँग थी? अगर शरीर क� माँग थी, तो कता� कौन �आ? �कृ�त। वह अहम् क� माँग थी अगर, तो कता� �आ अहम्—या �क ‘�खी सूखी खाइ� के ठं डा पानी पी, देख पराइ� चोपड़ी ना ललचावे जी’, अब कता� कौन है? परमा�मा। यह आ�म�ान है। म� जो कर रहा �ँ, उसके पीछे कता� कौन है, यह पता कर लो — यही आ�म�ान है। बुरी-से-बुरी बात है अगर तुम जो कर रहे हो, उसका कता� है अहंकार। उससे �े� बात है �क तुम जो कर रहे हो, उसक� कता� है �कृ�त। ले�कन �कृ�त भी अगर कता� है तो यह कोइ� आ�खरी बात नह� हो गइ�; इससे यही पता चला �क अब तुम अब दानव नह� हो, पशु �ए। �े�तम बात तब है जब तुम जो कर रहे हो, उसका कता� है परमा�मा। तुमने छोड़ �दया अपने-आपको, कहा ठ�क है। यह आ�म�ान है – अपने कमा� को जानना, अपने �वचारा� को देखना �क यह जो �वचार आ रहा है, यह कहाँ से आ रहा है। जैसे खाने के �नवाले का पता चल सकता है न �क तुमने जो भोजन सामने रखा है, वह �या� चुना है, वैसे ही अगर ग़ौर से देखो तो अपने सू�म कमा� का अथा�त् �वचारा� का भी पता चल सकता है �क कहाँ से आ रहे ह� �वचार —यही आ�म�ान है। और जो कुछ भी है तु�हारे भीतर, म� �फर दोहरा रहा �ँ, उसका �ोत इ�ह� तीना� म� से कुछ होगा – या तो �कृ�त या अहम् या परमा�मा। यह आ�म�ान है। और याद रखना आ�म�ान का मतलब यह नह� होता �क तुम आ�मा को जान गए; आ�मा के �ान को आ�म�ान नह� कहते। आ�म�ान का बस यह मतलब है – अहंकार का �ान। वा�तव म� जब कता� परमा�मा होता है तो उसको जानने वाला भी कोइ� बचता नह� है। जब भी तुम जान पाओगे तो यही जान पाओगे �क कता� या तो �कृ�त है या अहंकार है। समझ लो आ�म�ान एक रडार है �जस पर दो ही तरह क� ��लप आती ह�, या तो �कृ�त या अहंकार। परमा�मा है, इसका पता �कस बात से चलता है �क रडार �क ���न ख़ाली है, उस पर कुछ ��लप आ ही नह� रही है। जब आ�म�ानी को कुछ न पता चले तो इसका मतलब है �क अभी आ�मा ही �ा�त है, अभी आ�मा अहम् से प�र��� नह� �इ�। जब भी कुछ पता चलेगा, तो यही पता चलेगा �क कुछ गड़बड़ है। रडार ने कभी यह बताया �क सब ठ�क है? रडार तो अ�धक-से-अ�धक यही बता सकता है �क गड़बड़ कहाँ-कहाँ ह�; देखो, यहाँ ��लप है, यहाँ ��लप है। सब ठ�क �सफ़� तब होता है जब रडार कुछ न बताए। तो जब आ�म�ानी को कुछ पता न चले, तब समझ लो �क सब ठ�क है, तब समझ लो �क अब आ�मा का रा�य चल रहा है �या��क अभी कुछ पता ही नह� चल रहा, अभी आ�म�ानी अनुभव से शू�य है, अभी उसके रडार पर कुछ नह� चमक रहा, अभी तो बस �न�कलुष, �न�व�कार आ�मा है। रडार पर तो �वकार ही चमकते ह�, आ�मा �न�व�कार है तो रडार ख़ाली है।
म� जो कर रहा �ँ, वह कहाँ से आ रहा है, यही जानना आ�म�ान है। और आ�म�ान भी �े�तम तब है जब जो हो रहा है, उसको होने के �ण म� ही जान �लया जाए। करने को तुम यह भी कर सकते हो �क बीती घटना का अवलोकन करो और �फर तु�ह� पता चले �क जो तुमने करा, वह �या� करा था। वह भी है आ�म�ान क� ही एक �ेणी, पर वह �नचली �ेणी ह�। उससे भी लाभ होगा, पर ब�त कम लाभ होगा। आ�म�ान से �यादा-से-�यादा लाभ तब होता है जब त��ण आ�म�ान हो जाए। भय उठ रहा है और तु�ह� भय के �ण म� ही पता चल जाए �क भय कहाँ से आ रहा है। : जब भय उठ रहा है तो शु�आत म� ही देख� या जब वो प�रप�व हो जाए तब? : अगर तुमने यह �नण�य कर ही �लया तो इसका मतलब �क तुमने शु� म� ही देख �लया। तुम कह रहे हो �क जब भय आ रहा है तो जब आ रहा है तभी देख ल� या जब पास आ जाए तब देख�। यह �नण�य भी तुम तभी कर सकते हो ना जब तुमने उसको �र से ही देख �लया हो। और जब �र से देख ही �लया तो अब �या उसक� उपे�ा करने के �लए आँख बंद करोगे? अब तो �दख ही गया। अब �या इस �स�ांत का हवाला दोगे �क नह� आचाय� जी ने बताया था �क �र से मत देखना, जब पास आ जाए तब देखना। अरे, �र है �दख गया तो �दख ही गया। जो घटना जब घट रही है तभी देखोगे न। जब �र है तो देख लोगे �क अभी �र है, जब पास आ जाए तो देख लो �क पास है। और उसम� अ�� बात यह है �क जब �र है, जब छोटा है, जब अभी तुम पर हावी नह� �आ है, तुम उसे अगर तभी जान लो तो उसके हावी होने क� संभावना कम हो जाएगी। आ�मा क� अनुकंपा से आ�म�ान होता है। आ�म�ान कभी आ�मा को जान नह� सकता, पर आ�म�ान क� घटना �स� करती है �क आ�मा है। �या��क आ�मा �या? जो अचल है, और �ान सदा �कसका हो रहा है? जो चलायमान है। चलायमान का �ान �आ तो इसी से �स� हो गया �क कह� कुछ अचल तो है। और जो अचल है उसी का नाम आ�मा है। तो आ�म�ान आ�मा का नह� होता ले�कन आ�म�ान के होने से यह �स� हो जाता है �क आ�मा है। आ�मा ना होती, आ�मा क� कृपा ना होती तो आ�म�ान कैसे होता! : यही गुण तो सा�ी म� होता है। : आ�मा सा�ी है। असा�ी का कोइ� �ान नह� हो सकता पर सा�ी क� अनुकंपा से ही सम�त �ान होता है।
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ADI SHANKARACHARYA
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(2019)
Acharya Prashant 17 min 428 reads
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: आचाय� जी, �णाम। यहाँ कम� से �या ता�पय� है? �या कम� अ�ान म� सहायक है? कृपया �प� कर� �क कम� का �ान और अ�ान के साथ �या स�बंध है। : कता� है, और कता� जहाँ है, वहाँ कम� होगा। कता� बोध हो सकता है, कता� बोधहीनता हो सकती है और कता� �कृ�त हो सकती है। इन तीन के अ�त�र�त कता� और कोइ� होता नह�। तु�हारे कम� तीन ही �ब��आ� से �नकल�गे, या तो बोध से या बोधहीनता से या �कृ�त से। बोधहीनता से जो कम� �नकला है, वह कम� तो बोधहीनता का उ�पाद है, बोधहीनता क� पैदाइश है, वो कम� अपने ही कता� का नाश कैसे कर देगा? बं�क से �नकली गोली बं�क को ही कैसे ख़�म कर देगी? शंकराचाय� कह रहे ह�, “कम� अ�ान का नाश नह� कर सकता।” �कस कम� क� बात कर रहे ह�? जो कम� अ�ान से ही उ�त ू है। अरे, अ�ान से ही कम� �नकल रहा है, एेसा कम� तो अ�ान को और पु�ता करेगा न? और अगर कम� बोध से �नकल रहा है, तो बोध क�� है और बोधज�नत कम� उसका उ�पाद है; क�� पर बैठा है बोध और उस बोध से �नकल रहा है सुंदर कम�, अब बताओ, �मटाने के �लए अ�ान बचा कहाँ? तो जब अ�ान है तो कम� अ�ान को नह� काट सकता, �या��क वह कम� �नकला ही अ�ान से है, और जब अ�ान नह� है, तो जो कम� है, वह अ�ान को नह� �मटा सकता, �या��क अब �मटाने के �लए अ�ान है ही नह�। जो प�र�ध पर है, वो क�� को बदल नह� पाएगा। क�� प�र�ध का �नधा�रण कर रहा है, प�र�ध क�� का �नधा�रण नह� करती। कता� कम� का �नधा�रण कर रहा है, कम� कता� का �नधा�रण नह� करता। हाँ, कम� कता� का प�रचय ज़�र देता है, पर प�रचय देना एक बात होती है और �नधा�रण करना �सरी बात होती है। कम� को देखकर कता� का पता लग सकता है, पर कम� से कता� को बदला नह� जा सकता। कम� क� उपयो�गता है—कम� को ग़ौर से देखोगे तो तु�ह� पता चल जाएगा �क पीछे कौन था। तो शंकराचाय� कह रहे ह� �क अ�ान को तो �ान ही �मटा सकता है। और यह बात ब�त, ब�त मह�वपूण� है— कैसे? �या��क अ�सर हम ‘हम’ ही रहते �ए, अपने क�� को यथावत् रखते �ए, कुछ करके यह को�शश करते ह� �क जीवन बदल जाए। हम कम� �ारा क�� को बदलने क� को�शश करते ह�, जो हो नह� सकता। ब�त-ब�त जो म�ने �म करा है, वह �सफ़� इसी धारणा के �ख़लाफ़ है �क तुम जो कुछ कर रहे हो, चाहे वह �जतनी �ज़द से करो, चाहे �जतनी मेहनत से करो, वह �थ� जाना है, �या��क तुम �बलकुल अड़े �ए हो �क क�� पर तो तुम ही रहोगे। तुम कपड़े बदलने को तैयार हो, �वयं को बदलने को तैयार नह� हो; तुम ��नया बदलने को तैयार हो, �वयं को बदलने को तैयार नह� हो। तुम सब कुछ बदल देने को तैयार हो, हर कम� कर देने को तैयार हो, पर क�� को, या�न �क उस क�� पर जो ‘तुम’ बैठे �ए हो, उसको तुम बदलने को तैयार नह� हो। यही बात शंकराचाय� यहाँ समझा रहे ह�। वे कह रहे ह� �क क�� को तो �ान ही बदल सकता है। उसे म� ‘बोध’ कहता �ँ। अहम् को तो बोध ही काट सकता
है; अहम् को कम� नह� काट पाएगा। कुछ कर-करके तुम �वयं को नह� बदल पाओगे। जब साफ़ �दखाइ� देगा �क तु�हारा होना ही �म है, तु�हारा होना ही भूल है, तो अपने-आप �मट जाओगे, और कोइ� तरीक़ा नह� है। जब कुछ कर रहे होते हो, तब तो तु�हारी नज़र बाहर हो जाती है न? जब कुछ कर रहे हो तो तु�हारी नज़र काम पर बैठ जाएगी, तुम ��त हो गए—�कसके साथ? काम के साथ। कता� को तो भूल ही जाओगे, पीछे छू ट गया और मु�कुराएगा वह पीछे खड़ा होकर। वह कहेगा, “देखो!” तुम �कस चीज़ के साथ ��त हो गए? काम के साथ। और करने वाला? वह पीछे मज़े कर रहा है। पीछे वाला तो तभी बदलेगा जब मुड़ करके उस पर नज़र डालो।
ज�दी से अपने-आपको �मा�णत मत कर �दया करो �क “देखो, इतना कुछ तो �कया न म�ने।” इस वा�य क� संरचना को ही ग़ौर से देखो, �या��क यह वा�य हम सबको ब�त �यारा है। हम सब अ�सर इसी वा�य का सहारा लेते ह�, इसी का हवाला देते ह�, “इतना कुछ तो �कया म�ने।” तो जब तुम कहते हो �क इतना कुछ तो �कया म�ने, तो उसम� तु�हारा पूरा ज़ोर �कन श�दा� पर रहता है? "इतना कुछ तो �कया," और कौन-से श�द को �बलकुल छु पा जाते हो, पचा जाते हो? 'म�ने'। हाँ, �कया तो ब�त कुछ, पर �कसने �कया? : ‘म�ने’। : उसक� तो बात ही नह� करना चाहते। तो जब तक तुमने �कया, तब तक तुमने �जतना कुछ �कया, वह �थ� जाएगा। यही तु�हारी सज़ा है। ठ�क है करा, ब�त कुछ करा, माँ-बाप अ�सर अपने ब�चा� से कहते ह� न �क “हमने तु�हारे �लए इतना कुछ �कया।” हाँ, �बलकुल इतना कुछ �कया, पर आपने जो करा, वह अहम् के क�� से ही करा। बोध कहाँ था उसम�? और बोध नह� था, क�� अहम् का था, तो उसक� अब आपको सज़ा �मल रही है �क सब कुछ करके भी आपको आनंद नह� है। पूरे वा�य पर वो एक पुछ�ला श�द भारी पड़ रहा है। “इतना कुछ �कया म�ने,” पूरे वा�य पर वह एक छोटा-सा श�द भारी पड़ रहा है, कौन-सा श�द? ‘म�ने’। सब कुछ कर डाला, पूरी ��नया बदल डाली, पर �कसने? : ‘म�ने’। : ��नया बदल गइ�, म� तो नह� बदला। और ��नया पूरी म�ने बदली ही इस�लए �या��क मेरी घोर �ज़द थी �क मुझे नह� बदलना है। यही समझा रहे ह� शंकराचाय�। ��नया बदलने से �या होगा, तुम तो बदले ही नह�। तो तु�हारी हालत वैसी ही रहेगी जैसे पहले थी, ब��क और ख़राब हो जाएगी, �या��क अब तु�हारे पास बड़ा गु�र रहेगा �क “म�ने ��नया बदल दी!” और �जतना गु�र रहेगा, उतनी ही �नराशा रहेगी। तुम कहोगे, “��नया भी बदल दी, तब भी भीतर क� अशां�त और �:ख वैसे का वैसा है।” कम� से तु�हारे भीतर का अंधेरा �र नह� होगा, तु�हारे भीतर का अंधेरा तभी �र होगा जब यह बोध उ�दत होगा �क तुम �कतने अनाव�यक हो, तुम �कतने ��मत हो, तुम �कतने द�र� हो—तु�हारी ज़�रत �या है!
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�कतना कुछ कर रहा है देखो वह आदमी उस जानवर के �लए, �कतना कुछ कर रहा है! खुद आधे पेट रहकर उसको �खलाता है। उसको रोज़ साफ़ भी करता है। खुद उसे ठं ड लग रही हो भले ही, पर उस पशु को ओढ़ाकर रखता है, पहना-�लपटाकर रखता है। �कतना कुछ कर रहा है, �कतना सारा कम� कर रहा है! ब�त कुछ करा, ब�त कुछ करा। यह देख लेना �क करने वाला कसाइ� तो नह�। कम� पर मत चले जाना, कम� के पीछे कता� कौन है, यह देख लेना। कसाइ� भी ब�त कुछ करता है। एक-एक �कलो क� परवाह करता है वह। जैसे माँ अपने ब�चे को तुलवाती है हर महीने, वज़न बढ़ रहा न ठ�क से �क नह�, कसाइ� भी वैसे ही तुलवाता है वज़न बढ़ रहा है न ठ�क से। पशु का वज़न बढ़ने पर अगर तुम �कसी को ब�त ख़ुश होते देखना, तो एक बार जाँच लेना, कसाइ� भी हो सकता है। ब�त कुछ कोइ� कर रहा है—कौन कर रहा है? यही कहना चाह रहे ह� शंकराचाय�। : अपने-आपको देखना है और सामने वाले को भी देखना है? : हाँ, �बलकुल, �या��क वृ��या� के तल पर तो हम सब एक ही ह�। संसार को भी ग़ौर से देखो तो अपना चेहरा �दख जाएगा। और कइ� दफ़े एेसा होता है �क अपने-आपको �नरपे� होकर देख पाना थोड़ा मु��कल होता है, मोह इ�या�द के कारण, तब �सरा� को देखना �यादा काम का होता है। आदमी अपनी खोट इ�मानदारी से देख पाए, थोड़ा मु��कल होता है, �सरा� को ही देख लो। �सरे जो ग़ल�तयाँ कर रहे ह�, वही ग़ल�तयाँ तुम भी कर रहे होगे। : आचाय� जी, ‘इतना कुछ तो �कया म�ने’, तो यह जो 'म�ने' आता है आ�ख़री म�, यह उस छ�व के �ारा आता है �जस छ�व क� पहले सवाल म� बात �इ� थी? : तुम हो, ये तुम हो। तुम वही जो अपने-आपको मानो ‘तुम’। उप�नषद् बार-बार समझाते ह� अपनेआपको ब� मानोगे तो ब� हो तुम, अपने-आपको मु�त मानोगे तो मु�त हो तुम। अहम् और �या है, एक ग़लत धारणा का नाम है अहम्। अहम् का मतलब है अपने �वषय म� धारणा रख लेना �क म� यह �ँ, �क वह �ँ, छोटा �ँ, बड़ा �ँ, क �ँ, ग �ँ। वह तुम हो जहाँ से तु�हारे सारे कम� आ रहे ह�। : �कसी भी �कार क� छ�व से मु�त होना भी छ�व बनाना है? : सब हो जाए, यह देख लो �क जो कह रहा है �क “मुझे छ�व नह� चा�हए,” वह है कौन। चोर अगर कह रहा है �क पाँच सौ के नोट नह� चा�हए, तो इसका मतलब यह नह� �क उसे पैसे से �वर��त हो गइ� है, इसका मतलब यह है �क उसे दो हज़ार के चा�हए। तो तुम जब बोलते हो �क “नह�, छ�व नह� चा�हए, छ�व नह� चा�हए,” तो उसका मतलब यह नह� होता �क तु�ह� छ�वया� से �वर��त हो गइ� है, इसका मतलब यह होता है �क तु�ह� ज़रा और मज़ेदार छ�व चा�हए। पाँच सौ के नोट नह� चा�हए, यह बात ही �कतनी सुंदर है! पर यह तो तुमने कभी ग़ौर ही नह� �कया �क कह कौन रहा है —वह चोर है। वैसे जब तुम कहते हो न �क "न, यह सब मु��त इ�या�द तो छ�वयाँ ह�, छ�व हटाओ," तो तु�हारी मंशा यह होती ही नह� है �क सब छ�वयाँ हट जाएँ , तु�हारी मंशा यह होती है �क अब पुरानी छ�वयाँ हट� और नइ� छ�वयाँ आ जाएँ । नइ� छ�वयाँ इस�लए नह� आ जात� �क नइ� छ�वया� का आना ज़�री है, इस�लए आ जाती ह� �या��क यह तु�हारी माँग है। यह तुम हो जो अ�नवाय� कर रहे हो �क पुरानी हट�गी ही तभी जब �यादा कुछ अनुकूल, �यादा कुछ सुखदायी कोइ� नइ� छ�व �मल जाए। देखा नह� है तुमने �क कामना��त लोग अ�सर अपनी कामना के �वषय को ठु कराते रहते ह�। �या�? वे कहते ह�, “और चा�हए।” यह उनका तरीक़ा है और माँगने का। पकवान चा�हए थे, महाशय घर आए, �जस तरह के पकवान चा�हए थे, वैसे नह� थे, �सरे थे, उ�हा�ने थाली उठाकर फ�क दी। इसका मतलब यह थोड़े ही है �क वे उपवास पर ह�, इसका मतलब थोड़े ही है �क इ�हा�ने �नज�ल �त उठाया है। इसका �या मतलब है? इसका मतलब है �क �वाद क� इतनी लोलुपता है �क जैसा खाना �मला है, उससे �यादा चटपटा, �यादा मसालेदार, �यादा सु�वा� भोजन चा�हए था। तो जो थाली �मली है, उसको उठाकर फ�क �दया। वैसे ही तुम छ�वयाँ
उठाकर फ�कते हो, �या��क तु�ह� थोड़ी और सुंदर, सपनीली, सजीली छ�व चा�हए। अ�सर जब �कसी को कुछ ठु कराते देखना, तो तुरंत जान जाना �क इसक� इ�ाएँ ब�त बड़ी ह�। यह छोटामोटा कामी नह� है, यह घोर वासना��त जीव है। आम आदमी का तो छोटी वासना से ही पेट भर जाता है, इसको ब�त बड़ी वाली है, तो छोटी-मोटी चीज� सब ठु कराए दे रहा है। “लंबा हाथ मारना है हमको। यह दोव�ी-चव�ी तो हमको �दखाओ ही मत। आज तो नोट बरसने चा�हए।” (एक �ोता क� ओर इशारा करते �ए) सब समझता है लड़का, �बलकुल अनुभव क� बात कर रहा �ँ, है न? यह तो पुरानी तरक�ब होती है नोट �नकलवाने क�, छोटी-मोटी चीज़ा� को ठु कराते जाओ। इसी�लए तो शंकराचाय� कह रहे ह�, “कम� को मत देखना, कता� को देखना।” कम� को देखोगे, धोखा खा जाओगे।
थाली परोसी गइ� दो लोगा� को, एक ने झपटकर खा �लया, �सरे ने जो सामने रखा था उसको ठु करा �दया। अगर �सफ़� कम� को देखोगे तो कहोगे �क �जसने झपटकर खा �लया, वह पेटू है और �जसने ठु करा �दया, वह बड़ा संयमी, स�यासी है, ले�कन बात उ�टी है। जो कुछ सामने आया, उसको जो खा गया, वह तो सहज संतोषी है और �जसने सामने आइ� चीज़ को ठु करा �दया, वह ज़�र घोर कामी है। पर �सफ़� कम� को देखोगे तो लगेगा, नह�, यह जो लपककर खा गया, इसी म� कामना दोष है। उसम� नह� है, वह तो सहज जीव है। : यह �नरी�ण कैसे �प� होगा, हम कैसे भेद कर�गे दोना� को? : नीयत होनी चा�हए साफ़ देखने क�, �दख जाएगा। हर चीज़ के �लए अगर ���या दे दी तो �फर तो हर चीज़ मशीन �ारा ही हो जाए, �या��क जो कुछ भी ���याब� है, उसे कोइ� यं� भी कर सकता है। तो बातबात म� यह नह� पूछा करो �क कैसे होगा, कुछ बात� �वत: घटती ह�, कुछ बात� �वभावगत होती ह�। उनम� कुछ आगा-पीछा, ���या नह� होती। वह बस हो जाती ह�, नीयत होनी चा�हए। नीयत होगी तो हो जाएगा। यह एेसी ही सी बात है �क तुम ढू ँढ़ रहे हो मुझे, ढू ँढ़ रहे हो मुझे और म� तु�हारे सामने खड़ा होकर क�ँ �क “म� यहाँ �ँ,” और तुम कहो �क “अब आपको देख� कैसे?” इतना तो कोइ� ���या कर सकती है �क वह मुझे तु�हारे सामने लाकर खड़ी कर दे, यह काम ���या कर सकती है, पर तु�हारे सामने आ करके खड़ा भी हो जाऊँ, �फर तुम कहो �क “अब आपको देखे कैसे?” तो अब यह नीयत क� खोट है। यहाँ पर ���या �क जाती है, यहाँ तो अब काम सहजता से ही होगा। उसी को म� नीयत कह रहा �ँ। : �या �ान �ा��त के �लए कम� अ�नवाय� है? कम� के अलावा �ान �ा��त के कौन-कौन-से साधन ह� और �ान क� �ा��त के माग� म� बाधा �या है? : �ान क� �ा��त का सबसे बड़ा साधन तु�हारी मुमु�ा है। साधन तुमने कहा न, �वयं आ�द शंकराचाय� साधन चतु�य बता गए ह�। उसम� न जाने �कतने गुणा� का उ�हा�ने वण�न करा है जो साधक म� होने चा�हए। अगर साधक को परम पद चा�हए, अगर साधक को परम �ान चा�हए, तो उसम� ब�त गुण होने चा�हए – �ववेक, वैरा�य, शम, दम, ��ा, समाधान, उपर�त, �त�त�ा और सबसे ऊपर मुमु�ा। तो �ान क� �ा��त का सबसे बड़ा साधन है तु�हारी मुमु�ा। मुमु�ा माने मु��त क� इ�ा, इसी को म� कह रहा �ँ नीयत, इरादा, ल�य, �येय। �येय तो बनाओ, वही है �ान क� �ा��त का साधन। और समझना, म� मु��त का स�बंध �ान से नह� जोड़ता, बोध से जोड़ता �ँ। उसका कारण है। ‘�ान’ श�द �जस अथ� म� आ�द शंकर �योग करते ह�, वह अथ� आज क� भाषा म� नह� है। उस समय म� �ान श�द को इतना स�मान �दया जाता था �क मा� आ�या��मक �ान को ही �ान कहा जाता था। आज तो तुमने �ान को ब�त स�ता श�द बना �दया न। तो तुम कहते हो, “अरे, मुझे ज़रा शेयर माक�ट का �ान चा�हए था,” पचास तरीक़े का। तो इस�लए म� बोध कहता �ँ। �ान तो व�तु है, कमो�डटी है, �ान तो सूचना के ब�त क़रीब क� बात है। �जसको तुम यहाँ पर �ान या परम �ान कह रहे हो, वह वा�तव म� नॉलेज नह� है, वह बोध है, वह �रयलाइजेशन है।
बोध कोइ� व�तु नह� है, बोध पदाथ� नह� है। बोध का कोइ� �वषय नह� होता, �ान तो व�तु है। �ान का हमेशा �वषय होता है। तुम �कसी से कहो �क तु�ह� �ान है, तो वह त�काल पूछेगा, “�कस बारे म� �ान है? �कस �वषय का �ान है? �कस चीज़ का �ान है?” �या��क �ान का सदा एक �वषय होता है। बोध का कोइ� �वषय नह� होता है। बोध का मतलब होता है �क �थ� के �ान से मु��त �मली। बोध माने छु टकारा। �ान एेसा है �क तुम �कसी को बताओ �क म� बँधा �आ �ँ, तो वह पूछेगा, “�कस चीज़ से बँधे हो?” बंधन का सदा एक �वषय होगा। अगर तुम बँधे हो, तो �कसी व�तु से बँधे होगे, तो बंधन का हमेशा एक �वषय होगा। पर अगर तुम कहो �क तुम मु�त हो, तो कोइ� मूख� ही होगा जो पूछेगा �क “�कस चीज़ से मु�त हो?” मु�त माने मु�त, मा� मु��त। “�कस चीज़ से मु��त?” “अरे, अब चीज़ क� �या बात है? हर चीज़ से मु��त, मु��त से भी मु��त, मा� मु��त।” तो जैसे बंधन का �वषय होता है, मु��त का �वषय नह� होता, वैसे ही �ान का �वषय होता है, बोध का �वषय नह� होता। इसी�लए म� �ान क� अपे�ा ‘बोध’ श�द का �योग करता �ँ। बोध क� �ा��त के माग� म� सबसे बड़ी बाधा �या है? सबसे बड़ी बाधा है तु�हारी �ज़द, सुख क� तु�हारी कामना, जो कुछ जैसा चल रहा है, उसी के साथ समायो�जत हो जाने क� तु�हारी वृ��। बोध माने तो मु��त होता है। तुम पूछ रहे हो, “मु��त के माग� म� सबसे बड़ी बाधा �या है?” मु��त के माग� म� सबसे बड़ी बाधा है यह है �क मु�त होने क� तु�हारी इ�ा ही नह� है, और �या बाधा है? तुम �वयं ही बाधा हो। मु��त के माग� म� �या बाधा है? बंधन ही बाधा है। जो ब� है, वही बाधा है, �या��क वह जब चाहे मु��त का चुनाव कर सकता है, कर नह� रहा है तो �या बाधा है? बंधन ही बाधा है। और बंधन कौन? जो ब� है, वही बंधन है। तो तुम ही बाधा हो। �जसे मु��त चा�हए, वह �वयं ही बाधा है मु��त के माग� म�, उसे ही हटना होगा। ले�कन हमारी माँग �व�च� होती है, हम कहते ह� �क बंधन को मु��त चा�हए। हम यह नह� कहते �क बंधना� से मु��त चा�हए, हम कहते ह� �क बंधना� को मु��त चा�हए। माने हम चाहते ह� �क बंधन बने रह� और मु��त भी �मल जाए। हम यह नह� कहते �क बंधना� से मु��त चा�हए, हम कहते ह� �क बंधना� को मु��त चा�हए। माने बंधन तो बंधन ह�, उ�ह� साथ म� मु��त भी �मल गइ�। तो अब वो बड़े अलंकृत बंधन हो गए ह�। लोहे क� बे�ड़याँ सोने क� हो गइ� ह�, और सोने क� ही नह� हो गइ� ह�, उन पर खुदवा �दया गया है ‘मु��त’। बे�ड़याँ ले�कन पहने रह�गे, बस उन पर सोने का पानी चढ़ा दो और उन पर अं�कत करा दो 'मु��त', तो हम कह�गे �क देखो, मु��त �मल गइ�। यही बाधा है।
This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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(2019)
Acharya Prashant 3 min 275 reads
: आचाय� जी, �पछले स� म� मुझे यह समझ आया �क जीवन ही गवाही देगा अ�या�म-पथ पर सही चलने क�। अ�या�म सही जीवन जीने क� कला है, तो �कससे पूछ� या कैसे पता चले �क सही जीवन जी रहे ह� या नह�? �कससे पूछ� �क मेरे �गु�ण �या ह�? और अगर �सफ़� गु� ही �दशा बता पाएँ गे, तो आपसे मदद कैसे ल�, ये सीधी बात कैसे हो? आ�मबोध के �ोक तो पढ़ �लए, �फर भी रा�ता साफ़ नह� है। कृपया माग�दश�न कर�। : जीवन सही चल रहा है या नह� चल रहा है, इसके �नधा�ता �सफ़� तुम हो। तु�ह� अगर अभी यही �तीत हो रहा है �क जीवन सही चल रहा है, तो �फर ठ�क है; तु�ह� अगर अभी साफ़-साफ़ अनुभव नह� हो रहा �क �:ख है, बंधन ह�, �म ह�, तो �फर ठ�क है, �फर चलने दो जो चल रहा है। अगर सब कुछ ठ�क ही होगा, तो �या� उसम� �थ� क� छे ड़छाड़ करनी? और ठ�क नह� होगा, तो कुछ ही समय म� �व�फोट होगा, चोट लगेगी। हाँ, इ�मानदारी से यह �� बार-बार करते ज़�र रहना �क “�या वा�तव म� सब कुछ ठ�क चल रहा है?” �या��क कइ� बार दैवीय अनुकंपा चा�हए होती है �सफ़� तु�ह� यह उ�ा�टत करने के �लए, �सफ़� तु�ह� यह जताने के �लए �क कुछ गड़बड़ कह� है ज़�र। म�ने कइ� बार कहा न �क आदमी म� बड़ी �भा��यपूण� ताक़त होती है समायो�जत हो जाने क�, �वभाव �व�� जीवन जीकर भी संतु� अनुभव करने क�। उस समय पर तो कोइ� बाहरी �पश� चा�हए होता है, कोइ� अनु�ह, कोइ� चम�कार जैसा। कोइ� चा�हए होता है जो आ करके तु�ह� थोड़ा झझोड़ जाए, ले�कन वो झझोड़ भी तु�ह� तु�हारी अनुम�त से ही पाएगा। तो ले-देकर हम पहली ही बात पर वापस आ गए �क �नधा�ता तो तुम ही हो। तुम ही तय करोगे �क सब ठ�क चल रहा है या नह�, �या��क बताने वाला भी झझोड़ सकता है, उससे �यादा तो कुछ नह� कर सकता; तुमसे कोइ� बात कह सकता है, तु�हारे सामने कुछ �माण रख सकता है, उससे �यादा तो कुछ नह� कर सकता। अंतत: उन �माणा� को भी �वीकार या अ�वीकार तु�ह� ही करना है।
तु�ह� कोइ� न�द से झझोड़ दे, ले�कन न�द से उठने या न उठने का �नण�य तो �फर भी तु�हारा है। तु�ह� कोइ� �कतनी भी बात� बता दे, उन बाता� को मानने या न मानने का �नण�य तो �फर भी तु�हारा है। तो �नधा�ता तो तुम ही हो। हाँ, इतना कर सकते हो �क जीवन को कइ� तरीक़ा� से परखते रहो, �योग करते रहो, जाँचते रहो, जो लगती हो चीज़� �क ठ�क चल रही ह�, उनका भी परी�ण करते रहो। अगर वो वा�तव म� ठ�क चल ही रही हा�गी, तो बार-बार परी�ण पर खरी उतर�गी, तु�हारा �व�ास और बढ़े गा और अगर कह� कुछ गड़बड़ होगी, तो वह परी�ण से सामने आ जाएगी।
This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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(2019)
Acharya Prashant 5 min 91 reads
: �णाम, आचाय� जी। म� बचपन से ही ब�त डरपोक रहा �ँ। अँधेरे मे जाने से तो डरता ही �ँ, चूहे, �ब�ली, गाय, �छपकली, कु�े, खरगोश, इन सभी से भी मुझे ब�त डर लगता है। �या मेरा यह डर समप�ण के साथ कम होगा? : तुम इतना ही समप�ण कर लो �क एक ह�ते क� छु �ी लेकर (यहाँ बोध�थल) आ जाओ। चूहा, �ब�ली, गाय, �छपकली, कु�ा, खरगोश, सबसे �मलवा द�गे। �जनसे डरने लग जाते हो, उनसे �री बना लेते हो। �जनसे �री बना लेते हो, उनके बारे म� त�य जानने का तु�हारे पास अब कोइ� तरीक़ा नह� बचता, �या��क उनसे तुमने �री बना ली। तो �री बनाने के साथ ही डर को ये सु�वधा हो जाती है �क �जनसे �री बनाइ� है, उनके बारे म� अब कोइ� कहानी बना ले। कोइ� जीव, कोइ� व�तु तु�हारे सामने ही हो, सा�ात हो, तो तुम उसके �वषय म� �क़�से नह� गढ़ पाओगे, क�पना नही कर पाओगे, �या��क वो तु�हारे सामने ही है। पर डर के मारे �र हो जाते हो, और जब �र हो जाओगे, तो वो चीज़ तो तु�हारे सामने है नह�, तो अब तु�ह� सु�वधा हो गइ� कहानी गढ़ने क�। और चू�ँ क डरे �ए हो, तो इसी�लए डर के �वषय के बारे म� कहानी कैसी गढ़ोगे? डरावनी। अब जो आदमी खरगोश से डरता हो, उससे अगर तुम कहो �क खरगोश कैसा होता है, इसके बारे म� कुछ बताना। “खरगोश नरभ�ी होता है। अभी बीते �दना� बगल के �जले म� छह पहलवान मारकर खा गए दो खरगोश ने।" (�ोतागण हँसते ह�) अब वो एेसा �या� कह रहा है? अब वो एेसा इसी�लए कह रहा है �या��क उसने खरगोशा� से इतनी �री बना ली है �क खरगोश वा�तव मे �या है, इसको वो �बलकुल भूल चुका है। उसक� क�पना का खरगोश कैसा होता है? उसक� क�पना के खरगोश के स�ग ह�, उसक� क�पना के खरगोश के बड़े-बड़े दाँत ह�, उसक� क�पना के खरगोश के मुह ँ से ख़ून �रस रहा है, उसक� क�पना का खरगोश बड़े पंजे और तीखे नाखूना� वाला है। और वो ये क�पना सु�वधापूव�क कर सकता ह� �या��क खरगोशा� से �र है, खरगोशा� से कोइ� वा�ता ही नह� है। �छपकली देखते ही इतना डर लगता है �क भागे ज़ोर से, ज़रा थम करके दो पल उसे देखा भी नह�। तो अब जब भाग ही रहे हो, तो तु�हारे �च� म� �छपकली, �छपकली नह�, वो अब डायनासोर है जो छत से लटक रहा है, तु�हारे ऊपर वो अब धावा ही बोलने वाला है। कु�े-�ब�ली अब कु�े-�ब�ली नह� ह�, वो चीत� ह�, वो शेर ह�। ये �री बनाने से होता है। ये अहंकार क� बड़ी पुरानी, बड़ी �घनौनी, ले�कन बड़ी सफल चाल है। उसको �जससे घृणा करनी होती है, उससे वो �री बना लेता है। और तु�ह� ये बात बड़ी �वाभा�वक-सी लगती है न, �क "भाइ�, �जससे नफ़रत हो, उसके पास �या� जाएँ ?"
वा�तव म� �जससे नफ़रत होती है, उसके पास तुम इसी�लए नही जाते ता�क तुम उससे नफ़रत करते रह सको, �या��क पास चले गए तो घृणा कर नह� पाओगे। घृणा त�या� पर कहाँ आधा�रत होती है? घृणा तो कहा�नया� पर आधा�रत होती है, और कहा�नयाँ बची ही तब
तक रह�गी जब तक तुमने �री बनाइ� �इ� है। तो जहाँ तुम अपने-आपको पाओ �क �कसी से ब�त �र रहने का मन है, �कसी क� श�ल नह� देखनी है, बात नह� करनी है, तहाँ समझ जाना �क तुम भीतर के झूठ को �ो�साहन दे रहे हो। सामने जाओगे, �मलोगे, बैठोगे, समय �बताओगे, झूठ का पदा�फ़ाश हो जाएगा, इसी�लए तुम सामने जाना ही नह� चाहते, या अगर तुम सामने जाओगे भी तो पल भर को जाओगे और �वशेष ��थ�तयाँ �न�म�त कर-करके जाओगे। तुम ��थ�तयाँ ही एेसी �न�म�त करके जाओगे �क �जसम� तु�हारी कहानी बची रह सके। जैसे �क कु�े से तु�ह� डर लगता हो, तो तुम कु�े के सामने जाओगे ही डंडा ले करके। अब जहाँ कु�े ने डंडा देखा, तहाँ वो तुम पर भौकेगा और तु�हे दौड़ाएगा, और तु�ह� तुरंत �माण �मल गया �क तु�हारी कहानी ठ�क थी। और तुम कहोगे, "देखा, म� तो पहले ही कहता था �क नरभ�ी कु�े ह�; कु�ा है ही नह�, ये आदमख़ोर है।" तुम ये नह� देख रहे �क तुम उस कु�े के सामने ख़ासतौर पर योजना बना कर गए ही इस तरीक़े से �क वो कु�ा तुम पर आ�मण करे, भा�के। ये अहंकार क� �घनौनी, ले�कन �भा��यवश सफल चाल होती है। तुम �जसको जैसा देखना चाहते हो, वैसा देख सकते हो, और देख ही नही सकते, तुम �माण भी इक�ा कर सकते हो �क तुम �जसको जैसा देख रहे हो, वो वैसा ही है। �कतनी ख़तरनाक बात है ये! जो ��नया को जैसा देखता है, उसे अपनी ��� के प� म� �माण भी उपल� ह� �क ��नया वैसी ही है। फँस गए। �कतनी बुरी तरह फँसे �ए ह� हम, अपने ही बीच म�! हम अपनी ही ��� के कारागार म� बंद ह�।
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(2019)
Acharya Prashant 8 min 159 reads
: आचाय� जी, नमन। म� योजनाएँ अ�� बनाता �ँ, �व�ेषण भी अ�ा करता �ँ, �क�तु अपने �वचारा� को साकार �प नह� दे पाता। इसका कारण यह नह� है �क म� कामचोर �ँ या मेहनत से कतराता �ँ, ब��क इसका कारण मेरे ही डर और उलझन� ह�। जैसे-जैसे महीना�-साला� को गुज़रते देखता �ँ और पाता �ँ �क म� अपने जीवन और �दनचया� के पुराने कामा� म� ही फँसा �आ �ँ, तो �वयं क� अकम��यता के कारण एक बेचैनी घेर लेती है। कृपया माग�दश�न कर� �क म� अपने �ारा सोचे गए काया� को आर�भ कैसे कर सकूँ। : मूल मु�े पर ही �टको। तु�ह� एेसा लग रहा है �क तुम जो �वचार करते हो, जो तुम योजना बनाते हो या जो तुम �व�ेषण करते हो, वो योजना, �वचार, �व�ेषण तो सब ठ�क ही ह�। तु�ह� एेसा लग रहा है �क सम�या तो बस इतनी-सी है �क तुमने जो तय �कया, जो योजना बनाइ�, उसको तुम साकार �प नह� दे पाए, काया���वत नह� कर पाए। तु�हारी ��� म� सम�या बस इतनी-सी है। और तुमने अपने अनुसार इस सम�या का कारण भी खोजा है, �नदान �कया है। तुम कह रहे हो �क सम�या है डर और उलझन। नह�, सम�या इतनी-सी ही नही हो सकती �क जो योजना बनी है, वो काया���वत नह� हो पाती। अगर मूल म� डर बैठा है और ��द बैठा है, तो जो योजना बन रही है, वो काया���वत होने लायक होगी ही नह�, इसी�लए काया���वत हो भी नह� पाएगी। तुमने सम�या का एक ही �तर देखा है, तुम मूल तक नह� प�ँच रहे हो। तु�हारे अनुसार योजना तो ब�ढ़या बन रही है। तु�हारे अनुसार तु�हारे �वचार, तु�हारे आइ�डयाज़ तो ब�त अ�े ह�, कमी बस उनके काया���वत होने म�, उनके ए��स�यूशन म� है। न, एेसा नह� है। अगर करने लायक काम हो तो तुम उसे करोगे कैसे नह�? अगर भीतर से सश�त �ेरणा उठ ही रही हो, तो तु�ह�ं उसे काया���वत करना ही पड़ेगा, तुम उसके सामने असहाय, मजबूर हो जाओगे। पर अगर तुम �नण�य करते हो, मन बनाते हो, योजना बनाते हो, काय��म �नधा��रत करते हो, और �फर जो तुमने �नधा��रत �कया, उस पर चल नह� पाते, उसे कर नह� पाते, तो बात मा� इ�ाश��त क� या डर इ�या�द क� नही है, बात ये है �क तुमने जो �वचार बनाया है, वो �वचार ही कोइ� ब�त सु�दर नह� है, वो �वचार ही इतना सश�त नह� है �क तुमको असहाय, �न�पाय कर दे। तुमने जो आइ�डया करा है, उसम� ही कोइ� दम नह� है। दम होता तो म� कह रहा �ँ �क तुम मजबूर हो जाते, तु�ह�ं उसका अनुपालन करना पड़ता। वो तु�ह�ं रात को सोने नही देता, वो �दन मे तु�ह�ं चैन से बैठने नही देता। वो कहता �क म� होने के �लए तैयार खड़ा �ँ, तुम मुझे होने �या� नह� दे रहे? मू�त� का ख़ाका �ख�च चुका है, तुम प�थरा� को मूत� �प लेने �या� नह� दे रहे? जब डर बैठा हो कता� के साथ, तो उसका ��येक कम� डर मे ही रंगा �आ होगा। और कम� का मतलब यही नही होता �क �थूल तौर पर काम करना, �वचार और योजना भी तो कम� ह� न? अगर डर के मारे तुम ठ�क से हाथ नह� चला पा रहे, तो इतना तुमने कह �दया �क डर है, इस कारण ये �थूल कम� नह� हो पा रहा, �क म� डर के कारण ठ�क से हाथ नही चला पा रहा पर ये भी समझना �क अगर डरे �ए हो, तो डर के कारण जैसे तुम ठ�क से हाथ नह� चला पा रहे, वैसे ही तुम ठ�क से �दमाग़ भी नह� चला पा रहे होगे। डर का मतलब है — तु�हारी ह�ती के सहज �वाह को लकवा मार जाना। सब कुछ ही लकवा��त हो जाएगा — न ठ�क से हाथ चलेगा, न ठ�क से बु�� चलेगी और न ठ�क से अंतःकरण चलेगा। हाथ भी कंप-कंपकर आगे बढ़े गा और �वचार और योजनाएँ भी कंपी-कंपी ही हा�गी। इसी�लए म�ने कहा �क वो योजनाएँ इतनी सु�दर हा�गी ही नह� �क तुम उ�ह� काया���वत करो। उन योजनाआ� म� भी कुछ अ�ा नह� है, इसी�लए तो वो आज तक साकार नही हो पाइ�ं। तो बाक� सब बात� छोड़ो, अपने बारे म� तुमने जो भी मा�यताएँ बनाइ� ह� �क म� योजना करता अ�ा �ँ, म�
�व�ेषण अ�ा कर लेता �ँ, ये सब हटाओ, बस एक बात इ�मानदारी से याद रखो �क डरे �ए हो और उलझन मे हो, ��द म� हो। उस उलझन को हटाना है, उस डर को �मटाना है। वो डर �मट जाएगा तो सब अ�े -अ�े काम हो जाएँ गे, ये भी हो सकता है �क �बना �कसी ख़ास योजना के ही हो जाएँ । और वो डर मौजूद है तो बड़ीसे-बड़ी योजना �वफल जाएगी, �यो�क वो योजना बड़ी तो होगी, पर �जतनी बड़ी होगी, उतनी डरी �इ� भी होगी। वा�तव म� योजना �जतनी डरी �इ� होती है, उतनी बड़ी होती है। जैसे-जैसे �नभ�क होते जाते हो, वैसेवैसे आयोजन क� ज़�रत ज़रा कम ही होती जाती है। डर पर �यान दो। कहाँ से आ रहा है? �या कह रहा है तुमसे? डर को हारना पड़ेगा, �यो�क डर के मूल मे एक झूठ बैठा होता है, वो झूठ तभी तक छु पा रहता है जब तक तुम डर से �र-�र रहो। डर को �मटाने का तरीका है �क डर के क�� म� घुस जाओ, वहाँ तु�ह�ं �मलेगा एक झूठ, और झूठ तुमने पकड़ा नह� �क डर �मट जाएगा। ले�कन डर चू�ँ क डरावना है, डर का तो नाम ही है 'डर', तुम उससे रहते हो �र-�र। �र रहोगे तो उसके क�� म� जो झूठ बैठा है, उसे देखोगे कैसे, उसे पकड़ोगे कैसे? तो डर के पास जाओ, आमनेसामने उससे बात करो, बोलो उससे, “�या बोलता है तू?” डर तु�ह�ं डराने के �लए तुमसे कुछ तो बोलता होगा न? �या बोलता है? �पए का नुक़सान हो जाएगा, अपमान हो जाएगा, यही सब बात� तो बोलता है। कह� के नह� रहोगे, घर �छन जाएगा, घर वाले छोड़कर भाग जाएँ गे, और �या बात� बोलता है डर? : शरीर का नुक़सान हो जाएगा। : शरीर का नुक़सान हो जाएगा, असु�वधा हो जाएगी, खाने-पीने को नह� �मलेगा, जो भी बात है। कहो, “अ�ा, बोलो और �या बोल रहे हो?” और �फर जो कुछ वो बोल रहा है, उसका परी�ण करो, बोलो, “ये कैसे होगा?” तुमने कह तो �दया पर कैसे होगा, समझ� तो। डर तु�हारा �हतैषी बनकर आता है, वो तुमसे कहता �क देखो, हम तु�ह�ं तु�हारे भले क� बात बता रहे ह�। फलाना काम मत करना, �या��क अगर तुमने वैसा काम �कया तो तु�हारा नुक़सान है। हम तु�हारे �हतैषी ह�, शुभे�ा रखते ह�, इसी�लए बता रहे है �क फलाना काम मत करना। एेसा ही कहता है न डर? डर से बोलो, “ठ�क है, आओ। तो तुम हमारे �हतैषी हो, तुम हमारा कोइ� नुक़सान बचाना चाहते हो। देख� तो तुम हमारा कौन-सा नुक़सान बचाना चाहते हो, देख� तो �क वो नुक़सान हो भी सकता है या नह�। और ये भी देख� �क अगर नुक़सान हो भी गया, तो हमारा जाता �या है, और ये भी देख� �क वो नुक़सान न हो, उस नुक़सान को बचाने के �लए हम क़�मत �कतनी बड़ी अदा कर रहे ह�। कह� एेसा तो नह� �क दो �पए का नुक़सान बचाने के �लए क़�मत दो लाख क� अदा कर रहे ह�?”
ये सब बात� करनी पड़�गी �या��क डर के पास तक� ह�। बात करो। जैसे-जैसे डर के क़रीब जाओगे, वैसे-वैसे तु�ह�ं �दखाइ� देने लगेगा �क ये तो बात कुछ झूठ� है। ब�त कुछ है जो है नह�, ले�कन डर उसे बड़ा करके तुमको �दखा रहा है, और जो असली चीज़ है, डर उसे �बलकुल छु पा ही रहा है। शु�आत यह� से कर लो �क �या कहता है तु�हारा डर। �या कहता है? ये मत कह देना �क बस यूँ ही डरते ह�, यूँ ही कोइ� नह� डरता। अगर तुम यूँ ही डरते होते तो सोते समय भी डरते। एेसा कोइ� है जो गहरी न�द म� भी डर जाता हो? म� सपनो क� बात नह� कर रहा, सुषु��त क� बात कर रहा �ँ। कोइ� है? नह� डरते न? इसका मतलब डर का स�ब�ध �वचारा� से है। और �वचारा� म� तो बात� आती ह�, तो डर के पास भी कोइ� बात है, कुछ कहता है तुमसे। �या कहता है? बात करो।
: कुछ ग़लत हो जाने का डर। : �या ग़लत होने का? और बात करो साफ़-साफ़। �या ग़लत? वो कहेगा �क ग़लत हो जाएगा, उससे कहो, “बहक�-बहक� बात� मत करो। खोलकर बताओ, साफ़-साफ़ बताओ। ��साइस�ल , इ�ज़ै�ट�ल (ठ�क-ठ�क) �या ग़लत और �कतना ग़लत? नुक़सान �कतना है? और तु�हारी अगर सलाह मान�, तो उसम� �कतना नुक़सान है? तुम मुझे नुक़सान ही �दखा रहे हो न, तो हम नफ़ेनुक़सान का पूरा �हसाब कर�गे, साफ़-साफ़ कर�गे। एक तरफ़ा बात नह� चलेगी।"
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(2019)
Acharya Prashant 3 min 88 reads
: आचाय� जी, मेरे भाइ� क� शादी है। मन एक तरफ़ तो आक�ष�त हो रहा है, �सरी ओर घबराहट भी हो रही है। ख़रीदारी करना अ�ा लगता है, ले�कन शादी म� जाने से घबरा रही �ँ। कृपया माग�दश�न कर�। : ख़रीद लो, जाना मत। �या बताएँ ? ख़रीद लो, ख़रीद के दान कर दो। देखो, ये सारी चीज़� बनी ही �च� को आक�ष�त करने के �लए ह� और जब तक �च� क� उ�मादी अव�था रहेगी, वह आक�ष�त होता भी रहेगा। एेसा थोड़े ही है �क बस तुमको शादी भर ही आक�ष�त करती है, और भी चीज़� तो आक�ष�त करती हा�गी। �यौहार आ रहे ह� अभी, तु�ह� शोर-शराबा आक�ष�त करेगा। शादी भर के �लए ही थोड़े ही तुमको ख़रीदारी, शॉ�प�ग भली लगती होगी, अ�यथा भी ख़रीदारी बड़ी आकष�क चीज़ लगती होगी। तो यह बात �कसी एक �व�श� घटना क� नह� है, यह बात �च� क� उ�े�जत और ��मत �दशा क� है। जब तक �च� क� दशा एेसी है, तब तक तो कभी उसे ख़रीदारी का लोभ रहेगा, कभी �र�तेदारी का लोभ रहेगा, कभी �कसी चीज़, कभी �कसी चीज़, ��नया भर म� पचास �पंच ह� �जनक� ओर वह भागता रहेगा। तो �ंथा� का अ�ययन करो, मन है �या, इसको समझो; वृ��याँ �या ह�, जीव को कैसे नचाती ह� और वृ��या� पर चलने का अंजाम �या होता है, यह सब समझो—�फर एक घटना नह�, कइ� घटनाआ� से बच जाओगी। अभी तो एेसा लगता होगा न �क एक परेशान करने वाली चीज़ आ गइ� है संयोगवश सामने और उस एक चीज़ के अलावा बाक� तो जीवन म� जो कुछ है, सब ब�ढ़या ही चल रहा है। नह�, एेसा नह� है �क उस एक चीज़ के अलावा बाक� सब ब�ढ़या चल रहा है। इस �म से ब�त लोग ��त रहते ह�। वे आते ह�, कहते ह� �क “बाक� सब ब�ढ़या है, बस एक यही चीज़ गड़बड़ है।” कभी कोइ� एक चीज़ गड़बड़ हो ही नह� सकती। यह एेसी ही बात है �क कोइ� �च�क�सक के पास जाकर बोले �क “वो बस इस उँ गली म� जो ख़ून है, वह ख़राब है। (उँ गली �दखाते �ए) बाक� तो पूरे शरीर म� जो ख़ून है, वह �बलकुल साफ़ है। इस छोटी उँ गली का ख़ून ख़राब हो गया, इसको ज़रा शु� कर दी�जए।”
कोइ� तुमसे आकर बोले, “ये छोटी उँ गली का �लड क�सर हो गया है।” �लड क�सर है तो पूरे शरीर म� होगा न भाइ�, या केवल छोटी उँ गली भर म�? हाँ, यह हो सकता है �क अभी तुमको �तीत बस यही हो रहा है। �तीत यही हो रहा है, इसका मतलब यह नह� है �क केवल यह� पर है, वह तु�हारे पूरे तं� म� है, नख-�शख, तु�हारी पूरी �व�था म� है। संयोग क� बात है �क अभी �दख नह� रहा पूरा, पर �दखेगा, पूरा �दखेगा। पूरा वह फैल जाए ज़हर, तु�हारे रेशेरेशे म� �ा�त हो जाए, उससे पहले जो मूल कारण है, उसको ही �मटा दो। मूल कारण है अ�ान, मूल कारण है अपने ��त �म। �ंथा� के साथ रहो, स�संग से जुड़ी रहो, ब�त बात� साफ़ हा�गी।
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(2019)
Acharya Prashant 3 min 220 reads
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, : प�ंहव� �ोक म� शंकराचाय� जी ने ‘तादा��य’ श�द का �योग करा है। कृपया समझाएँ ।
: तादा��य माने तद्-आ�म, 'वह म� �ँ' — इस भाव को तादा��य कहते ह�। ‘तद्’ माने वह, ‘आ�म’ माने म�। 'वह म� �ँ', इस भाव को तादा��य कहते ह�। अहम् को कुछ-न-कुछ चा�हए होता है अपनी पहचान बनाने के �लए। अहम् अपूण� होता है, अकेला होता है और पूण� होने क� उसक� अ�भलाषा होती है, �या��क उसका �वभाव है पूण�ता। उसका �वभाव है पूण�ता, पर उसक� धारणा है अपूण�ता क�, उसका �व�प है पूण�ता, पर �प उसने पहन रखा है अपूण� का। तो पूण� होने क� उसक� कामना होती है। पूण� होने के �लए वह �कसी-न-�कसी चीज़ से जुड़ना चाहता है। इसी जुड़ने को तादा��य कहते ह�। (अलग-अलग व�तुआ� क� ओर इशारा करते �ए) कभी कहता है, 'यह म� �ँ', कभी कहता है, 'यह म� �ँ', कभी कहता है, 'यह म� �ँ', कभी कहता है, 'वह म� �ँ'। शंकराचाय� कह रहे ह�, पंचकोशा� से तादा��य कर लेता है। पंचकोश से ता�पय� है अ�खल �व�, जो कुछ भी हो सकता है। जो कुछ भी उपल� है जुड़ जाने के �लए, अहम् उस सबका ��पयोग कर लेता है। वह कहता है, जो कुछ भी �मले, उसी से जुड़ जाओ। संसार �मले तो संसार से जुड़ जाओ; अ�मय कोश �मले, अ�मय कोश से जुड़ जाओ; �ाणमय कोश �मले, �ाणमय कोश से जुड़ जाओ; �व�ानमय कोश हो, �व�ानमय कोश से जुड़ जाओ; आनंदमय कोश हो, उससे जुड़ जाओ—जो �मले, उसी से तादा��य बना लो। देखते नह� हो �क �कस-�कस चीज़ से �र�ता बना लेते हो? कुछ एेसा है �जससे तुमने �र�ता बनाने से इनकार कर �दया हो? �वचारा� से कह देते हो, 'मेरे �वचार ह�', घर को कह देते हो, 'मेरा घर है', शरीर को कह दे तो 'मेरा शरीर है'। सो भी रहे हो, तो कह देते हो, 'म� सो रहा �ँ', सुषु��त को भी कह देते हो, 'मेरी न�द है'। तो जो कुछ भी हो सकता है, �कसी भी कोश का हो वह, एकदम बाहरी कोश का है तो अ�मय है, �फर ज़रा भीतर गए तो �ाणमय, �फर �ानमय, �व�ानमय, आनंदमय कोश। इन कोशा� से �या अथ� है? पूरा संसार, जो कुछ भी उपल� है। सबसे जो बाहरी कोश है, वह सबसे �थूल है, और जैसे-जैसे तुम भीतर को आते जाते हो तो सू�म कोश आते जाते ह�। �थूल हो, �क सू�म हो, है तो मान�सक ही न। अहम् �कसी को भी नह� छोड़ता, �थूल से �थूलतर को नह� छोड़ता और सू�म से सू�मतर को नह� छोड़ता। उसको जो �मल जाए, वह उसी के साथ संबं�धत हो जाता है – यही तादा��य है। वह इतना अकेला है, इतनी तड़प है उसम� �क उसे कुछ-न-कुछ पकड़ना ज़�र है। यह तादा��य है।
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(2019)
Acharya Prashant 8 min 101 reads
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: आचाय� जी, �णाम। �पछले स� म� आपने कहा �क �ान को हटाना व झूठ को जानना ही ने�त-ने�त का अथ� है। आचाय� जी, इसके आगे क� या�ा के बारे म� जानना चाहता �ँ, इसके आगे क� या�ा कैसे हो? ने�तने�त के बाद कोइ� भी नया काम करने म� कोइ� ��च नह� आ रही है। �ोक के मुता�बक ने�त-ने�त से ‘अहम् ����म’ क� या�ा अब कैसे हो? कृपया माग�दश�न कर�। : देखा? ��च के मारे! जो पूरी उलझन है, वो इस एक श�द पर क���त है, �या? : ��च। : “��च नह� आ रही है।“ ये मसला मुझे कभी समझ म� ही नह� आता। ��च नह� आ रही हो तो ना आए। ��च इतनी ज़�री �या� है, भाइ�? म� ब�त �वचार भी क�ँ, सोचूँ भी, तो मुझे कभी पता नह� चलता, कुछ याद नह� आता �क म� जो कर रहा �ँ, उसम� मेरी ��च है या नह� है। ��च हो तो ठ�क, ना हो तो ठ�क, जो करना है सो करना है। जो है सो है न, �क नह�? या ���तगत पसंद-नापसंद ब�त बड़ी बात हो गए? अब आप भी युवा ही ह�, तीस-प�तीस क� उ� है, और वह� जाकर फँस रहे ह�। कह रहे ह� �क “आचाय� जी, आपने ने�त-ने�त का पाठ पढ़ाया, ब�त सारी चीज़ा� का झूठ, उनक� �थ�ता �दख गइ�, ले�कन अब सम�या ये है �क ने�त-ने�त के बाद कोइ� भी नया काम करने म� कोइ� ��च नह� आ रही है।" ��च क� ने�त-ने�त कब करोगे? हर चीज़ का झूठ तुमने देख �लया, ��च �कतना बड़ा झूठ है, ये कब देखोगे? हर चीज़, तुम कह रहे हो, तुमने जान ली �क �कस झूठे �ोत से उ�त ू होती है। जो झूठा है, उसका �ोत भी झूठा ही होगा कुछ। ��च �कस �ोत से आती है, ये कभी जाँचना चाहा तुमने? �या ये ज़ा�हर-सी बात नह� है �क भारतीय हो तो अ�सी-��तशत संभावना है �क ��केट म� ��च होगी। तो अब ��च म� 'आ��मक' �या �आ? �ाज़ील म� पैदा �ए होते तो? : फुटबॉल। : फुटबॉल म� ��च होती, भाइ�! ��च म� एेसा �या असली है �क दीवाने �ए जा रहे हो? �ह�� हो तो भजन म� ��च हो जाएगी, मुसलमान हो तो अज़ान म� ��च होगी, लड़के हो तो लड़क� म� होगी। सब अ�सी-��तशत संभावना के तौर पर बोल रहा �ँ। (�ोतागण हँसते ह�) भाइ�, बीस-��तशत भारतीया� को ��केट नह� भी पसंद होता। शाकाहारी घर म� पैदा �ए हो तो दाल-रोटी म� ��च होगी, माँसाहारी घर म� पैदा �ए हो तो कबाब-�बरयानी म� ��च होगी। चीन म� पैदा �ए हो तो चाउमीन
चा�हए, त�मलनाडु म� �ए हो तो डोसा चा�हए। देखते नह� हो �क ��च समय, काल, �थान क� दासी है? तु�हारी नह� है ��च, तु�हारी प�र��थ�तया� क� है ��च, और प�र��थ�तयाँ बदल दो, ��च भी तो बदल ही जाती है न? आज उ�ह� चीज़ा� म� ��च रखते हो �जनम� आज से दस साल पहले रखते थे? एेसा है �या? दस साल बाद भी ��च बदल चुक� होगी। पर एेसी प�रवत�नशील और �नराधार ��च को देवतु�य बनाकर तुम �ःख पाते हो। तुम कहते हो, “अब और कुछ करने म� ��च नह� आ रही है।" म� बताता �ँ हो �या रहा है। ने�त-ने�त तुमने पढ़ी; �जन चीज़ा� म� तु�हारी ��च थी उ�ह� क� तो ने�त-ने�त करोगे। जो चीज़� अ�� लगती थ�, उनक� ने�त-ने�त करी �क 'नह�, नह�, इनम� कुछ नह� रखा'। और जो चीज़� बुरी लगती थ� उनक� ने�त-ने�त करी �क इनम� कुछ नह� रखा। पर अ�े पन और बुरेपन क� तुमने ने�त-ने�त नह� करी। तो अब जो तथाक�थत अ��-अ�� चीज़� �ज़�दगी से गइ� ह� उनका अभाव खलता है। उनको तुमने हटा तो �दया पर मान अभी-भी यही रहे हो �क वो ��चपूण� चीज़� थ�, सरस थ� ब�त। इसी तरीके से �जन चीज़ा� से तुम �र भागते थे, �जन चीज़ा� से अ��च थी तु�हारी, उस अ��च को भी तुमने हटा तो �दया, उन चीज़ा� को भी तुमने फ़ौरी तौर पर, सतही तौर पर �वीकार तो कर �लया, ले�कन कह अपने-आप से यही रहे हो �क 'म�ने अब उन चीज़ा� को भी �वीकार कर �लया है जो बेकार क� ह�। म�ने उन चीज़ा� को हटा �दया है जो मुझे ब�त पसंद थ�, और अब म�ने उन चीज़ा� को भी �वीकार कर �लया है जो मुझे नापसंद थ�।' ले�कन मामले क� तह तक नह� प�ँच रहे हो, ये नह� कह पा रहे हो �क पसंद-नापसंद बात ही बकवास है। सार-असार होता है, �न�य-अ�न�य होता है; भेद �सफ़� इस आधार पर करा जा सकता है �क �या सार है, �या असार है, �या �न�य है, �या अ�न�य है, �या स�य है, �या अस�य है। �सफ़� ये दो वग� हो सकते ह� – असलीनकली, सच-झूठ, सार-असार। ले�कन तु�हारी ��नया म� दो वग� कौन-से चलते ह�? : ��च-अ��च। : पसंद-नापसंद, ��च-अ��च। ये जो तुमने वग�करण कर रखा है, यही �कतना बड़ा झूठ है ये तुम नह� देख पा रहे, इसक� तुम ने�त-ने�त नह� कर पा रहे। तुम ये भी अगर कहोगे �क अ�या�म ऊँची बात है, तो ये कहोगे, “अ�या�म ऊँची बात है, उसके �लए तो हमने वो चीज़� भी छोड़ द� जो हम� पसंद थ�।" इस व�त� से �या पता चलता है? �क तु�ह� अभी-भी वो चीज़� मू�यवान तो लगती ही ह� जो तु�ह� पसंद थ�, तभी तो तुम उनका हवाला देकर कह रहे हो �क, "हमने देखो �कतनी मू�यवान चीज़� छोड़ द� अ�या�म के �लए।" अगर तु�ह� उन चीज़ा� क� मू�यहीनता �दख ही गइ� होती तो तुम कहते �क, "अ�या�म के बाद वो सब छू ट गया जो मू�यहीन था, फ़ालतू था।" तुम ये नह� कहते �क 'म�ने वो सब छोड़ �दया जो फ़ालतू था'। उसे तो छोड़ना ही था �या��क वो फ़ालतू था। तुम कहते हो, "अ�या�म के �लए हमने बड़ी कुबा�नी दी है, वो सब चीज़� भी छोड़ द� जो हम� ब�त पसंद थ�।" वो चीज़� तु�ह� आज भी पसंद ह�, और इसी�लए तुम कलप रहे हो। तुमने उनको छोड़ा भी है तो बस ऊपर-ऊपर, भीतर-ही-भीतर तुम आज भी उनके आ�शक़ हो, मौका �मले तो गोलग�पा ग�प! ऊपर-ऊपर छोड़ रखा है। तु�ह� ये देखना पड़ेगा �क जो तुमने पकड़ रखा है वो है ही �थ�। ��च ही बड़ा धोखा है �या��क ��च तुम पर आरो�पत क� जाती है समय �ारा, प�रवार �ारा, धम� �ारा, काल �ारा, प�र��थ�त �ारा, �श�ा �ारा, मी�डया �ारा। बार-बार �हाइ� देना �क 'मेरा इंट�े�ट है �क नह� है', मूख�ता क� बात है, मत करो ये। तु�हारा इंट�े�ट तु�हारा है ही नह�, वो तो ��थ�तया� का है, यूँ ही आ गया। �फर ने�त-ने�त आसान हो जाएगी। ने�त-ने�त के सामने चुनौती ही है पसंद-नापसंद – �या ��य लगता है, �या अ��य लगता है। सबसे पहले उसी क� ने�त-ने�त कर दो। सबसे पहले उस ���या को ही समझ लो �जस पर चल कर के �कसी को कुछ अ�ा लगने लगता है और कुछ बुरा लगने लगता है। दस-बारह साल तक के होते हो, तु�ह� कौन-सा लड़�कयाँ, ���याँ बड़ी ��य लगने लगती ह�? माँ अपनी �यारी लगती है ���या� म�, बस; जाकर के अपना उसको पकड़ �लया, खुश ह�। उसके बाद �या होता है, ���या को
समझना – देखोगे �क ���या रासाय�नक है। शरीर म� कुछ ��ा� का उ�सज�न होता है, कुछ �ं�थयाँ स��य हो जाती ह�, और �फर तुमको ���याँ ��य, ��चकर लगने लगती ह�, लगती ह� न? तुम कभी सोचते ही नह� �क, "आठ साल क� उ� तक तो ये जो उ�म�ला है, बड़ी साधारण-सी ही थी, म� पसंद ही नह� करता था इसके साथ खेलना-वेलना कुछ भी। यही ब��क आती थी �क चलो खेल�, तो म� कहता था, 'हट! ��केट खेलना है, तुझे बॉ�ल�ग बै�ट�ग कुछ आती नह�।' और चौदह के �ए नह� �क ये उ�म�ला कुछ खास लगने लगी है। अब बोलता �ँ, 'उम�! उम�! आजा खेल�'।" (�ोतागण हँसते ह�) मामला ही पलट गया, अब वो बोलती है �क �र हट! तुम सोचते हो �क ये कोइ� आंत�रक ��च इ�या�द क� बात है, ये बात �कसक� है? : शरीर म� होने वाले रासाय�नक बदलाव क�। : तो ये जो पूरी ���या है, इसको समझो, ता�क पसंद-नापसंद क� ही ने�त-ने�त कर डालो। �फर कुछ नह� सताएगा। �फर पूछा है �क “ने�त-ने�त से 'अहम् ����म' क� या�ा कैसे हो?” कोइ� या�ा नह� चा�हए। ने�त-ने�त पूण� हो, यही ����म है। तु�हारी अभी पूण� ही नह� �इ� है, तुम यूँ ही मा�यता रख रहे हो �क 'ने�त-ने�त तो कर ली, 'अहम् ����म' हो नह� रहा, म� परेशान �ँ।' ने�त-ने�त �इ� ही नह� है अभी, पूरी करो।
This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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(2019)
Acharya Prashant 11 min 1.8k reads
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: आचाय� जी, नमन। �ोक से समझ आया �क आ�मा के आ�य म� शरीर क� सारी ��याआ� और सूय� के �काश के आ�य म� मनु�य क� सारी ��याआ� का संपादन होता है। कृपया �काश डाल�। ध�यवाद! : समझाया जा रहा है �क आ�मा कोइ� व�तु नह� है, कोइ� �वषय नह� है। जैसे इस क� म� ब�त सारी चीज़� �दखाइ� पड़ रही ह� �काश म�, पर �काश अपने-आपम� कोइ� चीज़ नह� है। सब चीज़� �दखाइ� पड़ रही ह� �काश म�, ले�कन �काश अपने-आपम� कोइ� चीज़ नह� है। चीज़ माने �वषय, व�तु। तो आ�मा �या है? आ�मा वो है �जसके होने से सब हो रहा है। सब हो रहा है, माने कहाँ हो रहा है? सब ग�तयाँ जहाँ ह�, उसको कहते ह� चेतना। सब पदाथ�, सब व�तुएँ, सब �वषय जहाँ ह�, उसको कहते ह� चेतना। चेतना �या है? जहाँ सब कुछ है, जहाँ आकाश भी है और आकाश के सारे �ह-न��, सब तारामंडल ह�। चेतना �या है? ये कमरा, �जसम� सब लोग ह�। चेतना �या है? �जसम� भूतकाल है, भ�व�य भी है। चेतना �या है? �जसम� सपने भी ह�, त�य भी ह�। जो कुछ भी तुम कह सकते हो �क ‘है’, वो कहाँ ह�? चेतना म�। तो जब आ�द शंकराचाय� कह रहे ह� शरीर, इं��याँ, मन, बु��, इनक� ��याएँ और मनु�य क� ��याएँ , तो ये �कसक� बात कर रहे ह� वो? चेतना क�, �या��क चेतना म� ही सारी ��याएँ ह�। सब जड़-चेतन पदाथ� कहाँ ह�? चेतना म�। ��या-अ��या सब कहाँ ह�? चेतना म�। उठे कुछ तो कहाँ उठे ? : चेतना म�। : �गरे कुछ तो कहाँ �गरे? : चेतना म�। : था कुछ तो कहाँ था? : चेतना म�। : नह� है कुछ तो कहाँ नह� है? : चेतना म�। : ठ�क है? आ�द शंकराचाय� कह रहे ह� आ�मा चेतना का आधार है, चेतना के अंदर का कोइ� �वषय नह�। सम�त �वषय कहाँ ��थत ह�?
: चेतना म�। : चेतना म�। आ�मा चेतना का �वषय नह�, आशय है �क आ�मा अ�च��य है �या��क चेतना म� जो कुछ भी है, उसका �च�तन �कया जा सकता है, चेतना म� जो कुछ भी है, उसे नाम �दया जा सकता है। �कसी क� चेतना म� एेसा कुछ है �जसका कोइ� नाम ना हो? चेतना म� जो कुछ भी है, उसका आकार भी होता है, है न? चेतना म� जो कुछ भी होता है, उसक� शु�आत भी होती है और अंत भी होता है। आ�मा अना�द, अनंत है; आ�मा �नराकार है; आ�मा अनुपा�ध है; आ�मा अनाम है। आ�मा के साथ ना कोइ� �वशेषण जोड़ सकते हो, ना बता सकते हो कहाँ शु� होती है, ना उसक� सीमाएँ बता सकते हो। चेतना म� जो कुछ है, उसक� सीमाएँ ह�, नाम है, आता है, जाता है, रंग है, �प है, आकार है; आ�मा अ�प है, �नराकार है। चेतना के होने से आ�मा नह� है, चेतना के भीतर आ�मा नह� है। आ�मा वो �ब�� है �जससे चेतना ��फु�टत होती है, या कह लो �क आ�मा वो महा आकाश है �जसम� चेतना के कइ� आकाश डोलते �फरते रहते ह�, आते-जाते रहते ह�। या तो कह सकते हो �क चेतना �ब�� मा� है, शू�यवत है और उस �ब�� भर से सम�त ��ांड आ�वभू�त होता है। एेसे भी कह सकते हो, 'कुछ नह�' है आ�मा; आ�मा वो 'कुछ नह�' है �जससे सब कुछ आता है। और कहने वाला� ने एेसा भी कहा है �क आ�मा वो सब कुछ है �जसम� ये तु�हारा छोटा-सा संसार समाया �आ है और तृण मा�, कण मा� है। सीख — कह मत देना कुछ आ�मा के बारे म�, �या��क जब वो चेतना का �वषय ही नह� है, तो तुम कह कैसे रहे हो कुछ? आ�मा के बारे म� कम बोलो, मन के बारे म� बोलो। मन और चेतना अगल-बगल क� बात ह�, मन और चेतना एक जैसी बात ह�। मन के बारे म� बोलो, �या��क जो कुछ बोला जा सकता है, मन के ही बारे म� बोला जा सकता है। अवलोकन करो तो �कसका? : मन का। : मन का। ये ना करने लग जाना �क "म� आ�मा का अवलोकन कर रहा था।" ब�त आते ह� एेसे भी आ�या��मक �ज�ासु, वो कहते ह� �क आ�मा के दश�न करने ह�। ज़�र! और ब�त गु� ह� जो बताते ह� �क आ�मा का दश�न कैसे �कया जाता है। आ�मा के आशीवा�द से दश�न करोगे तो �कसका करोगे? मन का, मन का कर लो। और मन के ही क�� को बोलते ह� अहम्। मन का दश�न करो, मन का दश�न करतेकरते अहम् तक प�ँचोगे। �जसने अहम् को देख �लया, उसने अहम् को �पघला �दया। ये सब कुछ होता �कसक� अनुकंपा से है? आ�मा क�। उसके बल से सब है, उसक� अनुकंपा से सब है, उसके होने से तुम हो। इतने अहंकारी मत हो जाना �क अपने न�हे हाथ बढ़ाकर कहो �क आ�मा को ही पकड़ लेना है। वो अनंत है, उसको कैसे पकड़ लोगे भाइ�? तु�हारे हाथा� से एक हाथी का ब�चा तो पकड़ा ना जाए, असीम आ�मा कैसे पकड़ लोगे? हाथी का ब�चा भी छोड़ दो, अरे, बड़ा खरबूजा ना पकड़ा जाए। और आ�मा को पकड़ने �नकलते ह� लोग, कहते ह� “आ�मा का अनुसंधान करना है।” अपनी औक़ात देखो! “आ�मा का अनुसंधान करना है”, �कसे? "हम�!" अरे बाप रे बाप! तुम आ�मा का अनुसंधान करने �नकले हो!
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अब तुम ये भी पूछ सकते हो �क “ठ�क, इतना तो समझ म� आ गया �क आ�मा चेतना का �वषय नह� हो
सकती, ले�कन आपने ये �या� कहा �क आ�मा क� अनुकंपा से चेतना के सारे �वषय अपना काम करते ह�?” शंकराचाय� कह रहे ह�, "आ�मचैत�य के आ�य म� शरीर, मन, बु��याँ अपनी-अपनी ��याएँ करते ह�, जैसे सूय� के �काश म� मनु�य ��या करते ह�।" ये तो ठ�क है �क आ�मा �वचार का, मनन का, चैत�य का �वषय नह� हो सकती, ले�कन ये �या� कह रहे ह� आप �क आ�मा वो �ब�� है �जससे चेतना ��फु�टत होती है? वजह है। चेतना म� जो भी कुछ हो रहा है, वो एक अपूण�ता के चलते हो रहा है। तुम कह� जाते हो, यूँ ही नह� चले जाते, तुम जाते हो �या��क तु�ह� कुछ चा�हए। यहाँ तक �क जड़ पदाथ� भी एक तरह से पूण�ता क� तलाश कर रहे ह�। ये (चाय का कप उठाते �ए) एेसे रखा है तो रखा रहेगा और एेसे खड़ा क�ँ या एेसे खड़ा क�ँ तो �गर जाएगा। जड़ पदाथ� भी ��या कर रहा है, �या��क उसको �टेबल इ��व�ल��यम (��थर संतुलन) चा�हए, ये (कप को सीधा रखते �ए) �टेबल-इ��व�ल��यम है। जड़ पदाथ� भी अन�टेबल (अ��थर) नह� रहना चाहता। तो चैत�य जीव तो ��थरता क� तलाश कर ही रहे ह�, जो जड़ है, वो भी ��थरता क� तलाश कर रहा है।
हाइ� एनज� मॉ�ल�यूल (उ�च ऊजा�यु�त अणु) चाहता है �क ए�सोथ�म�क �रए�शन (ऊ�मा�ेपी ��त��या) करे और लो एनज� मॉ�ल�यूल (�न�न ऊजा�यु�त अणु) बन जाए। ए�सोथ�म�क �रए�शन होता ही यही है �क उस अणु म� ऊजा� ब�त थी—और ऊजा� माने बेचैनी—उसने कुछ एेसा करा �क ऊजा� बाहर �नकल जाए, धमाका हो जाए, आग लग जाए, �व�फोट हो जाए, तापमान बढ़ जाए। इन सब म� �या होता है? ऊजा� �नकल जाती है और �फर वो एक लो एनज� मॉ�ल�यूल बन जाना चाहता है। रे�डयोए��ट�वटी (रे�डयोध�म�ता) म� भी यही होता है। रे�डयोए��टव मॉ�ल�यूल (रे�डयोधम� अणु) �या� बार-बार �वखं�डत होता रहता है? ता�क वो अंततः नॉन-रे�डयोए��टव हो जाए; टू ट-टू टकर, टू ट-टू टकर, टू ट-टू टकर वो एेसा हो जाए �क उसे और टू टने क� ज़�रत ना पड़े। अहंकार भी तो यही चाहता है �क “मुझे तोड़ो, मुझे तोड़ो, मुझे तोड़ो। अंततः म� एेसा हो जाऊँ �क मुझे टू टने क� ज़�रत ही ना पड़े।” ये चेन �रए�शन (�ृंखला अ�भ��या) है। हमारी �ज़�दगी भी तो चेन �रए�शन ही है न? हम चाहते ह� �क टू टते रह�, टू टते रह�, टू टते रह�। तो �जतने पदाथ� चेतना म� ग�त कर रहे ह�, चाहे वो मनु�य�पी पदाथ� हा� या जड़�पी पदाथ� हा�, वो सब कह�न-कह� प�ँचना चाहते ह�; सबको चैन चा�हए। चेतना के भीतर जो कुछ है, वो चैन क� तलाश कर रहा है, उसी चैन को आ�मा कहते ह�, उसी शां�त को आ�मा कहते ह�। इसी�लए आ�मा का �सरा नाम शां�त है। चेतना म� जो कुछ है, अशांत है; उसको जो चा�हए, उसका नाम शां�त है और अगर शां�त �मल गइ� तो चेतना का जो पूरा ��ांड है वो �सकुड़ करके पुनः �ब��वत हो जाता है। तो इस�लए कहा जा रहा है �क जब चेतना शांत हो करके वापस �ब�� म� समा जाती है, तो �न��त �प से वो उसी �ब�� से उ�त ू भी �इ� है। तुम �जतने अशांत हो, तुम उतनी ग�त कर रहे हो, और �जतने तुम शांत होते गए, उतनी तु�हारी ग�त �सकुड़ती गइ�, �सकुड़ती गइ�, अंततः तुम रह गए बस एक �ब��, उस �ब�� का नाम आ�मा है। जब तुम शांत हो करके �ब��वत हो जाते हो, तो �प� है �क अशां�त म� उसी �ब�� का �व�तार तु�हारी अशांत चेतना बन जाता है। (�� पढ़ते �ए) कह रहे ह�, “आचाय� जी, जब म� आ�मा के बारे म� सोचता �ँ…।” (�ोतागण हँसते ह�) अभी �या बात हो रही थी—�क आ�मा के बारे म�? : सोचना नह� है। : सोच मत देना, बात भी मत करना। और सवाल ही कहाँ से शु� हो रहा है? “आचाय� जी, जब म� आ�मा के बारे म� सोचता �ँ तो इस �न�कष� पर आता �ँ...।” सोचा ही भर नह� है, �न�कष� भी �नकाल �लया —“...�क आ�मा का नाम बस एक �व�ध मा� है हम� हमारे झूठ �दखाने के �लए। ले�कन जब म� आपको या अ�य संता� को सुनता �ँ या भजन सुनता �ँ तो मेरा ये भाव गहराता है �क स�य का अ��त�व सही म� है और बस स�य ही है।” दोना� ही बात� ह�, कोइ� �वरोधाभास नह� है। स�य है भी और स�य झूठ को काटने क� �व�ध भी है। ठ�क है, इसम� तुम �वरोध �या� देख रहे हो? कोइ� �वरोधाभास नह�। आगे तुमने �लखा ही यही है, “मन को इन दोना� बाता� म�
�वरोधाभास लगता है। कृपया माग�दश�न कर�।” जो है ही, वही तो काटेगा उसको जो नह� है। जो असली है, उसी के संपक� म� आ करके तो तुम नकली को नकली कह पाओगे। असली से तु�हारा कोइ� संबंध, कोइ� संपक� ही ना हो, तो नकली भी दावा करता रहेगा असली होने का। उसक� पोल थोड़े ही खुलेगी, या खुलेगी? नकली क� पोल खुलती ही तब है जब असली क� झलक �मल जाती है, और एक झलक �मली नह� असली क� �क नकली धराशायी। इसी�लए नकली असली से ब�त घबराता है। सौ साल तुम नकली के साथ रह लो, और असली क� एक झलक �मल जाए पाँच सेकंड के �लए, वो सौ साल ह�के पड़ जाएँ गे। झूठ के साथ तु�हारा सौ साल का नाता हो, झूठ के साथ तु�हारा सौ साल का संबंध हो, कसम� हा�, वादे हा�, वो सब ख़�म हो जाता है सच के साथ एक �मनट के सा���य से। वो एक �मनट सौ साल पर भारी पड़ जाता है। झूठ इसी�लए थरथराता रहता है �क कह� सच आस-पास ना हो। “हमारा खेल है तो ब�त पुराना, ले�कन भ�म �ण भर म� हो जाता है।” कोइ� �वरोधाभास नह� है।
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(2019)
Acharya Prashant 4 min 818 reads
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: आचाय� जी, �ोक म� सुषु��त का उ�लेख आया है। मुझे रात म� भूता� से डर लगता है। �या भूत होते ह� या नह� होते ह�? म� गाँव से �ँ और मेरे गाँव म� भूता� के ब�त सारे �क़�से और कहा�नयाँ ह�। डर इतना गहरा बैठ गया है �क रात म� अकेले म� कुछ �दख जाता है तो जान ही �नकल जाती है। कृपया �काश डाल�। : सुषु��त माने चेतना क� गहरी न�द क� अव�था। जब तुम ब�त गहरी न�द म� होते हो, इतनी गहरी न�द �क चेतना क� सामा�य चंचलता एकदम ही थम जाए, उसको कहते ह� सुषु��त। जब जगे �ए हो तो देखा है मन म� �कतनी हलचल रहती है? सो जाओ तो हलचल कम हो जाती है ले�कन थोड़ी-ब�त तो रहती ही है। सोने पर भी कुछ-कुछ चल रहा होता है, सपने आ रहे होते ह�। �फर न�द जब और गहरा जाती है तो मन क� हलचल और थम जाती है। उस अव�था को कहते ह� सुषु��त। आगे पूछा है, "�या भूत होते ह�?" जो पढ़ रहे हो उसी से पूछो न! पढ़ तो �लया तुमने �क चेतना क� �कतनी अव�थाएँ होती ह�, चेतना म� जो होता है वो �या होता है। अरे जब आ�द शंकराचाय� तुमसे कह रहे ह� �क सम�त जगत ही �म�या है तो जगत के भूत भी तो �म�या हो गए न। या एेसा होगा �क जगत �म�या है पर जगत म� �जतने भूत-�ेत, डायन-चुड़ैल ह� वो सब स�य ह�? आ�मबोध, त�वबोध पढ़ रहे हो, वो भी शंकराचाय� के साथ, वो तो ने�त-ने�त के स�ाट थे; �जतनी चीज़� थ� सब उ�हा�ने काट द�, ने�त-ने�त �वशारद उनका नाम था। सब नकली है, वो बस चुड़ैल असली है? एेसा तो नह� हो सकता, �क हो सकता है? जब वो चीज़� भी �म मा� ह� जो आमतौर पर �दखाइ� देती ह�, सव�मा�य ह�, साव�ज�नक ह�—सब मानते ह� �क दीवार है, शंकराचाय� तु�ह� बता गए, तुम पढ़ भी रहे हो, सीख भी रहे हो �क दीवार भी �म�या है। �� स�य है, जगत पूरा �म�या है। तो अब भूत, चुड़ैल क� �या है�सयत? और तुमने देखो जो �ोक भी भेजा है उसम� सुषु��त क� बात है। �जस भूत क� इतनी भी है�सयत नह� �क वो सुषु��त म� �वेश कर सके, उसको तुम अपने �दय म� �या� �वेश करने दे रहे हो? सुषु��त म� जब चेतना का कोइ� �वषय नह� बचता, तो बताना चेतना म� भूत बचता है �या? तुम ये तो कह सकते हो �क सपना� म� भूत आए, पर ये थोड़े ही कहोगे �क �बना सपने के ही भूत आ गए? 'सो रहा था, सपना नह� था पर भूत थे।' सोते म� अगर भूत आए तो यही तो कहोगे सपना आया, या ये कहोगे 'सो रहा था, �बना सपने के भूत आया?' भूत तो चेतना क� हलचल है, तु�हारी मा�यता है। जैसे तु�हारे पास सौ कहा�नयाँ ह� वैसे ही एक कहानी है भूत। कोइ� भी कहानी बना लो। एक ही दो �कार के भूत थोड़े ही होते ह�, पचास तरह के होते ह�। �जस भी चीज़ से तुम डरो वो भूत। अतीत क� जो भी घटना अभी भी तुम पर हावी हो, वो भूत है। आगे क� जो तम�ा तु�ह� चैन ना लेने देती हो वो �ेत है। जो वासना तुमको पकड़े �ए हो वो चुड़ैल है। �जस इ�ा, �जस वासना के कारण तुमने ब�त �पटाइ� खायी हो, वो डायन है। यही ह� भूत-�ेत, डायन-चुड़ैल, और �या होते ह�? ब�त उ�मीद हो �क एेसा कुछ कर�गे तो कुछ �मल जाएगा, उसका नाम �ज� है, या �ज�ात है। �ज� यही कहता है न '�या ��म मेरे आक़ा, बताइए? सारी इ�ाएँ पूरी करता �ँ', तो तु�हारी अपूण� इ�ाआ� का ही नाम �ज�
है। �जस बोतल म� �ज� बंद रहते ह� वो खोपड़ा है; यह� सारी इ�ाएँ बैठ� ह�। सब चेतना के अंदर क� ही चीज़� ह�, बाहर कुछ नह�! जो तु�ह� ब�त डराता हो �क मार-पीट कर अभी कचु�बर कर देगा, वो दै�य-दानव है।
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(2019)
Acharya Prashant 6 min 48 reads
: आचाय� जी, नमन। मेरा मन अभी भी उलझाव महसूस करता है। हालाँ�क म� हर रोज़ �यान करता �ँ, पर सुधार नह� �दख रहा है। कृपया बताएँ �क म� अपनी �न�य ��याआ� म� एेसा �या बदलाव लाऊँ �जससे ये उलझाव कम होने लगे। कृपया माग�दश�न कर�। : ये ग़ौर करना �क �यान से तुमको उठा �या देता है। �यान, तुम कह रहे हो, करते हो; कोइ� ��या होगी �जसे तुम करते होगे। �कसी ग�त�व�ध को �यान कह रहे हो, तभी तो उसको 'करते हो' न। कोइ� कम� होगा तभी कह रहे हो उसको 'करता �ँ'। तो वो जो भी कम� है �यान का, वो कम� �क �या� जाता है, इस पर �यान देना। �नरी�ण करके मुझको बताना। सुबह सात से आठ, उदाहरण के �लए, तुम बैठते हो �यान करने। मुझे बताना �क आठ बजे उठ �या� जाते हो। कौन-सी चीज़ है जो तु�हारा �यान खं�डत कर देती है? और मुझे बताना �क सात से आठ के म�य भी कौन-सी चीज़� ह� जो तु�हारे �यान को �वच�लत कर देती ह�। समझ ही गए होगे, म� जानना चाहता �ँ �क �या है जो तु�हारे �यान पर भारी पड़ता है। कोइ� तो वजह होगी न �क तुम कहते हो �क आठ बजे �यान भंग कर ही देना है। �यान अगर वा�तव म� तु�ह� ब�त �यारा होता तो तुम आठ बजे उठ �या� जाते? ज़�र कोइ� एेसी चीज़ �मल जाती होगी जो �यान से भी �यादा क�मती होगी, तो तुम कहते हो, "चलो उठना ही पड़ेगा आठ बजे।" उस पर ग़ौर करो। तुमने पूछा है न �क "आचाय� जी, म� अपनी �न�य ��याआ� म� �या बदलाव लाऊँ �क उलझन कम होने लगे?" तु�हारी �न�य ��याआ� म� ही कुछ इतना आकष�क है जो तु�हारे �यान को भंग कर देता है। तु�हारी �न�य ��याआ� म� ही कुछ इतना रसीला है �क तु�हारे �यान म� �व�ेप बन जाता है। वो �या है? और बात ब�त साधारण-सी है। गहरे जा करके �ह मत टटोलने लगना। आठ बजे तुम इस�लए उठ जाते हो �या��क नौ बजे �कान प�ँचना है। बस यही है जो तु�हारे �यान को खं�डत कर रहा है। �कान इतनी ज़�री है �क उसके �लए �यान तोड़ना ज़�री है। हर ���त जो कहता है �क इतने से इतने बजे तक ही �यान क�ँगा, वो इस बात का जवाब दे �क वो एक �ब�� पर आकर अपना �यान �या� तोड़ देता है, उठ �या� जाता है। �यान से उठने का मतलब ही है �क तु�ह� �यान से �यादा आव�यक कुछ �मल गया न। बताओ, �या है जो तुमने �यान से �यादा आव�यक मान रखा है? वही बोझ है तु�हारे जीवन का। �जसक� ख़ा�तर तुम �यान तोड़ देते हो, वही तु�हारे जीवन का नक� है। कोइ� कहेगा, "आठ बजे इस�लए उठ जाते ह� �या��क ब�चे को �कूल (�व�ालय) छोड़कर आना है"; समझ लो �क कहाँ फँसे �ए हो। कोइ� बोलेगा, "आठ बजे उठ जाते ह� �या��क द�तर भी तो जाना है।" “नह�, म� तो छः से सात �यान करती �ँ, सात बजे प�त के �लए ना�ता बनाना है”, तो देख लो न �क तुमने �यान अथा�त् स�य से �यादा ज़�री प�तदेव का ना�ता रख �दया। “तो �या कर�, ना�ता नह� बनाएँ ? ब�चे को �कूल नह� छोड़कर आएँ ? �कान-द�तर नह� जाएँ ?” जाओ ज़�री है तो, �यान नह� टू टना चा�हए! और अगर �यान ना�ता बनाते �ए, द�तर जाते �ए, कार चलाते �ए, नहाते �ए भी रख सकते हो, तो आसन म� बैठने क� ज़�रत �या है भाइ�? �यान अगर क�मती है, तो ना�ता बनाने क� ख़ा�तर �यान तोड़ना नह� है न। तो ना�ता बनाते-बनाते भी �यान क़ायम रहना चा�हए। और अगर ना�ता बनाते-बनाते भी �यान क़ायम रह सकता है, तो ये चटाइ� लगाकर �या� बैठते हो घ�टे भर?
ना�ता बनाते �ए �यान�थ रहो, �फर �जसका �यान कर रहे हो, वो ही तु�ह� बता देगा �क ना�ता बनाना चा�हए, �क नह� बनाना चा�हए। तु�हारी �न�य ��याआ� म� �या बदलाव आना चा�हए, वो ही बता देगा �जसका �यान कर रहे हो। �कसका �यान कर रहे हो? उसका, �जसे ‘स�य’ बोलते हो। तो तु�ह� �या करना है, �या नह� करना है, मा�लक बताएगा न। उसी मा�लक का तो �यान कर रहे हो। �न�य ��याएँ कैसी होनी चा�हए, इसका फैसला तुम करोगे या मा�लक को करने दोगे? तुम कहते हो, “नह�, फैसला तो हम ही कर�गे”, तो �फर झूठमूठ ही तुम �यानी बने घूम रहे हो। हर चीज़ म� मा�लक तुम ख़ुद बने �ए हो, तो �फर �यान क� बात �या� कर रहे हो? सीधे कहो, “अहंकार पर चलना है �या��क अहंकार को ही माल�कयत चा�हए।” वा�तव म� �यानी हो, वा�तव म� तु�हारा �येय य�द स�य ही है, तो स�य को बताने दो न �क ना�ता बनाना चा�हए या नह�, और अगर ना�ता बनाना ही चा�हए तो आज ना�ते म� �या बनेगा, ये सब वो बताएगा। इसको कहते ह� �यान—�क जीवन म� ��तपल �या कर रहे हो, उसका �नधा�ता रहे मा�लक। मा�लक बताएगा, हम नह� बताएँ गे। हम नह� तय कर�गे �क चटाइ� कब �बछानी है, कब उठानी है; चटाइ� का सवाल ही नह� है। मा�लक के ब�दे हम आठा� पहर ह�, तो चटाइ� एक घ�टे �बछाना तो बड़ी नौटंक� �इ�। या एेसा है �क बंदगी घ�टे भर क� ही होती है? बताना। घ�टे भर का �यान छल मा� है। �वशेष प�र��थ�तया� म� �कया गया �यान ब�त ह�क� चीज़ है। जो लोग शु�आत कर रहे हा�, उनके �लए ठ�क है, �क उससे उनको कुछ झलक �मल जाएगी; पर बस शु�आत के �लए ठ�क है, उसके बाद �यान को तु�हारे जीवन पर छा जाना चा�हए। उठते-बैठते �यान होना चा�हए, चलते-�फरते �यान होना चा�हए। और �फर जीवन बदलता है, �या��क अब जीवन क� ��येक ग�त�व�ध �यान के दायरे म� आ गइ�, �यान के �नरी�ण म� आ गइ�, �यान के �नधा�रण म� आ गइ�। अब �यान मा�लक �आ। जहाँ हो, जब हो, �यान म� हो। मतलब �या है इस बात का? ना�ता बनाते �ए �यान म� होने का �या मतलब है? �क ना�ता भी बना रहे ह� तो भी �कसी ब�त ऊँची चीज़ का �मरण बना �आ है। अब ओछ� हरकत नह� कर सकते। अब ना�ता भी �कसी ओछे उ�े�य के �लए नह� बना पाएँ गे। काम ऊँचा होगा तो कर�गे, और काम म� अगर �वाथ� क� �ग��ध होगी तो नह� कर�गे। हर काम उसी (मा�लक) के �लए होगा, उसी जैसा होगा, उसी को सम�प�त होगा। छोटे-छोटे से काम म� इस बात का �याल रख�गे �क �कसके �लए �कया जा रहा है — छोटा है �क बड़ा है? कह� उसम� अहंकार क� �ु�ता तो नह�? कह� बस �वाथ� ही तो नह� है ना�ता बनाने म�? �यानी आदमी �वाथ�वश ना�ता नह� बना पाएगा।
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(2019)
Acharya Prashant 4 min 223 reads
: आचाय� जी, �णाम। कभी-कभी ब�त गहरा भाव उठता है �क सब छोड़-छाड़कर खड़ी हो जाऊँ और चीख-चीखकर क�ँ, "अब और नह�!" कभी-कभी अनजाने म� खड़ी भी हो जाती �ँ, �फर �ठठक जाती �ँ �क “ये �या �आ?” आचाय� जी, ये �ान-�व�ान, कम� मुझे कुछ समझ नह� आता, और समझना भी नह� चाहती शायद। बस यही गहरा भाव है �क आचाय� जी, आपके चरणा� म� �गर पड��ँ और �बलख-�बलखकर रो लूँ और बस रोती ही र�ँ। इसम� �ाण �नकल जाएँ तो और ही अ�ा। ये रोज़-रोज़ थोड़ा-थोड़ा रोना, इतनी पीड़ा! अभी भी �� �लखते �ए आँसू बह ही रहे ह�। वेदना ब�त है, आचाय� जी। कृपया माग�दश�न कर�। : काश! मु��त रो-रोकर, तड़पकर �ाण �यागने से �मल सकती—नह� �मलती है। ब�त महँगी है। अगर इतने म� भी �मल जाती �क कोइ� वेदना म� छटपटाकर, रोकर �ाण �याग दे, तो भी मु��त स�ती थी। एेसे भी नह� �मलती, तो एेसे पाओगी नह�।
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रोने-तड़पने भर से कुछ हो नह� पाएगा। म� तु�हारी वेदना समझता �ँ; सबक� वेदना समझता �ँ, ये तक कह सकते हो �क अनुभव करता �ँ, ले�कन ये भी जानता �ँ �क ये वेदना अ�धकांशतः �थ� ही जाती है।
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तो सहानुभू�त पूरी रखता �ँ, एक तल पर तु�हारे दद� से एक �ँ, ले�कन �फर भी यही क�ँगा �क जो कर रहे हो, वो �थ� जाएगा। इसी�लए �ान आव�यक है। भावनाआ� का आवेग य�द बल है, तो �ान उस बल को सही �दशा देता है। इसी�लए शा��ा� का अ�ययन ज़�री है, ता�क तु�हारे भीतर क� इस ऊजा� को सही �दशा दी जा सके। सही �दशा नह� दोगे तो भीतर क� बेचैनी तु�ह� ही खा जाएगी। जैसा तुमने �लखा है, कुछ-कुछ वैसा ही हो भी जाएगा। आज नह� तो कल यूँ ही �ःख म�, म�लनता म�, अवसाद म� जान दे ही दोगे, या जान नह� भी दोगे, �जये जाओगे तो वो जीना भी मृत�ाय ही रहेगा। ये बात सबके �लए है, सब पर लागू होती है।
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हमेशा कहा है म�ने �क मु��त का सव��े� साधन �ःख ही है। अब या तो �ःख को अभाग समझ कलप लो, या �ःख को लपक लो। बताओ कलपना है, �क लपकना है? म� कह रहा �ँ, लपक लो। �ःख बा�द है, उसका इ�तेमाल करो। सब जो कुछ जीवन�ीण, फटा-पुराना, अनाव�यक है, ढहा दो उसको। करो �व�फोट! ये बेचैनी, ये बेक़रारी बेसबब नह� होती। कभी ब�त पहले म�ने कहा था �क पीड़ा परम का पैग़ाम होती है। पैग़ाम आया है, उसको पढ़ो। रोना-पीटना ब�त �आ। आँसू पा�छो, साफ़-साफ़ पढ़ो �क �या कहा जा रहा है। इसी�लए ये ��थ ह�, इसी�लए आ�द शंकराचाय� के साथ हो। मनु�या� म�, ख़ासतौर पर ���या� म� भावुकता तो होती ही है, और भावुकता माने भाव क� ऊजा�। उसी भावुकता को अगर �ान क� �दशा �मल जाए तो �फर कुछ साथ�क होता है, अ�यथा वो भावुकता भावुक ���त को ही भारी पड़ती है।
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(2019)
Acharya Prashant 5 min 302 reads
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: आचाय� जी, �णाम। होली के �दन पड़ोस म� एक अं�तम या�ा म� शा�मल �आ। त�वबोध का पाठ करने के कारण डर नह� था। वहाँ यही दोहराया जा रहा था �क, "राम नाम स�य है, स�य बोलो मु��त है।" पहले भी कइ� बार शा�मल �आ �ँ और अ�ानवश इसका अथ� कुछ भयानक ही �नकालता था। जैसा �क आपने बताया था �क हम सब मु��त के �वषय म� भयानक छ�वयाँ बना रहे ह�, यह उस अं�तम शवया�ा म� समझ आया। वहाँ उप��थत सभी लोग मु��त के नाम पर भयभीत ही थे। कृपया शरीर से मु��त का सही अथ� �प� कर�, माग�दश�न कर�। : शरीर से मु��त �कसक�? जब सो रहे होते हो तो �या शरीर से मु��त का �� उठता है? वा�तव म� न�द तुमको इतनी �यारी लगती ही इसी�लए है �या��क उस समय तुम शरीर से भी मु�त हो जाते हो, शरीरभाव बचता ही नह�। तो शरीर से मु��त उसे ही चा�हए न �जसम� सव��थम शरीरभाव हो। तो शरीर से मु��त का यही अथ� है – शरीरभाव से मु��त। बार-बार देह का �याल चल रहा है मन म�, इस �याल से मु��त पानी है, यही है देह से मु��त। अब शरीर का �याल मन म� चल रहा है, इससे �या अथ� है? शरीर का �याल माने यही नह� होता �क अपनी नाक के बारे म� सोच रहे ह� या अपनी उँ गली के बारे म� सोच रहे ह�। वो सब कुछ �जसका संबंध तु�हारी देह से ही है, अगर उसका �वचार तु�हारे मन म� चल रहा है, तो ये देहभाव है। कोइ� ज़�री नह� �क तुम अपने हाथ का ही �याल कर रहे हो तो ये देहभाव �आ; हाथ पर पहने जाने वाली शट� (क़मीज़) का भी अगर �याल लगातार मन म� चल रहा है तो ये देहभाव ही है। तुम अपने ही शरीर का �याल कर रहे हो, ये देहभाव नह� है; तुम �कसी और के �ज�म का �याल करे जा रहे हो, ये भी देहभाव ही है। देह से संबं�धत �या-�या है? अब ये (चाय का कप उठाते �ए) देह से ही संबं�धत है न? तो इसका भी अगर �याल मन म� चल रहा है, तो ये �या �आ? : देहभाव। : देहभाव। अरे! अब एेसे देख�गे तो पता चलेगा �क पूरा संसार ही इस शरीर से संबं�धत है। तो मतलब वो सम�त पदाथ� जो शरीर से संबं�धत ह� अथा�त् सम�त संसार ही अगर तु�हारे मन म� घूम रहे ह�, तो इसका नाम है देहभाव अथा�त्
मन का �कसी भी �वषय से आ�ा�दत होना देहभाव कहलाता है। मन म� कुछ भी चल रहा है, तो इसको देहभाव ही मानना। तो �फर शरीर से मु��त का �या अथ� �आ? शांत मन। मन �कसी भी �वषय से आस�त नह� है, मन �कसी भी बात को इतनी गंभीरता से नह� ले रहा �क उससे �ल�त ही हो जाए —ये �इ� देह से मु��त। : शंकराचाय� जी �ोक सं�या ३१ म� कहते ह� �क “सभी शरीर ��य ह� और नाशवान ह�, इस�लए एेसा अनुभव करो �क म� इनसे पूरी तरह से अलग �नम�ल �� �ँ। म� शरीर से �वल�ण �ँ, अतएव ज�म, बुढ़ापा, �य और मृ�यु इ�या�द प�रवत�न मेरे नह� ह�। म� �बना इं��या� के �ँ, अतः मेरा श�द आ�द �वषया� से भी संबंध नह� है।" आचाय� जी, यहाँ पर अनुभव करने से �या ता�पय� है? �या इसका अथ� क�पना करने जैसा नह� है? : �ोक म� ‘अनुभव’ �लखा ही नह� है, �ोक म� �लखा है, ‘�व�ात्’ – एेसा जानो। अब अनुवादक ने �लख �दया ‘अनुभव’, और तुमने उसी को आधार बनाकर मुझसे �� भी पूछ �दया। �फर आगे तुमने ख़ूब �लखा है �क “अनुभव करना क�पना क� ही बात है, मेरा क�पनाआ� से गहरा संबंध रहा है, क�पनाआ� पर कोइ� वश नह� है।” इतनी बड़ी सम�या खड़ी कर दी, जब�क मूल बात ये है �क जो तु�हारी सम�या है, �जस श�द से तुमको आप�� है, शंकराचाय� ने उस श�द का �योग ही नह� करा है। उस श�द का �योग अनुवादकार ने अपना चाट-मसाला �मलाकर �कया है।
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(2019)
Acharya Prashant 4 min 448 reads
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: �णाम, आचाय� जी। मेरा नमन �वीकार कर�। आ�मबोध के �ोक सं�या २४ म� �लखा है �क आ�मा का �वभाव ही स��चदानंद, �न�यता और �नम�लता है और मु��त उसका �वभाव है। तो �फर आ�मा �या� शरीर म� आती है और ज�म लेती है, अगर उसका �वभाव मु��त ही है? कृपया माग�दश�न कर�। : आधी बात तो तुमने ले ली शंकराचाय� से, बाक� आधी तुमने ख़ुद पूरी कर दी। इतना तो �ोक कह रहा है �क आ�मा स��चदानंद, �न�य और �नम�ल है, ये तो शंकराचाय� ने कहा। ये तु�ह� �कसने बताया �क आ�मा शरीर म� आती है और आ�मा ज�म लेती है? एेसा आ�मबोध म� तो कह� नह� �लखा। अब ये अ�या�म क� पुरानी �ा�ध है— कुछ बात लेना गु�आ� से और उसम� जोड़ देना अपनी ही पुरानी धारणा को। कुछ बात तो ले ली गु� से और आधी बात, बाक� बात उसम� जोड़ दी अपनी। हम एेसे ह� �क हम� अगर अमृत-फल भी �मल जाए �वग� से उतरा �आ, तो हम उसम� अपनी रसोइ� का चंक�चाट मसाला ज़�र �मलाएँ गे। (�ोतागण हँसते ह�) अमृत-फल काफ़� नह� है, उसम� चंक�-चाट मसाला डलना चा�हए! शंकराचाय� ने अमृत-फल �दया, चाटमसाला तुमने अपना �मला �दया। �या� �मलाया? मज़ाक क� बात तो है ही; कहाँ से ये �ान लाए हो �क आ�मा ज�म लेती है? सम�त ज�मने वाली इकाइयाँ एक ही होती ह�, सब एक तल क�, तो �फर तो आ�मा और बंदर के ब�चे म� कोइ� अंतर ही नह� �आ, दोना� ज�म लेते ह�, �फर तो आ�मा और सागर क� लहर म� कोइ� फ़क़� ही नह� �आ। �फर तो आ�मा भी न�र ही है, �या��क जो ज�मेगा वो…? : मरेगा भी। : मरेगा भी। ये पॉप अ�या�म है। ये वो अ�या�म है जो सबको पता है, ये गली के नु�कड़ पर �बकता है। सबको पता है �क आ�मा एक शरीर से �सरे शरीर म� जाती है, आ�मा ज�म लेती है, ये होता है, वो होता है। तुम कभी �वचार ही नह� करते �क �या ये बात शा��स�मत भी है। उप�नषदा� ने कहा �या एेसा? सौ-बार उ�हा�ने समझाया �क स�य अज�मा है, तभी स�य अमर है। पर �जसको देखो वही ये धारणा लेकर घूम रहा है �क आ�मा एक शरीर से �सरे शरीर म� जाती है, और इस तरह से चलता रहता है। कह�-कह� तो पूरा �च� बनाकर समझाते ह�, *‘ट� ांस माइ�ेशन ऑफ़ सोल’*—ब�ढ़या �बलकुल, एेसे जा रही है, �फर आ�मा यहाँ घुसी, �फर वहाँ…। कह दो, “हाँ, ब�ढ़या है।" लोग �योग कर रहे ह� �क कोइ� मरने वाला है, उसको डाल देते ह� तराज़ू पर और तोलते ह� �क अभी आ�मा �नकलेगी इसक� तो �कतने �ाम वज़न कम होगा। इस तरह क� अफ़वाह� उड़ा रखी ह� �क एक आदमी मर रहा
था, उसको काँच के ब�से म� डाल �दया, और जैसे ही वो मरा, काँच के ब�से म� दरार पड़ गइ�; आ�मा �नकल भागी। (�ोतागण हँसते ह�) अब हँस काहे को रहे हो? तुम सब यही मानते हो �क आ�मा कोइ� चीज़ है जो शरीर से �नकल भागती है। ये तु�ह� �कस उप�नषद् ने बताया? आ�मबोध तो नह� बता रहा, शंकराचाय� तो नह� बता रहे, ��सू� तो नह� बता रहे। तुम कहोगे �क ये �ीकृ�ण ने �ीम�गव�ीता म� कहा है। उ�हा�ने भी नह� कहा है, तुमसे पढ़ने म� भूल �इ� है। और �जन लोगा� ने ग़लत �ा�या क� है, उ�हा�ने ब�त बड़ी भूल क� है, और वो ग़लत �ा�याकार आज भी ग़लत �ा�या �कए ही जा रहे ह�। तु�ह� �याल भी नह� आता �क जो अनंत है, वो देह म� कैसे घुस जाएगा। नह� सोचते न? जो अचल है, वो �नकल कैसे भागेगा? आ�मा को एक ओर तो कहते हो, “अचल है आ�मा”, �फर कहते हो, “�नकल भागी, कह� और घुस गइ�।” एक ओर तो कहते हो �क “सव��ापक है”, और �सरी ओर कहते हो, “यहाँ थी, यहाँ नह� थी।” आ�मा है, �क कुछ हवा वग़ैरह है?
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(2019)
Acharya Prashant 10 min 86 reads
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: आचाय� जी, �णाम। ये अ��न कैसे जले �जसम� सारा अहंकार ख़ाक हो जाए जो �सर चढ़ कर नाच रहा है? कृपया माग�दश�न कर�। : �ोक �वयं बता रहा है �क वो आग कैसे जलती है। "जब आ�मा के �न�न और उ�च पहलुआ� का मंथन �कया जाता है तो उससे �ाना��न उ�प� होती है।" �न�न पहलू �या है और उ�च पहलू �या है आ�मा का? आ�मा का उ�च पहलू है �वशु� आ�म ही। और आ�मा का �न�न पहलू �या है? अहंकार। आ�मा �ब�� मा� रहे, तो इसम� उसक� �वशु�ता है, ये उसका उ�च पहलू हो गया। और आ�मा अहंकार बनकर फैल जाए, म�लन हो जाए, दोषपूण� हो जाए, तो ये अहंकार है। �ोक कह रहा है �क जीवन को साफ़-साफ़ देख करके जब तुम समझने लगते हो �क कौन-सा काम तु�हारी स�चाइ� से �नकल रहा है, और कौन-सा काम तु�हारी कमज़ोरी से या तु�हारे डर से या तु�हारे लालच से �नकल रहा है, तो उससे एक आग पैदा होती है जो जीवन क� सब अशु�ताआ� को जला देती है। बात ब�त सीधी है। जो जीवन म� हटने यो�य है, वो तभी तो हटेगा न जब पहले पता चले �क वो कोइ� नीची, �नकृ�, हेय चीज़ है। जो नीची चीज़ है, वो जीवन म� ये बोलकर थोड़े ही बनी रहती है �क वो नीची है। जीवन म� जो कुछ भी �न�न है, नीचा, वो भी यही कह करके तो बसा �आ है न �क, "मुझम� भी कुछ दम है, मेरी भी कोइ� बात है, कोइ� शान है, कोइ� मू�य है, कोइ� ऊँचाइ� है।" वो भी अपनी शेखी तो बघार ही रहा है, “म� भी कुछ �ँ!” आ�दशंकर कह रहे ह�, साफ़ देखो लो �क �या है जो वा�तव म� क�मती है, और �या है जो बस क�मती होने का ढा�ग कर रहा है। ये देख लोगे तो आग पैदा होगी जो जीवन के सब कचरे को जला देगी। इस पर कोइ� बात, कोइ� ��? : देखने क� श��त कैसे आएगी, उसको कैसे देख सक�? : अगर जीवन म� उलझन है, �ःख है, तो देखो �क �या कर रहे हो। श��त कहाँ से आएगी? तु�हारा �ःख ही तुमको श��त देगा। परेशान आदमी को दौड़-धूप करते देखा है न, �क नह�? ब��क जो परेशान होता है, वो और �यादा दौड़-धूप करता है, है न? उसे श��त कहाँ से �मलती है? परेशानी से। परेशान आदमी जो दौड़-धूप कर रहा है, उसको दौड़-धूप क� ताक़त भी कहाँ से �मल रही है? परेशानी से। तो जीवन म� अगर परेशा�नयाँ हा�, तो उन परेशा�नया� को ही ताक़त के �प इ�तेमाल करो। “परेशानी है तो मुझे साफ़-साफ़ देखना पड़ेगा �क बात �या है।” : आचाय� जी, जीवन क� जो भी परेशा�नयाँ ह�, �यादातर अटैचम�ट (आस��त) से ह�। अपने सांसा�रक जीवन म� रहते �ए �डटैच (अनास�त) कैसे हा�? : हम कभी अटैच (आस�त) होने भर के �लए थोड़े ही अटैचम�ट �वक�सत करते ह�। म� कह रहा �ँ �क अटैचम�ट का भी जो मकसद है, वो यही नह� है �क बस अटैच हो जाओ। अटैचम�ट माने �या? म�ने इसको
पकड़ा *(पानी का �गलास पकड़ते ह�)*। : से�फ़ से�टड�नेस (आ�मके���तता) ही है *अटैचम�ट*। : (पानी का �गलास उठाते �ए) ये अटैचम�ट ही है न? ग़ौर से देख�गे। अभी ये हाथ इस �लास से अटैच हो गया। पर �या ये हाथ इस �लास से इस�लए अटैच �आ है �क बस अटैच ही रह जाए? अटैच होने का भी कुछ मकसद है भाइ�। मकसद �या है? मकसद ये है �क इस हाथ को कह�-न-कह� ये आशा है �क अगर अटैच होगा तो �यास बुझेगी।
अटैचम�ट का भी मकसद अटैचम�ट मा� नह� है। अटैचम�ट का भी मकसद यही है �क तृ�णा �मटे, ठ�क? तो कोइ� बुराइ� नह� है। बुराइ� �कस�लए नह� है? �या��क ये अटैचम�ट �यास बुझाने के बाद (�लास नीचे रखते ह�) छू ट गया। अगर सही चीज़ से अटैच �ए हो, अगर सही चीज़ से तुमने नाता जोड़ा है, सही व�तु से तुमने स�ब�ध बनाया है, तो वो अटैचम�ट ल�बा नह� चलेगा। और अटैचम�ट तो अटैचम�ट है ही तभी जब पकड़ा तो पकड़ ही �लया �फर छोड़ ही नह� रहे। या�न �क अगर सही स�ब�ध है तो उसम� अटैचम�ट नह� होगा, उसम� तो *(�लास उठाकर पानी पीते ह� और �फर नीचे रख देते ह�)*। अटैचम�ट कब ल�बा �ख�च जाता है? अब मुझे लगी है �यास, और म�ने पकड़ �लया इसको (हाथ म� �माल ँ पा�छते ह�)*। �यास बुझ �दखाते �ए) , इसम� भी अटैचम�ट है न? और म� �या कर रहा �ँ बार-बार *(�माल से मुह रही है �या? ले�कन मुझे न जाने �या धारणा है, न जाने कैसा �म है �क इससे मेरी �यास बुझ जाएगी, ब��क इसी से मेरी �यास बुझेगी, एेसी मेरी धारणा। तो अब म� �या क�ँगा? मेरी प�क� धारणा है �क मेरी �यास इसी से बुझेगी और �यास तो मुझे हलक़ म� ती� लगी �इ� है। तो अब म� �या क�ँगा? म� इसे पकड़े र�ँगा (�माल से चेहरा पा�छते �ए) और बार-बार को�शश करता र�ँगा, और �जतनी बार को�शश कर रहा �ँ, उतनी बार मेरी �यास बढ़ती जा रही है। और �यास �जतनी बढ़ती जा रही है, उतना म� इसको (�माल हाथ म� �दखाते �ए) और पकड़े �ए �ँ, �या��क मुझे तो धारणा यही है �क मेरी �यास यही बुझाएगा। तो मेरा अटैचम�ट और मजबूत होता जा रहा है। म� और �यादा �गर�त म� लेता जा रहा �ँ, और �यादा �गर�त म� आता जा रहा �ँ। अब ये देख रहे हो �या हो रहा है? �जतना इसको �गर�त म� ले रहा �ँ, �यास उतनी और बढ़ रही है। �यास �जतनी बढ़ रही है, उतना म� इसको �गर�त म� ले रहा �ँ। ये �आ घातक अटैचम�ट , ये �इ� कुसंग�त, ये �आ मोह, इसी को शा�� कभी राग कहते ह�, कभी आस��त कहते ह�। पर बात अ�े से समझो। �जससे जुड़े हो, �जससे अटै�ड हो, उससे यूँ ही नह� अटै�ड हो, उससे उ�मीद है �क वो…(�गलास उठाकर पानी पीते ह�) * । तो यही सवाल पूछ लो �क �जससे * अटै�ड ह�, वो �यास बुझा भी रहा है �क नह�। इ�मानदार सवाल, �या? "�जससे इतना जुड़े �ए ह� �ज़�दगी म�, उसक� मौजूदगी मेरी �यास बुझाती भी है, या नह� बुझाती?" कह� एेसा तो नह� �क खाली जाम पकड़ रखा है, बार-बार होठा� से लगाते ह�, इतनी बार होठा� से लगाया है �क हा�ठ ही कटने लगे ह�। �याले म� पानी तो नह� है, अब हमारा ख़ून भरता जा रहा है। ये �आ अटैचम�ट , �क जुड़े भी हो और पा भी कुछ नह� रहे। हाँ, �कसी से जुड़ करके वा�तव म� अगर कुछ पा जाओ, तो जुड़ने म� �या बुराइ� है भाइ�? �कसी से जुड़ करके य�द �यास बुझ जाए तो म� कहता �ँ, एक नह�, हज़ार बार जुड़ो। , , — हार मो�तया� का हज़ार बार भी टू टेगा तो उसे तुम हज़ार बार जोड़ोगे; बार-बार जोड़ो। सुजन अगर �ठ जाएँ तो बार-बार मनाओ, �या��क उनसे �यास बुझती है। पर �जससे �यास बुझती ना हो, उससे बस आदतवश जुड़े हो, �मवश, धारणावश जुड़े हो, इस�लए जुड़े ह� �क बीस साल से जुड़े ह� तो जुड़े ही �ए ह�। "अब जब बीस साल से
जुड़े ह�, तो जुड़े ही रह�गे न!" ये कोइ� बात नह� �इ�, ये तो कोइ� बात नह� �इ�। बीस साल से ग़लत गोली खा रहे थे तो अब खाते ही रह�गे, �क बीस साल से ग़लत राह जा रहे थे तो जाते ही रह�गे। ये कोइ� बात नह� �इ�। : अटैचम�ट और पज़े�सवनेस (आ�धप�य क� भावना) एक ही ह�? : इसको (पानी का �गलास �दखाते ह�) छोड़ने म� मुझे कोइ� तकलीफ़ नह� होगी। �या�? (�गलास से पानी पीते ह�) �यास तो बुझ गइ�, अब पकड़े रहकर �या क�ँगा? तो छोड़ �दया। पज़ेस करने क� ज़�रत �या है? इसको (�सरे हाथ से �माल �दखाते ह�) पज़ेस करने क� बड़ी स�त ज़�रत है। �या�? �या��क �यास तो बुझी ही नह�। �जसके ��त तुम पज़े�सव हो रहे हो, समझ लो तु�हारे �कसी काम का नह� है। तु�हारे काम का होता तो तु�हारी �यास बुझा चुका होता, तु�ह� उसे पज़ेस करने क� ज़�रत ही नह� होती। पज़ेस करने क� भावना, अ�धकार कर लेने क� भावना, �कसी पर माल�कयत करने क� या क�ज़ा करने क� भावना ये बताती है �क उससे तु�ह� कुछ �मल रहा नह� है। �या करोगे? इसी तरीक़े से तु�हारे ��त अगर कोइ� पज़े�सव हो रहा है तो वहाँ भी समझ लो �क ये स�ब�ध यूँ ही है, दम नह� है इसम�। पज़े�सवनेस साफ़-साफ़ दशा�ती है �क �र�ते म� जान नह� है। �ेम होता तो पज़े�सवनेस नह� होती। : इं�डप�ड�स (�वतं�ता)? : इं�डप�ड�स तो फ़�ल�फ़लमे�ट के साथ आती है न, ओनली द फ़�ल�फ़�ड वन इज़ इं�डप�ड�ट (�सफ� एक पूण�ता म� �था�पत ���त ही �वाधीन हो सकता है)। नाता एेसा है �क इस नाते म� फ़�ल�फ़लमे�ट न इसको है, न इसको (दोना� हाथा� क� तज�नी उँ गली �दखाते �ए) * । ले�कन �म इसको ये है �क इससे * (दाइ�ं तज�नी को बाएँ से) �मल जाएगा और �म इसको ये है क� इससे (बाइ�ं तज�नी को दाएँ से) �मल जाएगा। तो दोना� ने (दोना� तज��नया� को एक �सरे म� कसकर फँसाते ह�) एक �सरे को कर रखा है पज़ेस , �या��क इसको इसका इ�तेमाल करना है, इसको इसका इ�तेमाल करना है, इ�तेमाल कोइ� �कसी का नह� कर पा रहा। या ये कह लो �क भरपूर इ�तेमाल कर रहे ह� दोना� एक �सरे का, ले�कन �फर भी �मल कुछ नह� रहा है, �यास बुझ नह� रही है। �यास बुझ रही होती तो पज़ेस �या� करना चाहते? ख़ुद भी ये देखो �क �जस तरीक़े से गाड़ी चल रही है, उसम� अपना कुछ भला नह� हो रहा। और �सरे से भी य�द �ेम है तो उसको यही बताओ �क 'जैसे हम गाड़ी चला रहे ह�, एेसे म� ना तु�हारा भला है, ना हमारा; कुछ �दशा बदलते ह�, कुछ अलग, कुछ नया करते ह�।' �ज़�दगी छोटी है, �थ� गँवाने के �लए नह� है, जैसे जा रही है अगर उसम� नह� कुछ पा रहे तो कुछ बदलना पड़ेगा न, भाइ�, सीधी-सी बात है! 'आओ कुछ बदल�, तुम भी बदलो, हम भी कुछ बदल�।' इसका मतलब ये नह� है �क लड़ �लए या स�ब�ध �व�े द कर �लया या �र हो गए, हम बस ये कह रहे ह� �क कुछ बदलना ज़�री है, हमारे स�ब�ध क� अभी जो दशा है, वो ना तु�हारे काम क� है, ना हमारे काम क� है। एेसे नह� चलेगा। आओ इसको बेहतर बनाते ह�।
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(2019)
Acharya Prashant 2 min 954 reads
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: आचाय� जी, �णाम। परमा�मा �या है और जीवा�मा �या है? म�ने �ीम�गव�ीता म� पढ़ा है �क परमा�मा और जीवा�मा दोना� होते ह�। �या ये जीवा�मा ही माया है? �या इसका कोइ� अ��त�व है जब तक हम शरीर�प म� ह�? कृपया माग�दश�न कर�। : हाँ, जीवा�मा माया ही है। जीव ही �म है, तो जीव क� आ�मा �या? तो �जसको जीवा�मा कहा जाता है, वो वा�तव म� मन मा� है। और आ�मा एक ही है, उसी को परमा�मा कहकर स�बो�धत �कया जाता है। दो �कार क� आ�माएँ नह� होत�, �क एक परमा�मा और एक जीवा�मा; आ�मा एक ही है, और वही उ�चतम है, वही परम है। �या��क आ�मा ही उ�चतम है और परम है, इसी�लए आ�मा को ही कहते ह� परमा�मा। �जसको आप जीवा�मा कहते ह�, इस �ोक से �प� ही होगा �क वो �म मा� है। शंकराचाय� कह रहे ह�, "अ�ान के कारण जैसे ख�बे म� भूत �दखने लगता है, वैसे ही �� जीव �तीत होने लगता है।" “�� जीव �तीत होने लगता है।” �कसके कारण? अ�ान के कारण। तो जीव का ज�म ही �कसके कारण है? अ�ान के कारण। अ�ान के कारण जीव �तीत होने लगता है, अ�ान ना हो तो जीव �तीत ही नह� होगा। जीव ही अ�ान क� उ�प�� है, पैदाइश है। तो जीवा�मा �या �इ�? वो आ�मा �जसे जीव अपनी मानता है। और जीव �कसको अपनी आ�मा मानता है? जीव �या कहता है, “म� कौन �ँ?” जीव जब आ�मा क� बात करे, तो उसने �कसक� बात करी? अहंकार क� बात करी। तो जीवा�मा माने कह लो मन और चाहे कह लो अहंकार।
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(2019)
Acharya Prashant 9 min 111 reads
: नमन, आचाय� जी। जीवन म� अजीब-सा अधूरापन रहता है, लगता है �क कुछ कमी है। ले�कन जीवन क� भागा-दौड़ी और प�रवार म� इतना उलझे �ए ह� �क समय ही नह� �मल पा रहा इ��र क� आराधना के �लए। इस तरह �नरंतर जीवन खच� होता जा रहा है। समाधान �या है? सब कुछ छोड़ भी नह� सकते और इसको �बना छोड़े कुछ और पकड़ भी नह� पाते। कृपया माग� �दखने क� कृपा कर�। : अपनी ताक़त म� इज़ाफ़ा करना पड़ेगा। अगर कह रहे हो �क अभी एेसी हालत नह� है �क जो पकड़ रखा है उसको छोड़ सको, और ये भी कह रहे हो �क कुछ और उठाना आव�यक है, तो तु�हारी ही दोना� बाता� को �मलाकर म� कहता �ँ �क तु�ह� दोना� को उठाना पड़ेगा। जो पकड़ रखा है, उसको उठाना पड़ेगा �या��क तुम बेबस हो, छोड़ तो पा नह� रहे। और ये उ�र मेरा उन सभी लोगा� के �लए है, यहाँ बैठे �ए भी और वो सब भी जो ऑनलाइन सुन रहे ह�, जो कहते ह� �क कहा भी ना जाए, रहा भी ना जाए, पकड़ा भी ना जाए, छोड़ा भी ना जाए और �नगला भी ना जाए, उगला भी ना जाए। मामला गले म� फँस गया है, पा�रवा�रक, सामा�जक, सांसा�रक बंधन ह�। “आचाय� जी, आप �कतना भी समझा लो �क आस��त मा� है ब�चा, मोह माया है; हमसे तो अब इस ज�म म� छू टने से रहा। और साथ-ही-साथ ये भी प�क� बात है �क �दय म� वेदना उठती है, मन म� बेचैनी है। इ��र भी चा�हए, स�य भी चा�हए। तो आप बताओ रा�ता �या है?” ये है न ख़ूब �च�लत सवाल? साझा है सब का, है न? सभी यही कहते ह� �क “अब �कतना भी साफ़-साफ़ �दख जाए �क बोझ ही उठा रखा है, पर अब इस बोझ से नेह लग गया, तो लग गया। अब �या बताएँ , हाड़-माँस का ही शरीर है, अब वृ��याँ ह�, तो ह�, अब �कसी से आस��त है, तो है, एेसे तो नह� छोड़ सकते।” भाइ�, आचाय� जी कह भी नह� रहे �क छोड़ दो, ये अनथ� कर भी मत देना। म�ने �कसी से नह� कहा �क घर छोड़छाड़ करके भाग �नकलो, ब��क जो भागे �ए ह�, उनको घर वापस लौटाया है ब�त बार। और तु�हारी �सरी माँग ये है �क ये सब जो हमारा गोरखधंधा चल रहा है, इसके साथ-साथ हम� वो (ऊपर वाला) भी चा�हए, वो भी चा�हए। तो म� ये भी कहा करता �ँ �क जब यही (सांसा�रक आस��त) चलाना है, तो उसी को छोड़ दो, तो तुम कहते हो, “नह�, वो भी चा�हए।” म� कहता �ँ �क ये नीचे वाला मामला कुछ कम हो सकता है? कहते हो, "नह�, ये तो अब �जतना फैला �दया तो फैला ही �दया; अब ये पसर गया, अब ये नह� कम होगा।" कहता �ँ, इसी म� जब तु�हारा इतना मन लगा है, तो उसको भूल �या� नह� जाते? वो कौन-सा बड़ा ज़�री है? करोड़ा�-अरबा� �ए �ज�हा�ने कभी उसका नाम भी नह� �लया, आराम से जी गए, मर गए। तु�ह� �या �फ़� पड़ी है �क तु�ह� ऊपर वाले का ही नाम लेना है? छोड़ दो ऊपर वाले को, रब अपनी ख़ुद देख लेगा, तु�हारी उसे थोड़े ही ज़�रत है। कहते हो, "नह�, आप ही के पाँच-सात वी�डयो देख �लए और आपने कहा है �क उसको नह� पाया तो गुज़ारा नह�।" म� कहता �ँ, म�ने झूठ बोला था, उसके �बना भी गुज़ारा चल जाएगा, �बलकुल भूल जाओ उसको। तो कहते हो, "नह�, बात हम� समझ म� आ गइ� है �क उसके �बना गुज़ारा नह� चलेगा; तो हम� दोना� चा�हए।" तो अब जब तु�हारी ही �ज़द है �क दोना� ही चा�हए तो दोना� को उठाने लायक कंधे भी बनाओ, और कोइ� तरीक़ा नह� है। पहले ये तो तु�हारी माँग ही अस�भव है, चलो मान ली तु�हारी माँग। तुम कह रहे हो, सब काम,
�ोध, तृ�णा, लोभ, मोह, मा�सय� ले करके चलना है और साथ-ही-साथ मु��त भी चा�हए। चलो ठ�क है, तुम इतनी �ज़द करते हो तो ठ�क है। ले�कन तुम ये भी कह रहे हो �क दोना� म� से एक ही उठा सकते ह�, देखो न �क "सब कुछ छोड़ भी नह� सकते और �बना छोड़े कुछ पकड़ नह� पाते।" नह�, तो �फर ये नह� चलेगा। कह� तो तुमको थोड़ी �रयायत करनी पड़ेगी न। अगर दोना� चा�हए तो दोना� को उठाने लायक ताक़त भी तु�ह� ही पैदा करनी होगी। अब उठाओ दोना� को। ये मत बोलो �क “हमारे बारह-चौदह घ�टे तो काम-धंधे और घर-प�रवार म� ही लग जाते ह�, तो कहाँ से कर� स�संग, कैसे पढ़� ��थ को, और कब भजन कर�, कब �यान कर�?” अब ये बात नह� कर सकते तुम, अब तु�ह� समय चुराना पड़ेगा। अब समय चुराओ, �नकालो। जब तुमने ये �ज़द पकड़ ही ली है �क दोना� को साथ लेकर चलना है, तो अब भुगतो, �नकालो समय, जीवन म� अनुशासन लाओ। भाइ�, फ�कड़ फ़क़�र को कोइ� अनुशासन नह� चा�हए, �या��क उसके पास �सफ़� रब है। उसको और कोइ� �ज़�मेदारी नह� पूरी करनी तो उसको �कसी अनुशासन क� भी ज़�रत नह� है। उसका अनुशासन परमा�मा ही होता है, उसे और कोइ� अनुशासन चा�हए ही नह�। पर गृह�थ अगर कहे �क उसे गृह�थी भी रखनी है और मो� भी चा�हए, तो उसको बड़े कड़े अनुशासन क� ज़�रत है, �या��क गृह�थी समय खूब ख�चेगी, �कान, घर, �ापार समय खूब ख�च�गे—इसके साथ-साथ अब तु�ह� साधना करनी है। तो साधना के �लए समय तु�ह� इ�ह� चीज़ा� से �नकालना पड़ेगा। साथ-ही-साथ तुम घर-गृह�थी और �ापार का नुकसान भी नह� कर सकते। तो काम तु�ह� उतना ही करना पड़ेगा ले�कन पहले जो काम तुम आठ घ�टे म� करते थे, अब तु�ह� पाँच घ�टे म� करना होगा। एक-एक �ण को तव�जो देनी होगी ता�क वो जो तीन घ�टे �नकले ह�, वो तुम उसको (ऊपर क� ओर इशारा करते �ए) अ�प�त कर सको। म� अभी भी कह रहा �ँ �क ये दोना� को साथ लेकर चलने क� को�शश बड़ी नासमझी क� को�शश है, पर चलो कोइ� बात नह�, ठ�क है। उसके दरबार म� सब कबूल हो जाता है, तु�हारी ये को�शश भी कबूल हो जाएगी। तुम दोना� को साथ ले कर चल लो। ले�कन �फर तु�ह� अनुशासन चा�हए, समय चा�हए। ये नह� कह सकते �क मु��त भी चा�हए और उसको हम पं�ह �मनट भी देने को तैयार नह� ह�, ये नह� चलेगा �फर। छु �ी �नकालना सीखो, और छु �ी माने ये नह� �क काम का घाटा कर �लया या �ज़�मेदा�रयाँ घर क� छोड़ द�। म� कह रहा �ँ उतना ही काम कम समय म� करो, �जसको कहते ह� ए�फ�शए� सी (द�ता)। बढ़ाओ न �फर, और वो एेसे ही बढ़े गी �क अगर समय �नकाला नह� तो साधना हो नह� पाएगी, �या��क साधना समय तो माँगती है। वो कालातीत होगा, वो अकाल मूरत होगा, ले�कन उस तक प�ँचने के �लए काल क� आव�यकता पड़ती है न, तो काल तो चा�हए, समय तो चा�हए, चा�हए न? तो �फर �नकालो, �फर �जतना तुम कटौती कर सकते हो, अपने �थ� के कामा� म� करो। तुम यही तो कहते हो �क घर को रोटी देनी है, तो रोटी देने के �लए अगर समय लगा रहे हो तो वा�जब है। पर तुम इधर-उधर �थ� घुम�कड़ी करने म�, आवारागद� करने म�, �थ� चचा� और गॉ�सप करने म� समय लगा रहे हो, वो समय तो काट सकते हो न? तो उस समय को काटो, उस समय का तो रोटी से कोइ� स�ब�ध नह�, बताओ, �क है? द�तर म� छह घ�टे करते हो काम और उसके बाद दो घ�टे बैठ करके यारा� से करते हो गपशप। काम के तु�ह� पैसे �मलते ह�, वो पैसे तु�ह� चा�हए। बात समझ म� आयी, �क वो पैसे तु�हारे �लए ब�त ज़�री ह�, उससे तु�हारा घर चलता है। ले�कन वो जो दो घ�टे बेकार क� गपशप करते हो, वो तो ज़�री नह� है न? उसको काटो, उसको काटो और वो समय अ�या�म म� लगाओ। अब यही तरीक़ा है। ये जो अनुशासन है, ये तु�हारी आ�या��मक मांसपे�शयाँ मजबूत कर देगा। ये एक तरह क� अंद�नी व�ज�श है, इससे तुम मजबूत बनकर खड़े होओगे। ये आ�मा का �ाक� है, �या��क बल सब आ�मा का ही होता है। : वो जब काम कर रहा है आदमी, वो काम भी तो सु�मरन, �यान बन सकता है। : हाँ, वो काम सु�मरन, �यान बन सकता है, पर बात ये है �क �यादातर जो ��नयावी काम ह�, वो बने ही राम �वपरीत आधार पर ह�। तो �फर वो काम करते �ए सु�मरन कर पाना बड़ी टेढ़ी खीर है। तुम कोइ� एेसा काम
कर रहे हो �जसम� बेचना ब�त ज़�री है और तु�हारे �सर पर तलवार लटक रही है �क इतना ज़�र बेचना है हर माह, और उतना नह� बेचोगे तो मार खाओगे, तन�वाह भी कटेगी। और तुमको पता है �क घर चलाने के �लए उतना बेचना ज़�री है, घर चलाने को तुमने बड़ी �ज़�मेदारी माना है। तो अब बेचना भी तु�हारे �लए ब�त आव�यक �आ न, तो अब तुम कुछ भी छल-वल करके बेचोगे ही। अब छल भी कर रहे हो �ाहक के साथ और कहो �क उसी व�त हम सु�मरन भी कर ल�गे, तो ये सु�मरन मेरी ��� म� तो बड़ा मु��कल है। कैसे तुम �कसी को ठगते �ए सु�मरन भी कर लोगे? और बड़े खेद क� बात है �क अ�सी, न�बे, पंचानवे ��तशत काम ��नया म� एेसे ही ह� �जसम� �कसी-न-�कसी को चूना तो लगाना ही पड़ता है। This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
(2019)
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Acharya Prashant 6 min 204 reads
: आचाय� जी, साधना का �या मतलब है? �या आँख बंद करके �यान लगाना साधना है? : जो आपक� ज़मीनी मुसीबत� ह�, जो आपक� वा�त�वक बे�ड़याँ ह�, उनको काटने का नाम साधना है। आपक� साधना यही थी �क आपने शराब से मु��त पायी, वो साधना �इ�। अब वो साधना कह� �कसी शा�� म� नह� �मलेगी, ले�कन वही साधना है। जो सधा �आ ना हो, जो �बगड़ैल हो, जो चंचल हो, जो ऊट-पटांग उलटी चाल चलता हो, उसी को साध लेने का नाम है साधना। साधना समझते हो न? �क �कसी ने कोइ� कला साध ली, �कसी ने कोइ� �व�ा साध ली। कभी-कभी कहते ह� �क ये जो जानवर है, ये सधा �आ नह� है, जैसे घोड़ा साध �लया। तो भीतर हमारे जो पशु बैठा है, जो हमारी सारी पाश�वक वृ��याँ ह�, वो कैसी ह�? वो सधी �इ� नह� ह�, वो �तरछ�-�तरछ�, ढु लक�-ढु लक� चलती ह�, एेसे, वैसे, कुछ भी, र�डम (अ�नय�मत) कह सकते हो, या ये भी कह सकते हो �क वो अधम� क� ही �दशा चलती ह�। साधने का मतलब है �क उन सबको संय�मत करके अब धम� क� �दशा मोड़ �दया। यही साधना है। : जैसे �नतनेम नह� करता पर म� वी�डयोस को सुनता �ँ �या��क उसम� �यादा �प�ता �मलती है। : वी�डयोस सब �नतनेम के ही �ताप से ह�, �नतनेम के ही आशीवा�द से ह�। तो साधना करते समय ये पूरा �याल रहे �क कह� एेसा तो नह� �क जो �बगड़ैल है, और चंचल है, वो तो वहाँ बैठा है और साध हम यहाँ रहे ह�। साध �कसको रहे हो �फर? भाइ� साधने का मतलब �फर समझ लो �क �आ कु�ती, �क जो अनुशासन म� आने को तैयार नह� है, जो असा�य हो रहा है, जो अनुशासन मानने को तैयार नह� है, जो �स�� म� आने को तैयार नह� है, उसके साथ तुमने लड़ी कु�ती और उसको साध �लया। “अब तू सही-सही चल, तू जैसा बहकाबहका चलता था, �दशाहीन, बु��हीन, धम�हीन, ये नह� चलेगा।” तो अपने दोषा� से लड़ना, ये साधना �इ�; अपने डर से लड़ना, ये साधना �इ�; अपनी वृ��या� से लड़ना, ये साधना �इ�। तो साधना करने के �लए सबसे पहले �या ज़�री है? ये पता तो हो �क मेरा दोष है �या। : आचाय� जी हम कोइ� भी ��थ पढ़ते ह�, जैसे �क �शव पुराण पढ़ा तो उसम� �लखा होता है �क �शव सबसे बड़े ह�। अगर हनुमान चालीसा पढ़ ल� तो उसम� �लखा होता है �क हनुमान सबसे ऊपर ह�। अगर हम माता का कुछ पढ़ ल� तो �लखा होता है माता ही सबसे ऊपर ह�। मतलब ये �या चीज़ है? : ये एेसी ही चीज़ है �क अभी म� इनक� (�पछले ��कता�) ओर देख रहा था तो मेरे �लए ये सबसे ऊपर थे। अब म� आपक� ओर देख रहा �ँ तो मेरे �लए आप सबसे ऊपर ह�। अभी म� उनक� ओर देखग ूँ ा, तो मेरे �लए वो सबसे ऊपर हो जाएँ गे, इनक� ओर देखग ूँ ा, ये ऊपर हो जाएँ गी। चू�ँ क मेरे �लए सबसे ऊपर स�य है, इसी�लए स�य क� बात म� �जससे भी कर रहा �ँ, वो मेरे �लए ब�त स�मान का हक़दार हो जाता है। जब म� आपसे बात कर रहा �ँ तो म� �बलकुल याद नह� रख रहा �ँ �क म�ने इनसे, इनसे, और इनसे �या बात करी है। आप मेरे �लए सबसे ऊपर हो गए, �या��क अभी म� आपक� बात कर रहा �ँ, आपसे बात कर रहा �ँ। और आप कौन हो? आप मेरे �लए उसके (परमा�मा के) ��त�न�ध हो। तो �जस समय उस परम श��त के �जस �प क� आराधना होती है, उस समय उसी �प को सवा��च कहा जाता है। ये ठ�क भी है �या��क बात �प क� है ही नह�, बात है �प के पीछे वाले अ�प क�, और वो अ�प तो सवा��च है ही। वो अ�प सवा��च है, वही तो अकेला है। जब वो सवा��च है, तो वो कोइ� भी �प ले, वो �प भी तो सवा��च ही �आ न। अरे भाइ�, वो कभी अवतार बनकर आए, कभी हनुमान बन कर आए, कभी पाव�ती है, कभी �गा� है, कभी राम है, कभी कृ�ण है, कभी �ाइ�ट है, कभी कबीर है, कभी अ�ाव� है। वो जो भी �प ले
करके आए, �प के पीछे कौन है? वो �वयं ही है न। तुम अगर ज़रा भी हो�शयार हो तो तुम अब (अपना चेहरा �माल से ढक लेते ह�) आचाय� जी क� बात नह� सुनोगे? अब नह� सुनोगे? �या�, अब �या� सुन रहे हो? चेहरा तो �दखाइ� नह� दे रहा। �या��क तु�ह� पता है �क �कट भले ही ये (�माल �दखाते �ए) हो रहा हो, ��य भले ही इसका है, पर ��य के पीछे अ��य-अ��त तो वही है न, व�ता एक ही है। या कल एेसा होगा �क म� �सरा कुता� पहनकर आ जाऊँगा तो मेरी बात नह� सुनोगे? जब मेरे साथ तुम इतनी अ�ल चला सकते हो, तो उसके साथ �या� नह� चलाते? भाइ�, वही है जो अलग-अलग प�रधाना� म� अपने अलग-अलग पैग़�बरा� को भेज देता है। कभी काल बदलता है, कभी नाम बदलता है, कभी �ल�ग बदलता है, कभी धम� बदलता है, भाषा बदलती है, जगह बदलती है, बात तो एक ही रहती है न। तो �जसके भी �प म� उसक� बात उतरे, उसको सवा��च ही मानना। जब उसक� बात करो तो वही सवा��च है। और ये भूल तो कभी कर मत देना �क एक क� तुलना �सरे से करने लग गए और कह �दया, “तीसरा तो कोइ� होता भी नह�!” एेसा भी खूब चलता है �क “नह�, नह�, नह�, उसका ��त�न�ध तो एक ही था, �सरा कोइ� हो नह� सकता।” एेसा कुछ नह� है, वो कोइ� कंजूस थोड़े ही है �क एक के बाद कहे, “�सरा भेजने म� कुछ खचा� हो जाएगा। टू ए� ड �ो फेयर (आने जाने का �कराया) ब�त लगता है, ऊपर से नीचे रवाना करने म�, वापस बुलाने म�। कौन इतना खचा� करे! तो एक भेज �दया, अब �सरा नह� भेज�गे।” एेसा नह� है। उसका तु�हारा �ेम का नाता है, तु�ह� भी उससे �यार है, उसे भी तुमसे �यार है, तो वो बार-बार तु�हारे पास आता ही रहता है। लगातार तु�हारे पास आता रहता है, कभी एेसे, कभी वैसे, कभी राम बनकर, कभी �याम बनकर। कभी �वराम नह� लगता – राम, �याम, नो �वराम। सब सवा��च ह�।
This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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(2019)
Acharya Prashant 12 min 133 reads
: आचाय� जी, अभी स�य के माग� पर चलना शु� ही �कया है और सम�याएँ धीरे-धीरे बढ़ती जा रही ह�। : तो ठ�क है, आगे तो बढ़ो थोड़ा। अभी तो बड़े मज़े म� बखान कर रहे हो �क सम�याएँ आ रही ह�। थोड़ा �पटो। अभी तो फ़ैशन जैसा लग रहा है �क “मुझे भी, मुझे भी हो रहा है, मुझे भी हो रहा है।” जैसा नए-नए पीने वाला� को होता है, कहते ह�, “हाँ, हाँ, हम� भी चढ़ रहा है, हम� भी चढ़ रहा है।" अरे, अभी तु�ह� चढ़ी नह� है। जब चढ़ जाती है, तो कोइ� कहता नह� �क चढ़ी �इ� है। �फर ज़माना कहता है, चढ़ी �इ� है, तुम अलग रहते हो। : नमन, आचाय� जी। जब भी म� �कसी ब�चे का शोषण होते �ए देखती �ँ, चाहे ख़बरा� म� सुन,ूँ चाहे सड़क पर देख,ूँ या �कसी �कान म�, मेरा मन बुरी तरह बेचैन हो उठता है। यथासंभव मदद करने क� को�शश भी करती �ँ, पर यही सोचती �ँ �क इसम� इन ब�चा� का �या कसूर है। जानती �ँ �क �यादा कुछ कर नह� सकती, बस परमा�मा से �ाथ�ना करती �ँ �क सबको स��ु � �मले। �या ये उन ब�चा� के कमा� का फल है? म� उस तड़प से बाहर कैसे �नकलू?ँ माग� �दखाने के �लए ध�यवाद, आचाय� जी। : सब हम जुड़े �ए ह�, कुछ अलग अलग नह� है मामला। उन ब�चा� क� जो ��थ�त है, वो समाज क� �ापक ��थ�त को दशा�ती है। ब�चा� क� हालत �बलकुल वही है जो समाज क� हालत है। बस ब�चे ज़रा कमज़ोर ह�, तो उनक� �द�शा �दख जाती है। समाज बीमार तो है, ले�कन उसके साथ ही साथ कु�टल भी ख़ूब है, तो वो अपनी ख़राब हालत को छु पा ले जाता है। आपको �या लगता है �:खी �सफ़� वो होता है �जसका शोषण हो रहा है? �ःखी बराबर का वो भी है जो शोषण कर रहा है। पर जो शोषण कर रहा है वो कु�टल है इसी�लए तो शोषण कर रहा है। चू�ँ क वो कु�टल है इसी�लए शोषण कर रहा है और चू�ँ क वो कु�टल है तो वो ये छु पा भी ले जाएगा �क वो �कतना �ःखी है। ब�चे का �ःख �दख जाता है। इसम� दोष �कसी एक ���त का नह� है, इसम� दोष हम सबक� साझी मा�यताआ� और धारणाआ� का है। दोष उस बु�नयाद का ही है �जस पर हमारा समाज खड़ा �आ है। समाज अ�ा होता तो ये थोड़े ही हो पाता �क अपवाद�व�प चार-पाँच ब�चा� का शोषण चल रहा है कह� पर। ब�चा� का शोषण होता रहता है पूरे समाज के समथ�न और �वीकृ�त से न। भाइ�, आप जाते ह�, देखते ह� �क ढाबे पर कोइ� आठ साल का लड़का काम कर रहा है—अब कम हो गया है, पहले और �यादा होता था—पर आप जाते ह� और देखते ह� ढाबे पर आठ साल का छोटू काम कर रहा है, उसको चव�ी-चव�ी कहकर बुला रहे ह�। आप कहते ह�, ढाबे वाले क� बड़ी ग़लती, ढाबे वाले क� बड़ी ग़लती! और वो जो छोटू है, वो चाय �पला �कसको रहा है? �जनको �पला रहा है, वो मज़े म� पी भी तो रहे ह�, पी ही नह� रहे ह�, वो ढाबे वाले को पैसे भी दे रहे ह� उस चाय के। तो बात �सफ़� ढाबे वाले क� है �या? समाज म� इस बात को एक आम स�म�त �मली �इ� है �क चलता है, कोइ� बात नह�, चलता है। न चलता होता तो ढाबे वाले क� �ह�मत ही नह� होती �क वो आठ साल के लड़के को बत�न धोने पर लगाए। और हम वैसे तो बड़े ममतामयी रहते ह� अपने ब�चा� के ��त, पर घर म� काम वाली के साथ उसक� दस साल क� लड़क� अगर आ जाती है काम करने के �लए, तो हम� कोइ� आप�� नह� होती। ब��क अगर कभी काम वाली ये कह दे �क म� अगले तीन �दन नह� आ पाऊँगी, तीन �दन ये लड़क� आ करके झाड��-पोछा कर �दया करेगी। तो हम कहते ह�, “कोइ� बात नह�, तूने अपनी बदली ही तो लगाइ� है, तू नह� आ सकती थी तो तूने अपना
�वक�प, स��टी�ूट लगा �दया। ठ�क है, ये लड़क� आकर करेगी।” तब हम नह� कहते, “कोइ� बात नह�, तीन �दन तू नह� आएगी, हम ही कर ल�गे, पर इसको ब�चे को मत भेज। ये और बता दे �क ये �कूल जाती है या नह� जाती है। और अगर ये �कूल नह� जाती तो सौ-पाँच सौ हमसे ले-ले, पर �कूल भेज �दया कर इसको।” म� नह� कह रहा, एेसा कोइ� नह� कहता। ब�त लोग ह�, ब�त प�रवार ह�, जहाँ पर ज़रा अब नज़र साफ़ हो रही है, मन बदल रहा है। ले�कन अभी भी ये बात� अगर चलती ह� तो सव�सामा�य के समथ�न से चलती ह�। हम� ये बुरा लगता ही नह�, अजीब लगता ही नह� �क अगर मॉल से आप खा-पीकर के �नकले और बाहर दसबारह साल वाले ब�चे गु�बारा इ�या�द बेच रहे ह�। अब बात को ज़रा और गहरे ले जाओ, एेसा हो �या� रहा है ँ ी का अ�ा है, उसके आगे कुछ ब�चे इतने ग़रीब खड़े ह� �क उनको रात के �यारह बारह �क एक मॉल जो पूज बजे भी, ठ�ड म� भी, और कइ� बार तपती दोपहर म� भी गु�बारे बेचने पड़ रहे ह�? ज़�र इसका कोइ� ढाँचागत कारण होगा, कोइ� �ट� �चरल रीज़न होगा न। हमारी अथ��व�था �जस तरीक़े से बनी है, हमारा समाज �जस आधार पर खड़ा है, ज़�र उसी म� कोइ� एेसी ँ ी का अ�ा होता है, जो उपभो�तावाद का गढ़ होता है, जहाँ रोज़ कइ� कइ� लाख बात है �क एक मॉल जो पूज ब��क करोड़ा� का लेन देन होता है, बड़े ट� ांज़ै�शन (लेन-देन) होते ह�, उसके सामने दस �पए के �लए भी एक ब�चा फटे हाल गु�बारे बेच रहा है। ज़�र कोइ� बात होगी �जस तरीक़े से हमने अपनी अथ��व�था का �नमा�ण �कया है। पर हम इन बाता� म� जाना नह� चाहते। हाँ, हमारा �दल ब�त काँपता है, ब�त �पघलता है, तो हम उस ब�चे को सौ का नोट �नकाल कर दे द�गे, कह�गे, “आज हम बड़े �वशाल �दय ह�। ब�चे, आज तेरा �दन अ�ा है, गु�बारा भी नह� चा�हए, ले ये सौ का नोट रख।" और ब�चा भी ये सोचता है �क ब�त ब�ढ़या हो गया। हम ये नह� देख रहे ह� �क ब�चे को सौ का नोट देकर हमने कोइ� बड़ा काम नह� कर �दया, �या��क हम ख़ुद �ज़�मेदार ह� एेसे हज़ारा� ब�चे पैदा करने के �लए। एेसी अथ��व�था हमने ही रची है। जहाँ कह� भी पूज ँ ी का के��ीकरण होगा, जहाँ कह� भी पूज ँ ी का संचय होगा �सफ़� कुछ हाथा� म�, वहाँ एक ब�त बड़ा वग� होगा जो सड़क पर गु�बारा बेचने को बा�य हो जाएगा। ले�कन हम उस बात का �वरोध कैसे कर सकते ह�, जब हम ख़ुद ही उन चंद लोगा� म� शा�मल होना चाहते ह� जो पूज ँ ीप�त ह�? समझना। हमारी जो �व�था है उसम� ये आव�यक हो गया है, उसका ढाँचा ही एेसा है �क पूज ँ ी का के��ीयकरण होगा ही होगा। एक कंपनी है उसम� काम करते हा� पाँच हज़ार कम�चारी वो पाँच हज़ार कम�चारी �मल करके जो मुनाफ़ा कमाते ह�, वो मुनाफ़ा �कसका है? चंद शेयर हो�डस� का ही तो है न, उ�ह� शेयर हो�डस� का है न? ये बात उस कंपनी के �वधान म� �लखी होती है, आ�ट�क�स ऑफ़ एसो�सएशन म� �लखी होती है। काम भले दस हज़ार लोग कर�, ले�कन जो पूरा मुनाफ़ा है, वो अगर चार शेयर हो�डस� ह� तो उ�ह� के हाथ म� जाना है। ले�कन ये सब कम�चारी मज़े म� काम करते रहते ह�, ब��क उन कंप�नया� म� अगर हमारी नौकरी लग जाए तो हम ख़ुशी मनाते ह�। आप ख़ुशी वा�तव म� इस बात पर मना रहे हो �क अब और �यादा पूज ँ ीगत स�ा चंद हाथा� म� क���त होने जा रही है। और अगर और �यादा पूज ँ ी चंद हाथा� म� जा रही है, तो और लोग अगर पूज ँ ी से अनछु ए रह जाएँ , और लोग अगर पूज ँ ी के �यासे ही रह जाएँ , तो इसम� ता�जुब �या है? हम �वयं भी चाहते ह� �क एक �दन एेसा आए �क हम ख़ुद शेयरहो�डर कहलाएँ । हम �वयं भी चाहते ह� �क एक �दन एेसा आए जब हमारे �लए दस हज़ार लोग काम कर�। दस हज़ार नह� तो चलो दस ही सही, पर हमारे �लए काम कर रहे ह�, उनक� मेहनत से जो सर�लस (आ�ध�य) पैदा हो रहा है, वो हमारी जेब म� आ रहा है। इस पूरे �वज़न (���) म� सड़क पर जो ब�चा गु�बारा बेच रहा है, उसके �लए �या जगह है? कोइ� जगह है? है �या कोइ� जगह? म� नह� कहता �क जगह हो नह� सकती या �कसी भी शेयर हो�डर या ए� टर�े�योर (उ�मी) के मन म� जगह होती नह� है एेसी, पर अ�धकांशतः मुझे बताओ तो। नह� तो ये बात ही बड़ी बचकानी है, जो देखे उसी को ता�जुब होगा �क मॉल से तो एक-एक करके बड़ी-बड़ी गा�ड़याँ �नकल रही ह�। एक-एक करके बड़ी-बड़ी गा�ड़याँ और अंदर सब इंटरनेशनल �ांड के शो�म ह�। मान लो द��णी �द�ली क� कोइ� मॉल है, या गुड़गांव क� कोइ� बड़ी
मॉल है। और वहाँ सब �या ह�? इंटरनेशनल �ांड्स ह� और गा�ड़याँ भी वहाँ से इंटरनेशनल ही �नकल रही ह� सब। वो बाहर गा�ड़याँ �नकलती ह� तो कहाँ जा कर �कती ह�? फटेहाल दस �पए का गु�बारा बेचते ब�चे के बगल म�।
ये माजरा �या है? इतना पैसा एक तरफ़ और इतनी ग़रीबी एक तरफ़, आमने ही सामने, �बलकुल आमने सामने खड़े ह�, एेसा हो कैसे गया? इस �� पर हम �वचार नह� करना चाहते, ब��क वो ग़रीबी हम� �दखे तो अपना अपराध बोध, अपनी �ग�ट �मटाने के �लए हम उस ब�चे को सौ �पए दे द�गे। इतने से काम नह� चलेगा, ये पूरी त�वीर बदलेगी तब बात बनेगी। और ये त�वीर तब बदलेगी जब आदमी का मन बदलेगा, �या��क आदमी के मन म� जब तक ये वासना है �क म� संसार के ऊपर चढ़कर बैठ जाऊँ, म� भी ��नया का टॉप �ापारी, �बजनेसमैन , ए� टर�े�योर कहलाऊँ, तब तक पूज ँ ी का स�ट�लाइसेशन (के��ीकरण) होता ही रहेगा, �या��क यही तो सपना हम� बचपन से �सखाया जाता है न, “बेटा, तुम सबसे आगे �नकल जाना।” सबसे आगे �नकलने का मतलब �या �आ? सबसे �यादा बटोरकर तुम अपने पास कर लेना और सबसे �यादा बटोरकर तुमन� अपने पास कर �लया, तो �सरा� के �लए बचा �या? आदमी का मन बदलेगा, ये त�वीर बदलेगी। : इसे �रवो�यूशन या धम�यु� कह सकते ह�? : �बलकुल, �बलकुल, इट नीड् स अ ��प�रचुअल �रवो�यूशन (एक आ�या��मक �ां�त क� आव�यकता है)। जब तक आम आदमी को ये समझ म� नह� आता �क �जन आधारा� पर वो �ज़�दगी जी रहा है वो घातक ह�, �सरा� के �लए ही नह�, अरे उसके अपने �लए, तु�हारे अपने �लए, तु�हारे ब�चे के �लए घातक ह� �जन आधारा� पर तुम जी रहे हो। तुमन� भ�व�य के जैसे सपने बनाए� ह� वो सपने ज़हरीले ह�, भले ही तु�ह� �कतने मीठे लगते हा�। जब तक आम आदमी को ये नह� समझ म� आएगा, तब तक सब कुछ रहेगा, ग़रीबी रहेगी, शोषण रहेगा, �जतनी बाता� क� आप यहाँ चचा� कर रही ह� वो सब रह�गी। इस समय क� बड़ी घातक बात ये है �क धम� �बलकुल पीछे छू टता जा रहा है। लोगा� ने कहना शु� कर �दया है *�दस इज़ पो�ट �र�लजन एज*। अब हम उस युग म� �वेश कर चुके ह� �जस युग म� कोइ� धम� नह� है, धम� क� बात पुरानी �इ�। : पैसा ही धम� है अब। : कल म� इससे कह रहा था, धम� �या है? से�फ़� धम� है, पैसा तो �फर भी आपने ब�त सुसं�कृत बात कर दी। धम� वो �जसको तुम धारण करो। तो कल यहाँ आते व�त रा�ते म� एक जगह �का, वहाँ �जतने थे सब से�फ़� धारण कर रहे थे, म�ने कहा यही धम� है। �जसको देखो वही ये धारण कर रहा है। तो यही धम� है, और तो कोइ� धम� बचा नह� है। पहले कहा गया �क गॉड इस डेड (भगवान मर चुका है) और जब कह �दया गया �क गॉड इस डेड तो धम� काहे का? धम� का तो अथ� ही था उस तक प�ँचना। जब तुमने उसी को ख़�म कर �दया तो कौनसा धम�? तो अब कोइ� धम� नह� है। यही धम� है �क पैसा ख़ूब कमा लो, सुख �लेज़र �कसी तरीक़े से �मल जाए, भले उससे तु�हारे भीतर �कतना ज़हर बढ़ता रहे। तो हम ख़�म भी हो रहे ह�, �सरा� को भी ख़�म कर रहे ह�।
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(2019)
Acharya Prashant 6 min 63 reads
: आचाय� जी, �णाम। आपसे �� पूछा गया था �क मु��त के माग� म� सबसे बड़ी बाधा �या है, तो आपने कहा था �क मु��त के माग� म� सबसे बड़ी बाधा हम �वयं ही ह� �या��क हमने ही बंधना� का चुनाव कर रखा है। मगर, आचाय� जी, इन बंधना� के चुनाव के पीछे कोइ�-न-कोइ� कारण तो है ही, चाहे वो सही हो या ग़लत हो, ले�कन कारण है तो। कम� करते �ए कैसे हम ख़ुद को इस ग़लत चुनाव से बचाएँ ? कृपया सांसा�रक जीवन क� �ावहा�रकता को �यान म� रखते �ए माग�दश�न करने क� कृपा कर�। : तो मुझे पहले ही चेतावनी दे रहे ह� �क 'कोइ� अ�ावहा�रक उ�र मत दे दी�जएगा, आचाय� जी' (आचाय� जी मु�कुराते ह�, �ोतागण हँसते ह�)। 'सांसा�रक लोगा� के �लए कोइ� �ै��टकल बात बताइए।' �या �ै��टकल बात बताऊँ? तुम कह रहे हो �क "बंधन चुने गए ह� तो उनके पीछे कोइ� कारण है। कारण चाहे सही हो, चाहे ग़लत हो, तो कारण तो है!" अरे भाइ�, तुम कभी �कसी ग़लत रा�ते भी चल देते होगे। कह� जाना है, रा�ता ग़लत चुन �लया, एक बार समझ म� आ गया �क रा�ता ग़लत है तो ये थोड़े ही कहोगे �क "ग़लत रा�ते भी हम आए तो कोइ� कारण तो होगा। भले ही हम� �म �आ, �म होने के पीछे भी कोइ� वजह तो होगी; हम� नशा भी �आ तो नशे का कुछ सबब तो होगा।" इतनी बात� करते हो �या? या सीधे ये कहते हो �क, "रा�ता ग़लत है!" समझ म� आ गया, चुपचाप मुड़ जाओ सही रा�ता पकड़ो। या बैठ कर के ये �व�ेषण करोगे �क ग़लती के पीछे �योजन �या था? कोइ� �योजन नह� था। माया �म है। �म माने वो जो है ही नह�, वो जो है ही नह� उसके पीछे �या �योजन होगा? नशे म� हो सकता है तुमको पचास आकृ�तयाँ �दख जाएँ , �या तुम नशा उतरने के बाद ये पूछोगे �क उन आकृ�तया� के पीछे �योजन �या था? �या �योजन था? कुछ भी नह� था, नशा था तो यूँ ही कुछ �थ� �दख रहा था, नशा उतर गया अब हम� कोइ� �थ� क� चीज़ �दखाइ� नह� देती। �ावहा�रकता क� तुमने बात करी है, म� समझ रहा �ँ �या कह रहे हो। तुम वा�तव म� ये कह रहे हो �क "वो जो ग़लत कारण था, भले ही शा��दक, और शा��ीय, और �कताबी तौर पर, आचाय� जी, आप ग़लत ठहरा द�। भले ही हम बौ��क तल पर मान ल� �क वो चीज़ ग़लत थी, पर दे�खए अब तो नेह लग गया न, बात �दल क� है। और ग़लत �नण�य अतीत म� भले ही कर �लया हो, पर अब छोड़ा नह� जाता। भले ही कोइ� �कतना समझा ले, भले ही हमारी भी बु�� �मा�णत कर दे, �क ग़लती हो गइ�, पर हो गइ� तो हो गइ�।" अहम् कहता है 'ग़लती भी है तो मेरी। जैसी भी है, मेरी है।' तु�हारी एक सड़ी �इ� खटारा बाइक खड़ी हो सामने, एकदम बबा�द और कोइ� आकर के उसका ह�डल �हलाना शु� कर दे, और तुम कहो 'एह', वो बोले, 'खटारा तो है �या तू इसक� बात कर रहा है!' बोलोगे, 'जैसी भी है मेरी है'। जैसी भी है... : मेरी है। : यही रवैया रहता है �ज़�दगी क� ग़ल�तया� को ले कर के हमारा, 'जैसी भी है, खटारा है, बबा�द है, जानलेवा है, मेरी है, छू ना नह�'। उसके साथ अहम् जुड़ा है न, अब वो खटारा, जो �क हो सकता है बाहर खड़ी ही इस�लए हो �या��क तु�हारी छः बार उसने टाँग तुड़वाइ� थी, छः बार उस पर से तुम �गरे थे।
कभी उसका टायर �नकल कर भाग जाता था, कभी उसक� चेन चलते-चलते उड़ जाती थी हवा म�, कभी कुछ
होता था, कभी कुछ होता था। छः बार टू टने के प�ात तुमने उसको बाहर खड़ा कर �दया है। खूब �ःख भोगा है उससे, और अब उसम� कुछ नह� है, वो दस साल से यूँ ही खड़ी है। उसने तु�ह� �ःख भी खूब �दया है, उसम� कोइ� मू�य भी नह� है, यूँ ही खड़ी �इ� है, ले�कन कोइ� आकर तु�हारे सामने थूक दे उसपर, तो देखो गला पकड़ लोगे उसका। �या? 'मेरी है, टाँग भी टू टी थी तो �कसक�? मेरी टू टी थी न।' अब म� तु�ह� �या समझाऊँ? और कुछ समझना ही चाहते हो तो आज घ�टा-डेढ़-घ�टा पहले म�ने बात करी थी कंधे मजबूत करने क�। होना तो ये चा�हए �क ये जो खटारा है इसको हटाकर के उसक� जगह पर तुम नयी बाइक खड़ी कर दो, �या��क तु�हारे पास जगह भी ब�त �यादा नह� है। छोटी सी तु�हारी साम�य� है, थोड़ी सी तु�हारे पास जगह है, थोड़ा ही तु�हारे पास समय है। होना तो ये चा�हए �क इस खटारा को फ�को, बेच दो। बेच दो इस खटारा को और कुछ पैसे लगा कर के अपने ब�चे के �लए एक छोटी सी साइकल ले आओ। इतने म� ही �बकेगी वो। पर तुम कहोगे, 'नह�, मेरी है', तो �फर अब �ज़�मेदारी तु�हारे ऊपर है �क नयी बाइक भी लेकर के आओ और उसके �लए जगह भी बनाओ, �या��क पुराना तो तुम हटाने से रहे। ये बड़ी �ज़द है तु�हारी �क, "पूरी आस��त है हमारी, इसी बाइक पर म�ने पहली डेट मारी थी, इसी बाइक पर उसका �प�ा उड़ा था। कैसे बेच �ँ इसको! भले ही छः बार टाँग तुड़वा चुका �ँ, तो नह�!" तो ठ�क है भाइ� रख लो इसको, ले�कन �फर जगह बनाओ नयी बाइक के �लए भी। तुम दोना� को ही रख लो। हो सकता है नयी आ जाए, तो नयी को देख कर के इस पुरानी से तु�हारा मोह छू टे। पुरानी अगर हटा नह� सकते हो तो कम-से-कम इतनी जगह बनाओ �क पुरानी रहे और नयी भी आ जाए। हो सकता है नयी को देख करके पुरानी से मोह छू टे तु�हारा। ये करना पड़ेगा, पुराने को रखे रहो, नयी के �लए भी जगह बनाओ। नया आ करके पुराने को बेदख़ल करेगा। और कोइ� तरीका नह� है।
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(2019)
Acharya Prashant 3 min 61 reads
: �या हम �ंथा� का ��पयोग करते ह�? : ��थ ना पढ़ना बेहतर है ��थ का ��पयोग करने से। ये तो अहंकार ने बड़ा ही अनथ� कर �दया, पहले तो वो ��थ को छू ता नह� था, और अब �या कर रहा है? छू करके उसका इ�तेमाल कर रहा है ख़ुद को सजाने के �लए। सो�चए कैसा लगेगा �क एक �बलकुल वहशी आदमी, द�र�दा समान, आए और �ंथा� के प�े फाड़-फाड़ कर अपने �लए कागज़ का मुकुट बनाए और कुछ करे। द�र�दा अपनी सजावट के �लए धम� �ंथा� का उपयोग कर रहा है। द�र�दे का �या नाम है? अहंकार। शे�स�पयर ने बोला था 'मच�ट ऑफ़ वे�नस' म�, शाइलॉक के च�र� पर, 'द डे�वल कैन कोट ����चस� फ़ॉर �हस पप�स' (शैतान अपने �वाथ� के �लए �ंथा� का भी इ�तेमाल कर सकता है)। और ये जो शाइलॉक का �करदार था, ये एेसा था �क इसे पैसा ना �मले तो लोगा� का माँस रखवा लेता था। *'द डे�वल कैन साइट ����चस� फ़ॉर �हस पप�स'*। तो �सफ़� इस�लए �क कोइ� बार-बार �ोक पढ़ देता है, या उ�रण बता देता है, या कोइ� दोहा बोल देता है, उसको आ�या��मक मत मान ली�जएगा। स�भावना ये भी है �क वो अ�या�म का ��पयोग कर रहा हो, वो अ�या�म का इ�तेमाल कर रहा हो ख़ुद को सजाने के �लए, और वो अ�या�म का इ�तेमाल कर रहा हो �सरा� को �गराने के �लए। अ�या�म क़ायदे से वो ब��क है जो अपने ऊपर चलती है �क तुम �मट जाओ। ले�कन अ�या�म अगर ग़लत हाथा� म� पड़ जाए, तो वो ब��क हो जाता है जो �सरा� पर चलती है ता�क तुम उन पर राज कर सको। है?
: आचाय� जी, कहते ह� �क गु� बदलना नह� चा�हए, एक ही होना चा�हए जीवन म�। ये कहाँ तक बात सही
: �बलकुल सही बात है, पर वो कौन सा गु� है जो एक ही होना चा�हए? �या��क वो एक ही है। वो, वो (तज�नी से ऊपर क� ओर इशारा करते ह�) है न परम गु�, �थम गु�, वो नह� बदलना चा�हए। : जो शरीर म� होते ह� वो? : (�माल से चेहरा ढ़कते ह�) (�ोतागण हँसते ह�) ह�म? अरे, वो एक है, धरती पर पेड़, पौधे, प�ी, फूल, तो अनेक ह� न। �फर? चार �दन यही कुता� पहनूग ँ ा तो ये महकेगा, कल बदल कर आऊँगा भाइ�। �फर तुम कहोगे, "देखो बदलना नह� चा�हए, �प नह� बदलना चा�हए।" �प तो बदल�गे ही, बात तो उसी क� है न। ��य तो बदलेगा-ही-बदलेगा, ��य के पीछे जो अ��य बैठा है वो तो एक ही है न। तो एक ही गु� रखना है। कौन-सा गु�? (ऊपर क� ओर इशारा करते �ए) वो, वो है, पहला गु� वो ही है। जब वो पहला गु� है, तो उसके �ताप से धरती पर भी तु�ह� गु� उपल� हो जाते ह�। इसी�लए जो धरती के गु� ह� वो अपने-आपको उसका दास बोलते ह�, �क हम उसके दास ह�। तुम अगर कहते हो �क तुम हमारे �श�य हो, तो तुमसे पहले हम उसके �श�य ह�।
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(2019)
Acharya Prashant 5 min 174 reads
: आचाय� जी, �णाम। त�वबोध एवं आ�मबोध म� शंकराचाय� जी �ारा �� को �नराकार, गुणातीत आ�द बताया गया है, परंतु उनके �ारा �था�पत आ�मा� को श��तपीठ कहा जाता है तथा उनके �ारा �शव, �व�णु आ�द पर भी �ोका� क� रचना क� गइ� है। कृपया उपरो�त संबंध म� माग�दश�न क� कृपा कर�। : �� गुणातीत, �नराकार �न��त है, ले�कन �जससे �� क� बात क� जा रही है, वो तो गुणा� का ही सौदागर है, वो तो �प और रंग और आकार के अ�त�र�त �कसी को जानता नह�। आप जानते ह� �कसी एेसे को �जसका कोइ� �प-रंग, आकार, गुण ना हो? बात �� क� क� जा रही है, ले�कन आपसे क� जा रही है; बात �नराकार क� क� जा रही है, ले�कन साकार से क� जा रही है। तो साकार को �नराकार तक जाने का रा�ता भी बताना पड़ेगा न? नह� तो बड़ी �व�च� ��वधा है। जो साकार ही है और �जसक� पूरी ��नया ही साकार है, उसको तुम बार-बार बोल रहे हो, ‘�नराकार, �नराकार, �नराकार’। वो कहेगा, "�नराकार का क�ँ �या? मुझे तो बस आकार पता है।" समझो बात को। स�य �नराकार है, तुम �या हो? : साकार। : साकार। अब साकार से म� बार-बार बोलूँ �क वो ऊपर परमा�मा �नराकार है, तो वो �सर खुजाएगा और परेशान हो जाएगा, कहेगा, "भाइ� जी, �जतनी म�ने �ज़�दगी जानी है, उसम� तो म�ने जो जाना, सब कुछ साकार ही है। आप ये �कसक� बात कर रहे हो जो �नराकार है? म� उस तक कैसे प�ँचू,ँ कैसे उससे �र�ता बनाऊँ, कैसे उसे पाऊँ? पूजा भी कैसे क�ँ उसक�, अगर वो �नराकार है?" तो साकार को बड़ी मु��कल हो जाती है। उस मु��कल के समाधान के �लए बड़ी सुंदर यु��त �नकाली गइ� है। उस यु��त क� बात आपने भी यहाँ पर कर ही दी है। वो यु��त है देवमू�त�। देवमू�त� पुल है साकार और �नराकार के बीच का। आपने कहा न �क "जब शंकराचाय� जी कहते ह� �क �� �नराकार और गुणातीत है, तो उनके �ारा �था�पत आ�मा� को श��तपीठ �या� कहा जाता है, और शंकराचाय� जी के �ारा �शव, �व�णु आ�द पर �ोका� क� रचना �या� क� गइ� है?" �या��क �शव और �व�णु बड़ी �व�श� छ�वयाँ ह�, बड़ी �व�श� मू�त�याँ ह�। वो सीढ़ी ह�, बड़ी नायाब सीढ़ी ह�, एेसी सीढ़ी जो साकार से शु� होती है और �जसका �सरा �सरा �बलकुल आकाश म� है। ज़मीन को आसमान से �मलाने वाली सीढ़ी है वो। ये मू�त� का काम होता है। �शव, �व�णु मान� छ�वयाँ, मू�त�याँ सव��थम, है न? वो मूत� ह�। �� अमूत� है, �व�णु मूत� ह�। उनक� अ�भक�पना, उनक� रचना बड़े बोध से, बड़े �यान से �इ� है �क साकार ���त, साकार मन जब इन साकार मू�त�या� पर �यान करेगा, तो वो साकार का उ�लंघन करके, साकार को पार करके �नराकार म� �वेश कर जाएगा, जैसे �क कोइ� पुल को पार करके �सरे तट पर प�ँच जाता है। तो मू�त� इस�लए है ता�क तुम अमूत� तक प�ँच सको। मू�त� मूत� के �लए है, तुम �या हो? : मूत�। : मूत�। चू�ँ क तुम मूत� हो, इसी�लए तु�ह� मू�त� दी जाती है। पर हर मू�त� से काम नह� चलेगा, �या��क मूत� तो ये भी है, मूत� तो ये भी है (मेज़ पर रखी व�तुआ� को इं�गत करके) * । जो कुछ साकार हो, जो पकड़ म� आ सके सो मूत� है। मूत� तो ये सब भी ह� * (मेज़ पर रखी व�तुआ� को इं�गत करके) , हर इंसान मूत� है।
नह�! कोइ� खास मू�त� चा�हए होती है। �शव, �व�णु वो खास मू�त�याँ ह�, �व�धयाँ ह�, तरक�ब ह�, पुल ह�, सीढ़ी ह�— �जतने तरीके से कहो, उतने तरीके से बोलू— ँ इस पार से उस पार ले जाते ह�। तु�हारे �लए ज़�री ह� �या��क तु�ह� तो मू�त� ही चा�हए। तो मू�त� पर �यान करते हो, आगे �नकल जाते हो। ले�कन �फर उस �यान क� एक शत� है – मू�त� पर अटक मत जाना! प�थर का नाम �शव नह� है। लोग मू�त�या� पर खूब अटकते थे, इसी�लए कबीर साहब आ�द संता� को मू�त� पूजा का �कतना �वरोध करना पड़ा! �या��क लोग मू�त� पर ही अटककर रह जाते थे। कहते, "�कतनी मूरख ��नया है जो मूरत पूजन जाय।" कबीर साहब क� वाणी है। , , — "ये जो मू�त� का प�थर है, उससे भला प�थर तो तु�हारी च�क� का है, कम-से-कम उससे कोइ� �ावहा�रक लाभ तो होता है। ये मू�त� के प�थर से तु�ह� �या लाभ होता है?" मू�त� के प�थर से इस�लए नह� लाभ होता �या��क हमने मू�त� का ��पयोग �कया है। मू�त� थी ही इसी�लए �क उसका �योग तुम �नराकार म� �वेश के �लए करो, ले�कन हम मू�त� से ही �चपककर रह गए। तब संता� को हम� याद �दलाना पड़ा �क मू�त� पुल है, और पुल पर घर नह� बनाते, पुल को पार करते ह�। तुमने पुल पर ही �पक�नक मनाना शु� कर �दया, पार ही नह� कर रहे; मू�त� पूजा ही सब कुछ हो गइ�। लेकर मू�त� घूम रहे ह� इधर-से-उधर, भूल ही गए �क मू�त� का उ�े�य �या था।
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(2019)
Acharya Prashant 7 min 140 reads
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: आचाय� जी, डाइनै�मक मे�डटेशन �नय�मत हो रहा था, जो अब छू ट गया है, उसके बाद �वप�यना करने लगा �नय�मत, वो भी एक समय के बाद छू ट गया। ल�बी �री तक चलना शु� �कया है। जब चलता �ँ, तभी सा�ी हो पाता �ँ, तब कोइ� �लेफ़ टॉक या �वचार नह� होते, एेसे लगता है �क शरीर ही चल रहा है या पैर ही चला रहे ह�। म� पेशे से मैके�नक �ँ। जब ��ू कस रहा होता �ँ तो एेसा �तीत होता है �क ��ूड� ाइवर ही काम कर रहा है। एेसा ही खाना खाते समय, नहाते समय इ�या�द यां��क काया� म� अब होता है। �ोक म� जब उपा�धया� के न� होने क� बात कही जा रही है, तो �या उसी ��थ�त क� बात क� जा रही है जो अभी मेरी है? अगर है, तो �या इसी तरह �यान को चौबीस घ�टा� म� फैलाना है? कृपा करके समझाएँ । : जल म� जल का �मलना, आकाश म� आकाश का �मलना, तेज म� तेज का �मलना �तीक ह�, सूचक ह�। वा�तव म� �कसम� �कसके �मलने क� बात हो रही है? वा�तव म� बात हो रही है अहम् के आ�मा म� �मलने क�; वा�तव म� बात हो रही है झूठ के स�य म� �वलीन हो जाने क�। सब झूठ �मला स�य म� और �मलकर �मट गया, �या��क स�य अन�त है। वो झूठ को �बलकुल पचा जाता है, पचाकर ख़�म कर देता है; सच मा� बचा; वही कता� है। जब स�य कता� होता है, तो पहली बात ये �क वो �सफ़� स�य का ही कारोबार करता है, वो और कोइ� कारोबार करता नह�। अहम् दो तरीके से �वलीन हो सकता है, एक तो ये �क वो स�य म� ही �मल जाए, तब पूरे तरीके से अ�वरोध क� ��थ�त आ जाती है। अब कौन �कसका �वरोध करेगा? स�य है, वही कता� है, अपना कर रहा है। और अ�वरोध अगर तु�हारे जीवन म� आ रहा है, जैसा तुमने �लखा, तो उसका एक �सरा कारण भी हो सकता है, और वो होता है अहम् का �माद म� आ जाना। सोते �ए आदमी को �कसी चीज़ से �वरोध बचता है �या? ब��क जब तुम पाते हो �क ��थ�तयाँ बड़ी अ�वीकाय� हो रही ह�, तो तुम सोने चले जाते हो, �या��क अगर जगते रहोगे तो बड़ी तड़प होगी, बड़ी उलझन होगी। माहौल एेसा है �क उसे �वीकार नह� कर सकते, घटनाएँ कुछ एेसी घटी ह� �क बदा��त नह� हो रह�, तो तुम सोने चले जाते हो। सोने से राहत �मलती है, सोना अ�वरोध क� ��थ�त है। अब फँस गया मामला, इसका मतलब अ�वरोध समा�ध म� भी आ सकता है और सुषु�ताव�था म� भी आ सकता है। जो समा�ध म� प�ँच गया मु�न, वो अ�वरोध का जीवन जीता है और जो गहरी न�द सो गया, वो भी अ�वरोध का जीवन जीता है, उसे भी जीवन म� कोइ� �द�क़त� नह� बचत�। वो कहता है, “भीतर कोइ� हलचल नह� है, कोइ� �ंद नह� है। जो हो रहा है, वो बस करने दे रहे ह�, होने दे रहे ह�।” अंतर कैसे पता �कया जाए? अंतर एेसे पता �कया जाए �क म�ने कहा, जब अहम् आ�मा म� �मल जाता है, जब कता� आ�मा मा� बचती है, तो उसका कारोबार �सफ़� स�य का होता है। अपने कारोबार को देखो, �या स�य का कारोबार है तु�हारा? स�य का
अ�वरोध तो �सफ़� स�य से होता है न? तुम कह रहे हो, “म� जो भी कर रहा �ँ अभी, उसम� कोइ� �ंद नह� बचा।” तु�हारे श�दा� म�, "कोइ� से�फ़ टॉक नह� होती।” तु�ह� लगता है �क तुम सा�ी हो गए हो, एेसा लगता है �क शरीर ही चल रहा है, पैर ही चल रहे ह�। ��ू कसते हो तो लगता है �क ��ूड� ाइवर ही काम कर रहा है। एेसा ही खाते समय, नहाते समय होता है। तो �ंद तो बाक� ही है। एक है जो �सरे को देख रहा है और कोइ� तीसरा भी है जो इन दोना� को भी देख रहा है। जो �सरा है, जो तु�हारी हर ग�त�व�ध को देख रहा है, उसको तुम सा�ी का नाम दे रहे हो। सा�ी का होना कभी बताया नह� जा सकता। सा���व कोइ� पकड़ म� आने वाली घटना नह� है, �क तुम बताओ �क “जब म� ल�बी सैर पर �नकलता �ँ, तब म� सा�ी हो जाता �ँ।” तु�ह� कैसे पता तुम सा�ी हो जाते हो? कौन है �जसे पता चल रहा है �क वो सा�ी हो गया, भाइ�? इसका मतलब सा�ी को भी कोइ� पीछे बैठकर देख रहा है। बोध म�, समा�ध म� या समप�ण म� अकता� हो जाना बड़ी �व�श� बात होती है। उसम� साधारण चैन नह� �मलता, उसम� बड़ी उ�च को�ट का चैन �मलता है। साधारण चैन तो यही है �क अगर आप काम कर रहे ह�, कुछ भी काम हो, तो उसको �न��द �प से कर रहे ह�। कोइ� भी काम हो, �या फ़क़� पड़ता है �या काम कर रहे ह�, कुछ भी कर रहे ह�, उसको �न��द �प से कर रहे ह�।
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तो तुम ख़ुद जाँच लो, तु�हारे झूठ का सारा कारोबार न� �आ है �या? तुम जो काम कर रहे हो, वो स�य क� सेवा म� है �या? �या��क स�य तो जब काम करता है तो सारे स�चे काम ही करता है। तुम �जस काम म� लगे हो, वो स�य को सम�प�त है �या? इतना आसान नह� है सा���व, �क तुम कहो �क “म� कोइ� भी काम कर रहा �ँ, उसको चैन से कर रहा �ँ या उससे अलग हटकर कर रहा �ँ तो ज़�र ये सा�ी या समा�ध क� ��थ�त है।” ना! सबसे पहले ये बताओ �क काम कौन-सा कर रहे हो। कोइ� कसाइ� कहे �क “म� अब बड़े चैन से माँस काटता �ँ। जब माँस काटता �ँ तो बस हाथ माँस को काट रहा होता है, म� तो सा�ी होता �ँ”, तो वो मज़ाक कर रहा है। तु�ह� स�य और सा���व उपल� �आ होता तो सबसे पहले तु�हारा पेशा बदलता। अ�या�म का मतलब ये �बलकुल नह� होता, ये सब लोग समझ ल�, �क तुम जो काम कर रहे हो, उसी काम को और बेहतर करने लगोगे, उसी काम को और सुकून से करने लगोगे। अ�या�म का मतलब होता है �क सबसे पहले तुम सही काम चुनना सीखोगे। ग़लत काम करते �ए उसको तुम �न��द भाव से करो या सुकून के भाव से करो, ये कोइ� अ�या�म नह� हो गया। ये अ�या�म का मज़ाक है! सबसे पहले काम सही चुनो। छोटी-सी �ज़�दगी है। �ाइ�ट ने देखा एक लड़के को, वो तालाब �कनारे बैठ करके मछली मार रहा था। सुंदर, तेजवान लड़का था, पर कर �या रहा था? मछली मार रहा था। उसके पास गए, बोले, "ज़रा-सी �ज़�दगी है, मछली मारने म� ही गुज़ार देनी है? यही काम चुना है तुमने जीने के �लए, एेसे करोगे स�य क� सेवा, मछली मार-मारकर?" यही सवाल हर ���त को अपने-आपसे पूछना चा�हए, “ये धंधा �यो कर रहे हो?” �ाइ�ट क� कहानी म� तो वो लड़का �ाइ�ट के साथ चल पड़ा था; तु�हारी कहानी, तुम जानो!
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(2019)
Acharya Prashant 7 min 63 reads
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: आचाय� जी, �णाम। �ोक को पढ़कर लगता है �क जैसे �� भी सामा�य व�तु क� तरह ही �ा�त करने क� कोइ� चीज़ है। �� को देखने, जानने और �ा�त करने से शंकराचाय� जी �या आशय है? कृपया �प� कर�। : देखना, जानना, �ा�त करना; �� को देखने से आशय है �क तु�हारी आँख� अब �थ� चीज़ा� को इतना कम मू�य देती ह� �क वो �थ� चीज़� �दखाइ� ही नह� देत�। तु�हारी आँख� अब �थ� चीज़ा� को इतना कम मू�य देती ह� �क वो �थ� चीज़� �दखाइ� देकर भी �दखाइ� नह� देत�—ये है �� को देखना। ऊपर �कतनी ब��याँ ह�, �कसी ने �गना �या? (छत क� ओर इशारा करके) �गन सकते थे न? आसान था �गनना, �दख तो रहा ही था, �गन सकते थे—�गना �या� नह�? �या��क �थ� है �गनना, मह�व ही नह� है �गनने का। लोग �कतने ह� यहाँ पर, ये भी �गना �या? सबको अपने-अपने पड़ोसी का नाम पता है �या? �या�, पूछ तो सकते ही थे? तीन घ�टे से कभी एेसा �आ है �क �कसी के बगल म� बैठे हो और नाम भी ना पूछा हो? तीन �मनट म� पूछ लेते हो। और यहाँ तीन घ�टे आज के हो गए और तीन �दन वैसे हो गए, तीन �दन से साथ हो, नाम भी नह� पूछा? �या��क कोइ� मह�व नह� है। �जस चीज़ का मह�व है, वो �सरी है।
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अ�पताल म� तु�हारा �म� भत� �कया गया हो �या��क अभी-अभी �घ�टना हो गइ� है और हालत गंभीर है, और तुम गाड़ी लेकर भागते हो अ�पताल क� ओर। अभी-अभी ख़बर आयी है �क “भाइ�, ए��सड�ट �आ है, आओ”, और तुम चलते हो गाड़ी ले करके। रा�ते म� फला� क� �कान� लगी ह�। सेब �दखाइ� देते ह�? अंगूर �दखाइ� देत� ह�? अनार �दखाइ� देते ह�? ��ी �दखाइ� देती है? पु�ष �दखाइ� देता है? कुछ �दखाइ� देता है? भीड़ को चीरते �ए तुम…? : अ�पताल क� ओर जाते हो। : अ�पताल क� ओर जाते हो। बाक� सब �दखकर भी नह� �दख रहा, ये है �� को देखना। बाक� सब कुछ �दखता तो है, पर �दखता नह�; �दखता तो है, पर अब उसे हम है�सयत नह� देते, मू�य कुछ नह� देते, �या��क �जसका मू�य है, हम सीधे उसी क� ओर बढ़े जा रहे ह�—ये है �� को देखना। कुछ एेसा �दख गया है हम�—आँखा� से नह�, भीतर से—कुछ एेसा �दख गया है हम�, �जसके सामने बाक� सब ��य, सब नज़ारे मू�यहीन ह�, उसको देखने के बाद इधर-उधर देखने क� इ�ा ही नह� होती। ये है �� को देखना। अब कुछ आँखा� के सामने भी आ जाए तो �दखाइ� नह� देता। ये जो माँस क� आँख� ह�, ये उसे देखती ह�,
ले�कन ��य मन पर अं�कत नह� होता; ��य आता है और चला जाता है, मन पर छाप नह� छोड़ता, मन उसे कोइ� मू�य नह� देता। ये है �� को देखना। �फर कहा है, “�� को जानने से �या आशय है?” �� को जानने से आशय है ��नया को जान लेना, और ��नया को जान करके �म�या पा लेना। जब ��नया �म�या हो गइ� तो �� को जान �लया। �� अ�ेय है, �� को सीधे-सीधे नह� जाना जा सकता; हाँ, ��नया को जाना जा सकता है। तुम ��नया को जान लो, तो समझ लो तुमने �� को जान �लया। जो ��नया को जान ले, जो ��नया क� ‘ने�त-ने�त’ कर ले सो ���वद् �आ, �या��क �� से एक �ए �बना, �� क� अनुक�पा के �बना तुम ��नया को जान ही ना पाते, तुम ��नया क� ‘ने�त-ने�त’ ही ना कर पाते। तो जब भी कहा जाए �क �� को जानो, तो उसका अथ� यही समझना �क ��नया को समझना है �क ये ��नया चीज़ �या है। �फर कहा, “�� को �ा�त करना �या है?”
�� को �ा�त करना है - अपनी सारी �ा��तया� का यथाथ� जान लेना। �ा��तयाँ तो तु�हारे पास ख़ूब ह� न? कोइ� है �जसके पास कुछ भी ना हो, �जसने कुछ भी कभी �ा�त ना �कया हो? सबके पास ब�त कुछ है। तु�हारे पास जो कुछ है, उसके यथाथ� को जानना ही है �� को �ा�त करना। जो कुछ तुमने �ा�त कर रखा है, उसके मूल म� �वेश कर जाओ। “ये �या है? म� कौन �ँ �जसे ये �ा�त करने क� इ�ा उठ�? और ये �ा�त करके �या मेरी इ�ा संतु� �इ�?” - ये है �� क� �ा��त। �या��क जो कुछ तुमने �ा�त कर रखा है, वो साफ़-साफ़ �दखाइ� ही तब देगा, उसका यथाथ� ही तब पता चलेगा, जब तुम �� को �ा�त हो गए। इस बात म� भी सावधान रहना। �� को तुम नह� �ा�त करते, �� को तुम �ा�त हो जाते हो। तुम ब�त छोटे हो, तृण बराबर, वो ब�त बड़ा है, अनंत। तुम उसे कैसे �ा�त कर लोगे? रेत का कण पव�त को कैसे �ा�त कर लेगा? बूद ँ सागर को कैसे �ा�त कर लेगी? तु�ह� �ा�त होना होता है �� को, तु�ह� जाकर �मटना होता है; �� तुमम� आकर नह� �मट जाएगा, तु�हारी छोटी-सी मु�ी म� �� नह� समा जाएगा। तु�ह� �मटना होता है, उसे जीतना होता है। अहंकार बड़ा �स� होता है �क “म� �� क� �ा��त क�ँगा!” है न? “म�ने �� को जाना, म�ने �� को देखा, म�ने �� को �ा�त �कया।” ये मु�ी बोल रही है, “म�ने पूरा समंदर देखा, जाना, �ा�त �कया।” ये आँख� बोल रही ह�, “म�ने पूरा आसमान देखा, जाना, �ा�त �कया।” मूख�ता है न? तुम उसे (�� को) �ा�त हो जाओ, इसी को बोध कहते ह�, समा�ध कहते ह�, भ��त कहते ह�, समप�ण कहते ह�। तुम जाओ और उसम� �मट जाओ, �या��क बेचैन तुम हो। इसी म� तु�हारी भलाइ� है। वो �या आएगा तु�हारे पास, अन�त है वो। इधर-उधर �हलेगा-डु लेगा भी कैसे? पूरा ही है। जब तुम कहते हो, “आओ मेरे पास”, कैसे आएगा? उसक� मजबूरी समझो। वो कह� जाना चाहे तो जा ही नह� सकता, �या�? �या��क हर जगह वो पहले ही मौजूद है। वो कह� छु पना चाहे तो छु प भी नह� सकता, �या�? �या��क हर जगह वो पहले ही मौजूद है। वो कह� छु पना चाहे तो छु प भी नह� सकता, �या�? �या��क वो कह� से हट ही नह� सकता; वो ही वो है। और तुम �च�लाते हो, "हे इ��र! कहाँ छु पा है तू?" अरे, वो छु पना चाहेगा भी तो छु पेगा कैसे, भाइ�? कौन-सी गुफा इतनी बड़ी है �क उसम� स�य समा जाएगा? तो वो नह� आएगा तु�हारे पास �क तुम उसे �ा�त करो। तुम �र भागे �ए हो उससे, �जससे �र भागा ही नह� जा सकता। तु�ह� जाकर अपनी आ��त देनी होगी, समप�ण करना होगा �क “म�ने अब अ�नवाय� के आगे, अव�यंभावी के आगे घुटने टेक �दए। म� ��तुत �ँ, म� सम�प�त �ँ।” ये है �� को �ा�त करना।
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(2019)
Acharya Prashant 9 min 83 reads
: म� अ�या�म म� आगे �या� नह� बढ़ पा रहा �ँ? : ‘हाँ’ (रज़ामंदी) नह� है। साम�य� भी हो, �ववेक भी हो, ऊजा� भी हो, सब �थ� है अगर हामी नह� है। ये जो पूरा खेल ही चल रहा है न आ�या��मक, �हानी, ये है ही महबूबा क� हामी का। �रझाने वाला �रझाए जा रहा है, वो ‘हाँ’ ही नह� बोलती। और हामी के �बना बात आगे बढ़े गी नह�। और हामी �कन बाता� पर आ��त है, कुछ कहा नह� जा सकता। कोइ� अगर एक कारण होता या पाँच कारण होते या बीस भी कारण होते, �क पता होता �क तुम �या� नह� हामी भर रहे, तो एक-एक करके वो सारे कारण �मटाए जा सकते थे। हामी तो बड़ी बेतुक� चीज़ होती है, बड़ी अकारण चीज़ होती है, रीझ गए तो ‘हाँ’ बोल दोगे, रीझ नह� रहे तो अब �या �कया जाए। �दल नह� आ रहा, हामी नह� भर रहे। ऊजा� वग़ैरह सब आ जाएगी, जवान आदमी हो। चुनाव नह� कर रहे, अब चुन नह� रहे तो कैसे बोल�। ये तो अपनी मज़� क� बात है, �दल क� बात है। ‘हाँ’ नह� बोलनी अभी, तो मत बोलो, भाइ�। : मेरा मन पढ़ाइ� म� नह� लगता है, कृपया कोइ� आ�या��मक उपाय बताएँ ? : इनक� गाड़ी क� ��लच �लेट ख़राब है, उसम� अ�या�म �या कर सकता है। तुमसे �कसने कह �दया �क अ�या�म इस�लए है �क पढ़ाइ� म� तु�हारा मन लगने लगे? नह� लगता तो नह� लगता, अ�या�म �या करेगा इसम�? अ�या�म का इसम� �या काम है, भाइ�? उ�ह� मैगी नूड�स नह� अ�ा लगता, वो बोल� �क “आचाय� जी, मैगी नूड�स नह� अ�ा लगता।” तो? त�वबोध पढ़कर मैगी नूड�स थोड़े ही अ�ा लगने लगेगा। अ�या�म का पढ़ाइ�-�लखाइ� से �या संबंध है? तुमसे �कसने कह �दया �क ��नया �जन कामा� को �े� समझती है, उन कामा� क� पू�त� के �लए अ�या�म सहायक हो जाएगा? आ�या��मक गु� आधे से �यादा बेपढ़े -�लखे थे, और तुम कह रहे हो, "स�संग करके मेरा पढ़ाइ� म� मन लगने लग जाएगा।" एेसे ही लोग आते ह�, कहते ह�, "यूपीएससी क� तैयारी कर रहे ह�, आचाय� जी। आशीवा�द दी�जए।" (सभी �ोतागण ज़ोर से हँसते है) इसम� आचाय� जी �या कर सकते ह�? पता नह� �या �म चल रहा है �क उप�नषद् पढकर आइ�एएस बन जाएँ गे। “नह�, म� गीता का रोज़ पाठ करता �ँ।” “�या�?” “नह�, उससे नौकरी लग जाएगी।” इस बात म� और इस बात म� �या अंतर है �क, "म� वशीकरण मं� लेकर आया �ँ, लड़क� पट जाएगी"? दोना� ही बेतुक� बात� ह� न? �क तुम अपने लालच क� ख़ा�तर या अपने अंधे ल�या� क� ख़ा�तर अ�या�म का �योग करना चाहते हो। तुमने यूँ ही कह� एड�मशन (�वेश) ले �लया है �कसी कोस� (पा��म) म�, तुमने इस�लए एड�मशन �लया है �क
तु�ह� स�य क� �ा��त हो? जो तुमने कोस� �लया है, उसका �या नाम है, बैचलर इन ट� थ ? बोलो। या मा�टस� इन �वज़डम ? एेसा तो कुछ है नह�। तो उस कोस� को पास (उ�ीण�) करने म� ट� थ कैसे सहायक हो जाएगा? जो कोस� ट� थ क� सेवा म� ही नह� �लया गया, जो कोस� स�य से संबं�धत ही नह� है, उस कोस� को पास करने म� स�य कैसे सहायक हो जाएगा? पर हमारी तो आदत बनी �इ� है, मं�दर जाकर खड़े हो जाते ह�, “इस बार बेटा देना!” तु�ह� बेटा आए, �क बेटी आए, इससे भोले बाबा का �या �योजन? उनका यही काम है �क इस बार बेटा देना, यही पूरा करते रह�? दे�वयाँ खड़ी ह� �शव�ल�ग के सामने, “बेटा चा�हए!” �या मूख�ता है! अ�ील ��य है। �शव से शां�त माँगो, स�य माँगो, बोध माँगो तो समझ म� आता है, �या��क �शव श��त �व�प ह�, शां�त �व�प ह�, बोध �व�प ह�। �जन कामा� का स�य से कोइ� संबंध नह�, उन कामा� को अ�या�म से �या� जोड़ते हो? बोलो न। �फर तुम कह रहे हो �क कॉलेज (महा�व�ालय) म� मन नह� लगता, यहाँ मन लगता है। देखो, म� �न��त �प से कुछ नह� कहना चाहता, ले�कन ये भी स�भव है �क यहाँ भी अगर परी�ा लेनी शु� हो जाए और यहाँ भी मामला तीन �दन का ना हो, सेमे�टर भर का हो, तो तु�हारा यहाँ भी मन नह� लगेगा। अभी तो यहाँ पर सब एक बराबर ह�। यहाँ एमबीबीएस , एमडी भी बैठे ह�, यहाँ पीएचडी भी बैठे ह�, और यहाँ तुम भी बैठे हो �क “पाँच बैकलॉग है मेरी।” और सब एक बराबर ह�, सब एक तल पर ह�, सब �श�य ही कहला रहे ह�। तो बड़ा अ�ा लगता है �क यहाँ पर कोइ� ��त�पधा� नह� है, यहाँ कोइ� हमारी क़ा�ब�लयत नह� जाँच रहा। यहाँ सब एक बराबर ह�; गधा, घोड़ा एक �आ। यहाँ भी अगर तुमसे �म करने को कह �दया जाए तो मुझे मालूम नह� �क तु�हारा उ�र �या होगा। आ�म म� जब भीड़ ब�त बढ़ जाए, तो जानते हो न भीड़ छाँटने का नुसख़ा �या है? "आ जाओ, भाइ�, सेवा शु� हो रही है। कौन-कौन सेवा करा रहा है?" वो भीड़ धीरे-धीरे अपने-आप... "वो जी, वो अब काम याद आ गया था", अपने-आप भीड़ छँ टने लग जाती है। तमाशाइ� ब�त खड़े हो जाते ह�, सेवा के �लए बोलो, “आना ज़रा!" इतना ही करवा दो �क "गमले उठाकर यहाँ से वहाँ रखवा दो आ�म म�”, भीड़ छँ ट जाती है। इनसे सेवा करवाओ थोड़ी *(��कता� को इं�गत करके)*। अ�या�म पनाहगाह थोड़े ही है उनक� जो हर जगह से असफल हा�, �क है? तुम कैसे छा� हो �क तुम कुछ पढ़ नह� पा रहे? और अगर तुम जो पढ़ रहे हो, बेटा, अगर उसम� तु�हारी ��च नह� है, तो �पताजी का पैसा �या� ख़राब कर रहे हो? उस कोस� से बाहर आओ। (अपनी ओर इशारा करते �ए) तुम �जनको सुन रहे हो, उ�हा�ने पढ़ाइ� करी थी? करी थी? : जब करी थी तो अ�े से करी थी। : तो कैसे चेले हो तुम! जो कर रहे हो, ढं ग से कर लो, या मत करो।
मुझे जब नौकरी नह� करनी थी तो रख करके आ गया, “अब नह� करनी।” पर जब तक कर रहा था, ब�त अ�ा कम�चारी था। ये थोड़े ही है �क वहाँ लगे �ए हो, लगे �ए हो, एक सेमे�टर , �सरा सेमे�टर �घसट रहे हो। �या� पैसा ख़राब कर रहे हो, समय भी ख़राब कर रहे हो? �कसी एक �े� म� जाओ जहाँ �ेम से पढ़ सको, काम कर सको और �फर वहाँ पूरी साम�य� से जुटो। अ�या�म इस�लए नह� होता �क तु�हारे ग़लत �नण�य के भी सही प�रणाम ला दे। लोगा� क� अकसर यही उ�मीद होती है �क 'काम तो हम सारे ही ग़लत कर रहे ह�, राम तू इसका अंजाम सही दे दे!' एेसा नह� हो सकता। ग़लत काम का सही अंजाम राम भी नह� द�गे तुमको। अ�या�म इस�लए होता है ता�क तुम अपने ग़लत काम ही छोड़ दो। अ�या�म इस�लए नह� है �क ग़लत �नण�य का अ�ा प�रणाम आ जाए, अ�या�म इस�लए है ता�क तुम सही �नण�य कर सको। अंतर समझो।
�कतने सेमे�टर क� कर ली पढ़ाइ�? : सर, छठे सेमे�टर म� �ँ। : अरे यार! या तो अब दम लगा दो और पार कर दो, या �फर सीधे ड� ॉप आउट हो जाओ, और कहो �क “ये नह�, ये पढ़ना है। और अब जो पढू ँ गा, उसे �दल से पढू ँगा।” या ये कह दो, “पढ़ना ही नह� है।” वो भी कोइ� अ�नवाय�ता थोड़े ही है �क पढ़ना ज़�री है, �क �ेजुएशन (�नातक) ज़�री है; मत करो। सब रा�ते खुले ह�। पर जो करो, ज़रा होश और इ�मानदारी से करो। : मेरी अपने मन को देखने क� ���या सही है या नह�, इसका पता कैसे चलेगा? : देखना स�चा है �क नह�, उसका �माण कम� होता है। झूठ को देखा या नह� देखा, ये इससे सा�बत होगा �क झूठ जल गया या नह� जला। देखने वाली आँख आग क� होती है, अगर उसने सचमुच झूठ को देखा है तो झूठ भ�म हो जाएगा। झूठ भ�म �आ �क नह�? ये नह� हो सकता �क तुम झूठ को देख रहे हो दो साल से और झूठ अभी भी क़ायम है। और कह रहे हो, “पता तो मुझे प�का है, म� झूठ का ��ा �ँ, ब��क सा�ी �ँ।” अगर देखा होता सही म� तो �दखने वाला झूठ जल गया होता। तु�हारे अवलोकन म� �कतना खरापन है, इसका �माण तु�हारा कम� ही होगा। ब�त लोग आते ह�, एेसी ही बात कर�गे �क, "नह�, मुझे पता तो सब कुछ है, पर म� कर कुछ नह� पाता।" तु�ह� कुछ नह� पता है। अगर तु�ह� कुछ भी पता होता, तो साथ�क कम� हो गया होता। और ये ब�ता� का कहना है, "नह�, म� जानता तो �ँ �क म� आलसी �ँ और मुझे साफ़ �दख रहा है �क आलस कहाँ से आता है, पर म� आलस छोड़ नह� पाता। नह�, मुझे पता तो है �क म� कुसंग�त म� रहता �ँ, पर कुसंग�त छोड़ नह� पाता।" तु�ह� अगर वाक़इ� पता होता, तो पता होना और छू टना एकसाथ होते, एकदम एकसाथ। अगर नह� छोड़ पा रहे हो, तो माने अभी तु�ह� कुछ पता ही नह� है। झूठ नह� जल रहा माने झूठ को अभी देखा ही नह�। ग़ौर से देखो, और देखो साफ़-साफ़।
This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.