लव जिहाद ... एक चिड़िया (Love Jihad ... Aik Chidiya) 9386276550, 9789386276551

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काशक गु लीबाबा प ल शग हाउस ( ा.) ल मटे ड, पंजीकृत कायालय: 2525/193, थम तल, कार नगर-ए नगर, द ली-110035, (क हैया नगर मे ो से ओ ड बस टड क तरफ) रभाष: 09350849407, 09312235086 शाखा कायालय: 1A/2A, 20, ह र सदन, अंसारी रोड, द रयागंज, नई द ली-110002, रभाष: 23289034 के साथ व सनीय

व था के अंतगत का शत

पहला सं करण : 2018 ISBN : 978-93-86276-55-1 सवा धकार सुर



 इस पु तक म वचार एवं मंत लेखक क क पना पर आधा रत है एवं पूणतया का प नक है। इसका कसी भी जी वत अथवा मृत से कोई भी संबंध नह है। इसम व णत लेख , त य और कथनोपकथन एवं इ तेमाल कये गये ोत क ामा णकता के लए लेखक ज मेदार है और इस पु तक के सवा धकार (कॉपीराइट) एक मा लेखक के पास ह, इस पु तक म योग कए गए च तथा उनके योग हेतु ा त क गई अनुम त के लए लेखक उ रदायी है। काशक कसी भी प म इसके लए उ रदायी नह होगा। काशक और लेखक क ल खत अनुम त के बना इस पु तक को पूरी तरह अथवा आं शक तौर पर या कसी भी अंश को छाया त, रकॉ डग अथवा इले ॉ नक अथवा ान के कसी भी सं ह या पुनः योग क कसी भी णाली ारा े षत, तुत अथवा पुन पा दत न कया जाए। आवरण स जा: गु लीबाबा प ल शग हाउस ाइवेट ल मटे ड, नई द ली

पूजनीय अंकल जी ‘ ी धी भाई भावा’ व माता- पता के आशीवाद से जगत्-जननी जगद बा माँ कालूधर के चरण म सम पत

साथ-ही-साथ उन सभी े मय को सम पत ज ह ने धम, राजनी त, जात-पाँत और समाज से ऊपर उठकर अपने ेम को अमर बनाया।

अनु म समपण तावना काशक य शुभकां ा भरे दो श द अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ

याय-1 याय-2 याय-3 याय-4 याय-5 याय-6 याय-7 याय-8 याय-9 याय-10 याय-11 याय-12 याय-13 याय-14 याय-15 याय-16 याय-17 याय-18

अ अ अ अ अ अ अ अ

याय-19 याय-20 याय-21 याय-22 याय-23 याय-24 याय-25 याय-26

भाग-1

भाग-2

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याय-27 याय-28 याय-29 याय-30 याय-31

अ याय-32 अ याय-33 अ याय-34 अ याय-35 अ याय-36 अ याय-37 अ याय-38 अ याय-39 अ याय-40 अ याय-41 अ याय-42 अ याय-43 अ याय-44 अ याय-45 अ याय-46 अ याय-47 अ याय-48 अ याय-49 अ याय-50 अ याय-51 अ याय-52 अ याय-53 अ याय-54 अ याय-55 अ याय-56 अ याय-57 आभार

भाग-3

तावना आज के आधु नक दौर म जब क एक ओर तो मानव चं मा, मंगल और अ य ह पर अपनी नया बसाने क सोच रहा है, वह सरी ओर इसी पृ वी पर यार क नया बसाने वाले मासूम जवाँ दल क पाक मोह बत को समाज वीकार तक नह करता है। हमारे समाज के क थत ठे केदार आज भी अपनी द कयानूसी सोच का पुराना च मा पहनकर इन ेम कहा नय म अपना अलग ही मकसद और न हत वाथ ढूँ ढ़ते रहते ह। ऐसे ही दो चेहर वाले कुछ लोग ने रंग तक को धम से जोड़ दया है, हरा रंग एक धम का तो गे आ रंग सरे धम का, लानत है ऐसी घ टया सोच पर। यह हमारे समाज का भा य है क आजाद के 70 साल के बाद भी हम लोग अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, जात-पाँत और गे आ-हरा जैसे नरथक मसल म उलझे ए ह। इ तहास सा ी है क हम साथ-साथ रहने वाले लोग ईद, दवाली, समस, गु पव हमेशा से साथ मनाते आए ह , ले कन समाज के चंद मौका-पर त मतलबी लोग ने मोह बत क इस पाक धरती पर नफरत के ऐसे बीज बो दए ह, जो अब यार क राह पर चलने वाले मासूम दल के लए कँट ली, जहरीली और जानलेवा झा ड़याँ बन चुके ह। हमारी कहानी ‘लव जहाद …एक च ड़या’ के नायक-ना यका भी ेम क पावन राह पर चलते ए ऐसी ही अनेक हसा, मनी, कट् टरता एवं बदले क भावना से ब- होते ह। ऐसी ही अनेक ा रय और चुनौ तय के बीच हमारी कहानी आगे बढ़ती है। कहानी म ऐसे कई खतरनाक मोड़ ह, जहाँ प ँचकर पाठकगण भी सोचगे क आगे या होने वाला है? ‘लव जहाद …एक च ड़या’ म मने पाक जा मोह बत को इंसा नयत से लबरेज अपने अलग अथ म बताने क एक छोट -सी को शश क है। मेरा यह नज रया कतना साथक रहा और म अपनी बात आप सब पाठकवृंद तक प ँचाने के यास म कतना सफल रहा, इसका हर फैसला म अपने सुधी पाठकवृंद पर छोड़ता ँ। सादर तुत। शुभे छु

राम ‘पुजारी’ E-mail : [email protected] Facebook : rampujari Nojoto : rampujari

काशक य तुत उप यास ‘लव जहाद …एक च ड़या’ हमारे समाज के उन गुमराह लोग का च ण करती है, जो हमारे हमसाया मु क के लीडर के हाथ क कठपुतली बनकर हमारे जान से यादा यारे ह तान म उनके नापाक इराद को हक कत म बदलने क को शश म लगे ए ह। उप यास का शीषक अं ेजी भाषा के श द ‘लव’ और अरबी भाषा के श द ‘जुहद’ से मलकर बना है। लव का अथ है— ेम और जुहद का शा दक अथ है— को शश करना। इन दो अलग-अलग भाषा के श द को जोड़कर, जो एक नया श द बना दया गया है, वह है—‘लव जहाद’ जो नया क कसी भी ड शनरी म नह होगा। इसके अलावा शीषक म कही गई ‘एक च ड़या’ से ता पय उस घृ णत सोच से है जो लड़क को एक च ड़या समझती है, जस तरह जंगल म शकारी जाल बछाता है, चड़ीमार दाना डालकर इंतजार करता है— च ड़या के जाल म फँसने का, उसी तरह उप यास म कुछ गुमराह लोग अपनी मजबू रय के चलते, सरे मु क के लोग के कहने पर ‘दाना’ डालकर ‘ च ड़या’ को फँसाने क जुगत म लगे रहते ह। यह उप यास कसी भी तरह के ‘लव जहाद’ का समथन नह करता है। आए दन यूज चैनल और अखबार म इस तरह क घटना के बारे म खबर पढ़ने-सुनने को मलती रहत ह। खबर म कतनी स चाई होती है, इसका नणय वयं पाठक अपने ववेक से कर तो बेहतर होगा। अभ क वतं ता का ह तान म ज रत से यादा योग होने लगा है। शायद इसी लए इस श द का एक ‘अलग’ ही अथ सफ दे खने-सुनने और पढ़ने को मलता रहा है, जब क वतं ह तान म यार करने वाले युवा के लए धम, जा त, सामा जक व आ थक ऊँच-नीच का कोई अथ नह है। हमारा युवा सफ यार चाहता है, अमन चाहता है, आजाद चाहता है और सभी क खुशहाली चाहता है। कहानी म औरत क दशा, मान-स मान और इ जत को समाज कस नज रए से दे खता है—इस पर वचार कया गया है। लेखक पाठक से पूछता है क— — या हमारी बे टय क इ जत का पैमाना इस बात पर नभर होगा क वह लड़क कस जा त, धम और सं दाय क है! — या हमारा वतन, हमारा समाज हर ी म माँ, बहन और बेट का प नह दे खता? और अगर दे खता है, तो य समाज के पछड़े और कमजोर वग क दो लड़ कय को अभी तक इंसाफ नह मला। एक तरफ ‘दा मनी’, जो क बड़े शहर क लड़क थी, के लए पूरा दे श एक हो गया था, तो सरी तरफ गाँव क उन दो नाबा लग लड़ कय का रेप और ह या करके पेड़ पर लटकाने वाले अभी तक खुली हवा म साँस ले रहे ह। इस उप यास म एक ‘ ह ’ लड़क और ‘मु लम’ लड़के क ेम कहानी के ज रए

समाज म ा त उ ह धा मक और सामा जक वसंग तय को उजागर करने क को शश क गई है। कानून व था से लेकर याय के मं दर तक म होने वाली उन सौदे बा जय पर लेखक ने उँगली उठाई है जनक वजह से स चाई क आवाज दबकर रह जाती है और ‘स यमेव जयते’ का उद्घोष वाथ, वासना और लालच के दाम खरीद लया जाता है और जब तक ‘स य’ का यह धारदार ‘सुदशन च ’ कसी श शाली और इंसा नयत के रखवाले के हाथ म प ँचता है तब तक ब त दे र हो चुक होती है। मी डया ारा च लत कए गए श द ‘लव जहाद’ को नए अथ दे ती लेखक क नई रचना म कतनी स चाई है, इसका नणय अब पाठकगण ही कर तो अ छा होगा। अंत म, ‘सव भव तु सु खनः, सव स तु नरामया । सव भ ा ण प य तु, मा क ःख भा भवेत् ।। काशक

शुभकां ा भरे दो श द आ द से अंत तक सृ क रचना क मूल सू धार ‘मातृश ’ को आधु नक काल म कैसे-कैसे वीभ स घटना म से गुजरना पड़ रहा है, यह कसी से छपा नह है। चौरासी लाख यो नय म अपने आप को सव े और स य मानने वाली मानव जा त कतनी रा सी होती जा रही है! कृ त क संरचना को व त करने पर तुला आ मानव यह भूल चुका है क उसका वयं का अ त व भी मातृश के साथ ही जुड़ा आ है। जननी के बना तो ज म दे ने क या ही समा त हो जाएगी, फर सृ क तो क पना भी नह क जा सकती है। या भौ तक जगत के इस पु ष धान समाज म नारी क अ मता क कोई क मत नह है? इन सम या के समाधान खोजने के लए वतमान सा ह य और सा ह यकार क लेखनी पर ज मेदारी बढ़ती जा रही है और इस ज मेदारी का नवाह करना उनका परम क ह। कुछ लेखक नारी-स दय को भोग- वलास क व तु के प म तुत कर रहे ह, तो कुछ यथाथ से -ब- करा रहे ह। “अधूरा इंसाफ …एक और दा मनी” शीषक वाला, घटना का सजीव च ण करता, एक वैदेही क कहानी कहने वाला उप यास लखने वाले सु स लेखक ी राम ‘पुजारी’ का सरा सफलतम यास “लव जहाद …एक च ड़या” नामक कृ त के प म हमारे सामने है। लेखक ने ‘लव जहाद …एक च ड़या’ के प म तुत इस कृ त के मा यम से इस स य समाज क वकृत होती वीभ स मान सकता का यथाथ च ण करने का यास कया है। लेखक के संवाद म क शश और स चाई क झलक दखाई दे ती है तथा म हला पा के भोलेपन और समपण का सजीव च ण तुत कया गया है। ी राम ‘पुजारी’ क लेखनी नारी व क पीड़ा तथा वेदना का सा ात दशन कराती है, जो उप यास क वधा को सट क प म मा णत करने वाली साम यक एवं वलंत घटना पर आधा रत है। “अधूरा इंसाफ …एक और दा मनी” नामक उप यास के मा यम से अन गनत पाठक को अपनी कलम के साथ जोड़ने वाले ी राम ‘पुजारी’ अपनी अलग पहचान बनाते जा रहे ह, जनक रचनाएँ आधी नया के शोषण तथा दोहन पर आधा रत घटना को अपने आप म संजोए ए ह। ‘ नभया कांड’ के ऊपर लखा गया उप यास पाठक को बेहद पसंद आया और अब ‘लव जहाद …एक च ड़या’ क कहानी इससे भी यादा पाठक को अपने साथ जोड़ेगी य क इस उप यास क वषयव तु म भोली-भाली ब चय क बेचारगी का नाजायज फायदा उठाने वाले करदार कस तरह जीवन बबाद करते ह, उसका सजीव च ण कया गया है। यह उप यास एक आइने क तरह समाज क स ची त वीर तुत करता है। लेखक ारा ‘लव जहाद …एक च ड़या’ म घटना को जीवंत बनाकर लखने क को शश क गई है, घटना थल का ज करके पा के नाम तथा प र थ तय को यथाथ से जोड़कर स ची घटना के प म द शत करने का यास कया गया है। उप यास के आरंभ से लेकर अंत तक पाठक को बंधे रहने हेतु मजबूर करने क लेखक क इ छा सफल होती दखाई दे रही है, य क शीषक से ही आधा उप यास पाठक के

जेहन म उतर जाता है। समाचार प , जन ु तय तथा संचार के व भ मा यम से हर रोज कह न कह इस तरह क घटना के बारे म सुनना एक आम बात हो गई है। लेखक के वचार का प नक कम सारग भत यादा ह, ऐसे लेखक बधाई के पा ह, ज ह ने समाज के एक अनछु ए पहलू को पाठक के सामने बड़े मा मक ढं ग से रखा है। ई र लेखक को और श तथा बु दे ता क सृ के नयम का उ चत अनुपालन हो सके और कृ त के मूल व प म अवत रत नारी का शोषण क सके। हमारी यही कामना है क ऐसी ही घटना पर आधा रत कथानक को लेकर लेखक क लेखनी इसी तरह अनवरत लखती जाए और नये-नये आयाम था पत करे। ‘गु लीबाबा प ल शग हाउस’ भी समाज हत को यान म रखते ए इस तरह क रचना को का शत करने म अपनी भू मका का नवाह बड़ी त परता एवं लगन से करते ए नरंतर लोक यता ा त कर रहा है। बधाई के पा ह ‘गु लीबाबा प ल शग हाउस’ के नदे शक ी दनेश वमा एवं प ल शग हाउस क पूरी ट म, जो समाज क याण क भावना से ओत- ोत रचना को का शत करने के लए नरंतर उ साहपूवक कायरत रहते ह। भु इनके मशन को सफल करे, ता क ये समाज को नई दशा और दशा दान करने के लए नत नए आयाम था पत करने हेतु अ णी भू मका नभाने म और अ धक स म बन। ह रत मंगलकामनाय ह रत ऋ ष वजयपाल बघेल (Green Man)

भू मका

मई 2014 अंधेरा होने को था, क मीर क मनोरम घाट म एक अंजान जगह पर कुछ गुमराह लोग एक बंद कमरे म द वार से पीठ लगाए कसी मु े पर चचा कर रहे थे। घाट का ये ह सा भारत म था, या पा क तान म, यह कहना मु कल था—अगर सफ जमीन के टु कड़े क बात कर, तो नःसंदेह यह बंद कमरा कभी भारत क जम पर था, ले कन इंसान और वचार क ओर गौर कर, तो अब यह कुछ और ही था। भारत म हर रा य के हर छोटे -बड़े शहर म इस तरह के ह से मौजूद ह और समय-समय पर ये अपनी मौजूदगी का एहसास भी कराते रहते ह। कमरे म छत से लटकता एक ब ब म म रोशनी कए ए था, अचानक ही फुसफुसाहट तेज आवाज म बदल ग , 30-35 साल का एक तंद त आदमी अपने चोगे क बाह ऊपर करता आ बोला, “जनाब! आप नाहक ही मुझ पर गु सा हो रहे ह। आपने जो कुछ भी पछली बार बताया था, उस पर अमल हो रहा है। लड़के अपने-अपने काम पर लगा दए गए ह।” तभी बाहर से कसी ने झाँककर दरवाजे पर द तक द । एक आदमी ने उठकर दरवाजे म बनी एक झर म से झाँककर बाहर दे खा। सब कुछ ठ क-ठाक है—ये जानकर उसने दरवाजा खोला। दरवाजा खोलने से पहले उसने अपना चेहरा पूरी तरह से ढक लया था, और कंबल म छु पाई ई मशीनगन को कसकर पकड़ लया था। दरवाजे पर द तक दे ने वाले आदमी ने भी अपना चेहरा कंबल से ढका आ था, उसके हाथ म भी मशीनगन थी। आगंतुक ने स त आवाज म पूछा, “इतनी आवाज य आ रह ह? मालूम तो है न क आस-पास के लोग को पहले से ही हम पर शक है।” “कुछ नह , बस अपना एक साथी कुछ यादा ही परेशान हो रहा है।” दरवाजा खोलने वाले आदमी ने थोड़ी नरमी से जवाब दया। “समझा दो उसको, ऐसे नह चलेगा।” “ठ क है, समझा ँ गा। तुम अपना काम करो।”

“भाईजान, अपना काम ही तो कर रहा ँ।” थानीय भाषा म कुछ बड़बड़ाता आ वह अंधेरे म कह छु प गया। रात गहरी हो चुक थी, जसक वजह से ठं ड भी बढ़ गई थी। कुछ लोग ने मलकर कहवे का इंतजाम कर लया था। कहवा पीते ए बातचीत फर शु हो गई। “लड़के अपना काम कर रहे ह।” “ या खाक काम कर रहे ह! हमारा एक लड़का तो मारा भी गया…” चीफ नाराजगी जताता आ बोला। “कौन?” उस काले चोगे वाले आदमी ने हैरानी से पूछा। “ यादा नौटं क न करो तो तु हारे लए बेहतर होगा। और, ये मत समझना क हम इन तीन-तीन महीन क मी टग के भरोसे पर बैठे ह। तु हारे अलावा यहाँ पर हमारे और भी कई मुख बर ह, यहाँ क मालूमात करने के लए— ज ह भी नह जानते तुम” “…” काले चोगे वाला आदमी खामोश ही रहा। इस आदमी के मुख से नकले ए ‘कौन’ श द से चीफ और भी यादा गु सा हो गया था। चीफ बोला, “कौन” पूछ रहे थे न तुम। तो सुनो, हम फरोज क बात कर रहे थे।” “ फरोज!” वह काले चोगे वाला बस इतना ही बोल पाया। दरअसल वह आदमी इस व डर से अंदर तक काँप गया था। वह चीफ के उन मुख बर के बारे म सोच रहा था, ज ह ने ये खबर चीफ तक प ँचाई थी। वह आदमी अ छ तरह से जानता था क जो लोग चीफ तक खबर प ँचाते ह, वे ही लोग चीफ के इशारे पर उसका काम तमाम भी कर सकते ह। वह आदमी अपने आप को सँभालते ए भराई ई आवाज म बोला, “जी, म इस मसले पर आपसे बात करने ही वाला था।” “मगर क तो नह न। हम दमाग से पैदल समझ रखा है या? उस लड़के ने इतनी मेहनत से दाना डाला, जाल बछाया और एक च ड़या फँस भी गई थी। वह अपने मकसद म करीब-करीब कामयाब हो ही गया था। फरोज ने उस लड़क को हरा सूट भी पहना दया था…” “जी, चीफ।” “ या जी? अगर तुम इस मामले को ठ क से सँभालते, तो न तो फरोज उन लोग के हाथ मारा जाता और न ही वह च ड़या हमारे हाथ से नकल पाती।” “चीफ, फरोज के लए तो मुझे भी बेहद अफसोस है, ले कन आप फ न कर, हमारा एक और लड़का अपने मकसद म कामयाब होने वाला है।” “ सफ एक ही!” “नह -नह , चीफ, मेरा कहने का मतलब है क एक लड़का च ड़या को दाना डाल चुका है और ‘ च ड़या’ हरा सूट भी पहनने को तैयार है और इसके अलावा भी कई लड़के दाना डालकर बैठे ह।” “कुछ यौरा है…उन लड़क का, तु हारे पास, या फर सफ बात ही कर रहे हो?” “जनाब, मेरे पास पूरा यौरा है। ये ली जए।” काले चोगे वाले ने एक कागज चीफ क ओर बढ़ा दया। कागज को दे खते ए वह गु से से बोला, “और बाक का यौरा कहाँ है?”

“दे ता ँ न, जनाब।” काले चोगे वाले ने अपने क मीरी चोगे म से एक और कागज नकालकर चीफ के हाथ म थमा दया। कागज नकालते व कागज का एक टु कड़ा वह लकड़ी के बने ए फश पर गर गया। जस पर कसी का भी यान नह गया। चीफ थानीय भाषा म गाली बकते ए बोला, “तुम कभी भी नह सुधरेगा।” फर चीफ कुछ कदम आगे बढ़ा और ब ब के नीचे जाकर कागज पर दए गए नाम और उनके सामने लखी उ को दे खने लगा। उसक गु साई ई श ल पर एक मु कुराहट दखाई दे ने लगी। वह बोला, “उसका या आ?” “ कस का?” “वो नया लड़का जो कॉलेज म पढ़ता है। उसने भी कुछ ‘दाना-वाना’ डाला आ था।” “जी हाँ, जनाब।” “फोन करके पता करो। यूँ ही ढलाई बरतोगे तो च ड़या दाना भी नह चुगेगी, और हाथ भी नह आएगी। …और हमारा मकसद भी पूरा नह होगा।” ‘चीफ’ नाम के उस आदमी ने कमरे म बैठे ए सभी आद मय क ओर मुखा तब हो कर कहा, “तुम लोग ने एक मैगजीन के आँकड़े नह दे खे या? हमारे यहाँ अब इनक तादाद कतनी कम हो गई है! और तुम हो क हाथ आई च ड़या को नह पकड़ सकते। अरे, ‘ च ड़या’ को ‘हरा सूट‘ पहनाना है क नह ? कतनी रकम जाया हो रही है इस मकसद म, जानते भी हो? हमारे ऊपर भी कई लोग ह। हम भी जवाब दे ना होता है। और तुम हो क बस, 50 हजार पए के अपने कमीशन के च कर म कुछ-न-कुछ बक दे ते हो, करते कुछ भी नह !” चीफ क झाड़ सुनकर काले चोगे वाला आदमी दाएँ-बाएँ दे खने लगा, वह चीफ से नजर नह मला पा रहा था। छत, छत से लटकते ए ब ब और आस-पास क द वार से फसलती ई उसक नजर जब शम से नीचे क ओर झुक , तो नजर उसी कागज के टु कड़े पर पड़ । वह कागज शायद कसी मैगजीन का था, झुककर उस आदमी ने वह टु कड़ा उठा लया, जसे चीफ ने अपने हाथ म ले लया। चीफ ने दे खा क उस कागज पर एक वह एक रेट ल ट1 थी। स ख लड़क ₹7,00,000 पंजाबी ह लड़क ₹6,00,000 गुजराती ा ण लड़क ₹6,00,000 ा ण लड़क ₹5,00,000 य लड़क ₹4,50,000 क छ क गुजराती लड़क ₹3,00,000 जैन/मारवाड़ी लड़क ₹3,00,000 पछड़ी जा त क /वनवासी ₹2,00,000 बौ लड़क ₹1,50,000 चीफ ने सभी पर नजर दौड़ा और कागज का टु कड़ा ऊपर उठाते ए नाराजगी से

बोला, “लो दे खो, उ ह हमारी हर खबर क जानकारी है। और तुम लोग, हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहते हो।” सामने खड़े एक उ दराज आदमी ने जेब से मोबाइल नकाला और एक नंबर मलाया। वह चीफ को दखाना चाहता था क म अब ब कुल ढलाई नह बरतूँगा। सरी ओर घंट बज रही थी। चीफ ने सभी को इशारा कया। सभी अपनी-अपनी जगह से उठ खड़े ए। इतने म सरी ओर कसी ने कॉल उठा ली। वह आदमी अपनी भराई ए आवाज म बोला, “हैलो…।” चीफ और वह आदमी दोन कु टलता से मु कुरा रहे थे। 1. ोत : http://www.hvk.org/2012/0912/112.html

भाग-1 द ली, 2013

1

जुलाई 2013, द ली सो नया को लगा क उसने सामने खड़े लड़के को पहले भी कह दे खा है। सो नया कॉलेज क गैलरी के मोड़ पर खड़े उस लड़के को दे ख रही थी, जो क सफेद कुता और आसमानी रंग क ज स पहने ए अपने दो त से बात कर रहा था। गौरा रंग, ऊँचा कद, माथे पर बार-बार आते बाल, ज ह वह बार-बार सँवार रहा था। ह क दाढ़ और आँख पर बड़े े म वाला एक च मा। च मा नजर का था या फसी, लड़के को दे ख कर पता नह लग पा रहा था। कंधे पर लटकता आ एक बैग जो क घुटने से नीचे तक लटका आ था। आते-जाते व ाथ सभी उसे जानते थे और उसे सा हल भाई कहते ए ‘हैलो’ बोल रहे थे। सा हल कॉलेज के अं तम साल म था और सो नया का ये पहला साल था। वह द ली म नई थी। कॉलेज के ग स हॉ टल म जगह नह मली, इसी लए सो नया के प रवार वाल ने यमुनापार म एक ाइवेट ग स हॉ टल म सो नया के रहने का इंतजाम कया था। सो नया अब भी, सा हल को दे ख कर, उसे पहचानने क को शश म लगी थी। सा हल के दो त ने, सा हल से पूछा, “सा हल भाई, या आप इस लड़क को जानते ह!” सा हल ने मुड़कर दे खना चाहा, ले कन दो त ने मना कर दया। सा हल के

अलावा सभी सो नया को दे खने लगे, पहचानने क को शश करने लगे। सागर ने अपनी आँख से सो नया क तरफ इशारा करते ए पूछा, “यार। ये य तुझे इतने यान से दे ख रही है? तेरी आज इससे कुछ बात ई है?” “नह तो।” बना दे खे ही सा हल ने जवाब दया। “इससे न ई हो तो, कसी और लड़क से ई हो, जरा यान कर।” सा हल बोला, “नह सागर। आज या, कल भी नह , परस भी नह । इस पूरे स ताह कसी भी लड़क से कोई बात नह ई।” “तो फर ये ऐसे य दे ख रही है! भाई यहाँ से नकल लो। ‘दा मनी’ के केस के बाद से पु लस, कॉलेज टाफ, और प लक सभी चौक े हो गए ह।” “तो होने दे । हम या करना है।” सा हल बे फ से बोला। इस बे फ पर सागर ने जवाब दया, “भाई साहब जी! अगर इस लड़क ने गलती से ही सही, कह शकायत कर द तो…।” “तो…!” सा हल तपाक से बोला। “तो भाई, सीधे अंदर। पहले तुड़ाई, फर सुनवाई।” सो नया को भी अहसास हो गया था क ये सारे लड़के उसी के बारे म बात कर रहे ह। सारे लड़के इधर-उधर हो गए। सो नया अपना पट् टा संभालते ए अपनी लास म चली गई। सो नया को द ली म आए कुछ ही समय आ था। वह यू.पी. के एक गाँव सलामतगंज से इसी साल द ली म पढ़ाई करने के लए आई थी। इसके लए सो नया को अपने घरवाल से बड़ी म त करनी पड़ी थ । भले ही सो नया यू.पी. के एक गाँव से आई थी पर सो नया दे हाती टाइप क ब कुल भी नह थी। सो नया एक खुले वचार क लड़क थी जसने अपने पताजी मलखान सह के मना करने पर भी अपनी पढ़ाई जारी रखी थी। कॉलेज क पढ़ाई के लए सो नया का द ली आना मुम कन न हो पाता अगर उसक माँ र जो का साथ न होता। सो नया का भाई अंकुर सह जसे सब ‘भैया जी’ कह कर बुलाते थे, सो नया को ब त यार करता था। मगर वह भी सो नया के द ली जाने के स त खलाफ था। अंकुर तो इस बात पर अपनी माँ र जो से भी लड़ पड़ा था, फर मलखान सह ने अंकुर को समझाया क द ली म हमारी पहचान के लोग ह, ब टया को कोई परेशानी नह होगी। तब कह जा कर सो नया का द ली आना मुम कन हो पाया। सो नया को इस बात का पता भी नह था क कॉलेज से लेकर उसके हॉ टल तक, सभी कुछ मलखान सह और अंकुर सह क दे ख-रेख म ही हो रहा है। लड़क को पढ़ाना- लखाना य ज री है—ये बात बाप-बेटा दोन क समझ से परे थी। फर सो नया क ज को यान म रखते ए, दोन ने अपनी समझ म सो नया को द ली घूमने- फरने के लए भेजा था, न क पढ़ाई करने के लए। सो नया क शाद के लए लड़के क तलाश शु हो चुक थी। सो नया को इन सभी बात का अहसास था, फर भी वह द ली आ गई। दो दन पहले ही उसक माँ हॉ टल, कॉलेज और बाक चीज का सारा बंदोब त करके, अंकुर के साथ गाँव लौट चुक थी।

या करना है, या नह । लड़क से या बात करनी है, या नह । कपड़ से लेकर, आने-जाने के तौर-तरीक तक क ढे र हदायत दे ने के बाद ही र जो, सो नया का माथा चूमते ए, रेलवे टे शन जाने के लए गाड़ी म बैठ पाई थी। र जो क चता का पु ता कारण भी था— द ली म कुछ समय पहले आ दा मनी कांड, जसक लपट क त पश म पूरा दे श झुलस गया था। ऐसे माहौल म अपनी इकलौती लड़क को द ली म अकेले छोड़ना एक माँ के लए ब त मु कल बात थी। कॉलेज से हॉ टल और हॉ टल से कॉलेज पछले कई दन से ऐसा ही चल रहा था। हॉ टल के बाहर से र शा, र शे से मै ो और मै ो से फर र शा करके सीधे कॉलेज जाना, सो नया का ये रोज का काम था। कभी-कभी सो नया के साथ उसक दो त शबनम होती थी। शबनम सो नया क लास म पढ़ती थी और हॉ टल के पास ही रहती थी। शबनम क आ थक थ त यादा अ छ नह थी। शबनम भी द ली के बाहर क थी और पढ़ने के लए अपने मामा के घर पर रहती थी। अपनी हर छोट -बड़ी ज रत के लए शबनम अपने मामा पर नभर थी। और, इसी के चलते वह एक दबाव म रहती थी, सो नया कुछ ही मुलाकात म ये समझ गई थी। सो नया शबनम क हर तरह से मदद करने क को शश म रहती थी। सो नया को द ली आकर ही पता चला क शबनम और उसका गाँव आस-पास ही है। बहरहाल दोन कम समय म ही दो त बन गई थ और धीरे-धीरे उनक झझक भी जाती रही, उनके बीच कसी भी तरह क कोई बात छपी नह रही थी। एक दन, मै ो से नकल कर जब दोन ने घर के लए र शा लया, तब सो नया ने सुबह कॉलेज क गैलरी वाली बात शबनम को बताई। इस बात पर शबनम मु कुराने लगी, शबनम कुछ कहना चाह रही थी क र शा वाला भैया क गया। अपनी बात म मशगूल दोन का यान सड़क पर गया, सड़क पर बाइक पर सवार एक लड़का, एक लड़क पर कमट पास कर रहा था और लड़क तेज कदम से चली जा रही थी। आसपास के लोग को ऐसी घटना को नजरअंदाज करने क आदत-सी हो गई थी। लड़क चलते-चलते एक औरत से टकराई, औरत एक पल म सारी बात समझ गई। सर से लेकर पाँव तक काला बुका पहने वह औरत बाइक वाले लड़के के पास गई और थ पड़ दखाते ए बोली, “कुछ तो शम करो। तु हारे जैस के कारण ही हम और हमारी लड़ कय को श मदगी का सामना करना पड़ता है।” लड़का शायद औरत को जानता था। वह कुछ न बोला। औरत उसे डाँटते ए बोली, “जब तेरी बहन को कोई और छे ड़ेगा…तो कैसा लगेगा?” आस-पास भीड़ जमा होने लगी। द ली भी अजीब है, होने को बड़े-से-बड़ा कांड हो जाए तो उसे नजरअंदाज कर दया जाता है, और सरी तरफ कोई बहसबाजी हो जाए तो हर आदमी अपना काम छोड़कर तमाशाई बन जाता है। ऐसे ही तमाशाइय को दे खकर बाइक वाला लड़का वहाँ से नौ-दो- यारह हो गया। बुक वाली औरत ने उस ज स-टॉप वाली लड़क को समझाना चाहा, पर वह क नह , शायद वह अपना तमाशा नह बनने दे ना चाहती थी। वह भी, एक पल म भीड़ म गायब हो गई। वह औरत वह खड़े लोग से बात करने लगी। भीड़ कम ई तो र शा पर बैठ

दोन आगे बढ़ । बुक वाली औरत आजकल के पहनावे और लड़के-लड़ कय के मेलजोल पर अपनी नसीहत दे रही थी ज ह शबनम और सो नया दोन ने भी सुना। कुछ दे र बाद सो नया अपने हॉ टल म चली गई और शबनम अपने मामा के घर। रात भर, सो नया के दमाग म कभी कॉलेज क गैलरी वाली बात, तो कभी लड़क का पीछा करते ए लड़के क बात घूमती रही। सो नया को द ली म लड़ कयाँ कतनी असुर त ह—इस बात का अहसास हो चुका था। इस तरह क घटना से नपटने के लए या- या करना चा हए, कैसे करना चा हए यही सब सोचते ए सो नया क आँख लग गई।

2

अगले दन, हॉ टल के बाहर से सो नया को र शा मल गया, और थोड़ी री पर इंतजार कर रही शबनम भी उसी र शे म बैठ गई। शबनम आज एक खास अंदाज म अपने सर और गदन को चु ी से ढके ई थी। सो नया ने ऐसा करने का कारण पूछा तो शबनम ने कल उस बुक वाली औरत क द ई नसीहत याद करा द । र शे म बैठे-बैठे ही शबनम ने सो नया को भी ऐसे ही सर ढकने का तरीका बता दया। और ऐसा करने क वजह भी। सो नया कल से छे ड़खानी वाली घटना को लेकर पहले ही परेशान थी, लहाजा सो नया ने सारी नसीहत बना कसी के मान ल । शबनम ने कल क अधूरी रह गई बात फर से शु क , सो नया को छे ड़ते ए शबनम ने पूछा, “ या अ छा लग गया, उसम।” “कुछ नह ।” सो नया ने जवाब दया। जब से र शे पर बैठ थी तभी से सो नया इधर-उधर दे ख रही थी। “अरे, कुछ तो होगा। ऐसे ही कोई कसी को नह दे खता।” शबनम ने सो नया को फर छे ड़ा। र शा अब तक मेन रोड तक आ प ँचा था। मेन रोड पर कुछ र जाने पर सो नया एकाएक तेज आवाज म बोली, “श बो, वो दे ख।” “कहाँ? या?” शबनम इधर-उधर दे खने लगी। सो नया ने हाथ से इशारा करके बताया, “वहाँ। वही है, जसक म बात कर रही थी।” “कौन?”

“वह जो बाइक पर है। ज द दे ख न, इधर-उधर कहाँ दे ख रही है।” शबनम ने दे खा, एक लड़का आसमानी रंग क ज स और काला कुता पहने ए बाइक पर बैठा, हे मेट पहन रहा है। सो नया बोली, “अब मुझे परेशान मत करना, मने वह लड़का तुझे दखा दया है।” “अभी कहाँ दे खा। उसका चेहरा तो हे मेट से ढका आ था।” शबनम मु कुराते ए बोली, “आ खर या है उसम, जो तू बार-बार परेशान हो रही है।” “पता नह , मगर मुझे ऐसा लगता है क मने उसे पहले भी कह दे खा है।” सो नया बोली। सो नया थोड़ा परेशान थी। “तो याद कर ना। दमाग पर जोर लगा, याद कर, कहाँ दे खा है? यहाँ द ली म, या यू.पी. म। कॉलेज के अलावा तू द ली म कहाँ-कहाँ गई है।” शबनम बड़े चाव से तहक कात करने लगी। “ द ली म तो…अभी कह नह गई।” “ फर कॉलेज के आस-पास या मै ो े न म।” “शायद े न म, द ली आते ए या कह और…मुझे पता नह !” सो नया सोचते ए बोली। इतनी दे र म र शा, मै ो टे शन तक प ँच गया। हर बार क तरह सो नया ने र शा वाले को ₹30 दे कर फा रग कर दया। सो नया को शबनम क आ थक थ त का याल रहता था। मै ो म बैठने से लेकर लास म प ँचने तक शबनम सो नया को ‘लड़के को कह दे खा है’ इसी बात पर छे ड़ती रही। जब क सो नया लोग क लगातार घूरती ई नजर से परेशान थी। शायद सर को ढकने वाला हजाब इसका कारण था। फर सो नया को उस बुक वाली औरत क बात याद आई, ‘ हजाब पहने ई लड़क को कोई छे ड़ने क ह मत नह करता। और कसी क नजर पर तो औरत का कोई बस नह होता।’ सो नया यू.पी. म पली-बढ़ ज र थी, पर द ली क छे ड़खा नयाँ और कमटबाजी से भली-भाँ त प र चत थी। सो नया के गाँव म ऊँचे तबके के लोग क बा लता थी। पास ही एक ओर पछड़े लोग क ब तयाँ थ तो सरी ओर मुसलमान के गाँव थे। सो नया ने, गाँव म कसी हजाब पहने ई लड़क को छे ड़ने क बात नह सुनी थी।

3

ह का ले चर ख म होते ही, खाली पड़े ग लयार म फर से चहल-पहल शु हो गई। आपस म बातचीत और ोफेसर क नकल करने का दौर शु हो गया। कुछ लड़के-लड़ कयाँ बो रयत र करने के लए कट न और कुछ खेल के मैदान क ओर बढ़ गए। सो नया और शबनम ने कट न का ख कया। एक जगह प ँचकर सो नया क गई। “ या आ?” शबनम ने पूछा। “कुछ नह ।” सो नया ने जवाब दया। “तो फर चल ना।” शबनम ने सो नया के कंधे पर हाथ मारते ए कहा। “चल तो रही ँ।” सो नया ने शबनम के हाथ को पकड़ते ए कहा, जो एक बार फर से कंधे पर पड़ने वाला था। “कहाँ चल रही है? पता नह या आ है तुझ… े !” शबनम बड़बड़ाई। सो नया ने शबनम क ओर दे खा। शबनम को शायद कट न जाने क ज द थी इसी लए वह सो नया के धीरे-धीरे चलने से परेशान हो रही थी। शबनम ने सो नया को जब अपनी ओर दे खते ए पाया तो सो नया को हाथ से आगे बढ़ने का इशारा कया। सो नया शबनम के साथ चलने लगी। कुछ कदम चलने के बाद सो नया बोली, “श बो।” “ ँ।” चलते-चलते शबनम अनमने मन से बोली। “उधर गैलरी म ही वह लड़का दखा था।” हाथ से पीछे क ओर इशारा करते ए सो नया बोली।

‘लड़का’ श द सुनते ही शबनम को मसखरी सूझी। “अ छा तो! तभी आपके कदम वहाँ क गए थे। और आप समझ रही थ क वह लड़का आज भी वह खड़ा होगा, आपके इंतजार म क आप आएँ और उसे दे ख।” ये बोलते ए शबनम क हँसी छू ट गई। गैलरी म सभी उसे दे खने लगे। शबनम सरे ही पल सामा य हो गई। सो नया शबनम क इस बात पर परेशान तो ई पर कुछ बोली नह । कट न म दोन ने एक-एक ेड-पकौड़ा लया और एक कोने म जा कर बैठ ग । शबनम ेड-पकौड़ा खाने म म त थी तभी सामने से सा हल हाथ म को ड क और बगर लए आ गया। पहले उसने इधर-उधर दे खा फर एक सीट पर जा कर बैठ गया। सा हल के बैठते ही कसी ने आवाज लगाई, “इधर, सा हल भाई।” सा हल का नाम सुनते ही शबनम ने आवाज क तरफ दे खा। सो नया भी उसी तरफ दे ख रही थी। सो नया धीरे से बोली, “शबनम! ये ही है वह लड़का।” ेड-पकौड़े का आ खरी टु कड़ा नगलते ए शबनम बोली, “ये तो सा हल है। तेरे हॉ टल के पास ही तो रहता है।” “तू इसे जानती है!” सो नया ने पूछा। “हाँ, सा हल को तो सभी जानते ह। पछले साल, फे ट म इसने गजल गा कर, सभी ोफेसर और टू डट् स का दल जीत लया था।” “ये गाता है!” सो नया ने पूछा। “हाँ, इसी लये तो इसे सब जानते ह। तूने ‘यू-ट् यूब’ पर इसक लप नह दे खी या?” “नह तो।” सो नया ने दो टू क जवाब दया। “तू भी कमाल है! चल आ, तुझे सा हल से मलवाती ँ।” कह कर शबनम ने टशु से अपने ह ठ प छे और सो नया का हाथ पकड़ कर, लगभग ख चते ए उसे सा हल के पास ले गई। सो नया को आते दे ख सा हल के सारे दो त हैरानी से दे खने लगे और एक-एक कर के सब-के-सब इधर-उधर हो गए पर उनक नजर सो नया और सा हल पर ही जमी रह । सा हल अपने दो त को इधर-उधर भागते दे ख कर हैरान हो गया। इससे पहले क सा हल उ ह बुला कर, ऐसे भागने का कारण पूछता, शबनम वहाँ प ँच गई। “सर, ये सो नया है। फ ट ईयर।” शबनम मु कुराते ए बोली। सा हल ने सो नया क तरफ हाथ बढ़ाते ए बोला, “हाय।” “हैलो।” सो नया ने हाय का जवाब हैलो से दया। “तो बताइए, कैसा लगा आपको हमारा ये कॉलेज।” मु कुराते ए सा हल ने पूछा। सो नया चुपचाप खड़ी रही। शबनम अब तक सा हल क साथ वाली चेयर पर बैठ गई थी। उसने सो नया का हाथ ख चा और सा हल के सामने वाली चेयर पर बैठा दया। सा हल ने काउंटर क तरफ इशारा कया और सो नया क ओर ख कर के पूछा, “आपने बताया नह , कैसा लगा हमारा कॉलेज?” “अ छा है।” सो नया ने जवाब दया।

सा हल ने बात आगे बढ़ाई और पूछा, “तो बताइए, या- या अ छा लगा?” सो नया या बताए, या नह , सोच म पड़ गई। कुछ पल चुप रहने के बाद सो नया ने शबनम क तरफ दे खा और उसे चलने का इशारा कया। सा हल सामने बैठा सब दे ख रहा था। सा हल क नजर सो नया पर ही टक थ । सो नया क नीचे झुक ई नजर जैसे ही उठत तो सा हल को अपनी ओर दे खती ई पात । शबनम बीच म बैठ ई मजे ले रही थी। इस बीच दो को ड क, टे बल पर रखकर, छोटू चला गया। शबनम ने एक को ड क ले ली। सरी टे बल पर रही। सा हल ने अपने हाथ से को ड क सो नया क ओर बढ़ा द । न चाहते ए भी, सो नया ने को ड क ले ली। जब तक दोन क को ड क ख म नह ई, सा हल सो नया को दे खता रहा। और शबनम दोन को। इसके अलावा सा हल के कुछ दो त भी इधर-उधर से इन तीन को दे ख रहे थे। खाली को ड क क बोतल टे बल पर रखकर सो नया उठ खड़ी ई और शबनम को भी चलने को कहा। “आती ।ँ ” कह कर शबनम भी खड़ी हो गई। सा हल ने पूछा, “इसे या आ है? इससे तो अभी ठ क से मला भी नह , नाम भी नह पूछा और ये चल द ।” “सो नया…” शबनम ने सा हल क बात का जवाब दया, “…नाम है इसका। सा हल, सो नया को या आ है? ये तो सो नया ही जाने। पर…” सर से सा हल पर आते ए शबनम ‘पर’ पर क गई। “पर… या?” सा हल ने पूछा। “ये तु ह दे ख कर परेशान है।” “ य ?” सा हल ने आ य से पूछा। “सो नया को ये याद नह आ रहा है क इसने तु ह कहाँ दे खा है?” “बस यही बात है। या…कुछ और भी है?” सा हल सो नया क परेशानी का कारण जानकर मु कुराते ए बोला। शबनम चुप रही। उसने सो नया क तरफ इशारा करते ए सा हल से कहा, “अ छा चलती ।ँ ” “ठ क है। अगली बार जब सो नया से मलूँगा तो…सारी परेशानी र हो जाएगी।” सा हल क नजर अब भी सो नया पर ही थ । शबनम मु कुराते ए वहाँ से चली गई। शबनम सो नया को इस तरह उठ कर चले जाने पर खूब सुना रही थी। दोन के जाते ही सा हल के सभी दो त वापस आ गए। “ य सा हल भाई। कैसी लगी?” एक ने हँस कर पूछा। “कौन?” सा हल ने पूछा। “वही, जो अभी-अभी तु ह घायल कर के चली गई।” सभी हँसने लगे। “कौन यार! कौन! कसे घायल कर के चली गई।” सा हल झपते ए बोला।

सा हल अपने दो त को समझाने लगा। सफाइयाँ दे ता रहा। पर दो त तो होते ही ऐसे ह। सा हल ने सो नया को लेकर जतनी सफाइयाँ द , सा हल के दो त उतना ही सा हल को खचते रहे। सा हल के दो त ने, सा हल क खूब खचाई क । और सा हल मन-ही-मन खुश होता रहा। सा हल सचमुच ही सो नया के सादगी भरे अंदाज से भा वत आ था। सादगी और सुंदरता दोन एक साथ, सोचकर सा हल मन-ही-मन बड़बड़ाया। “इस सादगी पर, कौन न मर जाए ए, खुदा! क ल करते ह और हाथ म खंजर भी नह ।” कट न से नकल कर, सा हल एक-दो ट चस से मला और वहाँ से सीधा कॉलेज के एड मन लॉक म प ँचा। एड मन लॉक से फा रग हो कर सा हल कॉलेज क चार द वारी से न जाने कहाँ खो गया। इस तरह बीच-बीच म सा हल का अचानक गायब हो जाना, कोई नई बात नह थी। पछले दो साल से सा हल के सभी दो त इस बात को अ छ तरह जान चुके थे। इस तरह गायब हो जाने का कारण पूछने पर सा हल का एक ही जवाब होता था क ‘फोन’ आया था। सा हल के दो त को शु म ये अटपटा लगा फर कुछ दन बाद उ ह इसक आदत हो गई थी। ले कन आज कोई फोन नह आया था। आज तो सा हल शबनम के साथ कॉलेज के बाहर बस- टड पर बैठा आ, कुछ बात कर रहा था। थोड़ी दे र पहले, जब शबनम बस- टड पर सो नया का इंतजार कर रही थी तभी सा हल वहाँ प ँच गया। शबनम से बात करते ए सा हल ने सो नया को बस- टड क ओर आता दे खा। सा हल ने अगले ही पल बाइक टाट क और वहाँ से नकल गया। सो नया और शबनम दोन इसी बस- टड के पास से र शा लया करते थे।

4

सो नया का सुंदर चेहरा, सा हल क नजर से हट ही नह रहा था। बड़ी-बड़ी भूरी आँख, गोरा रंग, गुलाबी ह ठ, और उस पर सुतवां नाक। एक बार दे खने से ही यूँ लगता था जैसे क कोई मॉडल है। इस पर सो नया का लंबा कद और लंबे काले बाल, ये कुछ ऐसी बात थी जो सो नया को द ली क अ धकतर लड़ कय से अलग करती थी। फैशन के नाम पर छोटे -छोटे बाल और एक कलो मेकअप, सा हल को इनसे न जाने य एक चढ़-सी थी। ऊपर से ज स और टॉप को सा हल ने कभी सुंदरता का पैमाना नह माना था। सो नया का सूट सलवार पहनना और पट् टा, जसे वह अब हजाब बना कर ओढ़ा करती थी, सा हल को सो नया क ये अदा भी खूब भा गई थी। यूँ तो सा हल कॉलेज म एक सगर क है सयत से मश र था पर उसका व भी कुछ कम नह था। कॉलेज क लड़ कयाँ सा हल से बात करने के बहाने ढूँ ढ़ती रहती थ । सा हल ये जानता था और वह सभी क सुनता भी था पर कसी भी लड़क ने उसे इतना भा वत नह कया था, जतना क सो नया ने! असल म तो सा हल सो नया क सुंदरता और सादगी पर मर मटा था। वह रात भर न जाने कस उधेड़बुन म लगा रहा। इतने म सा हल का मोबाइल फोन बज उठा। न पर नं. दे ख कर सा हल मन-ही-मन कुछ बड़बड़ाया। सा हल इस व फोन पर बात करने के मूड म नह था। थोड़ी दे र फोन बजता रहा। सा हल ने फोन नह उठाया, और इसी वजह से वह ब त परेशान-सा हो गया। सा हल ने एक मैसेज टाइप कया और उसी फोन नं. पर भेज दया। इसके बाद फोन नह बजा। सा हल ने मैसेज म लखा था—‘काम हो रहा है; थोड़ा व दो।’ मैसेज करने के बाद सा हल को थोड़ा चैन मला, फर सारी रात सा हल सो नया के बारे म सोचता रहा।

अगली सुबह सो नया को र शा नह मला, लहाजा सो नया पैदल ही शबनम के घर क ओर जाने लगी। सफेद सूट, चूड़ीदार सलवार और लाल बंधनी चु ी, जससे सो नया ने हजाब बनाया आ था। इसके अलावा सो नया के कंधे पर एक बैग भी था। कुछ मनट बाद ही सो नया उस जगह प ँच गई, जहाँ पर शबनम मला करती थी। ले कन आज शबनम नह थी। सो नया ने शबनम का इंतजार करना ही बेहतर समझा। एक-एक करके पूरे 10 मनट तक, सो नया शबनम का इंतजार करती रही पर शबनम नह आई। इस बीच सो नया को कई आते-जाते लोग क घूरती नजर को झेलना पड़ा। इन घूरती आँख वाले लोग म युवा से लेकर बुजुग— सभी थे। सो नया मोबाइल कान पर लगाए बार-बार, उस रा ते को दे ख रही थी जहाँ से शबनम आया करती थी। शबनम का मोबाइल फोन ऑफ आ रहा था। सो नया ने अब कॉलेज जाने का फैसला कया, और अपनी ओर आते ए र शा को कने का इशारा कया। सो नया र शे पर बैठने के लए र शा के और करीब गई, तभी एक बाइक वाले ने अपनी बाइक, र शा और सो नया के बीच म खड़ी कर द । काला हे मेट लगाए ए लड़के ने र शा वाले को जाने का इशारा कया। र शा वाला समझदारी दखाते ए चला गया। र शे वाले ने समझा क आज फर छे ड़खानी क कोई घटना घटने वाली है। इस तरह से बाइक रोकने पर आस-पास खड़े लोग का यान इस ओर गया। सो नया परस क घटना को लेकर पहले ही परेशान थी, सो नया ने कभी सपने म भी नह सोचा था क कोई बाइक वाला इस तरह बीच सड़क पर आएगा। बाइक वाला याया कर सकता है ये सो नया जानती थी। ‘लड़का लेड मार कर भागेगा या ए सड फक कर’, ये क पना करते ही सो नया के होश उड़ गए। सो नया, हाथ से अपना चेहरा छपाए च लाने ही वाली थी क बाइक सवार ने हे मेट का शीशा ऊपर कया और बोला, “हाय, सो नया।” ‘सो नया’ श द सुनकर भी, सो नया क बाइक सवार क ओर दे खने क ह मत न ई। सो नया बेहद डरी ई थी। उस दन एक लड़क का पीछा करते ए लड़के को दे खकर ही सो नया घबरा गई थी और अब खुद सो नया को एक लड़के ने रोका आ था। पता नह या होगा, अपनी पूरी ताकत लगा कर सो नया चीखने लगी, “बचाओ, बचाओ।” द ली के लोग सफ तमाशबीन बन कर दे खते रहते ह, करता कोई कुछ भी नह ! सो नया क चीख बेकार ही गई। मगर इस चीख का असर बाइक वाले लड़के पर आ, वह धीमी आवाज म बोला, “सो नया ये म ँ, सा हल। कल मले थे न… कॉलेज म।” सो नया ने कसी घटना क आशंका के डर से अभी तक अपनी आँख नह खोली थ । ‘सा हल’ का नाम सुनते ही सो नया को चैन पड़ा। सो नया ने सा हल क ओर दे खा, वह कुछ बोली नह पर उसके चेहरे पर शां त नजर आ रही थी। इस बीच कुछ लड़के, इस मामले म कुछ करने के लए उनक ओर बढ़ने लगे। अपनी ओर बढ़ते ए लड़क को दे खकर, सा हल समझ गया क अब बात का बतंगड़

बनने वाला है। वह लगभग वनती करता आ बोला, “सो नया लीज, फॉर गॉड सेक अभी बाइक पर बैठ जाओ। नह तो यहाँ मेरा जुलूस नकल जाएगा।” सो नया ने सा हल का चेहरा दे खा, वह थ त समझ गई और आ ाकारी लड़क क तरह बाइक पर बैठ गई। सो नया और सा हल अभी कुछ ही र प ँचे थे क शबनम भी वहाँ प ँच गई। उसने र शे वाले को कने का इशारा कया। शबनम र शे पर बैठते ए मु कुरा रही थी। शबनम ने अपने हाथ म पकड़े ए मोबाइल फोन को ऑन कया, और र शे वाले को मै ो टे शन तक चलने को कहा।

5

एक बार जब बाइक ने र तार पकड़ी तो सीधे कॉलेज के पास जा कर ही क । बाइक पर ब त ही कम समय म दोन कॉलेज प ँच गए। कॉलेज के सामने वाली रोड पर कूल बस आ-जा रही थ । कुछ लोग कंधे पर बैग लटकाए ऑ फस जा रहे थे। सो नया, बाइक से उतरते ही कॉलेज के मेन गेट क ओर बढ़ । तभी सा हल ने पुकारा, “सो नया, अभी कोई नह होगा। लास तो 8.00 बजे से है और अभी तो सफ 7.30 ए ह।” सो नया ने घूरते ए सा हल को दे खा। सो नया कुछ नह बोली। अपने हजाब को उतार कर पट् टे क तरह ओढ़ती ई वह सा हल के पास आई। सो नया को ऐसे घूरते ए दे ख कर सा हल ने पूछा, “ या आ? ऐसे य दे ख रही हो?” “बाइक से अगर गर जाती तो।” सो नया गु से म बोली। “अरे, बाइक से भी कोई गरता है या?” सा हल हँसते ए बोला। “हाँ। गरता है, अगर इतनी तेज पीड पर बाइक चल रही हो तो। म गर जाती अगर, ….” “अगर…! अगर या?” सा हल ने हैरानी से पूछा। “अगर…म तु ह न पकड़ती।” सो नया नजर झुकाते ए गु से म बोली। “ गरी तो नह न।” सा हल मु कुराते ए बोला। “तो या… गराने का इरादा है।” सो नया बोली। “ गराने के लए तो तु ह फर से बाइक पर बठाना होगा।” सा हल अब भी मु कुरा रहा था। सा हल बाइक पर बैठे-बैठे ही बात कर रहा था। सा हल क बाइक अब भी चालू थी, “आओ, बैठो।”

‘आओ बैठो,’ सुनते ही सो नया के मन म एक वचार उठा सा हल मुझे अपनी बाइक पर बठाने के लए इतना बेकरार य है। सा हल कह कुछ और तो नह सोच रहा है—ऐसा वचार आते ही सो नया सावधान हो गई। अंजान शहर, जहाँ पर लड़क क सुर ा क सफ बात ही होती ह और असल म होता कुछ भी नह । सो नया ने सा हल से र रहना ही बेहतर समझा। सो नया ने सा हल के ‘आओ बैठो’, के जवाब म कोई त या नह क । सो नया ने कॉलेज के प रसर म जाने से पहले एक बार सा हल को दे खा, सो नया क नजर म सा हल के लए घृणा झलक रही थी। सा हल सो नया का बाइक पर बैठने का इंतजार कर रहा था। सा हल को पूरा भरोसा था क सो नया बाइक पर बैठ जाएगी, मगर ऐसा न होने पर सा हल परेशान-सा हो गया। सा हल एक खूबसूरत नौजवान था और कॉलेज क हर लड़क उससे बात करना चाहती थी उसके साथ समय बताना चाहती थी। ये सब सा हल अ छ तरह से जानता था। सा हल अभी सो नया के इस रवैए का कारण सोच ही रहा था क सो नया ने मुड़ कर सा हल को घृणापूवक दे खा। अपने लए सो नया क आँख म घृणा दे ख कर, सा हल से रहा नह गया। बाइक खड़ी कर के सा हल सो नया के पीछे गया। कुछ ही पल म, सो नया सा हल से काफ ‘ र’ नकल चुक थी। सा हल ने सो नया को को रडोर के अं तम छोर पर मुड़ते ए दे खा। कुछ ोफेसर और ले चरर को ‘गुड मॉ नग’ करते ए सो नया अपने लास म म चली गई। सारी रात जाग कर, जो भी सपने, सा हल ने संजोए थे, सो नया के इस बताव से वे सारे सपने टू ट कर बखर गए। सा हल ने सो नया से बाद म बात करने का फैसला कया। सा हल धीमे कदम से वापस बाइक तक प ँचा। “साहब, चाय बनाऊँ।” पास खड़े चाय वाले ने सा हल से पूछा। सा हल ने उसे दे खा और कहा, “बना यार। ब ढ़या चाय बना, शायद तेरी चाय ही कुछ काम कर जाए।” चाय वाले और सा हल क जान-पहचान थी। सा हल और उसके दो त के ‘टाइम पास’ अड् ड म से एक अड् डा ये भी था। उदास मन से सा हल चाय क चु कयाँ ले रहा था। सड़क पर धीमा ै फक था। सा हल ने महसूस कया क हर एक श स अपने-अपने काम म मश फ है, बस नया म वही एक ऐसा है — जो परेशान है। रात तो सारी सुनहरी खु शय के सपने बुनते ए गुजर गई थी। सुबह हालात ऐसे हो जाएँग,े सा हल ने सोचा भी नह था। सा हल को अब भी यक न नह हो रहा था क सो नया इस तरह से चली जाएगी। एकाएक, सा हल का मोबाइल फोन बज उठा। ये एक ड् यूल सम मोबाइल था। सा हल के पास दो मोबाइल नंबर थे। पहला नंबर तो सभी को पता था मगर सरे का पता कसी को भी नह था सवाय उन गुमराह लोग को छोड़ कर! न पर नंबर दे ख कर सा हल परेशान हो गया। कुछ सै कड फोन बजा और फर शांत हो गया। मोबाइल के शांत होते ही, सा हल के चेहरे का तनाव भी गायब हो गया। सा हल ने चैन क साँस ली। तभी, अचानक मोबाइल फर बज उठा, मोबाइल अभी सा हल के हाथ म ही था। सा हल

ने दे खा, नंबर सरा था पर उसी जगह से था जहाँ से इससे पहले फोन आया था। सा हल ने कॉल पक क , “हैलो।” “हैलो।” सरी तरफ से जवाब आया। “क हए, जनाब कैसे याद कया।” अपनी परेशानी छु पाते ए सा हल बोला। “याद तो करना ही पड़ता है, तुम हमारा फोन य नह उठाता है।” सरी तरफ आवाज म नाराजगी थी। “उठाया तो है, जनाब।” सा हल ने झूठ मु कान के साथ जवाब दया। “अ छा ठ क है। वो बताओ उसका या आ है?” “ कसका?” “ च ड़या का।” “दाना डाला आ है। थोड़ा स करो।” “अरे हमको कुछ नह , चीफ बार-बार पूछता है।” “उनको कह दो, इ मीनान रख। ये काम ऐसा नह क बटन दबाया और हो गया। सौ बात होती ह। सब कुछ दे खना पड़ता है।” सा हल ने जब कड़ाई से जवाब दया तो सरी ओर से दो टू क जवाब के बाद फोन काट दया गया, “ओके, बरखुरदार। तुम लगे रहो, अभी हम फोन रखता है।” “ओके” कह कर सा हल ने भी फोन रख दया। सा हल के सारे दो त, सा हल को ‘हाय’ बोलते ए अपनी-अपनी लास म चले गए। सा हल क लास म जाने क इ छा न ई। सा हल कुछ दे र वह चाय क कान पर बैठा रहा। फर वहाँ से चला गया। कट न म जब शबनम क नगाह सो नया पर पड़ी, सो नया मैगी नूड स खा रही थी। सो नया के पास जा कर शबनम ने पूछा, “सोनू, सुबह कहाँ रह गई थी?” सो नया ने शबनम क ओर दे खा, फॉक को लेट म वापस रखते ए जवाब दया, “म कहाँ थी!” सो नया शबनम के इस पर हैरान थी। सो नया ने शबनम से पूछा, “पहले बताओ, तुम कहाँ थ सुबह। लगभग दस मनट इंतजार कया था मने। फर वहाँ मै ो के लए चली थी।” शबनम ने झूठे गु सा होते ए कहा, “तो तु ह वहाँ से चलने से पहले फोन करना चा हए था, न।” “ कया था। तु हारा फोन वी ड ऑफ था।” सो नया ने जवाब दया। “ओह, सॉरी।” शबनम क आँख म शरारत थी। “अ छा तो सुबह लास म भी नह थी, कहाँ थी अब तक?” “वो, मुझे कुछ काम था।” सो नया ने बहाना बनाया और सुबह बाइक, सा हल और गरना व गराना वाली सारी घटना म से कसी का भी कोई ज शबनम ने नह कया। शबनम सामने रखी ई मैगी क लेट म से कुछ मैगी नूड स हाथ से ही उठा कर खाने लगी। इस पर सो नया ने फॉक शबनम क तरफ करते ए कहा, “ये लो, इससे खा लो। कम-से-कम यहाँ तो सुधर जाओ हर व क मसखरी सही नह होती।”

शबनम ने फॉक लया और मैगी खाने लगी। “हैलो, सो नया।” सा हल बोला। सा हल अभी-अभी कट न म दा खल आ था। सो नया और शबनम को दे खकर उ ह क ओर चला गया, अपने दो त को अनदे खा करके। सा हल के सारे दो त पास बैठे ए सा हल को दे ख रहे थे। सुबह क घटना से अंजान वे आपस म एक- सरे से कह रहे थे— “ये तो गया काम से।” “इसको तो, लगता है इ क हो गया।” और “लगता है, सा हल का दल आ गया है, इस लड़क पर।” आ द-आ द। सा हल ने नजर उठा कर सो नया क ओर दे खा, और एक बार फर ‘हैलो’ बोला। सो नया चुप ही रही, तब शबनम ने सा हल को मु कुराते ए जवाब म ‘हाय’ कहा। औपचा रक बातचीत करने के बाद पहले सा हल कट न से बाहर नकला, फर शबनम और अंत म सो नया। सो नया धीरे-धीरे कंपाउ ड म प ँची तो सा हल मोबाइल पर कसी से बात कर रहा था। सा हल कुछ परेशान लग रहा था। सो नया कुछ दे र वह क । मगर मोबाइल पर बात ख म होने का नाम ही नह ले रही थी और हर जाते ए पल के साथ सा हल के चेहरे पर परेशानी बढ़ती जा रही थी। सा हल क परेशानी का सीधा संबंध मोबाइल पर होने वाली बातचीत से था, सो नया ये समझ गई थी। सो नया ने सा हल का पाँच मनट इंतजार कया। फर वह लाइ ेरी क ओर चल द। अभी सो नया सफ 18 साल क थी, कॉलेज क जदगी उसने सफ हद फ म म ही दे खी-सुनी थी। सो नया के युवा मन म कुछ सपने थे, ज ह सो नया पूरा करना चाहती थी। पढ़ाई के साथ-साथ, घूमना- फरना, नए दो त बनाने के अलावा भी उसका मन कुछ और करना चाहता था। द ली का नया माहौल, सो नया को ब त भाया। कॉलेज म लड़के-लड़ कय क दो ती, छे ड़छाड़ और म ती, हर कसी का अपना एक सपना था। कोई आई.ए.एस. बनना चाहती थी तो कोई ए टर, कोई लड़का कॉलेज के बाद अपना बजनेस करना चाहता था, तो कोई लड़क आगे पढ़ कर ोफेसर बनना चाहती थी। कोई तो कॉलेज सफ म ती के लए कर रहा था और कोई कॉलेज पूरा करके एक नौकरी पाना चाहती थी। हर कसी क अपनी एक अलग नया थी, जसम वह म त रहना चाहता था। सो नया क लास म सभी लड़ कयाँ, अपने-अपने दो त के साथ, बदास बातचीत कया करती थ , वे कभी-कभार उनके साथ घूमने- फरने मूवी और शॉ पग के लए भी जाया करती थ । ये सभी द ली म ब कुल सामा य-सा था। सो नया का युवा मन ये सब दे ख-समझ रहा था। इधर कुछ दन से शबनम न जाने य हर सुबह लेट होने लगी थी। शबनम को

फोन करने पर—‘मुझे थोड़ी और दे र हो जाएगी, तुम नकल जाओ।’ सो नया को यही जवाब मलता था। सो नया फर, जैसे ही र शा लेने क सोचती, तभी सा हल आ जाता और फर सो नया सा हल के साथ नकल जाती। इन दस-पं ह दन म सा हल और सो नया म बातचीत ‘हाँ-ना’ से आगे बढ़ चुक थी। सा हल का हाल तो उसके सभी दो त जान चुके थे मगर सो नया के दल म सा हल को लेकर या कुछ चल रहा था, इसका कसी को पता नह था—शबनम को भी नह था। और खुद सो नया को भी इसक जानकारी नह थी! कॉलेज म भी इन दोन को लेकर चच होने शु हो गए थे। शाम को शबनम और सो नया मै ो टे शन जाने के लए र शा का इंतजार कर रहे थे। तभी सा हल वहाँ आ प ँचा। सा हल ने सो नया को एक बार फर ‘हैलो’ कहा। सा हल अपनी तरफ से पूरी को शश कर रहा था क वह सामा य लगे। पर सा हल सामा य ब कुल नह था। सो नया ने पहले तो सा हल को दे खकर अपना चेहरा सरी ओर कर लया और दो कदम पीछे हट कर शबनम से अलग खड़ी हो गई। सो नया के इस बताव को दे ख कर शबनम समझ गई क कुछ गड़बड़ है। शबनम ने समझदारी दखाते ए सा हल के ‘हैलो’ का जवाब हैलो से दया। शबनम ने सा हल के पास जा कर पूछा, “सोनू को या आ?” “पता नह !” सा हल ने जवाब दया। सा हल और शबनम सो नया के बारे म बात कर रहे थे। तभी एक र शा वाला वहाँ से गुजरा, जसे सो नया ने रोक लया। सो नया ने र शे पर बैठ कर शबनम को आवाज लगाई, “चलना नह या?” शबनम ने मुड़ कर दे खा और सो नया को दो उँग लयाँ दखाते ए बोली, “बस दो मनट म आई।” शबनम तेजी से र शे के पास प ँच गई। र शे पर चढ़ने से पहले शबनम एक पल क , उसने मुड़ कर सा हल क ओर दे खा, जो उसी तरफ दे ख रहा था। हाथ म मोबाइल हलाते ए शबनम सा हल से बोली, “आ गया होगा। चैक कर लेना।” जवाब म सा हल ने सर हला कर ‘ओके’ का इशारा कया, तुरंत अपनी पॉकेट से मोबाइल नकाल कर चैक कया, अभी-अभी एक मैसेज आया था। मैसेज को दे खने पर, सा हल के परेशान चेहरे पर एक धीमी-सी मु कुराहट नजर आई। सा हल ने शबनम को ‘थ स’ करने के लए शबनम क ओर दे खा तो शबनम र शे पर बैठ चुक थी। बाइक पर लटकती ई थैली म से सा हल ने एक पैकेट नकाला। पैकेट गुलाबी रंग के चमक ले कागज म लपटा आ था, जस पर एक चट लगी ई थी। सा हल गुलाबी पैकेट को हाथ म लए नहारता रहा। फर चट पर लखे ए अ र को पढ़ते ए सा हल ने एक ठं डी आह भरी। अपनी तजनी उँगली सा हल ने उन अ र को धीरे से फराई। ध-सी सफेद चट पर लाल रंग क सुंदर लखावट म ‘सो नया’ लखा आ था। ब त ही ःखी मन से, सा हल ने वह गुलाबी पैकेट वापस थैली म रखा। थैली पर अं ेजी म ‘आच ज ग ट गैलरी’ छपा आ था।

सा हल ने अपनी बाइक टाट क और वहाँ से घर के लए नकल गया।

6

फर से, एक अंजान मोबाइल नंबर से आई कॉल को दे खकर सो नया ब कुल भी परेशान नह ई, सो नया ने ठान लया क इस बार वो कॉल ‘ पक’ करेगी और बात भी करेगी। शाम को कमरे पर प ँचने के लगभग एक घंटे बाद से ही सो नया को कोई, एक अंजान नंबर से कॉल कर रहा था, जसे सो नया नजरअंदाज करती जा रही थी। एक बार, दो बार करते-करते पूरी दस ‘कॉ स’ को सो नया अनदे खा कर चुक थी। हर कॉल के साथ हर बार एक नई परेशानी दमाग म उपजती जा रही थी, कौन कॉल कर रहा है, य कॉल कर रहा है आ द-आ द। ये यारहव कॉल थी जब सो नया ने मन म सोचा क वह यह कॉल उठा लेगी, ले कन जब तक सो नया कॉल उठाती थी, कॉल ड कने ट हो गया। सो नया, म से नकल कर बालकनी म आ गई। सुबह क घटना को लेकर सो नया पहले से ही परेशान थी, ऊपर से ये अंजान नंबर से आती ‘कॉ स’, इन ‘कॉ स’ ने सो नया क परेशानी को और बढ़ा दया था। कुछ दे र, मोबाइल हाथ म पकड़कर वह सोचती रही क कौन हो सकता है, जो उसे कॉल कर रहा है। सो नया को ये भी नह पता था क कॉल करने वाला लड़का है या कोई लड़क । बहरहाल, सो नया कुछ दे र बालकनी म खड़ी रही फर आ कर बेड पर लेट गई, छत पर एक पंखा, धीरे-धीरे घूम रहा था और साथ ही कुछ वचार सो नया के दमाग म घूम रहे थे। एकाएक मोबाइल बज उठा, नंबर वही था—अंजान। सो नया ने बना एक पल गँवाए कॉल पक क , “हैलो।” सरी तरफ से जवाब नह आया। ‘शायद नेटवक ॉ लम क वजह से आवाज नह सुनाई दे रही है’—ऐसा सोचते ए सो नया बालकनी म वापस आ गई, और फर से बोली, “हैलो, कौन है?” जवाब म इस बार भी चु पी ही थी। सो नया अपनी परेशानी पर काबू पाते ए

गु से म बोली, “दे खो तुम जो कोई भी हो? म नह जानती ले कन अगर तुमने दोबारा फोन कया तो म 100 नंबर पर तु हारी शकायत कर ँ गी। तु हारे जैस से जब पु लस बात करेगी, तब ही तु ह अ ल आएगी।” सो नया के चेहरे पर परेशानी और गु सा दोन एक साथ नजर आ रहे थे। सो नया मोबाइल कान पर लगाए वापस बेड पर आकर बैठ गई, सरी तरफ एक धीमी आवाज सुनाई द , “हैलो।…सो नया।” अपना नाम सुनकर सो नया उठ कर खड़ी हो गई, “कौन? तुम मेरा नाम कैसे जानते हो?” “म…” म बोल कर सरी तरफ फर चु पी छा गई। “म! म कौन?” सो नया ने पूछा। “म तुमसे बात करना चाहता ँ।” सरी ओर कोई लड़का है अब तक ये साफ हो चुका था। “म तुमसे कोई बात नह करना चाहती, समझ गए।” सो नया आवाज म स ती लाती ई बोली। “दे खो सोनू, लीज मना मत करना। म कल तु हारा इंतजार क ँ गा।” लड़का बोला। लड़के के मुँह से इस बार सो नया क जगह ‘सोनू’ सुनकर सो नया हैरान रह गई, सो नया समझ गई क ये लड़का उसके बारे म ब त कुछ जानता है। ‘कह ये लड़का सा हल तो नह !’ सो नया ने मन म सोचा और सो नया के मन ने अगले ही पल इस वचार को नकार दया, ‘आ खर सा हल के पास मेरा नंबर कैसे आया!’ सो नया को कुछ समझ नह आ रहा था, एक तरफ चता थी और सरी ओर उ सुकता थी ये जानने क क कौन लड़का है, मुझसे य बात करना चाहता है, कह लड़का मुझे पोज तो नह करेगा या कुछ और—यही सब सोचते ए सो नया को भी कुछ नह सूझ रहा था। जब लड़के को जवाब नह मला तो वह यार से बोला, “बोलो सोनू। कुछ तो बोलो, ऐसे चुप ना रहो लीज। तु ह नह पता म सुबह से कतना परेशान ँ।” “तो!” सो नया ने अपनी चु पी तोड़ी। “ लीज सुबह मुझे वह मल जाना। ओके।” लड़का कल सुबह होने वाली मुलाकात को अपनी तरफ से प का करते ए बोला। “ओके। कल तु ह वहाँ म नह , पु लस मलेगी।” सो नया के मुँह से अचानक ही नकल गया। सो नया नह जानती थी क वह लड़का कहाँ मलने के लए कह रहा है। “तु हारी मज , तुम आओ या पु लस। सब कुछ मने तुम पर छोड़ दया है। जैसा तु ह ठ क लगे, वैसा करो। ले कन म तु हारा इंतजार क ँ गा।” बोल कर लड़के ने फोन काट दया। सो नया को कुछ अजीब लगा। ‘पु लस का नाम सुनकर तो अ छे -अ छ के दमाग त हो जाते ह, ले कन ये लड़का तो पु लस के नाम से भी नह घबरा रहा है। या बात करना चाहता है मुझसे’ सो नया सोचने लगी। सो नया के मन के सागर म हजार लहर उठ रही थ । ‘ मलूँ या नह ’, ‘पु लस को

फोन क ँ या नह ’, ‘कौन लड़का है?’, ‘कैसा लड़का है, जो पु लस के नाम से भी नह डर रहा है।’ सारी रात सो नया यही सोचती रही और परेशान रही। सो नया ने सारी रात परेशान रहने के बाद सोचा क पहले लड़के से मलती ँ, पर कहाँ मलना है ये तो उसने बताया ही नह । फर सो नया ने सोचा ‘ जसे मलना होगा वह खुद ही मल लेगा। बस जैसे ही कुछ अजीब या गलत लगेगा तो पु लस को तुरंत कॉल कर ँ गी। 100 नंबर को पीड डायल पर सेट करने के बाद ही सो नया ने र शा टड पर जाने का नणय लया।

7

मन म हजार सवाल के साथ जब सो नया रोजाना क तरह र शा टड पर प ँची, तब सब कुछ सामा य था। वही ऑ फस जाने वाले लोग, कूल क बस और कुछ आँख सकते लड़के। सो नया यहाँ पर क कर शबनम का इंतजार कया करती थी। सो नया को आज जसका इंतजार था—वह शबनम नह ब क वह लड़का था जसने कल शाम से सो नया के मन म हलचल मचा रखी थी। इसी हलचल क वजह से, आज सब कुछ असामा य-सा लग रहा था। सड़क के सरी ओर पु लस क एक ज सी खड़ी थी। सो नया ने ज सी को दे खा और सोचा अगर कुछ गड़बड़ होगी तो वह शोर मचा कर पु लस को बुला लेगी। अपने याल म खोई ई सो नया बार-बार मोबाइल न पर समय दे ख रही थी। हालाँ क कलाई पर घड़ी भी बाँधी ई थी। शायद सो नया को उस लड़के क फोन कॉल का इंतजार था। एक छोटे ब चे ने आकर सो नया का बैग हलाया। सो नया अपने याल से बाहर आई, उसने ब चे को दे खा। ब चे के हाथ म एक छोटा-सा पैकेट था, चमक ले गुलाबी कागज म लपटा आ पैकेट, जस पर ‘सो नया’ लखा आ था। ब चा पैकेट सो नया के हाथ म थमा कर चला गया, इससे पहले क सो नया ब चे के पीछे जा कर, कुछ पता

कर पाती, एक र शा वाला वहाँ आ गया। ये र शा वाला सो नया को जानता था, इस र शे पर वह शबनम के साथ मै ो टे शन जाया करती थी। सो नया कुछ समझ नह पा रही थी, र शा वाले ने पूछा, “द द , बै ठए।” सो नया र शा वाले को दे खती रही। सो नया ने र शा वाले को वहाँ से जाने के लए कहा। र शा के जाते ही एक बाइक वाला आ कर ठ क सो नया के सामने का, तभी सो नया के मोबाइल पर एक कॉल आई, नंबर वही था जसका इंतजार था। “हैलो।” सो नया बोली। “हैलो, सोनू आई एम सॉरी।” सरी तरफ से एक आवाज सुनाई द । “ कस बात क सॉरी!” सो नया ने लड़के से पूछा। “कल के लए। तुम बाइक पर बैठने के बाद से नाराज हो न—इसी बात क सॉरी।” लड़का बोला। तभी सो नया को याल आया—सा हल का। सो नया बोली, “अ छा, तो, तुम फोन कर रहे थे।” “हाँ। सॉरी फॉर दै ट।” हाथ जोड़ कर माफ माँगने के बाद बाइक वाले ने हे मेट का शीशा ऊपर कया, सामने सा हल था। इयरफोन कान म लगाए बात कर रहा था। सा हल को दे खते ही सो नया के चेहरे पर नाराजगी और नफरत दोन एक साथ नजर आने लगी। एक अंजान लड़के का डर ख म हो चुका था—‘ये तो सा हल है और कुछ…ऐसा-वैसा…तो सा हल ने कहा भी नह , फर ये माफ भी माँग रहा है।’ ये सब सोचते ए सो नया हाथ म पकड़े ए गुलाबी पैकेट को दे ख रही थी। सो नया और सा हल को दे खकर, पास खड़े कुछ लड़क ने दोन को पहचान लया। कल भी ठ क इसी व सा हल ने सो नया को बाइक पर बठाया था। एक-दो लड़के दोन क ओर बढ़ने लगे। सो नया के पीछे खड़े लड़क को अपनी ओर आता दे खकर सा हल ने सो नया को बाइक पर बैठने का इशारा कया। सो नया ने पीछे मुड़कर दे खा, वह सारी थ त समझ चुक थी। सा हल ने सो नया को फर से बाइक पर बैठने के लए कहा। सो नया को कुछ समझ नह आ रहा था। वह खड़ी रही। सा हल ने, बाइक के टक पर रखा आ, बैकपैक पीठ पर लादा और कहा, “आओ बैठो।” सो नया ने सा हल क इस हरकत पर गौर कया। वह ह क -सी मु कराई। सा हल बोला, “ज द करो, वरना आज तो ‘सीन’ बन जाएगा—सच म।” सो नया झझकते ए बाइक पर बैठ गई। सा हल क नीयत खराब नह थी ये सो नया जान चुक थी। सो नया और सा हल के बीच म एक बैकपैक था। एक बैकपैक भी कस तरह कसी क नीयत बता सकता है। ये आज सो नया को अहसास हो चुका था। रा ता वही था, कल वाला। वही सड़क के गड् ढे और वही पीड ेकर। मगर आज बाइक चलाने वाला ब त सावधान था और साथ म बाइक पर बैठने वाली लड़क भी। कुछ मनट तक सो नया चुप रही। फर, “तु ह मेरा नंबर कैसे मला?” सो नया ने पूछा।

“बस मल गया।” सा हल ने जवाब दया। “पहले बताओ कसने दया।” सो नया ने जोर दे कर पूछा। “अरे, सोनू छोड़ो भी। मेरे लए कुछ भी नामुम कन नह है।” फर बाइक धीरे करते ए सा हल ने पूछा, “तुमने मुझे माफ कर दया न।” सो नया चुप रही। सा हल ने द ली व व ालय के मै ो टे शन के पास बाइक रोक द , “ लीज सो नया बताओ न…। म ब त परेशान ँ। पता है, म रात भर सो भी नह पाया।” “जैसे म पूरी रात सोई ँ। तुम मुझे कल ही नह बता सकते थे।” सो नया ने सा हल क बात का जवाब दया। “ या बताना था?” सा हल ने पूछा। जैसे कुछ बताना भूल गया हो। “यही क फोन करने वाले तुम ही हो।” सो नया बोलती गई, “म कतना घबरा गई थी, म तो 100 नं. डायल करने ही वाली थी।” “ फर, कया य नह ?” सा हल ने गंभीरता से पूछा। जवाब म सो नया चुप रही। सा हल ने फर पूछा, “बताओ न पु लस को य नह बुलाया?” “तु ह थाने जाने का ब त शौक है या?” सो नया ने हँसते ए पूछा। सा हल का गंभीर चेहरा दे खकर सो नया मु कुराने लगी। “तु हारे कहने पर म थाने भी चला जाऊँगा।” सा हल ने सो नया क आँख म दे खते ए कहा। “अ छा जी।” सो नया क घबराहट ख म हो चुक थी। मन म कल से उठ रही आशंका क लहर शांत हो चुक थ । “ फर कभी टाइम मला तो तु ह थाने के दशन भी करवा ँ गी।” हँसते ए सो नया ने जवाब दया। सा हल ने अपना एक हाथ उठाया तो सरा सो नया ने, दोन ने हथेली-पर-हथेली रख कर ‘ताली’ मारी। “तुम यहाँ से र शा ले लो। मुझे कुछ काम है। कॉलेज म मलता ँ।” बोलकर सा हल वहाँ से नकला। “ओके, सी यू।” कह कर सो नया कॉलेज क ओर चल द ।

8

सो नया को खुद भी नह पता था क एक छोट -सी बात का इतना गहरा भाव पड़ेगा—एक बैकपैक को टक से उठा कर पीठ पर लादने का। सो नया के दमाग म कल ई सारी बात पर, ये एक घटना ब त भारी पड़ी। दमाग म सा हल को लेकर जतनी भी आशंकाएँ उठ रही थ , उन सभी को इस एक घटना ने शांत कर दया। कॉलेज से शाम को घर प ँचने के बाद, सो नया के मन म बस वही एक य बारबार उठ रहा था। सो नया क आँख तो इसी य को लगातार दे ख रही थ , जैसे क कसी ने मन के कं यूटर म ‘ रपीट’ कमांड डाल द हो। सो नया को सा हल एक अ छा लड़का लगा। जस सा हल पर कॉलेज क हर लड़क मरती है, वही सा हल मुझसे दो ती करना चाहता है और इसी लए तो सा हल ने बना गलती कए ही मुझसे माफ भी माँग ली। सो नया के दमाग म सफ एक ही वचार घूम रहा था—सा हल, एक अ छा लड़का है। उधर सा हल भी कुछ इसी तरह क थ त म था। हर पल सो नया का सुंदर चेहरा उसक आँख के आगे घूम रहा था। माथे पर लटकती लट और उनको बार-बार हाथ से सँवारते ए कान के पीछे करना, पट् टे को हजाब क तरह इ तेमाल करना और हजाब उतारने के बाद फर से बाल को सँवारना। कान म सोने क छोट -छोट चमकती

बा लयाँ और आँख म काजल लगाना। सा हल तो बस सो नया क सादगी और सुंदरता पर मर मटा था। मोबाइल पर पुराने गाने सुनते ए, सा हल कल के बारे म सोच रहा था। सा हल फर सो नया से मलना चाहता था। सा हल ने एक फोन नं. मलाया, “हैलो, कैसे हो?” “ब ढ़या” सरी तरफ से जवाब आया, “आज सुबह सब कुछ ठ क रहा न।” सरी तरफ एक लड़क थी। “फंटा टक! थ स यार। थ स फॉर योर है प।” जवाब दे ते ही सा हल का चेहरा खुशी से खल उठा। लड़क ने पूछा “ फर कल का या ‘सीन’ है?” “यही पूछने के लए फोन कया है।” सा हल ने जवाब दया। “जैसा तुम कहो।” लड़क ने सा हल का साथ दे ते ए जवाब दया। “तो। फर कल भी पहले क तरह…” सा हल बोला। ‘ओके’ कहकर सा हल ने फोन काट दया। सरी ओर से लड़क ने भी ‘ओके’ बोल कर सा हल के लान पर अपनी सहम त क ‘ टप’ लगा द । फोन रखने के बाद, सा हल को चैन आया। कल फर सो नया से मलना है, ये सोच कर वह कल या पहनना है—इसके बारे म सोचने लगा। ज स कौन से रंग क पहनू,ँ ज स के साथ ट -शट सही रहेगी या फर शट। कौन से रंग के साथ कस रंग क शट यादा जँचेगी, इस तरह के याल म सा हल उलझा आ था। सो नया के मन म भी कुछ इसी तरह के सवाल उठ रहे थे। ‘कल सुबह, पता नह सा हल मलेगा या नह । और अगर मला भी तो शबनम को छोड़ कर, कैसे सा हल के साथ जाऊँगी। शबनम मेरे बारे म या सोचेगी। …नह , नह , म सा हल के साथ नह जाऊँगी म सा हल को साफ मना कर ँ गी।’ सो नया पलंग पर लेटे-लेटे सोच रही थी। ‘भगवान करे शबनम कल फर लेट हो जाए’…एक छोट ब ची क तरह सो नया भगवान से वनती कर रही थी। सो नया इसी तरह के जोड़-तोड़ वाले समीकरण बनाते ए, सो गई। अगली सुबह, सो नया को थोड़ी दे र हो गई। कल इसी व सो नया भारी कदम से र शा टड क ओर बढ़ रही थी, और आज तो जैसे सो नया के पैर को पंख लग गए ह । सो नया तेज कदम से बढ़ती चली जा रही थी, मन म डर था क कह सा हल इंतजार करके चला न जाए, हालाँ क दोन क आज मलने क कोई बात नह ई थी। फर भी, सा हल से मलने क कमजोर-सी संभावना को भी सो नया हाथ से नह जाने दे ना चाहती थी। आज भी सब कुछ पहले जैसा ही था। सो नया ने आज दे खा क कुछ लड़के उसे दे खकर आपस म बात कर रहे ह। अपनी न त जगह पर आ कर सो नया शबनम का इंतजार करने लगी, जब क सो नया चाहती थी क आज शबनम के आने से पहले सा हल आ जाए। बार-बार सो नया उस रा ते क ओर दे ख रही थी जहाँ से क शबनम आया करती थी। सो नया ने र से ही शबनम को आते दे ख लया।

सो नया अपने न त थान से पाँच-छह कदम र हट कर खड़ी हो गई। सो नया को डर था क कह शबनम भी उसे दे ख न ले। शबनम लगातार, सो नया के करीब आती जा रही थी। सो नया का दल बैठता जा रहा था, कह सा हल शबनम के सामने न आ जाए। अगर ऐसा हो गया तो शबनम को या कहेगी और कैसे समझायेगी। सो नया अब भी उसी रा ते क ओर दे ख रही थी, कन खय से दे खते ए सो नया ने गौर कया, कुछ लड़के अब भी उसे घूर रहे ह और बात कर रहे ह। सो नया कसी भी तरह के लफड़े म नह पड़ना चाहती थी। सो नया ने उन लड़क को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा। तभी एक आवाज ने सो नया को पुकारा, “सोनू!” सो नया ने आवाज क ओर दे खा। सामने बाइक पर सा हल था। “कॉलेज जा रही हो?” सा हल ने मु कुराते ए पूछा। “हाँ।” सो नया ने जवाब दया। फर मु कुराते ए कहा, “जैसे तु ह पता नह । सुबह-सुबह यहाँ या म स जी खरीदने के लए खड़ी ँ।” जवाब सुनकर सा हल भी मु कुराने लगा। “चलो, फर म तु ह वहाँ ‘ ॉप’ कर दे ता ँ।” सा हल बोला। सो नया सा हल क नजर को दे ख रही थी। फर सो नया ने उस रा ते क ओर दे खा जहाँ से शबनम आ रही थी। अब शबनम वहाँ नह थी। सो नया थोड़ी परेशान दखी तो सा हल ने पूछा, “ या आ? परेशान य हो?” “कुछ नह वो शबनम आ रही थी, ए चुअली हम दोन यहाँ र शा करके मै ो तक जाते ह। फर मै ो से कॉलेज।” “शबनम!” सा हल ने सोचते ए कहा, “वह आ जाएगी, तुम उसक चता न करो।” “उसे फोन करके बता दे ती ँ क वह मेरा इंतजार न करे।” सो नया बोली। “ठ क है,” सा हल सो नया को बाइक पर बैठने का इशारा करते ए बोला, “एक मैसेज कर दो।” सो नया ने एक मैसेज शबनम को भेज दया, “ड ट वेट फॉर मी, आई एम लटल लेट।” सा हल ब त ही सावधानी से बाइक चलाते ए कॉलेज प ँच गया। सो नया ने नोट कया क आज सा हल के पास बैकपैक नह था। ले कन, आज बैकपैक क जगह सा हल का पुराना बैग था। एक ओर टाँगने वाला बैग, जसे ॉस करते ए सा हल ने अपनी पीठ पर लटकाया आ था। ये बैग बार-बार दोन के बीच म से बाहर नकल कर लटकता आ जा रहा था, जसे सा हल एक हाथ मार कर फर अपनी पीठ पर टाँगे जा रहा था। सो नया ये दे ख रही थी, एक रेड लाइट पर सो नया सा हल से बोली, “लाओ, ये बैग मुझे पकड़ा दो।” “नह -नह । ठ क है।” सा हल ने मना कया। फर, सो नया बोली, “ या नह -नह । लाओ इधर दो” और सो नया ने वह बैग

ख च लया। सा हल ने सो नया के ऐसा करने का यादा वरोध नह कया। सा हल ने बैग सो नया को दे दया जसे सो नया ने अपनी गोद म रख लया।

9

पछले कई दन से, सो नया शबनम से बच रही थी। ‘…कह शबनम को कुछ पता न चल जाए, कह शबनम सुबह दे र से आने और र शा टड पर न मलने क वजह ना पूछने लगे’—यही वचार सो नया के मन म उठते रहते थे। सो नया को न जाने या होने लगा था। हर व कॉलेज हो या फर घर मोबाइल हाथ म ही रहता था। दो-एक मनट बाद या तो सो नया मोबाइल पर कुछ टाइप कर रही होती या पढ़ रही होती। बीचबीच म कोई छोट -मोट कॉल रसीव कर लेती या फर इन टै ट मैसेज के बीच म कसी ‘लंबी कॉल’ म त रहती। शबनम ने सो नया के इन सभी बदलाव को दे खा मगर नजरअंदाज कर दया। शबनम जब भी सो नया को मैसेज टाइप करते ए दे खती या फर बात करते ए दे खती तो मु कुराने लगती। शबनम क मु कुराहट सो नया को परेशान करती थ , शबनम को मु कुराती दे ख सो नया डरने लगती क अब शबनम पूछेगी क, ‘ कससे बात कर रही है या कस मैसेज कर रही है।’ शबनम कभी-कभी मजाक-ही-मजाक म पूछती भी थी ‘कौन है?’, ‘ कसे मैसेज

कर रही है?’ मगर यादा जोर दे कर शबनम ने इस बारे म कभी नह पूछा। शु -शु म कॉल सफ ‘ या कर रही हो?, ‘ या कर रहे हो?, ‘कल का या सीन है?,’ आ द-आ द जैसे तक ही सी मत रही, फर बाद म यही पाँच मनट क कॉल, आधे घंटे, फर पौने घंटे और एक घंटे से भी यादा क होने लगी। सो नया क इन लंबी कॉल क वजह से मोबाइल यादातर ‘ बजी’ ही रहने लगा। इतना बजी क घर से आने वाली कॉल भी सो नया अनदे खा करने लगी। ये बात सो नया के भाई अंकुर उफ ‘भैया जी’ को भी पता लगी। अंकुर का तेज दमाग एक दम से चौक ा हो गया। उधर सा हल का भी कुछ ऐसा ही हाल था। सा हल भी हमेशा मोबाइल म मैसेज टाइप करने या पढ़ने म त रहने लगा। लंबी-लंबी बातचीत के चलते, सा हल ने कई बार उन ‘कॉल ’ को भी नजरअंदाज कर दया जनके लए सा हल अपने दो त म ‘ व यात’ था। बहरहाल दोन —सो नया और सा हल, एक ही क ती म सवार थे— ेम क क ती। रात भर फोन पर बात करना, मैसेज करना ये इन दोन क जदगी का एक अहम ह सा बन चुका था। दोन ही आने वाले भ व य से बेखबर, वाब क नया म ेम क उड़ान भर रहे थे। एक लड़का—‘सा हल’ जस पर कॉलेज क अ धकतर लड़ कयाँ मरती थ और एक यू.पी. से आई अ सरा—‘सो नया’ जस पर सा हल मर मटा था, दोन क तरफ से अभी तक इजहारे-मुह बत नह आ था पर नजर -ही-नजर म दोन ने मुह बत के इकरारनामे म अपनी-अपनी मुहर लगा द थी। एक शाम अचानक ही ‘भैया जी’ को चाय वाले से बात करते दे ख सो नया च क गई। सो नया उस व शबनम के साथ कॉलेज के मेन गेट के पास खड़ी, र शे का इंतजार कर रही थी। सो नया थोड़ी हैरान ई, सो नया को अंकुर के द ली आने क कोई खबर नह थी। सो नया अपने भाई के पास गई, “भैया, नम ते।” अंकुर ने सो नया को दे खा और बोला, “नम ते।” “भैया जी, आप अचानक कैसे?” सो नया ने साधारण-सा पूछा। “ य … तु ह बताना ज री है या?” अंकुर ने अपने अंदाज म जवाब दया। अंकुर क नजर सो नया के साथ खड़ी शबनम पर जा कर क गई। “नह -नह , भैया जी।” सो नया ने बात को संभाला। सो नया अपने भाई को जानती थी। इस तरह से बात करना एक सामा य बात थी। “ये कौन है?” अंकुर ने शबनम क ओर दे खते ए पूछा। “ये! ये मेरी दो त है—शबनम।” “नम ते।” शबनम ने भी औपचा रक प से अंकुर को नम ते कया। अंकुर ने सो नया से पूछा, “मुसलमान है?” “हाँ।” सो नया ने जवाब दया। इस तरह का सुन कर सो नया थोड़ा परेशान हो गई और शबनम सावधान।

“चलो गाड़ी म बैठो।” अंकुर ने दोन को कार म बैठने का इशारा कया। चाय वाले को पैसे दे कर अंकुर गाड़ी म बैठ गया। गाड़ी म बैठते ए शबनम ने दे खा क चाय वाला अंकुर को हाथ जोड़ कर ‘राम-राम’ कर रहा है। शबनम को लगा क अंकुर और चाय वाला दोन एक- सरे को जानते ह। “भैया, ये कार कहाँ से ले आए।” सो नया ने अपने भाई से पूछा। “कार!” बोल कर भैया जी हँसने लगा। फर यू.पी. वाले लहजे म बोला, “हमारे लए कौनो बात मु कल नह है, का तुम जानती नह ।” “जानते ह। भैया।” सो नया ने जवाब दया। भैया जी अपनी ताकत और प ँच क तारीफ सुनकर ब त खुश होगा—ये बात सो नया अ छ तरह जानती थी। इसी लए सो नया ने इस तरह बात क । सो नया भैया जी का यान शबनम क ओर से हटाना चाहती थी। भैया जी, रयर ू मरर म बार-बार शबनम को दे ख रहा था। शबनम भैया जी क नजर को पहचान चुक थी। भैया जी क नजर सामा य नह थ । भैया जी क नजर म एक यास थी—न जाने कैसी यास। खैर शबनम ने इन ‘नजर ’ को अनदे खा कर दया। कार म कोई बात नह ई, सभी चुप थे। शबनम को र शा टड पर छोड़ कर, सो नया और उसका भाई आगे बढ़ गए। घर क ओर जाते ए शबनम सो नया से बोली, “बाय, सोनू।” “बाय, सी यू।” सो नया ने जवाब दया। अपने दोन हाथ को जोड़ कर, भैया जी बोले, ‘नम ते, शबनम।’ ‘नम ते।’ शबनम ने भैया जी क ओर दे खते ए जवाब दया। भैया जी क यासी आँख पहले से ही शबनम को घूर रही थ । ग स हॉ टल के बाहर सो नया को छोड़ कर अंकुर गाड़ी म बैठ गया, सो नया गेट पर खड़ी अंकुर के जाने का इंतजार कर रही थी। सो नया को जरा भी अंदाजा नह था क अंकुर अचानक द ली य आया है। अंकुर ने सो नया को पास बुलाया और पूछा, “कौनो तकलीफ तो नह है यहाँ पर?” “नह , भैया जी कोई तकलीफ नह ।” सो नया गाड़ी के पास आई और बोली। अपने चेहरे पर आई ह क दाढ़ पर हाथ फेरते ए अंकुर बोला, “कोई काम हो तो, हम बताना। हम यह अपने दो त के घर पर के ह।” अंकुर अपना चेहरा रयर ू मरर म दे ख रहा था। “जी। भैया जी।” सो नया ने जवाब दया। “आजकल फोन पर यादा बात कर रही हो। अ मा कह रही थी क जब भी फोन मलाओ तु हारा फोन बजी रहता है।” अंकुर चेहरे पर स ती लाते ए बोला। ये वा य सुन कर, सो नया काँप उठ । सो नया अंकुर के द ली आने का कारण जान चुक थी। वह चुपचाप वह गाड़ी के पास खड़ी रही। “ या आ? सुने क नह ।” अंकुर ने तेज आवाज म कहा। “जी। भैया जी। वो हम शबनम से बात करते ह न। यहाँ पर या कर, कसी से बात कर। बस ऐसे ही टाइम पास कर लेते ह।” सो नया ने अपनी सफाई द । इस पर अंकुर जो अब भी दाढ़ पर हाथ फेर रहा था, गाड़ी से उतर गया। अंकुर

सो नया के सर पर यार से हाथ रखकर बोला, “हमने तुमसे पूछा या क कससे बात करती हो। और सोनू तुम यहाँ पढ़ने आई हो तो पढ़ाई करो न। ये टाइम पास का होता है!” बोलते ए अंकुर क आवाज तेज हो गई। सो नया ऐसी तेज आवाज पहले भी कई बार सुन चुक थी। अंकुर का इस तरह बात करने का मतलब था क अंकुर गु से म है। सो नया फर डर गई। सो नया अपने को संभालते ए मु कुराई। ये फ क और झूठ मु कान सो नया के डरे ए चेहरे से मेल नह खा रही थी। अंकुर ने सो नया का चेहरा पढ़ लया। “डरो नह , बस पढ़ाई करो।” अंकुर बोला। सो नया ने हाँ म गदन हलाई। इतने म अंकुर का मोबाइल बज उठा। अंकुर ने फोन उठाया, “बोलो संकठा।” अंकुर ने सरी तरफ क बात सुन कर बोला, “ या काम नह बना। तुमसे कोई काम नह होता है। चॉकलेट, ेसलेट वगैरह दे ना, अगली बार समझे।” अंकुर झुँझला उठा। अंकुर ने सो नया क तरफ दे खा और हाथ से अंदर जाने का इशारा करके वहाँ से चला गया। अंकुर के जाने के बाद सो नया सहमी-सहमी हॉ टल के गेट क ओर बढ़ने लगी।

10

‘घर प ँच गई’ एक मैसेज मोबाइल पर आया। सो नया ने फोन दे खा, मैसेज सा हल का था। सो नया ने तुरंत एक मैसेज जवाब म भेज दया, ‘हाँ। आज मेरे भैया अंकुर कॉलेज आए थे। वह कभी भी मुझे फोन कर सकते ह। गुड नाईट।’ ‘गुड नाईट, अभी से!’ सा हल का मैसेज आया। ‘ लीज, आज म कोई बात नह कर पाऊँगी। भैया पूछ रहे थे क मेरा फोन बजी य रहता है?’ सो नया ने मैसेज का जवाब दया। सो नया अंकुर के द ली आने से आ यच कत ज र ई थी मगर ‘फोन बजी’ रहने वाली बात से तो सो नया बेहद डर गई थी। सो नया नह चाहती थी क कोई उसे फोन करे तो उसका फोन बजी मले। सो नया अपने भाई अंकुर को अ छ तरह से जानती थी। अंकुर क बातचीत और वहार से सो नया जान गई थी क कह कोई भयंकर गड़बड़ तो ज र है वरना अंकुर यूँ अचानक द ली नह आता। सो नया ने अपने दमाग पर खूब जोर डाला और सोचा, जसके बाद सो नया ने न कष नकाला क ‘फोन का बजी रहना ही’ अंकुर के द ली आने का सबब है। सो नया का डरना वाभा वक था। अंकुर को अपने एम.एल.ए. पता का पूरा

सपोट जो था। अंकुर अपने इलाके का लोक य नेता था। अंकुर को अगर इधर द ली म कुछ भी अटपटा लगा, तो सो नया का कॉलेज बंद हो जाएगा और सो नया ऐसा ब कुल भी नह चाहती थी। सो नया इ ह वचार म खोई ई थी क मोबाइल बज उठा। सो नया ने दे खा फोन सा हल का था। सो नया ने फोन काट दया। मगर फोन फर से बजना शु हो गया। फोन इस बार भी सा हल का था। सो नया ने फर फोन काट दया। सो नया ने एक मैसेज तुरंत सा हल को भेजा— ‘सॉरी, आज बात नह हो पाएगी।’ इससे पहले मैसेज सा हल तक प ँचता फोन फर बज उठा। सो नया ने सा हल को फोन पर बात करके ही सारी थ त समझाने क सोची। सो नया ने कॉल उठा ली, “हैलो।” “हैलो। या आ फोन य नही उठा रही हो?” सा हल ने पूछा। सो नया ने ज द से सारी बात समझाई, “सा हल आज बात नह हो पाएगी। गाँव से भैया आ गए ह। कल बात करती ँ। सॉरी।” सो नया ने सा हल का जवाब सुने बना ही फोन काट दया। सो नया ने सफ 15 सै कड ही बात क होगी। मगर सो नया क हालत दे ख कर लग रहा था क जैसे सो नया ने कसी खौफनाक साए को दे ख लया हो। सो नया सा हल से बात करते ए बेहद डर रही थी। सो नया को डर था क कह बात करते ए अंकुर भैया का फोन न आ जाए। सो नया अभी ये सोच ही रही थी क फोन फर बज उठा। फोन अंकुर का था। “हैलो, भैया जी” सो नया ने फोन उठाया। “हैलो। खाना खा लया सोनू।” अंकुर ने बड़े ही यार से पूछा। “नह भैया, अभी खाना तैयार नह आ है।” सो नया ने अंकुर को सामा य होते ए जवाब दया। “तो सुनो, हम प जा ऑडर कर रहे ह तुम अपना पता मैसेज कर दो।” “जी, भैया जी। अभी भेजते ह।” सो नया ने मैसेज टाइप कया और अंकुर को भेज दया। अंकुर ने जब सो नया को कॉल कया तो फोन बजी नह था। अभी दो सै कड पहले ही तो सो नया सा हल से बात कर रही थी। सो नया ने इसके लए भगवान का शु या अदा कया और प जा का इंतजार करने लगी। लगभग 20 मनट बाद प जा बॉय आ गया। सो नया ने प जा ले लया। सो नया को प जा बॉय का चेहरा जाना-पहचाना-सा लगा। सो नया को लग रहा था क वह प जा बॉय को जानती है। सो नया ने याद करने क को शश क मगर कुछ याद नह आया। बहरहाल सो नया ने अपने भाई से बात करने के बाद थोड़ी राहत क साँस ली। साफ था क अब अंकुर सो नया को फोन नह करेगा—ऐसा सो नया ने सोचा। उस रात सो नया ने सफ मैसेज से बात क । सो नया मैसेज करते और पढ़ते-पढ़ते सो गई। इस बात से अंजान क कल क सुबह कैसी होगी।

सुबह ठ क व पर गाड़ी लेकर अंकुर हॉ टल के सामने खड़ा था। सो नया ने अंकुर को नम ते क और गाड़ी म बैठ गई। “वो तु हारी ड भी होगी उसे भी ले ल या?” अंकुर ने शबनम के बारे म बात करते ए सो नया से पूछा। “जी, भैया जी।” सो नया सफ हाँ कर सकती थी सो उसने वैसा ही कया। र शा टड पर अभी तक शबनम प ँची नह थी। अंकुर सो नया से बोला, “उससे पूछो आज कॉलेज जाना है या नह ।” “जी।” सो नया ने तुरंत शबनम को फोन मलाया। “हैलो, श बो कहाँ हो? म और भैया तु हारा इंतजार कर रहे ह। ज द आओ।” “बस दो मनट म।” शबनम ने जवाब दया। थोड़ी दे र म शबनम आ गई। शबनम को दे खकर अंकुर अपनी टाइल म बोला, “नम ते।” “नम ते! भैया जी” शबनम ने बड़े सामा य तरीके से जवाब दया और सो नया के साथ गाड़ी म बैठ गई। गाड़ी चल पड़ी। शबनम ने हजाब पहना आ था। अंकुर ने रयर ू मरर थोड़ा घुमाया तो शबनम और अंकुर क नजर मल ग । सो नया अपने भाई क हरकत दे ख रही थी। रयर ू मरर म दे खते ए अंकुर ने शबनम से पूछा, “ या बात करते रहते हो तुम दोन रात भर।” अचानक आए इस पर शबनम थोड़ा घबरा गई। उसने सो नया क ओर दे खा। सो नया भी घबराई ई थी। “उधर या दे ख रही हो।” अंकुर ने शीशे म दे खते ए पूछा। “कुछ नह भैया जी बस ऐसे ही” शबनम ने बात को संभालते ए जवाब दया। “बस ऐसे ही!” अंकुर थोड़ा हँसा, “ऐसी ही सारी रात भर, दन भर बात करते रहते हो।” बोल कर अंकुर जोर-जोर से हँसने लगा। सो नया ने आँख -ही-आँख म शबनम को बात संभालने के लए ध यवाद दया। शबनम एक समझदार लड़क थी। वह द ली म ही पली-बढ़ थी। हालाँ क पीछे से वह भी यू.पी. के कसी गाँव से ही थी। कॉलेज प ँचने तक गाड़ी म चु पी छाई रही। बीच-बीच म रयर ू मरर म शबनम और अंकुर क नजर भी मलती रह । “सोनू,” कॉलेज के मेन गेट पर प ँचकर अंकुर बोला। “जी, भैया जी।” सो नया बोली। दोन गाड़ी से उतर चुक थ । शबनम ने अपना हजाब उतारकर उसे पट् टे क तरह ओढ़ लया था। “हम आज जा रहे ह। अपना यान रखना।” अंकुर सो नया से बोला, “तुम भी अपना याल रखना।” फर शबनम क ओर मुखा तब होकर अंकुर मु कुराते ए बोला। जवाब म शबनम ने अपना सर हला कर हामी भरी। शबनम और सो नया वह गेट पर खड़ी-खड़ी गाड़ी को जाते दे खती रह । गाड़ी के

जाने के बाद सो नया ने शबनम को गले लगाया, “थ स, श बो। तूने मुझे बचा लया।” इस पर शबनम मासूम-सा चेहरा बनाते ए बोली, “ कस चीज से बचा लया भई? बता-बता।” शबनम सो नया को छे ड़ने लगी। सो नया कुछ न बोली, बस मु कुराती रही। जब क शबनम अ छ तरह से जानती थी, उसने सो नया को कस चीज से (सा हल और सो नया क बढ़ती दो ती के राज का, अंकुर के सामने खुलासा होने से) बचाया है।

11

थी।

“ब त खुश लग रही हो।” सा हल ने सो नया से पूछा। दो ले चर अटड करने के बाद सो नया, कॉलेज प रसर म एक बच पर बैठ



सो नया सा हल क ओर मासू मयत से दे खते ए बोली, “खुश!” सो नया ने ये ‘खुश’ श द ऐसे बोला जैसे क ये कोई श द न हो कर कोई अजूबा हो। “तु ह या पता सा हल क कल शाम से आज सुबह तक मेरी या हालत थी?” सा हल भी सो नया के साथ उसी बच पर बैठ गया। सो नया अपनी गोद म रखे ए बैग क चैन को हलाने लगी। चैन म एक दल के आकार का छ ला भी लगा आ था। ये छ ला, सा हल ने सो नया को उपहार म दया था। सा हल को सो नया के साथ बैठे एक मनट हो चुका था, मगर सो नया उस दल के छ ले को परेशानी म हलाए जा रही थी। सो नया को परेशान दे ख कर सा हल ने पूछा, “ या आ है तु ह?…और या आ है कल शाम से आज सुबह तक?” सा हल ने बड़ी आ मीयता से सो नया को दे खा। “कल भैया आए थे।” सो नया अब भी सर नीचे कए छ ले को हला रही थी। “हाँ तो!” सा हल तुरंत बोला। आवाज थोड़ी-सी तेज थी। “तुम मेरे भैया को नह जानते…वे बना बताए यहाँ आए थे…।” सो नया बोली। “अरे! यही तो पूछा रहा था क भैया के आने से तुम इतनी परेशान य हो?” सा हल ने ऐसे पूछा जैसे क ये कोई सामा य-सी बात हो। “नह , सा हल। मेरे भैया यहाँ बना बात ही नह आए थे।” सो नया क आवाज

क परेशानी और घबराहट सा हल समझ गया। “तो, तुम ही बताओ… या कारण था, तु हारे भाई के यहाँ पर आने का।” सा हल ने थोड़ा गंभीरता से पूछा। “मेरा मोबाइल फोन” बोलकर सो नया ने सा हल क ओर दे खा “मेरे घरवाल को हमेशा बजी मला, जब कभी उ ह ने मुझे कॉल कया।” “ओह!” सा हल बात को समझ रहा था। सो नया ने अपनी बात जारी रखी, “ऐसा एक-दो बार नह , ब क कई बार आ। मेरी माँ को तो यादा कुछ पता नह , पर…मेरे भाई ने इसे गंभीरता से लया। शायद भैया मेरे मोबाइल फोन के बजी रहने का…सबब दे खने आए थे।” “तो या दे खा उ ह ने?” सा हल मामले को समझ चुका था। सा हल जानता था कअ य प से वह खुद भी सो नया क परेशानी का कारण था। “उ ह शक हो गया है, सा हल।” सो नया संजीदा हो कर बोली। “ कस बात का?” सा हल को मालूम था क सो नया कस बारे म बात कर रही है। फर भी वह सो नया के मुँह से सुनना चाहता था। “हमारी दो ती का।” “पर दो ती पर कैसा शक!” जानबूझ कर सा हल ने ऐसा बोला। “मेरा मतलब, हमारी दो ती का…हम दोन जो रात-रात भर बात कया करते ह न उसी को लेकर भैया को शक हो गया है क कही…” बोलते-बोलते सो नया क गई। “ क कह …मतलब!” सा हल ने पूछा। “ क कह म कसी लड़के से यार तो नह कर बैठ ।” बोल कर सो नया चुप हो गई। सो नया और सा हल एक- सरे क नजर म दे ख रहे थे। दोन क नजर सब कुछ बयां कर रही थ । सा हल बच से उठा और सो नया के सामने, घुटन पर बैठ गया। सा हल ने सो नया से बैग लेकर बच पर रख दया, फर सो नया के दोन हाथ को अपने हाथ म ले कर बोला, “सोनू, चुप मत रहो। लीज, बात को पूरा करो।” सा हल सो नया का चेहरा पढ़ने क को शश कर रहा था। सो नया अब भी नजर झुकाए ए सा हल के सामने बैठ थी। सो नया के चेहरे पर आई गुलाबी रंगत बता रही थी क सो नया सा हल से यार करने लगी है। सा हल ने अपने सीधे हाथ से सो नया का चेहरा ऊपर कया—चेहरे क गुलाबी रंगत, यार के इकरार से, शम क लाली म बदल गई। सो नया क आँख झुक ई थ । सा हल धीरे से बोला, “मेरी ओर दे खो सोनू।” आँख अब भी झुक ई थ । सो नया के हाथ क कपकपी सा हल महसूस कर रहा था। सा हल सो नया के दोन हाथ को छोड़ कर खड़ा आ और यार से बोला, “इधर दे खो। …सोनू।” सो नया के मुँह से श द नह नकल पा रहे थे। सो नया ने नजर उठा कर सा हल क ओर दे खा। सा हल सामने दोन बाँह फैला कर खड़ा था। सो नया उठ और सा हल

के पास गई। सा हल के कंधे पर सर रख कर सुबकने लगी। ये यार के इकरार क खुशी थी या अंकुर भैया का डर—ये तो सो नया भी नह जानती थी। सा हल ने सो नया को अपनी बाँह म समेटते ए उसके कान म, ब त ही म म आवाज म यार से कहा, “आई लव यू।” ‘आई लव यू’ सुनते ही सो नया क सुब कयाँ तेज हो ग । आस-पास बैठे सभी इन दोन को ही दे ख रहे थे। कोई तो इनके यार पर खुश हो रहा था तो कोई इ ह ‘बेशम’ कह कर चढ़ा रहा था। शबनम भी बच के पीछे पेड़-पौध के झुरमुट म से ये सब दे ख रही थी। शबनम शु से ही यहाँ पर थी, जब सो नया अकेले बच पर बैठ इंतजार कर रही थी। शबनम और सो नया लास के बाद अ सर इसी बच पर बैठा करती थ । शबनम ने वह खड़े-खड़े आसमान क ओर दे खा और खुदा को शु या अदा कया। शबनम ब त खुश थी, उसक मदद से ही तो सा हल और सो नया क दो ती ई थी, वही दो ती आज यार म बदल चुक थी। शबनम को कुछ दन पहले क बात याद आई…जब बस टड पर सा हल ने शबनम से सो नया का मोबाइल नं. माँगा था। सा हल क काफ म त के बाद से ही, शबनम सुबह दे र से आने लगी थी, जसके कारण सा हल को सो नया को अपनी बाइक पर कॉलेज छोड़ने का मौका मल जाता था और जसक वजह से दोन म नजद कयाँ बढ़ने लगी थ । थे तो ये तीन आ खर कॉलेज टू डड ही, युवा मन जब सपन के आकाश म अपले दल क पतंग उड़ाता है तो उसे पतंग कटने का डर नह होता। सा हल और सो नया भी सपन के आकाश म उड़ने लगे थे, इस बात से बेखबर क अंकुर अब भी द ली म ही है। कॉलेज प रसर से बाहर नकलते ए सा हल क नजर पेड़ के झुरमुट के पीछे खड़ी शबनम पर पड़ी। शबनम और सा हल दोन एक- सरे को दे खकर मु कुराने लगे— जैसे क कोई ब त बड़ा काम पूरा हो गया हो। सा हल ने शबनम को अपना अँगूठा दखाते ए ‘थ स अप’ का इशारा कया। सो नया को द ली म तीन महीने हो चुके थे। सा हल और सो नया क दो ती ढाई महीने पुरानी हो चुक थी, ढाई महीन क ये दो ती ढाई साल क दो ती से भी यादा प क हो चुक थी, य क ये अब यार म बदल चुक थी। बाइक पर बैठने के बाद सो नया अब काफ ह का महसूस कर रही थी। कहते ह, रो लेने से ःख कम हो जाता है। भाई क टशन से सो नया नजात पा चुक थी। सारी रात उलझन और परेशानी से च वात से जूझते ए सो नया हार चुक थी। तभी यूँ कॉलेज प रसर म अभी कुछ दे र पहले एक बच पर उदास बैठ थी। फर सा हल का आना और ‘ यार का इकरार’—ये सारे य सो नया के म त क म चल च क भाँ त चल रहे थे। हजाब पहने ए सो नया ने अपना सर सा हल के कंध पर रखा, तो सा हल ने मुड़कर पीछे दे खा और पूछा, “ या आ सोनू?” ये पहली बार था जब सो नया ने अपनापन जताते ए ऐसा कया था— यार अंजाने म ही अपनापन जताने लगता है। “कुछ नह ।” सो नया ने कंधे पर सर रखे ए ही जवाब दया। सा हल का बैग आज सो नया के कंधे पर झूल रहा था जसम सो नया के हडबैग के अलावा कुछ पु तक

भी थ । सा हल और सो नया तेज र तार से द ली क सड़क पर ‘यूँ ही’ घूम रहे थे— जाना कह भी नह था। ऐसे ही घूमते-घूमते दोन ‘ नॉट लेस’ प ँच गए, फर कुछ दे र पा लका म घूमने के बाद दोन ‘मै ो पाक’ प ँच।े एक पेड़ क आड़ म बैठे दोन एकसरे को दे ख रहे थे। सो नया का ये पहला मौका था जब वह इस पाक म आई थी। पाक म कॉलेज के लड़के-लड़ कयाँ और युवा जोड़े एकांत म बैठे ए अपनी ‘ ेम नगरी’ के मधुर वाब को बुन रहे थे। सो नया को ये अजीब लग रहा था। सा हल ये बात जान गया, “आर यू कंफटबल, हेयर?” जवाब म सो नया कुछ बोली नह बस सा हल को दे खती रही। सा हल तुरंत अपनी जगह से उठा। उठकर अपना हाथ सो नया क ओर बढ़ाया। सा हल के हाथ म अपना हाथ दे कर सो नया भी उठ । सा हल ने पेड़ के नीचे से अपना बैग उठाया और दोन वहाँ से नकल गए। सो नया जब वहाँ से उठ तो उसने चार तरफ दे खा। फर पट् टे को हजाब क तरह पहना और वहाँ से चल द । चलते-चलते दोन बाइक तक प ँचे। इस बीच सो नया ने लगभग तीन-चार बार चार तरफ दे खा। सा हल क नजर ये सब दे ख रही थ । बाइक टाट करने के बाद सा हल ने सो नया से पूछा, “ या आ? इधर-उधर या दे ख रही हो?” “कुछ नह , ऐसे ही बस।” सो नया ने जवाब दया। सो नया थोड़ी च तत लग रही थी। सा हल ने फर जोर दे कर पूछा, “नह , कुछ तो बात ज र है।” सा हल के जोर दे ने पर सो नया बोली, “मुझे लगा, जैसे क कोई हम दे ख रहा है। इसी लए म इधर-उधर दे ख रही थी।” सो नया थोड़ी घबराई ई-सी लग रही थी। “ फर दखा कोई।” सा हल ने बात को नजरअंदाज करते ए मजाक करते ए पूछा। “नह तो।” सो नया बोली। “अ छा बताओ, कौन दे ख रहा था?” सा हल बोला। “कोई नह —कोई भी तो नह ।” सो नया ने जवाब दया। “नह , तु ह लग रहा था न क कोई हम दे ख रहा है। म उसी क ही बात कर रहा ँ क कौन दे ख रहा था?” सा हल ने पूछा। सा हल कनॉट लेस क अंद नी सड़क म बाइक चला रहा था। “भैया जी—अंकुर भैया।” सो नया के मुँह से नकला। ‘अंकुर’ नाम सुनते ही, सा हल क बाइक एक झटके म क गई। सा हल ने पीछे मुड़कर दे खा। सो नया झटके के साथ ही सा हल से टकरा गई। सो नया ने सा हल क आँख म चता क बदली दे खी। सा हल और सो नया से 10-15 मीटर री पर एक और बाइक भी झटके से क ई थी। बाइक पर दो लोग काला हे मेट लगाए बैठे थे। सा हल ने दे खा क बाइक धीरे-धीरे से उनक ओर बढ़ रही है। सा हल का चेहरा स त हो गया। आँख बाइक पर बैठे लोग क एक-एक हरकत

को नोट कर रही थ । सो नया ने जब सा हल के चेहरे पर ये भाव दे ख,े तो सो नया क गदन भी पीछे क ओर घूमी, जसे सा हल ने अपनी आँख से इशारा कर रोक दया। बाइक धीरे-धीरे उनके पास गई और कुल पल क और आगे बढ़ कर एक गली म मुड़ गई। बाइक के अपने पास कने क वजह से सो नया घबरा गई। “मुझे कस कर पकड़ लो” कहने के साथ ही सा हल ने अपनी बाइक, सरी बाइक के पीछे उस गली म घुसा द । मगर गली म कोई बाइक नह थी। इधर-उधर, आस-पास क ग लय म बाइक दौड़ाने के बावजूद भी जब उस बाइक का कुछ अता-पता नह मला तो सा हल बोला, “सोनू! चता मत करो। इधर, आस-पास मा कट के ही लड़के ह गे। शायद दे ख रहे ह गे क हम कुछ परेशानी तो नह है।” सो नया चुपचाप सुन रही थी और सा हल का चेहरा पढ़ने क को शश कर रही थी। “हम अचानक ही सड़क पर क गए थे न। इसी लए वे चैक कर रहे थे क कह कुछ पं चर-वं चर तो नह हो गया है।” सा हल इस घटना को एक आम घटना मानते ए सो नया को समझाने क को शश कर रहा था। सा हल अ छ तरह से जानता था क ये आम घटना नह है और इसका भाव या- या हो सकता है। मगर सो नया भी ब ची नह थी। सा हल का चेहरा, सारी कहानी बयान कर रहा था। फर भी, सो नया सामा य रहते ए, सा हल क बात समझने क को शश करने लगी।

12

‘हे मेट लगाए, बाइक पर सवार लड़क क त वीर’—अब भी सो नया के मनम त क म कसी हॉरर मूवी क तरह चल रही थ । सो नया ब त डर गई थी। सुबह सा हल से मलने के बाद ही सो नया सामा य हो पाई थी। मगर, इस बाइक वाली घटना ने सो नया को फर से, उ ह चता क आँ धय म ला पटका था। सो नया अपने कमरे म ब त बेबस और लाचार लग रही थी। ‘वाडन।’—सो नया क ऐसी थ त का कारण वाडन था। ‘वाडन’ कोई और नह सो नया का भाई अंकुर ही था। कूल आने-जाने के समय, जब सो नया पर नजर रखी जाने लगी थी तभी से सो नया को अंकुर एक वाडन क तरह लगने लगा था, जो हर घटना क जानकारी जेलर यानी के अपने पता को जा कर दया करता था। घबराई ई सो नया, कमरे से नकल कर बालकनी म आ गई, र आकाश म कुछ चील गोलाकार घेरा बनाकर मंडरा रही थ । जमीन पर चील को कह पर अपना शकार नजर आ रहा था। चील क ओर दे खते ए सो नया को कसी अनहोनी क आशंका ई। चता म घरी सो नया को अपने कूली दन क याद आई जब सो नया पर नजर रखी जाती थी और सो नया पर बं दश लगाई जा रही थ । लड़क के कशोराव था से युवा होने तक का समय हर माता- पता के लए चता का वषय होता है। ये एक ऐसा व होता है जब लड़क को पा रवा रक सहानुभू त के साथ-साथ थोड़े मागदशन क भी ज रत होती है। ‘अ छाई और बुराई म बाल के

हजारव ह से के बराबर भी फक नह होता’—ये बात इस उ के लड़के-लड़ कयाँ समझ नह पाते। सो नया भी तब उ के इसी पड़ाव पर थी। सहानुभू त और मागदशन क जगह सो नया पर पाबं दयाँ लगाई जाने लग और ये रोक-टोक दन- त दन बढ़ने लगी। जैस-े जैसे सो नया पर पाबं दयाँ बढ़ , वैसे-वैसे ही उसी अनुपात म पाबं दय को तोड़ कर, वतं जीवन क अ भलाषाएँ भी सो नया के मन म उठने लग । सो नया, सपन क नया म, एक ऐसी जदगी जीने लगी, जहाँ पर न तो कोई वाडन था, न कोई जेल—और न ही कोई उसका जेलर! उन दन , डरी-सहमी-सी सो नया अपने अधूरे सपन को एक डायरी म लख दया करती थी। वे सपने जो सो नया खुली आँख से दे खा करती थी— ‘ या कभी म पढ़- लख कर बड़ी ऑ फसर बन पाऊँगी?’ ‘ या म कभी ज स-टॉप पहनूँगी?’ ‘ या मेरा कभी ‘ वाय ड’ होगा, होगा तो कैसा होगा?’ ‘ या जेलर और वाडन कभी मुझे समझ पाएँग? े ’ ‘माँ, कुछ करती य नह ?’ सो नया क डायरी म जो सपने थे, वे दरअसल सो नया के खुद से पूछे गए थे। सो नया ने हर वा य के ऊपर लाल, हरे, पीले, गुलाबी रंग से सतारे बनाए ए थे। कसी पर एक हरा सतारा तो कसी पर पाँच गुलाबी सतारे। इस डायरी का कसी को कुछ पता नह था, न कूल म और न ही घर म। उ ह कूली दन क एक घटना जब सो नया को याद आई तो वह बुरी तरह डर गई… …एक बार सो नया क लास के एक लड़के को अंकुर ने सो नया से बात करते ए दे ख लया। कसी बात पर दोन ब त हँस रहे थे। उस व सो नया दसव म थी और कूल से घर का रा ता 10 मनट का था। सभी पैदल ही घर जा रहे थे। सो नया से बात करने के बाद वह लड़का सही-सलामत अपने घर न प ँच पाया। जब वह घर प ँचा तब उसके सर और नाक से खून बह रहा था। जब लड़के के माँ-बाप ने इसक वजह पूछ तो—‘ फसल कर गर गया था’—ये जवाब मला। जब क सभी जानते थे क ये कैसे आ है? मगर अंकुर और उसके पता के डर से कुछ न बोला। …सो नया को अब सा हल क चता होने लगी। सो नया को डर था क कह सा हल का हाल भी ‘उस’ लड़के जैसे न हो जाए। सो नया जब बालकनी से कमरे क ओर मुड़ी। तभी नीचे गली से एक बाइक गुजरी। बाइक पर दो लड़के बैठे ए थे, ज ह ने हे मेट पहने ए थे। सो नया को लगा क ये ‘वही’ लड़के ह जो सुबह कनॉट लेस क ग लय म मले थे। कुछ सोचकर वह दौड़ कर कमरे म प ँची, मोबाइल उठाया और एक नंबर मलाया। नंबर उसक माँ का था। पूरी घंट बजने के बाद सरी ओर से माँ ने कॉल पक क । “अ मा!” “हाँ, सोनू। मेरी ब ची। ब त दन म याद आई अ मा क । कैसी हो?” माँ ने एक

साथ कई सारे पूछ डाले। “हम ठ क ह, अ मा। आप कैसे ह? घर पर सब कैसे ह? बाबू जी और भैया जी कैसे ह?” सो नया ने माँ के सवाल का जवाब दे कर खुद कई सवाल कर दए। “अचानक सब का हाल पूछ रही है। सब ठ क तो है न?” “हाँ। अ मा सब ठ क है। बाबू जी और भैया कहाँ ह?” सो नया ने फर से वही सवालात दोहराए। “बाबू जी…तो तु हारे मी टग म गए ह कह कोई सभा वगैरह म। तुम तो जानती हो न ब टया वह हमेशा इ ह काम म उलझे रहते ह।” माँ ने जवाब दया। “और भैया?” “भैया” माँ कुछ पल क कर फर बोली, “अंकुर तो वह है— द ली म। मला नह या तुमसे?” माँ ने पूछा। “ मले थे अ मा। ले कन भैया तो कल ही यहाँ से नकल गए थे।” फर सो नया ने बात को बदलते ए कहा—“ठ क से प ँच गए या नह , यही पूछने के लए फोन कया था।” “अरे वह अपने कसी दो त क पाट म गया है। अभी नह , दो दन बाद आएगा।” माँ ने जवाब दया। ‘अंकुर अभी द ली म ही है’—ये जानकर सो नया के पाँव तले जमीन खसक गई, वह अपने को संभालते ए बोली, “अ छा अ मा फोन रखते ह। अपना यान रखना।” “अ छा ब टया ठ क से पढ़ना और खाना टाइम पर खा लया करना।” कहकर माँ ने फोन रख दया। सो नया ने तुरंत सा हल को नंबर मलाया। पूरी ‘ रग’ जाने के बाद भी सा हल ने फोन नह उठाया। सो नया ने एक बार फर नंबर मलाया। थ त जस-क -तस, इस बार भी सा हल ने फोन नह उठाया। सो नया के दल क धड़कन तेज हो ग । ऐसे लग रहा था क दल सीने से नकल कर बाहर आ जाएगा। सो नया को डर था क ‘कह अंकुर ने अपने दो त को भेजकर सा हल को ‘कुछ’ कर न दया हो।’ सो नया ने लगातार कई फोन कए। शाम छह बजे से कोई 7.30 तक लगभग बीस कॉल सो नया कर चुक थी। जसम से एक का भी जवाब नह आया था। थक-हार कर सो नया ने एक मैसेज सा हल को भेजा—‘कॉल मी, अरजटली।’ मोबाइल फोन हाथ म लए सो नया कमरे म चहलकदमी कर रही थी। सा हल के फोन का इंतजार कर रही थी। मगर इस रात कोई फोन नह आया और न ही कोई मैसेज आया।

13

नव बर, 2013 … पछले कुछ दन से उ म दे श के एक इलाके सलामतगंज म थ त कुछ असामा य-सी थी। दो धा मक गुट म कसी बात को लेकर ववाद हो गया था। हर रोज कसी-न- कसी लड़ाई-झगड़े क खबर आ रही थ । ये छोट -मोट झड़प रा ीय यूज चैनल पर दखाई नह जा रही थ —डर था क कह इन खबर से धा मक ववाद और न बढ़ जाए। रात के दस बजे सो नया का मोबाइल बजा। कॉल सा हल क थी, जसे दे खते ही सो नया ने रसीव कर लया। “हैलो।” घबराई ई सो नया बोली। “हैलो, सोनू…।” “कहाँ थे तुम? कतनी बार फोन कया तु ह?” सो नया क आवाज म चता और गु सा दोन एक साथ थे। “मेरा मोबाइल चा जग पर लगा था।” सा हल ने जवाब दया। इससे पहले क सा हल अपनी बात पूरी कर पाता सो नया ने सरा दाग दया। “चा जग पर…। तुम थे कहाँ?” “दरअसल मेरा एक दो त आ गया था, अचानक ही मुझे उसके साथ जाना पड़ा था और ज दबाजी म मेरा मोबाइल इधर म पर ही रह गया। जब मने तु हारी मस कॉल दे खी तो तु ह फोन कया…बस अभी-अभी ही प ँचा ँ म पर।” एक ही साँस म सा हल ने मोबाइल न उठा पाने का कारण सो नया को बता दया। मगर सो नया के अभी ख म नह ए। वह तो शाम 6.00 बजे से चता और घबराहट के आँधी-तूफान से जूझ रही थी।

सो नया ने सा हल क बात सुनी और पूछा, “ऐसा या हो गया था तु हारे दो त को, जो 6.00 बजे के गए अब प ँचे हो म पर?” सो नया ने सा हल पर अपना हक जताते ए कहा। “तु ह नह मालूम।” सा हल आ यच कत था। “ य ?” “तुमने यूज नह दे खी या?” “नह तो। य या आ?” सो नया ने टे बल पर पड़ा रमोट हाथ म उठाया और यूज चैनल लगाया। ट .वी. पर व ापन आ रहे थे। सो नया ने सरा, फर तीसरा, एक-एक करके सारे यूज चैनल बदले ले कन सभी पर व ापन ही आ रहे थे। सा हल बोला, “ये तो तु ह पता ही होगा क पछले कुछ दन से तु हारे गाँव के इलाके म कुछ टशन चल रही थी, वही टशन अब दं गे म बदल चुक है।” सा हल ने टे बल से पानी क बोतल उठाई और एक ही साँस म गटकते ए बोला, “और तु हारे गाँव के पास के गाँव म दं गा भड़क गया है।” “ कस गाँव म!” सो नया ने तुरंत ही पूछा। “ये अभी नह पता चल पाया है। उसे रेलवे क टकट नह मल पा रही थी। इसी लए वह आया था।” “तु हारे दो त के गाँव म दं गा आ है या?” सो नया ने बात सुनने के बाद कया। “पता नह ।” सा हल ने जवाब दया। साफ था क दं गा कस- कस गाँव म आ है ये अभी तक पता नह चल पाया था। “ फर!” सो नया बोली। “सोनू। जब ये दं गा होता है न। तो ये गाँव, इलाका नह दे खता—बस भड़कता जाता है और ऐसे म मारे जाते ह—गरीब, बूढ़े, ब चे और औरत। ऐसी कसी भी थ त से नपटने के लए—मेरा दो त अपने गाँव जाना चाहता था और इसी लए टकट बुक करवाने के लए आया था, य क नेट से ‘त काल’ भी नह मल रही थी।” “ फर…” सो नया जानना चाहती थी क इसके बाद या आ। “ फर या, उसे ऐसे ही एक ड बे म बैठा दया और एक मोबाइल नंबर दया है उसे। ट .ट . जब आएगा तो मेरा दो त इस फोन पर ट .ट . क बात करवा दे गा।” सा हल ने पूरी बात बता द । “अ छा तो आप समाज सेवा भी करते हो। खैर कसका नंबर दया है तुमने अपने दो त को।” सो नया थोड़ी नॉमल ई। “ह एक अंकल—रेलवे म बड़े ऑ फसर ह, तुम बताओ तुमने मुझे एक साथ इतनी सारी कॉल कर द । सब ठ क तो है न?” सा हल ने अब सो नया से उन ‘ म ड कॉ स’ के बारे म पूछा। ‘ म ड कॉल’ का नाम सुनते ही सो नया को शाम 6 बजे वाली घटना याद आ गई। सो नया एक बार फर से घबराने लगी। “सा हल…” घबराहट के साथ सो नया बोली। “हाँ, सोनू। तु हारी आवाज को या आ? तुम ठ क तो हो न।” सा हल ने

सो नया क आवाज म उसक घबराहट को महसूस कर लया था। “हाँ म ठ क ँ। वो दखाई दए थे…” “कौन?” सा हल तेज आवाज म बोला। “वही लड़के जो आज कनॉट लेस म दखाई दए थे।” “वे यहाँ कैसे!” सा हल ने सो नया को समझाया। “वे यहाँ कैसे आ सकते ह? उ ह तु हारा पता कैसे मालूम आ?” “पता नह ।” असमंजस क -सी थ त म सो नया ने जवाब दया। “सोनू, ये तु हारा म होगा। तुम ब त घबरा गई हो। इसी लए तु ह हर बाइक सवार म—वही लड़के दखाई दे रहे ह।” सा हल ने सो नया को समझाया, “तुम डरो नह । म ँ न और इस बारे म मत सोचो। जतना सोचोगी उतना ही परेशान होगी। ओके।” “पर…मुझे लगता है क वे लड़के ‘वही’ थे। वही बाइक, वही हे मेट और वही कपड़े। मेरा यक न करो।” सो नया ने अपनी बात फर से दोहराई। “पर-वर कुछ नह , तु ह मेरी कसम। तुम कोई अ छ -सी मूवी दे खो और सो जाओ। बाक तुम मुझ पर छोड़ दो। लीज।” सा हल ने सो नया को यार से समझाया, “तु ह मेरी कसम है लीज, अपने आपको संभालो।” सा हल के समझाने पर सो नया ने बात को समझने क को शश क मगर समझ नह पा रही थी। जो उसने आँख से दे खा था—वह सफ संयोग नह हो सकता था— सो नया को इस बात पर पूरा भरोसा था। खैर, सा हल के कहने पर सो नया बोली, “ओके, सा हल। आई ो मस यू।” सो नया ट .वी. पर एक रोमां टक मूवी दे खने लगी। “थ स एंड टे क केयर।” कह कर सा हल ने कॉल काट द । सा हल अपने म म चहलकदमी कर रहा था। परेशान था वह। अभी तक डनर भी नह कया था। शाम से, इधर-उधर हर ‘कने शन’ चैक कर लया था, फर जा कर अंकल से बात हो पाई थी, और रेलवे म कुछ जुगाड़ हो पाया था। इधर एक सम या हल ई उधर सरी ने सर उठा लया—बाइक पर सवार लड़के ज ह ने काला हे मेट लगाया आ था—आ खर ये च कर या है? यही सवाल इस व सा हल के दमाग म घूम रहा था। सा हल को इसका अंदेशा था। उसे मालूम था क अंकुर क प ँच कहाँ तक है। इसी आशंका ने सा हल को परेशान कर रखा था। उसे समझ नह आ रहा था क या करे, या न करे। सारा दारोमदार इसी बात पर टका था क अंकुर सो नया को लेकर कतना सावधान है, उसे अपनी बहन क कतनी चता है। सा हल को ये भी मालूम नह था क अंकुर अभी द ली म है या नह । घबराहट और ज दबाजी म सो नया—अंकुर द ली म ही है—ये बात बताना भूल गई। सा हल ने एक नंबर मोबाइल पर मलाया। ये नंबर सा हल क कंटे ट ल ट म नह था। इसी लए मोबाइल न पर कोई नाम नह आ रहा था। पूरी घंट जाने के बाद, सरी तरफ से फोन उठा लया गया। “हैलो।” सा हल बोला। “हैलो।” सरी ओर से जवाब मला। “अ सलाम वालेकुम, जनाब।”

“वालेकुम अ सलाम, कैसे हो ब चे?” आवाज कुछ भारीपन लए ए थी। उ कोई 50-51 के लगभग क लग रही थी। ऐसे लग रहा था, जैसे मुँह म कोई पान या सुपारी जैसी कोई चीज चबाई जा रही हो। “बेहतर ँ जनाब। एक मसला हो गया है।” सा हल बोला। “ या मसला आ है उधर द ली म? इधर, यहाँ भी कई मसले हो गए ह। दं गा भड़का आ है। दोन ओर तैयारी चल रही है। इस बार कोई नह बचेगा।” वह बोलतेबोलते का, उसने पूछा, “खैर तुम बताओ या मसला है?” “अंकुर द ली म है या गाँव म।” सा हल ने सीधा-सीधा एक सवाल कया। “अंकुर…वो नेता जी का लड़का।” वह सोचते ए बोला। “हाँ-हाँ वही, लीज पता करके बताइए।” सा हल ने उससे गुजा रश क । “अभी पता कए दे ते ह।” मुँह से पान उगलते ए वह बोला, “इसम या मसला है?” उसने आवाज लगा कर एक लड़के को बुलाया और उससे इस बारे म पूछा। लड़का सारी बात सुन कर छत से नीचे उतरा। घुमावदार सी ढ़य से होता आ वह अहाते म प ँच गया। चार-पाँच टै पो और बोलेरो लाइन से खड़ी ई थ । ाइवर एक साथ बैठे आपस म लड़ाई-झगड़े के बारे म बात कर रहे थे। लड़के ने उनके पास जा कर वही सवाल दोहरा दया और तुरंत ही उसे जवाब भी मल गया। ‘अंकुर द ली म ही है’—ये बात जा कर लड़के ने उस अधेड़ से आदमी को बता द । वह आदमी अभी तक सा हल से मोबाइल पर बात कर रहा था। वह बोला, “अंकुर वह द ली म ही है कसी दो त क पाट -वाट म गया है। यहाँ नह है।” “प का।” सा हल बोला। “ ब कुल प का। खैर तुमने मसला नह बताया— या आ? अंकुर ने कुछ करा या, वहाँ द ली म।” “नह तो।” सा हल ने जवाब दया। “अरे सुनो। नेता जी क लड़क भी वह द ली म ही है। या उससे कोई बात ई है?” “जी नह जनाब।” सा हल ने दो टू क जवाब दया। “अ छा, फोन रखता ँ। शु या।” कह कर सा हल ने कॉल काट द । ‘अंकुर द ली म ही है’—ये बात सा हल जान चुका था और इसके साथ ये भी जान चुका था क वे बाइक वाले लड़के सच म ही सो नया पर नजर रखे ए ह। तभी उसके दमाग म एक वचार आया। वह कमरे से नकल कर ऊपर छत पर गया। वहाँ से उसने चार तरफ दे खा। सड़क पर लाइट जल चुक थ । ै फक धीरे-धीरे चल रहा था। कह भी कुछ ऐसा नह था जो असामा य हो। छत से जायजा लेने के बाद सा हल अपने कमरे म आ कर बैठ गया। उसने रसोइये को बुलाया और खाना लगाने को कहा। रमोट सा हल के हाथ म था। ट .वी. पर यूज चल रही थी—यू.पी. के सलामतगंज म दं गा भड़कने के आसार।

रसोइया खाना टे बल पर रख कर चला गया। काफ दे र तक यूज दे खते रहने के बाद सा हल ने खाना शु कया। हर यूज के साथ सा हल के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे। चता और गु से के मले-जुले भाव सा हल के चेहरे पर दखाई दे रहे थे। ट .वी. पर यू.पी. म दं ग क खबर दखाई जा रही थ ।

14

अगली सुबह सा हल बाइक पर र शा टड प ँचा तो सो नया वहाँ नह थी। सा हल ने वह बाइक पर बैठे ए सो नया को फोन मलाया। सा हल को ‘ व ड ऑफ’ का मैसेज मला। ‘शायद रात को घबराहट और चता म फोन चाज करना भूल गई है’—ऐसा सोचकर सा हल वहाँ से कॉलेज के लए नकल गया। फर कॉलेज म, गाडन म, कट न म कह पर भी सो नया को नह दे खा तो सा हल ने शबनम को फोन करना ही उ चत समझा। आज शबनम भी कॉलेज नह आई थी, और सो नया भी कॉलेज म नह थी। ‘आ खर सो नया कहाँ है?’—ये सवाल सा हल को परेशान कए जा रहा था। ऊपर से उसका मोबाइल फोन भी व ड ऑफ था। इसी कारण से सा हल परेशान था। ‘कह सो नया बीमार तो नह हो गई। कह सो नया को अंकुर ने कॉलेज आने से मना तो नह कर दया। और कह सो नया ने अंकुर के सामने सब कुछ सच-सच तो नह बता दया— मेरी और अपनी दो ती के बारे म।’ अंकुर का याल आते ही सा हल कॉलेज से नकल गया। उसक बाइक सीधा हॉ टल के सामने प ँच कर ही क । …दरअसल ये कोई द ली यू नव सट का हॉ टल नह था। ये एक ाइवेट हॉ टल था— जसम सो नया रह रही थी। क ह कारण से सो नया को डी.यू. का हॉ टल नह मल पाया था। ग स हॉ टल के सामने क बाइक दे ख कर गाड गेट से बाहर आया। पछले साल

ई ए सड अटै क और लेड अटै क क वजह से ग स हॉ टल क चौकसी बढ़ा द गई थी। द ली शासन ने कुछ मापदं ड तय कए थे जनके अनुसार हॉ टल आने-जाने का समय, मोबाइल नंबर और बाक क जानकारी दे ना सभी के लए ज री था। गेट के पास दो सीसीट वी कैमरे लगे ए थे। सा हल बाइक पर बैठा-बैठा ही, अंदाजा लगा रहा था क सो नया कसी म म रहती होगी—‘फ ट लोर पर या सै कड लोर पर।’ सा हल को जब कुछ समझ नह आया तो उसने एक बार फर सो नया का नंबर मलाया। इस बार भी ‘ व ड ऑफ’ का मैसेज ही सुनाई दया। इतने म गाड सा हल तक आ प ँचा। “थोड़ा आगे पीछे हो जाओ। इधर गेट के सामने खड़े मत रहो, भाई।” गाड सा हल से बोला। “ य ? यहाँ या आ, तु ह कोई परेशानी है?” परेशान सा हल के मुँह अपने आप बनाए ही ये श द नकल गए। “परेशानी मुझे नह , तु ह हो जाएगी। …अगर यहाँ से नह हटे ।” गाड क आवाज म थोड़ी स ती थी। “ओके।” बोलकर सा हल ने गाड क ओर हकारत से दे खा और सोचा ‘ये गाड मेरा या कर लेगा।’ सा हल ब त परेशान था। वह कसी और परेशानी म नह पड़ना चाहता था। उसने अपने आपको कं ोल कया, और गाड से पूछा, “यहाँ पर सो नया नाम क एक लड़क रहती है या?” “ य जानना चाहते हो?” गाड ने उ टे कया। “वह कॉलेज नह आई है और दो दन बाद पेपर शु होने वाले ह, इसी लए मुझे ोफेसर ने भेजा है—पता करने के लए।” सा हल ने सो नया क सही जानकारी लेने के लए ऐसे ही अंधेरे म तीर छोड़ा। “वह लड़क …” कुछ सोचते ए गाड बोला। “वह तो कल रात को ही यहाँ से चली गई।” “कहाँ?” सा हल ने तुरंत पूछा। आवाज तेज थी। “कहाँ गई ये तो पता नह पर…” बोलते ए गाड क गया। “पर… या!” च तत सा हल ने गाड क ओर दे खा। आँख म कई सवालात एक साथ तैर रहे थे। “कल एक लड़का आया था और वह उसके साथ ही चली गई, सारा सामान भी यह पर है। बस एक बैग अपने साथ ले गई।” गाड ने बताया। “कौन था वह?” सा हल ने पूछा। “सो नया उसको ‘भैया जी-भैया जी’ कह कर पुकार रही थी। हमने सोचा क वह अपने भाई के साथ कह जा रही होगी।” गाड बोलता गया। “तुमने पूछा नह कहाँ जा रही हो?” सा हल ने गाड से पूछा। “पूछा था न। उसने र ज टर म एं भी क है। वह कह रही थी क कुछ अजट काम है।” गाड ने अपने ही आप बता दया। “ या तुम वह र ज टर दखा सकते हो?” सा हल ने गाड से नम आवाज म

ाथना करते ए कहा। “नह , ऐसा करना हम एलाऊड नह है।” गाड ने अपनी लाचारी बयान क । “ लीज, कसी को कुछ पता नह चलेगा।” सा हल ने गाड को व ास म लेने क नाकाम को शश क । “पता लग ही जाएगा।” गाड ने सीसीट वी कैमरे क ओर इशारा करते ए कहा, “उधर सारी रकॉ डग हो रही है। से ट के लए ऐसा करना ज री है। बाक तुम खुद समझदार हो।” गाड ने सा हल को अपनी थ त साफ कर द क वह कसी भी हाल म र ज टर नह दखा पाएगा। जब बात नह बनी तो सा हल ने गाड को इतनी जानकारी दे ने के लए थ स कहा। सा हल वहाँ से नकल कर दोबारा कॉलेज प ँचा। अपने सभी दो त को उसने सो नया के बारे म जानकारी इकट् ठा करने पर लगा दया। सभी दो त इस काम पर लग गए। ‘सो नया आ खर कहाँ चली गई—यूँ अचानक ही। अभी कल रात को दस बजे तो उससे बात ई थी। परेशान लग रही थी। शायद वह घबरा गई थी। पर कम-से-कम उसे एक मैसेज तो कर दे ना चा हए था।’ गाडन म खड़ा-खड़ा सा हल यही सब सोच रहा था। उसने आसमान क ओर दे खा जैसे ई र से बात कर रहा हो। ‘कल ही तो सो नया ने यार का इकरार कया था और आज ही वह न जाने कहाँ चली गई…वाह खुदा तेरी कुदरत! एक पल म अपने बंद को धरती क सबसे पाक नेमत—‘इ क’ ब शता है और सरे ही पल उ ह जुदा कर दे ता है।’ शायद सा हल ने आसमान क ओर दे ख कर यही अ फाज कहे थे। सा हल को कुछ समझ नह आ रहा था। इतने म सा हल का फोन बज उठा। सा हल को लगा सो नया का फोन आया है। उसने तुरंत अपनी पॉकेट से फोन नकाला। लप कवर हटाया—नंबर सो नया का नह था। सा हल को थोड़ी नराशा ई। वह हाथ म मोबाइल लए कुछ पल उस नंबर को दे खता रहा। वह सोच रहा था क कॉल रसीव क ँ या नह । ये वही नंबर था, जससे सा हल को लगातार फोन आते रहते थे और सा हल परेशान हो जाया करता था। हाथ म मोबाइल फोन क रगटोन बढ़ती जा रही थी। गाडन म, हाथ म मोबाइल लए सा हल को, सभी दे ख रहे थे। जानते थे क सा हल परेशान है। सा हल और सो नया कॉलेज म मश र जो हो गए थे। सा हल आज अकेला गाडन म खड़ा था। सो नया उसके साथ नह थी। दे खने वाल को ये य कुछ अजीब लग रहा था। सभी जानते थे क सा हल और सो नया इस गाडन म अ सर ‘इकट् ठे ’ दे खे जाते थे। उ ह ने अंदाजा लगाया क शायद दोन के बीच कुछ गलतफहमी हो गई है और इसी लए वह सो नया का फोन नह उठा रहा। पर, उ ह या मालूम था क सो नया का फोन तो सा हल एक पल भी गँवाए बगैर उठा लेता। मगर, ये फोन सो नया का नह , कसी और का था।

कसी और का…

15

“हैलो” सा हल बोला। ये कॉल उठाने से पहले सा हल का मोबाइल दो बार बज चुका था। सा हल फोन उठाना नह चाहता था। पहले तो सा हल ने मोबाइल को बजने दया—सोचा क फोन न उठा पाने का कोई कारण बता दे गा। मगर तुरंत ही मोबाइल पर फर से कॉल आई तो सा हल ने मोबाइल जेब से नकाला जो क उसने अभी एक सै कड पहले अपनी ज स क जेब म रखा था। ये कॉल भी ‘उसी’ नंबर से थी। हाथ म मोबाइल लए सा हल गाडन म खड़ा था। सा हल असमंजस क थ त म था—फोन उठाए या नह , कुछ सूझ नह रहा था। मोबाइल पूरी घंट बजने के बाद, एक बार फर शांत हो गया। शांत आ मोबाइल फोन एक बार फर से बजने लगा। मोबाइल अभी सा हल के हाथ म ही था। सा हल ने इस बार कॉल रसीव क । इस बार भी कॉल ‘उसी’ नंबर से ही थी। “हैलो।” सा हल फर से बोला। “कहाँ हो बरखुरदार?” सरी तरफ कसी अधेड़ ने पूछा। आवाज कुछ भराई ई थी। ये जानकर क सरी ओर भराई ई आवाज है, सा हल ने तुरंत जवाब दया, “अ सलाम वालेकुम।” सा हल के चेहरे से साफ था, ये श स कोई मह वपूण श सयत का मा लक था। “वालेकुम अ सलाम। कैसे हो? कहाँ रहते हो आजकल?” भराई ई आवाज ने पूछा। “यह ।ँ म कहाँ जाने लगा…” सा हल अभी सो नया के अचानक गायब हो जाने को लेकर परेशान था ऊपर से ये ‘उसी’ नंबर से आई ई कॉल— जसने सा हल क

परेशानी को और बढ़ा दया था। सा हल ने अपनी ओर से सामा य रहने क भरसक को शश क , “म तो यह ँ। कॉलेज से घर और घर से कॉलेज।” “यही तो! इस कॉलेज और घर के अलावा कुछ यान है क नह ? न तो खुद कभी फोन करते हो, और न कभी एक बार म फोन उठाते हो?” लगभग डाँटते ए सरी ओर से भराई ई आवाज सा हल को सुनाई द । भराई ई आवाज ने बोलना जारी रखा, “खैर छोड़ो। नई न ल के साथ तो ये द कत रहगी ही। यू.पी. का कुछ पता है क नह ?” “जी जनाब।” कुछ सोचते ए सा हल ने जवाब दया, “उधर तो दं गा जैसा माहौल बना आ है न, इसी के बारे म पूछ रहे ह या?” “माहौल बना आ नह है—दं गा हो गया है। तु ह तो कुछ भी खबर नह है।” सरी ओर से तंज कसते ए भराई ई आवाज सुनाई द । “…” सा हल चुपचाप सुन रहा था। सा हल उस दन को याद कर रहा था जब एक लोन दे ने वाली सं था से उसने कुछ पए लए थे। उस दन के बाद से सा हल को फोन आने शु हो गए थे। गाँव के एक चचा जान ने इस सं था के बारे म सा हल को बताया था। ये सं था अपनी कौम क तर क और हक के लए काम करती थी। लोन के सल सले म, जब इस सं था से, सा हल जुड़ा तो उसक जान-पहचान हर तरह के लोग से ई। कुछ तो इस दे श म रहकर अपनी रोजी-रोट और प रवार को पालने क को शश म लगे थे। सरी ओर कुछ लोग इस दे श म ‘ कसी और’ ही मकसद से जए जा रहे थे, शायद वे लोग अपनी राह से भटक गए थे—गुमराह हो गए थे। अगले कुछ पल तक सा हल चुप ही रहा। सोचता रहा। जब सा हल का जवाब नह मला, तो भराई ई आवाज फर सुनाई द , “सुन रहे हो के नह । एक काम भी ढं ग से नह करते, कतनी बार समझाया था क दं गे वाली अफवाह फैला दो क फलां-फलां जगह पर हमारे लोग पर जानलेवा हमला आ है और सरकार चुपचाप तमाशाई बनी ई सब दे ख रही है।” “ ँ।” सा हल के मुँह से नकला। आवाज ब त ही धीमी थी। “और उसका या आ?” सरी तरफ से पूछा गया। “ कसका?” सा हल थोड़ा अचं भत था। ‘ या कोई और भी काम कहा गया था मुझे’ सा हल ने मन-ही-मन सोचा। “ च ड़या का!” भराई ई आवाज हैरान थी, “तु हारे बस का कुछ नह है। तु हारे चचा तो कह रहे थे क तुम ब त समझदार हो और हम और हमारे मकसद को पूरा करने म हमारा पूरा साथ दोगे।” सा हल अब भी चुप था। वह भराई ई आवाज के मकसद और मंसूबे अ छ तरह से जानता था। मगर बीच म गाँव के चचा भी थे। इसी लए वह ये सारी बात सुन रहा था। “अ छा, ये बताओ…” “बो लए जनाब…” “वो… कतना पया लया था तुमने वहाँ से…” उस अधेड़ उ के क भराई ई आवाज सा हल के कान म पड़ी।

“जी।” सा हल को सरी ओर से इस तरह के सवाल क आशा नह थी “पचास हजार।” “कब लौटा रहे हो?” अगला पूछा गया। “जी अभी तो म पढ़ ही रहा ँ।” सा हल ने पया लौटा पाने म अपनी असमथता बयान क , “अभी थोड़ा व लगेगा।” “ जतना व चा हए एक बार म बता दो, और…जो समझाया गया है वैसा करो— न थोड़ा इधर, न थोड़ा उधर। समझ गए।” धमक दे ते ए भराई ई आवाज खामोश हो गई। “जी जनाब, समझ गया। याल रखूँगा।” सा हल ने अधेड़ को भरोसा दलाया। “बेहतर।” भराई ई आवाज एक बार फर सुनाई द , “बेहतर होगा तु हारे लए और तु हारी पढ़ाई के लए।” बात ख म होते ही सा हल ने अपने उस चचा को कोसा, जसने सा हल को इन लोग से मलवाया था। अब तक सा हल बात करते-करते कॉलेज के बाहर चाय क कान तक प ँच चुका था। सा हल ने चाय वाले क ओर दे खा, और चाय का इशारा कया। दो मनट बाद, एक पेपर कप म चाय वाले ने सा हल क ओर चाय बढ़ा द । “बड़े परेशान लग रहे?” चाय वाले ने पूछा। चाय वाले और सा हल के बीच अ छ जान-पहचान हो चुक थी। आ खर सा हल का कॉलेज म ये तीसरा साल जो था। सा हल कुछ न बोला। वह अपने हाथ म पकड़े ए चाय के कप क ओर दे ख रहा था। अपने याल म खोया आ, परेशान-सा। चाय वाले ने एक बार फर पूछा, “का आ सा हल भैया?” फर सा हल को यूँ चाय के कप म दे खते ए दे खा तो वह च का, “कह कुछ गर तो नह गया? सा हल भइया।” चाय वाले ने कप वापस लेने के लए हाथ बढ़ाया तो सा हल अपने याल से हक कत म लौटा। “नह कुछ नह आ मुझ।े ” सा हल ने चाय वाले क बात का जवाब दया और हाथ म पकड़े ए कप से चाय क एक चु क ली। “तबीयत खराब है का?” चाय वाले ने सरा कया। वह सा हल को इस तरह दे खकर खुद भी परेशान था। “नह भई, नह ।” बार-बार पूछे जाने पर सा हल झुँझला कर बोला। फर चाय वाला चुपचाप अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। चाय पी कर, कप को वह तोड़-मरोड़ कर बकेट म फक दया, फर सा हल ने अपनी बाइक टाट क । इतने म चाय वाला अपनी जगह से उठ कर सा हल के पास आया और धीरे से बोला, “भैया एक बात बताऊँ।” सा हल अब भी चाय वाले से नाराज लग रहा था। सा हल ने हे मेट लगाते ए कहा, “बोलो।” “दो-एक दन पहले सो नया ब टया को सुबह एक बोलेरो छोड़ने आई थी।… और साथ शबनम ब टया भी थी।”

“मालूम है।” सा हल बोला। “ फर शाम को वही गाड़ी दोन को लेने भी आई थी।” चाय वाले ने अपनी बात पूरी क बना इस बात क परवाह कए क ये बात भी सा हल को मालूम है या नह । “ये भी मालूम है। कुछ और है तो बताओ। नह तो चलता ।ँ ” सा हल ने बाइक टाट क । “भैया।” चाय वाले क आवाज ब त धीरे थी। अपना मुँह सा हल के पास ले जा कर चाय वाला बोला, “उसी दन से दो लड़के आस-पास ही रहते ह।” ये सुनकर सा हल ने चाय वाले क ओर दे खा, “कौन ह वे?” सा हल ने पूछा। “लगते तो ब टया के उधर के ही ह।” चाय वाला बोला। “आज भी आए थे या दोन लड़के?” सा हल ने धाड़ से एक कया। “नह ।” जवाब, एकदम सीधा था। “ले कन परस जब आप और ब टया कॉलेज से नकले थे…” “तो…!” सा हल थोड़ा हैरान और च तत था। “तो…वे बाइक वाले लड़के भी आपके पीछे नकल गए थे।” चाय वाले ने सा हल क ओर दे खते ए जवाब दया। सा हल ने अपना हे मेट उतारा और पूछा, “ या तुम उन दोन लड़क को पहचान लोगे?” थोड़ा सोच कर चाय वाला बोला, “हाँ जी, भैया।” आवाज ब त धीमी और शंका से भरी ई थी। सा हल चाय वाले क आवाज को पहचान गया, चाय वाले क आवाज म भरोसा करने लायक व ास क पूरी कमी थी। सा हल ने चाय वाले क ओर दे खा, और कहा, “अ छा चलता ।ँ फर कुछ दखाई दे या पता लगे तो बताना फोन नंबर है न।” चाय वाले ने सर ऊपर-नीचे करके ‘हाँ’ का इशारा कया। सा हल वहाँ से सीधा अपने दो त के पास प ँचा जो पास ही क एक मा कट म घूम रहे थे—आँख सक रहे थे। थोड़ी बातचीत के बाद पता चला क सो नया के बारे म उ ह भी कुछ खास पता नह है सवाय उस बोलेरो से कॉलेज आने-जाने वाली घटना को छोड़ कर। सा हल वहाँ से सीधा कमरे पर प ँचा और ट .वी. ऑन कर दया। सोफे पर बैठते ए वह पानी क एक पूरी बोतल गटक चुका था। ट .वी. पर खबर चल रही थ । सचमुच ही यू.पी. के गाँव म दं गा भड़क चुका था— जसक वजह अभी नामालूम थी। दन भर क चता और खोज-बीन म डू बा सा हल सोफे पर बैठा आ, ट .वी. दे खते-दे खते ही सो गया। आने वाले कल से अंजान।

16

एक स ताह गुजर चुका था। सो नया क कोई खबर नह मली थी। सा हल परेशान था—सो नया जो मल नह रही थी। सा हल अपनी तरफ से सो नया का पता लगाने क पूरी को शश कर रहा था ले कन वह अपनी को शश म सफल नह हो सका था। सा हल क ऐसी हालत दे खकर उसके दो त भी परेशान थे। ोफेसर से लेकर कॉलेज टाफ तक सभी लोग को सा हल कुछ परेशान है, इसक जानकारी थी—इन सात दन म सा हल क शेव बढ़ चुक थी। वो बाल जो बार-बार माथे पर आ जाते थे अब उलझ चुके थे। म खन-सा गुलाबी-सा चेहरा मुरझाए ए फूल क तरह दखने लगा था, बेजान-सा। शबनम ने सा हल क ऐसी हालत दे खी तो उसे समझाने क को शश क , मगर वह नाकाम रही। वरह के ःख क लपट ऐसे ही थोड़े ही शांत होती ह। शबनम दो स ताह से लगातार सो नया का नंबर मला रही थी। इन सात दन म करीब सौ बार शबनम ने सो नया को कॉल कया। ये सोचकर क अब क बार सो नया फोन उठा लेगी, मगर हर बार—‘मोबाइल इज व ड ऑफ’—का मैसेज सुनाई दे रहा था। उधर यू.पी. म पछले सात दन से क यू लगा आ था। दोन समुदाय के लोग बदला लेने क तैयारी म थे। एकाध बार क यू लगा होने पर भी दं गा भड़कने क घटनाएँ सामने आई थ । शबनम ने अपने गाँव म भी फोन मलाया था, पर क यू लगा होने के कारण कोई खास जानकारी नह मल पाई थी। कसी ने भी सो नया को अपने घर लौट आने क जानकारी नह द थी। और, सा हल तो अपनी तरफ से हर को शश करके हार चुका था। मगर सा हल का दल बार-बार उसे को शश करते रहने को कह रहा था—शायद अब क बार सो नया क

कोई खबर मल जाए। खोई-खोई-सी आँख, सो नया को ढूँ ढ़ती ई। और…अ त- त कपड़े, चेहरे पर ऐसे भाव जैसे क कसी और ही नया का इंसान हो। अब सा हल इसी तरह से कॉलेज कंपाउ ड म घूमता- फरता था। दो त से उसक ऐसी दशा दे खी नह जा रही थी—पर वे सभी ववश थे। अब सा हल को खुद ही संभलना था—सो नया कहाँ चली गई कसी को इसक जानकारी नह थी। स ताह भर के बाद क यू म थोड़ी ढ ल द गई। फर शांत माहौल दे खते ए दो दन के लए क यू हटा लया गया। आस-पास के रा य से लोग अपने-अपने प रवारजन क खोज-खबर लेने के लए अपने घर लौट रहे थे। हरेक श स को सुर ा के साथ उसके घर तक प ँचाने क ज मेदारी सुर ा बल क थी। दो दन तक सब कुछ सामा य रहा। बना कसी लड़ाई-झगड़े और दं गे के थ त सामा य होती नजर आ रही थी। ‘हालात सामा य’, ‘ थ त पर काबू’ ऐसी खबर यूज चैनल पर बार-बार लैश हो रही थ । सा हल इस व अपने म म बैठा आ, सो नया के पुराने मैसेजेस दे ख रहा था। सा हल एक-एक मैसेज पढ़ने के साथ वापस उसी व म प ँच कर सो नया को याद कर रहा था। उसक आँख रो-रो कर लाल हो चुक थ । सा हल अपने आपको बजी रखने क को शश कर रहा था। सा हल ने पहले अपने मनपसंद गाने सुनने क को शश क पर हर गाने म उसे सो नया क आवाज सुनाई दे ने लगी, फर कोई कताब पढ़ने क को शश क , मगर कताब के प म उसे सो नया नजर आने लगी। कुछ दे र के लए सा हल ने ट .वी. पर यू जक चैनल लगाया। चैनल पर पुराने गाने चल रहे थे। इन गान ने सा हल को और परेशान कर दया। ‘तुम बन जया जाए कैसे, कैसे जया जाए तुम बन’ गाना दे ख कर सा हल फूट-फूट कर रोने लगा। वह चाह रहा था क इस गाने को न दे खे मगर हाथ जैसे उसका आदे श मानने से इंकार कर रहे थे। वह लाख चाह कर भी चैनल नह बदल पाया। वह यह गाना दे खता रहा, रोता रहा। गाने के तुरंत बाद एडवरटाइ जग आने लगी। तुरंत ही, सा हल ने चैनल बदल दया। एक के बाद सरा चैनल बदलते ए एक चैनल पर उसके हाथ क गए। ये एक यूज चैनल था जस पर यू.पी. के दं ग के शांत होने क खबर दखाई जा रही थ । न चाहते ए भी सा हल ये यूज दे खने लगा। अभी कुछ मनट ही बीते ह गे क सा हल का मोबाइल बज उठा, कॉल ‘उसी’ नंबर से थी। सा हल ने कॉल नजरअंदाज कर द। मगर ‘वे’ ऐसे ही पीछा छोड़ने वाले नह थे। मोबाइल फर बजा, और सा हल ने फर नह उठाया। इस तरह लगातार चार-पाँच बार मोबाइल फोन बजा। हर बार कॉल ‘उसी’ नंबर से थी। लहाजा सा हल ने सभी कॉल को इ नोर कर दया। फर कुछ मनट तक कोई कॉल नह आई। सा हल ने चैन क साँस ली। वह उठ कर बालकनी म प ँचा। मोबाइल हाथ म ही था। बालकनी म खड़ा सा हल आते-जाते ए ै फक को दे ख रहा था। द ली म मौसम बदल चुका था। ठं डी हवाएँ चल रही थ ।

वेटर पहनो या न पहनो—ये पर नभर था। सा हल, आई ई कॉ स के बारे म सोच रहा था। ‘इस व यूँ कॉल क ? उनका या मकसद होगा? कह मने कॉल रसीव न करके कोई गलती तो नह क !’ इस तरह के वचार सा हल के म त क म उठ रहे थे। एक बात इन म अ छ थी। कुछ दे र के लए ही सही सा हल के दमाग म सो नया नह थी वह दमाग के पीछे वाले कमर म कह थी—मगर गायब नह ई थी। ‘अब या कया जाए।’ सा हल ये सोच ही रहा था क सा हल के मोबाइल पर एक मैसेज आया, ‘तुरंत यू.पी. प ँचो, वहाँ तु हारी ज रत है’ मैसेज कसने कया, य कया— शायद और कोई पढ़ता तो समझ नह पाता। मगर सा हल को इसका एक-एक अ र साफ-साफ समझ आ रहा था। परेशानी म घरा सा हल मोबाइल हाथ म पकड़े कमरे म आया। सा हल ने मोबाइल पलंग पर बुरी तरह दे मारा। मोबाइल ग े पर गरा, तो थोड़ा उछला और हलडु ल कर शांत हो गया। मोबाइल को कुछ नह आ। ‘उ ह ने’ अपना काम कर दया था। मैसेज सा हल को मल चुका था। सा हल को तय करना था क अब इस मैसेज पर अमल कया जाए या नह । कॉल न उठाने पर ‘उ ह ने’ अपनी बात मैसेज के ज रए सा हल तक प ँचा द थी। सा हल ने जब ये मैसेज पढ़ा तो—सा हल को लगा क ‘वह’ भराई ई आवाज सा हल को सुनाई दे रही है। सा हल परेशान था, वह कुछ भी समझ नह पा रहा था क या कया जाए।

17

काफ ज ोजहद के बाद सा हल ने फैसला कया क वह कह भी नह जाने वाला। चाहे कुछ भी हो जाए। ये फैसला करने के साथ ही, सा हल ने सुकून क साँस ली। वह पलंग पर लेट गया। इंसानी दमाग भी अजब पहेली है। बजी रहने के लए कुछ-न-कुछ ढूँ ढ़ ही लेता है। ये मसला हल आ तो पहले वाला फर उठ खड़ा आ—‘सो नया कधर है?’ सा हल पलंग पर आँख मूँदे यही सोच रहा था क एक और मैसेज सा हल के मोबाइल पर आया। सा हल ने सोचा क शायद ‘उ ह ’ का होगा और मेरा लान पूछ रहे ह गे क म कब और कैसे यू.पी. के लए रवाना ँगा। सा हल ने मोबाइल पर वह मैसेज दे खा ही नह । कमरे क खड़क खुली ई थी। ठं डी हवा से कमरे म ठं ड होने लगी। जैस-े जैसे रात बढ़ती गई, ठं ड बढ़ती गई। अपनी परेशानी से परेशान सा हल पलंग पर लेटा रहा और न जाने कब उसक आँख लग गई… …सा हल और सो नया दोन एक साथ गोवा के बीच पर हाथ म हाथ डाले चहलकदमी कर रहे थे। नया के ःख से अंजान। सागर क लहर लगातार दोन के पैर को छू ती ई वापस सागर म जा कर मल रही थ । शाम का समय था। सूरज ढलने को था। सारा वातावरण डू बते ए सूरज क लाली म लाल हो गया था। सा हल मोबाइल से सो नया क त वीर ले रहा था। ऐसे करो, इधर दे खो, उधर दे खो, हाथ यूँ कमर पर रखो और चेहरा उधर क तरफ झुकाओ—यही सब चल रहा था। दोन बाक के जोड़ क तरह आनंद ले रहे थे।

तभी सा हल के मोबाइल न पर सो नया के चेहरे के भाव बदल गए। एक ण पहले जो चेहरा सूरज क ला लमा म मनमोहक मु कुराहट बखेर रहा था, उस पर अचानक ही आतंक के डरावने साए मँडराने लगे। सो नया के चेहरे के बदलते ए भाव को दे ख कर सा हल ने सो नया को हाथ से इशारा कया और पूछा, “ या आ? अचानक घबराने य लगी?” सो नया ने सा हल क बात का कोई जवाब नह दया। वह दौड़ती ई सा हल क ओर भागी। सो नया च ला रही थी, चीख रही थी मगर सा हल को कुछ सुनाई नह दे रहा था। इतने म एक जोरदार चोट सा हल के सर पर लगी। दद से सा हल कराह उठा। वह समु तट क रेत पर गर गया। सर से खून का फ वारा फूट पड़ा। बहता आ खून सूरज क रोशनी से ई लाल रेत म मल गया। अभी सो नया सा हल तक प ँची ही थी क कसी ने सो नया के सर पर भी एक जोरदार चोट क । सो नया ये चोट सहन न कर सक । वह रेत पर गरी और उसने उसी पल दम तोड़ दया। सो नया के गरते ही, चोट मारने वाले का चेहरा नजर आया—ये अंकुर था। खून से सनी ई रेत म गरे ए सा हल ने अपने सामने जब सो नया का घायल चेहरा दे खा तो चीख उठा, “नह …।” …सद के मौसम म पसीने से लथपथ सा हल क आँख खुल । सा हल को सब कुछ समझने म कुछ पल लगे। उसने ऊपरवाले का शु या अदा कया क ये सफ एक सपना था, हक कत नह । इस घटना के बाद सा हल को न द नह आई। वह पलंग से उठा, अलमारी पर लगे शीशे के सामने जा कर उसने अपना चेहरा प छा। सा हल ने जब अपना अ स दे खा तो वह अपने आपको पहचान नह पाया। सलवट से भरे ए काले कुत और नीली ज स के ऊपर दाढ़ से भरा आ चेहरा-बेजान चेहरा। ऊपर से आपस म उलझे ए बाल थे। अपने बाल को हाथ से कंघी करके सा हल फर पलंग के पास लौटा, उसने पलंग पर पड़े ए मोबाइल को घृणा से दे खा। एक बार मन आ क मोबाइल को उठाए और दे खे क कस- कस के मैसेज आए ह। सा हल के हाथ मोबाइल क और बढ़े पर घृणा इस कदर हावी थी क सा हल के हाथ मोबाइल न उठा पाए। सा हल कुछ दे र सो नया के बारे म सोचता रहा। आँख मूँदे-मूँदे ही सा हल सो नया के साथ बताए गए ल हे याद कर रहा था। तभी सा हल के सामने वह मासूम-सा चेहरा आ गया जब सो नया ने पहली बार ‘आई लव यू’ बोला था। उसी पल सा हल के दमाग म एक याल आया। दमाग हमारे दल को कं ोल करता है, पर… यार म डू बे ए लोग क थ त उ ट होती है। ये याल पहले सा हल के दल म उठा और दमाग म जा कर हावी हो गया। ‘कह सो नया का मैसेज तो नह आया’ ये याल आते ही सा हल ने मोबाइल उठा लया। आँख क घृणा गायब थी—जैसे क कभी थी ही नह । दल क आवाज, दल ने सुन ली। कुछ मोशनल मैनेज के बीच एक मैसेज अंजान नंबर से था। न पर टच करते ही मैसेज दखाई दे रहा था। “गाँव म…”

बस यही दो श द मैसेज म नजर आए। ये दो श द पढ़ते ही दमाग म फर से तूफान उठ खड़े ए। कह ये मैसेज सो नया का तो नह । सा हल का दल कह रहा था क ये सो नया को मैसेज है। पर दमाग म कुछ और ही चल रहा था। ‘कह ये मैसेज ‘उनका’ तो नह , जो मुझे कसी भी तरह यू.पी. भेजना चाहते ह।’—सा हल एक बार फर दोराहे पर आ खड़ा आ। सा हल पहले ही फैसला कर चुका था क वह यू.पी. नह जाएगा। सा हल के दमाग ने फर से इस फैसले पर अपनी मोहर लगा द । मगर दल के आगे कसी का बस नह चलता। दल के कसी कोने से इक कमजोर-सी आवाज उठ , ‘अगर ये मैसेज सो नया का आ तो।’ इस कमजोर-सी आवाज से वे सारे फैसले टू ट गए जो अभी सा हल के दमाग ने लए थे। ऐसा नह था क सारे फैसले दल ने ही लए। एक फैसला सा हल के दमाग ने भी लया। दरअसल जस नंबर से मैसेज आया था, सा हल ने सोचा, ‘वापस फोन करके दे खता ँ क कौन है? य मैसेज भेजा है? या चाहता है?’ मगर सा हल के दमाग ने इसक इजाजत नह द । ‘पता नह कन प र थ तय म सो नया ने ये मैसेज कया होगा? कह फोन करने पर सो नया कसी मुसीबत म न फँस जाए।’ ये सब सोचते ए, सा हल पलंग से उठा। अलमारी खोली दो जोड़ी कपड़े बैग म डाले और नकल पड़ा। बाइक टाट करके वह सीधा नई द ली प ँचा। पछले दन यू.पी. जाने वाली अ धकतर े न क जानकारी सा हल को हो चुक थी। वह बाइक टे शन पर खड़ी करके लेटफॉम क ओर दौड़ा। े न टे शन को छोड़ने वाली थी। े न के प हए धीरे-धीरे हरकत कर रहे थे। सा हल अभी सी ढ़य से उतर ही रहा था। टे शन पर भीड़ थी। सी ढ़य पर कुछ लोग चढ़ रहे थे और कुछ उतर रहे थे। लगभग कूदता आ, सा हल े न क ओर दौड़ा। हाथ से भीड़ को चीरता आ सा हल दौड़ रहा था। ‘सॉरी’, ‘ए स यूज मी’, जसे श द के यहाँ कोई मायने नह थे। हर श स सा हल को दे ख रहा था। ‘घर से पहले चला करो’, ‘सोए ए थे या?’ आ द-आ द चर-प र चत नसीहत लोग म दे रहे थे। े न लगभग पूरी पीड पर दौड़ने लगी थी। सा हल को लगा कह े न छू ट न जाए। सा हल पूरी ताकत से दौड़ा और दौड़ते ए एक ड बे म चढ़ गया।

18

ये एक रजवड ड बा था। हर कोई सा हल को अजीब-सी नगाह से दे ख रहा था। कोई भी सीट खाली नह थी। सभी क नगाह से बेखबर, एक कोने म खड़ा सा हल लगातार अपने हाथ म पकड़े ए मोबाइल को दे ख रहा था। ‘अब कोई मैसेज आएगा।’ ‘कब कोई मैसेज आएगा?’ ये वचार सा हल के म त क म उठ रहे थे। सा हल इस बात से बेखबर था क लोग उसके बारे म या सोच रहे ह? कुछ लोग को सा हल सं द ध लगा। इसम उनका कोई दोष भी न था। सा हल इस हालत म लग ही ऐसा रहा था। अ त- त बाल, सलवट से भरा आ काला कुता और नीली ज स और पीठ पर टं गा आ बैग। इतने म ‘बैटरी लो’ का स नल सा हल के मोबाइल पर लैश आ। ज दबाजी म सा हल मोबाइल चाजर रखना भूल गया था। फर भी उसने एक बार बैग क सभी जेब को टटोला-चाजर नह था। सा हल के एक नजर े न के पैसजर पर डाली। उसने नोट कया क हर कोई उसे ही दे ख रहा है। ड बे के अं तम छोर पर ट .ट . टकट चैक कर रहा था। ड बा फुल था। अब या होगा? सभी सोच रहे थे। सा हल ने अपने पास क सीट पर बैठे युवक से चाजर माँगा। उस युवक ने बना सा हल क ओर दे खे मना कर दया। चाजर माँगना ज री था य क सो नया क कॉल या मैसेज का इंतजार था। सा हल ने फर उसके सामने बैठे ए या ी से चाजर माँगा। इस या ी ने भी हकारत भरी नगाह से सा हल को दे खा। इस व चाजर, सा हल के लए कतना ज री था, ये बात सफ सा हल ही जानता था। सा हल को आशा थी क सो नया का कोई-न-कोई मैसेज आएगा और वह उसी के अनुसार अपनी योजना बनाएगा। मगर मैसेज रसीव करने के

लए तो मोबाइल का चाज होना ज री है। सा हल के लए मोबाइल चाजर—‘ऑ सीजन’ क तरह ज री हो गया था। जदा रहने के लए सा हल को चाजर चा हए था य क चाजर के ज रए ही मोबाइल चाज हो पाता और चाजड मोबाइल पर ही मैसेज रसीव हो सकता था और ये मैसेज— जसके बारे म कुछ पता भी नह था, इस व सा हल क धीमी होती उ मीद का सहारा बन चुका था। सा हल एक-एक करता आ सबसे चाजर माँग रहा था और अंजाने म ही ट .ट . क ओर बढ़ता जा रहा था। टकट तो सा हल के पास थी ही नह । एक औरत ने तरस खा उसे अपने चाजर से फोन चाज करने क इजाजत दे द । मोबाइल हाथ म लए सा हल मोबाइल के चाज होने का इंतजार कर रहा था। अभी केवल 6% ही चाज आ था। “ टकट।” ट .ट . ने सा हल से पूछा। सा हल ने ट .ट . को इशारा कया क एकांत म आपको टकट दखाता ँ। इस पर ट .ट . बगड़ गया। सा हल ने मोबाइल पर अपने अंकल का नंबर मलाया और ट .ट . से बात करवा द । जैसे ही ट .ट . ने मोबाइल पकड़ा, चाजर क तार नकल गई और मोबाइल ऑफ हो गया। घूरते ए ट .ट . ने सा हल से पूछा, “ये या है? टकट तु हारे पास है नह । मोबाइल तु हारा चाज नह है और हालत तो दे खो अपनी, कहाँ से आए हो?” सारी बात आस-पास के पैसजस ने भी सुनी। कुछ मु कुरा रहे थे और कुछ हमदद जता रहे थे। सा हल ने ट .ट . को समझाने क को शश क और अपने अंकल के बारे म बताया। ट .ट . कुछ सुनने को तैयार ही नह था। चाजर दे ने वाली औरत ने अपना मोबाइल सा हल क ओर बढ़ा दया। सा हल का चेहरा ही ऐसा था क हर कसी को उससे हमदद हो गई थी। परेशान-सा, अब रोया— अभी रोया—ऐसे भाव सा हल के चेहरे पर थे। नंबर मलाया गया। फोन पर बात ई। े न नंबर और ट .ट . का नाम पूछ कर अंकल ने ट .ट . से बात क । अंकल सचमुच ही कसी बड़ी पो ट पर थे। बात करने के बाद तो ट .ट . का लहजा ही बदल गया। ट .ट . ने सा हल को अपनी सीट द और आराम से बैठने को कहा। ये दे खकर जो लोग अब तक सा हल को सं द ध समझ रहे थे, उन सबके वचार बदल गए। अब वे सा हल को वशेष समझ रहे थे। सा हल ने अपना बैग सीट पर रखा और वापस आ कर मोबाइल हाथ म पकड़ कर खड़ा हो गया। औरत ने उसे पास बैठने को कहा और पूछा, “बेटा, इतना परेशान य हो?” हमदद जताते ए अधेड़ औरत ने कहा, “सब ठ क हो जाएगा। ऊपरवाले पर भरोसा रखो।” औरत को सा हल क मनो थ त और हालात के बारे म कुछ भी पता नह था। औरत सा हल के सामने क बथ पर बैठ ई थी। इस औरत के इन श द ने

सा हल पर गहरा असर कया। वह बाँध जसने सा हल के आँसु को रोका आ था, हमदद के एक कोमल से झ के से टू ट गया। आँख से दो आँसू टपक गए। सा हल ने बड़ी आ मीयता से औरत क ओर दे खा, “ या सच म ऊपरवाला सब कुछ ठ क कर दे गा?” सा हल ने औरत से पूछा। जवाब मला, “हाँ।” सुबह के यारह बज चुके थे। सा हल लखनऊ टे शन से बाहर नकला। एक फोन नंबर मलाया, “कहाँ पर हो?” “यह । सामने चले आओ, ीन जीप म।” सरी ओर से आवाज सुनाई द । जीप तक प ँचने से पहले सा हल ने बैग पैक क जेब से एक टोपी नकाली और सर पर लगा ली। ये टोपी सद से बचाने वाली नह थी। सफेद रंग क इस टोपी को लगाने के बाद सा हल का चेहरा ही बदल गया। सा हल के साथ उस ड बे के सह-या ी भी थे। उ ह ने भी सा हल को टोपी पहनते ए दे खा। कुछ लोग को सा हल फर से सं द ध नजर आने लगा था। जीप म बैठे लोग, सोच रहे थे क सा हल उनके बुलाने पर आया है, उनक मदद करने। उ ह या मालूम था क सा हल तो सफ अपनी सो नया के लए यहाँ तक प ँचा है। जीप क ओर बढ़ते ए सा हल ने आसमान क ओर दे खा और ऊपर वाले का शु या अदा कया।

भाग-2 उ म दे श, 2012

19

दस बर 2012, उ म दे श दसंबर का महीना था। हर बीतते दन के साथ ठं ड बढ़ती जा रही थी। कूल म वटर ए जा स चल रहे थे और ब च को ए जाम के बाद होने वाले वटर हॉलीडेज का इंतजार था। तीन घंटे शां त से बीतने के बाद, कूल म शोर मचना शु हो गया। आज आ खरी पेपर जो था। घंट बजने के साथ ही, ब च क शोर मचाती ई कतार मेन गेट क ओर दौड़ने लगी। ये सलामतगंज का एक मा ाइवेट कूल था, जसम आस-पास के गाँव के संप प रवार के ब चे पढ़ा करते थे। कूल क ेस पहने, कंधे पर बैग लटकाए सभी ब चे अपने-अपने घर के लए नकल पड़े। कूल के मेन गेट से लगती ई प क सड़क से कई क चे रा ते आकर मल रहे थे। कोई आधा कलोमीटर क री पर एक सरकारी कूल था। इस कूल म भी आसपास के गाँव के ब चे पढ़ा करते थे। इनम अ धकतर कमजोर और पछड़े वग के प रवार के ब चे थे। दोन ही कूल म ए जाम चल रहे थे। अभी दस मनट पहले ही सरकारी कूल क छु ट् ट ई थी। सभी ब चे आपस म आज के पेपर के वषय म बात करते ए अपनेअपने घर क ओर जा रहे थे। प क सड़क के दोन ओर खेत, और खेत के बीच म से गुजरती ई टे ढ़ -मेढ़ पगडं डयाँ थ । सवा बारह बज चुके थे। सूरज ने धीरे-धीरे खेत पर छाई ई धुँध क चादर को समेट लया था और अब ह क -ह क धूप खलने लगी थी। सरकारी कूल के ब च क भीड़ कब कूल से नकली और कब पगडं डय से गुजरते ए गायब हो गई पता ही नह चल रहा था। कुछ ब चे ऐसे भी थे जो क धीरे-धीरे अपने घर क ओर बढ़ रहे थे। रा ते म एक बोलेरो खड़ी थी। ये जीप रोजाना ही इसी



यहाँ खड़ी होती थी। ाइवेट कूल के कसी ब चे को घर ले जाने के लए। सभी ब च को इस बोलेरो के बारे म पता था। ाइ वग सीट पर मु ा और साथ वाली सीट पर अंकुर बैठा रहता था। अंकुर उफ ‘भैया जी’ ऊँचे तबक वाल के गाँव के थानीय नेता मलखान सह का बेटा था, जसका आस-पास के गाँव से लेकर शहर तक म दबदबा था। वैसे अंकुर ाइवेट कॉलेज से ेजुएशन करने के साथ-साथ थानीय राजनी त म भी हाथ-पाँव मार रहा था। “हाय। या चीज है!” ठं डी आँह भरता आ अंकुर बोला। “कौन! भैया जी। कसक बात कर रहे हो?” मु ा ने अपने गले पर मफलर लपेटते ए पूछा। मु ा कहने को तो सफ ाइवर था पर उसक है सयत अंकुर के दो त जैसी ही थी। लहाजा मु ा हर काम—अ छा हो या बुरा-म अंकुर के साथ रहता था। “वह” अँगुली से एक लड़क क ओर इशारा करते ए अंकुर बोला, “फुलझड़ी जो अपनी बहन के साथ जा रही है!…उसक बात कर रहे ह हम।” मु ा ने मु कुराते ए अंकुर क ओर दे खा। अंकुर मु ा को आँख मार कर कु टलता से मु कुराने लगा। “हाय, हमरी सोन चरैया।” अंकुर के मुख से ये ल ज अपने आप ही नकल गए जसका मतलब मु ा खूब जानता था। कसी खूबसूरत लड़क को दे खकर ‘सोन चरैया’ कहना—ये अंकुर का त कया कलाम था और जसका मतलब था क अंकुर इस ‘सोन चरैया’ से अपना दल बहलाना चाहता है। पछले कई दन से अंकुर क नजर इस लड़क पर थी। लड़क ब त ही सुंदर थी। अभी सफ यारहव लास म ही थी। दो-तीन महीने बाद फाइनल ए जा स के बाद इस लड़क को बारहव म जाना था। पास के गाँव म ही रहती थी यह लड़क । रोजाना अपनी चचेरी बहन के साथ कूल आते-जाते व इस पर नजर रखी जा रही थी। कसी का दल इस पर आ गया था। लड़क का नाम रोशनी था, बला क खूबसूरत थी। लंबा कद और तीखे नैन-न श इ ह पर तो अंकुर मर मटा था। लड़ कय का भी अजीब ही मसला है, खूबसूरत हो तो समाज म बैठे ‘ शका रय ’ का डर और खूबसूरत न हो तो लड़के वाल से शाद के इंकार का डर। रोशनी अपनी छोट बहन नेहा के साथ कंधे पर बैग लटकाए घर क ओर बढ़ रही थी। सामने रा ते पर कुछ मीटर क री पर बोलेरो खड़ी थी। सरे ब च के लए बोलेरो खड़ा होना एक साधारण बात थी मगर रोशनी के लए नह । रोशनी जानती थी क बोलेरो म बैठे दो लड़के—उसे ही दे ख कर आँह भरते ह। एक-एक बढ़ते ए कदम के साथ, रोशनी के दल क धड़कन भी बढ़ती जा रही थी। तेज कदम से चलते ए रोशनी ने बोलेरो और उसम बैठे दोन लड़क को नजरअंदाज करना चाहा। मगर…रोशनी ऐसा कर न सक । रोशनी के तेज कदम एक पल के लए ठ क बोलेरो के सामने के, गदन ह क -सी घूमी और कन खय से रोशनी क नजर सामने क सीट पर बैठे अंकुर से जा मल ।

रोशनी ने अगले ही पल अपनी नजर हटा ल । रोशनी बोलेरो के सामने से गुजर करके तेजी से अपने घर क ओर बढ़ती चली गई। और, अपने लंबे बाल म हाथ फेरते ए अंकुर उन दोन बहन को पेड़ के झुरमुट के पीछे प ँचने तक दे खता रहा। अंकुर और मु ा क नजर फर मल । एक यासी मु कान अंकुर के चेहरे पर दौड़ गई, “यार, या चाल है! पूरी करीना कपूर है।…चलते समय इसके बाल दे ख? े कैसे हल रहे थे कमर तक!” “हाँ जी, भैया जी।” मु ा ने अंकुर क हाँ-म-हाँ मलाई। अंकुर ने अपना सीधा हाथ आगे बढ़ाया, मु ा ने भी अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसके हाथ पर ताली मारी। गुनगुनी खली ई धूप और ऊपर से खूबसूरत लड़क का द दार, मौसम बड़ा खुशगवार बना आ था। तभी मु ा बोला, “भैया जी। सोनू आ गई।” रोशनी क खूबसूरती म खोए ए अंकुर को याद आया क वह तो सो नया को घर ले जाने के लए यहाँ आया था। अंकुर, अब लड़ कय को दे ख कर आँख सकने वाला— कोई मजनूँ नह था। अब वह एक भाई था जो क अपनी छोट बहन का कूल से लौटने का इंतजार कर रहा था। र से ही मु ा ने ‘सोनू’ को दे ख लया था। सोनू का भी आज ए जाम था— वटर सेशन का आ खरी पेपर था। इसके बाद स दय क छु ट् टयाँ होने वाली थ । ब च का एक ुप आज के पेपर के बारे म बात करता आ आगे बढ़ रहा था। सभी ब चे अपने-अपने क से सुना रहे थे। पास-फेल होने क शत लगाई जा रही थ । हँसी-मजाक चल रहा था। लड़के-लड़ कयाँ ऐसी ही बात करते ए, प के रा ते पर खड़ी बोलेरो के पास प ँचते जा रहे थे। इसी ुप म सो नया भी थी। सो नया और एक लड़का अजीत, जो क उसक लास म ही पढ़ता था, काफ दे र से कसी बात पर हँस रहे थे। ये सब अंकुर ने र से ही दे ख लया। अपनी बहन को यूँ कसी लड़के के साथ हँसी-मजाक करना, अंकुर को रास न आया। अंकुर के पैर, बोलेरो से उतर कर सीधे जमीन पर पड़े। अंकुर तेजी से उस ुप क ओर बढ़ा मगर पीछे से मु ा ने अंकुर को रोक लया। अंकुर ने मुड़ कर, गु से से मु ा क ओर दे खा। ‘अभी नह बाद म दे खगे।’ ऐसा इशारा करके मु ा ने अंकुर का हाथ पकड़ कर वापस बोलेरो म बैठा लया। इस बीच सो नया बोलेरो के पास प ँच गई। सो नया ने दोन को नम ते क और पीछे वाली सीट पर जा कर बैठ गई। “पेपर कैसा गया सोनू?” अंकुर ने पूछा। “ठ क ही गया, भैया जी।” सो नया ने जवाब दया। “मतलब! अ छा नह लखा या?” थोड़ा गु से म अंकुर ने पूछा। “नह -नह , अ छा गया है न।” अपनी बात सही करते ए सो नया बोली। “पास हो जाएगी?” सरा मु ा ने पूछा।

“हाँ जी, मु ा भैया।” सो नया मु ा को ‘भैया’ कह कर पुकारती थी। मु ा का हाथ गयर बदल रहा था, तभी अंकुर ने उसके हाथ-पर-हाथ मारा। मु ा ने बोलेरो धीमी कर ली। कुछ मीटर क री पर रोशनी और नेहा जा रहे थे। पेपर के बारे म चल रही पूछताछ बीच म ही रह गई! मु ा ने हॉन बजाकर साइड दे ने का इशारा कया। रोशनी और नेहा दोन , एक साइड म खड़े हो गए। बोलेरो उन दोन के सामने से गुजरी, रोशनी और अंकुर क नजर फर से मल । रोशनी के चेहरे पर कोई भाव न थे मगर एक ह क सी मु कुराहट अंकुर के चेहरे पर दौड़ गई। रोशनी और नेहा बोलेरो को जाते ए दे खते रहे, साइड मरर म ये बात अंकुर ने भी नोट क । मु ा ने फर से हॉन बजाया, मगर रा ता इस बार खाली था। इस हरकत पर अंकुर ने मु ा क ओर दे खा। दोन हँस पड़े। इन सारी हरकत से पीछे बैठ ई सो नया अंजान नह थी। सो नया ने बारहव के वटर सेशन का आ खरी ए जाम आज सुबह ही दया था। स ह साल— सफ स ह साल उ थी सो नया क । गाँव म पली-बढ़ , सो नया के भी कुछ वाब थे, कुछ वा हश थ , जैसी क हर सोलह-स ह साल क लड़क क होती है। हद फ म का भाव शहर के साथ-साथ गाँव और क ब म भी पड़ता है। लहाजा सो नया का गाँव भी इससे अछू ता नह था। मगर घरवाल क पाबं दयाँ और आस-पास के माहौल के चलते सो नया के वाब को जमीन न मल पाई थी। सो नया के सारे सपने उसके दल म ही उथल-पुथल मचाते रहते थे। शहर क जो जदगी सो नया ने ट .वी. पर दखाई जाने वाली हद फ म म दे खी थी, सो नया वही जदगी जीना चाहती थी। वह आगे बढ़ना चाहती थी, नौकरी करना चाहती थी, दो त के साथ घूमना- फरना, म ट ले स म शॉ पग करना, फ म दे खना—ये कुछ शहर क सामा य-सी बात ही—सो नया के सपने थे। आज आ खरी पेपर था, इसी लए सो नया ब त खुश थी। मगर आ खरी पेपर क खुशी यादा दे र तक न रह सक । सो नया को अपने बड़े से घर के बाहर शोर सुनाई दया। खड़क से दे खा तो लोग बात कर रहे थे। “ब त चोट लगी है उसे।” “ कसे?” “एक लड़के को, कूल से लौटते व ।” “कैसे? या आ था?” “लड़का तो कह रहा है क गर गया था।” “लड़का तो कह रहा है! या मतलब?” “दे खने से लगता नह क…लड़के को चोट गरने से लगी है।” “कौन लड़का है?”

“है एक लड़का, अपनी सोनू ब टया के कूल म ही पढ़ता है। पड़ोस के गाँव के भाई साहब है— जनके आम के बाग ह। सुना है, उ ह का लड़का है।” “चोट आ खर लगी कैसे?” “पता नह …कैसे लगी भाई। पर…दबी आवाज म कुछ लोग ‘भैया जी’ का ही नाम ले रहे ह!” “नाम लेने से या होगा। आ खरी नेता जी का, कोई कुछ बगाड़ सका है या इस गाँव म!” सरा हैरानी से बस पहले का मुँह ताकता रहा। ये सभी बात सो नया ने खड़क पर खड़े हो कर सुनी। ब त भीड़ जमा थी। सभी हैरान थे। सो नया भी हैरान थी। ‘कौन लड़का है, जसे चोट लगी है?’ सो नया सोच ही रही थी क नीचे से माँ र जो ने बुलाया। सो नया नीचे प ँचने के लए सी ढ़य तक प ँची ही थी क माँ ने फर से आवाज लगाई। आवाज म घबराहट थी। सो नया अपनी माँ क आवाज सुन कर तेजी से सी ढ़याँ उतरने लगी।

20

“आज का पेपर कैसा गया?” गु से से भरी ई आवाज म सो नया के पापा मलखान सह ने पूछा। सो नया अभी हॉल से लगती ई सी ढ़य के अं तम पायदान पर ही प ँची थी। मलखान सह ने पहले कभी इस तरह पढ़ाई को लेकर कोई नह कया था। सो नया हैरान थी। सी ढ़य के ठ क सामने मलखान सह खड़ा था। सी ढ़य के पास वाले कमरे के ार पर सो नया क माँ खड़ी ई थी—सहमी-सी। मलखान सह के दाएँ तरफ अंकुर और उसक बगल म मु ा खड़ा आ था। हॉल म तीन बड़े-बड़े सोफे रखे ए थे और बीच म एक शीशे क टे बल थी। टे बल के एक तरफ सो नया और सरी तरफ मलखान सह खड़ा सो नया के जवाब का इंतजार कर रहा था। अगले ही पल मलखान सह क तेज आवाज हॉल म गूँजी, “जवाब दो।” “ठ क गए ह। पापा जी। भैया जी को बताया तो था हमने।” सो नया ने अंकुर क ओर दे खा। अंकुर क आसमानी रंग क नेह जैकेट पर कई लाल रंग के ध बे लगे ए थे। “हाँ, अंकुर ने बताया मुझे। मगर…” मलखान सह ने पहले सो नया क ओर दे खा फर पास म खड़ी ई र जो क ओर दे खते ए बोला, “ये तो कुछ और भी कह रहा है।” “ या कह रहा है जी!” डरी ई र जो ने धीमी आवाज म पूछा। मलखान सह कुछ न बोला। सो नया सोचने लगी क—और या बताया होगा भैया जी ने। सो नया ने अंकुर क ओर नजर घुमा । “अब हमारी ओर या दे ख रही हो? तब तो बड़ी हँस-हँस कर बात कर रही थी उससे।” अंकुर का चेहरा गु से म तमतमा रहा था।

“ कससे!” सो नया को अब भी कुछ समझ नह आया। “ कससे?” मलखान सह गु से से सो नया क ओर बढ़ा। “अरे, उसी से जसका सर ये अभी फोड़ कर आ रहे ह। इसका बस चलता ये मार ही डालता। शु है भगवान का…ये मु ा इसके साथ था, इसी ने रोका और भीड़ से बचा कर यहाँ ले आया।” मलखान सह गु से म लाल आ जा रहा था। उसक नजर म सारे फसाद क जड़ सो नया ही थी। बना पूरी बात जाने क सो नया और वह लड़का अजीत एक ही लास म पढ़ते ह, कसी बात पर हँस रहे ह गे, मलखान सह का हाथ सो नया को मारने के लए उठा। तभी र जो ने आ कर सो नया का बचाव कया और सो नया को पड़ने वाला वह थ पड़ खुद सहन कर लया। “र जो!” मलखान सह गु से म बोला, “हट जा बीच म से। सारी बरादरी म नाक कटवा कर ही ये दम लेगी। बीच राह चलते-चलते लड़क से हँस-हँस कर बात करती है।” “ब ची है। आगे से नह करेगी हमारी सोनू…ऐसा। म समझा ँ गी।” चटाक से एक और थ पड़ र जो के गाल पर लगा। मलखान का शरीर गु से म काँप रहा था। मलखान का बस चलता तो वह दोन को जदा जला डालता। मलखान सह का हाथ एक बार फर उठा। तभी मु ा बीच म आ गया। “ताऊ जी। माफ कर द जए ताई को। ये समझा दे गी सोनू सो नया को। आपको ‘बाल गोपाल’ क कसम।” बाल गोपाल का नाम सुनते ही मलखान के हाथ हवा म ही क गए। मलखान सह ने सोनू और र जो को वहाँ से जाने का इशारा कया। दोन मजबूर और डरी ई-सी ऊपर के कमरे क ओर चल द । मलखान सह अपना सर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया। टे बल पर रखे ए पानी का पूरा जग एक ही साँस म गटक गया। मलखान ने गु से म अंकुर क ओर दे खा। मलखान क आँख म ोध व घृणा थी। मलखान सह अंकुर से कुछ न बोला। वह सीधा मु ा से बोला, “ले जा इसे यहाँ से। कह ऐसा न हो क ये पट जाए। ये…जनाब राजनी त म आएँगे! चुनाव लड़गे!” मलखान सह ने एक बार फर अंकुर क ओर दे खा जो क मलखान क ओर ही दे ख रहा था। “ या दे ख रहा है? कुछ गलत कहा मने। तुझसे अपना गु सा तो संभाला नह जाता। जरा-सी बात ई नह क—होश खो बैठे। बेचारे लड़के का सर फोड़ डाला। अरे तुम या राजनी त करोगे। यही हाल रहा तो मेरी इमेज का भी गुड़गोबर कर दोगे।” मु ा ने समझदारी दखाई। वह अंकुर को ले कर पीछे वाले कमरे क ओर जाने लगा। तभी मलखान ने पुकारा, “मु ा।” “हाँ जी, ताऊजी।” “जरा अपने बाबा को भेजना।” “जी ताऊजी।” सर हलाते ए मु ा कमरे से बाहर नकल गया। मु ा का पता—बलवीर सह, मलखान सह का खास आदमी था। बलवीर सह

मलखान सह के हर अ छे -बुरे काम का राजदार था। बलवीर हर तरह क जोड़-तोड़, थाना पु लस और उ टे -सीधे काम का मा हर था। करीब आधे घंटे बाद, बलवीर सह हा जर आ। इससे पहले क मलखान सह कुछ कहता, बलवीर सह सलाम ठोकते ए बोला, “नेता जी। जैसे ही मुझे पता लगा क भैया जी क कसी से लड़ाई हो गई है, म सीधा थाने प ँचा और वह बैठा रहा। कई फोन आए—लड़ाई-झगड़े के बारे म पर मने थानेदार को थाने से बाहर नह जाने दया। उसे वह बैठा कर समझाता रहा। बरादरी का वा ता दे कर रोका उसे।” “ब त खूब।” पछले एक घंटे म पहली बार मलखान सह के चेहरे पर मु कुराहट नजर आ रही थी। “सारा केस नपटा दया न। हम कह फोन-वोन करने क तो…कोई ज रत नह न!” मलखान सह इस झगड़े को लेकर यादा बखेड़ा नह करना चाहता था। अगले कुछ महीन म चुनाव होने वाले थे। मलखान सह वप ी पाट को इस ‘छोट ’-सी बात का बतंगड़ बना कर उ ह कसी तरह का राजनै तक लाभ उठाने का मौका नह दे ना चाहता था। “जी, नह । नेता जी। आपको इतने छोटे से झगड़े के लए कोई फोन नह करना पड़ेगा। आपका नाम ही काफ है।” बलवीर मलखान सह क प ँच और दबदबे का ज करते ए बोला। मलखान सह ने बलवीर को अपने पास बुलाया और उसे व ास म लेकर कहा, “बलवीर, अंकुर को अपनी नगरानी म रखो। इसे राजनी त क ए.बी.सी.डी. तुम ही पढ़ा सकते हो। हमारे समझाने पर तो ये गु सा हो जाता है।” बोलते ए मलखान सह सामने के कमरे म चला गया। एक भरोसेमंद श स क तरह भरोसा जताते ए बलबीर सह ने जवाब दया, “जी, नेता जी।” मलखान सह को थानीय लोग ‘नेता जी’ कह कर ही पुकारते थे।

21

ऊपर वाले कमरे म दोन ही सो नया और र जो—रो रहे थे, मगर कोई आवाज नह हो रही थी। औरत होने क सजा र जो, इस घर म भुगत रही थी और सो नया को ये सजा कभी भी भुगतनी पड़ सकती थी। सो नया बेचारी उस घड़ी को कोस रही थी जब सो नया और वह लड़का अजीत हँसी-मजाक कर रहे थे— जसक सजा अजीत को मल चुक थी। सजा म अजीत के सर पर गहरी चोट लगी थी, जसका कारण अजीत ने पैर फसलना बताया था। सजा, तो सो नया को भी मलनी थी। सफ गु सा दखा कर चुप बैठने वाल म से न तो उसके पापा थे और न ही उसका भाई—‘भैया जी’! अचानक ही एक याल र जो के दमाग म आया। ‘कह सो नया क पढ़ाई बीच म ही न छु ट जाए?’ ये सोचकर र जो घबरा गई। र जो ने रोती ई सो नया क तरफ बाँह फैला । सो नया अपनी माँ से लपट कर जोर-जोर से रोने लगी। “माँ, इसम मेरा या कसूर था? और भी ब चे थे वहाँ पर…सभी हँस रहे थे। इसी लए म भी हँसने लगी।” रोती ई सोनू ने अपनी माँ से पूछा। र जो ने यार से पीठ पर हाथ फेरा, उसे सां वना दे ते ए कहा, “इसम तेरा कोई कसूर नह है मेरी ब ची। इसम तो, सफ सोच का कसूर है। या तुझे अपनी मज से हँसने का भी कोई हक नह ।…बेचारा! वह लड़का बेकार म ही पट गया। उसका भी कोई कसूर नह था।” र जो ने अपनी आधी जदगी, इसी घर म ऐसे ही माहौल म काट द । र जो ने सब कुछ सहा मगर उ क तक न क । कहते ह जब ब च पर आँच आती है तो माँ भगवान से भी लड़ जाती है। और

मलखान सह तो सफ इंसान ही था। रोती ई र जो ने एक बड़ा फैसला कया। र जो ने सो नया क खुशी और उसक जदगी के लए—वह करने क ठानी, जसके बारे म र जो ने कभी सपने म भी नह सोचा था। ‘ खलाफ जाने क ’—मलखान सह के खलाफ जाने क । अगर मेरी ब टया क पढ़ाई- लखाई और खु शय पर आँच आई तो म कुछ भी क ँ गी, मगर सोनू पर कोई आँच न आने ँ गी। “कुछ नह होगा, सोनू। दे खना…सब ठ क हो जाएगा। म तुझे कुछ भी नह होने ँ गी।” र जो बोली। सो नया को कुछ खबर नह थी क उसक माँ के दमाग म या- या चल रहा है। सो नया अब भी रो रही थी। माँ क बात सुनकर सो नया और जोर-जोर से रोने लगी। उधर नीचे वाले कमरे का कुछ और ही य था। गु से म आग-बबूला, मलखान सह ये बदाशत ही नह कर पा रहा था क उसक बेट सो नया कसी लड़के के साथ हँस-बोल रही थी। अभी सो नया कूल म ही तो पढ़ रही थी—ट नऐजर ही तो थी वह। हँसना-खेलना पढ़ाई के साथ-साथ ये सब कूली जदगी का अ भ अंग होता है—ये बात मलखान सह क समझ के बाहर थी। द कयानूसी सोच उसके सर पर सवार थी। मलखान सह ने सोनू क हँसी और बातचीत क अपनी कुछ अलग ही ा या कर ली थी। ‘कह मेरी सोनू यार म तो नह पड़ गई है! कह ये घर से भाग तो नह जाएगी और…भाग गई तो, तो…सारे समाज म मेरी थू-थू हो जाएगी। म कसको मुँह न दखा पाऊँगा। अगर ऐसा हो गया तो! सारे फसाद क जड़ ये कूल है। न सोनू कूल जाएगी, न ही ऐसा कुछ होगा।’ इस तरह उ टे -सीधे वचार क आँधी म उलझा आ इंसान अपनी सद्बु खो बैठता है। गु सा इंसान क बु हर लेता है। इस व गु साए ए मलखान सह क बु काम नह कर रही थी। मलखान सह ने गु से म एक नणय लया—सो नया को कूल न भेजने का। घर के पीछे वाले कमरे म जहाँ पर कुछ दे र पहले मु ा और अंकुर बैठे ए थे, अब अंकुर अकेला ही बैठा आ अपने पापा मलखान सह को कोस रहा था। अंकुर क नजर म मलखान सह को जमाने क कुछ समझ नह थी और कुछ इसी तरह मलखान सह भी अंकुर को एक बगड़ी ई औलाद के सवाय कुछ नह समझ रहा था। मु ा अंकुर को समझा-बुझा कर अपने पता बलवीर सह को बुलाने के लए नकल गया। जाते-जाते कमरे से बाहर न नकलने क सलाह भी दे गया था। मु ा क बात मानकर अंकुर कमरे म ही बैठा आ, अपनी ही सोच म डू बा आ था। मु ा को गए बीस मनट हो चुके थे। तभी दरवाजे पर ठक-ठक ई। अंकुर सोफे से उठा। सोचा क मु ा होगा—उसने दरवाजा खोला। सामने बलवीर सह था। “नम ते। चाचा जी।” अंकुर बोला। फर मुड़ कर वापस सोफे क ओर बढ़ गया। बलवीर सह भी अंकुर के साथ ही सोफे पर बैठ गया।

“ या आ? इतना परेशान य हो?” बलवीर सह ने पूछा। “कुछ नह , चाचा जी। बस पापा जी कुछ समझते नह ह। वह मुझे ही गलत ठहराते ह। चाहे कोई भी मामला हो।” अंकुर बलवीर सह क ओर दे खता आ बोलता गया। “मुझे यह बदा त नह क कोई मेरी बहन के साथ छे ड़छाड़ करे। और…अगर कोई करेगा तो उसका भी यही हाल होगा।” “मगर, बेटा। वे सारे कूली ब चे ह। आपस म हँस रहे ह गे इसम इतना गु सा होने क बात नह थी।” “चाचा जी, आज सोनू हँसी-मजाक करेगी तो कल कुछ ‘और’ भी करेगी। म ऐसा हर गज नह होने ँ गा।” “ठ क है।” बलवीर सह एक सुलझा आ था। इस व वह हाँ-म-हाँ मला कर मामला शांत करना चाह रहा था। “दे खा! आप मेरी बात समझ रहे ह, पर पापा नह ।” अंकुर के मुख से परेशानी म ये श द नकल गए। “बेटा! सुनो।” बलवीर सह बोला। वह जानता था क अब अंकुर उसक बात सुनेगा। “तुम भी ठ क हो और नेता जी भी ठ क ह। बस फक उ और नज रए का है। उ ह इस व चुनाव क चता है। इसी लए वह कसी भी बात म पड़ना नह चाहते। एक बार वह 12 गाँव के सरपंच बन गए तो फर अपना ही राज होगा।” अंकुर का गु सा शांत होने लगा था। बलवीर सह क बात यान से सुनता आ वह उठा और उसने चाय के लए ह रया को आवाज लगाई। “अंकुर।” “हाँ।” “तु ह अपने पता क ताकत बनना होगा…न क कमजोरी। तुम चुनावी चार म उनका हाथ बँटाओ। नौजवान हो। पढ़े - लखे हो। तुम सब कुछ कर सकते हो। फर भ व य म तु ह ही ये सब संभालना है।” बलवीर सह क बात से अंकुर का गु सा जाता रहा। बलवीर सह क बात सफ बात नह थ —ये बलवीर सह के अनुभव का नचोड़ थ — जनके भाव म अंकुर आ चुका था। “तो तुम तैयार हो इस नई ज मेदारी के लए? या तुम साथ दोगे अपने पता का! बोलो।” बलवीर ने पूछा। कुछ पल अंकुर चुप रहा। फर वह बोला, “जी हाँ। मुझे या करना होगा?” “सबसे पहले तो तु ह गु सा करना छोड़ना होगा।” “और उसके बाद।” “उसके बाद…तुम कल सुबह 10 बजे तैयार रहना। गाँव म एक सभा है वहाँ जाना होगा—चुनाव चार के लए।” सहम त म सर हलाने के बाद, एक ह क -सी मु कुराहट अंकुर के होठ पर दखाई द । मु कुरा तो बलवीर सह भी रहा था। मगर उसक मु कुराहट म शायद एक रह य-

सा छु पा था। खैर, उसने अपने वायदे पर काम करना शु कर दया था जो अभी उसने साथ वाले कमरे म नेता जी से कया था। बलवीर सह कमरे से बाहर नकला, ठ क उसी व मु ा भी दरवाजे पर प ँचा। दोन क नजर मल । बलवीर सह मु ा को एक अजीब-सा इशारा करते ए बोला, “मु ा, मने तेरे अंकुर भैया जी को समझा दया है। तुम चता न करना। सब कुछ अपने ‘ लान’ के मुता बक हो रहा है।” “जी। पापा जी।” मु ा ने अजीब से, मगर रह यमय भाव के साथ जवाब दया। कुछ-न-कुछ ‘ खचड़ी’ तो दोन के बीच ज र चल रही थी। आ खर ताकत और स ा क लालसा कसे नह होती!

22

…कमरे म बैठ ई रोशनी आज सुबह क घटना के बारे म सोच-सोच कर खुश हो रही थी। ये सब पछले कई दन से चल रहा था। हर रोज बोलेरो वहाँ प क सड़क पर आ कर खड़ी रहती थी और रोज ही उसम से चार आँख उसे दे खा करती थ । इन चार आँख म से दो आँख अंकुर क थ । अंकुर रोशनी क खूबसूरती पर मरने लगा था। आने वाले चुनाव के म े नजर वप ी क ओर से कसी खतरे के आभास को दे खते ए कूल से सो नया को लाने-ले जाने का काम अंकुर दे ख रहा था। पहले-पहले यूँ अंकुर का घूरना रोशनी को अ छा नह लगता था। मगर… कशोर मन क उड़ान को उड़ने के लए जमीन क ज रत ही नह होती! लहाजा रोशनी के दल म अंकुर के लए एक भावना ने कुलबुलाना शु कर दया था। शु म बोलेरो को दे खकर ही दल जोर-जोर से धड़कना शु कर दे ता था—डर से, मगर अब दल जोरजोर से धड़कने लगता था— यार से। ‘कह , सच म! रोशनी कह अंकुर के इस तरह दे खने को यार तो नह समझने लगी थी।’—रोशनी क छोट बहन नेहा को यूँ लगने लगा था। नेहा ने कभी इस बात का ज नह कया। हर बीतते दन के साथ, अंकुर रोशनी का इंतजार करता और रोशनी अंकुर का। दोन म अभी तक कोई बातचीत नह ई थी। यार के रा ते पर, अभी उनके कदम नह पड़े थे, मगर कभी भी पड़ सकते थे। शाम के आठ बज चुके थे। ये नेहा के आने का व था। नेहा इसी व रोशनी के घर म पढ़ने के लए आती थी। नेहा, रोशनी के चाचा क लड़क थी, साथ वाले घर म ही

रहती थी। वैसे दोन घर म जमीन-जायदाद को लेकर ववाद चल रहा था, जसके लए दोन तरफ से केस लड़ने क तैया रयाँ भी हो चुक थ मगर ब च को लेकर कसी के मन म कोई े ष क भावना नह थी। कभी-कभी नेहा डनर रोशनी के साथ कर लेती थी और नेहा भी कभी-कभी रोशनी क मनपसंद दाल-स जी वगैरह अपने साथ ले कर आ जाती थी। रोशनी और नेहा कहने को चाचा-ताऊ क लड़ कयाँ थ मगर दोन का यार सगी बहन से भी बढ़ कर था। नेहा छोट थी, मगर जमाने क सोच और नीयत क खबर उसे यादा रहती थी। नेहा को शायद ये भगवान क दे न थी। नीचे से म मी क आवाज आई, “नेहा आई है।” माँ क बात सुनकर रोशनी नीचे प ँच गई। दोन ने अपना-अपना कूल बैग उठाया और सामने वाले कमरे म चली ग । थोड़ी दे र बाद ही, चाय-ना ता ले कर रोशनी क माँ स ो ने कमरे म वेश कया। दोन को पढ़ता दे खकर, वह चाय रखकर चली गई। रोशनी के पापा ह रया घर पर आ चुके थे। एक चाय क याली, उनके सामने भी रखी ई थी। “ या बात है? कुछ परेशान लग रहे हो!” स ो ने पूछा। “कुछ नह , बस कसी ब चे का पैर फसल गया था और उसके सर पर चोट लगी है। अभी वह से आ रहा ँ। उसे दे खकर…” “ यादा चोट लगी? मने भी सुना है क कसी को सर पर चोट लगी है, मगर मने कुछ और भी सुना है।” “ या!” “यही क सर पर चोट, पैर फसलने के कारण नह लगी।” “तु ह ये कसने कहा?” “सभी कह रहे ह।” “और या कह रहे ह?” रोशनी के पापा ने पूछा। “यही क नेता जी के बेटे भैया जी का हाथ है इस घटना म…” अभी बात पूरी भी नह ई थी क ह रया उठा और अपनी प नी स ो को धमकाते ए बोला, “खामोश! खामोश रहना, एक श द भी जबान पर नह लाना। भैया जी ने जो कया ठ क कया। कोई कसी क बहन को छे ड़ेगा तो हमारा जवाब यही होगा। हमारी रोशनी क तरह ही है सोनू ब टया। बचपन से गोद म खलाया है मने।” स ो खामोशी से ‘रोशनी के पापा’ के चेहरे के बदलते ए भाव को पढ़ने क को शश कर रही थी। वह—ह रया—बोलता गया, समझाता गया। “दे खो, सारा मामला दबा दया गया है। लड़के के बाप से भी समझौता हो गया है। और उस लड़के के इलाज का खचा भी तो, नेता जी ही उठा रहे ह। बच जाएगा।” ह रया ने अपनी प नी क ओर दे खा। वह कुछ न बोली। वह जानती थी क ह रया नेता जी का व ासपा आदमी है। दरअसल ह रया, नेता जी के घर का एक ब त पुराना और व ासपा सेवक था। सरे कमरे म रोशनी और नेहा पढ़ रहे थे। पढ़- लख कर कुछ कर दखाने क

ललक थी दोन म। दोन ही कशोर थे। सपने दे खना और फर से सपने दे खना—यही एक काम कशोराव था का य शगल होता है। दोन कताब खोल कर अपनी सपन क नया म खोए ए थे। एक ओर आज आ खरी पेपर होने क खुशी थी तो सरी ओर ‘उन दो आँख ’ क कमी थी— जसे अब रोशनी महसूस कर रही थी। नेहा भी कुछ गुम-सुम ही बैठ ई थी। रात होने को थी। ठं ड बढ़ती जा रही थी। रोशनी ने पैर पर ओढ़ ई रजाई गदन तक ख च ली, नेहा जो क रोशनी के पैर क ओर बैठ ई थी, अब उघड़ी ई थी। उसने गु से म रोशनी क ओर दे खा। रोशनी अपने याल म गुम थी। नेहा उठ कर रोशनी के पास जा कर बैठ गई। “ कन वाब म गुम हो।” रोशनी अब भी अपनी सपन क नया म खोई ई थी। उसने कोई त या नह द । “अरे, सुन रही हो के नह । मने पूछा कन याल म गुम हो।” बोलते ए नेहा ने अपनी कोहनी रोशनी को मारी। “ या है?” झुँझलाते ए रोशनी बोली। “वही तो पूछ रही ँ, या है?” नेहा ने जवाब दया। “ कूल कब खुलगे?” रोशनी का ये नेहा को समझ नह आया। “अरे! कल छु ट् ट का पहला दन है, आज कूल से आई हो। या ज द है तु ह कूल जाने क !” “…” रोशनी कुछ न बोली। नेहा ने फर पूछा, “तु ह छु ट् टयाँ पसंद नह या!…नह ऐसा तो नह है य क तुम हर बार छु ट् टय पर कतनी खुश होती थ । ये हम अ छे से जानते ह। पता नह इस बार तु ह या आ।” नेहा ने अपने दमाग पर जोर दया। उसे एक वचार आया, “कह तु हारे ऐसे हाल का कारण ‘बोलेरो’ तो नह !” रोशनी ने घूर कर नेहा क ओर दे खा। नेहा थोड़ी सहम-सी गई। नेहा को लगा क उसने कुछ गलत बोल दया है। वह सॉरी बोलने ही वाली थी तभी रोशनी के चेहरे पर एक मु कान उभर आई। जवाब म नेहा भी मु कुराने लगी।

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अगले दो स ताह, अंकुर अपने चुनावी काय म के चलते ब त त रहा। कभी इस गाँव म तो कभी उस गाँव म, सभी उसे ‘भैया जी’ के नाम से पहचानने लगे थे। इस दौरान अंकुर बलवीर सह के साथ रह कर काफ कुछ सीख गया था—हर कसी से ‘जीजी’ और ‘आप-आप’ कहने का राजनेता का तरीका, और कुछ समझ न आने पर हम इस मामले म दे खगे और पाट क कमेट से वचार- वमश करके ही नणय लगे, आ दआ द। मु ा से उसे पल-पल क खबर मलती ही रहती थी—रोशनी के बारे म। एक दन चुनावी सभा रोशनी के गाँव म होनी थी—ये एक पछड़े ए लोग का गाँव था। अ धकतर लोग कृषक थे और अपनी थोड़ी ब त खेती-बाड़ी करके गुजर-बसर करते थे। वे लोग जनके पास जमीन नह थी वे लोग सरे लोग क जमीन पर खेती करते थे। इस तरह के लोग म ह रया भी था। ह रया, खेती के महीन म खेती और बाक के दन म नेता जी के घर के छोटे -बड़े, मामूली व गैर-मामूली काम कर दया करता था। इस पछड़े ए लोग के गाँव क सीमा से लगता आ एक गाँव और था, जसम मु लम लोग क बा लता थी। दोन गाँव को एक साथ ही संबो धत करना था, अंकुर को। ये खबर, रोशनी को भी मली। रोशनी के मन म भी सभा म जाने क योजना बनने लगी, बना नेहा को बताए। पास वाले गाँव के लोग भी सभा म मौजूद थे। सभी कुछ सु व थत और शां तपूण ढं ग से चल रहा था। नौजवान को समाज के त अपने क को समझाते ए, बलवीर सह ने माइक अंकुर क ओर बढ़ा दया।

“भैया जी… जदाबाद!” “भैया जी… जदाबाद, नेता जी… जदाबाद!” ये नारे लोग क जुबां पर थे। अंकुर ने अपने वचार को दोन गाँव के लोग ने सामने रखा, “…जब हर गाँव म श ा होगी, तभी गाँव के ब चे कुछ बन कर दखा पाएँगे। ये काम कसी सरकार के भरोसे पर छोड़ दे ने से कुछ हा सल नह होगा। इसके लए हम खुद ही कुछ करना होगा। अपने-अपने गाँव के तर पर, हम सभी को श त करना होगा। बताइए या आप सब मेरे साथ ह। अपने नेता जी के साथ ह।” “हम आपके साथ ह।” सारी सभा एक साथ एक आवाज म बोली। अंकुर ने फर बोलना शु कया, “और हमारे मुसलमान भाई-बहन, उ ह भी इस मशन म साथ दे ना होगा। आपके साथ के बना कुछ मुम कन नह हो पाएगा। बताइए, कौन है जो समाज म श ा और भाईचारे को बढ़ावा दे ने के लए आगे आएगा।” भीड़ म एक तरफ मु लम और एक तरफ पछड़े लोग थे। कोई भी हाथ नह उठा। अंकुर को लगा क उसक बात लोग क समझ म नह आ रही है। अंकुर ने धीरे से गदन घुमा कर बलवीर सह क ओर दे खा। बलवीर सह ने आँख से इशारा करके थोड़ा स रखने को कहा। “भाइय , कोई तो आगे आइए। कसी को तो आना ही होगा। इतने नौजवान म से कोई नह ।” अंकुर क बात ख म भी नह ई थी क एक बुजुग ने एक लड़के का हाथ पकड़ कर ऊपर उठा दया। लड़का अभी उ के इ क सव साल म ही था। लंबे कद का वह लड़का शॉल ओढ़े ए भीड़ म एक ओर खड़ा आ था। चेहरे पर ह क -ह क शेव और लंबे बाल थे। आँख पर च मा लगा था। एकाएक हाथ पकड़ कर खड़ा कर दे ने पर, लड़के ने आ य से बुजुग अंकल क ओर दे खा। इससे पहले लड़का कुछ कह पाता, बुजुग अंकल लड़के का हाथ ख चते ए उसे लेकर मंच क ओर बढ़ गया। ये बुजुग अंकल सुहैल के चचा लगते थे। भीड़ ने ता लय से उसका वागत कया। अंकुर भी ब त खुश आ, नेता गरी म नया-नया जो था। बलवीर सह ने आगे बढ़कर उनका वागत कया। मनट तक जदाबाद के नारे लगते रहे। बलवीर सह ने अंकुर को लड़के के बारे म बताया। फर अंकुर भीड़ से बोला। “सुहैल खान नाम के इस लड़के ने समाज म श ा और भाईचारा बढ़ाने के लए अपनी मंजूरी द है, बाक का काम हमारी पाट करेगी, इलाके म कसी को कोई तकलीफ-परेशानी हो, बे झझक आ कर हमसे मल सकता है।” बलवीर सह ने आगे बढ़कर अंकुर के कान म कुछ कहा। अंकुर ने बलवीर सह क ओर आ य से दे खा। जो बात अभी कान म कही गई थी, वह सभा क पूरी तैयारी और ला नग म कह भी नह थी। अंकुर ने फर से माइक थामा और वही बात दोहरा द , “भाइय , हम अपने घर पर ाइमरी के ब च को पढ़ने-पढ़ाने क तैयारी भी करा रहे ह, आपको जानकर खुशी होगी क घर पर पढ़ाने का सारा काम हमारी छोट बहन क दे खरेख म होगा, जो भी ब चा वहाँ पढ़ना चाहे आ सकता है।” अपना भाषण ख म करके अंकुर ने बलवीर सह क ओर दे खा, “सब कुछ अ छे

से हो गया है।” बलवीर सह ने इशारा कया। भीड़ नारे लगा रही थी। धीरे-धीरे एक-एक करके सभी मंच से उतर कर अपनीअपनी गा ड़य क ओर बढ़ चले। अंकुर के इस भाषण के बाद दो अंकुर के दल म आ रहे थे। पहला, सुहैल खान को आगे ला कर बलवीर सह ने या चाल चली? सरा, घर पर पढ़ने-पढ़ाने का तो कोई ज ही नह था फर अचानक बलवीर अंकल ने, ऐसा बोलने को य कहा? कुछ सवाल और भी थे मगर वे अंकुर के मन म नह , रोशनी और सुहैल के दल म उठ रहे थे। ‘ कतना समझदार और स य है अंकुर, फर लोग य उसके बारे म उ टा-सीधा कहते ह!’ ये पहला था जो रोशनी के दल म उठा था। सरा सुहैल खान के मन म था क चचा ने उसका हाथ य खड़ा करवाया। और चचा जान के चेहरे पर इस व कोई नह था। उनके चेहरे पर तो एक तस ली थी—रह यमयी तस ली। इस तस ली के साथ-साथ चचा जान के होठ पर एक अजीब-सी मु कुराहट थी, ऐसा लग रहा था क न जाने कौन-सा कला उ ह ने फतह कर लया है! खैर, धीरे-धीरे भीड़ छँ टती गई और ठं ड बढ़ने से पहले ही सभी अपने-अपने घर म प ँच गए।

24

स दय क छु ट् टयाँ बीत चुक थ , मगर मौसम म अब भी ठं डक थी। कूल फर से खुल चुके थे। पछले एक स ताह से सो नया कूल नह गई थी। ये जानते ए भी क सो नया बारहव म है, और इस अं तम समय म कूल न जाना और टशन म रहना-पढ़ाई के लए कतना नुकसानदायक है, सो नया को कूल जाने क इजाजत नह मली थी। इजाजत या—सो नया तो अपने ही घर म सफ एक नजरबंद ी क तरह बन कर रह गई, जसे घर म घूमने- फरने क आजाद थी मगर घर से बाहर जाने पर पाबंद थी। लडलाइन फोन क लाइन सफ बैठक और मलखान सह के कमरे म ही सलामत थी। सो नया के साथ-साथ अंकुर के कमरे क भी फोन क लाइन कटवा द गई थ । और, मोबाइल। मोबाइल तक सो नया क प ँच हर गज नह थी। सारी कॉपीकताब सो नया के कमरे म ही मौजूद थ । कूल म या- या आ है इसक खबर सो नया को रोजाना ही, फोन पर मल जाती थी। जस व सो नया फोन पर कूल क पढ़ाई क बात कर रही होती—उस व अंकुर या मलखान सह म से कोई एक या दोन ही मौजूद रहते थे। सुबह से सो नया को सफ फोन करने का ही यान रहता था। फर उसके बाद पढ़ाई-पेपर क तैयारी। मलखान सह का इलाके के 12 गाँव पर ब त दबदबा था। लहाजा कूल के सपल से सो नया क पढ़ाई को लेकर बात हो चुक थी। हर रोज सो नया क लास ट चर— या आ, या पढ़ना है—इसक खबर फोन करके सो नया को बता दया करती थी। लास के ब च को पता था क सो नया कूल नह आ रही है, मगर य ? इसक प क खबर कसी को नह थी। अब भी सब कुछ ठ क वैसा ही चल रहा था, जैसा क पहले चला करता था। ब च क छु ट् ट के व भाग-दौड़, शोरगुल और मेन गेट पर गेट खुलने का इंतजार करती ब च क कतार। अब भी सरकारी कूल क छु ट् ट 15 मनट पहले होती थी। पहले क तरह ब चे आज भी अपना-अपना बैग कंध पर लादे अपने-अपने घर

क ओर बढ़ रहे थे, उ ह टे ढ़ -मेढ़ पगडं डय से होकर। आज भी प के रा ते पर बोलेरो खड़ी थी। बोलेरो म, आज भी अंकुर और मु ा बैठे इंतजार कर रहे थे—सो नया का नह , रोशनी का! रोशनी और नेहा धीरे-धीरे बोलेरो क ओर बढ़ रहे थे। रोशनी को सुबह कूल प ँचने का और कूल प ँचने पर कूल क छु ट् ट होने का इंतजार था। वह बेचैन थी, थोड़ी परेशान थी। व कट ही नह रहा था। जैस-े तैसे एकएक करके सारे पी रयड बीत गए। फर छु ट् ट ई, और रोशनी क परेशानी कम ई। रोशनी आज ब त ही खूबसूरत लग रही थी। खुले बाल कमर तक झूल रहे थे। गुलाबी कलर क जैकेट से चेहरे क रंगत भी गुलाबी होती जा रही थी। जैकेट टाइट थी और जप गदन से कुछ नीचे तक खुली ई थी। कूल यू नफॉम का पट् टा कंधे पर लटक रहे बैग म रखा कॉपी- कताब से बात कर रहा था। आज ठं ड यादा ही थी। सूय दे वता के दशन अभी तक न ए थे। धुँध क चादर, पेड़ के प से होती ई र खेत के बीच तक छाई ई थी। हर ब चे को घर प ँचने क ज द थी। नेहा को भी ज द थी, मगर रोशनी के पाँव बढ़ ही नह रहे थे। बोलेरो को दे खना, फर नजर झुका लेना, फर से र क चे रा ते को दे ख कर गदन घुमाते ए, नजर बोलेरो को ही दे ख रही थ । तेज नजर से रोशनी क ये हरकत बच नह पाई थी, अंकुर बोलेरो म बैठा आ मु कुरा रहा था। अंकुर भी आज ब त खुश था। चुनावी चार क कोई मी टग या ो ाम अगले दो दन तक नह था। लहाजा वह आज था। उसे कुछ काम नह था। रोशनी और नेहा, बोलेरो के सामने से गुजरे। नेहा क नजर अंकुर से मल । अंकुर अपने बाल म हाथ घुमा रहा था। रोशनी एक पल क । एक कदम बोलेरो क ओर बढ़ाया। नजर अंकुर क नजर से बात कर रही थ । अंकुर क आँख चमक उठ । बाल को कंघी करते हाथ सर पर ही क गए। अंकुर अपनी ओर कदम बढ़ाती रोशनी को नहार रहा था। धीरे से उसके मुँह से नकला ‘हमरी सोन चरैया।’ सरा कदम रोशनी बढ़ाने ही वाली थी क नेहा ने रोशनी का हाथ ख च लया और ‘उधर कहाँ?’ मुड़ कर रोशनी ने नेहा क ओर दे खा। रोशनी झप गई। “ज द चलो। वहाँ कहाँ जा रही हो। वहाँ पर नेता जी क बोलेरो खड़ी है।” “कुछ नह , बस…बोलेरो को पास से दे खना चाह रही थी।” रोशनी को कुछ जवाब न सूझा तो, यही बोल दया। “बाद म दे खगे। अभी घर चलो। ठं ड हो रही है।” रोशनी या बोलती। वह नेहा के साथ घर क ओर बढ़ने लगी। धीरे-धीरे बोलेरो भी उनके पीछे -पीछे बढ़ने लगी। ं ट सीट पर बैठे अंकुर क आँख तो एकटक रोशनी को दे खे जा रही थ । मु ा ने हॉन पर हाथ मारा। आवाज सुन कर दोन एक ओर खड़ी हो ग । धीरे-धीरे से बोलेरो रोशनी के आगे से गुजर गई और रा ते पर थोड़ी र जा कर खड़ी हो गई। धीरे-धीरे रोशनी व नेहा फर से

बोलेरो के सामने से गुजरे, कुछ कदम चले ह गे क हॉन फर बजा, दोन … फर एक ओर खड़ी हो ग और धीरे-धीरे से गुजरती ई बोलेरो म बैठे अंकुर क नजर एक बार फर रोशनी क नजर से जा कर मल ग । काफ समय तक बोलेरो ऐसे ही क- क कर चलती रही। अंकुर और रोशनी क नजर मलने के साथ ही एक छपी ई मु कुराहट दोन के होठ पर दौड़ जाती। ये बोलेरो सारे इलाके म मश र थी—भैया जी क बोलेरो—के नाम से। सो नया अपने कमरे म गुम-सुम-सी बैठ थी, जब अंकुर और मु ा घर पर आए। दोन बात कर रहे थे—आज क घटना के बारे म। “खाना लगवा दो, माँ।” अंकुर ने आवाज लगाई। “हमारा भी लगवा दे ना।” बैठक म दा खल होते ए मलखान सह बोला। रसोई घर से र जो बाहर आई, गुम-सुम-सी च तत-सी। चेहरे पर कोई भाव न थे। खुश रहने का कोई कारण न था और ःख जा हर करना मना था। फर भी, मलखान सह ने पूछा, “ या आ? चेहरा य मुरझाया आ है? तबीयत तो ठ क है न?” अंकुर और मु ा नेता जी के आने पर उठ खड़े ए थे, दोन ने र जो क ओर दे खा। चेहरा सचमुच मुरझाया आ था। मलखान सह ने दोन को बैठने को कहा। ह रया भी वह खड़ा था। “नेता जी, पहले चाय-पानी लगे या सीधा खाना लगा ँ ।” “खाना लगा दो।” जवाब मला। पाँच मनट म खाना टे बल पर लग चुका था। तीन ने खाना शु कया। पहला नवाला मुँह म डालते ही, पालक पनीर का वाद मुँह म घुल गया। मलखान सह बोला, “ब त ब ढ़या।” “सच म आज तो…माँ कमाल ही हो गया। ब त अ छा बना है।” अंकुर बोला। साथ मु ा ने भी हाँ-म-हाँ मलाई। मगर र जो अपनी तारीफ सुन कर भी कोई खुश न ई। चेहरा ब कुल सपाट था —भाव शू य। ‘कोई कैसे खुश हो सकता है! जब क जगर का टु कड़ा उदास हो।’ पालक-पनीर सो नया को पसंद था। दो दन से सो नया ठ क से खाना नह खा रही थी। इसी लए र जो ने सो नया क पसंद का पालक-पनीर बनाया था, इस याल से क सो नया पालक-पनीर से भरपेट खा लेगी। मगर सो नया ने थाली क ओर दे खा भी नह । सो नया क माँ लगभग 10-12 मनट पहले सो नया के लए खाना ले कर गई थी। वह थाली अब भी वैसी ही ‘पड़ी’ ई थी। रोट का टु कड़ा भी नह तोड़ा गया था। “सोनू ने खाना खाया?” मलखान सह ने पूछा। र जो कुछ न बोली। अंकुर और मु ा दोन वा द खाने का मजा ले रहे थे। “सोनू ने खाना खाया या नह ?” तेज आवाज म मलखान सह ने फर पूछा।

र जो का सर इंकार म दाएँ-बाएँ घूमा। हाथ म पकड़ा आ नवाला मुँह से लगा ही था क मलखान सह ने वह थाली म रख दया। “ य नह खाया?” मलखान सह आ खर वह भी तो एक पता था। जवाब म दो बूँद आँसू र जो क आँख से छलक उठे । खाना छोड़कर मलखान सह तुरंत उठा, सी ढ़य से होते ए सो नया के कमरे तक प ँचा। थाली अब भी पलंग पर रखी ई थी। रजाई म सहमी-सी ई बैठ सो नया न जाने या सोच रही थी। ये य मलखान सह से सहन न आ। वह धीरे से पलंग पर बैठा और एक टु कड़ा तोड़ कर सो नया के मुँह क ओर बढ़ाया। सो नया ने मुँह फेर लया। “र जो!” ब त तेज आवाज म मलखान सह च लाया। र जो, अंकुर और मु ा तेजी से ऊपर प ँच।े “ या आ जी?” डरती ई आवाज म र जो ने पूछा। “इसे खाना खलाओ। हम अपनी ब टया को ऐसे नह दे ख सकते।” “तो कूल य नह भेज दे ते इसे।” सर ‘हाँ’ म हलाते ए मलखान सह कमरे से बाहर नकल गया। कमरे के बाहर, ह रया भी खड़ा था। र जो क आवाज सुनकर वह ऊपर दौड़ा आया था। ह रया ने दे खा क कैसे चुपके से नेता जी ने अपनी आँख से गरते ए आँसू प छ लए। “ कूल फर से भेजगे।” ये जानकर सो नया क कोई त या नह ई। हाँ, र जो क आँख से खुशी के आँसू ज र उमड़ पड़े थे। ये खबर सुन कर, अंकुर का चेहरा तमतमा उठा। मु ा ने ये दे ख लया था। मु ा ने चुप रहने का इशारा कया। अंकुर ने अपने गु से पर काबू पाया और फर से आकर नीचे डाय नग चेयर पर बैठ गया। मु ा और अंकुर दोन क आँख म कुछ चल रहा था। तभी बलवीर सह दा खल आ। औपचा रक राम-राम के बाद मु ा, अंकुर और बलवीर तीन पीछे वाले कमरे म प ँच गए। तीन ने वहाँ सो नया के कूल जाने क बात पर गौर कया। चुनाव के म े नजर सो नया को कूल जाने दे ने का फैसला ले लया गया। और सरे कमरे म मलखान सह अपनी सोनू के बारे म सोच-सोच कर ःखी हो रहा था। दल के गम क कुछ बूँद आँसु क श ल म आँख से नकल ग ।

25

चुनावी मौसम था। हर तरफ, हर ओर चार, चार और बस चार ही हो रहा था। सरी पाट के लोग भी बढ़-चढ़ कर चार कर रहे थे। नेताजी के नेतृ व म बलवीर और अंकुर ने अपने कुछ फैसल पर अभी से अमल करना शु कर दया। — ब च को पढ़ाने का काम— जसे क सो नया को करना था, मगर 12व ए जाम के चलते अभी एक लेडी ट चर के ारा करवाया जा रहा था। — मुसलमान के साथ आपसी भाईचारा बढ़ाने और मु लम समाज को श ा के त जाग क करने का काम— जसके लए सुहैल खान नाम के लड़के का नाम सुझाया गया था। इसी सल सले म घर के आँगन म कुछ अ थायी कमरे बनाए गए थे जनम से एक म ब च को पढ़ाया जाना था और सरे म चुनाव चार के वषय म वचार- वमश कया जाता था। दोन कमर क खड़ कयाँ बड़ी थ , और सभी पर पारदश शीशा लगा आ था। अपने घर क छत से सो नया इन कमर को दे ख रही थी। इंसान अपने फायदे के लए या- या करता है, और या- या कर सकता है—ये बात वह जान चुक थी। चुनावी फायदे के लए नेता जी का मुसलमान से मलना-जुलना और दो ती करना— इसका उदाहरण था। आज मौसम साफ था। सुबह के यारह बजे थे। धूप नकली ई थी। छत पर गुनीगुनी धूप म सो नया अपने फाइनल ए जा स क तैयारी कर रही थी। वह घूम-घूम कर अपने नोट् स दोहरा रही थी। घूमते-घूमते वह छत क रे लग के पास खड़ी हो कर नीचे आँगन म चल रहे काम-काज को दे खने लगी।

छत से दोन कमर के भीतर का य साफ-साफ नजर आ रहा था। एक कमरे म कुछ बच और एक कुस रखी ई थी। ‘शायद इसी कमरे म, ब च को पढ़ाया जाएगा।’ सो नया ने सोचा। सरे कमरे म एक बड़ी कॉ स टे बल और उसके चार ओर कु सयाँ रखी ई थ । साफ लग रहा था क ये कमरा पाट क मी ट स और वचार- वमश करने के लए बनाया गया है। दोपहर तीन बजे से आस-पास के घर के ब चे यहाँ पर पढ़ने के लए आने वाले थे। ‘इधर ये कूल के बच य लाए जा रहे ह?’ कुछ दन पहले, ये पूछने पर ह रया ने सो नया को सारी बात बता द थी। तभी सो नया को पता चला था क ‘उसका नाम ले कर भी चुनावी रो टयाँ सकने का लान बनाया जा चुका है।’ इस तरह क राजनी त से सो नया को नफरत थी। घर म पूरा राजनै तक माहौल होने के बावजूद भी सो नया क दलच पी राजनी त म ढे ले भर क भी नह थी! सो नया का मन घृणा से भर गया। फर ठं डे दमाग से सोचा क इधर पढ़ाने म बुरा भी या है? कम-से-कम छोटे ब चे तो पढ़- लख जाएँगे। चाहे ये चुनावी फैसला ही है, मगर ब च को तो इसका फायदा मल ही जाएगा। सभी जगह ये बात फैल गई थी। ब च क सं या बढ़ती जा रही थी। अ थायी ट चर अपना काम कर रही थी। ब त ही तेज थी वह। साँवले रंग क उस ट चर क अभी कुछ दन पहले ही शाद ई थी। दन, ऐसे ही बीतते जा रहे थे। दोपहर बाद से घर म ब च का शोरगुल और पाट क मी टग चलती रहती थी। ब चे तो आ खर ब चे ही थे। पढ़ाई के साथ शोर मचाना भी उनका पैदायशी धम था। पाट के कायक ा आते-जाते रहते थे। चुनावी पो टर वगैरह और लाउड पीकर आ द ज री सामान सभी कुछ कायालय म बनी अलमा रय म रखा आ था। इसी कमरे म, कल या- या करना है? कहाँ कसको जाना है? कहाँ कसको पो टर लगाने ह और कहाँ-कहाँ बैनर टाँगने ह, सभी काम का फैसला कया जाता था। जैस-े जैसे इले शन का दन नजद क आता जा रहा था, घर के आँगन म गहमागहमी बढ़ती जा रही थी। कई जाने-अंजाने चेहरे दखाई दे ने लगे थे। ऐसे म मु लम समाज के एक युवक सुहैल खान का भी घर म आना-जाना होने लगा था। अब फाइनल ए जाम हो चुके थे। सो नया ने अपने घर म छोटे ब च को पढ़ाना शु कर दया। सो नया के पास घर म कुछ काम न था इसी लए उसने पूरी लगन और समपण से पढ़ाना शु कर दया था जसका प रणाम भी दखने लगा था। ब च क सं या बढ़ती जा रही थी। इस मेहनत से लोग का व ास नेता जी पर बढ़ने लगा और लोग उनक दल से इ जत करने लगे। पाट का और पढ़ाने का कमरा दोन साथ-साथ थे। इसी लए कभी-कभी सुहैल और सो नया क नजर मल जाती थ । गोरा रंग, ऊँचा कद और चेहरे पर एक महीने पुरानी दाढ़ -मूँछ और आँख पर चढ़ा च मा, यही सुहैल क पहचान थी। कोई-न-कोई हमेशा ही पाट वाले कमरे म रहता था और ऊपर से अजीत क

पटाई क घटना। सुहैल ने सो नया से कभी भी बात करने क को शश नह क और सो नया ने ऐसा कभी सोचा भी नह था। मई 2013, उ म दे श कई दन से ए जा स क छु ट् टयाँ चल रही थ । 12व के बोड के ए जाम ख म हो चुके थे। 11व के दो वषय के ए जाम होने शेष थे। इन ए जाम के बाद ही चुनाव होना तय आ था। रोशनी काफ दे र से हाथ म कॉपी- कताब लए बैठ थी। उसका मन पढ़ाई म नह था। कई दन से अंकुर को नह दे खा था। कशोर मन अपनी ही धुन म रहता है। “सुना है। सोनू ब टया ने अब बड़ी लास के ब च को पढ़ाना शु कर दया है।” रोशनी क माँ र जो ने ह रया से कहा। “हाँ। बात ठ क है। कुछ बड़े ब चे भी आने लगे ह।” जवाब मला। पढ़ाई म रोशनी का यान नह है—ये बात उसक माँ से छु पी नह थी। वह बोली, “सु नए।” “बोलो।” “रोशनी के दो पेपर होने ह। य न, रोशनी को भी उधर ही पढ़ने के लए भेज द।” “दे खते ह…।” “इसम दे खना या है। आप तो उधर रहते ही ह। कसी बात क कोई चता क बात है ही नह , ऊपर से अब नेता जी भी तो गाँव-गाँव घूम कर पढ़ाई- लखाई क बात करते ह।” “ठ क है। दे खता ँ।” ये सारी बात कमरे म दा खल होती ई नेहा ने सुनी। वह सीधी रोशनी के पास प ँच गई। नेहा बोली। “तो, तु हारा या वचार है?” “कैसा वचार।” रोशनी को नीचे क बात क जानकारी नह थी। “तु हारे नेता जी के घर जाने का…” “ य ? कस लए?” “तु हारे पढ़ने के लए, नीचे ताई जी यही बात कर रही ह। तु ह वहाँ जा कर पढ़ने म कोई द कत तो नह है?” नेहा ने पूछा। नेहा गौर से रोशनी के चेहरे को दे ख रही थी। नेता जी के घर म ब च को पढ़ाने का काम चल रहा है ये बात सभी जानते थे। रोशनी को भी ये बात मालूम थी। ये बात सुनकर वह ब त खुश ई। पढ़ाई क खुशी से यादा, अंकुर को दे खने क खुशी थी। नेहा छोट थी मगर यादा समझदार थी। वह रोशनी के मन के वचार को ताड़ गई। “तो, इम वहाँ जाओगी?” नेहा ने पूछा। “हाँ-हाँ जाऊँगी। म य नह जाऊँगी।” “म खूब समझती ।ँ तुम वहाँ य जाओगी?”

दया।

“ य ?” हैरान होने का नाटक करते ए रोशनी ने पूछा। “ये तुम जानो।” “म या जानू? ँ म तो वहाँ पढ़ाई करने ही जाऊँगी।” सीधा-सादा जवाब रोशनी ने

अगले दन, दोपहर तीन बजे। रोशनी और सो नया क पहली मुलाकात ई। सो नया ने अपनी 11व क कताब नकाल और रोशनी को पढ़ाने लगी। पढ़ाई म दोन ही हो शयार थ । यादा कुछ पूछने और बताने क ज रत न थी। रोशनी का यान आते-जाते व , साथ वाले कमरे म ताका-झाँक करने म यादा रहता था। तीन दन बीत चुके थे। इस बीच रोशनी का एक ए जाम हो चुका था। ए जाम को लेकर ही सो नया और रोशनी बात कर रहे थे। एकाएक हॉन क आवाज सुनी। सो नया ने आवाज को नजरअंदाज कर दया। मगर रोशनी को तो इसी का इंतजार था। ये ‘हॉन’ बोलेरो का था। वह उठकर बाहर दे खना चाहती थी। मगर कैसे उठे ? यही सोच रही थी। तभी कमरे के दरवाजे पर, कोई आया। दोन क नजर दरवाजे क ओर घूम । ये अंकुर था। अंकुर के साथ म मु ा और कुछ पीछे , सुहैल खड़ा था। “कैसी पढ़ाई चल रही है तु हारी?” अंकुर ने सो नया से पूछा। “अ छ चल रही है भैया जी।” ये पहली बार था जब अंकुर ने इस कमरे म आ कर पढ़ाई के बारे म बात क थी। “कोई द कत हो तो बताना। चता मत करना।” सो नया क ओर दे खते ए उसक नजर रोशनी से जा कर मल , “ठ क है न।” “जी, भैया जी।” सो नया ने जवाब दया। जब क रोशनी को लगा क ‘ठ क है न’ श द अंकुर ने रोशनी को कहे ह। अंकुर कमरे से बाहर नकल गया। कमरे के बाहर मु ा और अंकुर के हँसने क आवाज सुनाई दे रही थ ।

26

सुहैल, इसी गाँव का एक नौजवान था। अभी द ली से आया था। यतीम था बेचारा, बचपन से ही चचा ही उसक दे खभाल कर रहे थे। सुहैल अपने चचा क ब त इ जत करता था और उनक हर बात मानता था। चचा भी सुहैल को अपनी औलाद से कम नह समझते थे। चचा के दो बेटे थे। दोन ही अभी सरकारी कूल म पढ़ रहे थे। एक पाँचवी म और सरा चौथी म। ये दोन ब चे भी सो नया से पढ़ने आया करते थे। यूँ तो सुहैल को जीने के लए ज री चीज क कमी न थी मगर जब पढ़ने के लए वह द ली गया तो—पैसे क ज रत पड़ी। “कुल मला कर कतना खचा होगा?” चचा ने सुहैल से पूछा, “… और कब तक पैसा दे ना होगा। सारी जानकारी पता करके बताओ।” सुहैल अपने आस-पास के उन गने-चुने युवक म से था जो पढ़ने के लए द ली गए थे। सुहैल ने सारी जानकारी पहले ही एक पेज पर लखी ई थी। वो पेज चचा क ओर बढ़ाते ए, सुहैल बोला, “कुल मला कर मोटा-मोटा पचास हजार का खचा होगा, जसम कॉलेज क फ स के अलावा हॉ टल का खचा भी मने जोड़ दया है।” पचास हजार कोई इतनी बड़ी रकम न थी, मगर ये रकम इतनी भी कम नह थी क आसानी से इंतजाम हो पाता। हाथ म पकड़े ए पेज को दे ख कर, चचा के माथे पर चता के बादल दखाई दे ने लगे। “कोई नह । तुम जाने क तैयारी करो म कुछ बंदोब त करता ँ।” कह कर चचा ने कागज कुत क ऊपर वाली जेब म रख लया और तेज कदम से बाहर नकल गए।

“ये सुहैल है।” चचा ने टे बल के सरी तरफ बैठे ए बुजुग से कहा। “मने बात क थी ना। मेरे लड़के जैसा है। पढ़ने के लए द ली जा रहा है।” “क हए। हम या मदद कर सकते ह? इस नौजवान के लए।” बुजुग ने पान चबाते ए कहा। ये 60 से ऊपर का था। सर पर टोपी, चेहरे पर लंबी काली-सफेद सलीके से म क गई दाढ़ और होठ के ऊपर से मूँछ गायब थी। “रा शद भाई। कुछ पैसे क द कत है बस, बाक सारी तैयारी हो गई है।” चचा बोले। “ कतनी रकम क द कत है?” “पचास हजार।” “पचास हजार!” “जी।” “मुझे कमेट के मे बरान से बात करनी होगी। तुम चता मत करो। पर…” बोलतेबोलते रा शद क गया। “पर!…पर या सर जी?” सुहैल ने पूछा, आवाज म चता और मायूसी थी। “खैर छोड़ो। तुम तैयारी करो।” कहते ए रा शद ने चचा क ओर दे खा। एक णक मु कान दोन के चेहरे पर उभर आई जसका सही मतलब सुहैल समझ न पाया। सुहैल और चचा दोन रा शद का शु या अदा करके वहाँ से नकल गए। आज नह कल, कल नह परस , करते-करते पूरे दो स ताह गुजर गए। मगर रकम का इंतजाम न हो पाया। एक दन, कमेट के ऑ फस म काफ चहल-पहल थी। कई नए चेहरे भी थे। म खन क तरह गोरा रंग, ऊँचे कद वाले कई लोग आपस म गु तगू कर रहे थे। कमरे के बाहर से, चचा और सुहैल पारदश शीशे से सारी कायवाही दे ख रहे थे। लगभग आधे घंटे बाद दोन को अंदर बुलाया। औपचा रक बातचीत के बाद, एक ने सुहैल क ओर दे खा, “तुम अभी बाहर ही बैठो।” “जी।” कह कर सुहैल बाहर चला गया। फर लगभग पाँच मनट बंद कमरे म चचा से या बात ई, ये सफ चचा को ही मालूम था। सुहैल ने इस ओर यान नह दया। कमरे से बाहर आकर, चचा ने पाँच सौ के नोट क एक गड् डी सुहैल के हाथ म थमा द । “शु या। चचा जी।” सुहैल बोला। “इसम शु या कैसा? वो हमारे काम आए, हम उनके काम आए। यही तो द तूर है— जदगी का।” कुछ दाश नक अंदाज म चचा ने कहा। ‘हम कैसे काम आएँगे।’ ये सुहैल के दमाग म घूम रहा था। मगर गड् डी मलने क खुशी म ये सवाल कह गायब-सा होता गया। …एक साल कैसे बीत गया, पता ही नह चला। इसी बीच सुहैल दो बार अपने गाँव आया। गाँव म उसका ब त नाम हो चुका था। जब कभी भी चचा को मौका मलता, वे सुहैल को अपने साथ कौमी मज लस म ले जाते जहाँ समाज क हफाजत और तर क के बारे म चचाएँ आ करती थ । इ ह

मज लस म सुहैल क जान-पहचान कई लोग से ई। ‘वे’ लोग सुहैल को अपने कसी खास मकसद को यान म रख कर उससे बात कया करते थे। सुहैल को ‘उनक ’ बात म जरा भी च नह थी मगर वे सभी चचा जी के खास थे, इस लए सुहैल उन सबक बात सुनता रहा और हाँ-म-हाँ मलाता रहा। मगर, कब तक? आ खर कब तक सुहैल इन सबसे बचता। सुहैल के दमाग के कसी कोने म अब इन बात ने अपनी जगह बनानी शु कर द थी। सुहैल कॉलेज के सरे साल तक इन बात से बुरी तरह भा वत आ। वह एक दोराहे पर खड़ा था जहाँ से एक रा ता ‘उनके’ मकसद को पूरा करने क ओर जाता था और सरा अमन पसंद, आम जदगी क ओर। …स दयाँ थ , सुहैल अपने गाँव म था। चुनावी माहौल था। हर पाट अपने-अपने या शय के सपोट म लगी थी। इस इलाके का वोट बक तीन टु कड़ म बँटा आ था। एक टु कड़ा ऊँचे तबके के वोट का था, सरा मु लम वोट का और तीसरा पछड़े वग का था। तीन ही वोट-बक मह वपूण थे। कसी एक को भी नजरअंदाज करने का मतलब —हार था। इ ह चुनावी सभा म एक सभा म सुहैल का नाम, उसके चचा ने सुझाया था— अपनी कौम क , तालीम, हफाजत और इ हाद (एकता) के लए!

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आ खर वह दन भी आ ही गया, जब अंकुर, सुहैल और बलवीर सह क मेहनत का नतीजा आया। इसी नतीजे पर मलखान सह क क मत का फैसला होना था। अपनी तरफ से कोई भी, कोई कसर नह छोड़ता—मलखान सह ने भी नह छोड़ी थी। अब फैसला जनता के हाथ म था। इन चुनावी चार क सभा म कई वायदे कए गए थे। कई बात पर अमल भी करना शु कर दया गया था, जैसे—ब च को पढ़ाना और मु लम से भाईचारा बढ़ाना। ढोल और बम-पटाख क आवाज यादा तेज थी या ‘मलखान सह जदाबाद’ के नार क आवाज—कहना मु कल था। मलखान सह क जीत ई थी। हरेक के लए इस जीत का अलग मतलब था। ताकत का नशा सबसे खतरनाक होता है—ये नशा इस व अंकुर और बलवीर सह के सर पर चढ़ चुका था। गले म पीले फूल क मालाएँ पहनाई जा रही थ । मलखान सह को लोग ने कंध पर उठाया आ था, जब मलखान सह घर प ँचा तो सो नया खुश थी, सो नया क माँ र जो भी। हर तरफ खु शयाँ-ही-खु शयाँ थ । घर पर र जो फूल का हार हाथ म लए खड़ी थी। “मुबारक हो सो नया के पापा।” र जो ने ये बोलते ए माला मलखान सह के गले म डाल द । मलखान सह ने घर वेश के लए कदम उठाया। “जी, बस एक मनट और।” अपने हाथ क तजनी अँगुली दखाते ए वह बोली। “अब या ताई?” मु ा ने मु कुराते ए बोला। ह रया ने आरती क थाली र जो क ओर बढ़ा द ।

“तुम भी!” हँसते ए मलखान सह बोला। वागत के लए आरती-पूजा करने के बाद, हॉल म सभी बैठे ए आगे क योजना बना रहे थे। तभी मु ा बोला, “ताऊ जी, बाहर लोग इंतजार कर रहे ह। या करना है?” मलखान सह ने बलवीर क ओर दे खा और गदन एक खास अंदाज म हलाते ए इशारा कया। “ये लो।” इशारे के जवाब म बलवीर सह ने चा बय का गु छा मु ा क ओर बढ़ा दया। “ले कन यान से, कोई दं गा-फसाद नह होना चा हए। और, कोई मुझे ये न कहे क मुझे नह मली।” बलवीर ने स त हदायत द । बलवीर का इशारा दा क तरफ था। अंकुर और मु ा क तो नकल पड़ी। चाभी लेकर वे दोन पाट के कमरे म प ँचे। बाहर आँगन म भीड़ जमा थी। अंकुर को दे खते ही भीड़ ने फर से जदाबाद के नारे लगाने शु कर दए। मु ा ने दोन हाथ उठा कर लोग को शांत रहने का इशारा कया। कमरे म चुनावी चार के दौरान बची ई बीयर और दे शी शराब क कई पे टयाँ थ । एक-एक करके पसंदानुसार सभी को बीयर और शराब बाँट जा रही थी। ‘सभी को मलेगी। ब त पे टयाँ ह। स रखो।’ बीच-बीच म मु ा ये भी बोलता जा रहा था। घर के आँगन म चुनाव चार के लए जो दो कमरे बनाए गए थे। एक पाट का कमरा था जसम ये सब चल रहा था। सरे म पढ़ाई- लखाई क जाती थी। दोन कमरे म सफ एक ट क द वार का अंतर था, मगर अंतर ब त यादा था! छत पर खड़ी ई सो नया सब कुछ दे ख रही थी क कैसे पे टयाँ सावधानी से उठाई जा रही ह और उससे भी यादा सावधानी से उसम रखी शराब और बीयर बाँट जा रही है। सो नया के मन म इस जीत को ले कर भी शंकाएँ थ । ‘इस जीत क वजह से शराब और बीयर क पे टयाँ ह या चुनाव चार के दौरान दखाए गए वाब! इस जीत से मुझे या फायदा—म तो इधर ही बस ब च को पढ़ाती र ँगी। और…’ सोचते ए सो नया के मन म एक उठा, ‘ या अब भी घर म ब च को पढ़ाना जारी रहेगा। जीत तो मल चुक है तो अब ‘इ ह’ सब दखावट च चले क या ज रत है।’ एक तेज आवाज ने सो नया क सोच क गाड़ी पर अचानक से ेक लगा द । नीचे काफ शोर-शराबा हो रहा था। कसी को चोट लग गई थी। ठं ड काफ हो गई थी, सो नया नीचे हॉल म आई। “ कसे चोट लगी है?” मलखान सह ने पूछा। “ सरे गाँव के कुछ नौजवान आपको जीत क बधाई दे ने आए थे। मगर भीड़ के चलते अंदर नह आ पा रहे थे। इसी को ले कर ध का-मु क म एक युवक पैर के तले र दा गया।” ह रया ने सारी बात बताई। “कौन से गाँव का था लड़का?” बलवीर सह ने पूछा।

“सलामत गंज का।” “ओह!” बोल कर मलखान सह उठ खड़ा आ। साथ म बलवीर भी था। र जो कचन म थी और सो नया सी ढ़य पर। “शांत हो जाइए।” मलखान सह ने भीड़ से अनुरोध कया। भीड़ धीरे-धीरे शांत होने लगी। एक बुजुग आदमी ने बलवीर सह को इशारे से अपने पास बुलाया। बुजुग आदमी भीड़ म से ही एक था। “ या आ?” बलवीर सह ने पूछा। मलखान सह अपने घर के ार से सब कुछ दे ख रहा था। “हमारे एक लड़के को चोट लग गई है। कह बखेड़ा न हो जाए। आप तो जानते ही ह। जरा-सी हवा मली नह क… चगारी को आग बनते दे र नह लगेगी।” “हम दे खते ह। कल अपने गाँव म जीत का शु या अदा करने के लए एक मी टग का इंतजाम करवाओ।” “जी। बेहतर।” “और सुनो।” “जी, क हए।” “इस चोट वाली बात को लेकर कसी तरह क कोई अफवाह या खबर न फैले।” “आप बे फ रह।” कह कर बुजुग आदमी भीड़ म से एक तरफ होता नकल गया। उधर ठं ड बढ़ , साथ-साथ भीड़ भी कम होती चली गई। मगर ये न पता लगा क चोट कसे लगी है। वह युवक मंच पर माइक संभाले ए था। ये वही था— जसे कल चोट लग गई थी। समय रहते सारी बात संभाल ली गई। पूरे सलामतगंज म बरयानी बाँट गई और नौजवान से गत प से जा कर मुलाकात क गई। एक-एक करके सभी नवयुवक का प रचय कराया गया। इस पूरे काय म लगभग दो घंटे का समय लगा। जब मलखान सह और उसके पाट के लोग सलामत गंज से जाने लगे, तब उस बुजुग ने सुहैल का नेता जी से प रचय कराया। “ये है, सुहैल। ब त ही होनहार है। इसने पाट क ब त मदद क —चुनाव चार म।” “यह का है? पहले कभी दे खा नह !” मलखान सह ने पूछा। “जी यह का है। अंकुर भैया जी और बलवीर सह से मुलाकात हो चुक है। उ ह ने ही इसे नौजवान म पढ़ाई- लखाई क जाग कता फैलाने क बागडोर स पी थी…” “ ँ।” गाड़ी थोड़ी री पर थी। चलते-चलते मलखान सह ‘हाँ- ँ’ करके बात कर रहा था। वह अब नेता जो बन चुका था। “… जसे इसने बखूबी नभाया और नेता जी मेहनत का नतीजा आपके सामने है ही।” बुजुग का इशारा मलखान सह क जीत क ओर था।

मलखान सह क जीत म मुसलमान के वोट का भी बड़ा योगदान था, जसका सारा ेय सुहैल को मला। ये बात जानने के प ात्, गाड़ी म बैठने से पहले मलखान सह ने सुहैल को गले लगाया और कहा, “कभी भी कसी भी चीज क ज रत हो या कोई परेशानी हो हम बताना।” “जी।” “शमाना मत। तुम भी हमारे अपने ही हो।” इस वा य म—‘अपने ही हो’—इन श द का मतलब था क मलखान सह सुहैल को अपना नह समझता था। इस बात का उ र उन बुजुग चचा ने दया। “नेता जी, ये तो द ली म पढ़ाई के लए गया आ था। अभी कुछ दन पहले ही आया था।” फर मु कुराते ए बोला, “शायद पाट के लए काम करना इसक क मत म था।” “ ँ।” जब भी द ली से इधर आओ, हम से मलने ज र आना।” “जी। नेता जी।” हाथ हलाते ए ‘बाय’ करते ए गाड़ी का शीशा ऊपर हो गया और गाड़ी क चे रा ते पर धूल उड़ाती ई चली गई। इस मलखान सह और सुहैल क बात का इलाक म ब त फक पड़ा। सुहैल तो पहले से ब त मश र था—इस घटना के बाद से तो वह सभी नौजवान, बुजुग और औरत का लाडला बन गया। यतीम को इतना यार कहाँ मल पाता है। सुहैल यतीम था —इसी बात को लेकर अ धकतर लोग उससे भावना मक प से भी जुड़ गए थे। कुछ दन बाद सुहैल अपनी पढ़ाई के लए फर से द ली चला गया।

28

तीन महीने बीत चुके थे। र जो और सो नया ब त खुश थे। सब कुछ सामा य से भी अ धक शांत था। अंकुर अपनी बोलेरो म पाट के काम के लए इधर-उधर घूमता रहता था और नेता जी पाट क मी टग म। कसी भी चीज क कोई परेशानी नह थी। ‘इतना सब कुछ सामा य कैसे है?’ ये सोच कर सो नया डर जाती थी। फर एक दन, सो नया को आँगन म पढ़ाने के लए भी मना कर दया। सो नया को घर से बाहर भी नकलने क इजाजत नह थी। पढ़ाने के लए, फर से उसी नव- ववा हता को बुला लया गया था। पढ़ाई के नाम पर सफ दो-चार ब चे ही आ रहे थे। जब से सो नया को पढ़ाने के लए मना कया गया तो तभी से ब च क सं या भी कम होती जा रही थी। …पर इधर, ब च क पढ़ाई क कसे चता थी! जीत के साथ ही इस कमरे का मह व ख म हो गया था और जो ट चर थी, उसका यान पढ़ाने म कम, अंकुर और मु ा क तरफ यादा रहता था। ब च के जाने के बाद भी वह ट चर साथ वाले कमरे म चली जाती या दोन पढ़ाई वाले कमरे म आ जाते। नव- ववा हता ट चर को भी कोई एतराज नह था! ताकत और पैसा—इंसान के पास हो तो वह या नह कर सकता! अ छे -सेअ छा काम या बुर-े से-बुरा अपराध—कुछ भी नामुम कन नह होता। पर…इंसानी फतरत अ सर अपराध के रा ते पर ही दौड़ती है। अंकुर और मु ा ने ताकत का इ तेमाल करना शु कर दया था। कभी कसी से लड़ाई, कभी कसी से बहस—आए दन यही सब होता रहता था—और मलखान सह

को पाट के काम से ही फुसत नह थी। बोलेरो पर पाट का झंडा लगाए दोन गाँव-गाँव घूमते रहते थे। शराब क पेट गाड़ी म हमेशा ही उपल ध रहती। दन-रात बस ‘रंगर लयाँ’ चल रही थ । इस व अंकुर के पास ताकत और पैसा दोन ही थे। बोलेरो फर से कूल के इदगद दखाई दे ने लगी थी। हालाँ क 12व का रज ट आना बाक था, मगर नए सेशन क पढ़ाई शु हो गई थी। रोशनी और नेहा ने कूल जाना शु कर दया था। नए सेशन म एक बार फर से नजर का मलना, मल कर झुकना और झुक कर फर उठना शु हो गया था। रोशनी को बेस ी से उस व का इंतजार रहता जब वह बोलेरो के सामने से गुजरती थी। रोशनी को इसी म मजा आने लगा था। ले कन नेहा को कसी अंजान खतरे का अंदेशा होने लगा था। कई बार नेहा ने रोशनी को आगाह कया था जसको रोशनी ने नजरअंदाज कर दया। एक दन कूल से घर लौटते समय जब बोलेरो नह दखी तो रोशनी क नजर क बेचैनी नेहा से छु पी न रह सक । रोशनी के कदम धीरे-धीरे उठ रहे थे, वह इस रा ते पर यादा दे र तक रहना चाहती थी, इस उ मीद म क बोलेरो क एक झलक मल जाए। “ या आ, तु ह! पैर म चोट लगी है या?” नेहा ने पूछा। “नह तो।” खोई-खोई-सी रोशनी बोली। “तो फर चलती य नह । रा ते पर ही शाम करनी है या?” थोड़ा झ लाती ई नेहा ने पूछा। “ये मने कब कहा?” अपने याल म खोई ई रोशनी का याल का सल सला थम गया। “कहा नह , पर…तु हारे इरादे तो यही लगते ह।” नेहा ने चुटक ली, “नह आने वाली, अगर आनी होती तो पहले ही आ जाती।” “ या नह आने वाली!” रोशनी ने पूछा। जब क वह जानती थी क नेहा ‘ कसके’ आने क बात कर रही है। “वही।” “वही!” “हाँ, बाबा। वही— जसका तुझे दन भर इंतजार रहता है। जसके च कर म रोज नए-नए हेयर टाइल करती है।” “वो तो म पहले से करती ँ। इसम नया या है?” रोशनी ने बात बनाते ए कहा। “नया है न, तु हारा बेचैन रहना। इस रा ते पर धीरे-धीरे चलना और…” “और। और या!” “और तु हारा सर। यादा बनो मत।” अब नेहा से रोशनी का यूँ अंजान बनना… सहन न आ, वह बोली। “मुझे सब पता है। तुम उस बोलेरो का इंतजार करती हो।” “बोलेरो का!” “अरे नह । बोलेरो का नह , उसम बैठे ए ‘भैया जी’ का।”

“भैया जी का!” “अरे नह । तुम थोड़ी न कहोगी भैया जी। तुम तो उसे ‘ स चा मग’ कहोगी।” नेहा और रोशनी के बीच अंकुर को लेकर एक झीना-सा पदा था। आज नेहा ने वह पदा भी तोड़ डाला। रोशनी कुछ न बोली। धीरे-धीरे बढ़ते ए वे दोन मोड़ तक आ प ँचे। दोन ही चुप थे। न कोई सवाल था, न कोई जवाब। रोशनी थोड़ी शमा गई थी और अब नेहा से बात करने म झझक रही थी। नेहा ने उसक ‘चोरी’ जो पकड़ ली थी। कुछ और कदम आगे बढ़ने पर, एक जीप दखाई द । ये बोलेरो नह थी, फर भी दोन के कदम एक पल को क गए। नेहा और रोशनी क नजर मल । दोन के चेहरे पर एक शरारती-सी मु कुराहट दौड़ गई। “दे ख, कसी को कुछ कहना मत।” रोशनी ने गुजा रश करते ए कहा। “नह तो!” नेहा फर से मजाक के मूड म थी। “नह तो…कुछ नह । दे खो नेहा, लीज कसी को कुछ मत कहना।” “एक शत पर…” रोशनी नेहा क शत वाली बात पर जरा भी गु सा नह ई। रोशनी तो कसी भी तरह बस ये बात छु पाना चाहती थी। रोशनी ने पूछा, “वो शत या है?” “ यादा कुछ नह , बस…” बोलते-बोलते नेहा क गई। ‘नेहा क या शत होगी’—ये सोचते ए च तत-सी रोशनी ने नेहा क ओर दे खा। “अरे, कुछ नह बाबा। बस मुझे सारी बात बताना, कुछ भी मत छपाना। कम-सेकम मुझसे तो नह ।” नेहा मु कुराते ए बोली। “नह छु पाऊँगी।” खुशी से चहकती ई रोशनी बोली। चता के बादल छट चुके थे। ‘नह छु पाऊँगी’—रोशनी क इस बात को नेहा ने पकड़ लया। वह बोली, “अ छा तो ये बता…” “ या?” “तुम जब पढ़ने के लए उधर ‘भैया जी’ के घर जा रही थी तब या- या आ?” “अरे, तब कुछ भी तो नह आ। वहाँ तो हम सो नया द द से पढ़ने के लए जाते थे। हाँ, एक बात है…” “ या?” “सो नया द द ब त हो शयार ह। उ ह सब कुछ आता है, सब दमाग म कं यूटर क तरह फट है, ले कन…” “ले कन या?” “सो नया द द खुश नह लगती थी। उनके चेहरे पर खुशी क जगह चता दखाई दे ती थी। शायद उ ह कोई परेशानी होगी।” रोशनी ने अपना नज रया बताया। “तुमने कभी पूछा नह ?” “नह , कभी इतनी बात ही नह ई। मगर एक बात पर मने गौर कया।” “वह या?”

“वे मतलब, सो नया द द , अपने पापा से और अपने भाई से ब त डरती ह।” “ य ?” “ये तो पता नह ।” “ ँ।” नेहा के ँ कहने के साथ ही दोन घर प ँच चुके थे। दोन मु कुराते ए, अपने-अपने घर चले गए। मई 2013, उ म दे श मलना तो अंकुर भी चाहता था, तभी तो वह रोशनी का इंतजार कया करता था। अभी तक अंकुर ने कोई बात नह क थी। दोन म से कोई भी पहल नह करना चाहता था। रोशनी तो लड़क थी, इसी लए अब जो कुछ करना था वह अंकुर को ही करना था। बोलेरो आज समय से पहले आ गई थी। मौसम बदल चुका था। स दय क ठं ड क जगह अब मौसम म गमाहट महसूस होने लगी थी। 15 दन बाद कूल क छु ट् टयाँ होने वाली थ । अंकुर ने आज सोच रखा था क वह आज रोशनी से बात करेगा। अंकुर आज अकेला था। मु ा पाट के काम से सरे शहर गया आ था। आज पूरा मौका था। रा ते पर कोई भी नह था। पाँच मनट बाद सरकारी कूल क छु ट् ट हो गई। धीरे-धीरे सभी ब चे अपनेअपने घर क ओर बढ़ गए। रा ते पर कोई नह था— सवाए रोशनी और नेहा को छोड़ कर। रोशनी और नेहा धीरे-धीरे से बोलेरो के सामने से गुजरे। रोशनी और अंकुर क नजर मल । तभी नेहा ने रोशनी क बाँह को तेजी से दबा दया और मु कुराने लगी। ये हरकत अंकुर ने नोट क , वह भी मु कुराने लगा। इस पर रोशनी झप गई। वह तेज कदम से चलने लगी। पीछे -पीछे बोलेरो भी साथ चल रही थी। पेड़ के झुरमुट के पास मोड़ तक प ँचते-प ँचते रोशनी के तेज कदम फर से धीमे हो गए। नेहा ने मुड़ कर पीछे दे खा, “आ रहे ह, अंकुर ‘भैया जी’।” “तो म या क ँ ।” रोशनी ने जवाब दया। “कुछ नह करना है तो, चलो यहाँ से। खामा वाह अपना और उनका टाइम बबाद कर रही हो।” चढ़ते ए नेहा ने जवाब दया। इतने म बोलेरो ब कुल पास आ गई। हॉन बजा। रोशनी और नेहा ने बोलेरो म दे खा। अंकुर दोन को दे खते ए मु कुरा रहा था। “च लए हम छोड़ दे ते ह, आप दोन को।” अंकुर ने शु आत क । “नह -नह । हम खुद ही चले जाएँग।े थ स।” नेहा ने जवाब दया। “इसम शु या कैसा? हम भी वह जा रहे ह आपको उतार दगे। डर काहे का।” “हम डर कहाँ रहे ह।” नेहा ने जवाब दया। “तो बै ठए।” बोल कर अंकुर ने दरवाजा खोल दया। नेहा आगे क सीट पर बैठ गई। रोशनी अब भी नीचे ही खड़ी थी। “आप भी आइए न।” अंकुर ने कोमलता से कहा। अंकुर ने हाथ बढ़ा कर, पीछे वाला दरवाजा खोल दया। रोशनी बोलेरो म बैठ गई।

गाड़ी चलाने से पहले, अंकुर ने रयर ू मरर सेट कया। शीशे म रोशनी और अंकुर क नजर मल ग । बोलेरो धीरे-धीरे बढ़ती ई रोशनी और नेहा के घर के करीब प ँच गई। दोन को वह रा ते पर उतार कर अंकुर आगे बढ़ गया। नेहा और रोशनी दोन अपने-अपने घर क ओर बढ़ ग । रा ते से 100 मी. क री पर ही दोन के घर थे। “तुमने कुछ बात नह क ‘उनसे’!” नेहा ने शरारतपूण लहजे म पूछा। “वे भी तो नह बोले।” रोशनी ने जवाब दया। “ऐसे तो ब त टाइम लग जाएगा। तु हारी टोरी को बनने म।” नेहा ने फर शरारत क। “तो या कर।” रोशनी ने ख झते ए कहा। “हम लड़क ह, हम कैसे कह द अपनी दल क बात।” “लगता है मुझे कुछ करना पड़ेगा।” नेहा बोली। “सच म। तुझे ही कुछ करना पड़ेगा।” आशा भरी नगाह से रोशनी ने त या क।

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दो दन तक बस यही आ, दोन बोलेरो म बैठते और अंकुर उ ह घर के पास उतार कर आगे बढ़ जाता। तीसरे दन जब अंकुर ने दोन को छोड़ा। दोन मुड़ कर अपने घर जाने लगे। “सुनो।” अंकुर ने पुकारा। रोशनी पीछे मुड़ी। नेहा जान-बूझ कर नह मुड़ी, वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही। रोशनी को दे खते ए अंकुर बोला, “रोशनी हम तुमसे बात करना चाहते ह।” “बात ही तो कर रहे हो।” रोशनी ने दो टू क जवाब दया। “नह । हम तुमसे…अपने और तु हारे बारे म बात करना चाहते ह।” भोलापन लए ए, अंकुर मु कुराते ए बोला। “तो क जए न, हमने कब मना कया।” रोशनी बोली। “वैसे या बात करना चाहते ह आप—हमारे और अपने बारे म।” “तुम मुझे ब त अ छ लगती हो।” “…” खामोशी। “हम तुमसे यार करने लगे ह। या तुम भी हमसे यार करती हो?” “…” फर खामोशी। “चुप य हो? बताओ न।” रोशनी कुछ न बोली। वह मुड़ी और तेज कदम से नेहा क ओर बढ़ने लगी, जो

अब तक 10-15 कदम आगे प ँच चुक थी। मुड़ते व रोशनी के चेहरे पर खुशी के भाव थे जसे वह छु पाना चाह रही थी। “सुनो।” अंकुर ने फर पुकारा। रोशनी क गई मगर मुड़ी नह । उसका चेहरा यार क बात सुन कर ही लाज के मारे गुलाबी हो गया था। “ यार न सही। हम-तुम दो त तो हो सकते ह न।” “ ँ।” कहते ए रोशनी ने दे खा क अंकुर के हाथ म एक गुलाबी रंग का पैकेट है। अंकुर वह पैकेट रोशनी क ओर बढ़ाते ए बोला “हमारी दो ती के लए। ये ग ट वीकार कर लो।” रोशनी कुछ न बोली। वह असमंजस म थी। “ लीज।” बोलते ए अंकुर ने वह पैकेट जबरद ती रोशनी के हाथ म थमा दया और ‘सी यू’ बोल कर वापस बोलेरो म बैठ गया। बोलेरो तेजी से धूल का बादल उड़ाते ए आगे बढ़ गई। हाथ म लए ए ग ट को रोशनी ने बैग म रख लया। वह मुड़ी और नेहा के साथ घर क ओर जाने लगी, इस बात से अंजान क ग ट दे ते ए अंकुर को नेहा ने दे ख लया है। घर प ँचने पर दल म उ सुकता बनी रही—आ खर या दया है अंकुर ने। या होगा इस गुलाबी पैकेट म! स ह साल का कशोर मन फर से उड़ान भरने लगा। रोशनी तुरंत ही पैकेट खोल कर दे खना चाहती थी मगर मौका ही नह मला। पहले लंच फर घर का काम। फर नेहा का आना और पढ़ना- लखना। इसके बाद शाम को घर के काम-काज—रोशनी को व ही नह मला जब क रोशनी के मनम त क से एक ण को भी वह गुलाबी पैकेट गायब नह आ था। रात को सोने से पहले, रोशनी ने अलमारी खोली। इसी अलमारी म बीच के खाने म कपड़ के पीछे बड़ी ही सफाई से सबक नजर से बचाकर वह गुलाबी पैकेट छपा दया था। पैकेट खोलने के साथ-साथ उसके दल क धड़कन बढ़ती ग । एक गुलाब का लाल फूल, एक चॉकलेट, और एक चाँद का ैसलेट। रोशनी ने गुलाब का फूल एक कताब म छु पा दया और चाँद का ैसलेट पहन लया। शीशे के सामने खड़े हो कर वह अपनी कलाई म पहने ए ैसलेट को नहारती रही। शाम का समय था। अंकुर ब त खुश था, वह रोशनी से मल कर जो आ रहा था, गुनगुनाता आ, हॉल म दा खल आ। हॉल म मलखान सह, बलवीर और र जो कसी टशन म डू बे ए से

बैठे थे। सो नया ऊपर वाले कमरे म थी। सभी क नजर अंकुर क ओर मुड़ । अंकुर समझ गया क कुछ-न-कुछ तो गड़बड़ है। “भैया जी से भी पूछ ली जए, एक बार।” बलवीर सह बोला। मलखान सह और र जो ने अंकुर क ओर आशापूण नगाह से दे खा। “बात या है?” अंकुर ने माहौल को भाँप कर पूछा। “बात कुछ नह है। सोनू ब टया आगे पढ़ना चाहती है।” मलखान ने जवाब दया। “तो इसम ॉ लम या है?” अंकुर ने कया। “सोनू यहाँ यू.पी. म नह द ली म पढ़ना चाहती है।” र जो बोली। “ य ? यहाँ पर पढ़ाई नह होती या—ऐसी कौन पढ़ाई करना चाहती है सोनू।” सभी क ओर दे खते ए अंकुर ने पूछा। “वो पता नह । मगर वह ज पर अड़ी है। सुबह से कुछ नह खाया-पीया। कुछ समझ म नह आता।” मलखान माथे पर हाथ रखे-रखे बोला। “हम बात करते ह।” तेज आवाज म बोलते ए अंकुर क नजर बलवीर सह से मल । बलवीर ने हाथ से शांत रहने का इशारा कया। पछले तीन-चार महीन म अंकुर समझ चुका था क कब और कहाँ पर कैसा वहार करना है। मलखान सह बोला, “तुम रहने दो।” अंकुर शांत रहा। र जो बोली, “इसम द कत या है? हमारी तो कुछ समझ नह आ रहा है, अगर वह पढ़ने के लए द ली जाना चाहती है तो…” “तुझे कुछ नह पता, द ली म या- या होता है कूल-कॉलेज म।” अंकुर बोला। “जो भी होता हो, मुझे अपनी सोनू पर पूरा भरोसा है।” र जो उसी ओर मलखान के पास जा कर बैठ । बड़ी ही आ मीयता से बोली, “एक ही तो ब टया है, अगर पढ़े गी नह तो या करेगी।” “हम उसक शाद करवा दगे।” मलखान सह बोला। “अभी तो ब ची है!” बलवीर सह अभी तक चुप था, बोल पड़ा। “तो या कर। कुछ समझ नह आता।” मलखान सह बोला। “नेता जी।” बलवीर बोला, “एक मनट।” दोन उठ कर पीछे वाले कमरे म चले गए। “नेता जी। सोनू ब टया को पढ़ने के लए द ली भेजना ही ठ क रहेगा।” “तुम ये या कह रहे हो? द ली अंजान शहर, एक बदला आ माहौल…” “वो सब आप मुझ पर छोड़ द जए। ले कन अगर सोनू ब टया को नह भेजा गया तो इसका आपक राजनै तक छ व पर उ टा असर पड़ेगा। लोग आपको नारी वरोधी कहगे और फर वप ी पा टय को मु ा मल जाएगा।” “ फर!” मलखान सह ने पूछा। “ फर, सोनू ब टया को भेजने क तैयारी क जए ले कन पूरी स ती दखाते

ए।”

अब मलखान सह के चेहरे पर खुशी दखाई द । “हाँ, वैसे भी हमने दो-एक जगह बात कर रखी है, ब टया के लए। जब तक वह पढ़े गी तब तक कुछ-न-कुछ फैसला भी हो जाएगा।” “जी ब कुल।” बाहर आकर दोन ने कसी के सामने कोई ज नह कया और सोनू को द ली भेजने क बात पर मलखान सह बोला, “दे खते ह।”

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ग ट दे ने का सल सला का नह , बढ़ता ही गया। कभी ी टग काड, कभी चू ड़याँ, कभी कोई महँगा पेन हर ग ट पहले वाले ग ट से यादा खूबसूरत और क मती होता गया। रोशनी सभी उपहार को अपनी कताब क अलमारी म छपा कर रखती गई—प रवार वाल क नजर से बचा कर। हर ग ट के साथ रोशनी अंकुर क ओर ख चती चली गई। उसे दन-रात अंकुर का चेहरा ही दखाई दे ने लगा। वभाव म प रवतन आ गया। रोशनी अब यादा न बोलती थी। हर समय दपण म अपने आप को नहारती रहती थी। नेहा से जब रहा नह गया तो एक दन उसने पूछ ही लया। “ या आ है तु ह?” “कुछ भी तो नह ।” शीशे के सामने खड़ी रोशनी ने जवाब दया। “तो फर…खोई-खोई-सी, गुम-सुम-सी य रहने लगी हो।” “कौन? म!” “हाँ-हाँ। तुम ही। और तो कोई नह है न यहाँ पर। तुमसे ही बात कर रही ँ।” “कुछ नह आ, मुझे तो।” रोशनी नेहा क ओर मु कुराती ई बोली। रोशनी दपण म अपने बाल को सँवार रही थी। ह का गुलाबी रंग का चु त फ टग का सूट था और चूड़ीदार पजामी पहनी ई थी। बाल खुल कर कंध पर झूल रहे थे। सूट क बाँह रोशनी ने कोहनी तक ख ची ई थी। “तो ये या है?” ैसलेट क ओर इशारा करते ए नेहा ने पूछा, “ कसने दया ये?” “ कसी ने नह दया।” अब रोशनी थोड़ी परेशान ई।

“तो फर कहाँ से आया?” नेहा ने जोर दे कर पूछा। रोशनी चुप थी। “उसने दया है न।” नेहा का इशारा अंकुर क तरफ था जसे रोशनी ताड़ गई थी। रोशनी ने नेहा को हाथ पकड़ कर पलंग पर बैठाया और झट से कमरे का दरवाजा बंद कर दया। “दे ख…तू तो सब जान ही चुक है, कसी को बताना मत।” नेहा ने अचरज से रोशनी क ओर दे खा। रोशनी बोलती गई, “हाँ, ये मुझे अंकुर ने ही दया है और माँ के पूछने पर मने कह दया है क मुझे तुमने दया है।” आवाज म एक गुजा रश थी, राज को छपाए रखने क । अब राज खुल चुका था। रोशनी ये वीकार कर चुक थी क उसका और अंकुर का ‘कुछ’ चल रहा है। नेहा को लगा क अब पदा रखने क कोई ज रत नह है। वह बोली, “तुम या बताओगी, ये तो म ब त पहले से जानती ँ।” “ ँ।” अब च कत होने क बारी रोशनी क थी। “म तो तब से जानती ँ जब से तुम भी नह जानती थी। अरे, सब कुछ मेरे सामने तो चल रहा था। इतनी भी नासमझ नह म। मुझे सब कुछ पता है।” नेहा मु कुराते ए बोलती जा रही थी। रोशनी ने नेहा को गले से लगाया। नेहा रोशनी क हमराज जो थी। रोशनी ने मजे लेते ए पूछा, “तो बता फर या- या पता है?” नेहा ने कहना शु कया, “जब अंकुर जी सो नया द द को लेने के लए आते थे और बोलेरो म बैठ कर इंतजार करते थे…” “तो!” “तब वे तु हारा भी इंतजार करते थे और तु हारे कदम न चाहते ए भी वह क जाते थे। और…” “और…!” “और तेरे चेहरे का रंग गुलाबी हो जाता था।” दोन दे र तक बात करते रहे। नेहा ने रोशनी को सारी बात बता द । वो बेचैन रहना, धीरे-धीरे कदम का बढ़ाना और ग ट का दे ना और लेना। खुशी क बा रश उस व कमरे म हो रही थी। दोन मु कुरा रही थ । खुशी-खुशी म रोशनी ने अंकुर के दए ए सारे ग ट, काड, उपहार और क मती पैन सभी कुछ नेहा के सामने रख दए। अब दोन बहन के बीच कोई पदा नह था। व यादा हो चला था। अब नेहा पलंग से उठ और दरवाजे क ओर बढ़ । अचानक नेहा वापस रोशनी के पास आई, नेहा के चेहरे पर गंभीरता थी। “अब तक तो सब कुछ ठ क चल रहा है। ले कन आगे या होगा? ये मलनाजुलना आ खर कब तक चलेगा। वह इतना अमीर और ऊँची बरादरी का है।” नेहा क बात सुनकर रोशनी के चेहरे पर भी गंभीरता छा गई। “हाँ। म भी यही सोच रही थी। मगर उ ह ने वायदा कया है क वे अपने पताजी से बात करगे।” आँख म व ास लए रोशनी ने नेहा क आँख म दे खा। नेहा को ‘उ ह ने’ श द पर यादा आ य आ, मगर बड़ी ही सावधानी से अपने

चेहरे के भाव छपा गई। “भगवान सब ठ क ही करगे।” नेहा ने कहा, “मगर न जाने य मुझे अब डर-सा लगने लगा है।” “मुझे भी अब डर लगने लगा है।” रोशनी ने भी नेहा क हाँ-म-हाँ मलाई। रोशनी के डर क शायद कुछ और वजह थी, जसे सफ रोशनी ही जानती थी। खैर, नेहा वहाँ से चली गई। रात भर नेहा ‘उ ह ने’ श द के बारे म सोचती रही। नेहा के मन म एक वचार उठा, “कह रोशनी और अंकुर कुछ यादा आगे तो नह बढ़ गए!” उधर रोशनी भी अंकुर क याद म झूलते ए सो गई। रोशनी को आ य आ क नेहा को सब कुछ कैसे पता चल गया! मगर, साथ ही खुशी भी ई क नेहा को उसक और अंकुर जी क रात म मलने- मलाने वाली ‘मुलाकात ’ क कोई जानकारी अभी तक नह थी।

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इधर रज ट आया और उधर घर म टशन का माहौल बन गया। सो नया, अ वल नंबर से पास ई थी। सो नया खुश थी मगर साथ ही च तत भी। उसका डर भी वा जब था। ‘अंकुर ने जहाँ अजीत के साथ सफ हँसी-मजाक पर ही उसका सर फोड़ दया था, मुझे द ली कैसे जाने दे गा! फर अब तो पापा जी चुनाव भी जीत गए ह और अंकुर भी इसका भरपूर फायदा उठा रहा है। म कैसे द ली जाऊँगी!’ बस यही सब सो नया के दमाग म चलता रहता। सो नया को व ास था क वह अपने पापा को कैसे भी करके मना लेगी मगर अंकुर से कैसे नपटना होगा ये वह नह जानती थी य क अंकुर के दमाग म द ली के कॉलेज म पढ़ाई के नाम पर सफ यार मोह बत होता है—और कुछ नह ! सो नया क माँ र जो दल से चाहती थी क सो नया इस माहौल से नकले और आगे बढ़े । इसके लए र जो मौका दे ख कर बड़े यार से मलखान सह से बात कया करती थी। आ खर र जो क वनती काम आई और सो नया को द ली भेजने का फैसला हो गया। अंकुर मलखान सह के इस फैसले से नाखुश था। मगर जब बलवीर सह ने समझाया क ये सब राजनी त का ह सा है और आगे जाकर इसका लाभ अंकुर को भी मलेगा तो वह राजी हो गया। र जो वयं ही सो नया के साथ द ली आई थी। और कुछ दन द ली म क थी, सारा इंतजाम और जमाने क ऊँच-नीच समझा कर र जो ने यू.पी. के लए े न पकड़ी। हालाँ क मलखान क राजनै तक प ँच के चलते सो नया को कोई परेशानी होनी ही नह

थी, फर भी, एक माँ को अपनी तस ली के लए ये सब करना ही था। सो नया ने कॉलेज जाना शु कर दया था। सो नया क दो ती शबनम से ई। शबनम ने सो नया से 20 दन पहले कॉलेज आना शु कया था, ये उसक खास दो त थी। इसी खास दो त शबनम ने सो नया क दो ती सा हल से करवाई और दे खते-हीदे खते ये दो ती यार म बदल गई। द ली म सब कुछ सही चल रहा था। रोजाना सा हल और सो नया फोन पर बात कया करते थे। इ ह बात के चलते सो नया का फोन एंगेज रहने लगा था, और इसी कारण से अंकुर को कुछ शक आ। अंकुर एक दन द ली आया और… “हैलो सोनू।” अंकुर क आवाज म घबराहट थी। सो नया अब भी उन बाइक वाले लड़क के बारे म सोच रही थी। अचानक से आई अंकुर क कॉल से वह और परेशान हो गई। “हैलो, भैया जी।” सो नया बोली। “सोनू, हम बोल रहे ह। अ मा क तबीयत अचानक खराब हो गई है…” “ या!” सो नया घबरा गई, “ या आ अ मा जी को। अभी कल ही तो बात ई थी…” “वो…सब कुछ नह पता, अभी फोन आया है। तुम ज री सामान ले लो। हम नीचे खड़े ह।” अंकुर क आवाज म चता झलक रही थी। मोबाइल कान पर लगाए सो नया ने खड़क से नीचे दे खा। सच म अंकुर गाड़ी म बैठा आ था। सो नया ने दो जोड़ी कपड़े लए और हडबैग लेकर नीचे आ गई। “बैठो।” अंकुर बोला। चेहरे पर एक कु टल भाव उभरा और अगले ही ण गायब भी हो गया। “ या आ अ मा जी को? सब कुछ ठ क तो है न।” चता म डू बी सो नया ने पूछा। “हाँ-हाँ। सब ठ क है, इतना चता करने क ज रत नह है।” सो नया क ओर दे खे बना ही अंकुर ने जवाब दया। सो नया को कुछ अटपटा लगा, कतु इतनी ह मत न हो पाई क कुछ पूछ पाती। वह चुपचाप से अपनी शॉल ओढ़ कर बैठ रही। कुछ दे र चलने के बाद, अंकुर ने मोबाइल पर एक नंबर मलाया। नंबर मला नह । सो नया ने अंकुर क ओर दे खा। “इस फोन म कुछ गड़बड़ है। अपनी मज से नेटवक आता है, अपनी मज से चला जाता है। अब दे खो नह लग रहा है।” अंकुर बोला। “आप मेरे मोबाइल से बात कर लो।” बोलते ए सो नया ने अपना मोबाइल अंकुर को पकड़ा दया। गाड़ी धीमी कर के अंकुर ने एक नंबर मलाया। “हाँ, हम बोल रहे ह। उसका या आ?” सो नया ने अनुमान लगाया क सरी ओर ‘मु ा’ होगा। अंकुर बोलता गया, “सब ठ क है न! कसी को कुछ पता तो नह चला न।” सरी ओर से जवाब सुनने के बाद अंकुर बोला, “अ छा ओके, मलते ह।” अंकुर

अपनी बात ख म कर चुका था। वह कॉल कट करने ही वाला था क वह बोला, “हैलो। हम सुबह 9 बजे तक प ँच जाएँग।े तुम मलना वह ।” अपनी बात पूरी करके इस बार कॉल कट कर द । सो नया ने फर से अंकुर क ओर दे खा, शायद अपना मोबाइल लेने के लए, पर अंकुर ने वह मोबाइल अपनी जैकेट क जेब म रख लया। सो नया इस बार भी कुछ नह कर पाई। वह समझ गई, ये सब सफ मोबाइल लेने के लए कया गया था। सो नया को प का यक न हो चुका था क कुछ गड़बड़ है। ले कन वह इस व कुछ भी नह कर सकती थी। वह गुम-सुम-सी सीट पर बैठ , गाड़ी क रोशनी म सड़क पर बनी सफेद लक र को दे खती रही। कुछ समय बाद, अंकुर ने सो नया क ओर दे खा, वह आँख मूँदे ई बैठ थी। अंकुर के चेहरे पर एक कु टल मु कान फर से दौड़ गई। ऐसा लग रहा था क अंकुर ने कसी ब त बड़े काम को अंजाम दे दया हो। अगली सुबह, सो नया को कॉलेज म न पा कर सा हल ब त परेशान आ। उसने अपनी ओर से पूरी को शश क —सो नया का पता लगाने क —पर कुछ हाथ न आया। मोबाइल पर नंबर मलाने पर ‘ व ड ऑफ’ का मैसेज सुनाई दे रहा था। शबनम भी आज कॉलेज म नह थी। सा हल ने शबनम का नंबर मलाया। शबनम को इस बारे म कुछ पता नह था। सा हल कॉलेज से नकला। उसक बाइक सीधा ग स हॉ टल के सामने ही जाकर क । गाड से पता चला क कोई लड़का आया था जसके साथ सोनू चली गई। “ब त ज द म थी, कुछ सामान भी नह ले गई” गाड ने सा हल को बताया। सा हल परेशान था, उसक सो नया कसी मुसीबत म थी। दल र से ही दल का हाल बयाँ कर दे ता है। एकाएक सा हल का मोबाइल बज उठा, नंबर अंजान था मगर ‘उ ह ’ का था। बात करने के बाद सा हल और भी यादा परेशान हो गया। मोबाइल पर ई बातचीत ही इसक वजह थी। यू.पी. म हो रहे सां दा यक दं ग से ले कर ‘ च ड़या’ को दाना डालने क बात तक और अपने कौम क हफाजत के लए यू.पी. म प ँचने के म से लेकर लोन क रकम क अदायगी तक—सारी बात । सा हल परेशान था, उसे कुछ समझ नह आ रहा था। वह अपने म पर लौट गया, स ताह भर तक इधर-उधर घूमते- फरते उसने हर को शश क —सो नया का पता लगाने क । वह मायूस हो चुका था। सा हल का बस चलता तो वह कभी का अपनी सो नया के पास प ँच चुका होता! पर हमेशा बस चलता तो नह ! ऐसे ही एक दन सा हल सो नया के मैसेज पढ़ रहा था। एक मैसेज अभी कुछ घंट पहले का ही था। नंबर अंजान था मगर उसम कुछ ऐसा लखा था क सा हल ने तुरंत ही दो जोड़ी कपड़े बैग म डाले और बाइक टाट करके सीधा रेलवे टे शन प ँच गया। मैसेज था—‘गाँव म’

भाग-3 उ म दे श, 2013

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दस बर 2013, उ म दे श दोन तरफ के लोग भड़के ए थे,… कसी बात पर दोन सं दाय म झगड़ा हो गया था, जसक वजह कसी को भी पता नह थी। कोई कह रहा था क बाइक से टकराने क वजह से झगड़ा शु आ तो कोई इसे लड़क छे ड़ने के कारण आ बता रहा था। इस अंजान वजह के कारण दं गा तो भड़क चुका था। दोन ही सं दाय के लोग ज मी ए थे। दोन ही बदला लेने क तैयारी म लगे थे। ट-प थर, ला ठयाँ-डंडे और चाकू-कु हाड़ी से लेकर कट् टे और बं क का भी इंतजाम कया जा रहा था। हालाँ क, खबर अभी यू.पी. म ही थी मगर धीरे-धीरे नेशनल मी डया ने भी इस धारणा क सुध लेनी शु कर द थी। ठं ड के मौसम म लोग 5-5 के समूह म पहरेदारी कर रहे थे। हर कोई अपनाअपना नज रया बयाँ कर रहा था तो कुछ उ दराज लोग पछले दं ग के अपने-अपने अनुभव क कहा नयाँ सुना रहे थे। एक- सरे के खून के यासे दोन समूह बना कसी कारण एक- सरे को मारने पर आमादा थे। रोजाना लड़ाई-झगड़ और उनक अफवाह क खबर सुनने को मल रही थ जसक वजह से हालात अभी भी असामा य बने ए थे। क सरकार ने इस मामले म कोई कदम नह उठाया था। यू.पी. सरकार को बदनाम करने क फराक म लोग बैठे थे। ऐसे ही माहौल म अंकुर और सो नया अपने घर प ँचे। कई जगह लोग ने पेड़

काट कर सड़क पर डाल दए थे तो कई जगह सड़क पर गड् ढे खोद दए गए थे। मगर अंकुर कोई सामा य नह था। उसक प ँच दोन ही सं दाय म थी, वह नेता जी का बेटा जो था, इसी लए इतने दं ग-े फसाद म भी वह अपनी बहन सो नया के साथ अपने घर प ँच गया। भगवान का शु था या कुछ और, इनके घर प ँचने के कुछ समय प ात् ही दं गा दोबारा से और भी यादा भड़क गया और मामले क गंभीरता के चलते क सरकार को ह त ेप करना पड़ा। इन दं ग से जुड़ी खबर कुछ इंटरनेशनल चैनल पर भी दखाई गई। इन दं ग क चगारी अफवाह के ज रए फैलती गई और इतनी फैल गई क काबू पाने के लए पूरे इलाके म क यू लगा दया गया। क यू लगाए जाने से धीरे-धीरे हालात सामा य होने लगे। जदगी फर से अपनी राह पर चलने क को शश म थी। इस दौरान क यू म दो दन के लए ढ ल द गई। इस ढ ल का कुछ खास असर नह आ य क जदगी क गाड़ी पटरी पर चल भी नह रही थी और उतर भी नह रही थी। जदगी तो क ई थी, एक बंद कमरे म! सो नया को अपने कमरे से बाहर नकलने क भी इजाजत नह थी। हर समय एक अंजान-सा डर खाए जा रहा था, कह कुछ अ न होने क आशंका से मन घबरा रहा था। आ खर कब तक कोई इस तरह कमरे म कैद क तरह रह सकता है—जब क घर भी अपना हो और कमरा भी अपना! जतना दबाव बढ़ता गया, पाबं दयाँ बढ़ती ग । इसी के साथ बढ़ती गई इ छा श —सो नया क इ छा श ! यही इ छा श थी जो सो नया को ऐसे बुरे व म भी जीने का हौसला दे रही थी। सुबह का ना ता, दोपहर और रात का खाना सभी कुछ एक खड़क से सो नया को दया जा रहा था। ‘आ खर या कसूर है मेरा।’ यही सो नया हर व सोचती रहती थी। शु -शु म रो-रो कर बुरा हाल हो गया था—सो नया का। फर दो दन के बाद तो आँसू भी ख म हो गए—रह गई सफ पथराई ई आँख, जनम जदगी का नामो नशान भी नह था। एक मू त क तरह जड़ सो नया अपने कमरे म बैठ रहती और खड़क से बाहर का य दे खा करती—यही उसक दनचया बन चुक थी। न जाने कैसे पड़ोस म ये खबर फैल चुक थ क सोनू ब टया को घर म ही बंद कया गया है, कुछ-कुछ खबर ये भी थ क सो नया द ली म यार-मोह बत के च कर म पड़ गई थी, इसी लए उसे वापस गाँव लाया गया है। लड़का काम या करता है? और कहाँ का है?—ये सब कसी को नह पता था। अंकुर हर व ताने मारता रहता और कोई-न-कोई आदमी हर समय घर म मौजूद रहता। दं गे के चलते, चुनावी कमरे म काफ ह थयार इकट् ठा कए जा रहे थे। ‘ऊपर-ऊपर से हम सब भाई-भाई ह।’ ‘हम मल-जुल कर रहना चा हए।’ इस तरह के जुमले कई तरफ से सुनाई दे रहे थे, जब क दल म कुछ और ही भाव उठ रहे थे।

जीने क आशा और यार क ताकत से बड़ी कोई चीज नह होती—इ ह के सहारे सो नया अपना बुरा व काट रही थी। “बस एक बार…म मी को बुला दो, भैया।” सो नया ने वनती क । काफ दे र से वह इसी तरह वनती कर रही थी, जसे दरवाजे के सरी तरफ खड़ा आदमी अनसुना कए जा रहा था। “ लीज भैया। सफ एक बार म मी को बुला दो।” दोबारा वनती करते ए सो नया बोली। “सोनू ब टया। हम श मदा न कर। हम सफ मा लक का म मान रहे ह—और हम ऐसा कोई म नह मला है क हम तु हारी माल कन से बात कराएँ।” एक आदमी ने जवाब दया। आदमी जानता था क गलत हो रहा है पर वह कुछ कर नह सकता था। ह रया भी उस समय ऊपर वाली मं जल पर था। बाक के सारे आदमी नीचे हॉल म इकट् ठा थे। दं गाइय से कैसे नपटा जाए इसी बात क चचा हो रही थी। सो नया ने जब खड़क के बाहर ह रया को दे खा तो, वह बोली, “चाचा जी, लीज। हमारी म मी से बात करवा दो।” ह रया भी मजबूर था। ह रया जानता था क सो नया ब टया को नजरबंद कया गया है। तभी ह रया को नीचे से आवाज लगाई, “ह रया चाचा। तु हारे घर से कोई आया है।” ये रोशनी थी। घर के एक नौकर ने आवाज लगाई थी। रोशनी को दे खकर, अंकुर क आँख चमक उठ । दोन क नजर मल , “वो…हम पापा से कुछ काम था।” अंकुर क ओर दे खते ए बोली। मु ा ने ऊपर जाने का इशारा कया, जो क हॉल म सोफे पर बैठा आ था। रोशनी को दे खकर ह रया हैरान हो रहा था, उसका यूँ इतनी शाम को आना कुछ अटपटा-सा लगा। “रोशनी ब टया! तुम इधर कैसे? सब ठ क है न!” “सब ठ क है, पापा जी।” “ फर…” “म मी ने कहा है क ज द घर आ जाना। अफवाह है क आज रात गाँव पर हमला होगा और आपका फोन भी नह मल रहा था—इसी लए म मी को चता हो रही थी।” “तुम य आ गई? कसी और को भेज दे ना था न।” “कोई भी नह है घर पर,…चाचा जी कसी काम से बाजार गए ह। इसी लए मुझे आना पड़ा।…पर आपका नंबर य नह मल रहा है?” बोलते ए रोशनी ने मोबाइल लेने के लए अपना हाथ बढ़ाया। जैकेट क जेब से मोबाइल नकाल कर ह रया ने सो नया के हाथ म थमा दया। “दे खो या आ है इसे।” रोशनी ने तुरंत मोबाइल को वच ऑफ कया, और फर ऑन करके, मोबाइल क ओर दे खते ए रोशनी बोली, “नेटवक तो आ रहे ह।”

“ह रया चाचा।” मु ा ने नीचे से आवाज लगाई। “आया।” बोलते ए ह रया नीचे जाने के लए सी ढ़य क तरफ बढ़ गया। “रोशनी।” एक धीमी आवाज ने रोशनी का यान ख चा। ये सो नया थी। रोशनी ने इधर-उधर दे खा। “इधर, खड़क के पास।” आवाज इस बार भी धीमी थी। रोशनी को ये खबर थी क सो नया द द गाँव म आई ई ह और अपने ही घर म कैद ह। पर उसे आशा नह थी क सचमुच ही उसे कमरे म बंद करके रखा आ होगा। रोशनी तुरंत खड़क के पास प ँची। सो नया ने सारी बात सुन ली थ । “मुझे मोबाइल दे ना।” रोशनी ने समझदारी दखाते ए तुरंत मोबाइल पकड़ा दया। सो नया ने पहले सोचा, फोन क ँ सा हल को। फर सोचा सा हल अंजान नंबर क कॉल उठाए या न उठाए। उसने एक मैसेज टाइप करना शु कया। ‘गाँव म’ अभी इतना ही टाइप कया था क तभी ह रया ऊपर आ गया। सो नया ने अधूरा मैसेज ही भेज दया। मोबाइल रोशनी को दे ते ए बोली, “ लीज सट मैसेज म से इसको डलीट कर दे ना और इसक रपोट भी।” “ओके।” कह कर रोशनी फर से पहले क तरह, ठ क उसी जगह आ कर खड़ी हो गई। मोबाइल को दे खते ए, उसने सावधानी से मैसेज संबं धत सारा डाटा डलीट कर दया। “ या आ था, मोबाइल म? कुछ पता चला या?” ह रया ने पूछा। “पता नह , पापा जी…पर अब नेटवक आ रहे ह। कभी-कभी मोबाइल बंद करके दोबारा चालू करने से नेटवक आ जाते ह।” “अ छा, नीचे चलो और म मी से कहना, चता न करे। हम जीप म इन सभी आद मय के साथ घर आ जाएँग।े फर अब तो नेटवक भी आ ही गया है।” सर हला कर हामी भर कर, रोशनी सी ढ़य से नीचे उतरने लगी। “ह रया चाचा।” अंकुर बोला “अपनी ब टया को यूँ अकेले मत भेजो, अभी हम उधर ही जाएँग— े सुर ा का बंदोब त दे खने, तो…इ ह घर तक छोड़ दगे।” “बेटा, आप काहे तकलीफ करते ह? चली जाएगी अपने आप।” ह रया ने सी ढ़य से नीचे उतरते ए कहा। “नह -नह , ह रया चाचा। इसम तकलीफ कैसी? एक आदमी को जीप नकालने का इशारा कया, “गाड़ी नकालो।” रोशनी का दल खुशी से जोर-जोर से धड़क रहा था। रोशनी अपनी खुशी कसी पर जा हर नह कर सकती थी। वह चुपचाप खड़ी रही। शाम के 8 बज चुके थे। सो नया खड़क से अहाते म हो रही ग त व धय को दे ख रही थी।

पहले रोशनी अहाते म आई, फर उसके बाद अंकुर, दोन सामने खड़ी ई बोलेरो क ओर बढ़े । घर का ार बंद होने क आवाज के बाद अंकुर ने रोशनी क ओर दे खा, रोशनी के चेहरे पर मु कान थी। अंकुर ने अपना हाथ रोशनी के कंधे पर रख दया, रोशनी अंकुर के और करीब हो गई—उसने कोई ऐतराज न कया! सो नया ने ‘ये सब’ खड़क से दे खा। सो नया ने सारी क ड़याँ जोड़नी शु क । उसे सब साफ-साफ नजर आने लगा। सो नया को खुशी ई क अंकुर जैसा स त और कठोर भी ेम क डोर म बँध सकता है। सो नया को उसी दन इंसान के दोहरे मापदं ड का भी अहसास आ, ‘कहाँ तो, अंकुर को मेरे मोबाइल पर दे र तक बात करने पर भी ऐतराज था और कहाँ अंकुर कतनी सहजता से सो नया के कंधे पर हाथ रखते ए गाड़ी म बैठ गया था। मेरी तरह रोशनी भी तो कसी क बेट और बहन है!’ सो नया ने अब अंकुर और रोशनी के ऊपर नजर रखनी शु कर द । सो नया को अंदेशा था क अंकुर रात-रात भर रोशनी से ही बात कया करता था।

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सुबह के यारह बज चुके थे। सा हल लखनऊ टे शन से बाहर नकला। एक फोन नंबर मलाया, “कहाँ पर हो?” “यह । सामने चले आओ, ीन जीप म।” सरी ओर से आवाज सुनाई द । जीप तक प ँचने से पहले सा हल ने बैगपैक क जेब से एक टोपी नकाली और सर पर लगा ली। ये टोपी सद से बचाने वाली नह थी। सफेद रंग क इस टोपी को लगाने के बाद सा हल का चेहरा ही बदल गया। सा हल के साथ उस ड बे के सह-या ी भी थे। उ ह ने भी सा हल को टोपी पहनते ए दे खा। कुछ लोग को सा हल फर से सं द ध नजर आने लगा था। जीप म बैठे लोग, सोच रहे थे क सा हल उनके बुलाने पर आया है, उनक मदद करने। उ ह या मालूम था क सा हल तो सफ अपनी सो नया के लए यहाँ तक प ँचा है। जीप क ओर बढ़ते ए सो नया ने आसमान क ओर दे खा और ऊपर वाले का शु या अदा कया। सा हल जीप से सफ एक कदम क री पर था। जीप म दो लोग बैठे थे। एक ने सा हल क तरफ दे खते ए कहा, “अ सलाम वालेकुम सुहैल भाई।’ आगे बढ़कर उसने अपनी बाँह फैला कर सा हल का वागत कया। “वालेकुम अ सलाम।…कैसे हो रा शद?” धीरे से सा हल बोला। सा हल को थोड़ा अजीब लगा, ब त दन बाद उसे कसी ने ‘सुहैल’ कह कर पुकारा था। कॉलेज म तो वह सा हल के नाम से जाना जाता था। “आओ चल। सब बड़ी बेस ी से इंतजार कर रहे ह।” कहते ए रा शद ने सुहैल के हाथ से बैग ले लया और पछली सीट पर बैठ गया। ं ट सीट पर बैठते ए सा हल ने ाइवर को चलने के लए कहा, “चलो भई, फरोज।”

रा शद अभी पढ़ रहा था और फरोज अपने बजनेस म हाथ-पाँव मार रहा था। सा हल उनका रोल मॉडल था। इन दोन क दे खा-दे खी इलाके के कई युवा सा हल क तरह पढ़ना- लखना चाहते थे और अपने दे श व अपनी कौम के लए कुछ करना चाहते थे। करीब बीस मनट तक सड़क पर दौड़ने के बाद जीप एक क चे रा ते पर उतर गई। इसी क चे से रा ते से लगता आ एक रा ता इलाके के दोन कूल से जा कर मलता था। “…सड़क पर यादा लोग नह थे।” सा हल ने पूछा। “वो…अभी कल ही तो क यू हटा है। सामा य होने म कुछ व लगेगा, सुहैल भाई।” पछली सीट पर बैठे ए रा शद ने जवाब दया। “ ँ…।” सो नया क याद म खोया आ सा हल यादा कुछ नह बोल पाया। टे शन से लेकर इस क चे रा ते से गुजरते व भी सफ एक श स को सा हल क नजर ढूँ ढ़ रही थ —सो नया को। जीप म बैठे ए फरोज और रा शद, सा हल के गम से बेखबर थे। सा हल क चु पी और खोई-खोई-सी आँख को वे दोन इलाके म ए सां दा यक दं ग से जोड़ कर दे ख रहे थे। “कुछ भी पहले जैसा नह रहा भाई। पछले दन कई बार दं गे ए, हमारे कई नौजवान घायल ए, ऊपरवाले का शु है क कोई भी मारा नह गया…” रा शद गमगीन आवाज म बोलता गया, “…ले कन हमारे कुछ लोग को गहरी चोट आई ह। लोग म गु सा है। पर…वे डरे भी ए ह, आशंका है क दोबारा फर दं गा होगा।” रा शद पछले दन या- या आ, सब कुछ सा हल को बता रहा था। क चे रा ते पर चलते ए करीब आधा घंटा हो चुका था। गाँव प ँच कर जीप क गई। गाँव म 20-25 क चे-प के घर थे। दो मं जल तो केवल चार ही थे। आस-पास के गाँव क केवल यही एक म जद थी। म जद के सामने खुली जगह थी जहाँ पर गाँव के बड़े-बुजुग बैठ कर बातचीत कर रहे थे। कुछ बुजुग चारपाई पर बैठे थे, जनम से एक सा हल के चचा भी थे। इन बुजुग क चारपाई के सामने कई चारपाई बछ ई थ , जन पर लोग बैठे ए थे। इन चारपाइय क कतार के पीछे कुछ नौजवान और कशोर खड़े ए थे। आसपास के घर क छत पर से औरत इन सभी ग त व धय को दे ख रही थ । मौसम साफ था। सुबह के यारह बजे थे। धूप सकते ए इनक बातचीत जारी थी। एकाएक जीप क आवाज सुन कर, लोग का यान उस ओर गया। एक झटके से जीप क गई और रा शद क बात अधूरी ही रह गई। जीप गाँव प ँच चुक थी। सा हल ने दे खा क सामने चारपाई पर चचा बैठे ए लोग से बातचीत कर रहे ह और चचा के सामने दस-बारह चारपाइयाँ बछ ई थ जन पर लोग बैठे ए थे। इन चारपाइय के पीछे कुछ कशोर और युवा खड़े ए थे। जीप से उतरते ए सा हल क ओर गया। चचा ने उठकर सा हल को गले लगाया। “कोई द कत तो नह ई न।” चचा ने पूछा।

“नह , कुछ खास नह ।” सा हल ने जवाब दया। “आओ, तुम भी अपने वचार रखो। हम सबको तुमसे ब त उ मीद ह।” चचा ने सभी क ओर से सा हल को कहा। सभी बड़ी ही उ मीद भरी नजर से सा हल को दे ख रहे थे। सा हल भी चचा के साथ चारपाई पर बैठ गया। बातचीत फर शु हो गई। एक उ दराज ने बोलना शु कया। “…अब और नह सहगे। आ खर कस जुम क सजा मल रही है हम। या ये मु क हमारा नह ! या ये गाँव, ये मट् ट हमारी नह ! या इसी रोज के लए हमारे बुजुग ने आजाद क जंग लड़ी थी। हमारे साथ ऐसा बताव य हो रहा है। हम कुछ करना होगा।” बोलते-बोलते ये भावुक हो उठे । तो सरे ने कंध पर हाथ रखकर उ ह दलासा दया। इन बुजुगवार क आँख म ःख क नमी नजर आने लगी थी। इसके बाद चचा ने सा हल को बोलने को कहा। सा हल को कुछ समझ नह आ रहा था क या बोले, या न बोले। खैर ह मत करके उसने बोलना शु कया। “सभी लोग को मेरा सलाम। जो आ वह गलत आ। हम दे खना होगा क आगे से ऐसा न हो। हम सभी मल कर नेता जी से इस बारे म बात करगे। उनक प ँच द ली तक है। दे खना सब कुछ पहले जैसे हो जाएगा।…” अभी सा हल ने इतना ही कहा था क लोग म खुसर-फुसर शु हो गई। दरअसल लोग को सा हल से इस तरह के न और ‘ ड लोमै टक’ रवैए क उ मीद नह थी। सा हल के चचा ये भाँप गए। वे उठे और उ ह ने बीच म ही बात को संभालते ए बोलना शु कया। “सुहैल, मेरा ब चा। अभी थका आ है सुबह से कुछ खाया-पीया भी नह है। इसे थोड़ा व द।” फर पास खड़े रा शद क ओर दे खते ए चचा ने कहा, “जाओ, सुहैल को ना ता कराइये। इ ह घर ले जाओ।” “जी। चचा।” रा शद बोला। सा हल चारपाई से उठा और घर क तरफ ख कया। इतने म सा हल का मोबाइल बज उठा। नंबर वही था, जसे दे खकर सा हल परेशान हो जाया करता था। मोबाइल कान पर लगाते ए वह घर क ओर चलने लगा। बीस कदम पर घर था। “सलाम वालेकुम जनाब।” सा हल बड़े ही अनमने ढं ग से बोला। “वालेकुम अ सलाम। कहो घर प ँच गए?” भराई ई आवाज। “जी, अभी-अभी प ँचा ँ। पहला कदम ही रखा है।” बोलते ए सा हल घर के मेन गेट से लगती ई सी ढ़य पर चढ़ते ए छत पर प ँच गया। छत पर चाची और उनक बेट बैठ ई मी टग म हो रही सारी कायवाही दे ख रही थ । दोन को दे ख कर वह छत पर धन के लए जमा क गई लक ड़य क कोठरी के पीछे चला गया। “तु ह याद है न! या करना है।”

लगे।

“जी जनाब।” “अगले चार घंट म सारा माल प ँच जाएगा।” “जी।” “बाक अपने चचा से मल लेना। बाक का काम वही तु ह समझा दगे।” “जी।” बोलने के साथ सा हल के चेहरे पर चता के काले बादल नजर आने

इतने म चचा क छोट लड़क , सा हल भाई सा हल भाई कहते ए उसके पास आ गई। ये न मा थी। न मा के पीछे चाची भी थी। चाची के कहने पर सा हल ना ता करने के लए नीचे चला गया। बाहर मी टग चल रही थी। मी टग म अब आस-पास के गाँव के लोग भी आकर शा मल हो गए थे। इन मी टग म कुछ ‘गुमराह’ लोग भी थे जो अपने गत कारण के चलते अपने ‘आका ’ के हाथ क कठपुतली बने ए थे। खाना खा कर, सा हल अपने कमरे म मोबाइल पर सो नया क त वीर और मैसेज दे खता आ सो गया। शाम हो चली थी, सारा वातावरण अंधेरे क चादर म लपटा आ था। इस अंधेरे म कब ‘माल’ आया और कब बँट गया कसी को कान -कान खबर न ई। युवक का दल अब जोश से भर चुका था। कट् टे , बं क, तलवार और भाले—इ ह को ये सब ‘माल’ कह रहे थे। चचा ने अपने पास भी दो कट् टे , दो तलवार और कुछ भाले रख लए थे—अपनी हफाजत के लए! इस व सभी का दमाग एक अजीब से भँवर म फँस चुका था जसक वजह से ये लोग उन दन को भी भूल चुके थे, जब वे साथ-साथ होली, दवाली, रमजान और ईद मनाया करते थे। राजनी त क आग म सभी लोग व ास और भाईचारे का धन बना कर फूँक रहे थे। बदला, बदला और बस—बदला। बदला लेने क तैयारी दोन ओर चल रही थी। चचा ने सारा ‘माल’ सा हल के पलंग के नीचे सरका दया जसक खटपट से सा हल क न द टू ट गई। “चचा जी!” अपने पलंग के पास झुके ए चचा को दे खकर सा हल च क उठा, “सब ठ क तो है न।” “अभी तक सब कुछ ठ क है, आगे न जाने या होगा।” चचा सा हल के पैर क तरफ पलंग पर बैठ गए। “ य , आगे या होने वाला है!” सा हल द वार के साथ पीठ लगा कर बैठ गया, और कंबल चाचा के पैर पर भी डाल दया। “कभी भी दं गा हो सकता है, पास के गाँव वाले कभी भी हमला कर सकते ह। इसी लए सामान का बंदोब त कया है, अपने और अपने गाँव वाल के लए।” “सामान! कैसा सामान चचा जी।” सा हल का मुँह खुला-का-खुला रह गया। चचा सा हल क मनो थ त जान कर बोले, “कुछ नह …कुछ ला ठयाँ और डंडे

ह। अचानक दं गा होने पर कुछ काम आ जाएँग।े ” “ ँ।” “ले कन मेरे ब चे…उनके पास कुछ और सामान भी आ तो…हमारी ये ला ठयाँ और डंडे कुछ काम न आ पाएँग।े …इस बारे म कुछ सोचना।” अपने पैर पर से कंबल हटाते ए चचा उठ खड़े ए, “खाना खाने का व हो गया है, हाथ-मुँह धोकर आ जाओ।” “जी, चचा जान।” सा हल बोला। सा हल के दमाग म ‘सामान’ को लेकर अभी भी असमंजस क -सी थ त बनी ई थी। चचा के कमरे के बाहर जाते ही, सा हल ने अपने पलंग के नीचे दे खा। “या खुदा! ये सब या है!” हाथ से सामान के ऊपर से लपटा आ अखबार उतारते ए सा हल ने दे खा, “भाले!” भाल के पीछे सा हल को एक बैग भी नजर आया। ‘इसम या है?’ सा हल ने बैग क चेन खोली, “या मेरे खुदा! कट् टे , बं क!” सारा ‘सामान’ पहले क तरह रख कर, पलंग के नीचे सरका दया। दोन हाथ से अपना सर पकड़ कर वह पलंग पर काठ के पुतले क तरह बैठा रहा। म त क म आँधी-तूफान उमड़ रहे थे, एक तरफ ये सब और सरी तरफ सो नया। ‘सो नया कहाँ है? कैसी होगी?’ अभी सा हल सोच ही रहा था क एकाएक मोबाइल बज उठा। “हैलो!” ये शबनम थी। “हैलो, शबनम! कैसी हो? सब ठ क है न!” “हाँ, म ठ क ।ँ तुम बताओ।” “म भी ठ क ँ।” परेशान-सा सा हल बोला। “मुझे…तुम कुछ ठ क नह लग रहे हो।” शबनम शायद सा हल क परेशानी समझ गई थी। वह बोली, “मुझे एक बात पता लगी है, जो तु हारे काम आ सकती है, और शायद… फर तु हारी परेशानी भी र हो जाए।” “ या पता लगा है?” सा हल ने पूछा, “सो नया के बारे म है या कुछ?” “हाँ। सही समझे।” शबनम बोली। मु कुराहट के साथ शबनम क धीमी हँसी सा हल ने सुनी। सा हल ने पूछा, “कहाँ पर है?” सा हल का आशय प था। “उधर ही, अपने घर म।” “उ म दे श म…!” “हाँ जी।” इतनी दे र म न मा सा हल को खाने के लए बुलाने आ गई। “एक मनट…” शबनम को बोल कर सा हल न मा से बोला, “तुम चलो, म अभी आया।” न मा मु कुराती ई कमरे से बाहर चली गई। सा हल ने फर शबनम से पूछा, “खबर प क है न।” “हडरेड पसट प क है।” “ओके। म तु ह बाद म कॉल करता ँ।” सा हल के परेशान चेहरे पर खुशी क

झलक दखाई दे ने लगी।

34

…शबनम ब त परेशान थी उसक ड सो नया को अचानक गए लगभग 15 दन हो चुके थे। सा हल और शबनम, दोन ने अपने-अपने तर पर सो नया के बारे म पता लगाने क को शश क थी जसका रज ट हर बार ‘जीरो’ ही रहा। उ म दे श के दं ग क खबर द ली म भी सुनाई दे रही थ । इसी वजह से जब सा हल भी अचानक द ली से चला गया तो शबनम क चता और भी बढ़ गई। सो नया और सा हल दोन ही द ली म नह थे। सा हल के बारे म तो शबनम को पता चल गया था मगर सो नया अब भी गायब थी। शबनम कॉलेज र ज ार ऑ फस से सो नया के घर का पता नकलवाने प ँची, तो लक ने कसी भी तरह क जानकारी दे ने से साफ इंकार कर दया। ब त म त करने के बाद सो नया का लडलाइन नंबर हाथ लगा। शबनम ब त खुश थी, र ज ार ऑ फस से बाहर नकलते ही शबनम ने नंबर मला दया। पूरी घंट बजने के बाद भी सरी तरफ से कसी ने फोन नह उठाया। मु कान भरे चेहरे पर पलभर म चता क लक र उभर आ । मोबाइल हाथ म लए वह कॉलेज कॉ रडोर को पार कर गाडन म एक बच पर बैठ गई।… …सो नया के साथ बताए ल ह को याद करते ए शबनम क आँख नम हो ग । …कैसे दोन र शा टड पर मला करती थ , कैसे सो नया और शबनम मै ो से द ली यू नव सट आते थे, फर…शबनम को सनेमा- न क तरह सारी घटनाएँ सल सलेवार ढं ग म दखाई दे ने लग —सा हल और सो नया क पहली मुलाकात

करवाना, फर सो नया का नंबर शबनम ारा सा हल को मैसेज करना। शबनम का सुबह र शा टड पर दे र से आना और सो नया का सा हल के साथ बाइक पर चले जाना। इन सभी म शबनम का ही तो हाथ था। शबनम ही वह कड़ी थी जसने सा हल और सो नया को मलवाया था, और इसी कारण सा हल और सो नया एक- सरे को अपना दल दे बैठे थे। इन दोन के यार को शु म शबनम का ही सहारा मला था। दोन के यार क खुशी को कसी क नजर लग गई थी। दोन अब जुदा थे। आसमान क ओर दे खते ए शबनम ने दोन क सलामती क आ माँगी। हाथ म पकड़े ए मोबाइल न पर फर वही नंबर ‘ र-डायल’ कर दया— अपने आप ही। घंट जा रही थी। ‘फोन कौन उठाएगा?, उठाएगा भी या नह । कह कुछ हो न गया हो सो नया को।’—इ ह वचार म शबनम डू बी थी क सरी तरफ से फोन उठा लया गया। “हैलो।” आवाज कसी लड़के क थी। “हैलो। जी…म द ली से सो नया क कॉलेज क ड बोल रही ।ँ ” शबनम ब त स मानपूवक बोली, “वह कई दन से कॉलेज नह आ रही है। कह वह बीमार तो नह हो गई! यही पता करने के लए फोन कया…। लीज, मेरी सो नया से बात करवा द जए।” “कौन?” लड़क क आवाज सुनकर अंकुर का दल, लड़क कौन है, ये जानने को उ सुक हो गया और उसक आँख के भाव ही बदल गए, “कौन ड? हम कसी को नह जानते!” “जी, हम शबनम बोल रहे ह। यहाँ द ली से, कुछ पढ़ाई के सल सले म बात करनी है।” “शबनम! अ छा तो शबनम जी बोल रही हो। हम ह अंकुर, सो नया के भैया।” “नम ते, भैया जी। सो नया कैसी है?” “नम ते। सो नया ठ क है।” अंकुर ने जवाब दया और फर पूछा, “आप कैसी ह? सब ठ क-ठाक है न!” “हम भी ठ क ह, भैया जी।” शबनम अंकुर के भाव जानती थी। वह पहले भी अंकुर से मल चुक थी। गाड़ी म बैठे ए पूरे रा ते, अंकुर शबनम को ही दे खता रहा था। शबनम को पुरानी बात याद आ गई। इन सब बात को नजरअंदाज करते ए शबनम ने बात जारी रखी, “जरा सो नया से बात करवा द जए न, वह इतने दन से इधर नह है न! लीज, सो नया को बुला द जए न।” घर म केवल ाइंग म म ही लडलाइन कनै शन था। बाक कमर से कनै शन कुछ समय पहले ही कटवा दए गए थे। अंकुर और नेता जी फोन को सो नया क प ँच से र रखना चाहते थे। “तुम एक नंबर लखो।” अंकुर ने एक मोबाइल नंबर शबनम को नोट करवा दया। “पाँच मनट बाद इस नंबर पर कॉल करना। तु हारी बात सो नया से हो जाएगी। ओके।” ललचाई ई नजर से अंकुर टे बल पर रखी एक मैगजीन म य के फोटो दे ख रहा था। “जी, भैया जी।” शबनम बोली, “ले कन ये नंबर तो सो नया का नह है। उसका

नंबर तो व ड ऑफ है, मने पहले कई बार उसी पर कॉल कया था। मगर बात न हो सक ।” “इसी नंबर पर कॉल करना, तु हारी बात हो जाएगी। ये नंबर व ड ऑफ नह होगा, ओके।” मैगजीन क जगह अब एक मोबाइल अंकुर के हाथ म था। “पर…ये नंबर है कसका?” शबनम ने जोर दे कर पूछा। “ये नंबर…मेरा है, शबनम जी। आप कभी भी इस पर मुझे कॉल कर सकती ह। ये कभी भी वच ऑफ नह होता—न दन म और न रात म, समझ गई न।” अंकुर ने बड़ी ही सफाई से अपना नंबर शबनम को दे कर ‘दाना’ डाल दया था। बस अब ‘ च ड़या’ के दाना चुगने का इंतजार था। “हाँ जी। भैया जी हम समझ गए। थक यू। थक यू वैरी मछ।” बोल कर शबनम ने कॉल काट द । उधर, मोबाइल न पर कुछ उँगली फराते ए अंकुर ने ह रया के हाथ अपना मोबाइल सो नया के पास भेज दया। “हैलो!” शबनम बोली। “हैलो, श बो।” सो नया को ब त आ य आ। “हाँ, कैसी है?” “ठ क ।ँ यहाँ का नंबर कैसे मला?” “वो…सब छोड़। तू बता…यूँ अचानक बना बताए कहाँ गायब हो गई थी, और… मोबाइल भी व ड ऑफ। ये सब माजरा या है?” “भैया को हम पर शक हो गया था, इसी लए हम म मी क बीमारी का बहाना करके यहाँ ले आए और हम यहाँ एक कमरे म बंद करके रखा है।” दद भरी आवाज म सो नया ने जवाब दया। “तुझे पता है, सा हल भी वह है।” “कहाँ?” “उ म दे श म, तेरे गाँव के पास। तुमसे ही मलने के लए गया है। पर उसे अभी तक पता नह क तुम सच म अपने घर पर हो या कह ओर।” शबनम ने एक साँस म सारी बात बता द । “सा हल…” एक आह सो नया ने भरी, “वो यहाँ य आया है। या उसे पता नह इधर दं गा-फसाद हो रहा है।” “तू वो सब छोड़ दे । उसको कोई कुछ नह कहेगा।” “ य ?” सो नया को अजीब लगा क सा हल को य कोई कुछ नह होगा। “वो जब तुम उससे मलोगी तब पता चलेगा। बेचारा सा हल, उसक जदगी ही ख म हो गई थी—जब से तुम द ली से गई हो।” सो नया ने फर एक दद भरी आह भरी। “एक काम करोगी।” शबनम बोली। “ या?” “…परस तुम कसी तरह घर से नकल सकती हो। म सा हल को बता ँ गी क

तुम उसे कहाँ मलोगी। वह तु ह वहाँ से आकर ले जाएगा। तुम जगह बताओ।” “मुझे कुछ समझ नह आ रहा, तुम या कह रही हो। मुझे ब त डर लग रहा है।” “तुम बस अपने घर के पास क कोई जगह बता दो।” “प का रा ता, जस पर कूल है। ाइवेट कूल के पास।” “ओके। म फोन क ँ गी। 3 मस कॉल लडलाइन पर, आज रात ठ क दस बजे आए तो समझ लेना सा हल तक मैसेज प ँच गया है। अपना वो हरा सूट पहन कर घर से नकलना।” सो नया को समझ नह आ रहा था फर भी वह बोली, “ओके।” “ओके। म फोन रखती ँ वरना तेरे भैया जी को शक हो जाएगा।” “हाँ, वो ब त शक है।” सो नया ने हामी भरी। “हाँ, वह श क भी है, लाइन मारने वाला भी। मुझ पर लाइन मार रहे थे। तुझे तो पता ही है।” “हाँ, श बो तुम ठ क कह रही हो। पर म या कर सकती ँ।” “तुम कुछ मत करो। बस परस घर से नकलने का इंतजार करो। शाम पाँच बजे ओके—पाँच बजे तक वहाँ प ँच जाना, भूलना नह ।” “ओके।” खाना खाने के बाद, सा हल वापस अपने कमरे म आया और तुरंत शबनम का नंबर मला दया। रात आठ बजे का व था। ठं ड अपने पूरे जोर पर थी। घंट बज रही थी। “हैलो, शबनम।” सा हल बोला। “हैलो, सा हल। म तु ह फोन करने ही वाली थी।” शबनम ने धीरे से कहा। “ य ? सब ठ क तो है न।” “हाँ सब ठ क है, सो नया भी ठ क है।…” “तुम कुछ बताने वाली थी।” सा हल बीच म ही बोल पड़ा। “हाँ, सा हल सुनो। मेरी सो नया से बात ई थी, परस प के रा ते पर, ाइवेट कूल के पास सो नया 5 बजे प ँच जाएगी। वह हरे सूट म होगी।” फर शबनम ने सारी बात सा हल को बता द । सारी बात सुनने के बाद सा हल बोला, “शबनम तु ह पहले मुझसे पूछ लेना चा हए था। पता है, यहाँ पर हालात बदतर ह। कभी भी, कुछ भी हो सकता है और ऐसे म सो नया का घर से नकल पाना और कूल तक सही-सलामत प ँचना ब त मु कल होगा।” “तुम ठ क कह रहे हो। ले कन उस व मेरे दमाग म यही आइ डया आया और सरे शायद अंकुर फर से सो नया से बात करवाए या न करवाए। इसक भी तो कोई गारंट नह है न। इसी लए … मने ये सब कया।” शबनम ने अपनी सफाई द और पूछा, “ या तु ह कोई द कत है उधर प ँचने म…” “नह । ऐसी कोई खास द कत तो नह है, पर चचा का कुछ पता नह कभी-कभी अपने साथ चलने को कहते ह।”

“तो फर म उसे तीन मस कॉल न ँ ।” “नह -नह । तुम उसे मस कॉल करो और म कैसे भी करके वहाँ प ँच जाऊँगा। ओके।” “भूलना मत, ठ क दस बजे—तीन म ड कॉल।” “ओके।” “हाँ एक बात और…” सा हल क आवाज म एक कृत ता का भाव था। “ या?” शबनम ने पूछा। “थ स!” मासूम-सा सा हल बोला। “ओके। ओके। ड ट ाई, ए ड टे क केयर।” बोल कर शबनम ने फोन रख दया। अंकुर ाइंग म म चहलकदमी कर रहा था। रात के दस बजने म अभी पाँच मनट थे। रह-रह कर अंकुर क आँख द वार घड़ी पर जा रही थ । जैसे उसे कसी का इंतजार हो। ऊपर वाले कमरे म सो नया भी दस बजने का इंतजार कर रही थी। घर म स ाटा था। रात का खाना खा कर नेता जी अपने कमरे म चले गए थे और र जो अभी कचन म नेता जी के लए ध गम कर रही थी। इतने म टे बल के पास रखा आ फोन बज उठा। एक, दो और तीन बार बजने के बाद फोन शांत हो गया। घंट क आवाज ऊपर वाले कमरे म भी गई जसे सुन कर सो नया ने भी चैन क साँस ली और भगवान का शु या अदा कया। घंट बजने के बाद नीचे अंकुर ने खुशी से अपना मोबाइल चूमा और सोफे पर बैठ गया। “वाह रे, लेटे ट टे नोलॉजी।” अंकुर के ये श द अपने आप म एक रह य लए ए थे।

35

घड़ी क सुइयाँ टक-टक करके घूमती रह । आठ से नौ, नौ से दस दे खते-ही-दे खते बज गए। सा हल शाम आठ बजे से घड़ी को एकटक दे ख रहा था—‘3 मस कॉल सो नया ने सुनी ह गी या नह …और अगर नह सुनी ह गी…तो वह परस पाँच बजे तक कूल के पास कैसे प ँचेगी? ऐ खुदा, मदद, मदद।’ सा हल के दमाग म सो नया के अलावा इस व कुछ नह था। वह अपने याल म खोया आ अपने कमरे म लेटा था, तभी बाहर कुछ आवाज सुनाई द । “कौन?” सा हल ने तेज आवाज म पूछा। “म… ँ, बेटा।” चचा बोले, “सभी लोग बाहर पहरेदारी क तैयारी कर रहे ह, इसी लए लाठ -डंडे लेने के लए आया था। आओ, तुम भी चलो।” सा हल मना न कर सका, मगर उसका दल सहमा आ था— य क वह ‘लाठ और डंड ’ का राज जान चुका था। अपनी जैकेट क चेन गदन तक ऊपर करते ए वह कमरे से बाहर चला गया। बाहर काफ लोग जमा थे। ‘कैसे पहरेदारी करनी है?, कौन कहाँ खड़ा होगा? अगर ऐसा आ तो तुम या करोगे…और अगर वैसा आ तो तुम या करोगे?’ इ ह सब बात पर गु तगू जारी थी। गाँव के आने-जाने वाले हर रा ते पर पहरेदारी करनी थी। सा हल और कुछ नौजवान जनम रा शद और फरोज भी थे—क ड् यूट गाँव के पास प के रा ते पर लगाई गई जो क सीधा कूल से जा कर मलता था। सभी नौजवान अपनी-अपनी न त जगह पर प ँच गए। सभी के मोबाइल फुल-चाज थे। कुछ लड़क ने कंबल सर पर लेते ए ओढ़ा आ था, कुछ के हाथ म ला ठयाँ थ और कुछ के

कंबल के नीचे कट् टे और बं क थ । सा हल जान-बूझ कर इनसे अंजान बना रहा। ठं ड पूरे जोर पर थी। गे ँ क फसल के ऊपर छाई धुँध क चादर और सफेद होती जा रही थी। ठं ड से बचने के लए कुछ प े और टह नयाँ जलाई ई थी। सा हल धुँध म ढँ के ए कूल को दे ख रहा था। ‘परस शाम पाँच बजे मुझे यह सो नया से मलना है…वह आ भी पाएगी या नह …’ “सुहैल भाई, उधर!” धीरे से फरोज बोला, सा हल ने दे खा, खेत के पीछे कुछ हलचल हो रही थी। अपने होठ पर तजनी उँगली रखकर रा शद ने चुप रहने का इशारा कया। थोड़ी दे र बाद फर हलचल ई, इस बार कुछ आवाज भी सुनाई द । सारे नौजवान सावधान हो चुके थे। रा शद ने फरोज को बाक लड़क को फोन करने का इशारा कया। सभी लड़के अपने घुटन पर तैयार थे— कसी भी अनहोनी घटना से नपटने के लए। सा हल ने एक मट् ट का ढे ला उठाया और आवाज आने वाली दशा म फक दया। ढे ला गरने के साथ ही कसी जानवर के भागने क आवाज ई। “शायद नीलगाय थी!” एक फुसफुसाया। “हो सकता है! पर हम…सावधान रहना होगा, हम खबर मली है क आज ज र कुछ-न-कुछ होगा।” सरे ने जवाब दया। सारी रात पहरेदारी जारी रही। इस बीच कोई भी अनहोनी घटना नह ई। सुबह हो चुक थी। सभी युवक खुदा का शु या अदा करते ए अपने-अपने घर लौटने लगे। दोपहर तक आराम करने के बाद, फर से मी टग शु हो गई। फर वही नजारा था। चारपाइय क कतार, उन पर बैठे ए लोग और अपने गाँव को होने वाले संभा वत दं ग से बचाने क चचाएँ। “खबर तो प क थ न?” एक अधेड़ ने एक खबरी से पूछा। “जी।” “ फर रात म, ऐसा कुछ भी नह आ—जैसा तुमने बताया था।” “ये तो पता नह चचा। …पर खुदा का शु है क दं गा नह आ और हम सभी लोग सलामत ह। रातभर सभी जागते रहे—थोड़ी मेहनत क कोई गम नह । सब कुछ ठ क रहा, बस इसी का सुकून है दल को” फर खबरी ने अधेड़ श स से पूछा, “आप या कहते ह—इस बारे म?” “हमला नह आ—ठ क है। मगर य ? जब तु हारी खबर प क थी तो कुछ-नकुछ तो होना चा हए था।” फर ये अधेड़ श स सभी क ओर मुखा तब आ, “कह ऐसा तो नह क उ ह हमारी तैयारी क खबर मल गई हो!” “हो सकता है।” सा हल के चचा ने समथन कया, “ कसी को जा कर दे खना होगा—टोह लेनी होगी। उधर या- या चल रहा है।” “जी आप ब कुल सही कह रहे ह।” चचा ने सा हल क ओर दे खते ए कहा। चचा को सा हल और सो नया क मुह बत क कोई जानकारी नह थी। वे बोले, “सुहैल

बेटा!”

“जी। चचा।” “तुम उधर—गाँव म, जा कर कुछ पता लगाओ। तु ह तो वहाँ भैया जी और नेता जी भी जानते ह—डरने क कोई ऐसी-वैसी बात नह है।” “जी। आज शाम तक म पता करके बताता ँ।” सा हल का मन सो नया के गाँव जाने क बात सुनकर ही तेजी से धड़कने लगा—अपने चेहरे पर उभरने वाले भाव को सा हल ने कट नह होने दया। मी टग लगभग आधा घंटा और चली। फर वही बात—पहरेदारी, लाठ -डंडे और कट् टे -बं क। रात को फर पहरेदारी करना और कसी भी अनहोनी घटना से नपटने के लए तैयार रहना। सा हल का दल तो बस इसी उ मीद म था क सा हल सो नया के गाँव जा कर, सीधा सो नया से मलेगा। मगर हालात ऐसे ब कुल नह थे जैसे क दखाई दे रहे थे। ऊपर से सामा य से दखाई दे ने वाले गाँव के माहौल म उस तरफ भी चता और डर का बज था—बदला लेने क तैयारी थी। मी टग के बाद, सा हल ने प सर टाट क और टोह लेने के लए नकल पड़ा, ले कन उसका मन तो सो नया से मलने को बेताब था। “भैया जी, भैया जी।” एक आदमी तेजी से घर म दा खल आ, “बाहर काफ दे र से एक लड़का खड़ा है, मलना चाहता है आप से। कौन है, ये पता नह ।” “ कतनी दे र हो गई है उसे खड़े ए?” अंकुर ने पूछा। “लगभग डेढ़ घंटा।” “और तुम मुझे अब बता रहे हो। य ?” “भैया जी, आप खाना खाने के बाद अपने कमरे म आराम करने चले गए थे, तो आपको ड टब करना ठ क नह समझा। सरा, हम लगा क ये लड़का थोड़ी दे र म अपने आप चला जाएगा।” “ठ क है, पर यान रखो आगे से कुछ भी अजीब लगे तो तुरंत बताना, ड टबव टब का कोई बहाना नह चलेगा।” “जी।” लड़का बोला, “उसका या क ँ ?” “अभी बताते ह।” खड़क से सो नया बाहर का नजारा दे ख रही थी। यही उसक दनचया बन चुक थी। खड़क से बाहर का आँगन, चारद वारी और चारद वारी से लगती ई सड़क सभी कुछ दे खा जा सकता था। ‘ये कौन है? यहाँ य खड़ा है?’ सो नया ने अपने आप से पूछा। एक लड़का काला कुता, सफेद टोपी और काई लू ज स पहने ठ क सो नया क खड़क के बाहर खड़ा था। चेहरे पर शेव बढ़ ई थी। बाल लंबे और घुँघराले से थे। आँख पर बड़े े म का च मा चढ़ाया आ था और एक मह न कलर क शॉल ओढ़ ई थी। यह लड़का

इधर-उधर दे ख कर बार-बार खड़क क तरफ ही दे ख रहा था। जैसे कसी को ढूँ ढ़ रहा हो। सो नया के दल म कई सवाल उठे । वह आस-पास के गाँव म होने वाले दं ग से प र चत थी। ‘कह हमारे घर पर हमला करने क तैयारी तो नह हो रही। दे खने म तो यह मु लम लग रहा है—आ खर इधर य खड़ा आ है? कह सरे गाँव वाल ने इधर क खोज-खबर लेने के लए तो नह भेजा।’ सो नया अभी सोच ही रही थी क दरवाजे पर ह रया ने द तक द । “ ब टया, कुछ और चा हए या?” “नह ।” सो नया ने वह खड़क के पास से ही जवाब दया, “मने खाना खा लया है।” “तो ब टया, बतन पकड़ा दो।” ह रया ने धीमी आवाज म कहा। “आप कए म आती ँ।” सो नया ने खड़क छोड़ी और हॉल क तरफ खुलने वाली खड़क से झूठे बतन ह रया चाचा को पकड़ते ए बोली, “चाचा। आपने खाना खाया क नह ?” “बस ब टया अब खाना खाने ही जा रहा ँ।” “रोशनी कैसी है? उसे भी ले आया करो। यहाँ तो मुझे कैद क तरह बंद कर दया है। कसी से कुछ बात भी नह कर पाती।” सो नया को कल पाँच बजे कूल प ँचने क बात याद थी, शायद वह रोशनी के ज रए कुछ मदद चाहती थी। “ठ क है ब टया। कल सुबह ही अपने साथ ले आऊँगा।” “जी। चाचा” सो नया कृत ता के भाव चेहरे पर लए बोली। “तुम भी हमारी रोशनी जैसी ही तो हो।” भाव को समझते ए ह रया बोला। ये बात सुन कर सो नया थोड़ी भावुक हो गई। वह वापस खड़क पर आ गई और सामने खड़े लड़के को यान से दे खने लगी। ‘इसे तो कह दे खा आ है, कहाँ दे खा था इसे?’ सो नया सोचने लगी। ‘अरे ये वही है जो चुनावी दन म आया करता था। भैया जी भी इसे जानते ह। … पर ये यहाँ या कर रहा है।’ दोबारा जब सो नया खड़क पर आई तो उस लड़के ने खड़क क तरफ अपना हाथ उठा कर अपनी हथेली को खोला और बंद कया। सो नया को कुछ समझ नह आया। ये एक ऐसा इशारा था जैसे क कोई कसी को इशारे से कसी व तु का रेट बता रहा हो—पाँच पए। पाँच पए। ‘पाँच, पाँच!’ आ खर ये मुझे या कहना चाहता है। इतने म घर से एक आदमी नकला और उस दाढ़ वाले के पास प ँच कर कुछ बातचीत करने लगा। दो मनट बाद वह आदमी, दाढ़ वाले लड़के से वह इंतजार करने का इशारा करके वापस अंदर आ गया। उधर सो नया अपने वचार म डू बी ई इस लड़के के ‘पाँच’ के इशारे का मतलब समझने म लगी थी। ‘कह इसे सा हल ने तो नह भेजा।’ सा हल का याल मन म आते ही एकाएक सा हल का चेहरा सामने आ गया। वह बड़बड़ाई, “हे मेरे भगवान। ये तो सा हल ही है।”

सो नया हैरान थी क सा हल यहाँ य और कैसे प ँच गया। फर उस दाढ़ वाले लड़के यानी क सा हल ने पाँच का इशारा कया। जवाब म सो नया ने भी पाँच का इशारा कया। दल क आवाज दल ने सुन ली थी। सा हल और सो नया को बस अब कैसे भी कल शाम पाँच बजे कूल तक प ँचना था। सो नया ब त खुश थी। शबनम का मैसेज सो नया को मल चुका है—ये जानकर सा हल भी ब त खुश था। इससे पहले क दोन कुछ और इशारेबाजी करते, घर के अंदर से वह आदमी आया और सा हल उसके साथ घर के अंदर चला गया। सो नया को लगा क शायद अंकुर के आद मय ने ये इशारेबाजी दे ख ली है और अब वह इसका बदला सा हल से लगे। ये सोच कर सो नया घबरा गई। कलेजा मुँह को आने को था। दोन हाथ को जोड़कर वह ई र से सा हल क सलामती क ाथना करने लगी। दोन आँख से आँसु क धाराएँ बह रही थ । कमरे म दो पल पहले छाई ई खुशी—एकदम से गायब हो गई थी। सो नया अंकुर को जानती थी, उसक बहन कसी लड़के से बात करे, ये अंकुर को कतई बदा त नह था। इसी सल सले म अंकुर एक लड़के का सर भी फोड़ चुका था। “हे भगवान! सा हल क र ा करना!” बस यही श द सो नया के मुँह से नकल रहे थे।

36

सो नया खड़क छोड़ कर, तुरंत कमरे के दरवाजे क ओर दौड़ी। दरवाजे के पास खड़े हो कर वह नीचे हॉल म होने वाली बातचीत सुनने क को शश करने लगी। अभी पलभर पहले ही एक लड़का सा हल को अंकुर से मलवाने के लए अंदर बुला कर लाया था। “हैलो, कैसे हो? ब त दन बाद दखाई दए।” अंकुर ने सा हल से पूछा। “भैया जी, कल ही द ली से आया ।ँ यूज म सुना क दं गा हो रहा है। इसी लए गाँव म चचा क खैर-खबर लेने के लए आ गया।” सा हल बोला। “अ छा कया! ऐसे व म अपने चचा क मदद के लए आ गए। उनका याल तुम नह रखोगे तो और कौन रखेगा?” अंकुर सा हल क वेशभूषा और उसक ‘बॉडी ल वेज’ पढ़ते ए बोला, “इधर कोई वजह नह , जसके लए चता क जाए। तुम आराम से अपने गाँव जाओ, कसी तरह क कोई फ मत करो। कोई ऐसी-वैसी बात होगी तो हम तु ह मैसेज भजवा दगे।” “जी। भैया जी, चलते ह।” हॉल म चार तरफ दे खते ए सा हल बोला, “आपका ऐसा व ास के साथ कहना ही—हमारे लए काफ है।” शायद सा हल क नगाह कसी को ढूँ ढ़ रही थ । अंकुर ने सा हल के पीछे खड़े लड़के को हाथ हला कर इशारा कया। कमरे म खामोशी छा गई। सो नया को नीचे कसी के बातचीत करने क आवाज सुनाई दे रही थ । आवाज साफ नह थ । इसी लए वह सुनने क को शश म थोड़ी दे र खड़ी रही। कोई 5-6 मनट

बाद आवाज भी सुनाई दे नी बंद हो गई। सो नया तेजी से वापस खड़क के पास प ँची। खड़क के बाहर न तो बाइक थी और न ही सा हल। ‘आ खर सा हल कहाँ गया? कह भैया जी ने…कुछ’ सो नया के दमाग म इस तरह के याल का बवंडर घूम रहा था। वह काफ दे र तक खड़क पर खड़ी रही—सा हल को बाहर जाते ए दे खने के लए। मगर सा हल नह दखा। रात के नौ बज चुके थे। सो नया ने खाना भी वह खड़क के पास खड़े-खड़े खा लया। एक पल के लए भी उसक नगाह खड़क से नह हट , मगर सा हल को घर से बाहर नकलते ए नह दे खा। आसमान से ओस गर रही थी। बढ़ती ठं ड के चलते सो नया ने खड़क बंद कर द । मगर वह खड़क के पास ही खड़ी रही। खड़क के शीश के पार दे खना मु कल हो रहा था। कल शाम को पाँच बजे कूल तक जाना है—पर कैसे? सा हल वहाँ पर प ँच भी पाएगा या नह ? मुझे सा हल पर भरोसा करना होगा—इसके सवा अब कोई चारा नह बचा है। कैसे भी करके मुझे वहाँ जाना ही होगा। वचार का ये सल सला एकदम से क गया। नजारा ही कुछ ऐसा था… रात के गहरे अंधकार म, आँगन म एक ब ब ही रोशनी का सहारा था। ब ब क पीली रोशनी इतनी कम थी क वह घर क चारद वारी तक भी नह प ँच पा रही थी। गाँव म स ाटा था। सभी रा त पर चार-चार युवक पहरेदारी कर रहे थे। इधर भी हमले क आशंका थी। घर के आँगन म एक इंसानी परछाई-सी दखाई द । ‘इतनी रात गए, ये कौन घर म दा खल हो रहा है।’ सो नया ने सोचा। ‘कह ये सा हल तो नह । हे भगवान सा हल है तो ये सा हल क ब त बड़ी गलती होगी, उसे ऐसा नह करना चा हए था आ खर कल शाम को तो मल ही रहे थे—हम।’ जरा गौर से दे खने पर सो नया का डर गायब हो गया। इंसानी परछाई जैसे ही कंबल से बाहर आई, सो नया हैरानी से बड़बड़ाई, “ये तो रोशनी है।” ‘रोशनी इस व …’ सो नया सोच ही रही थी क घर के आँगन म एक और साया दखाई दया। दोन पाट कायालय म चले गए। ‘अब या होगा!’ रोशनी वह खड़क के पास खड़ी रही। सो नया ने अपने कमरे क लाइट बंद कर द थ । करीब बीस मनट बाद रोशनी नकली और बाहर चली गई। थोड़ी दे र बाद वह साया कायालय से बाहर नकला और घर म दा खल हो गया। अगली सुबह। सो नया हरा सूट पहन कर तैयार थी। एक पॉलीबैग म कुछ ज री कागजात और एक जोड़ी कपड़े वह रात को रखकर ही सोई थी। आज क सुबह-एक नई सुबह थी। घर का माहौल थोड़ा खुशगवार था, मौका

पाकर र जो सो नया से मलने ऊपर आ गई थी। र जो ने अपनी बेट को दे खा, खुशी से वह मु कुरा उठ मगर अगले ही पल उसक आँख नम हो ग —एक खूबसूरत परी कैद म जो थी। सचमुच सो नया आसमान से उतरी ई कोई परी ही लग रही थी। “कैसी है मेरी ब ची?” “म मी।” “हाँ-हाँ बोल बेट ।” रोती ई र जो बोली। सो नया ने अपने हाथ खड़क से बाहर नकाले ए थे। सो नया क हथे लय को अपने होठ से चूमते ए र जो बोली, “भगवान ने चाहा तो सब ठ क हो जाएगा। भगवान सब क सुनते ह।” आशा भरी नगाह से सो नया अपनी माँ को दे खती रही। इतने म नीचे से कसी के बातचीत करने क आवाज आ । र जो तुरंत वह प ँची। ह रया अपनी बेट रोशनी के साथ था। “राम-राम। भौजी।” “राम-राम। अरे! आज तो रोशनी ब टया भी है। कैसी हो ब टया?” र जो ने पूछा। “अ छे ह ताई जी। वो द द से मले नह न, इतने दन —ब त याद आ रही थी, इसी लए मलने चले आए। हम जाएँ ऊपर।” बड़ी उ मीद से रोशनी ने पूछा।” “हाँ-हाँ। जाओ न…” रोशनी ने मुड़कर दे खा तो पीछे खड़ा अंकुर बोला, “तु ह कसने मना कया।” रोशनी और अंकुर क नगाह मल । आँख -ही-आँख म कुछ इशारा आ। रोशनी धीमे से मु कुराई और ऊपर चली गई। “आइए चचा।” अंकुर ह रया से बोला, “बै ठए ना ता-वा ता कए क नह ।” “कर लए ह। भैया जी।” “म मी थोड़ा चाय बना द जए न। सद ब त है।” अपनी माँ को दे खते ए अंकुर बोला, “और हाँ, दो चाय ऊपर भी भजवा दे ना।” “अरे भैया जी, कैसी बात करते हो आप भी।” हैरान होकर ह रया बोला, “हम भौजी के लए चाय बनाएँगे या भौजी हमारे लए। आप तो हम कह का नह छोड़गे। आप क न कर माल कन हम जाते ह रसोई घर म।” ह रया रसोई क तरफ बढ़ा ही था क अंकुर ने बाँह पकड़ कर ह रया को अपने पास बैठा लया। दोन बैठ कर बात करने लगे। ऊपर रोशनी और सो नया अकेले थे। “द द ।” रोशनी धीमे से बोली। “कौन?” सो नया खड़क के पास आई, “अरे, रोशनी तुम! कहो कैसी हो?” “हम अ छे ह द द , एक बात कह।” “हाँ-हाँ।” “आज आप ब त सुंदर लग रहे हो। कसी परी क तरह…” सो नया चुप थी, रोशनी से बात क ँ या न क ँ

“एक बात पूछ द द , अगर बुरा न मानो तो…” “पूछो न, म यूँ बुरा मानने लगी भला।” “आपको यहाँ ऐसे य रखा है, और आप को पछली बार मोबाइल यूँ चा हए था। हम बताइए हम आपक पूरी मदद करगे। हम आपक भावना को समझते ह। आ खर हम भी एक लड़क ह।” क णामय नगाह से सो नया ने रोशनी को दे खा। रोशनी बोली, “अगर मोबाइल चा हए तो ये ली जए—पर कसी को बताना मत।” रोशनी ने एक लेटे ट मॉडल का माट मोबाइल फोन सो नया के हाथ म थमा दया। सो नया को महँगा मोबाइल दे ख कर थोड़ा आ य आ, पहले तो इस लए क इतना महँगा फोन खरीदना रोशनी के बस क बात नह थी, सरा सो नया को रोशनी पर शक था क रोशनी और अंकुर के बीच कुछ-न-कुछ चल रहा है। “ये मोबाइल सेट तो महँगा है।” सो नया बोली। “हाँ ये हमारा नह है, हमारे एक दो त ने हम दया है। ले कन द द आप ये कसी को बताना मत, लीज।” “अरे पगली, म य बताने लगी। म एक कॉल कर लूँ। तुम यह को।” खड़क छोड़कर सो नया पलंग पर आ कर बैठ गई। उसने पहले सा हल का नंबर डायल कया—नंबर मला नह । फर दोबारा कुछ दे र के बाद वही नंबर डायल कया। इस बार भी नह मला। सो नया ने इंतजार करना ही बेहतर समझा। वह मोबाइल सेट दे खने लगी। मोबाइल सेट म रोशनी और अंकुर क कुछ त वीर और मैसेज थे। सो नया हैरान ई—उसका शक यक न म बदल गया। “द द ।” रोशनी ने बाहर से पुकारा। “आई।” सो नया ने एक बार फर सा हल का नंबर मलाया, इस बार भी नतीजा वही था। थक-हार कर सो नया ने शबनम को कॉल कया। मगर भा य से शबनम ने भी फोन नह उठाया। “ये लो।” मोबाइल वापस करते ए सो नया ने पूछा, “ या तुम बताओगी, ये मोबाइल कस दो त ने दया है?” रोशनी को ऐसे सीधे क अपे ा नह थी। वह सकपकाई, फर सहज होने क को शश करते ए बोली, “द द , लीज जाने द जए न!” रोशनी ज द से सी ढ़य क तरफ बढ़ । “हम तु हारी मदद कर सकते ह इसम।” पीछे से सो नया ने आवाज लगाई। रोशनी के कदम वह क गए। वह मुड़ी, वापस खड़क पर लौट , और सो नया क तरफ दे खा। “कैसे?” “पहले उस दो त का नाम तो बताओ, हम जानते ह पर तु हारे मुँह से सुनना चाहते ह।”

नजर झुका कर रोशनी बोली, “आपके भैया जी, अंकुर जी ही हमारे दो त ह। हम उनसे ब त यार करते ह।” “वो तो हम जानते ह और कल रात दे ख भी चुके ह।” रोशनी क आँख फट -क -फट रह ग । शम के मारे वह सो नया से नजर भी नह मला पा रही थी। अगर धरती फट जाती तो नःसंदेह रोशनी उसम समा जाती। रोशनी को ब त आ य आ क सो नया सब कुछ जानती है। वह चुपचाप नजर झुकाए खड़ी रही। “ या भैया जी भी तुमसे यार करते ह?” सो नया ने पूछा। “हाँ जी।” “तु ह कैसे पता?” “द द , हम आपको बता नह सकते, बस हम जानते ह क वे भी हमसे यार करते ह।” रोशनी बड़े ही व ास से बोली, “अगर यार नह करते होते तो या इतना महँगा मोबाइल और ये ैसलेट य दे त।े ” ैसलेट दखाते ए रोशनी बोली। इस बार सो नया भी हैरान थी। “और या- या दया है भैया जी ने तु ह।” “कई सारे टग काडस, सोने का हार और अँगूठ । एक दल वाला टे डी बीयर— ब त-सी चीज द ह—द द । इसी लए तो कह रहे ह क वे भी हमसे ब त यार करते ह।” रोशनी का व ास दे खकर सो नया कुछ न बोल पाई। इतनी दे र म नीचे से र जो ने आवाज लगाई, “रोशनी बेट , चाय ले जाओ।” “जी, ताई जी। आते ह।” रोशनी नीचे आई, दे खा उसके पापा और अंकुर कुछ बात कर रहे ह। कुछ अ प से वा य रोशनी ने सुने— “चाचा जी यान रखना। हमारी इ जत आपक इ जत है। अगर उ ह ने दं गा करके कुछ ऐसा-वैसा करने क सोची तो हम ट का जवाब प थर से दे ना होगा।” “जी, भैया जी। अगर हमारी कसी भी बेट को जरा-सा भी कुछ आ तो सभी गाँव वाले उनक ट-से- ट बजा दगे।” ह रया ने जवाब दया। ‘कौन कुछ कहेगा हम? कसक ट-से- ट बजा दगे।’ रोशनी ये सोचती ई वह चाय ले कर ऊपर गई। कुछ मनट म चाय पीकर वह नीचे आ गई। वापस घर जाते ए, रोशनी और अंकुर क नजर फर मल । “जरा यान से जाना ब टया।” ह रया ने समझाते ए रोशनी से कहा। “जी, पापा जी।” कहकर रोशनी घर से बाहर चली गई।

37

आज सो नया के कमरे के बाहर कोई आदमी नह था। घर म अभी तक तो माहौल खुशनुमा बना आ था। र जो भी सो नया से मलने आ गई थी। शाम होने वाली थी। घर म कोई भी नह था। आज सो नया को कैसे भी कूल के पास प ँचना था। काफ दे र से खड़क के पास खड़े हो कर सो नया नीचे के माहौल का जायजा ले रही थी। ‘सब कुछ ठ क है, बस भगवान कसी तरह दरवाजा खुल जाए और म घर के बाहर नकल जाऊँ।’ अपने मन म घर से भागने क पूरी ला नग कर चुक थी, आ खरी बार फर सो नया ने अपने पॉलीबैग को चैक कया। सो नया दरवाजे तक प ँची। उसने ह का-सा ध का दया। दरवाजा बंद ही रहा। सो नया ने एक बार फर ध का दया, दरवाजा खुल गया। ‘शायद आज अंकुर भैया के आदमी कु डी लगाना भूल गए, चलो अ छा ही आ। भगवान भी हमारे साथ है। बस कसी तरह वहाँ प ँच जाऊँ।’ सो नया दबे पाँव नीचे प ँची, इधर-उधर दे खा। हॉल म भी कोई नह था! सो नया सीधे दरवाजे तक प ँची, सो नया के एक ही ध के से दरवाजा तेज आवाज के साथ खुल गया। आवाज कसी को भी न द से जगाने के लए काफ थी। सो नया ने बाहर नकल कर, दरवाजा भड़का दया। बस अब चारद वारी को पार करना था। तेजी से चलते ए वह चुनावी कमरे के पास जा कर छप गई।

चुनावी कमरे के पीछे छपी ई, सो नया क हालत उस हरणी जैसी हो गई थी, जसके पीछे शकारी पड़ा आ हो। सद के मौसम म भी वह पसीने से सराबोर थी। तभी दरवाजा खुलने क आवाज ई। कोई घर से बाहर नकला था। ये र जो थी, वह आँगन म चहलकदमी करने लगी। गाँव का माहौल तो वैसे ही ठ क नह थी, रोजाना ही दं गा भड़कने का डर लगा रहता था। इसी आशंका से र जो भी घबरा रही थी। ‘घर म कोई घुस तो नह गया है’ यही सोचते ए र जो ने आँगन का एक च कर लगा कर चैक करने क सोची। अभी वह चुनावी कायालय तक ही प ँची थी क कसी के साँस लेने क आवाज सुनी। र जो के कदम क आवाज भी सो नया ने सुनी। ‘कौन होगा?’ दोन यही सोच रहे थे। ‘अगर कोई दं गाई आ तो’ र जो ये सोचकर कसी भी अनहोनी से नपटने के लए सावधान हो गई। सरी तरफ सो नया को कुछ भी नह सूझ रहा था। वह बस अपनी जगह छपी रही। र जो द वार के पास प ँची, “कौन! कौन है वहाँ पर?” सो नया ने अपनी माँ क आवाज सुनी। थोड़ा चैन मला। ‘ले कन जाने तो माँ भी नह दे गी।’ सो नया के मन म वचार आया। “सोनू, तुम इधर या कर रही हो और तुम नीचे कैसे आ गई।” र जो बोली। सो नया का हाथ पकड़ कर, र जो सो नया को वापस घर म ले आई। सो नया के सामने द वार घड़ी लगी थी, घड़ी म समय दे खा, ठ क पौने पाँच बजे थे। सो नया अपनी माँ से नजर नह मला पा रही थी। एक भी श द, उसके मुँह से नह नकला। ले कन आँसू तो उसक आँख से नकल ही गए। “ या आ मेरी ब ची…” र जो ने हमदद से पूछा। जवाब म सफ सो नया क खामोशी थी। “अरे, अपनी माँ को भी नह बताएगी। कहाँ जा रही थी यूँ। बता बेट , कम-से-कम मुझे तो बता। तुझे मेरी कसम।” कसम क बात सुनते ही सो नया रोने लगी। दल क बेचैनी आँसु के ज रए बाहर आने लगी। सो नया को रोता दे ख कर र जो ने उसे दलासा दया और गले से लगा लया। “बता दे कुछ भी दल म मत रख। हमसे जो कुछ बन पड़ेगा हम करगे। तु हारी कसम, बाल गोपाल क कसम।” सा हल भी अपनी घड़ी को बार-बार दे ख रहा था। ठ क 4 बज रहे थे। पछले दो घंट से वह एक कौमी मी टग म अपने चचा के साथ बैठा आ था। मी टग का मु ा-कौमी इ हाद (एकता), हफाजत और तालीम था। “चचा, मुझे आज ज री काम है। म आपके साथ नह चल पाऊँगा।” दो घंटे पहले सा हल ने यही जवाब दया था, जब चचा ने सा हल को अपने साथ चलने को कहा था। “सुहैल। मेरे ब चे, ये मी टग तु हारे लए ही है। तुम नौजवान हो, आस-पास के

गाँव के नौजवान के रोल मॉडल हो। तुम सभी को तो आगे समाज को राह दखानी है।” चचा ने जवाब दया। सुहैल उदास हो गया। पर, वह कुछ बोला नह । उसका चेहरा दे खकर चचा ने पूछा, “अ छा। बताओ कतने बजे तक तु ह जाना है?” “पाँच बजे।” सुहैल को लगा क चचा उसक बात मान जाएँग।े “तो ठ क है, ऐसा करो तुम ठ क 4.30 बजे नकल जाना।” चचा ऐसे बोले जैसे क बड़ा अहसान कया हो। अब टाइम पौने पाँच बजे का था। बार-बार घड़ी दे खते ए सा हल बेचैन हो रहा था। चचा साथ म ही थे। वह बोले, “सुहैल बेटा। तुम नकलो, तु ह कोई ज री काम था ना।” “जी चचा।” सुहैल के चेहरे क उदासी थोड़ी र ई, “म नकलता ँ, चचा। खुदा हा फज।” “जरा यान से जाना। खुदा हा फज” जाते ए चचा बोले। सा हल ने अपनी बाइक टाट क और चल पड़ा। कूल के पास, सड़क ब कुल सुनसान थी। पाँच बज चुके थे। दोन को अब तक यहाँ प ँच जाना चा हए था। खेत म छपे ए एक गुमराह आदमी ने सरे से कहा। “कोई बात नह । थोड़ा और इंतजार कर लेते ह। याद है न लड़क को कुछ नह होना चा हए।” सरा आदमी बोला। “हाँ-हाँ, याद है।” करीब बीस मनट तक कोई भी नह आया। अंधेरा हो चुका था। हवा तेज चल रही थी, लगता था क कभी भी बा रश हो जाएगी। सड़क के दोन ओर कुछ गुमराह लोग कसी का इंतजार कर रहे थे। इतने म र से एक बाइक आती दखाई द । बाइक पर सवार लड़के ने काला हे मेट लगाया आ था। साथ म एक लड़क भी थी, लड़क ने भी काला हे मेट लगाया आ था। लड़क ने हरे रंग का सूट पहना आ था। धीरे-धीरे बा रश होने लगी थी। एक आदमी ने इशारा कया और सभी बाइक सवार पर टू ट पड़े। बाइक सवार पर लाठ -डंड क बरसात हो गई। इतने म एक आदमी ने हरा सूट पहनी ई लड़क को एक तरफ होने को कहा। लड़क च लाती रही, “हम छोड़ दो लीज। हमने या बगाड़ा है आपका? आपको पैसा चा हए, तो ले लो।” लड़क ने अपना बैग और हार आ द गहने सभी उनको दे दए। “हे मेट उतारो।” एक आदमी गुराया। लड़क ने डरते ए हे मेट उतार दया। वह च लाई, “ लीज भगवान के लए हम ब श दो।” “भगवान! या नाम है तु हारा?” “राधा।” “कौन से गाँव से हो?”

“लखनपुरा।” लड़क ने डरते ए जवाब दया। “अरे! कोई इसे, इसके गाँव छोड़ आओ और सुनो, राधा! खबरदार कसी को कुछ भी बताया तो।” राधा क आँख ने आ ासन दया। तभी एक आदमी जोर से बोला, “लगता है ये गया काम से। अपना काम हो गया। चलो चल।” सभी लड़के वहाँ से नकल गए। सड़क पर बा रश म एक बाइक और एक लड़का पड़ा आ था, बेजान-सा। अगले दन, ये खबर आस-पास के गाँव म प ँच गई। ‘एक बाइक सवार, दं गाइय का शकार बना।’ बाइक सवार, सा हल के गाँव का एक मु लम नौजवान ही था। सा हल जब कूल के पास प ँचा तो लड़का तड़प रहा था। सा हल ने तुरंत फोन कया और जीप म लेकर ज मी लड़के को अ पताल प ँचा दया। सा हल पूरी रात अ पताल म ही रहा। सो नया से मलना है, ये बात भी सा हल को याद नह थी। रात से ही सा हल को लगातार फोन आ रहे थे। सा हल को पता चल चुका था क बाइक सवार पर धोखे से हमला आ है। सा हल ये भी जान चुका था क वे लोग उसका ही इंतजार कर रहे थे। ‘मगर उ ह पता कैसे चला क म यहाँ आ रहा ँ। कह सो नया ने तो…। नह -नह , सो नया ऐसा नह कर सकती। फर उ ह ये खबर कैसे मली?’ सा हल के दमाग म कई तरह के वचार उमड़ रहे थे। फर आने वाले फोन कॉ स ने सा हल के वचार को राह दखाई। सा हल अब गु से म था, उसके गाँव का एक जवान, बेगुनाह जवान—धोखे म मारा गया। ‘कुछ तो करना होगा।’ सा हल पर ब त दबाव था। लड़के क हालत थर नह थी कभी भी कुछ भी हो सकता था। सभी आ कर रहे थे। शाम तक खबर आई क डॉ टर ज मी लड़के को बचा नह पाए। पूरे गाँव म गु सा था। सभी बदला चाहते थे। सा हल को एक उड़ती-उड़ती खबर मली क बाइक सवार लड़के के साथ एक लड़क भी थी। “कौन थी वह लड़क ?” सा हल ने एक लड़के से पूछा। “पता नह भाई।” “ कस गाँव क थी, कुछ नाम, अता-पता कुछ भी। कोई तो जानकारी होगी तु ह।” “भाई बस इतना पता चला है क लड़क ने हरा सूट पहना आ था।” “हरा सूट!” सुन कर सा हल को च कर आ गए। सा हल गरने ही वाला था क साथ खड़े एक युवक ने सा हल को संभाल लया।

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“वह लड़का मर गया?” अंकुर ने च तत वर म पूछा जैसे कुछ पता ही न हो। अंकुर नीचे हॉल म ही था। भले ही सो नया फर से अपने कमरे म थी, कतु सो नया क पूरी को शश थी क वह नीचे हॉल म होने वाली बातचीत को सुन पाए। “जी, भैया जी। पहले उसे ज मी हालत म अ पताल ले जाया गया, वह पर आज तड़के उसने दम तोड़ दया।” धीमे वर म उस आदमी ने सारी घटना क जानकारी द । “ओह! ब त बुरा आ। उसे मरना नह चा हए था।” अंकुर थोड़ा का, कुछ सोचा और फर एक लंबी साँस ले कर बोला, “शायद उसक क मत म यही था। तुम जाओ, सभी से कह दो क आज रात तैयार रह। ‘वे’ लोग कुछ-न-कुछ ज र करगे।” रात होने को थी। एक अजीब-सी शां त घर म का बज थी, जसके चलते नीचे क सारी बात ऊपर तक सुनाई दे रही थ । ‘हे मेरे भगवान! कौन मर गया? कौन ज मी आ था? कसने ज मी कया होगा —इन सबके पीछे या कारण होगा।’ अ न वचार क एक शृंखला सो नया को परेशान कए ए थी। “भैया जी।” आदमी बाहर नकलने को ही था क वह मुड़ा और बोला, “उसके साथ एक लड़क थी— या लड़क थी! अगर वह ह न होती, तो न जाने या होता उसके साथ। हमारे आद मय ने बताया क ब त सुंदर थी वह लड़क ।” “कुछ कया तो नह न उसके साथ।” गु से म अंकुर बोला। “नह , कोई बता रहा था क लड़क को उसके गाँव छोड़ आए।” लड़के ने भरोसा दलाया। “खैर छोड़ो। तुम सबको आज रात सतक रहने को कह दो।”

तभी ऊपर एक जोरदार आवाज ई। “कौन! कौन है ऊपर?” अंकुर तेजी से ऊपर दौड़ा। दरअसल यादा यान से सुनने क को शश म सो नया दरवाजे से टकरा गई। “सोनू!” अंकुर आ यच कत था, “तुम यहाँ कैसे? तुम गई नह ।” सो नया को उठाते ए अंकुर ने पूछा, “तु ह कौन छोड़ कर गया?” “कौन? मुझे कहाँ छोड़ कर गया?” सो नया भी हैरान थी। “कुछ नह , कुछ नह ।” अंकुर ने बात संभालते ए जवाब दया, “तु ह कह लगी तो नह ?” सो नया को कुछ समझ नह आया। अंकुर सीधा नीचे हॉल म आ कर बैठ गया। तभी हॉल म मु ा सह दा खल आ, “भैया जी। सारा काम हो गया।” अंकुर अपना सर पकड़े ए बैठा था। वह कुछ न बोला। “अरे, भैया जी। या आ? न त र हए। सारा काम पता जी क दे ख-रेख म आ है।” अंकुर ने खा जाने वाली नगाह से मु ा को दे खा, हाथ से बाहर जाने का इशारा कया। मामला गंभीर है जानकर मु ा हॉल से बाहर चला गया। ‘भैया जी मुझे दे खकर हैरान य थे? कसे, कौन छोड़ कर गया? और कसी लड़क को गाँव छोड़ कर आने क बात सुनाई दे रही थ । आ खर ये सारा मामला या है?’ सो नया काफ दे र तक सोचती रही। सुबह से लेकर शाम तक क एक-एक घटना को सल सलेवार रख कर सोचने पर सारा मामला कुछ-कुछ साफ होने लगा। अभी सो नया को समझ आ रहा था क य सुबह दरवाजे पर कोई नह था और य दरवाजे क कु डी खुली ई थी। य घर पर एक भी आदमी नह था। ‘हे भगवान। तो या ये सब अंकुर क कोई चाल थी और अंकुर ने मुझे खुद मौका दया था—घर से नकल जाने का! तो इसका मतलब वह लड़का जो ज मी था और वह लड़क जसने हरा सूट पहना था। ओह तो या सारे लोग मेरे सा हल का इंतजार कर रहे थे। मेरा भाई—अंकुर ऐसा भी कर सकता है।’ तभी नीचे हॉल म कुछ शोर-शराबा आ। सो नया ने सुना, “गाँव पर हमला हो गया है? और हमारे दो-तीन आदमी मारे गए ह। सुनने म आ रहा है क कसी लड़क को भी…” कोई बोला। मु ा ने सभी आद मय को शांत रहने का इशारा कया। मु ा के साथ अंकुर भी चुनावी कमरे क तरफ बढ़ा। सारा सामान लोग को दे दया गया। “कहाँ तक प ँचे ह गे वे?” “ यादा र नह प ँचे ह गे।” “जाओ, उनको ट का जवाब प थर से दे ना।” “जी। भैया जी।” सारी भीड़ हमलावर के पीछे उनक खोज म नकल गई।

वे हमलावर अपने घर तक प च ँ ने से पहले ही गायब हो गए। कधर गए? कसी को भी पता नह चला। दोन तरफ बदले क तैयारी क जा रही थी। सभी को रात होने का इंतजार था। उधर अपने गाँव क सीमा पर सा हल हाथ म बं क लए खड़ा था। ‘उन लोग को कैसे पता चला होगा क म वहाँ बाइक पर आने वाला ।ँ ये बात सफ म, शबनम और सो नया को ही पता थी। फर…। फर मेरे धोखे म सरा कोई मारा गया, बेचारा फरोज! उसका तो कोई कसूर भी नह था—ले कन उसके साथ वह हरे सूट वाली लड़क कौन थी। एक मनट, कह फरोज को भी तो मेरी तरह फोन नह आते थे।’ सा हल क मान सक हालत थर नह थी। तरह-तरह के वचार क आँधी उसे परेशान कए ए थी। ‘ या फरोज भी ‘ च ड़या’ को दाना डाल रहा था, ब क ‘ च ड़या’ ने तो दाना चुग भी लया था तभी तो वह हरा सूट पहन कर फरोज के साथ चलने को तैयार हो गई।’ ‘ए खुदा, ये सब या है।’ सोचते ए सा हल ने आसमान क ओर दे खा। बादल के बीच-बीच म कह -कह पर कुछ तारे टम टमा रहे थे।

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दं ग का इ तेमाल, उन गुमराह लोग ने आपसी खु स नकालने के लए कया। दे श क बाक जनता इसे दं ग के दौरान ई घटना क ही कड़ी मान रही थी जब क इधर कहानी कुछ और ही थी। एक भाई ने अपनी बहन के बॉय ड को कस तरह सबक सखाया—ये बात कसी को पता नह थी। नया के अजब ही ढं ग ह—कहाँ अंकुर रोशनी और उस नव ववा हता के साथ त था और कहाँ अंकुर को अपनी बहन सो नया क लड़क से बातचीत पर भी एतराज़ था! सो नया, ाम सभा के मु खया क बेट थी। जब उड़ती-उड़ती खबर लोग को पता चली क कोई लड़का उनके गाँव क बेट को फँसा रहा है तो सभी लोग एक हो गए। गाँव का ह स म बँटा आ समाज एक हो गया—सारी ऊँच-नीच भुला द गई। ‘आज सो नया को परेशान कया, कल हमारी बे टय को भी कर सकते ह।’—इस सोच के चलते आस-पास के गाँव के लोग संग ठत हो गए। ह थयार उ ह पहले ही मुहैया करा दए गए थे। इस मु हम म ह रया ने बढ़-चढ़ कर भाग लया। ह रया सोनू और रोशनी म कोई फक नह समझता था। इसी लए वह पूरी मु तैद के साथ मलखान सह के घर पर पहरा दे ता रहा, ह रया के साथ गाँव के और भी लोग थे—दं गा कभी भी हो सकता था। गे ँ के खेत म लोग ने शरण ली। उनके घर जला दए गए। बदले क ये चगारी एक गाँव से होते ए सरे गाँव तक प ँच रही थी—ये चगारी अब एक भयावह आग का प ले चुक थी, जसक लपट म हमारे पु ष धान समाज क याँ जल रही थ । नारी क इ जत, कसी भी धम सं दाय, जा त और वण से ऊपर होती है। ले कन यहाँ तो दोन ही तरफ क य को दं ग क आड़ म भोगा जा रहा था। उ का भी लहाज नह था—द रद को। 10 साल क लड़क से लेकर 50 साल क औरत तक सभी का एक दद था—एक ही परेशानी थी।

एक लड़क क इ जत का बदला— सरी लड़क क इ जत को सवा करके लया जा रहा था। जनवरी क ठं ड म भूख-े यासे छोटे -छोटे ब चे बलख रहे थे—कह दं गाई इनक आवाज न सुन ल—इसी लए माँ ने ब च के मुँह पर हाथ रखे ए थे। कशोर लड़ कयाँ अपनी माँ क छा तय से चपक ई थ । कब या हो जाए— कसी को कुछ खबर नह थी। “वे खेत म छपे ह।” कोई बोला। “तो।” “आग लगा दो इन खेत म। तब बाहर नकलगे ये लोग।” और…सचमुच कसी ने खेत म आग लगा द । चीख-पुकार, भगदड़ और बच कर नकल जाने क को शश—यही सब कुछ उधर दे खा जा सकता था। ग क तरह सभी क नजर औरत पर टक थ , कौन कस पर क जा करेगा— ये भी एक खेल बन चुका था। दोन तरफ यही माहौल था। एक सनक भाई क सनक कतने लोग पर भारी पड़ी—ये तो सफ जन पर बीती थी वही जानते थे। खैर दं ग पर धीरे-धीरे काबू पा लया गया। एक शरणाथ कप लगाया गया। ले कन डर इतना यादा था क लोग को इस कप म भी राहत नह थी। पु लसकम क नेम लेट दे खकर ही औरत क ह तक काँप जाती थी। नाम म अली, खान आ द धमसूचक श द ह तो राहत, नह तो, उन औरत को फर से वही सब कुछ सहन करने के लए तैयार रहना होता। जब र क ही भ क हो तो ई र भी या करे! कोई 350 प रवार इन दं ग से पी ड़त ए। पया-पैसा, गहन के साथ-साथ इ जत भी लुट चुक थी। या कर, या न कर—कुछ समझ नह आ रहा था। कई युवक मारे गए, औरत क न न लाश नाल , जोहड़ और कूड़े के ढे र से कई दन तक बरामद होती रह । कहते ह व सब कुछ भुला दे ता है, हर ज म भर दे ता है। जदगी के पौध म नई कपोल फूटने लगी थ । खाली पड़े मकान म जदगी लौटने लगी थी—मकान फर से घर बनने लगे थे। “ह रया।” नेता जी ने पुकारा। नेता जी हॉल म सोफे पर बैठे ए थे। सामने मु ा, उसके पता बलवीर सह और अंकुर थे। “जी, नेता जी।” हाथ जोड़े वह हॉल म दा खल आ। “भई, तुमने और तु हारे बरादरी के लोग ने हमारी ब त मदद क । तु हारे गाँव वाल क वजह से ही हम इधर हवेली म सुर त रह पाए, वरना तो वे दं गाई इधर हमला कर दे ते और तु हारी भौजाई और हमारी ब टया दोन के साथ या हो सकता था—ये तो तुम जानते ही हो।” नेता जी का इशारा र जो और सो नया क तरफ था। “नह , नेता जी। हमारे रहते ऐसा कुछ भी नह हो सकता। आ खर ब -बे टयाँ सफ प रवार क नह पूरे गाँव क होती ह और उनक इ जत पर आँच आए ऐसा हम

हर गज नह होने दगे—चाहे फर हम अपनी जान क बाजी य न लगानी पड़े।” ह रया ने अपनी बात पूरे व ास के साथ कही। “वह तो हमने दे ख ही लया है, तुमने अपनी तरफ से कोई कसर नह छोड़ी।” मु ा बोला। जसका साथ अंकुर ने भी दया, “हाँ जी, चाचा हमने खुद दे खा है कसी और के मुँह से नह सुना। आपका और आपके गाँव वाल का ब त-ब त शु या।” “इसम शु या करने क या ज रत भैया जी। ये तो मेरा फज था आ खर सोनू ब टया भी हमारी रोशनी जैसी ही है। और, भौजाई भी तो हमारा पूरा याल रखती है। कभी भी हम ये अहसास नह होने दया क हमारी इस घर म या है सयत है।” सब हँसने लगे। इतने म र जो ने रसोई घर से आवाज लगाई। ह रया रसोई घर से चाय के याले लेकर वापस हॉल म उप थत आ। सभी चाय का लु फ ले रहे थे। ह रया को नेता जी ने हाथ पकड़ कर अपने साथ सोफे पर बठा लया। ह रया काफ असहज था मगर उसका सर गव से ऊँचा था आ खर सभी उसक तारीफ जो कर रहे थे। सो नया भी सहमी-सहमी-सी अपने कमरे म बंद रहती थी, हालाँ क अब कोई बं दश नह थी, कोई परदा भी नह था। बं दश क ‘जड़’ का तो अंकुर पहले ही सफाया कर चुका था, इसी लए सारी बं दश भी हटा ली गई थ । अब घर म कसी को सो नया के द ली जाने पर भी ऐतराज नह था। फाइनल ए जा स के लए सो नया द ली जाने क तैयारी कर रही थी। “दे खो, ब टया अब यान से रहना। तुम नह जानती तु हारे कॉलेज का चाय वाला ही सारी खबर इधर प ँचाता था और कसी को कुछ भी नह बताना—न घर से भाग नकलने क बात और न यार-मुह बत क बात।” एक माँ क तरह र जो ने अपना फज अदा कया और एक अ छ ब टया क तरह सो नया ने नजर झुकाए सारी बात सुन ल । “म मी जी, आप फ न कर। म इन बात का यान रखूँगी और पढ़ाई म मन लगाऊँगी।” “भगवान तेरी र ा करे।” र जो के मुँह से अपने आप ही नकल गया। जब बाइक वाले लड़के के दम तोड़ने क खबर सो नया ने सुनी तो वह ब त रोई —सा हल को हमेशा के लए खो दए जाने का दद सो नया के सीने म ही दफन था, वह कसी को कुछ भी नह बता सकती थी। ये दद भी सो नया के साथ-साथ, द ली तक गया। जदगी म कसी क कमी का अहसास सो नया को हर व रहता था। सो नया मन से चाहती थी क वह कभी भी इधर गाँव म लौट कर न आए। इस बार सो नया ने सारे स ट फकेट और ज री सामान भी अपने साथ अपने बैग म रख लए थे। ह रया ने सारी बात घर पर जा कर बताई। घर म सभी ब त खुश ए। ह रया का अपने समाज म कद और भी यादा ऊँचा हो गया। वह अब अपने समाज का एक नेतासा बन चुका था।

उधर रोशनी भी, इस बात पर ब त खुश ई। अपने पता के इस बढ़ते ए कद के कारण वह अपने आप को अंकुर के और भी यादा करीब मान रही थी। घर के नौकर से उसके पता एक नेता जो बन चुके थे और नेता तो नेता के घर र ता कर ही सकता है। रोशनी, बेचारी को तो आगे या होने वाला है, ये भी पता नह था। मगर इसके बाद से रोशनी का अंकुर के घर आना-जाना बढ़ गया और अंकुर और रोशनी क नजद कयाँ भी बढ़ती ग । एक दन र जो ने रोशनी को अंकुर के कमरे से नकलते ए दे ख लया। एक साधारण घटना मानकर र जो ने इस पर यान नह दया। नए मोबाइल से रोशनी क नई फोटो और नई-नई ‘ ल स’ रकॉड करके अंकुर अपने आपको डायरे टर और रोशनी अपने आपको एक हीरोइन समझने लगी थी।

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द ली, 2014 …सब कुछ वही था—पहले जैसा। वही सड़क, वही मै ो टे शन, वही र शा टड और कॉलेज क द वार। दो महीने बाद सो नया फर से द ली म थी। इस बार चेहरे क वो रौनक और रंगत गायब थी। आँख म सूनापन और न जाने कतना एकाक पन था, सो नया के साथ। ये एकाक पन ही अब उसका सहारा था। शबनम का फोन अभी भी नह मल रहा था। सो नया र शा टड क ओर धीमे कदम से बढ़ रही थी क कसी ने आवाज द —आवाज जानी-पहचानी थी। “हैलो सो नया।” सो नया के कान तक आवाज प ँची पर कोई त या नह ई। सो नया र शा टड तक प ँच गई। कसी ने पीछे से कंधे पर हाथ मारा। “सुनाई नह दे ता या?” यह शबनम थी। सो नया मुड़ी, “श बो।” बस इतना मुँह से नकला, बाक का काम आँख ने पूरा कर दया। आँसु क धाराएँ नकल पड़ सो नया क आँख से। दोन वह एक- सरे से लपट कर रोने लग । जमाने क कसी को कोई परवाह नह थी। दोन ने र शा लया और मै ो टे शन तक बढ़ चल । रा ते म कई बात । कई बात का खुलासा आ। मोबाइल फोन बंद होने का कारण जब सो नया ने पूछा तो शबनम बोली, “आई एम सॉरी। बट सोनू मेरा मोबाइल खराब हो गया था और अब तक

नया फोन नह लया। कसी से एक टे ेरी मोबाइल भी अरज कया ले कन वह भी कबाड़ ही था। बैटरी खराब थी उसक हर व चाजर म लगाए रखना पड़ता था।” सो नया ने सारी बात सुन । सो नया ब कुल भी नाराज नह ई जो क शबनम को ब त अजीब लगा। “तू नाराज है न मुझसे।” शबनम ने पूछा। “नह । म य नाराज होने लगी तुझसे। तुमने मेरी पूरी मदद क थी। म ही वहाँ प ँच न सक और सा हल…” “सा हल! या आ सा हल को?” “सा हल इन दं ग म…” बोलते ए सो नया रोने लगी। र शे पर बैठ ई शबनम ने उसे सहारा दया। सो नया शबनम के कंध पर सर रख कर रोने लगी। कह भी, कुछ भी अ छा नह लग रहा था। न लास म, न लाइ ेरी, न गाडन और न ही कट न—हर जगह सा हल क याद सो नया को परेशान कर रही थ । फर भी जैस-े तैसे दं ग के बाद पहला दन सो नया ने काट लया। उसके बाद लगातार एक स ताह तक सो नया कॉलेज नह आई। सो नया ने अपने आपको एक कमरे म बंद कर लया था, शायद बंद कमरे म रहने क आदत-सी हो गई थी उसे। जहाँ बैठ गई, वह बैठ रह गई। कभी कुस पर बैठ तो घंट तक कुस पर ही बैठ रही। कभी पलंग पर लेट तो लेट ही रही। सो नया का अपने शरीर पर मानो काबू ही नह था। न बाल सँवारे, न कमरा व थत कया। टे बल पर कताब खुली-क -खुली रखी ई थ । चार दन पहले जो प ा खोला थे, वही खुला आ था। सीधे-सादे श द म, सो नया क जीने क चाह ही ख म हो गई थी। उसे अब अपनी जदगी से कुछ लगाव नह रह गया था। इन 7 दन म भोजन के नाम पर एक चपाती और सुबह चाय के सवा कुछ भी पेट के अंदर नह गया था। बड़ी-बड़ी-सी दलकश आँख के नीचे काले घेरे आ चुके थे। पंखु ड़य से होठ पर पप ड़याँ जम चुक थ । लंबे घने बाल, उलझ-उलझ कर डरावने लगने लगे थे। दो दन के झूठे बतन वह दरवाजे पर पड़े थे। इस दौरान शबनम ने कई बार फोन कया। ले कन शबनम को कोई जवाब नह मला। शबनम को सो नया क परेशानी का अहसास था। ‘अगर उस दन माँ मुझे प रवार क इ जत और समाज के बंधन का हवाला दे कर न रोकती तो आज म भी अपने सा हल के साथ होती। अगर हम साथ रह नह सकते थे, तो कम-से-कम साथ मर ही जाते। म वहाँ न प ँची और सा हल वहाँ पर मारा गया। मने सा हल को धोखा दया है। मुझे जीने का कोई हक नह ।’ अपनी चु ी सो नया ने छत पर लगे ए पंखे पर फक । कोने पर पड़ा एक टे बल ख च कर पंखे के नीचे ले आई। बाहर दरवाजे पर कसी के च लाने क आवाज आ रही थी। जैसे ही चु ी पंखे क पंखु ड़य से टकराई भूल का बादल कमरे म फैल गया। मगर जसने मरने क ठान ली हो उसे इन धूल के बादल क या फ । अं तम बार सो नया ने सा हल के साथ बताए ए सुनहरे पल याद कए और चु ी से बनाया आ फंदा अपने गले म बाँध लया। कुछ आवाज सो नया के कान म पड़ रही थ , मगर

सो नया ने उनका याल न कया। पैर से मेज को ठोकर मार कर र कर दया और फंदा सो नया क गदन पर कसता चला गया। ‘मेरा फोन य नह उठा रही है, सोनू! तीन दन से कॉलेज भी नह आ रही है, आज म उसके हॉ टल जा कर उसका पता करती ।ँ ’ कई दन से रोजाना शबनम के दल म ये वचार आ रहे थे। मगर कॉलेज क तता और ए जा स क तैयारी के चलते शबनम टाइम ही नह नकाल पा रही थी। आज लगातार सातवाँ दन था जब सो नया कॉलेज म नह आई थी। शबनम ने आज अपने मन म ठान लया था, ‘चाहे कुछ भी हो जाए आज म सोनू से ज र मलने जाऊँगी।’ यही वचार लए वह कॉलेज से नकली और सीधी सोनू के हॉ टल के गेट के बाहर प ँच कर ही क । “भैया जी मुझे सोनू से मलना है।” शबनम ने गेट पर खड़े गाड से कहा। चूँ क शबनम एक लड़क थी, गाड को कोई ऐतराज नह आ। वह एक र ज टर क तरफ इशारा करके बोला, “इसम अपना नाम, पता, मोबाइल नंबर और काम लख कर आप मलने जा सकती ह। वैसे भी वह कई दन से बाहर दखी भी नह है। जब से गाँव से आई, कुछ परेशान-सी लगती है—शायद बीमार भी है वह लड़क ।” अफसोस जताते ए गाड ने अपनी बात पूरी क । बना एक पल गँवाए शबनम ने एं क और दौड़ती ई सो नया के कमरे के पास प ँची। हॉ टल म ल ट नह थी और सो नया का कमरा सैकंड लोर पर था। शबनम क साँस फूल रही थी। ठक-ठक। शबनम ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से कोई जवाब नह आया। शबनम ने दोबारा खटखटाया। नतीजा वही। तीसरी बार जब शबनम ने दरवाजे को खटखटाया तो अंदर से कुछ ख चने क आवाज सुनाई द । शबनम को कुछ अ न का अंदेशा आ। वह च लाई, “भैया, ज द ऊपर आओ।” एक मनट म गाड सो नया के कमरे के सामने था। “ या आ?” गाड ने पूछा। “सोनू दरवाजा नह खोल रही है। मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है। लीज कुछ करो।” शबनम परेशान-सी च ला रही थी। अभी हॉ टल म और कोई भी नह था। इसी लए कॉ रडोर इतनी चीख-पुकार के बाद भी खाली था। “दरवाजा तोड़ना पड़ेगा।” गाड बोला। “तोड़ द जए। लीज कुछ क जए। सोनू को कुछ नह होना चा हए।” शबनम ने वनती क । एक ध का दया। दरवाजा थोड़ा चरमराया। फर से एक और जोरदार ध का दया। दरवाजा हला पर टू टा नह । गाड ने शबनम क तरफ दे खा।

इस बार शबनम और गाड ने मलकर दरवाजे पर पूरी ताकत से ध का मारा। ‘धाड़’ क आवाज के साथ दरवाजा टू ट गया। सामने पंखे से सो नया लटक रही थी। एक सैकंड पहले ही सो नया ने टे बल पर चढ़ कर फंदा अपने गले म डाल कर टे बल को ठोकर मारी थी। ठ क इसी पल शबनम और गाड दरवाजा तोड़ कर कमरे के अंदर प ँचे थे। शबनम ने सो नया क टाँग को पकड़ कर उसे उठाया जससे गले म पड़ी ई फंदे क पकड़ थोड़ी ढ ली ई। पलंग पर चढ़ कर गाड ने चु ी का फंदा गले से नकाला और धीमे से सो नया को पलंग पर लटा दया। “सो नया। सो नया, लीज आँख खोलो।” शबनम रो रही थी। गाड ने पास से पानी का जग उठाया और पानी के छ टे सो नया के चेहरे पर मारे। सो नया ने धीरे से आँख खोल द । ‘हे खुदा तेरा शु है।’ शबनम ने आसमान क ओर दे खा। गाड ने भी ई र को याद कया। सही व पर शबनम ने गाड को आवाज दे कर बुला लया था, नह तो आज कुछ अनथ हो ही जाता। अब डॉ टर को बुलाया गया। डॉ टर ने चैक कया और कुछ दवाएँ लखकर दे द और हदायत द क सोनू को अकेले ब कुल भी न छोड़ा जाए। शबनम ने अपने घर फोन कया। शबनम के प रवार वाले भी तुरंत ही मदद के लए आ गए। सारी रात शबनम सो नया के साथ रही और उसे समझाती रही। तभी शबनम का फोन बज उठा। न पर नंबर दे ख कर शबनम ने खुशी से सो नया क तरफ दे खा। “हैलो, कौन?” शबनम बोली। नंबर जाना-पहचाना था। शबनम उठकर सो नया से थोड़ी र पर, खड़क पर जा कर खड़ी हो गई। मगर इस नंबर से फोन आने क उ मीद कब क शबनम छोड़ चुक थी। “कौन या। म सा हल। तुमसे कुछ बात करनी है।” सा हल क आवाज म खामोश-सा दद था। “कहाँ हो, या बात करनी है बोलो।” “शबनम, सो नया ने धोखा दया। उस दन वह वहाँ प ँची ही नह और उसके और मेरे धोखे म फरोज मारा गया। उस बेचारे का या कसूर था।” सा हल गु से म था। “म द ली म ही ँ।” “पर सो नया ऐसा नह कर सकती।” शबनम ने सो नया क पैरवी क । “हाँ, मुझे भी पहले यही लगता था क मेरी सोनू ऐसा नह कर सकती। पर अगर हमारी मुलाकात के बारे म सोनू ने कसी को नह बताया था तो उ ह पता कैसे चला?” “ ँ।” शबनम सोचने लगी। “तु ह याद है मने सो नया के घर पर लडलाइन पर फोन मलाया था। फर अंकुर ने मुझे अपना नंबर दया था और अंकुर के मोबाइल पर ही मेरी सोनू से बात ई थी।” “तो, इसका मतलब ये तो नह न क सोनू कसूरवार नह , धोखेबाज नह ।”

सा हल ने नफरत भरी आवाज म जवाब दया। “तुम ठ क कह रहे हो, इसका मतलब ये हर गज नह क सोनू बेकसूर है, पर आजकल माट मोबाइल का जमाना है। सब कुछ रकॉड हो जाता है और कया जा सकता है…शायद अंकुर ने भी कुछ ऐसा ही कया हो।” शबनम ने फर सो नया क पैरवी क। “सा हल, म गारंट के साथ कह सकती ँ क हमारी सोनू बेकसूर है और उसे तो ये भी नह पता क तुम जदा हो वह तो इसी गम म जी रही थी क तुम दं गाइय के हाथ मारे गए।” “मगर मेरा सवाल अब भी वही है।” सा हल बोला। शबनम के जवाब से सा हल ने थोड़ा सोचा। उसका गु सा कुछ शांत आ। “और एक बात सा हल। सोनू तुम से अपनी जान से भी यादा यार करती है और उस दन कूल के पास न प ँच पाने क वजह से वह अपने आपको कोसती रहती थी।” सा हल ने शबनम के ‘थी’ पर गौर कया। शबनम ने अपनी बात जारी रखी, “वह अभी तुमसे यार करती है।” “ ँ।” सा हल को अब भी सो नया बेकसूर नजर नह आ रही थी। “ ँ या? अगर वह तुमसे यार न करती होती और वहाँ पर न प ँच पाने क वजह से अपने को कसूरवार न समझती होती और तु हारी मौत के लए खुद को ज मेदार न मानती होती तो…” शबनम बोलते-बोलते क गई। “तो! तो या श बो?” सा हल चीखा। “तो सोनू यूँ अपनी जान न दे ती। फाँसी न लगाती।” “नह , श बो। ऐसा नह हो सकता।” सा हल मोबाइल पर चीखने लगा। “सोनू… सोनू…मुझे यूँ अकेला छोड़ कर नह जा सकती।” “सा हल, सा हल।” शबनम ने पुकारा। मगर सा हल को इस व कुछ भी सुनाई नह दे रहा था। “तु हारी सोनू जदा है।” शबनम ने धीरे से कहा, “खुदा क रहमत और तु हारे यार क ताकत उसे मौत के मुँह से ख च लाई है।” “सच।” सा हल को यक न न आ। “कहाँ है सोनू? लीज मुझे उससे मलना है। लीज तुम जो कहोगी म वो क ँ गा। मुझे स से कसी भी तरह मलवा दो, लीज शबनम।” सा हल रोता रहा, वनती करता रहा। “वह इस व अपने हॉ टल म है। म भी यह ँ पर शायद गाड तु ह आने न दे ।” शबनम ने आशंका जताई। “तुम कुछ करो न।” सा हल बोला। “ठ क है म कुछ करती ँ।” शबनम ने ये कहते ए फोन रखा, “तुम प ँचो।” शबनम सा हल से बात करने के बाद सो नया के पास गई तो पाया क सो नया सो चुक है। शबनम वह सो नया के बेड के पास एक ला टक क कुस बैठ गई, काफ दे र खड़क के पास वह खड़ी ई थी। शबनम ने अपने पैर फैलाकर बेड पर रख दए और कुस से पीठ लगाए, आँख मूँदे सा हल का इंतजार करने लगी।

शबनम का दमाग शांत नह था—सो नया के इस आ मह या के यास ने शबमन को झझोड़ कर रख दया था। ‘सो नया क हालात के लए म ही ज मेदार ।ँ सो नया तो एक सीधी-साद और भोली-भाली लड़क थी। न म सो नया को सा हल से मलवाती और न ही ये सब होता। मने तो बस दो ती म एक गुनाह कर दया। खुदा क मेहरबानी से सो नया को कुछ नह आ वरना तो म कभी भी अपने आपको माफ नह कर पाती… मने तो बस मोबाइल नंबर ही दया था सा हल को, फर सा हल ने मुझसे र शा टड पर आने के लए गुजा रश क तो मने सा हल क ये बात भी मान ली। और इसी वजह से दोन एक- सरे को अपना दल दे बैठे और साथ-साथ जीने-मरने के सपने संजोने लगे। इन दोन क इस हालत के लए म ही ज मेदार ँ। खुदा मुझे इसके लए कभी माफ नह करेगा।’ एकाएक शबनम के वचार क गाड़ी क गई, सो नया न द म ‘सा हल। सा हल।’ बड़बड़ा रही थी। शबनम ने सो नया के माथे पर यार से हाथ फेरा। सो नया के चेहरे पर डर और चता के भाव उभरे ए थे। ये दे खकर शबनम को फर से अपने आप पर गु सा आया, वह फर अपने आपको कोसने लगी। शबनम ने ये सब कया तो सफ सा हल के कहने पर ही था मगर शायद वह इसके पीछे के मकसद से अंजान थी—या शायद शबनम सा हल के मकसद क भी जानकारी थी! सा हल से फोन पर बात ए 15 मनट बीत चुके थे, शबनम ने मोबाइल पर टाइम दे खा। ‘अब तक सा हल को आ जाना चा हए था।’ शबनम ये सोच ही रही थी क सा हल क बाइक हॉ टल के गेट पर आ कर क । थोड़ी ना-नुकर के बाद शबनम के समझाने पर गाड मान गया। जैसे ही हॉ टल के गेट के सामने बाइक क , गाड सा हल को पहचान गया। “इधर से, सीधे ऊपर राइट साइड म तीसरा कमरा।” गाड ने सा हल को रा ता बताया। “शु या।” कह कर सा हल ऊपर चला गया। सो नया उस व रो रही थी। सा हल और शबनम सारी रात वह बैठे रहे। सा हल ने सारी बात व तार से शबनम को बताई। शबनम क आँख भी इनक कहानी सुन कर नम हो ग । कमरे म, एक कोने म मं दर बना आ था। सा हल उसके सामने हाथ जोड़ कर खड़ा था, “हे खुदा! हे ई र! लीज सो नया को बचा लो।” सा हल क आँख से आँसु क धाराएँ बह रही थ ।

41

दो ेम कहा नयाँ साथ-साथ चल रही थ । पहली सा हल और सो नया क , और सरी अंकुर और रोशनी क । अंकुर और रोशनी दोन ग े के खेत के पीछे , जहाँ से जंगल शु होता है वहाँ बैठे ए थे। एक- सरे क बाँह म बाँह डाल-दोन बातचीत कर रहे थे। “पता है।” बड़ी मासू मयत से रोशनी बोली। “ या!” अंकुर ने पूछा। “यही क…पहले-पहले तो मुझे तुमसे ब त डर लगता था।” “ य ?” “गाँव के लोग न जाने या- या बकते थे तु हारे बारे म।” रोशनी ने अंकुर क आँख म दे खा। “पर…बाल गोपाल क कसम, हमने कभी उन बात पर व ास नह कया।” “हम मालूम है…” रोशनी के बाल से खेलता आ अंकुर बोला, “रोशनी तुम हम ब त चाहती हो। पर एक बात बताओ।” “ या?” “तुम अभी भी हम से डरती हो या?” अंकुर ने रोशनी का हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर ख चा। रोशनी अपना हाथ छु ड़ाती ई बोली, “नह तो।” “तो अपना हाथ काहे छु ड़ा रही हो। जब डरती नह तो इतनी री कस लए।” अंकुर ने रोशनी से बड़ी ही कोमलता से पूछा। इतनी बात सुनते ही रोशनी खुद ही अंकुर के करीब सरक गई। “नह डरते, अभी बो लए।”

अंकुर ने रोशनी को अपनी बाँह म भर लया और आसमान म चाँद शरमा के बादल के पीछे छप गया। करीब आधे घंटे तक दोन वह रहे। कई बात क । मोबाइल से कई फोटो लए। इ ह प चस को दे ख कर, अंकुर और रोशनी अपने-अपने दन काटा करते थे। “सुनो।” अंकुर बोला। “ यान रखना ये हमारे फोटो ‘वो वाले’, कह कोई दे ख न ले इ ह।” “हम पूरा याल रखते ह। पता है अभी तक कसी को ये भी नह पता है क हमारे पास मोबाइल फोन भी है!” रोशनी अपना पट् टा ठ क करते ए बोली। “ब त समझदार हो तुम।” अंकुर खुश था। “अब दोन के वदा होने का समय था। अंकुर और रोशनी, फर से एक- सरे के गले मले और अपने-अपने घर क ओर चल दए। इस तरह क मुलाकात बढ़ती चली ग । रोशनी अंकुर के यार म पागल हो चुक थी। उसका हर पल बस अंकुर के सपने दे खते ए बीतने लगा था। सरी तरफ, एक फूल का रस चख लेने के बाद भँवरे को अब सरे फूल क तलाश थी। कुछ दन तक सब कुछ ठ क रहा फर अंकुर रोशनी से री बनाने लगा। सो नया के द ली जाने के बाद, अंकुर ने ब च का कूल फर से चालू करवा दया। एक नई ट चर फर से ब च को पढ़ाने आँगन म बने ए कूल म आने लगी। पहले वाली ट चर क तरह ये नई ट चर भी ब त खूबसूरत थी— कसी हीरोइन क तरह। ट चर का चुनाव अंकुर ने ही कया था। मगर कहना मु कल था क अंकुर ने इस ट चर क ड याँ दे ख या फर खूबसूरती। मलखान सह सुबह ही अपने काम से नकल जाते थे। ाम सभा का मु खया बनने के बाद वह घर पर कम ही कते थे। सो नया पहले ही द ली जा चुक थी। र जो को घर के काम से ही फुसत नह थी—वह इन दन सो नया के लए अ छे लड़के क तलाश म लगी थी। कुल मला कर घर म उस नई ट चर और अंकुर के सवा कोई नह रह जाता था। मोबाइल लगातार तीसरी बार बज रहा था। अंकुर ने ज स क पट से मोबाइल नकाला, न पर नंबर दे खा और बुरा-सा मुँह बना कर ‘साइलट’ करके फर से जेब म रख दया। “कौन है?” ाइ वग सीट पर बैठे मु ा ने पूछा। मु ा और अंकुर ाम सभा के काम से कह जा रहे थे। “है…यार कोई। खामा वाह परेशान कर रही है।” अंकुर झुँझला कर बोला। “कर रही है!” मु ा को हैरानी ई क कोई लड़क अंकुर को परेशान कर रही है। “कौन है भाई, जो हमारे भाई को परेशान कर रही है। तुम उसे बता दो क बाद म फोन करे।” “नह मु ा। हम अब उससे बात ही नह करनी है। साली पीछे ही पड़ गई।”

इतने म फर मोबाइल बज उठा। न पर ‘ यू ट चर’ नजर आ रहा था, लहाजा अंकुर ने फोन उठा लया। “हैलो। क हए कैसे याद कया हम? या सेवा कर सकते ह हम आपक …” अंकुर के चेहरे क झुँझलाहट गायब हो चुक थी। “आप इधर कब तक आएँगे। कुछ काम था।” यू ट चर ने सरी तरफ से जवाब दया। “ या काम है भई!” हँसते ए अंकुर ने पूछा। “आप आइएगा, तभी तो हम बता पाएँगे क या काम है।” सरी तरफ भी मु कुराहट होठ पर दौड़ रही थी। “ओके। शाम को मलते ह।” “ओके।” बलवीर ने अंकुर क ओर दे खा। मु ा अंकुर के भाव को पढ़ चुका था। अंकुर क मु कुराहट बता रही थी क ‘ च ड़या’ दाना चुग चुक है। “कौन है भाई ये?” हँसते ए मु ा ने पूछा। “बताऊँगा, बताऊँगा। स करो।” अंकुर ने आँख मारते ए कहा। मोबाइल फर बज उठा। आशं कत मन से अंकुर ने मोबाइल न पर दे खा। नंबर रोशनी का था। वह बड़बड़ाया। “मु ा। यार इसका इंतजाम करना पड़ेगा नह तो ये गले पड़ जाएगी।” “कौन भाई जी?” मु ा ने पूछा। “रोशनी।” अंकुर धीरे से बोला। “रोशनी!” मु ा का मुँह आ य से खुला-का-खुला ही रह गया। “हाँ।” अफसोस जताते ए अंकुर बोला। “ठ क है भाई जी। आप फ न कर। हम कुछ करते ह पर…” “आप उससे बात करते र हए। वहाँ या चल रहा है—ये भी हम पता रहना चा हए। उसका हाल दे ख-जानकर ही तो जाल बछाना पड़ेगा।” अंकुर ने इस बात पर मु ा क पीठ थपथपाई। चौथी बार रोशनी ने फोन नंबर मलाया। रज ट वही रहा जीरो बट् टा स ाटा। रोशनी ब त परेशान थी। कई दन से ऐसे ही चल रहा था। अंकुर अब बोलेरो म रोशनी का इंतजार नह करता था, मगर रोशनी अब भी धीमे-धीमे चलते ए अंकुर क ही राह दे खा करती थी। बोलेरो क जीप का वहाँ न होना कोई असाधारण घटना नह थी क हर कोई इस बारे म सोचे। पर, मगर रोशनी के लए तो यह एक अनहोनी-सी घटना थी जो अब रोज ही घटने लगी थी, और जसने रोशनी को परेशान कर रखा था। खोई-खोई-सी नगाह सफ बोलेरो और उसम बैठे ए अंकुर को खोजती रहती थ । रोशनी क ये परेशानी नेहा से छप न सक थी। खु शय का मौसम गुजर चुका था। अब रोशनी के जीवन म आँधी-तूफान का मौसम शु हो चुका था। एक रात उदास बैठ ई रोशनी ने अपनी सारी परेशानी नेहा को बता द । अब रोशनी का कोई ऐसा राज न था जो नेहा को न पता हो।

नेहा भी या कर सकती थी—ऐसी थ त म। “वही आ, मुझे जसका डर था।” बस इतना ही नेहा बोल पाई। उस रात रोशनी सो भी न पाई। ‘अंकुर कसी काम म बजी ह गे। तभी तो मेरा फोन नह उठाया। म कल उ ह फोन क ँ गी और मुझे व ास है क वे मेरा फोन ज र उठाएँगे।’ लगातार तरह-तरह के वचार रोशनी के म त क म उमड़ रहे थे। ‘ले कन अगर फोन नह उठाया…तो म या क ँ गी? मुझे कुछ करना होगा। अगर कोई बात है, तो उ ह मुझे बताना चा हए। आ खर ऐसा या हो गया जो अंकुर अब मुझसे बात भी नह करते। जैसे उ ह मेरी याद आएगी तो वे खुद ही मुझे फोन कर लगे।’ बेचारी रोशनी को या पता था क भँवरा फूल का रस पीने के बाद दोबारा फूल के पास नह आता…!

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द ली, 2014 उस रात सा हल, ग स हॉ टल म कुछ समय कने के बाद नकल गया—वह नह चाहता था क ग स हॉ टल म एक लड़के क मौजूदगी से कोई बवाल हो। सो नया का सारा हाल शबनम सा हल को बता ही चुक थी। शबनम क दे ख-रेख और सा हल क आ का असर होने लगा था। सो नया ने कुछ दन बाद कॉलेज जाना शु कर दया। इस बार, मगर, तरीका कुछ ही था। कॉलेज म ‘एं ’ और ‘ए जट’ के व सो नया का चेहरा हजाब से ढँ का आ रहता। सो नया और सा हल अब कॉलेज म एक- सरे से बात नह करते थे। दोन ही नह चाहते थे क लोग को पता चले क उनके बीच ‘कुछ’ चल रहा है। हालाँ क फोन पर दोन अब भी बात करते थे और शॉ पग-मॉल व म ट ले स म दोन मला करते थे। सो नया ने एक नया नंबर ले लया था— सफ सा हल से बात करने के लए। सा हल और सो नया फर से एक- सरे के करीब आने लगे थे। सब कुछ पहले जैसा हो गया था। दं ग क घटना को भुला कर सा हल सो नया के साथ जदगी बताने के बारे म सोचने लगा था। जब सब कुछ अ छा हो रहा था, तभी एक दन सा हल का मोबाइल बज उठा, नंबर वही था—पहले वाला अंजान-सा।

“हैलो।” सरी तरफ से आवाज सुनाई द । “हैलो। अ सलाम वालेकुम, जनाब।” सा हल बोला। “वालेकुम अ सलाम। कहो कैसे हो सुहैल?” “जी अ छा ।ँ खुदा क रहमत है।” “कैसे याद कया है आपने…” “सुहैल, तुम हम भुला सकते हो, पर हम तु ह नह भुला सकते, आ खर तुम ही हो जो हमारे मशन को पूरा करोगे।” सा हल जो अब तक सामा य था, थोड़ा सावधान हो गया, ‘ये लोग अभी तक मशन को भूले नह ।’ “ या सोचने लगे सुहैल। तुम सुहैल से सा हल बन गए उधर…कॉलेज म, हम कोई शकवा नह । मगर, तुम हो तो सुहैल ही न। कह मं दर तो नह जाने लगे, उस ‘ च ड़या’ के इ क म…सुना है फर से तुम दाना डाल रहे हो।” सा हल को कुछ समझ न आया वह या बोले। “आपको कैसे पता!” सा हल के मुँह से नकला। “हम सब खबर रहती है। सुहैल मयाँ। खैर छोड़ो ये सब।” सरी तरफ से भराई ई आवाज ने पूछा, “अब या इरादा है। तुमने तो एक ही तीर से दो शकार कर लए। एक तरफ तुम अपने गाँव के फरोज का बदला ले रहे हो और सरी तरफ एक ह लड़क को अपने जाल म फँसा रहे हो।” सा हल को कुछ समझ न आया क वह फरोज क मौत का बदला कैसे ले रहा है! “ या सोचने लगे सुहैल?” आवाज भराई। “कुछ नह …” “तो कुछ बोलते य नह ? तु हारी तो बोलती ही बंद हो गई। तुम उस च ड़या से कह हक कत म तो इ क नह फरमाने लगे।” सा हल चुप ही रहा। जब कोई जवाब नह मला तो वही आवाज फर से सुनाई द , “अगर तुम उस लड़क से इ क भी करने लगे हो तो ये जान लेना तु हारे लए ब त ज री है…” “ या!” सा हल ने हैरान हो कर पूछा। “यही क वे लोग उधर कूल के पास फरोज का नह ब क तु हारा और उस लड़क का इंतजार कर रहे थे और तु हारे च कर म हमारा लड़का फरोज मारा गया।” ‘ फरोज भी इनका आदमी था’ सा हल ने सोचा। सरी तरफ से बात जारी थी, “और अगर वह मारा न गया होता तो आज वह लड़क भी फरोज क तीसरी बीवी बन चुक होती…खैर छोड़ो।” सरी तरफ से उस श स ने खाँस कर गला साफ कया और फर से बोलना शु कया। इस बार लहजा धमक दे ने वाला था, “अगर तुम ये सोच रहे हो क हम से बच कर…कह … कसी जगह या इस जम पर सुकून के साथ उस लड़क के साथ-घर बसा लोगे तो ये तु हारी भूल है। इसी लए तु ह एक बुजुग क सलाह है क जो भी तु ह कहा जा रहा है, बस उस पर अमल करो। वरना मुसीबत म पड़ जाओगे। न तो वह लड़क तु हारे हाथ आएगी और न ही जदगी।”

“जी।” बस इतना ही सा हल के मुँह से नकला। “ब त ज द समझ गए। अ छा ‘खुदा हा फज’।” “खुदा हा फज।” ठ क इसी पल सो नया का भी मोबाइल बज उठा। नंबर जाना-पहचाना-सा था। सो नया ने यादा कुछ न सोचते ए फोन उठा लया, “हैलो!” “हैलो, द द । आप सो नया द द ह न?” “हाँ-हाँ। म सो नया ही ँ। तुम कौन?” “द द , म रोशनी। आपके गाँव से बोल रही ँ।” घबराई ई-सी रोशनी बोली। “तुम इतना घबरा य रही हो, कोई परेशानी है या?” “जी, द द । मुझे आपसे कुछ बात करनी है।” “हाँ बोलो।” सो नया इस व अपने म पर ही थी। रोशनी कुछ न बोल पाई, पर उसक सस कयाँ सो नया ने सुन । सो नया बोली, “रोशनी, दे खो अगर तुम कुछ बताओगी नह …तो हम कैसे पता लगेगा तु हारी परेशानी के बारे म।” सो नया का दमाग ब त ती ग त से रोशनी क परेशानी का कारण ढूँ ढ़ने म लगा था। सो नया ने पूछा, “घर म सब ठ क तो है न…?” “सब ठ क है।” रोशनी अब भी ससक रही थी। “तो फर कूल म कोई ॉ लम है।” “नह ।” “ कसी ने कुछ कहा या?” सो नया ने पूछा। “नह ।” “तो फर तु ह बताओ या परेशानी है तु ह, और तुम हमसे या मदद चाहती हो। दे खो, रोशनी तु ह बताना ही होगा। अपनी दो त समझ कर बे झझक सब कुछ बता दो। हम कसी से कुछ न कहगे।” रोशनी अब भी चुप थी। सो नया बोलती गई, “ या तु हारी परेशानी हमसे संबं धत है?” “पूरी तरह से नह । पर आपसे भी ल ड है।” रोशनी ने जवाब दया। एकाएक सो नया को अंकुर और रोशनी क दो ती का याल आया। सो नया ने पूछा, “ या तु हारी परेशानी का कारण अंकुर भैया ह।” ये सुन कर रोशनी जोर-जोर से रोने लगी। मतलब साफ था जसे सो नया समझ भी चुक थी। “तु हारे और अंकुर के बीच सब सही चल रहा है न!” रोशनी अब भी रो रही थी। “रोशनी। तुम मुझे बताओ। या आ है तु ह और तुम इस तरह य रो रही हो?” “वे अब हमसे बात नह करते ह द द । हमारी कॉल भी काट दे ते ह। हमसे अब मलते भी नह ह।” “इसम या आ पगली, भैया कसी काम म बजी ह गे।” “नह द द । वे हमसे जान-बूझकर बात नह करते।”

“ य ?” “ये तो हम नह पता, पर…” “पर! पर या? रोशनी।” “द द , बस ये समझ लो अगर वे हम इस तरह इ नोर करगे तो हम कह के न रहगे।” ‘कह के न रहगे।’ रोशनी के इन श द ने सीधा सो नया के दल पर चोट क । धुँधली-धुँधली-सी त वीर अब साफ होने लगी थी। “ये या कर रही हो तुम। अरे तुम भैया से यार करती हो न, तो थोड़ी ब त अनबन तो ेम म होती ही है। इसक वजह से ऐसे थोड़ी ही कहते ह क ‘कह के न रहगे।’ तुम चुप हो जाओ। थोड़े समय म सब ठ क हो जाएगा।” रोती ई रोशनी एक पल के लए शांत ई, “पर द द , सब ठ क न आ तो हमारे पास मरने के अलावा कोई और रा ता न बचेगा।” “अरे, तुम फर उसी बात पर आ गई।” सो नया ने थोड़ा गु सा दखाते ए पूछा, “ य नह रहेगा तु हारे पास कोई और रा ता। बोलो।” “द द , हम अपना ‘सब कुछ’ अंकुर जी को दे चुके ह। इसी लए कह रहे ह क अगर वे हम वीकार नह करगे तो हम और कोई भी वीकार नह करेगा। हम कस मुँह से सरे के साथ जी पाएँगे।” “मतलब!” “मतलब…हम आपको बता चुके ह द द । और, आप ही ह जो हमारी मदद कर सकती ह।” “म कुछ करती ँ।” “और हाँ द द । अंकुर जी के कई सारे ग ट ह हमारे पास। कुछ त वीर भी ह जनके सहारे अभी भी जी रहे ह। अगर वे हम अपने लायक नह समझते और हम वीकार नह करते तो हम इनका या करगे। हम इ ह उ ह वापस कर दगे। हम इन ग ट का कोई लालच नह है।” “रोशनी।” ऐसी बात सुनकर सो नया तेजी से बोली, “तुम कोई भी ग ट भैया जी को मत लौटाना। एक काम करो तुम उ ह एक लफाफे म पैक करके मेरे पास, द ली भेज दो या कसी जगह पर छपा दो।” “ य ?” “जैसा म कहती ँ, वैसा करो। कसी को भी इन सब चीज क भनक भी नह लगनी चा हए।” सो नया के दमाग म कुछ चल रहा था, कुछ खतरनाक-सा! “जी द द । पर नेहा को इस बारे म सब कुछ पता है।” “ओह।” कुछ सोचते ए सो नया बोली, “ठ क है उसे अपने व ास म ले लो और सारी बात समझा दो। नह तो हम से कसी मदद क उ मीद मत रखना।” आ खरी वा य का रोशनी पर गहरा असर आ। “जी, द द म कसी को भी इसक जानकारी नह होने ँ गी।” “ओके, अब तुम आराम से सो जाओ। म कुछ-न-कुछ ज र क ँ गी।”

43

सा हल और सो नया, अलग-अलग कॉलेज से नकले। मै ो पर सा हल, सो नया का इंतजार कर रहा था। सो नया अपना हजाब उतारकर सीधा सा हल क बाइक पर बैठ गई। बाइक सीधा कमला नेह रज के गेट पर जा कर क । गेट से अंदर घुसते ही उ टे हाथ पर एक रा ता घने पेड़ के झुरमुट क ओर जा रहा था। इन झुरमुट के पीछे एक एकांत जगह पर दोन बैठ गए। वे दोन पहले भी कई बार यहाँ आए थे। कई ेमी जोड़े नया क भागा-दौड़ी से बच कर कुछ पल यहाँ बताने आया करते थे। द ली म लड़के-लड़ कय को मलनेजुलने के कई ठकान म से ये भी एक ठकाना था। दोन गुम-सुम से बैठे ए थे, जैसे क एक- सरे से अंजान ह । आज कुछ अजीब था। दोबारा द ली आने के बाद, दोन पहली बार बाहर मल रहे थे। दोन के बीच म करीब 2 फुट का फासला था। मगर ये दो फुट का फासला आज इतना बड़ा था जैसे क दो ज म का फासला हो। कभी पेड़ के प , तो कभी पेड़ पर उछलती-कूदती गलह रय को दे खती ई सो नया क खाली-सी आँख जब सा हल क नजर से मल तो इन सूनी-सूनी-सी आँख म आँसु का सैलाब उमड़ पड़ा। इस व जो सो नया के दल क हालत थी, उसका सौ तशत हाल उसक आँख बयाँ कर रही थ । श द नाकाफ थे, बस दल ही दल क बात समझ सकता था। कुछ नमी तो सा हल क आँख म भी थी पर सा हल ने अपनी आँख के बाँध को टू टने नह दया।

“न, सोनू रोते नह ।” बोलते ए सा हल ने सो नया क बाँह पकड़ कर उसे अपनी ओर ख च लया। सो नया ने वरोध न कया। सो नया अब रो रही थी। इतने समय बाद दोन को कुछ व मल पाया था, साथसाथ बताने के लए। बड़ी-बड़ी सुंदर आँख, अब लाल हो चुक थ । अपनी सफेद चु ी से सो नया आँसू प छ रही थी, “हमारा या होगा सा हल? या हम कभी एक न हो सकगे। या ये लोग हमारी भावना को कभी भी समझ पाएँगे।” सा हल के पास, सो नया क कसी बात का जवाब न था। वह चुपचाप सुन रहा था—बस। “ये समाज क ऊँच-नीच, धम और राजनी त के ठे केदार,… या इ ह ेमे के मायने भी मालूम ह। मुझे कोई फक नह पड़ता सा हल क तुम अमीर हो या फर गरीब, मने तो बस तु ह अपने स चे मन से चाहा और सा हल एक बात और…” सो नया का सर अब भी सा हल के कंध पर ही था। सा हल ने सो नया क ओर दे खा, “ या!” “मने तु ह जब यार कया तो मेरे दल ने नह पूछा था क ‘ये लड़का कौन है?’ मने तु ह अपना दल दया बस और बदले म तु हारा यार चाहती ँ। बोलो या तुम मेरा साथ दोगे।” सो नया बोली। ये बात सुनकर सा हल मु कुराने लगा। सो नया बोली, “तु ह पता है! लोग ने दो यार करने वाले लड़के-लड़ कय को जुदा कर दया और सुना है—ये दं गा भी उ ह क वजह से और यादा भड़क गया था। कोई कह रहा था क लड़का मु लम और लड़क ह थी।” ह -मुसलमान क बात सुनकर सा हल के चेहरे का रंग ही उड़ गया, जैसे कोई ब त बड़ा राज जा हर हो गया हो। सा हल अपने भाव को दबा गया। सो नया बोलती जा रही थी, “इन कट् टरपं थय को न जाने या मलता है—दो े मय को जुदा करके, इससे या फक पड़ता है क तुम ह हो या म मु लम या फर तुम मु लम हो और म ह । तु ह बताओ सा हल।” सो नया ने नजर उठाकर सा हल क तरफ दे खा। उसके दमाग म खलबली मची ई थी। एक बार सा हल का मन आ क वह सो नया को सब कुछ बता दे , मगर फर उसके दमाग म उस भराई ई आवाज के श द गूँजने लगे—‘ फरोज क मौत का बदला।’ सा हल चुप था। सा हल के इ क म गर त सो नया को होश नह था। वह तो जैसे पागल हो गई थी, “सा हल, हम या! कसको फक पड़े या न पड़े, पर एक बात ब कुल साफ है क मुझे इस बात से कुछ फक नह पड़ता।” सो नया अं तम वा य पर जोर दे ती ई बोली, “सच म, कोई फक नह पड़ता।” सा हल अब भी खामोश था। “तुम कुछ बोलते य नह , सा हल।” सो नया बोली। सा हल ने अपने आपको संभाला। अपनी भावना पर काबू पाते ए वह बोला, “म तु हारे साथ ही ँ और जदगी भर साथ र ँगा। सो नया नया क कोई ताकत तु ह मुझसे जुदा नह कर सकती और तु ह पाने के लए म कुछ भी कर सकता ँ। बस मुझे

तु हारा साथ चा हए।” दोन एक- सरे से लपट गए। तभी सा हल का मोबाइल बज उठा। नंबर इस बार भी वही था। सा हल ने तुरंत फोन काट दया। सा हल के चेहरे पर एक डर का बज हो गया था। खु शय क ठं डी हवा ने अब आँधी-तूफान का-सा प ले लया था। सो नया का हाथ पकड़ कर वह उस जगह से नकलने क तैयारी करने लगा। सो नया ने अपना चेहरा हजाब से ढँ क लया था। सो नया को हॉ टल के पास ॉप कर के वह सीधा अपने म पर प ँचा। इस बीच मोबाइल कई बार बजा, पर सा हल ने कॉल पक नह क । सो नया अपने कमरे म पलंग पर लेट ई थी। आज सो नया को यक न हो गया था क सा हल भी उसे चाहता और उसे पाने के लए वह कसी भी सीमा तक जा सकता है। सो नया ब त खुश थी, पलंग पर आँख मूँद, अब भी पाक म बताए गए पल को महसूस कर रही थी कतु यह खुशी यादा दे र तक न रही—एक फोन कॉल ने सो नया क खु शय क उड़ान म वधान डाला। अनमने से ढं ग से सो नया ने बना न दे खे कॉल पक क , “हैलो।” “हैलो।” सरी तरफ से हैलो सुनते ही सो नया पलंग से उठ खड़ी ई। सारे सपने भरभरा कर टू ट गए। सरी तरफ अंकुर था। “हैलो। सोनू कहाँ हो?” गु साए ए अंकुर ने सीधा कया। अंकुर क आवाज का गु सा सो नया ने महसूस कर लया था, मगर इस गु से क वजह से सो नया अभी तक अंजान थी। सो नया ने जवाब दया, “भैया जी, हम तो यह ह अपने कमरे म, अपने हॉ टल म।” “कहाँ गई थी उसके साथ?” “हम कसी के साथ कह भी नह गए, भैया जी। हम तो अभी दस मनट पहले ही कॉलेज से कमरे पर लौटे ह।” सो नया ने सामा य रहने क को शश करते ए जवाब दया। “ यादा बनाओ मत। जसे हम मरा आ समझ रहे थे, वह अब भी जदा है, तुम जसके साथ बाइक पर घूम रही थी, हम उसी क बात कर रहे ह।” अंकुर च लाया। “हम कुछ भी समझ नह आ रहा है भैया जी। आप या कह रहे ह और आप कस बाइक वाले क बात कर रहे ह।” सो नया अब भी नॉमल लहजे म बात कर रही थी जैसे क कुछ आ ही न हो, जब क सो नया का दल ही जानता था क सो नया कतनी डरी ई है। “ हजाब पहनने के बावजूद भी तु ह हमारे लोग ने पहचान लया था और उस हरामी को भी।” अंकुर बड़बड़ाया। हजाब क बात सुनते ही सो नया का चेहरा सफेद पड़ गया। वह घबरा गई, उसे कुछ समझ नह आया क वह या कहे, या करे। मगर कोई सा हल को हरामी कहे, ये

सो नया से सहन न आ। न जाने कहाँ से सो नया म इतनी श आ गई क सो नया का डर जाता रहा। अब गुराने क बारी सो नया क थी, “भैया जी, आप ‘उ ह’ हरामी मत बो लए, उनका नाम सा हल है। इ जत से नाम ली जए उनका।” सो नया के मुख से ये ल ज सुनते ही अंकुर का दमाग चकरा गया। वह कुछ न बोल पाया। अंकुर ने कभी सपने म भी नह सोचा था क सो नया इतनी नडरता और बेबाक से ये सब कुछ वीकार कर लेगी। “तुम एक लड़के के लए अपने भैया से ऐसे बात करोगी—तु ह या हो गया है सोनू। तुम कुछ भी नह जानती वह तु हारा इ तेमाल कर रहा है, जब उसका कोई मतलब नकल जाएगा, वह तु ह पूछेगा भी नह ।” अंकुर ने थ त क नाजुकता भाँप कर जवाब दया। “वे हमारा इ तेमाल नह कर रहे ह, वे हमसे यार करते ह ब क हम दोन ही एक- सरे से यार करते ह और अब हमने फैसला कया है क…” अंकुर सो नया क बात पूरी होने से पहले ही बीच म बोल पड़ा, “तुम कुछ नह जानती उसके बारे म, वह लड़का तुमसे कोई यार- ार नह कर रहा है, वह तो बस अपना टारगेट पूरा कर रहा है और वैसे भी तु ह या समझ है— यार के बारे म।” “जैसे आपको ब त समझ है।” सो नया क ताकत सा हल का यार था, उसी क ताकत पर भरोसा करके वह अपने उस भैया से बहस करने लगी जसके सामने कभी जबान भी नह खुलती थी, “हम जानते ह आपके यार क प रभाषा—और आपके यार क समझ! हम सब जानते ह भैया जी—आपके बारे म…” “मेरे बारे म!” अंकुर च का। उसने सो नया से पूछा, “सोनू तुम हमारे बारे म या जानती हो? और इन सब बात से हमारा या संबंध है?” “जाने द जए भैया जी। हम बोलगे तो आपको अ छा नह लगेगा।” “ले कन या पता है तु ह, जो हम अ छा नह लगेगा। कुछ तो बताओ।” अंकुर का दमाग भाई क तरह नह एक राजनी त क तरह सोच रहा था। सो नया चुप रही। जतना सो नया चुप रही, उतना ही अंकुर सोचने लगा। “सोनू, सोनू। चुप य हो कुछ तो बताओ। हम कुछ समझ नह आ रहा है तुम या बात कर रही हो।” अंकुर कैसे भी करके ‘वह’ राज जानना चाहता था। कुछ पल सो नया खामोश रही, फर पूरी तरह सोच- वचार कर बोली, “बताने के लए अब कुछ रहा नह है। पर हम इतना ज र बताएँगे क हम सा हल से यार करते ह और उसी से शाद करगे—चाहे जो भी हो जाए। और इस बार आपने कोई चाल चली और सा हल को कुछ नुकसान प ँचाने क को शश क तो—आप परेशानी म पड़ जाएँगे और फर हम भूल जाएँगे क आप हमारे भाई ह—हम लोग को बता दगे क रोशनी और नई ट चर से आपका या च कर चल रहा है।” आ खरी वा य सो नया के मुख से अपने आप ही नकल गया। वह इस बारे म अभी कुछ बताना नह चाह रही थी पर बात-ही-बात म दल क बात मुख से नकल गई। ‘रोशनी और ट चर के बारे म सो नया या जानती है। इसे ये सब कैसे पता। अगर ये बात सब गाँव वाल को पता चली तो हमारी इमेज खराब हो जाएगी और हमारा राजनी तक वच व भी।’ अंकुर कु टल राजनी त क तरह सोच रहा था। वह बोला,

“सोनू तुम भी कहाँ क बात कहाँ जोड़ने लगी। अरे भई, रोशनी क बात तो हम खुद भी तु ह बताने वाले थे और रोशनी-रोशनी मत बोला करो उसे—वह तु हारी होने वाली भाभी है।” अंकुर के पास अब इस लीपापोती के अलावा और कोई चारा न था। वह बोलता गया, “और रही बात ट चर क , वह तो ब त भोली है बेचारी। इतनी मेहनती और वा भमानी ट चर हमने पहले कभी नह दे खी। वह हमसे कूल म कुछ पु तक-कॉपी और पेन वगैरह बाँटने के लए वनती कर रही थी और कह रही थी क इस तरह के यास और भी गाँव म होने चा हए।” अंकुर ने ट चर के साथ अपने संबंध साफ कर दए। हालाँ क अंकुर के दमाग म ब त कुछ चल रहा था। सो नया चुपचाप सुन रही थी। अंकुर क बात ख म होने पर वह बोली, “अ छ बात है अगर आप रोशनी को हमारी भाभी बनाना चाहते ह और उनसे यार करते ह।” “हाँ-हाँ सोनू हम इस बारे म पताजी से बात करने ही वाले थे एक-दो दन म।” अंकुर हँसते ए बोला जैसे क सारी थ त सामा य हो गई हो। “तो इसका मतलब। आप रोशनी के साथ लव-मै रज करगे और आपको लव मै रज से कोई ऐतराज भी नह है।” “नह । हम कोई ऐतराज नह है।” अंकुर बोला। “तो फर आपको हमारे यार पर या आप है। जब आपको यार के मायने पता ह तो फर आप ये भी जानते ह गे क यार करने वाले बस यार करते ह और इसके सवाए कुछ भी नह । बो लए या आपको हमारे और सा हल के यार पर कोई आप है।” अंकुर कुछ दे र शांत रहा, कुछ समझ नह आ रहा था क वह या जवाब दे , पर कुछ तो बोलना ही था। वह बोला, “हम तु हारे और सा हल के यार पर कोई आप नह है। पर हम तु हारे बड़े भाई ह। हम लगा क वह तु ह बहला-फुसला रहा है। तुम उसक स चाई से वा कफ भी तो नह हो।” अंकुर ने हमदद जताते ए अपनी बात रखी। “उनक कस स चाई से हम वा कफ नह ह भैया जी?” अब सो नया भी समझदारी दखाते ए शां त से बात करने लगी थी, “कृपा करके हम बताइए तो।” “बस यही क सा हल, सा हल न हो कर सुहैल है और वह एक मुसलमान है।” अंकुर ने भी एक वा य म सारी बात बता द । सो नया के लए यह एक बड़ा झटका था। मगर स चे यार म पागल के लए ‘ यार’ ही सबसे बड़ा धम होता है। और, इस यार वाले धम के सामने बाक के सारे नयावी धम झूठे से लगते ह। सो नया क हालत भी कुछ ऐसी ही थी। सो नया ने तो जैसे अंकुर क हर बात का वरोध करने क मन म ठान ली थी। वह ढ़ता से बोली, “इससे हम कोई फक नह पड़ता भैया जी। अब बो लए या अब भी आपको हमारे यार पर कोई आप है।” अंकुर बोला, “जब तु ह कोई परेशानी नह , तो हम भी कोई परेशानी नह है। हम बस ये जानना चाह रहे थे क तु ह ये बात मालूम भी है या नह ।” “हम ये बात ब त पहले से ही पता है भैया जी।” सो नया बोली, जब क ये बात

सो नया को अभी-अभी ही पता लगी थी। “तो ठ क है। हम कुछ करते ह। पताजी से भी इस बारे म बात करगे। तुम अपना याल रखना और एक बात मानोगी अपने भैया क ।” “बो लए।” “यही क हम कुछ व दो सारी थ त पताजी और म मी को समझाने के लए। उ ह समझाना ही पड़ेगा, नह तो बात नह बनेगी।” “ठ क है।” “और तब तक तुम कुछ ‘ऐसा-वैसा’ कदम मत उठाना जसक वजह से हम श मदा होना पड़े।” “जी। म याल रखूँगी।” सो नया थोड़ी परेशान तो ज र थी। अंकुर क बात सुनकर सो नया को यक न ही नह आ। उसने तुरंत सा हल से मोबाइल पर इस बारे म बात करनी चाही, फर न जाने या सोच कर सो नया ने कॉल नह क । सो नया ने सा हल से आमने-सामने बात करना ही उ चत समझा।

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रोशनी ऊपर अपने कमरे म चुपचाप बैठ ई अपनी आने वाली जदगी के बारे म सोच रही थी। कल-परस ही तो रोशनी क सो नया से बात ई थी और सो नया का कहना मानकर रोशनी ने सब कुछ कर भी दया था, जैसा क सो नया ने बताया था। घटनाएँ ब त तेजी से घट रही थ । कुछ भी थर नह था। ह रया रोशनी क माँ स ो से बदलते ए सामा जक प रवेश के बारे म बात कर रहा था। “सोनू ब टया, जब से द ली गई है, घर क तो रौनक ही ख म हो गई है। न जाने कैसी होगी।” ह रया अपनी प नी से बोला। “बे टय से ही तो घर म रौनक होती है। ठ क ही होगी सोनू।” “तुम ठ क कह रही हो। बे टयाँ ही घर क इ जत होती ह, प व ता होती ह। पर सोनू ब टया को न जाने या हो गया था, वह कसी लड़के के यार म पड़ गई थी और इसी बात पर अंकुर भैया जी नाराज थे।” “कोई कह रहा था क लड़का मु लम था।” स ो ने आशंका क। “हाँ। सुना तो मने भी यही है, पर ठ क से कुछ भी नह पता।” “और वो बाइक वाला लड़का जो दं ग म घायल हो गया था, फर बाद म मर गया। वह भी तो मु लम था।” “हाँ, वह मु लम ही था। उसने एक ह लड़क को अपने यार के जाल म फँसाया था और दोन भाग कर शाद करने जा रहे थे क जाने कैसे लोग को पता चल

गया और फर उसके बाद का हाल तो जानती ही हो।” स ो चु पी बाँधे सुन रही थी। “ या सच म कुछ ऐसा चल रहा है क हमारी लड़ कय को ‘ सरे’ लोग अपने यार म फँसा कर शाद करते ह और इसके एवज म उ ह पया-पैसा दया जाता है।” “इस बारे म म कुछ नह कह सकता। पर बना आग के धुआँ नह होगा। कुछ-नकुछ तो इन बात म स चाई होगी ही।” “खैर, अगर कसी ने हमारी बे टय क तरफ नजर भी उठा तो अपने अंजाम का ज मेदार वह खुद ही होगा।” गु से म राम ह रया बोला, “जरा यान रखना अपनी रोशनी का। आजकल माहौल ब त खराब है।” “नह -नह । हमारी रोशनी ऐसी नह है।” तस ली दे ते ए स ो बोली। “मने कब कहा क हमारी रोशनी ऐसी है। बस तु ह यान रखने को कहा है।” तेज आवाज म ह रया बोला और गु से से अपने कमरे म चला गया। ह रया क बात का असर ज द ही आ। स ो सीधा रोशनी के पास गई। रोशनी अपने याल म खोई ई थी। गोरा गुलाबी चेहरा पीला पड़ चुका था। आँख के नीचे गहरे रंग के घेरे बनने लगे। दे खने से साफ पता चल रहा था क कोई चता रोशनी को खाए जा रही है। दरवाजे से स ो कमरे म आ चुक थी। मगर, रोशनी को होश न था, वह तो एकटक शू य म दे खे जा रही थी। स ो तुरंत समझ गई क कुछ तो गड़बड़ है। वह रोशनी के सामने प ँची तो दे खा क रोशनी क आँख से आँसू टपक रहे ह। जाने कब से रोशनी ऐसे ही चुपचाप रो रही थी— बना आवाज के रोने का कारण, अ सर गहरा ही होता है। “ या आ रोशनी! तू रो य रही है?” स ो ने यार से पूछा। “कुछ नह म मी।” आवाज सुन कर रोशनी ने तुरंत अपने आँसू प छ लए और मु कुराते ए बोली, “बस ऐसे ही कोई बात याद आ गई थी।” “कौन-सी बात!” स ो ने पूछा। रोशनी के पास कोई जवाब न था। वह बोली, “सो नया द द क बात याद आ गई थी। वह द ली चली गई।” बात घुमाते ए रोशनी ने जवाब दया। माँ से भी कभी कोई बात छपी है या? स ो समझ चुक थी क बात कुछ और थी, पर या थी ये अभी नह जानती थी। वह वह रोशनी के पास बैठ गई और उसके दल का हाल टटोलने लगी। बात -बात म वह रोशनी के रोने का कारण जानने क को शश कर रही थी। कुछ दे र इधर-उधर क बात करते ए रोशनी टू ट गई। वह रोने लगी। माँ से लपटे ए उसने कबूल कया क वह कसी से ेम करती है। माँ यार से सर पर हाथ फेरती रही। स ो ने पूछा, “कौन है वह खुशनसीब लड़का?” “अंकुर।” धीमे से रोशनी बोली। “अंकुर!” स ो हैरान थी, “हे भगवान! अंकुर! तेरा दमाग तो ठ क है न। वह कहाँ, हम कहाँ।” “पर वे भी हमसे यार करते ह म मी।” रोशनी सुबकते ए बोली। “रोशनी, दे ख कसी को कुछ बताना मत इस बारे म। हम बात करते ह तु हारे

पापा से। अगर कुछ हो सकता होगा, हम ज र करगे। मगर ब त मु कल है।” स ो मायूसी से बोली। स ो ने सोचा लड़ कपन क बात है। कुछ दन म सब ठ क हो जाएगा और फर रोशनी क शाद के बाद, बात आई-गई हो जाएगी। स ो को नया का तजुबा था, वह जानती थी क शाद के बाद लड़ कयाँ अपनी क मत से समझौता करने क जदगी म आगे बढ़ जाती ह। “माँ, कुछ भी हो हम उनके अलावा अब कसी के बारे म सोच भी नह सकते।” रोशनी जानती थी क अब कुछ भी छपाने का कोई फायदा नह है। “ऐसे नह बोलते बेट , नेता जी से हम बात करगे न।” स ो समझाते ए बोली। “हम मजबूर ह माँ।” अ प से श द रोशनी के मुँह से नकले। ‘हम मजबूर ह’—ये श द सुनते ही स ो के मन म संदेह का खतरा आ। वह गु से म थी पर उस पर काबू पाते ए बोली, “कैसी मजबूरी है तु हारी!” जवाब म रोशनी रोने लगी। स ो सारी बात समझ गई क रोशनी अपने ी व क सीमा लाँघ चुक है और गु से म एक थ पड़ रोशनी के गाल पर जड़ दया। रोशनी फूट-फूट कर रोने लगी। स ो लगातार रोशनी को कोस रही थी, पर कोसने से, मारने-पीटने से सब हल हो जाए—ये सम या ऐसी नह थी। रोशनी रो रही थी, मगर कोई आवाज न थी। कमरे म स ाटा ा त था। अपना माथा पकड़े स ो पलंग पर एक ओर बैठ थी, सरी ओर रोशनी रो रही थी। “मुझे ही अब कुछ करना होगा। म खुद जा कर नेता जी से बात क ँ गी। उनसे ाथना क ँ गी क मेरी रोशनी को अपनी ब के प म वीकार कर ल।” स ो पलंग से उठ , रोशनी के पास जा कर यार से पुचकारा, फर उसे गले लगा कर खुद भी रोने लगी, “वे भी तुमसे यार करते ह न। म नेता जी से बात क ँ गी, अगर नेता जी अंकुर से पूछगे तो वो बता दगे न तु हारे और अपने यार के बारे म।” ये बात सुन कर रोशनी फर सुबकने लगी और बड़े उदास मन से अपनी माँ क ओर दे खा, “पता नह माँ, अब तो वे मेरा फोन भी नह उठाते ह। मने कई बार फोन कया। मगर उ ह ने मेरा फोन भी नह उठाया। इसी लए म परेशान ँ।” “वे अपने काम म बजी ह गे। कतना काम है उ ह। ऐसा कुछ नह है क वे तु ह अब याद नह करते। तू भगवान पर भरोसा रख। सब ठ क हो जाएगा।” “भगवान करे ऐसा ही हो ताई।” नेहा बोली। नेहा कसी काम से रोशनी के पास आई थी। वह दरवाजे पर ही खड़ी थी जब ये सारी घटनाएँ घट । लहाजा अब नेहा भी ये सारी बात जानती थी। “तुम!” स ो ने पूछा। “हाँ जी ताई। म रोशनी के पास आई थी। आज सुबह से हम लोग मले नह तो म खुद ही मलने आ गई।” “तुम बैठो इसके पास। पर बेट , कसी से ये बात मत बताना। समझ गई न, नह तो ब त बदनामी होगी हमारी, हम सबक ।” स ो ने वनती करते ए नेहा को कहा। “जी, ताई जी। आप बे फ रह।”

…जब सा हल का मोबाइल बजा, वह बालकनी म खड़ा नीचे सड़क पर आतेजाते ए ै फक को दे ख रहा था। गा ड़य के बीच म एक फुट का भी फासला नह था। गा ड़य क एक साँप-सी आकृ त सड़क पर रग रही थी। कुछ वनाशकारी वचार सा हल के म त क म भी रग रहे थे क तभी मोबाइल क घंट ने उसके वचार क रेस पर ेक लगा द । “हैलो।” सा हल बोला। नंबर ‘उसी’ का था, लहाजा सा हल के चेहरे के भाव तुरंत बदल गए। चता क जगह गु सा अब चेहरे पर उभर आया था। “हैलो। कैसे हो सा हल…” सरी तरफ से हँसती ई भराई आवाज सुनाई द । “मेरा मतलब सुहैल।” “जी, अ छा ँ।” “वह तो हम जानते ही ह। पर हम अ छे नह ह। इतना जान लो अगर हम परेशानी म ह, तो तुम भी परेशानी म ही हो। खैर छोड़ो। सीधा मु े क बात—तो या सोचा तुमने।” “ कस बारे म जनाब!” सा हल बोला। “तु हारी सो नया और हमारे फरोज के बारे म। हम सफ इन दोन क ही बात कर रहे ह।” सा हल खामोश रहा। या जवाब ँ इ ह—यही सोच रहा था। सरी तरफ से बात जारी थी, “सुहैल। एक बात अ छ तरह से समझ लो क फरोज क तरफ भी तु हारी कुछ ज मेदारी है, तुम उसके अ बा-अ मी को या मुँह दखाओगे। एक नेक ‘बेकसूर’ बंदा खामा वाह म ही मारा गया! ‘हम’ पर लोग इतने जु म कर पा रहे ह वो सफ इस लए क हमारी तादाद कम है, य द हम लोग यादा होते तो सरकार हमारी भी सुनती और हम यूँ अनदे खा न करती। तुम तो आ शक म पड़ गए उस लड़क क । अ छा होता क तुम उस लड़क को अपने साथ नकाह पढ़ने के लए राजी कर लेत,े फर सोचो क इसके बाद हमारे लोग क नजर म तु हारी श सयत कतनी ऊँची हो जाती!” सा हल चुपचाप सुन रहा था। फरोज क मौत का ःख तो उसे भी था। और, फरोज अ धकतर व गाँव म सा हल के साथ ही रहता था। मगर वह बेकसूर कैसे था— ये बात अब भी सा हल क समझ म नह आई थी। सरी तरफ से भराई ई आवाज का मा लक बोलता जा रहा था, “लोग के लए तुम एक मसाल बन जाते—और तु हारी दे खा-दे खी कतने लड़के अपने मकसद म कामयाब हो जाते। मगर जवानी के जोश म तुम उस लड़क के इ क म पागल हो गए हो —अगर तुम म अब भी कुछ गैरत बची है तो उसे भगा कर कह ले जाओ और उसे नकाह पढ़ने के लए राजी करो, अगर राजी न हो तो उसे मजबूर करो।” सा हल अब भी खामोश था। उसके दमाग म एक बार फर से खलबली मच गई थी। न जाने य इस बार उस भराई आवाज का असर सा हल पर होने लगा था। सा हल अब मोबाइल कान पर लगाए सुन रहा था, “तुम सुन रहे हो या नह । कुछ बोल नह रहे।” “जी, सुन रहा ँ।” सा हल ने जवाब दया।

“ या खाक सुन रहे हो! सफ सुनने-सुनाने से काम नह चलने वाला। अब कुछ करके दखाना होगा। हम सबक सारी उ मीद अब सफ तुम पर ही टक ह और तुम हो क अब भी सफ सुन रहे हो।” गु से म सरी तरफ से वह श स बोला। गु से के जवाब म सा हल भी गु से म बोला, “आप या चाहते ह मुझसे?” फर खुद ही जवाब दे ते ए बोला, “यही न क म उस लड़क से— ह लड़क से नकाह कर लूँ और उसे अपने घर म बाँद क तरह रखू।ँ फर बाद म उससे कई ब चे पैदा क ँ और फर कसी अपनी कौम क लड़क से भी नकाह क ँ और उससे भी कई ब चे पैदा क ँ । और…तुम सबके नापाक इराद को अमली जामा पहना ँ । ह दो तां को इ लामी मु क बना ँ ।” अब खामोश रहने क बारी उस श स क थी जो मोबाइल पर सरी तरफ था। सा हल बोलता गया, “और म एक ह लड़क से अपनी कौम का, फरोज का बदला ले लू।ँ य यही चाहते ह न आप मुझसे।” सा हल ने गु से म चीखा, “इसी ह लड़क को अपनी सरी, तीसरी और चौथी बीबी क तीमारदारी म लगा ँ ।” इस तरह का गु सा और चीखना- च लाना उस श स के लए एकदम मामूली-सी बात थी। वह श स कसी का नह था—उसे सफ अपना मकसद पूरा करना था— अपना टारगेट पूरा करना था, जसके एवज म उसे सरे मु क से बड़ी रकम मलती थी और इस बड़ी रकम का एक ब त छोटा-सा ह सा मेहनताने के नाम पर फरोज जैसे लड़क को दे दया जाता था, जसके बदले म उ ह कसी गैर-मु लम लड़क को अपने साथ शाद - नकाह करने के लए राजी करना होता था और य द लड़क राजी न हो तो उसे फर मजबूर कया जाता था—उ ह बदनाम करने क धमक दे कर, और कुछ बदनसीब क क ल स को प लक करके। भराई ई आवाज का मा लक फोन पर मु कुराते ए बोला, “अब तु हारे दमाग म कुछ बात घुसी है। अगर तुम ऐसा कर सको तो ब त बेहतर होगा वरना ये जान लो क हमसे बच कर तुम उस लड़क के साथ कह भी नह रह सकते—न सफ इस मु क म ब क पूरी नया म—हम तु ह ढूँ ढ़ लगे और तु हारी नाकामी और ग ारी का बदला हम तुमसे ज र लगे। बाक तुम खुद समझदार हो। हम बदला भी ले लगे और कसी को पता भी न चलेगा। फोन रखते ह।” “जनाब आप बे फ रह। आपका काम हो गया समझो। आपको शकायत का मौका नह मलेगा। खुदा हा फज।” ये बोलकर सा हल ने भी कॉल काट द । मोबाइल हाथ म लए सा हल कमरे म च कर काट रहा था। वह कसी नतीजे पर प ँचने ही वाला था क हाथ म पकड़ा आ मोबाइल फर बज उठा। इस बार कॉल करने वाले चचा जान थे। “हैलो।” बोलते ए सा हल पलंग पर बैठ गया। औपचा रक बातचीत के बाद चचा सीधा वाइंट पर आ गए। चचा बोले, “सा हल, इधर गाँव म ब त नराशा का माहौल है। फरोज क मौत, और उसके बाद फर दं गे—इनम हमारे कई साथी घायल ए और कुछे क मारे गए जसक वजह से लोग म ब त गु सा है। सब बदला चाहते ह।” “जी।” सा हल बोला। वह चचा क बात यान से सुन रहा था। चचा ने अपनी बात जारी रखी, “हम सब पूरी तरह से टू ट चुके ह। अगर कोई

उ मीद है तो बस वह तुम हो। अब तुम ही हो जो हमारा बदला ले सकते हो। तुम कुछ ऐसा करो क ‘इन’ सभी के होश ठकाने आ जाएँ। बोलो, या तुम ऐसा कर सकते हो?” “म कुछ करता ँ चचा।” सा हल बोला। “कुछ! कुछ से अब कुछ नह होने वाला।” चचा बोले, “तु ह कुछ ऐसा करना होगा जससे क सभी का यान इन दं ग से हट जाए। जैसे क…” “जैसे क…!” सा हल ने बीच म ही पूछ लया। “जैसे क ‘उस’ ह लड़क से नकाह करना।” चचा जान बोले। चचा क ये बात सुन कर, सा हल भ च का रह गया। ‘आ खर चचा को सो नया के बारे म कैसे पता चल गया। ये बात सफ उन ‘ मशन वाल ’ को ही पता थी।’ वचार क आँधी कस ओर इशारा कर रही थी यही सा हल समझने क को शश कर रहा था। ‘इसका मतलब चचा भी तो कह उनसे तो नह मले ए।’ सा हल अभी ये सब सोच ही रहा था क चचा बोले, “सा हल तुम एक काम करो। तुम उस लड़क … या नाम है उसका…” नाम याद करते ए चचा बोले, “हाँ सो नया। तुम सो नया के साथ नकाह पढ़ लो, तो सभी को तस ली हो जाएगी।” “जी, चचा जान। म इसी को अंजाम दे ने म लगा ँ। आपको कभी भी इसक खबर मल जाएगी।” “ब त ब ढ़या।” चचा मु कुराते ए बोले। “जी, अपना याल र खएगा। खुदा हा फज।” सा हल बोला। “खुदा हा फज।”

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स ो के नीचे जाने के बाद, नेहा और रोशनी दोन कमरे म चुपचाप बैठे ए थे। एक अजीब-सी खामोशी कमरे म मंडरा रही थी। रोशनी अपना सर अपने घुटन पर झुकाए रो रही थी और नेहा परेशान-सी रोशनी को दे ख रही थी। तभी रोशनी का मोबाइल बज उठा। मोबाइल क रगटोन अनसुना कर रोशनी पूववत् बैठ रही तो मोबाइल नेहा ने उठाया। नंबर अंजान था, कतु नेहा ने कॉल रसीव क , “हैलो।” बोलते ए वह पलंग से उठकर खड़क क ओर चली गई। “हैलो! कौन?” सरी ओर से कसी ने पूछा। “यही तो हम जानना चाह रहे ह क आप कौन ह और आपको कससे बात करनी है?” नेहा ने पूछा। “हम कौन ह, ये छोड़ो। पहले ये बताओ…रोशनी का फोन तु हारे पास कैसे आया?” सरी तरफ वर कसी लड़के का था। वर म हैरानी थी। “आप भी ये छो ड़ए क मोबाइल हमारे पास कैसे आया। आप बस ये बताएँ क आप कौन ह और कससे बात करनी है?” नेहा ने सीधा-सादा जवाब दया। “हम रोशनी से बात करनी है।” लड़का धीमे से बोला। “आप अंकुर जी तो नह !” नेहा ने अनुमान लगाया। इस प र थ त म सफ अंकुर ही था जो रोशनी से फोन पर बात कर सकता था। सरा रोशनी के पास मोबाइल है ये अंकुर के अलावा सफ नेहा ही जानती थी। “हाँ, हम अंकुर ही बोल रहे ह। कह तुम रोशनी क बहन नेहा तो नह ।” “आपने सही पहचाना। हम ही ह।” “ लीज, अपनी बहन से बात करवाइए न। हम इन दन काम म इतना बजी रहे क रोशनी का फोन भी न उठा सके। ये हमारा दल ही जानता है क हम रोशनी से बात न कर पाने क वजह से कतना परेशान ह।” अंकुर ने वनती करते ए कोमलता से

कहा, “ लीज, एक बार हमारी बात करवा द जए न।” ‘नेहा कससे बात कर रही है’—रोती ई रोशनी ने नेहा क ओर दे खते ए सोचा। जवाब म मोबाइल पर हाथ रख कर नेहा ने बना आवाज कए मुँह से बोला —“अंकुर है।” ये जानकर क मोबाइल अंकुर का है। रोती ई रोशनी के चेहरे पर खु शय क मु कान दौड़ने लगी। वह तुरंत नेहा से मोबाइल लेने के लए पलंग से उठ । मु कुराती ई नेहा ने मोबाइल अपनी कमर के पीछे कर लया और बोली, “ऐसे नह द द । आप तो अंकुर जी से बात कर लोगी और हम या मलेगा। आप तो मोबाइल क ओर दे ख भी नह रही थी ये तो हम थे जसने फोन उठा लया।” जद पड़ गए चेहरे पर ह रयाली-सी दखने लगी थी। चहकती रोशनी ने दोन हाथ जोड़ते ए नेहा से मोबाइल दे ने को कहा। नेहा ने रोशनी को और यादा परेशान न करते ए मोबाइल थमा दया। “हैलो। अंकुर जी।” भावुकता से रोशनी बोली। अंकुर से बात करने क खुशी म रोशनी क आँख से कुछ बूँद आँसु क नकल गई। “हैलो, रोशनी। हम माफ करना, लीज। हम काम म यादा मश फ थे। इसी वजह से तुमसे बात भी न कर पाए।” “पर…आप एक मैसेज तो कर सकते थे न। आप नह जानते हमारे दल म कसकस तरह के याल आ रहे थे।” रोशनी सुबकती ई बोली। “हम मान तो रहे ह न अपनी गलती। फर ऐसा न होगा। रोशनी तुम नह जानती हम पर कतनी ज मेदारी ह। पापा जी के ऑ फस का सारा काम हम ही तो दे खते ह।” अंकुर ने कोमलता से अपनी बेबसी बयान क । यार करने वाला दल—तुरंत ही नाराज हो जाता है और तुरंत मान भी जाता है। आने वाले व म या होगा—और या हो सकता है। इन सब बात से बे फ रोशनी ने सहज ही अंकुर क बात पर व ास कर लया। नेहा रोशनी पर नजर गड़ाए उसके चेहरे के एक-एक भाव को दे ख रही थी। रोशनी के चेहरे पर खु शय क लहर छा रही थी तो नेहा के चेहरे पर चता के बादल उमड़ने लगे थे। शायद नेहा वह दे ख पा रही थी जो रोशनी समझ नह पा रही थी। लगभग पाँच मनट बात करने के बाद रोशनी बोली, “नह , आज नह आ सकूँगी। म मी अभी कुछ दे र पहले तो नीचे गई। फर कभी…” “लगता है इतने दन म तुम हमारा यार भूल गई रोशनी।” अंकुर मीठ आवाज म बोला। “नह , नह । ऐसी बात नह है, हम आपको कैसे भूल सकते ह। आपके दए ए ग ट, काड और ैसलेट को ही दे ख-दे ख कर हमने इतने दन काटे ह।” रोशनी भावना म बहने लगी। “तो… फर तुम आज मलने से काहे मना कर रही हो। हम तो लगता है तुम हमसे अभी तक नाराज हो।” अंकुर ने फर मलने के लए जोर दया। “हम नाराज नह ह।” रोशनी ने अपनी थ त साफ क । “तो फर तुम आज हमसे मलने आ रही हो। हम तु हारा वह इंतजार करगे।”

अंकुर ने बना रोशनी क बात सुने ही अपनी बात उस पर थ प द । “पर हमारी बात तो सुनो।” रोशनी कुछ कहना चाह रही थी। “नह , हम अब कुछ न कहना है और न सुनना है। अगर तुम हमसे अब भी यार करती हो तो हम वह मलो—उसी व ।” कह कर अंकुर ने फोन काट दया। रोशनी मोबाइल को दे खते ए पलंग पर बैठ गई। सामने नेहा थी। वह समझ गई क कुछ गड़बड़ है। नेहा ने पूछा, “ या आ?” “वे आज मलने के लए बुला रहे ह?” रोशनी बोली। “ य ?” नेहा ने पूछा। “पता नह । बस कह रहे थे क अगर हमसे यार करती हो तो आज मलने आ जाना।” बोलकर रोशनी ने नेहा क ओर दे खा। मानो उसक सहम त चाह रही हो। “तो फर!” नेहा बोली, “तुम जाओगी या नह ।” “न जाने के अलावा कोई और रा ता भी तो नह है।” रोशनी पूण व ास के साथ बोली। ‘इतने दन बाद कॉल करना और तुरंत मलने के लए बुलाना’ नेहा इस पर वचार कर रही थी। नेहा के दल म एक बात थी मगर वह बात रोशनी का व ास दे ख कर नेहा के दल म ही दब कर रह गई। मगर रोशनी भी तो उसक बहन थी। वह नह चाहती थी क रोशनी कसी परेशानी म पड़े। नेहा यही सोचते ए बोली, “हम तु हारे साथ चलगे।” रोशनी ने हैरानी से नेहा क ओर दे खा, “तुम या करोगी वहाँ जा कर। हम अकेले ही आने को कहा है।” “ लीज, द द हम भी चलना है। हम भी अंकुर जी से मलना है।” नेहा ने भोली बनते ए गुजा रश क । रोशनी तो अंकुर से मलने क खबर से ही पागल-सी हो गई थी। उसका दमाग काम नह कर रहा था। वह खुशी से चहकती ई बोली, “ठ क है। चल लेना…मगर यान रखना। कसी को पता न चले।” जवाब म नेहा ने सर हला कर हामी भरी। इसके बाद नेहा और रोशनी पूरी ला नग करने लग और कुछ दे र बाद नेहा अपने घर चली गई।

बोली।

पूछा।

“सु नए।”

ांड का संपूण यार अपनी मधुर आवाज म भर कर स ो ह रया से

“कहो।” ह रया ऐसी मधुर आवाज सुनकर मु कुराने लगा। “अगर नाराज न हो तो एक बात क ।ँ ” “हाँ-हाँ, कहो न।” “पहले वादा करो क ब कुल भी गु सा नह करोगे।” स ो ने उसी मधुरता से

‘ऐसी या बात है, जो स ो इतनी मधुरता से म े से कहना चाह रही है।’ ह रया के पास हाँ कहने के सवाए कोई चारा नह था। स ो क कोमल आवाज के आगे वह ववश-सा हो गया था।

“कहो।” “बात हमारी रोशनी के बारे म है।” कोमलता क जगह स ो क आवाज म अब एक चता थी, एक डर था। “ या बात है!” हैरानी से ह रया तेज आवाज म बोला। “आपने वादा कया था क आप नाराज नह ह गे और गु सा भी नह करगे।” स ो ने ह रया को अभी पल भर पहले कए ए वायदे क हाई द । “तुम बोलो तो!” ह रया शां त को ओढ़ते ए बोला। “हमारी रोशनी और अंकुर एक- सरे को चाहते ह।” नजर झुका कर स ो बोली। “कौन अंकुर?” हैरानी से ह रया ने पूछा। “भैया जी।” दो श द धीमे से स ो के मुँह से नकले। अपना माथा पीटते ए, ह रया अपनी जगह से उठ खड़ा आ, “कब से चल रहा है ये सब।” “कुछ दन ए ह।” “ऐसा मुम कन नह है। कहाँ हमारे मा लक और कहाँ हम नौकर! ऐसा रोशनी ने सोच भी कैसे लया?” “ सफ रोशनी ने नह , अंकुर ने भी। अंकुर जी भी हमारी रोशनी को चाहते ह।” स ो ने अपनी बेट क पैरवी क । “ फर भी स ो। ऐसा असंभव है। रोशनी को समझाओ और कहो क अंकुर को भूल जाए।” “हमने समझाया था। मगर…” धीमे से स ो बोली। “मगर। मगर या स ो?” गु साए ए ह रया ने पूछा। फर स ो ने रोशनी क वतमान थ त और मजबूरी ह रया को बयान कर द । बीच-बीच म कई बार ह रया ने अपना आपा खोया मगर स ो ने उसे शांत करने का हर य न कया और जसम स ो सफल भी हो गई थी। स ो ने याद दलाया क नेता जी ह रया क कतनी इ जत करते ह और कस तरह दं ग म अपने प रवार क र ा करने के लए नेता जी अपने दोन हाथ जोड़ कर ध यवाद दे रहे थे। ह रया को सारी बात याद थ । फर भी कहाँ नेता जी और कहाँ एक सेवक। काफ दे र तक ह रया और स ो इस बारे म बात करते रहे। फर स ो के तक और ाथना के आगे हार मान कर ह रया को कहना ही पड़ा, “ठ क है स ो। तुम कहती हो तो हम सफ एक बार ये बात नेता जी को बताएँग।े अगर वे मान गए तो ठ क नह तो…” “नह तो!” “नह तो, ज द ही रोशनी क शाद कसी लड़के से करवा दगे। मुझे व ास है क रोशनी क शाद करवाने म नेता जी हमारा साथ ज र दगे।” ह रया ने व ास के साथ कहा। अब सफ कल का इंतजार था। नेता जी से कैसे ये सब बताऊँगा—यही सोचते ए वह सो गया। स ो तो जैसे ये मान चुक थी क नेता जी—‘अंकुर और रोशनी’ के र ते

के लए मान जाएँगे। ‘मेरी रोशनी हन के शृंगार म कैसी लगेगी। या- या तैया रयाँ करनी ह गी। पास-पड़ोस से कसे बुलाना है और कसे नह ।’ यही सोचते ए स ो भी सो गई। कोई खुली आँख से सपने दे खने लगे तो इसम सपन का कोई कसूर नह होता! न त समय पर रोशनी अपने घर से नकली। रोशनी पहले भी कई बार ऐसे घर से बाहर नकल चुक थी। उधर नेहा भी अपने घर से नकलने क तैयारी म थी। वह पहले कभी ऐसे घर से बाहर नह नकली थी। धीरे-धीरे दबे पाँव रखते ए, बेहद सावधानी से नेहा भी घर से बाहर नकल गई और तय जगह पर प ँच गई, जहाँ पर रोशनी पहले से ही उसका इंतजार कर रही थी। “ कसी को पता तो नह चला न।” रोशनी ने नेहा के कान म फुसफुसाते ए पूछा। “नह । कसी को कुछ नह पता चला, बस घर का मेन दरवाजा बंद करते ए थोड़ी-सी आवाज ई थी।” फुसफुसा कर नेहा ने जवाब दया। “ कसी को कुछ पता तो नह चलेगा न।” रोशनी ने एक बार फर पूछा। “नह रे, तुम तो जानती ही हो क हमारे घर का दरवाजा कतनी आवाज करता है।” नेहा ने धीमी आवाज म मु कुराते ए जवाब दया। दन क धूम-धड़ाम म और रात के स ाटे म दरवाज क आवाज कतनी साफ सुनाई दे ती ह—इस बात पर दोन का ही यान नह था। आँख म मलन के सुनहरे सपने संजोए रोशनी अपनी मं जल क ओर बढ़ रही थी। और साथ म नेहा भी थी।

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उधर यू.पी. म अंकुर कसी और ही कारण से परेशान हो रहा था। ‘जी। म याल रखूँगी।’—सो नया के ये श द अब भी अंकुर के कान म गूँज रहे थे जब क सो नया से बात कए अब तक 4 घंटे बीत चुके थे। ‘जो लड़क मेरे सामने बोलने से डरती थी, आज कैसे मुझसे जरह करने लगी है।’ अंकुर मन-ही-मन ये सोच रहा था। ये बात अंकुर क बदा त से बाहर क बात थी। इसके अलावा, एक बात और अंकुर को परेशान कर रही थी। ‘सो नया, रोशनी और नई ट चर के बारे म या जानती है, और जतना भी सो नया जानती है या वह हमारे राजनै तक क रयर म कोई कावट पैदा करने के लए काफ है। … कह सो नया कोई चाल तो नह चल रही है। मगर उसे इस बारे म पता कैसे चला।’ वचार क गाड़ी कने का नाम ही नह ले रही थी। अंकुर के दमाग म समु क लहर क तरह कई वचार बना के उठ रहे थे। ‘कह ऐसा तो नह , रोशनी ने सारी बात सो नया को बता द ह और उ ह बात के दम पर सो नया म हमसे बहस करने क ह मत आ गई हो। ज र कुछ ऐसी ही बात है वरना सो नया म इतनी ह मत नह है। मगर कसी बात को सा बत करने के लए कुछ सबूत भी होने चा हए और इससे पहले क रोशनी सो नया को कुछ और बताए आज रात को ही मुझे कुछ करना पड़ेगा।’ अंकुर खुद अपने आप से ही बात कर रहा था और इ ह बात ने अंकुर को एक ठोस नतीजे पर प ँचा दया था। अंकुर के दमाग म एक कुट ल योजना अपना आकार ले चुक थी और उसी योजना को अंजाम दे ने के लए अंकुर ने

अपने मोबाइल से एक नंबर मलाया। “हैलो। कहाँ पर हो? या कर रहे हो?” अंकुर बोला। सरी तरफ मु ा था। एक साथ दो अंकुर ने अचानक ही दाग दए थे। ‘कुछ तो गड़बड़ है।’ यही सोचते ए मु ा बोला, “भैया जी हम यह ह घर पर और सोने क तैयारी कर रहे ह।” “तुरंत इधर आ जाओ कुछ सी रयस मामला है।” अंकुर धीमे वर म बोला। मु ा अंकुर से बोला, “आते ह भैया जी। ले कन या आ है, कुछ तो बताइए।” “अभी कुछ नह बता सकते। बस इतना समझ लो क सजा दे ने और मजा लेन,े दोन का इंतजाम है।” अंकुर कु टलता से हँसते ए बोला। “आता ँ भैया जी।” मु ा ने अंकुर को आ ासन दया और तुरंत बाइक टाट करके अंकुर के पास प ँच गया। सारी योजना समझा कर अंकुर ने मु ा को भी अपने साथ ले लया। दोन क मं जल ग े के खेत के पीछे पेड़ के झुरमुट म कह थी। इसके बाद अंकुर ने एक नंबर मलाया। नंबर रोशनी का था। अभी कुछ दे र पहले स ो नेहा और रोशनी को समझा-बुझा कर नीचे गई थी। फोन नेहा ने उठाया, “हैलो।” बोलते ए वह पलंग से उठकर खड़क क ओर चली गई। सो नया भी कुछ परेशान थी। वह अपने भाई को अ छे से जानती थी। सो नया को एक बात ब त ही अजीब लगी। अंकुर का एक वा य रह-रह कर सो नया को सुनाई दे रहा था—‘…तो ठ क है। हम कुछ करते ह। पताजी से भी इस बारे म बात करगे…’ इसी वजह से सो नया को न द भी नह आ रही थी। अंकुर ने जो कहा वह अंकुर क पसने लट के व था और सो नया अभी भी अंकुर के इस शांत और सरल वहार का व ेषण कर रही थी। अचानक सो नया के मन म एक वचार आया, ‘मने रोशनी और नई ट चर के बारे म भैया जी को बता कर कोई गलती तो नह क । कह मेरी वजह से दोन कसी परेशानी म न पड़ जाएँ।’ सो नया भी अपने वचार म उलझी ई वतमान थ त को सुलझाने म लगी ई थी। मगर ‘उलझन’ कसी भी उलझन का हल नह होती। इससे पहले क सो नया कसी न कष पर प ँच पाती—एक और वचार सो नया के मन म उठा, ‘भैया जी का सरल और शांत आचरण, कह आने वाले तूफान से पहले क शां त तो नह ।’ और ये वचार अगले ही पल वचार के सागर म डू ब भी गया। एक भयानक-सी बेचैनी ने सो नया के दल म तूफान मचाया आ था। जब कुछ न सूझा तो सो नया दोन हाथ जोड़ कर ाथना करने लगी। कुछ-न-कुछ तो होने ही वाला है, वरना सा हल यूँ रात म जाग न रहा होता। सा हल का अब अपना कोई व नह रह गया था। कभी फोन कॉल और कभी चचा-इनक बात का असर सा हल पर हो चुका था। सा हल ने अपने दल म एक गहरा

राज दफन कया आ था, सो नया अभी तक नह जानती थी क सा हल असल म सुहैल है और सा हल अब ये फैसला कर चुका था क सुहैल के सा हल बन जाने का राज अब नकाह के बाद ही सो नया पर जा हर होगा और ऐसा करके सा हल उस भराई ई आवाज और अपने चचा के लए फरोज क मौत का बदला एक ह ‘ च ड़या’ को अपने जाल म फँसा कर लेगा। सा हल अपने इस फैसले पर ब त खुश हो रहा था। सो नया और बदले के बीच सा हल ने बदले का चुनाव कया था—अब सा हल मान सक ज ोजहद पर काबू पा चुका था और भ व य म या करना है—ये सा हल अ छ तरह से जान चुका था। आज क रात और रात से अलग थी। चार ओर अजीब-सी शां त थी, आसमान म चाँद चाँदनी बखेर रहा था। चाँद को या मालूम था क भयानक-से-भयानक और घनौने-से- घनौने जुम करने वाल को भी अब अंधेरे क ज रत नह पड़ती। आजकल अपराधी तो रोशनी म ही ऐसे-ऐसे अपराध करके चुपचाप नकल जाते ह जनके बारे म पहले कभी शैतान सोच भी नह पाता था।

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आस-पास के सभी गाँव के लोग इकट् ठा हो रहे थे। जसे भी, जस हाल म खबर मली वह उसी ओर दौड़ा चला जा रहा था। ‘आ खर कसने कया?’ ‘ य कया?’ ‘ऐसा करके उसे या मला?’—यही सवाल उधर खड़े ए लोग के दल म उठ रहे थे। ग के खेत के पीछे लगते ए पेड़ के झुरमुट म से एक बड़े से पेड़ पर कुछ आ था, जसके कारण सभी के होश उड़े ए थे। सभी गाँव वाले उस पेड़ को घेरे ए खड़े थे। हर कोई सलाह दे रहा था, ले कन कर कोई कुछ भी नह रहा था। कानाफूसी हो रही थी, हर कोई हैरान था। इस पेड़ क एक टहनी से एक इंसानी शरीर लटका आ था तो सरी टहनी से सरा इंसानी शरीर! शरीर म जान नह थी। ये घटना कब घट , य घट और कैसे घट —इस बारे म कोई भी नह जानता था। सफ अटकल और अनुमान लगाए जा रहे थे। हर कोई मायूस था, दल म एक दहशत-सी थी। इन दोन लड़ कय क हालत पर हर कोई रो रहा था। एक लड़क ने हरा, महद रंग का सूट पहना आ था और सरी ने गुलाबी रंग का। दे खने से कसी अ छे घर क लड़ कयाँ मालूम हो रही थ । क मत क बे खी ही थी, दोन के गले म उनके ही पट् ट का बना आ फंदा कसा आ था।

ह रया जब अपने छोटे भाई लखन के घर क ओर बढ़ रहा था तो लखन ह रया को अपनी ओर आता दखाई दया। लखन के होश उड़े ए थे, चेहरे पर चता थी। वह बोला, “भैया, नेहा आपके घर पर है या?” जवाब म ह रया के चेहरे पर भी वही भाव थे। वह बोला, “यही म तुमसे पता करने आ रहा था।” “ओह! दोन , लगता है क सुबह-सुबह सैर पर चली ग । इन लड़ कय का बचपना अभी ख म नह आ है।” लखन अनुमान लगाता आ बोला जब क चेहरा कुछ और ही बयाँ कर रहा था। “अरे चता करने क कोई बात नह है। पहले भी दोन ऐसे ही कई बार सुबह सैर पर गई ह। अभी आती ही ह गी।” ह रया अपने भाई को समझाते ए बोला, “दे खो, लखन! नेहा ब टया को यादा डाँटना-वाँटना मत। हम यार से समझा दगे दोन को।” “जी भैया।” ह रया लखन का मुँह ताकते ए बोला। दोन अभी इस बारे म बात कर ही रहे थे क गाँव का एक दौड़ता आ इन दोन क ओर ही आ रहा था। इस का चेहरा बता रहा था क इसने कुछ भयानक-सा, कुछ ऐसा दे ख लया था जसके कारण इसके चेहरे पर डर और घबराहट दखाई पड़ रही थी। वह घबराई ई आवाज म र से ही च लाया, “नेहा! रोशनी! दोन उधर…” अभी उसक बात पूरी भी न हो पाई थी क ह रया च लाया, “ या आ हमारी नेहा और रोशनी को…!” जवाब म उस ने दोन को अपने साथ चलने के लए कहा। दोन लखन और ह रया जब उस पेड़ के नीचे प ँचे तो उनके मुँह से चीख नकल गई। लखन तो अपना होश ही खो बैठा। चीख-पुकार, मदद और बेबसी चार ओर छाई ई थी। सुबह के यारह बज चुके थे और पु लस घटना थल पर प ँच चुक थी। इस बीच कई लोग ने मोबाइल कैमरे से इस घटना क कई त वीर और वी डयो लप बना कर सोशल मी डया पर शेयर भी कर द थ । पु लस ने लड़ कय को ड ेशन का शकार बताया और कहा क इन दोन लड़ कय ने आ मह या क होगी। साफ लग रहा था क पु लस सफ खानापू त करने के लए ही आई है। लोग क भीड़ को लाठ दखा कर वहाँ से हटा दया गया और लड़ कय के माँबाप को तो लड़ कय के मृत शरीर के पास भी नह जाने दया गया। मृत शरीर को पो टमाटम के लए तुरंत भेज दया गया। इस घटना क जानकारी सोशल मी डया से होती ई यूज चैनल तक भी प ँच गई। जब मी डया को एक मसालेदार खबर का पता चला तो यूज चैनल का रपोटर हाथ म माइक लए कैमरे से आगे अपनी-अपनी समझ के अनुसार इस घटना क

जानकारी अपने-अपने चैनल पर दखा रहे थे। कुछ घंट म नेहा और रोशनी क मौत क खबर नेशनल यूज चैनल पर दखाई जा रही थी। ग स हो टल, द ली। ठ क 11 बजे गाड ने सो नया के कमरे का दरवाजा खटखटाया। गाड के हाथ म एक ए-4 साइज का पैकेट था। रात भर चता म डू बे रहने के कारण सो नया आज दे र से उठ थी। वह कॉलेज जाने के लए तैयार हो रही थी। बाल का जूड़ा बनाते ए सो नया ने पूछा, “कौन?” “म ँ सो नया मैडम।” गाड ने जवाब दया। दरवाजा खोलने पर गाड ने वह पैकेट सो नया को थमा दया। “कब आया ये?” पैकेट के बारे म सो नया ने पूछा। “बस अभी दो मनट पहले मैडम।” गाड ने आदर के साथ जवाब दया। “ओके भैया। थ यू।” मु कुराते ए सो नया बोली। पैकेट वह पलंग पर रखकर थोड़ी दे र बाद सो नया कॉलेज के लए नकल गई। सो नया सा हल से मल कर कुछ बात करना चाहती थी। आज न तो शबनम क कोई कॉल आई और न ही सा हल क । सो नया र शा करके सीधा मै ो टे शन प ँच गई। लगभग आधे घंटे बाद कान पर मोबाइल लगाए ए सो नया कॉलेज म दा खल ई। सो नया का हजाब से चेहरा ढँ का आ था। चलते-चलते सो नया क नजर कॉलेज के गेट पर चाय वाले भैया से मल , जो उसे ही दे ख रहा था। ‘कह यही तो वह श स नह जो मेरे बारे म सारी खबर अंकुर तक प ँचाता है।’ सो नया ये सोच रही थी, ‘हो न हो ये वही है वरना इतने यान से मुझे न दे खता।’ इतनी दे र म सरी तरफ से फोन उठा लया। “हैलो।” सो नया बोली, “सा हल तुम कहाँ हो कुछ ज री बात करनी है।” “म यह ँ कॉलेज म।” सा हल ने अपनी लोकेशन सो नया को बता द । कुछ ही पल म सो नया और सा हल साथ-साथ थे। माहौल क परवाह कए बगैर, सो नया सा हल से लपट गई। सा हल ने भी सो नया को अपनी बाह म भर लया। सा हल के दमाग म अब भी फरोज ही छाया आ था। सो नया को आज कुछ अजीब-सा महसूस आ। आज सा हल क बाह म एक अंजाना-सा अहसास था, आज सा हल क बाह म ‘वह’ पहले जैसा अपनापन नह था। “तुम ठ क तो हो सा हल।” सो नया ने कारण जानना चाहा। “हाँ, म ठ क ँ। मुझे या आ? कहो या बात करनी है तु ह?” सा हल ने पूछा। जवाब म सो नया हैरानी से बोली, तु ह कैसे पता क मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।” “बस ऐसे ही अंदाजा लगाया।” सा हल मु कुराते ए बोला। सो नया बोली, “सा हल कल रात मेरी भैया जी से बात ई। उ ह ने कहा है क वह मेरे और तु हारे बारे म पता जी से बात करगे और उनक बात से ऐसा लग रहा था क अब हमारे र ते से उ ह कोई ऐतराज नह है।” “ये तो ब त खुशी क बात है, सोनू। अब हमारे बीच कोई द वार न रहेगी।”

सा हल के मुख पर एक अजीब-सी चमक आ गई। “मगर एक बात है जो हम परेशान कए ए है और हम थोड़ी अजीब लग रही है।” सो नया थोड़ी गंभीरता से बोली। “ य ?” सा हल ने पूछा, “तु ह ऐसा अजीब य लग रहा है?” “ य क मेरे भैया जी को मेरे लड़क से बातचीत करने पर भी ऐतराज था और इसी कारण एक लड़के का सर भी उ ह ने फोड़ दया था, और अब उ ह हमारे र ते को लेकर कोई ऐतराज नह है। कोई इंसान इतना कैसे बदल सकता है।” “ यार म ब त ताकत होती है सोनू। तुम नह जानती।” सा हल ने अपनी बात रखी, “हो सकता है उ ह अब यार का अहसास हो गया हो!” “मुझे भी यही लगता है।” सो नया धीमे से बोली, चेहरे पर अब भी आशंका क रेखाएँ उभरी ई थ । अभी बात चल ही रही थी क सो नया का मोबाइल बज उठा, “हैलो, सोनू।” कॉल अंकुर क थी। “जी, भैया जी।” सो नया बोली और इशारे से सा हल को बताया क फोन अंकुर का है। “कहाँ हो तुम?” गंभीर आवाज म अंकुर ने पूछा। “हम यह ह कॉलेज म।” सो नया ने सरलता से जवाब दया। “हम आ रहे ह तुमसे मलने। शाम तक प ँच जाएँग।े ओके।” अंकुर बोला। “ओके। भैया जी।” सो नया बोली। एक खतरे क घंट बज चुक थी। सो नया को अंकुर का मलने आना कुछ अजीब लगा। चेहरे पर गंभीरता दे ख कर सा हल ने पूछा, “ या आ? इतनी परेशान य हो? अंकुर ही तो आ रहा है ना।” “तुम अभी अंकुर भैया को नह जानते। याद है ना। पछली बार भी वे यूँ अचानक आए थे तो या आ था।” सो नया ने अपनी बात समझाते ए अंकुर से कहा। “ फर!” “ फर या। चलो हॉ टल सामान पैक करो और कसी सरे ठकाने का इंतजाम करो, य क जब तक पता नह चल जाता…वह य आया है उनसे मलना खतरे से खाली नह ।” सो नया आने वाले खतरे को भाँपते ए बोली। “ओके।” सा हल के पास हाँ कहने के अलावा कोई और चारा नह था। पा कग तक जाते ए, सो नया ने फर से हजाब पहन लया। बाइक पर बैठने से पहले सा हल गंभीरता से बोला, “सो नया एक बात पूछ?” सा हल के बेहद कोमलता और अपनेपन से ये बात पूछ । सो नया बोली, “हाँ, हाँ पूछो ना। इसम इतना सी रयस होने वाली या बात है।” “बात सी रयस ही है सो नया। इसी बात पर हमारी तु हारी आने वाली जदगी नभर है।” सा हल फर गंभीरता से बोला। “सो नया इस पर थोड़ी संजीदा ई, “बोलो!” “तुम मुझसे यार करती हो ना?” “अरे, ये भी कोई पूछने क बात है। करती ँ तभी तो अपने भैया और प रवार के खलाफ जा कर भी तु हारे साथ जदगी बताने को तैयार ँ।” सो नया भी गंभीरता से

बोली। बोली।

“ले कन तुम मेरे बारे म जानने के बाद, शायद ये बात न कह सको।” “ य , या है तु हारे बारे म जानने के लए।” सो नया अब थोड़ी मु कुराते ए

“सो नया, मेरा नाम सा हल नह है।” सा हल धीरे से बोला। सा हल क नजर सो नया के चेहरे पर गड़ी ई थ । वह शायद सो नया के उस भाव को पढ़ना चाह रहा था जो सफ सै कड के सौव ह से के लए चेहरे पर उजागर होता है। “अ छा तो मेरा नाम भी सो नया नह है।” सो नया पा कग म खड़ी-खड़ी हँसने लगी। इस पर सा हल ने सो नया क हथेली को पकड़ कर अपने दल पर रख दया। सा हल यार से बोला, “सोनू ये हँसने क बात नह है। मेरी बात यान से सुनो।” “बोलो।” “मेरा नाम सुहैल खान है और म एक मु लम ँ।” ये बोलकर सा हल सो नया के चेहरे के भाव पढ़ने लगा। “मेरा नाम भी सो नया नह , सै नयो रीटा है। और…म एक यन ँ।” मु कुराते ए सो नया ने सा हल क आँख म दे खा। हालाँ क सो नया का दल तेजी से धड़क रहा था। एक बड़ा ध का सो नया को लग चुका था। वह खुद ही इस बारे म सा हल से बात करना चाहती थी। “म मजाक नह कर रहा ँ, सोनू! मेरी बात को यान से सुनो।” “ यान से ही सुन रही ँ।” गंभीरता से सो नया बोली। सो नया ने तुरंत एक बड़ा फैसला कया। अपना हाथ सा हल के सीने से हटाते ए वह बोली, “सा हल, मने पहले भी कहा है, और फर कह रही ँ, मुझे इससे कोई फक नह पड़ता क तुम कस धम के हो। मने तु ह पहले भी बताया था जब मने तुमसे यार कया तो ये सोच कर नह कया था क तुम ह हो। मने तु हारे दल को, वहार को और तु हारी सोच क जानने के बाद ही यार का इकरार कया और सा हल एक बात और…” “ या!” “जो सोच-समझ कर कया जाता है वह यार नह , सौदा होता है। और, मने तुमसे सफ यार कया है, कोई सौदा नह ।” सो नया बोली। सो नया क आँख म खुशी के आँसू थे। सा हल ने सो नया को एक बार फर से अपनी बाह म भर लया। सा हल भी तो यही चाहता था!

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एक मैसेज मोबाइल पर आया—‘यू.पी. के सलामतगंज म दो नाबा लग लड़ कय के साथ गगरप और फर ह या।’ सो नया ने मैसेज जैसे ही दे खा उसके तो र गटे ही खड़े हो गए। वह समझ गई, डर के मारे उसका बुरा हाल था। ‘रोशनी से बात करने के बाद फर अंकुर से बात करना और अब ये घटना’—सारी क ड़याँ जोड़ने पर सो नया के तो होश ही उड़ गए। वह समझ गई ये सब कनका कया धरा है। सो नया सारा सामान पैक कर ही चुक थी। वह हॉ टल से नकलने क तैयारी म थी क उसका मोबाइल बज उठा। कॉल अंकुर क थी। “भैया जी। नम ते।” यार से सो नया बोली, जब क अंदर से डर रही थी। “नम ते। कहाँ हो?” “हम बस हॉ टल प ँचने ही वाले ह।” “पर गाड तो कह रहा है क तुम अंदर हो।” गु से म अंकुर च लाया। “नह नह । भैया जी, आप बस पाँच मनट इंतजार क जए, हम अभी प ँचते ह।” सो नया ेम से बोली, “गाड को गलतफहमी ई होगी।” “ठ क है हम यह खड़े ह।” अंकुर बोला। “भैया जी आपने पापा जी से बात क या?” “ कस बारे म?” अंकुर ने हैरानी से पूछा। “हमारे और सा हल के बारे म।” सो नया अपनी आवाज म ाथना और मधुरता का समावेश करते ए बोली।

“भूल जाओ सा हल को।” अंकुर च लाया। “ले कन आप तो कह रहे थे क आप बात करगे।” “वो कल क बात थी। तुम ज द आओ। हम गाँव जा कर बात करगे।” अंकुर अब च ला रहा था। सो नया समझ गई क कोई गहरी चाल अंकुर के दमाग म कुलबुला रही है। “ लीज भैया आप एक बार बात क जए न।” सो नया ने फर ाथना क । “तुम पागल हो गई हो या। कहाँ हम ह और वह मुसलमान।” “पर कल तो आपने कहा था न…” “कल क बात और थी, कल तुम रोशनी क बात कर रही थी हम धमक दे रही थी मगर अब तु हारी धमक का कोई फायदा नह है।” “ओह! समझ गई। तो भैया ये जान लो क अगर तुमने हम दोन के बीच म अपनी टाँग अड़ाई तो अंजाम अ छा नह होगा य क सारे सबूत हमारे पास मौजूद ह—तु हारे ी टग काड, ेसलेट और रोशनी के मोबाइल का मैमोरी काड।” अंकुर हैरान था। “सारी-क -सारी चीज सीधा पु लस म दे ँ गी और फर ये मत कहना क हमने या कया।” धमक दे ती ई सो नया बोली। तभी एक बाइक हॉ टल के गेट पर आ कर क । बाइक सवार क छाती पर एक बैक पैक लटक रहा था। अंकुर अभी अपनी बहन क धमक का जवाब सोच ही रहा था क तीन-चार लड़ कयाँ एक साथ गेट से नकल । सभी ने हजाब पहना आ था। एक लड़क सीधा सामने खड़ी बाइक पर जा कर बैठ गई। लड़क के कंधे पर एक बैग लटक रहा था। “हैलो हैलो सो नया।” अंकुर मोबाइल पर च ला रहा था जब क सो नया कॉल काट कर हॉ टल से बाहर नकल चुक थी। बाइक पर बैठ ई सो नया ने कसके सा हल को पकड़ रखा था। सो नया बेहद डरी ई थी। अभी 15 मनट पहले ही पलंग पर पड़ा आ पैकेट सो नया ने खोला था जसम अंकुर ारा रोशनी को दए ी टग काड, फोटो और मेमोरी काड आ द ग ट भी थे। ये ही वे सबूत थे जसके कारण कॉल पर सो नया ने अपने भैया जी को धमक द थी। सा हल क बाइक सीधा नई द ली मै ो टे शन पर प ँच कर ही क । नई द ली से दोन ने एयरपोट क मै ो ली। मै ो म लोग कम ही थे। दोन सीट पर बैठ गए। सो नया ने सावधानी बरतते ए चेहरे को हजाब से ढक लया था—‘कह कोई पहचान न ले’, इस डर से। सो नया के हजाब क ओर दे ख कर सा हल मधुरता से बोला, “सो नया अब भी व है। सोच लो। ये फैसला तु हारी जदगी बदल कर रख दे गा।” इस बीच सा हल का मोबाइल कई बार बजा, जसे उसने अनसुना कर दया। “अब जो होता है होने दो सा हल। जब तक तुम मेरे साथ हो तब तक मुझे कोई चता नह ।” सो नया ने बड़े ही व ास से जवाब दया। सो नया का यान मोबाइल क रगटोन पर गया।

“तो फर हम अभी कुछ दन के लए बंगलु जा रहे ह। बाद म जब हालात संभल जाएँगे तो वापस आ कर घर वाल को राजी कर लगे।” सा हल सो नया को समझाते ए बोला। सो नया ने तुरंत नजर झुका कर हामी भरी। मोबाइल अब भी बज रहा था। बेल सुनकर सो नया बोली, “तु हारा मोबाइल बज रहा है, शायद कोई तुमसे बात करना चाहता है।” सा हल ने मोबाइल अपनी ज स क पट से नकाला और मोबाइल से ट स म कुछ छे ड़-छाड़ करने के प ात् बोला, “अब नह बजेगा—ये!” सा हल का ये वा य सुनकर सो नया मु कुराने लगी। गाड को ध का मार कर, अब तक अंकुर हॉ टल म सो नया के कमरे म खड़ा था। कमरा खाली था। टे बल पर बस कुछ ब कट् स और मैगी के पैकेट् स रखे ए थे। सामने अलमारी म एक इले क केतली थी। इसके अलावा कुछ कॉपी- कताब, सो नया के कुछ कपड़े और सजने-सँवरने का सामान था। गाड क गदन दबोचते ए अंकुर बोला, “साले तूने मुझे उ लू बनाया। तूने मुझे अंदर नह जाने दया और मेरी आँख के सामने ही मेरी बहन नकल गई उस लव जहाद के साथ।” गाड को कुछ समझ नह आ रहा था। “मुझे छोड़ दो, मेरी मदद करो।” गाड च ला रहा था, “हम कुछ नह पता।” अंकुर ने गाड से पूछा, “तुझे पता है वे दोन कहाँ गए ह।” “हम कैसे पता होगा साहब।” गाड हाथ जोड़ते ए बोला। गाड को ध का दे कर अंकुर ने अपना मोबाइल नकाला और फोन मलाया। फोन व ड ऑफ था। इसके बाद अंकुर ने दो-तीन नंबर मलाए। कुछ ही दे र म कई बाइक सवार हॉ टल के सामने आ कर क गए। “वे दोन इस तरफ गए ह। जा कर दे खो। कोई खबर मले तो बताना।” अंकुर उन पर च लाते ए बोला।

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सलामतगंज, यू.पी. सभी गाँव वाल म आ ोश था। आ खर उनके गाँव क दो बे टय को पेड़ पर लटका दया गया था। ये संजोग था या फर गाँव का भा य क एक पछड़े ए गाँव क दो लड़ कय क ऐसी नमम दशा ई थी। ये एक ऐसा गाँव था जसम अ धकतर लोग मेहनत-मज री करके अपना गुजर-बसर करते थे। रोशनी और नेहा क माँ तो उस पेड़ के पास से हली ही नह । रो-रो कर दोन का बुरा हाल हो चुका था। पु लस ने रेप क इस घटना को, पुरानी कसी मनी का बदला लेने के लए क गई सा जश बताया था। लखन क हालत सी रयस थी। ह रया एक तरफ चुपचाप खड़ा आ था। वह ब त ःखी था मगर उसक आँख से आँसू क एक बूँद भी नह गरी थी। वह कल रात ई बात को याद कर रहा था—अचानक उसके दमाग म एक वचार उठा। वह घटना थल से सीधा नेताजी के घर प ँचा। नेताजी कह जाने के लए गाड़ी म बैठने ही वाले थे क ह रया ने जा कर उनके पैर पकड़ लए, “नेताजी, हमारी मदद क जए। हमारी ब टयाँ रोशनी और नेहा के साथ…।” ह रया आगे कुछ बोल नह पाया। नेताजी बोले, “हम जानते ह, ह रया। तुम चता मत करो। गुनाहगार को सजा ज द मलेगी।” “नेताजी। आप भैया जी को भेजकर थानेदार साहब को थोड़ा समझाने के लए बोल द जए। आपक बड़ी मदद होगी।” “अंकुर क या ज रत है। हम ही फोन कर दगे। तुम जाओ और अपने प रवार

को संभालो।” नेताजी ने बोला। “आप काहे क करते ह नेताजी। भैया जी को भेज द जए न।” एक बार फर ह रया ने ाथना क । “हम अंकुर को ज र भेजते पर अंकुर कसी काम से रात ही द ली चला गया है।” नेताजी थोड़ा परेशान होते ए बोले। ह रया अब भी नेताजी के पैर म गरा आ था। “तो फर मु ा भैया को कह द जए।” ह रया बोला। “अरे, ह रया। तुम हमारा पैर छोड़ो। अ छा नह लगता ये सब। और हाँ, मु ा भी अंकुर के साथ ही द ली गया है।” नेताजी के ये श द सुनते ही ह रया ने नेताजी के पैर को छोड़ दया। वह उठ खड़ा आ। और दोन हाथ को जोड़ कर ध यवाद दे ते ए ह रया वा पस घटना थल पर आ गया। द ली, आई.जी. एयरपोट। सो नया और सा हल यहाँ पर इंतजार कर रहे थे, अपनी लाइट का। लेन को टे क ऑफ के लए अभी 15 मनट बचे थे। सा हल उठा और सो नया को भी उठने का इशारा कया। दोन लेन म अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। सो नया हैरान थी। उसने कभी सोचा भी नह था क सा हल उसे द ली से कह र ले जाएगा। शायद बंगलु ही वह जम थी जहाँ पर दोन के सपन को हक कत म बदलना था। सो नया ने सा हल ने मु कुराते ए पूछा, “ये सब कब और कैसे कया?” “ या?” सा हल ने हैरानी से पूछा। “यही। ये एयरपोट, बंगलु क लाइट…” बोलते ए सो नया क गई। सा हल ने सो नया क ओर दे खा, “बोलो बोलो क यूँ गई।” सो नया ने फर बोलना शु कया, “वहाँ पर हम रहगे कहाँ और या करगे?” “तुम चता मत करो सोनू। इस व सफ बंगलु म ही हम महफूज रह सकते ह और रही बात रहगे कहाँ और या करगे? तो सुनो हम वहाँ एक होटल म कगे और ‘म ती’ करगे।” “म ती!” “हाँ, म ती। अब हम नकाह तो करना ही है। तो य न हम…” सा हल ने बोलते ए सो नया क ओर दे खा। सो नया ने सा हल क नजर मलते ही, अपनी नजर झुका ल , “ले कन इन सब इंतजाम म ब त पैसा लगा होगा। कहाँ से इंतजाम कया तुमने।” सो नया को सा हल ने अपनी ओर ख चा, सो नया ने अपना सर हौले से सा हल के कंधे पर रख दया। सो नया का हाथ सा हल के हाथ म था। सा हल यार से बोला, “सोनू, तुम इसक चता न करो। मेरे कुछ दो त ह ज ह ने मेरे लए ये सारा इंतजाम कर

दया है।” “ब त प ँच वाले लगते ह तु हारे दो त।” हँसती ई सो नया बोली। सो नया को या पता था क सा हल के दो त क प ँच कहाँ तक है। “ कतनी प ँच वाले ह, ये तु ह धीरे-धीरे पता लग ही जाएगा।” बोलते ए सा हल गंभीर हो गया। सो नया इस व सा हल के हाथ को हौले-हौले सहला रही थी। “सा हल हम वहाँ कतने दन रहगे।” सो नया ने पूछा। “जब तक क द ली म…हमारे लए हालात सामा य नह हो जाते।” सा हल ने गंभीरता से बोला। हवाई जहाज तेजी से बंगलु क ओर बढ़ रहा था।

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स ो पु लस इं पे टर के सामने गड़ गड़ा रही थी, “इं पे टर साहब। बस एक बार हम अपनी रोशनी से मलने दो।” स ो क ाथना का इं पे टर पर कोई असर होता नह दख रहा था। “सरकारी काम म कावट डालोगी तो तु ह अंदर डाल ँ गा। अपने ब च का यान रखा होता तो ये सब थोड़ी न होता। पता नह कौन लोग थे, कतने थे? कहाँ के थे?…” इं पे टर ने एक लेडी हवलदार से स ो को संभालने के लए कहा। फर वहाँ मौजूद सभी लोग से बोला, “सभी एक बात अ छ तरह से समझ लो, अगर कसी ने भी हमारे काम म कावट पैदा करने क को शश क तो वह भी गुनाहगार माना जाएगा। एक बात और कान खोल कर सुन लो क अगर कसी को इस घटना के बारे म कोई जानकारी है तो थाने आ कर हम बता दे , वरना अगर हम कुछ पता लगा क इस घटना के बारे म कसी को जानकारी थी और उसने हम नह बताया तो वह इस घटना का ज मेदार माना जाएगा।” सभी लोग को चेतावनी दे ने के बाद इं पे टर अपनी गाड़ी म बैठ गया। पु लस क ट म भी सारी कायवाही करने के बाद वहाँ से चली गई। धीरे-धीरे गाँव वाले भी अपने-अपने घर क ओर लौट गए। रात के नौ बजे ह गे। स ो और ह रया अभी वह पेड़ के पास बैठे थे। लखन अपनी प नी को घर पर छोड़ने गया था। सुबह यारह बजे से दोन यह बैठे ए थे। स ो क आँख रो-रो कर प थरा चुक थ । भावशू य असहाय-सी वह एक ओर अधलेट अव था म बैठ ई थी। ह रया कभी पेड़ क उस डाली को दे ख रहा था तो

कभी अपनी प नी को। उसी रात साढ़े दस बजे। “ या काम है?” थाने के गेट पर तैनात कां टे बल ने ह रया से पूछा। “हम इं पे टर साहब से मलना है।” हाथ जोड़े ए ह रया बोला। “साहब नह ह। कल सुबह आना।” “भैया हम रोशनी के पापा ह। लीज इं पे टर साहब से मलवा द जए।” “कहा न, इं पे टर साहब नह ह।” “कोई और साहब ह गे उनसे ही मलवा द जए।” “कोई नह है।” काफ दे र तक ह रया वह गेट पर गड़ गड़ाता रहा, पर कसी ने उसक कोई मदद नह क । बार-बार अंदर जाने क वनती करने और बार-बार कां टे बल ारा मना करते जाने से, गेट पर तैनात कां टे बल भी परेशान हो गए। दोन म से एक थाने के अंदर गया। “साहब। वह गेट पर ही बैठा है। वहाँ से हट नह रहा है।” कां टे बल बोला। “कौन?” इं पे टर ने पूछा। “ह रया। साहब, वह रो रहा है, हमारे पैर पकड़ रहा है। या कर? साहब।” “उसे वैसे ही पड़े रहने दो। कुछ समय बाद उसे समझ आ जाएगा और वह शांत हो जाएगा।” मु कुराते ए इं पे टर बोला। कां टे बल वापस गेट पर आ गया। अंदर ऑ फस म इं पे टर फोन पर कसी से बात कर रहा था, “नम कार, वह यह पड़ा आ है थाने के गेट पर। बार-बार अंदर आने को कह रहा है। या कर उसका।” “इं पे टर, उसे वह रहने दो। और सुनो कह पर भी अंकुर और मु ा का नाम नह आना चा हए।” “ये भी कोई कहने क बात है साहब। आप चता न कर। मने तो पहले से ही अ ात आद मय के खलाफ रपोट लखी और सरा अंकुर और मु ा तो घटना के समय द ली म थे। इस केस म उनका नाम आने का तो सवाल ही पैदा नह होता।” इं पे टर अपनी तारीफ खुद करता आ बोला। “ठ क है, ठ क है यादा उछलो मत। द वार के भी कान होते ह और ह रया को वहाँ से हटने का इंतजाम हम करते ह।” सरी तरफ से आवाज सुनाई द । सुबह के 3 बजे थे। भागती- च लाती ई स ो थाने प ँची। स ो को दे खकर कां टे बल थोड़ा परेशान ए। एक कां टे बल सरे से बोला, “भाई लो, अब तो इसक घरवाली भी आ गई। पहले ही इसके प त ने हमारा दमाग खराब कर रखा है।” “और अब ये भी हमारा दमाग खाने के लए आ गई। साहब इनसे मलना नह चाहते और ये बना मले यहाँ से हटने का नाम नह लगे।” अपना सर पकड़ते ए कां टे बल बोला, “हम तो बुरे फँसे भाई।”

अब दोन ये सोच ही रहे थे क स ो भी उ ह परेशान करेगी और इसके दोन ने पहले से ही तैयारी भी कर ली थी क कैसे स ो से बचना है। मगर, ऐसा कुछ भी नह आ। डरी ई-सी स ो थाने के सामने प ँची। चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थ । कपड़े अ त- त थे। लग रहा था जैसे क कसी दानव को दे ख लया हो। ह रया के पास प ँच कर वह धीमे से फुसफुसाई, “सु नए, यहाँ से च लए।” हैरानी से ह रया ने स ो का चेहरा दे खा। उसक हालत दे खकर वह भी घबरा गया, “तु ह या आ!” “पहले आप यहाँ से च लए फर बताती ।ँ ” हाथ पकड़ कर स ो ने ह रया को उठाया जो अभी तक वह गेट के पास बैठा आ था। “तु हारी ये हालत कैसे ई?” “उ ह ने ही क है, ज ह ने हमारी ब टया के साथ ये सब कया था। उ ह ने हम धमक द है और हमारे साथ भी जबरद ती करने क को शश क ।” “तो फर थाने म रपोट लखाते ह न। चलो अंदर चलते ह।” “नह । मुझे रपोट नह लखवानी है और यहाँ पर नह आना है नह तो वे लोग तु ह जान से मार दगे।” “ओह! कौन लोग ह वो।” ह रया ने पूछा। स ो धीरे से डरती ई बोली, “हम उ ह पहचान गए ह। उनक आवाज हमने कह सुनी ई है।” “कहाँ पर?” “नेताजी के घर पर।” सोचते ए स ो बोली। “शायद…” दोन डरते ए अपने घर प ँच गए। उ ह दे ख कर पड़ोसी भी अफसोस जताने आ गए। अब तक सुबह के 5:30 बज चुके थे। ‘सब कुछ उ ह के हाथ म था—हमेशा से। अब भी कुछ नह बदला है। कहने के लए सब एक ह—सब ह ह। मगर ह ही ह के मन कैसे हो गए! वे सबल ह और उ च ह…तो इसका मतलब ये तो नह क उनक बेट क इ जत… इ जत और हमारी बेट क इ जत नुमाइश। वाह रे ऊपर वाले तेरी माया।’ ह रया के मन म इसी तरह के वचार उठ रहे थे। उसे सब कुछ समझ आ चुका था मगर वह बेबस था, लाचार था और सबसे बड़ी बात—वह समाज के एक कमजोर और पछड़े वग का था। “सु नए।” शरीर क पूरी ताकत लगाकर स ो बोली मगर फर भी उसक आवाज ह रया ने न सुनी। शरीर क सारी ऊजा और श तो रोने-धोने म जाया हो गई थी। स ो एक बार फर बोली और साथ ही हाथ हलाकर इशारा भी कया, “सु नए। आप एक बार जा कर र जो भाभी से म लए न, हो सकता है उनके कहने पर नेताजी का दल पसीज जाए…कम-से-कम बेट क दे ह तो हम वह दला ही सकते ह। अगर अपने बेटे को सजा नह दलवा सकते तो!” इस बात पर ह रया को आ य आ, “तुम कस नया म हो, नेताजी सब जानते ह और तभी तो उ ह ने अंकुर और मु ा को कल रात ही द ली भेज दया। अब उनके

खलाफ न तो कोई सबूत मलेगा और न ही कोई गवाही दे गा।” “नेताजी क भी तो एक लड़क है—सो नया, जसक वजह से पूरे इलाके म तनाव हो गया था। जानते हो न…हमारी पूरी बरादरी सो नया को अपनी बेट मानती है और कह कोई उनके घर पर हमला न कर दे , इसी लए हमारी बरादरी का हर आदमी उनक सुर ा म लगा आ था।” ह रया ने दं ग क घटना को याद करते ए कहा। “जानते ह स ो हम सब जानते ह।” ःखी मन से ह रया बोला, “ले कन एक बात है, जो शायद तुम अभी तक नह समझी।” “ या!” “यही क अमीर लोग क ब -बे टय क ही सफ इ जत होती है। हमारे जैसे गरीब और कमजोर क ब -बे टय क कोई इ जत नह होती।” ये बोलते ए ह रया भी रोने लगा। ह रया भी था तो इंसान ही, आ खर कब तक अपने आपको रोने से रोक पाता। अपने घर के बाहर दोन रो रहे थे। ‘कहते ह जसक मदद कोई नह करता, उनक मदद ई र करता है। मगर कब…।’ स ो का व ास तो अब भगवान पर से भी उठने लगा था।

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माच, 2014 अंकुर के आदमी, सो नया और सा हल को द ली क सड़क पर ढूँ ढ़ते रहे और वे दोन बंगलु के लए लेन म बैठ चुके थे। परेशान अंकुर ने सुहैल को कॉल कया, घंट बज रही थी। पूरी घंट बजने तक अंकुर ने इंतजार कया। चुनाव चार के व सुहैल ने अपना नंबर सा हल को बताया था। चाहता तो अंकुर, पहले ही फोन करके सुहैल के गाँव म दबाव बना कर सारा मामला शांत कर सकता था। मगर ऐसा करने म सो नया क बेइ जती हो जाने का डर था। मलखान सह क नाक तो कटना तय ही था। इसी लए अंकुर इस मामले को द ली म ही ख म करना चाह रहा था। खैर, सुहैल ने कॉल पक नह क । मन म गाली बकते ए अंकुर ने कई बार सुहैल का नंबर मलाया। अब कॉल मलने से पहले ही ड कने ट हो रही थी। सुहैल ने अंकुर का नंबर लॉक कर दया था! ‘अब या क ँ ।’ अंकुर सोच ही रहा था क उसे शबनम का याल आया। ‘शबनम को शायद सुहैल का कोई सरा नंबर पता हो।’ यही सोचते ए सुहैल ने नंबर मलाया, “हैलो।” “जी, भैया जी।” शबनम क मोबाइल न पर ‘सो नया-भाई’ दखाई दे रहा था। “श बो। तु हारे पास सुहैल का नंबर है।”

“कौन सुहैल? भैया जी।” शबनम ने जैसे ही अंकुर के मुख से ‘सुहैल’ का नाम सुना, वह समझ गई क कुछ गड़बड़ हो गई है। “अरे, वही जो सो नया के साथ पढ़ता है।” “नह , भैया जी। हमारी लास म तो कोई सुहैल नह पढ़ता। आ खर या बात हो गई? सब ठ क तो है।” “हाँ, सब ठ क है। तुम फ न करो। बस सुहैल का नंबर पता है तो बता दो।” “भैया जी। हम तो ये भी नह पता क सुहैल है कौन, फर हम नंबर कैसे पता कर। अगर कहो तो कसी और से बात कर।” अंकुर ब त चता म था, ‘सुहैल को शबनम य नह जानती?’ अंकुर बोला, “ठ क है। श बो, जैसे ही कुछ पता चले हम बताना।” “ओके भैया जी।” बोलकर शबनम ने कॉल काट द । एक भयानक-सी चता शबनम के चेहरे पर छा गई थी। अंकुर ने थक-हार कर फर मु ा को फोन कया, “मु ा, अपने आद मय को बुला लो। लगता है क दोन अंडर ाउ ड हो गए ह। कमरे पर आ जाओ, वह बैठ कर कुछ सोचते ह।” “ठ क है भैया जी।” “अ छा सुनो!” “क हए।” “तुमने उस नई ट चर को अ छे से समझा दया है न।” “आप ब कुल फ न कर, भैया जी। वह तो उसक क मत अ छ थी, नह तो उसका भी…” मु ा का आशय उस ट चर को भी ठकाने लगाने के इरादे से था। “तु ह कब अ ल आएगी?” अंकुर गु से म च लाया, “हो सकता है हमारा फोन टै प भी हो रहा हो।” “समझ गए भैया जी।” डाँट खाते ए मु ा ने सारी बात सुनी। उधर यू.पी. म, दन-पर- दन बीतते जा रहे थे। दन स ताह म और स ताह महीन म बदल चुके थे। इस बीच ‘दो लड़ कय क लाश पेड़ पर लटक ई मली’ ये खबर मी डया म खूब उछाली गई। फर वही सब कुछ आ जो द ली क एक लड़क ‘ नभया’ के केस म आ था। वही ट .वी. डबेट का सल सला, वही चैनल क ट .आर.पी. क होड़। यूज प का के टाइटल कवर पर पेड़ से लटकती ई लड़ कय क त वीर छापी ग । मी डया क इस ट .आर.पी. क रेस से एक दबाव तो पु लस और शासन पर ज र बना, मगर आ कुछ भी नह । दखाने के लए ही पु लस ने आस-पास के लोग से पूछताछ शु कर द । इस पूछताछ के घेरे म सभी आने ही थे। ह रया से लेकर मलखान सह तक! अंकुर और मु ा तो उस रात गाँव म थे ही नह —ऐसा तो पहले ही लोग के मुख से कहलवा दया गया था। फर भी, पु लस आ खर पु लस ही होती है। दखाने के लए ही मगर पु लस

पूछताछ तो कर रही थी। इसका असर सीधा नेता जी पर आ, उनके अंदर का बाप जाग गया। उ ह ने तुरंत ही पु लस क म र को फोन कया, “राधे-राधे। क म र साहब।” “राधे-राधे।” क म र को शायद इस फोन का ही इंतजार था। वह मु कुराने लगा जैसे क ापार म ब त बड़ा फायदा होने वाला हो या फर शेयर मा कट म खरीदे ए शेयर क क मत म एकदम से उछाल आ गया हो! क म र बोला, “क हए नेता जी। कैसे याद कया आपने?” “आप से थोड़ा काम था…” अभी बात पूरी भी नह ई थी क क म र बीच म ही बोला, “रोशनी और नेहा वाले केस के सल सले म!” नेता जी खामोश था। वह समझ चुका था क क म र को सारी बात पता चल चुक ह। “हाँ-हाँ। सही बोले, आप।” “हमने तो पहले से ही इं पे टर को हदायत दे द है। हम बस आपके फोन का और आपक मठाई का इंतजार था बस।” “क म र साहब, फोन मने कर ही दया है और मठाई आप तक आज शाम तक प ँच ही जाएगी।” “वह तो कोई बात नह । आपने पहले भी हम कई बार मठाई भजवाई है। मगर…” “मगर या!” “मगर ये क हम यहाँ पर तो संभाल लगे। ले कन अगर द ली से कुछ आ तो हम कुछ न कर पाएँगे, उस थ त म ‘ मठाई’ भी कुछ काम न आ पाएगी।” “तो तुम मुज रम को पकड़ कर अंदर डाल दे ना। समझ गए न—‘मुज रम’ को। नेता जी ने मुज रम श द पर जोर दया। “वो तो ठ क है, मगर मुज रम कौन होगा?” “वही।” “वही कौन?” “मु ा!” “ओके। अगर ज रत पड़ी तो मुज रम भी पकड़ा जाएगा और वह कुछ बोलने क हालत म भी नह होगा।” “बाक रही द ली, तो द ली को हम संभाल लगे।” “ओके।” बोल कर क म र ने फोन रख दया। तभी कमरे म बलवीर दा खल आ। इसी के सल सले म कुछ सलाह-मश वरा करने के प ात् बलवीर जब कमरे से नकला तो उसके चेहरे पर चता के बादल छाए ए थे। रंग पीला पड़ चुका था। बलवीर ने मोबाइल नकाला और मु ा को कॉल कया। पर फोन मला नह ! फर बलवीर ने एक मैसेज टाइप कया और मु ा को सड कर दया।

कुछ दन बाद चचा को ‘उ ह ’ का फोन आया। “गजब का भतीजा है भाई तु हारा! सीधा उड़कर बंगलु प ँच गया हमारे मंसूब को पूरा करने के लए।” भराई ई आवाज इस बार सा हल के चचा से बात कर रही थी। “जी, सुहैल ने थोड़ा व तो लया, पर फरोज का बदला ले लया। अब जा कर फरोज के घर वाल को तस ली मलेगी।” सहज होते ए चचा बात कर रहा था, जब क उसे भी नह पता था क सा हल बंगलु प ँच चुका है। “वो तो ठ क है, मगर उसने हम अपनी ला नग के बारे म बताया य नह । अगर वह हम बता दे ता तो हम उसक पूरी मदद करते। चलो हमारा काम तो हो गया न। पर…” अपनी बात पूरी करते-करते वह क गया। “पर… या, जनाब!” “पर…सुहैल को तु ह तो अपना लान बताना चा हए था, तु हारी सुहैल से बात ई?” “हाँ जी जनाब।” चचा बोला, जब क उसे सुहैल के लान का आ लफ-बे भी नह मालूम था। “हम अभी फोन करके उसे मुबारकबाद दे ते ह।” भराई ई आवाज के मा लक ने सुहैल को फोन मलाया। पर सा हल ने कॉल पक नह क । “म भी बेवकूफ ँ। बंगलु गए ह दोन । मौज-म ती कर रहे ह गे। बाद म कॉल करता ँ।” ये सोच कर वह मु कुराने लगा और मोबाइल वापस अपने लंबे से चोगे म रख लया। माच 2014, बंगलु दोन का समय अ छा कट रहा था। एक शाम दोन अपने होटल के म पर प ँच।े सा हल बोला, “सोनू, मुझे थोड़ा काम है। तुम थोड़ा आराम करो।” “आराम क छोड़ो, बस…ज द आ जाना। तु हारे बगैर अब दल नह लगता।” सो नया मधुर आवाज म बोली। “बस अभी आया।” सा हल ने भी उतनी ही मधुरता से जवाब दया। “म तब तक या क ँ !” छोटे ब च क तरह सो नया झूठ -मूठ नाराज होती ई बोली। ये दे खकर सा हल मु कुराने लगा, “तब तक तुम ट .वी. पर मूवी दे ख लो।” टे बल से रमोट उठाकर सो नया क ओर उछाल दया। सो नया ने रमोट कैच कर लया। “ट .वी. तो म दे ख लूँगी, पर…इधर बंगलु म या काम है!” सो नया ने हैरानी से पूछा और मु कुराते ए बोली, “तु हारे सवाय अब मेरा कोई नह है। आई लव यू।” “लव यू टू । टे क केयर। म बस अभी आया” बोल कर सा हल बाहर नकल गया। सा हल कमरे से नकल कर सीधा पा कग म प ँचा। वहाँ पर एक पुरानी ह डा

सट म कुछ लोग उसका इंतजार कर रहे थे। ये लोग चेहरे क रंगत और नैन-न श से क मीरी लग रहे थे। “भाईजान आपने तो कमाल ही कर दया।” एक ने मु कुराते ए सुहैल से कहा। “इसम कमाल कैसा! ये तो मेरा फज था। मुझ पर काफ लोग यक न करते थे अगर म ये सब न करता तो उनका यक न टू ट जाता।” “ब त खूब सुहैल भाई, तो बताइए कब नकाह पढ़ रहे उस ह लड़क के साथ?” “बस हालात काबू म आ जाएँ उसके बाद कभी भी।” “भाईजान, ज द-से-ज द नकाह पढ़ो और उसे अपनी तीमारदारी म लगाओ। सफ नकाह करने से कुछ भी हा सल नह होगा। असली मकसद तो उसे अपनी बांद बनाकर रखना है और अपनी तादाद बढ़ाना है।” सुहैल सारी बात बड़ी यान से सुन रहा था। “तु हारी समझ म आ रही है न जो हम कह रहे ह।” “म सब समझ रहा ँ। न समझता होता तो इतना बड़ा कदम न उठाता।” सा हल बोला। “म तो कहता ँ क उसे अब अपने माहौल के हसाब से ढालना शु करो। कुछ नॉनवेज वगैरह भी दया करो खाने म।” “जी, म यान रखूँगा।” “और एक बात।” “ या?” “अगर ‘उधर’ से फोन आए तो उठा लेना। वे ब त नाराज हो रहे थे क तुमने उ ह कुछ भी नह बताया।” “जी, म खुद ही फोन करके उ ह सारी कहानी समझा दे ता ।ँ ” “तुम ब त समझदार हो। तुम हमारे ब त काम आओगे।” जवाब म सुहैल मु कुराता रहा। इस तरह के वचार तो पहले से ही सुहैल के दलोदमाग पर छाए ए थे। फर इन कार वाल क बात ने जैसे आग म घी का काम कया। वह भड़का आ-सा कमरे म प ँचा। कमरे म सो नया रोशनी का भेजा आ लफाफा खोल कर बैठ ई थी। सा हल के कमरे से बाहर जाते ही सो नया कुछ मनट मोबाइल म बजी रही। फर टाइम पास करने के लए आ खरकार मोबाइल क जगह ट .वी. का रमोट आ ही गया। एक चैनल के बाद सरा, सरे के बाद तीसरा। फर चौथा, पाँचवाँ…बदलतेबदलते एक चैनल पर सो नया क अँगु लयाँ क ग । ट .वी. न पर यू.पी. म ई नाबा लग लड़ कय के रेप और फर ह या क खबर पर एक रपीट रपोट आ रही थी। ट .वी. न पर दोन लड़ कय के चेहरे को धुँधला करके दखाया जा रहा था। उ ह के पट् ट का फंदा उनके गले म कसा आ था। जमीन से 4 फुट ऊँचे दोन का शरीर हवा म लटका आ था— पट् ट का सरा सरा पेड़ क डाल से बँधा आ था। धुँधले चेहर को सो नया दे खते ही पहचान गई—ये दोन रोशनी और नेहा ही थ ।

रपोट म यू.पी. क कानून और व था का सट क यौरा दया जा रहा था। एक भावशाली ‘नेताजी’ के भाव के चलते गुनाहगार अब भी आजाद घूम रहे थे। इस खबर को दे खते ए सो नया को उस पैकेट का यान आया। तुरंत सामान से वह पैकेट नकाला और उसम भेजी गई सारी व तुएँ दे खने लगी। 10 टग काड, एक ेसलेट, दो सोने क बा लयाँ और एक मैमोरी काड। ये सारा सामान ही था उस लफाफे म। फर सो नया ने मोबाइल म वह मैमोरी काड इंसट कया। काड म रोशनी और अंकुर के कुछ अंतरंग ल स और मैसेज थे। यू जक के फो डर म कुछ रकॉड क ई कॉ स भी थी। सो नया को तो जैसे साँप सूँघ गया हो। कतनी उ मीद से, जाने कतने जतन से रोशनी ने ये सब सो नया को भेजा था, सफ इस उ मीद से क सो नया रोशनी और अंकुर क कुछ मदद करेगी। ‘हे भगवान! ये मने या कर दया। मने तो अंकुर को सफ धमक द थी और उसने तो बेचारी रोशनी को मार ही डाला और…उस बेचारी नेहा का तो कोई कसूर भी नह था। वह बेचारी तो बहन के यार म अपनी जान से हाथ धो बैठ । भगवान मुझे इस गुनाह के लए कभी माफ नह करेगा।’ ये सब सोचते ए सो नया खुद को ध कार रही थी। वह आ म- ला न से मरी जा रही थी। सो नया क ह जैसे सो नया से बात करने लगी हो। ‘ या मला तुझे सा हल का यार पाकर?’ आ मा क गूँजती ई आवाज सो नया को सुनाई द । “मने तो बस अपना यार पाया है। इसम मेरा या कसूर!” डरती ई सो नया ने जवाब दया। “ यार पाया है! या…सौदा कया है। तुम असल म सफ अपने आप से ही यार करती हो। तुमने एक भोली-भाली-सी लड़क के यार को धोखा दया है।” आ मा जलील करती ई हँसने लगी। आ मा क हँसी सो नया के कान को फाड़ रही थी। डर के कारण सो नया ने अपने कान पर हाथ रख लए। मगर आवाज अब भी सुनाई दे रही थी। “नह मने कोई सौदा नह कया।” रोती ई सो नया च लाई। “तु हारी आवाज बता रही है क तुमने धोखा दया है। अगर अब भी कुछ गैरत बची हो तो कुछ करो।” आँख -म-आँख डाल कर ह बोली। “ या!” “हा हा हा! अब ये भी म बताऊँ तु ह। अपना यार पाने के लए तो तुमने मुझसे कभी नह पूछा।” ह क आवाज कमरे क द वार म टकरा-टकरा कर गूँज रही थी। सो नया क आँख के आँसु क धाराएँ बह रही थ । ये आँसू प ा ाप और ला न के थे—गंगाजल से भी प व !

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सा हल भड़का आ-सा कमरे म दा खल आ। कमरे म सो नया क हालत दे खकर उसे कुछ समझ नह आया। समझ पाने के लए सा हल के दमाग म जगह भी कहाँ रह गई थी। सा हल को दे खते ही सो नया उससे लपट गई और रोने लगी। सा हल ने रोती ई सो नया के बाल को ख चते ए अपने से र कर दया। वह चीखा, “ या ामा है ये सब! एक पल का भी चैन नह है यहाँ पर।” सा हल का ये प दे खकर सो नया भ च क रह गई। वह दोबारा से सा हल के पास गई और उससे लपट गई, “सा हल! लीज मेरी बात तो सुनो मुझसे एक गुनाह हो गया है।” जवाब म सा हल गु से से बोला, “तु ह एक बार म समझ नह आता या। और ये या सा हल-सा हल लगा रखा है। मेरा नाम सुहैल खान है—सुहैल खान।” सो नया को फर अपने से र करते ए वह बोला, “और ये बात अ छ तरह से अपने दमाग म बैठा लो, अगर खुदा ने तु ह दमाग दया है तो।” सो नया पहले से ही परेशान थी ऊपर से अब ये सा हल से सुहैल खान। इस थ त म सो नया तो दोन जहाँ से गई। न तो उसे सनम मला और न ही खुदा क नजर म वह पाक रह गई। ‘मुझे मेरे ही गुनाह क सजा मल रही है।’ सा हल के इस बदले ए प को सो नया ने अपने गुनाह क सजा के तौर पर कबूल कर लया। मगर सो नया का दमाग ऐसे माहौल म भी काम कर रहा था।

सो नया भी चीख उठ , “सुहैल खान। तु ह मेरी बात सुननी ही होगी। आ खर तु हारे लए ही तो मने ये सब कया है।” शायद अपनी बात समझाने क ये सो नया क आ खरी को शश थी। सो नया के मुख से “सुहैल खान” सुन कर सा हल पर कुछ असर आ, “हमारे लए! हमारे लए या कया है तुमने…आ खर हम भी तो पता चले।” “खून कया है हमने। दो-दो भोली-भाली लड़ कय का।” अपनी हथे लयाँ सा हल को दखाते ए वह बोली, “तु ह इनम उन दोन का खून नजर नह आता या। दे खो, दे खो।” सो नया एकदम पागल -सी हो गई थी। वह सा हल को अपने हाथ दखा रही थी। और, कभी सो नया रो रही थी, कभी चीख- च ला रही थी। सा हल भी सो नया का ये प दे ख कर परेशान-सा हो गया। सा हल ने सो नया को कंध से पकड़ा, उसे झंझोड़ा। सो नया बदहवासी क -सी हालत म च ला रही थी, “सुहैल खान जी, हमने ये सब आपके लए कया है सफ आपके लए।” इतने म दरवाजे पर कसी ने द तक द । सा हल सो नया को वह छोड़ कर दरवाजे क ओर बढ़ा। दरवाजा खोला तो सामने डनर लए स वस बॉय खड़ा था। डनर े ले कर सा हल ने टे बल पर रखनी चाही मगर टे बल पर तो लफाफे का सारा सामान फैला आ था। थोड़ी जगह बना कर सा हल ने े टे बल पर ही रख द । “ये सब या रखा है सोनू।” सा हल ने तेज आवाज म पूछा। “ये-ये सबूत ह। रोशनी और नेहा के गुनाहगार के, जनके ज रए वे जेल जाएँग।े ” “तुम जानती हो उन गुनाहगार को!” “ब त अ छे से।” सो नया चीखी। वह अब भी अपने हाथ को दे ख रही थी जैसे क सचमुच ही खून लगा हो। “कौन ह वे?” सा हल का गु सा शांत होने लगा था। वह उन गुनाहगार का नाम जानना चाहता था। “अंकुर भैया जी और उनके साथी…” सो नया गु से म च लाई। “तु हारा भाई अंकुर!” “हाँ-हाँ। वही। म उसी खूनी वहशी द रदे क बहन ँ जसने अपनी बहन के छे ड़ने वाले का सर फोड़ दया और अपने बहन के यार को मारने के लए दं ग क आड़ म हमला करवाया और जसने नेहा और रोशनी को मार कर पेड़ पर टाँग दया…” सा हल का दमाग सून हो गया, “अब या करोगी तुम?” “म ये सारे सबूत द ली भेजूँगी।” सा हल का दमाग कुछ शांत आ। अब या करना है? कैसे करना है? इसी बारे म वह सोच रहा था। “सोनू।” यार से सा हल बोला। “ ँ।” पागलपन से सामा य होती ई सो नया ने बोला। “चलो इन सबूत को संभाल के रख लो। इ ह कुछ हो गया तो कुछ भी नह कर पाओगी तुम।” सा हल क बात का जा -सा असर आ। सो नया ने एक-एक करके सारी चीज लफाफे म रख द । सा हल ने वह लफाफा

अलमारी म रख दया। ऐसा करते ए सा हल मु कुरा रहा था। सो नया को हौले से कंधे से पकड़ कर टे बल के सामने रखी कुस पर बैठा दया और खुद भी साथ वाली कुस पर बैठ गया। “आओ डनर कर लो। फर दे खते ह क या करना है।” पछले कई दन से सो नया और सा हल एक साथ इसी टे बल पर डनर कर रहे थे। हर रोज क तरह खाना परोसने के लए सो नया ने सर वग पून उठाया और बाऊल का ढ कन हटाया। “हे भगवान! ये या है? लगता है कसी और का ऑडर हम सव कर गया है।” सो नया परेशान होती ई बोली। सो नया क हालत और लफाफे के सबूत के च कर म सा हल भूल ही गया था क उसने आज डनर म नॉन-वेज आइटम ऑडर कया था। उन लोग क सलाह पर अमल करने के लए। सा हल ने सामने े म रखे सारे खाने पर हाथ मार कर फक दया और पास पड़े इंटरकॉम पर गु सा होते ए डाँटने लगा। फर सा हल ने वेज डनर का ऑडर कर दया। डनर करके दोन बेड पर लेट गए। आँख म न द का नामो नशान नह था। शाम हो चुक थी, रात होने वाली थी। इस बीच सा हल कुछ सोच रहा था। इस बीच भी सा हल कुछ सोच रहा था। उसके दमाग म एक जंग-सी छड़ी ई थी—खुद सा हल और उसके दमाग के बीच—सो नया को लेकर… ‘…सो नया सचमुच मुझसे बेहद यार करती है। ऐसी सुंदर, समझदार और इंसाफ पसंद लड़क मलना ब त मु कल है। म कतना खुश क मत ँ क मुझे ऐसी लड़क मली, जो इंसाफ के लए अपने भाई क भी परवाह नह करती…और एक म ँ क उन उजड़ दमागहीन गुमराह लोग के कहने म आकर सो नया के यार को लव जहाद के तराजू म रख कर तौल रहा ँ। ध कार है मुझ।े …’ सा हल को अपने आप से घृणा हो रही थी। वह अपने उन हाथ को दे ख रहा था जनसे सो नया के रेशमी बाल ख चे थे। अपनी उस जुबान को कोस रहा था जससे उसने सो नया के स चे यार को सा हल के बदले सुहैल कहने पर मजबूर कया था। सा हल सोचता जा रहा था, ‘…और म इस यारी-सी लड़क के साथ या करने जा रहा था। उन गुमराह लोग के कहने पर इसे अपनी बांद बनाना चाह रहा था।’ सा हल के मन ने सा हल को ध कारा, ‘अरे नासमझ। ऐसी लड़क को अपनी बांद नह अपनी रानी बना कर रखना चा हए और उसक खदमत म खड़े रहना चा हए। ऐसी लड़ कयाँ खुदा क मत वाल को दे ता है।’ एकाएक सा हल का मोबाइल बज उठा। सो नया आँख मूँदे ए लेट थी। सा हल ने फोन उठाया।

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सा हल और सो नया सुबह उठे । ये सुबह दोन के जीवन क एक नई सुबह थी। ये सुबह थी— व ास क , आपसी समझ और यार क । ये सुबह थी एक अहसास क , एक नई सो नया क और एक नए सा हल क । जैसे कल शाम कुछ आ ही न हो। सो नया के चेहरे क ताजगी दे खकर कोई भी अंदाजा नह लगा सकता था क कल रात या- या आ! यारी-सी आवाज म सो नया ने सा हल को पुकारा, “उ ठए सुहैल मयाँ। सवेरा हो गया है। च लए दे र न क जए। आज ब त काम है।” ‘सुहैल मयाँ!’ ये सा हल ने सुना, सा हल हैरान था। वह अपनी हैरानी छपाते ए मु कुरा कर बोला, “सुहैल नह , सफ सा हल बोलो। म तु हारा सा हल ँ। और तुमने तो मुझे सा हल जान कर ही चाहा है न तो इस लए आज के बाद नो मोर सुहैल ओनली सा हल।” “नह , सा हल। मेरा यार इतना वाथ भी नह क वह तु ह सुहैल से सा हल बन जाने पर मजबूर करे। म तो तु ह बेबी, वीट , सा हल और सुहैल सभी कह कर पुका ँ गी और वो भी जब जो मेरा मन करेगा तब। अब बोलो या बोलते हो।” मधुर आवाज म बोलती ई सो नया मु कुराने लगी। सो नया के लंबे बाल घूम-घूम कर कंध पर गरे ए थे। एक-दो घुँघराली लट माथे से होते ए चेहरे पर झूल रही थ । सा हल ने सो नया को दे खा। वह मु कुराया और सो नया से लपट गया। धीमे से

वह कान म बोला, “सोनू तुम सचमुच क परी हो या ज त से उतरी ई कोई र। आई लव यू सोनू। लीज मुझे छोड़ कर कभी मत जाना। मेरे साथ रहना। और गलती से मेरे मुँह से कुछ नकल जाए तो म एडवांस म सॉरी बोल रहा ँ।” सो नया भी सा हल से लपट ई अपनी मधुर आवाज म बोली, “तुम भी मुझे कभी छोड़ कर मत जाना…चाहे कुछ भी हो जाए। और, म तुमसे कभी भी नाराज नह होने वाली। बस वादा करो तुम मुझे हमेशा इतना ही यार करोगे।” “आई वल ऑलवेज लव यू। आई व ट लीव यू एलोन।” “आई लव यू टू सा हल।” होटल से नकल कर दोन सीधा मा कट प ँचे। वह लफाफा को रयर करके दोन ने चैन क साँस ली। अब दल म कोई गुबार नह था। लफाफे म मौजूद सबूत अंकुर और उसके सा थय को जेल क सलाख के पीछे प ँचाने के लए काफ थे। दोन इधर-उधर मॉल म घूमते रहे। लंच टाइम हो चुका था। “सोनू, एक बात बताओ।” ेम से सा हल बोला। “ या?” मु कुराती ई सो नया ने पूछा। “कल रात अगर म तु ह नॉन-वेज खाने पर जोर दे ता तो…” बोलते ए सा हल ने सो नया के खुशी से चमकते ए चेहरे क ओर दे खा। “तो!” “तो या तुम वह नॉन-वेज भी खा लेती?” “सा हल तुम मुझे यार से जहर भी खलाओगे तो म वह भी खा लूँगी फर ये नॉन-वेज या चीज है मगर…” “मगर या!” “मगर तुम ये य पूछ रहे हो?” “ऐसे ही। मेरे मन म सवाल उठा।” इस पर सो नया संजीदा होती ई बोली, “सा हल, म कल रात सचमुच ही वह खा लेती। उसके बाद जो होता, सो होता। मगर…भगवान क कसम अपने यार के लए म कुछ भी कर सकती ँ।” सा हल सो नया के यार और उसके व ास को नापने क को शश कर रहा था मगर सा हल के पास सो नया के यार और व ास को नापने के लए कोई मीटर या टे प नह था। ऐसा मीटर या टे प नया म होता भी नह है! आँसु क कुछ बूँद सा हल क आँख से बाहर आ ग ज ह सो नया ने दे ख लया, “ये या सा हल तुम रो रहे हो?” “रोऊँ न तो और या क ँ ? आ खर म भी या पूछ बैठा तुमसे। खुदा इसके लए मुझे कभी भी माफ नह करेगा। आज से…” बोलते सा हल का। उसने सो नया क तरफ दे खा उसका हाथ अपने हाथ म लया और बोला, “आज से नॉन-वेज बंद। आज से जो तुमको हो पसंद वही बात करगे।” सा हल के मुख से एक पुराने गाने के बोल सुनकर सो नया मु कुराने लगी।

मई 2014 क मीर क मनोरम घाट म, अंजान जगह पर, एक शाम अंधेरा होने को था। कुछ गुमराह लोग एक बंद कमरे म द वार से पीठ लगाए लव जहाद के मु े पर चचा कर रहे थे। घाट का ये ह सा भारत म था या पा क तान म, कहना मु कल था। अगर सफ जमीन के टु कड़े क बात कर तो नःसंदेह, ये बंद कमरा कभी भारत क सरजम पर था ले कन इंसान क और वचार क और गौर कर तो ये अब कुछ और ही था। कमरे म छत से लटकता एक ब ब म म रोशनी कए ए था, अचानक ही फुसफुसाहट तेज आवाज म बदल ग , एक 30-35 साल का आदमी अपने काले चोगे क बाह ऊपर करता आ बोला, “जनाब, आप नाहक ही मुझ पर गु सा हो रहे ह। आपने जो भी कुछ पछली बार बताया था, उस पर अमल हो रहा है। लड़के अपने-अपने काम पर लगा दए ह।” तभी बाहर से कसी ने दरवाजे पर द तक द । एक आदमी ने उठकर दरवाजे म बनी एक झरी से बाहर दे खा। सब कुछ ठ क-ठाक है—ये जान कर उसने दरवाजा खोला। ये सब करते ए उसने अपना चेहरा पूरी तरह से ढँ क लया और कंबल म छु पाई ई मशीनगन को कस कर पकड़ लया। दरवाजे पर द तक दे ने वाला आदमी भी अपना चेहरा कंबल से ढँ के ए था, हाथ म मशीनगन लए उसने पूछा, “इतनी आवाज य आ रही है। मालूम है न आस-पास के लोग को पहले से ही हम पर शक है।” “कुछ नह । बस अपना एक आदमी कुछ यादा ही उछल रहा है।” दरवाजा खोलने वाले आदमी ने जवाब दया। “समझाओ उसको ऐसे नह चलेगा।” “अ छा, समझा ँ गा। तुम अपना काम करो।” “भाईजान, अपना काम ही तो कर रहा ँ।” वह थानीय भाषा म कुछ बड़बड़ाता आ, अंधेरे म कह छु प गया। शाम का अंधेरा गहराता जा रहा था और ठं ड बढ़ रही थी। कुछ आद मय ने मल कर कहवे का इंतजाम कर लया था। कहवा पीते ए बातचीत फर शु हो गई, “लड़के अपना काम कर रहे ह।” “ या खाक काम कर रहे ह! एक लड़का तो हमारा मारा भी गया…” चीफ नाराजगी जताता आ बोला। “कौन!” काला चोगा पहने ए जा कर ने हैरानी से पूछा। “ यादा नौटं क न करो तो तु हारे लए बेहतर होगा। और, ये मत समझना क हम इन तीन-तीन महीन क मी टग के भरोसे पर बैठे ह। तु हारे अलावा और भी कई मुख बर ह यहाँ पर हमारे, यहाँ क मालूमात करने के लए— ज ह तुम भी नह जानते!” “…” जा कर खामोश ही रहा। जा कर के मुख से नकले ए ‘कौन’ श द से चीफ और भी यादा गु सा हो गया। चीफ बोला, “ ‘कौन’ पूछ रहे थे न तुम। तो सुनो हम फरोज क बात कर रहे थे।” “ फरोज!” जा कर बस इतना ही बोल पाया। दरअसल जा कर इस व डर से

अंदर तक काँप गया था। वह चीफ के उन मुख बर के बारे म सोच रहा था ज ह ने ये खबर चीफ तक प ँचाई थी। जा कर अ छे से जानता था क जो लोग चीफ तक खबर प ँचाते ह, वे ही लोग चीफ के इशारे पर उसका काम तमाम भी कर सकते ह। जा कर अपने आप को संभालते ए भराई आवाज म बोला, “जी, म आपसे इस मसले पर बात करने ही वाला था।” “मगर क तो नह न। हम दमाग से पैदल समझ रखा है या? उस लड़के ने इतनी मेहनत से दावा डाला, जाल बछाया और एक च ड़या फँसाई भी थी। वह अपने मकसद म करीब-करीब कामयाब हो गया था। फरोज ने उस लड़क को हरा सूट भी पहना दया था…” “जी। चीफ।” “ या जी? अगर तुम इस मामले को ठ क से संभालते तो वह फरोज न तो ‘उन’ लोग के हाथ मारा जाता और न ही वह च ड़या हमारे हाथ से नकल पाती।” “चीफ, फरोज के लए तो मुझे भी बेहद अफसोस है। ले कन आप फ न कर, हमारा एक और लड़का अपने मकसद म कामयाब होने वाला है।” “ सफ एक ही!” “नह -नह , चीफ, मेरा कहने का मतलब है क एक लड़का च ड़या को दाना डाल चुका है। और ‘ च ड़या’ हरा सूट भी पहनने को तैयार है। और इसके अलावा भी कई लड़के दाना डाल कर बैठे ह।” “कुछ यौरा है…उन लड़क का, तु हारे पास। या फर सफ बात ही कर रहे हो।” “जनाब मेरे पास पूरा यौरा है। ये ली जए।” कागज जा कर ने चीफ क ओर बढ़ा दया। कागज को दे खते ए, वह गु से से बोला, “और…बाक का यौरा कहाँ है?” “दे ता ँ न, जनाब।” आदमी ने अपनी भरभराती ई आवाज म बोला और अपने क मीरी चोगे म से एक और कागज नकाल कर चीफ के हाथ म थमा दया। कागज नकालते व एक कागज का टु कड़ा वह लकड़ी के फश पर गर गया जस पर कसी का भी यान नह गया। चीफ थानीय भाषा म गाली बकते ए बोला, “तुम कभी भी नह सुधरेगा।” फर चीफ कुछ कदम आगे बढ़ा और ब ब के नीचे जा कर कागज पर दए गए नाम और उनके सामने लखी उ को दे खने लगा। उसक गु साई ई श ल पर एक मु कुराहट दखाई दे ने लगी। वह बोला, “उसका या आ जा कर?” “ कसका!” भराई ई आवाज म जा कर बोला। “वो नया लड़का जो कॉलेज म पढ़ता है। उसने भी कुछ दाना-वाना डाला आ था।” “जी हाँ, जनाब।” “फोन करके पता करो। यूँ ढ़लाई बरतोगे तो च ड़या दाना नह चुगेगी और हाथ नह आएगी। …और हमारा मकसद पूरा नह होगा।” कमरे म बैठे ए सभी आद मय क ओर मुखा तब हो कर बोला, “तुमने एक मैगजीन के आँकड़े नह दे खे या! हमारे

यहाँ अब इनक तादाद कतनी कम हो गई है। और तुम हो क हाथ आई च ड़या को नह पकड़ सकते। अरे, ‘ च ड़या’ को ‘हरा सूट’ पहनाना है क नह ! कतनी रकम जाया हो रही है इस मकसद म जानते भी हो। हमारे ऊपर भी कई लोग ह। हम भी जवाब दे ना होता है। और तुम हो क बस पचास हजार पए के च कर म कुछ कहते रहते हो, करते कुछ नह !” चीफ क झाड़ सुनते ए वह दाएँ-बाएँ दे खने लगा, वह चीफ से नजर नह मला पा रहा था। कभी छत, छत से लटकते ए ब ब और आस-पास क द वार से फसलती ई नजर जब शम से नीचे क ओर झुक तो नजर उसी कागज के टु कड़े पर पड़ी। ये कागज शायद कसी मैगजीन का था, झुक कर उ दराज ने वह टु कड़ा उठा लया जसे चीफ ने अपने हाथ म ले लया। चीफ ने कागज पर जो दे खा, वह एक रेट ल ट1 थी। स ख लड़क ₹7,00,000 पंजाबी ह लड़क ₹6,00,000 गुजराती ा ण लड़क 6,00,000 ा ण लड़क ₹5,00,000 य लड़क ₹4,50,000 क छ क गुजराती लड़क 3,00,000 जैन/मारवाड़ी लड़क ₹3,00,000 पछड़ी जा त क /वनवासी ₹2,00,000 बौ लड़क ₹1,50,000 चीफ ने सभी पर नजर दौड़ा और नाराजगी से बोला, “लो, उ ह हमारी हर खबर क जानकारी है। और, तुम लोग हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहते हो।” दरअसल इस तरह क मी टग हर तीन दन म होती थी। इस मी टग म चीफ अपने नुमाइंद से कब या कया और बदले म कसको कतने पए दए गए इन सब बात का यौरा इकट् ठा करता था। कसने कतनी च ड़या फँसाई और कतनी फँसने वाली ह इस पर यादा यान दया जाता था। सामने खड़े जा कर ने जेब से मोबाइल नकाला और एक नंबर मलाया। अभी कल ही जा कर ने सुहैल को कॉल कया था जसे सुहैल उठा नह पाया था। जा कर ने सोचा था क सुहैल और सो नया दोन बंगलु म म ती कर रहे ह गे। जा कर को पूरा यक न था क सुहैल अपने मकसद म कामयाब हो जाएगा और चीफ के मंसूब को अमली जामा पहना दे गा। जा कर ने सुहैल को नंबर मलाते ए पूरे यक न के साथ चीफ क ओर दे खा। न जाने जा कर के मन म या आया क उसने मोबाइल का पीकर ऑन कर दया। वह बोला, “हैलो।” सरी तरफ से सुहैल ने कॉल पक क , “क हए जनाब कैसे याद कया।” चीफ और जा कर दोन के चेहरे पर एक कु टल मु कान नाच रही थी।

ह।”

“जरा बताओ क उसका या आ? उस च ड़या का।” “ कसका और कस च ड़या क बात कर रहे ह आप।” सुहैल ने हैरानी से पूछा। ऐसा जवाब सुनकर जा कर ने पूछा, “तुम सुहैल ही बोल रहे हो न।” “जी हाँ म सुहैल ही बोल रहा ँ। और कई लोग मुझे सा हल के नाम से भी जानते

सुहैल का ये वा य सुनकर जा कर थोड़ा गम हो गया। सारी बातचीत पीकर पर सभी सुन रहे थे। अपनी कर करी होते दे ख कर वह स ती से भराई आवाज म बोला, “ठ क है। ठ क है। जानते ह गे तु ह सा हल के नाम से भी। इससे हम कोई मतलब नह । बस तुम ये बताओ क उस च ड़या के साथ नकाह कब कर रहे हो। चीफ इस बात पर ब त खुश है। पचास हजार क जगह वह पूरे एक लाख पए लेकर सामने खड़े ह। सरा तु हारा वह लोन भी माफ कर दया जाएगा।” जा कर बना के अपनी ही रौ म बोलता जा रहा था “बस तुम हम तारीख बता दो। हम तु हारे नकाह का इंतजाम उधर बंगलु म करवा दगे। फर उसके बाद…” बोल कर जा कर हँसने लगा। उसने चीफ को आँख मारी। “उसके बाद या!” सुहैल गंभीर होता आ बोला। “उसके बाद पाँच-छह ब चे और या। फर सरी च ड़या क तलाश…बाक तुम ब त समझदार हो।” “ये या च ड़या- च ड़या लगा रखा है। कस च ड़या क बात कर रहे हो तुम लोग।” सुहैल ने अपनी पूरी ताकत लगा कर जोरदार आवाज म पूछा। “अरे भई, तु ह या आ! हम तो सफ उस लड़क … या नाम है उसका… सो नया के बारे म तुमसे बात कर रहे ह। इसम इतनी भड़कने वाली या बात है?” एक तेज दमाग वाले लीडर क तरह बातचीत को जारी रखते ए जा कर ने पूछा। “इसम भड़कने वाली या बात है…और वो ये क हम उसे अपनी जान से भी यादा मुह बत करते ह और हम उससे नकाह भी करगे और शाद भी और वो भी जब हमारी मज होगी। इसके लए हम तु हारे जैसे गुमराह लोग क मदद नह चा हए।” सुहैल बोलता गया। उधर क मीर क ठं डी शाम म गम का माहौल बन चुका था। जा कर ने अपनी भराई ई आवाज म सुहैल को कुछ समझाना चाहा। वह अभी बोल ही रहा था क चीफ ने मोबाइल अपने हाथ म ले लया, “सुनो सुहैल।” सरी तरफ बात करने वाला बदल चुका है ये बात सुहैल बात सुन कर जान चुका था। वह बोला, “क हए। आप भी क हए।” रौबदार आवाज म चीफ बोला, “हम बस इतना ही कहना है क यूँ उस लड़क के इ क म द वाने न बनो। हमारी मं जल यादा र नह है। अगर तु ह रेट कम लगते ह तो हम रकम को बढ़ा भी सकते ह।” इस पर सुहैल और यादा भड़क गया, “सारी नया क दौलत भी अगर तुम मेरे सामने ला कर रख दो, तो भी मेरा इरादा नह बदलने वाला। जो लड़क ये जानकर भी क म मु लम ँ फर भी मुझसे उतना ही यार करती है जतना क वह मुझे ह जानकर करती है तो ऐसी लड़क को धोखा दे ना खुदा क नजर म भी गुनाह होगा

य क ये ईमानदारी नह बेईमानी है। और, इससे अमन नह जंग होगी। मेरा याल है तुम मेरी बात समझ गए ह गे।” गु से से सुहैल ने पूछा। “हम तो तु हारी बात समझ चुके ह क अब तुम सुहैल नह सा हल हो। मगर एक बात है जो तुम अभी तक नह समझे हो।” चीफ ने धमक द । “ या?” सा हल तेज आवाज म च लाया, इस बात से बेखबर क सो नया अभी जाग रही है। “यही क हमसे बचकर तुम अपनी ेम क नया बसा पाओगे, ऐसा मुम कन नह । तुम नह जानते क हमारे हाथ कतने लंबे ह। हमारे लए कुछ भी नामुम कन नह है।” “तुम या करोगे?” सा हल च लाया, “मुझे मरवा दोगे न, तो मरवा दो। पर…ये समझ लो क ये भी तु हारी हार होगी और हमारे यार क जीत होगी।” “तु ह नह …” चीफ बोला। “तो फर कसे…” “तु हारी उस च ड़या को जसने तु ह बागी बना दया है। और हमारे खलाफ कर दया है। ब त म त ‘चीज’ होगी वह लड़क । हम भी उसे दे खना चाहगे और दे खगे क उसम ऐसा या है जो तुम हमसे भी ग ारी करने पर उतर आए।” “तुम उसे कुछ नह करोगे। तु हारी मनी मुझसे है। तुम उसे बीच म य ला रहे हो?” “उसे हम बीच म नह लाए सा हल मयाँ।” ट ट मारते ए चीफ बोला, “उसे तुम बीच म लाए हो। और जब वह हमारे बीच आ ही गई है तो हम इस द वार को भी गरा दगे।” “मेरे रहते ए तुम सो नया को हाथ भी नह लगा सकते…” सा हल च लाया। गु से से उसका चेहरा लाल हो चुका था। बात करते ए सा हल पलंग से उठकर सामने कुस पर बैठ कर बात कर रहा था और सारी बात सो नया चुपचाप सुन रही थी। सो नया क आँख से आँसू बह रहे थे। सो नया को अपने सा हल पर गव था, अपने यार पर पूरा यक न था। सरी तरफ एक कु टल और जहरीली हँसी के साथ कॉल काट द गई थी। तमतमाता आ सा हल मोबाइल पर च लाता रहा, “हैलो, हैलो।”

1. ोत : http://www.hvk.org/2012/0912/112.html

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फोन पर ई इस धमक भरी बहस के चलते सा हल का यक न खुद पर से हटने लगा। वह हर व उदास और परेशान-सा रहने लगा। सा हल के इस बताव के पीछे या वजह है, इस बात से सो नया अंजान थी। ‘कुछ तो गड़बड़ है, वरना सा हल इस तरह गुमसुम-सा, और मायूस नह होता।’ सो नया जब भी सा हल को दे खती तो यही याल उसके दमाग म क ध जाता। सो नया क भरपूर को शश के बावजूद सा हल ने इस बारे म कभी कुछ नह बताया था। कुछ दन बाद… एक शाम सा हल को फर से फोन आया। ये लोग वही थे ज ह ने सा हल को धमक द थी—सो नया को मार डालने क और नुकसान प ँचाने क । मोबाइल न पर, नंबर दे खते ही सा हल गु सा हो गया। वह बोला, “कहो, अब य फोन कया?” “बताते ह, बताते ह मयाँ। तुम तो हमेशा गु से म ही रहते हो। जरा हमारी बात तो सुनो।” सो नया अभी-अभी वाश म गई थी। सा हल क तेज आवाज सुन कर, उसने इस ओर यान दया। सा हल क आवाज वाश म के अंदर भी साफ-साफ सुनाई दे रही थी। “बको।” “बको!” उन लोग को सा हल से ऐसे जवाब क उ मीद नह थी। मगर वे भी मँझे ए खलाड़ी थे। उनम से जो उनका लीडर लग रहा था बोला, “बकते ह। तुम जरा नीचे

पा कग म तो आओ।” “आता ।ँ पा कग म।” पाँच मनट बाद, सा हल पा कग म उनके सामने था। “आओ गाड़ी म बैठो।” एक ठगने से आदमी ने आगे बढ़ कर उसे गाड़ी म लगभग धकेलते ए बैठा दया। सा हल के लए बड़ा अजीब था। इसके अलावा दो लोग और थे। एक ाइवर सीट पर और एक गाड़ी के अंदर। सा हल ने गाड़ी से बाहर नकलने क को शश क तो लीडर ने अपने लंबे से कुत के नीचे से रवॉ वर नकाल कर सा हल के सर पर तान दया। “तुम ये या कर रहे हो?” सा हल ने घबराते ए धीमे से पूछा। “अभी तो कुछ कया ही नह है मयाँ! अगर कहो तो कर द।” हँसते ए रवॉ वर थामे ए वह लीडर बोला। “ या करोगे मेरे साथ? तुम जानते नह या मुझे!” “जानते ह, ब कुल जानते ह। तभी तो तु ह समझाने आए ह वरना तो कब का तु ह ऊपर प ँचा दया होता।” “मतलब!” “मतलब…तुम अ छ तरह से जानते हो। यादा द वाने न बनो उस ‘ च ड़या’ के लए। ऐसी-ऐसी कई तु ह मल जाएगी अगर हमारे मुता बक चलोगे तो।” “तु हारे मुता बक ही तो चल रहा ँ। और या क ँ ?” “कहाँ हमारे मुता बक चल रहे हो!” “तो, तुम सब या चाहते हो हमसे?” “वो तुम अ छ तरह से जानते हो, कहो तो एक बार फर बता द।” कुछ पल खामोश रहने के बाद सा हल बोला, “म नकाह क ँ गा न, सो नया से। इसम इस रवॉ वर क या ज रत है। आ खर म तु हारा ही तो आदमी ँ। नकाह करके उसे ‘हरा सूट’ भी पहना ँ गा। और बोलो…। इसके अलावा और या चाहते हो मुझसे।” “अभी भी तु ह समझ नह अया है। नकाह करना है, तो करो न। कसी चीज क ज रत है तु ह, हम बताओ। पया-पैसा, मु ला मौलवी सब कुछ यहाँ पर अरज हो जाएगा, तुम आवाज तो करो। और सफ नकाह ही करने से कुछ नह होगा। उसे अपने मुता बक बनाओ वरना तो उसके दल म घर वापसी क तम ाएँ उठती रहगी।” “म उससे नकाह क ँ गा और ज द ही क ँ गा।” “और बाक का काम!” सा हल खामोश ही रहा। सा हल जानता था क बाक के काम का मतलब ब चे पैदा करने से था। “बाक के काम के बारे म पूछ रहे ह हम।” उ ह ने पूछा। रवॉ वर अभी भी सर पर तानी ई थी। सा हल फर से खामोश था। “हाय। तु हारी ‘ च ड़या’ या नाम है भई उसका।” अ ीलता से उसने पूछा। “भाई, सो नया।” ठगना बोला।

“हाय” ठं डी आह भरते ए सो नया का नाम लेने लगा। सा हल अपना गु सा ज त करने क को शश कर रहा था। पर चेहरे के भाव पढ़ कर वह रवॉ वर वाला जा कर बोला, “यार, जो भी हो वह चीज बड़ी म त होगी। तभी हमारे भाई को अपने क जे म कर लया है। दे खो तो जरा, कैसे लाल-पीला हो रहा है इसका चेहरा।” गाड़ी क पछली सीट पर बैठे ए लीडर ने सा हल क गरेबान पकड़ी और दो तमाचे गाल पर रसीद कर दए। सा हल तड़प उठा। वाश म म सो नया को इतना तो पता चल गया था क कसी ने सा हल को पा कग म बुलाया है। ‘मगर उनका मकसद या है और सा हल इतना गु से म य है।’ यही सब सोचते ए सो नया बाहर आई। कमरे म सा हल नह था। ‘ओह, सा हल चला गया। वह कह कसी मुसीबत म न फँस जाए।’ इसी भावना के साथ सो नया सरी ल ट से होटल क पा कग म प ँची। ये एक अंडर ाउंड पा कग थी। धुँधली-सी रोशनी और फड़फड़ाती ई ट् यूबलाइट ने माहौल को भयानक बना दया था। सो नया ल ट से नकली, इधर-उधर कुछ भी नजर नह आया — सवाय गा ड़य क कतार के। ‘आ खर सा हल कहाँ गया होगा!’ सो नया ने गा ड़य क कतार के सरी तरफ जा कर दे खना चाहा। वह अभी कुछ ही कदम चली होगी क उसे कुछ आवाज सुनाई द । आवाज क दशा म वतः ही उसक गदन घूम गई। कुछ 20 मीटर क री पर एक ह डा सट म तीन लोग बैठे ए थे। सो नया ने यान से दे खा तो गाड़ी क पछली सीट पर कोई दाढ़ वाला आदमी सा हल क गरेबान पकड़े ए था। सा हल अपने आप को छु ड़ाने क को शश कर रहा था। इसी बीच एक आदमी ने सा हल के गाल पर दो तमाचे जड़ दए। सो नया से ये दे खा न गया। वह च लाती ई गाड़ी क ओर बढ़ , “बचाओ, मेरे सा हल को छोड़ दो।” गाड़ी म बैठे ए आद मय ने बजली-सी फुत दखाई और अगले ही पल। सा हल गाड़ी से बाहर था मगर उसके सर पर रवॉ वर लगाई ई थी। “अगर जरा भी आवाज क तो इसे गोली से उड़ा ँ गा।” लीडर क धमकती ई एक आवाज ने सो नया का खून जमा दया। वह बुत क तरह एक जगह खड़ी हो गई। तभी सा हल बोला, “सोनू, तुम यहाँ य आ गई? तु ह यहाँ नह आना चा हए था। ये ब त ही खतरनाक लोग ह।” ाइवर ने बाक के दोन क ओर दे खा, “यही है वह च ड़या जसने हमारे सुहैल को बागी बना के रख दया है।” एक भयानक मु कान तीन के होठ पर नाचने लगी। “सुन लया न तुमने।” सो नया से लीडर बोला, “हम ब त खतरनाक लोग ह।

जरा भी हो शयारी दखाई तो तुम दोन को यह पर उड़ा दया जाएगा।” सा हल अब तक समझ चुका था क मामला हाथ से नकल चुका है। उसने समझदारी दखाते ए तीन से गुजा रश क , “भाइय , मुझे एक बार सो नया से बात करने दो वरना तुम हम मारने का इरादा तो कर ही चुके हो। मरने वाल क आ खरी वा हश तो…” तीन ने भी समझदारी दखाई, उ ह सफ सा हल को डरा-धमका कर सो नया को ‘हरा सूट’ पहनाने के लए मजबूर करने का म मला था। “बस बस, यादा ामेबाजी मत करो। बको या कहना चाहते हो अपनी च ड़या से।” ‘ च ड़या कौन है?’ सो नया ये सोच ही रही थी क सा हल सो नया से बोला, “सोनू, सुनो। मेरी बात यान से सुनो। हम ज द ही नकाह करना होगा।” सो नया सा हल के चेहरे के भाव को पढ़ने क को शश कर रही थी। सो नया को लगा क सा हल क बात मान लेने म ही सब क खैर है। “हाँ-हाँ। हम तो कल ही नकाह करने के लए तैयार ह। बस।” “बस या!” ठगना च लाया। “मेरा मतलब, कुछ शाद क ेस और वैलरी वगैरह से था। मगर कोई बात नह ; हम ऐसे ही दो जोड़ म ही सुहैल से नकाल करने को तैयार ह।” “ऐ लड़क , तुमने या हम भखारी समझ रखा है। एक-दो दन म हम सारा इंतजाम करवा दगे।” सो नया क बात पर चढ़ते ए लीडर बोला। “जी। जैसे आप ठ क समझ।” सो नया ने मौके क नजाकत को दे खते ए हामी भर द । तभी ठगना लीडर के पास गया और उसके कान म कुछ बड़बड़ाया। ठगने क बात सुन लीडर एकदम गु से म आ गया। सा हल को गदन से पकड़कर ाइवर क ओर ध का दे दया और खुद सो नया क ओर बढ़ने लगा। अभी एक ही कदम बढ़ाया था क सा हल चीखा, “नह -नह । तुम सो नया को कुछ नह करोगे। वह राजी तो है नकाह के लए।” “खामोश।” ाइवर ने एक तमाचा और सा हल को लगा दया। सा हल के होठ के पास से खून क एक लक र-सी उभर आई। गु से म सा हल क आँख लाल हो गई थ । मगर वह बेबस और लाचार था— रवॉ वर क नली अब सो नया के सर पर जो तनी ई थी। लीडर ने रवॉ वर क नली सो नया के होठ के पास रख द और उसके रेशमी बाल को ख चता आ बोला, “दे खो च ड़या। तुमने हमारे एक कामयाब और बेहद खूबसूरत लड़के को अपनी खूबसूरती के जाल म फँसा लया है, तो इसका ये मतलब ब कुल मत समझ लेना क हम भी तु हारी बात म आ जाएँग।े …तुमने शायद अभी हम ठ क से जाना नह है।” सो नया अपने दोन हाथ से अपने बाल को छु ड़ाने का यास कर रही थी। “ऐसे तो ब कुल नह छू ट सकत तुम।” बोलते ए लीडर ने सो नया के बाल को और जोर से ख चा।

सो नया दद से चीखने वाली थी क लीडर ने रवॉ वर को सो नया के खूबसूरत गुलाबी होठ ये सटा दया। सो नया क चीख गले म ही छू ट कर रह गई। सो नया क चीख सुनकर सा हल म न जाने कहाँ से इतनी ताकत आ गई क उसने लीडर पर हमला कर दया। रवॉ वर लीडर के हाथ से छू ट कर र जा गरी। लीडर इस हमले के लए तैयार न था। सा हल ने लीडर क ग रबान पकड़ा कर उसके सर म ट कर मारी। लीडर जमीन पर गर गया। बजली क -सी तेजी से सा हल ने दो घूँसे लीडर के चेहरे पर जड़ दए। लीडर का चेहरा खून से लाल हो गया। मगर इसके जवाब म ठगने और ाइवर ने अगले ही पल थ त संभाल ली और सा हल को बुरी तरह पीटने लगे। सा हल समझ चुका था क अब इनसे मुकाबला करना बेकार है। वह बोला, “ लीज, खुदा के लए रहम करो। इस बेचारी ने तु हारा या बगाड़ा है। वह हामी तो भर रही है न नकाह पढ़ने क ।” “हाँ कह न म त द ल न हो जाए। ये जहमत हम इसी लए उठा रहे ह।” इतने म पा कग दो हेडलाइट क रोशनी से जगमगा उठ । तीन ने सा हल और सो नया को एक द वार क ओट म ख च लया। गाड़ी अभी र थी। लीडर और सो नया एकदम पास-पास खड़े थे। सो नया लीडर क साँस को अपने चेहरे पर सहन कर रही थी। लीडर धीरे से सो नया से बोला, “दे खो, च ड़या। हमारे आद मय ने तुम पर और सा हल पर ब त मेहनत क है। ये मत समझना क तुम यू.पी. से द ली और द ली से बंगलु आ गई हो तो हमसे बच जाओगी। एक बात कान खोल कर सुन लो।” अपना चेहरा प छते ए लीडर ने सो नया क आँख म आँख डाली, “अगर हमसे हो शयारी दखाई तो हम सा हल को मार दगे… य क हम नाकाम सपाही क कोई ज रत नह है। और हम सा हल को मारकर बाक के लोग को एक सीख भी दगे क हमसे ग ारी क सजा मौत है— सफ मौत।” सो नया, सहमी ई-सी, लीडर का चेहरा दे खती रही। इतने म, एक गाड़ी आई, द वार के पास क । इस गाड़ी के ाइवर ने तीन क गाड़ी को दे खा और बड़बड़ाता आ आगे चला गया। तीन क गाड़ी बीच रा ते म खड़ी ई थी। सो नया को एक तरफ ध का दे कर, लीडर ने सा हल को गाड़ी म धकेला और सो नया को ऊपर जाने का इशारा कया। सा हल ने भी हाथ जोड़कर सो नया को ऊपर जाने क गुजा रश क । ाइवर ने गाड़ी म बैठने से पहले सो नया से कहा, “कुछ भी गड़बड़ क तो तु हारा सुहैल, मेरा मतलब सा हल जदा नह बचेगा।” तीन ने सा हल को गाड़ी म धकेल दया और पा कग से नकल गए।

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पा कग म, सो नया ने गाड़ी जाने के बाद अपने आपको संभाला। और जैस-े तैसे अपने म तक प ँची। सो नया का ये पहला मौका था जब उसने रवॉ वर को हक कत म दे खा था। लहाजा डर और चता सो नया के मन और म त क दोन पर का बज थी। लगभग आधे घंटे बाद कसी ने दरवाजा खटखटाया। सो नया दोन पैर को जोड़े सोफे पर एक तरफ, गठरी-सी बन कर खड़ी ई थी। वह उठ , दरवाजे क मै जक आई से झाँका, सामने सा हल था। डरी ई सो नया म जैसे जान आ गई हो। तुरंत ही दरवाजा खोला और सा हल से लपट कर रोने लगी। सा हल, जो खुद भी चो टल था, ने सो नया को संभाला और बोला, “तुरंत सामान पैक करो।” आवाज घबराई ई थी। “ या ब त खतरा है यहाँ पर?” सो नया ने पूछा। “पता नह । मगर मुझे इनके इरादे ठ क नह लग रहे ह। अब इनके सर पर खून सवार है। ये कुछ भी कर सकते ह। हम यहाँ से ज द ही नकलना होगा।” सो नया के हाथ ज द -ज द चल रहे थे। “ सफ ज री सामान ही पैक करो। और हाँ वह रोशनी का पैकेट भी रख लेना। उसे मत भूलना।” सो नया ने पै कग करते ए गदन झुका कर हामी भरी। सा हल ने अपने कपड़े बदले, और चेहरे क दाढ़ -मूँछ ब कुल साफ कर द । अब सा हल का नए नया ही प

सो नया दे ख रही थी। रात घर आई थी। अंधेरे का फायदा उठाते ए कसी ठकाने पर प ँच जाना— यही सा हल क योजना थी। होटल का भुगतान करने के बाद सा हल के पास, अब कैश कम ही बचा था। सा हल बोला, “सोनू, तु हारे पास कुछ कैश है या?” ये पहला मौका था जब सा हल ने पए-पैसे को लेकर सो नया से बात क थी। “दे खती ँ।” पस को चैक करती ई सो नया ने कहा, “हाँ। ये कुछ पए ह।” पाँच सौ के 6 नोट उसने सा हल के हाथ म थमा दए। सा हल के कंध पर एक बैकपैक था जसम दोन के कुछ कपड़े और वह सबूत वाला पैकेट था। इसके अलावा सो नया के पास एक ले डज पस था। चाहता तो सा हल उनके दए ए काड से पेमट कर सकता था मगर ऐसा करने से उन लोग को सा हल और सो नया क लोकेशन के बारे म खबर मल जाती—जो दोन के लए अ छा नह था। ये एक छोटा-सा होटल था। सो नया को म से बाहर न नकलने क हदायत दे कर वह खुद रसे शन पर गया और एक नंबर मलाया। मोबाइल के जमाने म लडलाइन इ तेमाल करने के लए जब सा हल ने रसे शन पर पूछा तो रसे शन पर बैठे आदमी को थोड़ी हैरानी ई। वह लगातार सा हल को अचरज से दे खता रहा। जसक वजह से सा हल अपनी बात सही तरीके से नह कर पाया। और सा हल क कसी से मदद माँगने क ये को शश बेकार ही गई। फर सा हल होटल से बाहर नकला, पो ट ऑ फस प ँच कर वह सबूत वाला लफाफा गृह मं ालय, नई द ली ऑ फस के पते पर पो ट कर दया। सा हल ने इस दौरान पूरी समझदारी और सावधानी से काम लया। ‘कह कोई मेरा पीछा तो नह कर रहा है।’ यही वचार बार-बार सा हल के दमाग म उठ रहे थे। सा हल क सावधानी और समझदारी को ग चा दे कर, सचमुच ही कोई उसका पीछा कर रहा था। सो नया और सा हल का ये तीसरा दन था इस स ते होटल म। होटल टाफ को इनके बताव के चलते इन पर पहले दन से ही शक हो गया था। सा हल ने अपना मोबाइल बंद कर दया था। कुछ दन पहले, उधर द ली म। अंकुर और मु ा दोन ही परेशान थे। अंकुर क बहन सो नया को गायब ए कई दन बीत चुके थे। अंकुर को शक था क सुहैल ने उसक बहन को ‘कुछ’ कर दया। अंकुर कसी भी तरीके से अपनी बहन

का बदला, सुहैल से लेना चाहता था। मगर सुहैल और सो नया का कुछ अता-पता ही नह मल रहा था। मु ा भी कम परेशान नह था। जब से उसे अपने पता जी का एक मैसेज मला तभी से वह चता म था। ‘ पता क बात माने या दो त क मदद करे!’ उसे कुछ समझ नह आ रहा था। मगर जब बात जदगी और मौत क हो तो सारी समझ धरी-क -धरी रह जाती है। मु ा को मैसेज मला था—‘रोशनी के केस म तु ह फँसाने क तैयारी हो रही है। ज द ही गायब हो जाओ और पढ़ने के बाद मैसेज डलीट कर दो।’ आज चौथा दन था। डरे ए सहमे से सा हल और सो नया कमरे से बाहर भी नह नकले थे। रोजाना सफ तीन बार ही दरवाजा खुलता था— ना ते, लंच और डनर के लए! आडर अब पसंद से नह , रेट के हसाब से कया जा रहा था। कैश कम होता जा रहा था। या कर? या न कर? कुछ सूझ नह रहा था। मगर इस परेशानी म भी एक अ छा काम आ। सा हल और सो नया के बीच म यार तो पहले से ही था, मगर अब अंडर ट डग भी हो गई। दोन को एक- सरे क आदत-सी हो गई थी। अब दोन ही एकसरे का सहारा थे। “कुछ-न-कुछ करना पड़ेगा। आ खर हम कब तक ऐसे छप कर रहगे।” सो नया ने आ मीयता से कहा। सा हल ने सो नया क ओर दे खा। आँख म सैकड़ सवाल तैर रहे थे, जनके जवाब न तो सा हल के पास थे और न ही सो नया इन सवाल के बारे म कुछ जानती थी। “म एक फोन करके आता ँ।” सा हल बोला। “म भी साथ चलती ।ँ ” सो नया भी पलंग से उठ खड़ी ई और अपने बाल सँवारने लगी। “तुम यह रहो। और, चाहे कुछ भी हो जाए दरवाजा मत खोलना। लीज मेरी बात समझो।” आ खरी वा य सा हल ने कुछ इस तरह से कहा क सो नया कुछ भी न बोल पाई। “ कसे फोन करोगे!” “म दे खता ँ।” शायद सा हल खुद भी नह जानता था क वह कसे फोन करेगा! द ली से एक फोन कॉल यू.पी. कया गया। हजार फोन कॉ स रोजाना ही क जाती ह। मगर ये कॉल कुछ अलग थी। द ली के नॉथ लॉक के एक पी.सी.ओ. से यू.पी. एक नेता के मोबाइल पर कॉल कया गया था। “हैलो!” “हैलो!”

“मेरे पास तु हारे लए एक लान है।” “मुझे नह सुनना कोई लान- लान। फोन रखो।” नेता जी पहले से ही अंकुर और सो नया को लेकर परेशान था। “नेता जी ही बोल रहे ह न।” “हाँ। हम नेता जी बोल रहे ह।” “भैया जी के पापा न!” “हाँ-हाँ, म ही बोल रहा ँ।” मलखान सह अब तक समझ गया था क सरी तरफ कोई साधारण नह है, जो सरे लोग को े डट काड और पॉ लसी करवाने के लए लान बताता हो। “आपके लए एक खबर है। जोरदार।” “तुम कुछ बकोगे भी, या यूँ ही खबर है, खबर है कहते रहोगे।” “ऐसे नह नेता जी। इस खबर के बदले म मुझे या मलेगा।” मलखान सह सोच म पड़ गया। कुछ सोचकर बोला, “खबर तो बताओ पहले।” “ये जान लो क ये खबर अंकुर क जदगी और मौत से ल ड है।” “अरे, कुछ बताओगे भी या यूँ ही बकैती करते रहोगे।” “2 करोड़।” “ या 2 करोड़!” “इस खबर क क मत।” मलखान सह पशोपश म था। फर भी उसने जवाब दया, “कैसे लोगे?” “कैश ही लूँगा। नेता जी। कोई ा ट थोड़ी ही चलेगा इस काम के लए।” सरी तरफ का मु कुरा रहा था। मलखान सह समझ गया था क कोई ब त बड़ा च कर है, “मेरा मतलब है कसे ँ ।” “क म र से जा कर मल लो।” “उसे य बीच म ला रहे हो।” मलखान सह बोला। इस पर फोन पर वह धीमे से हँसते ए बोला, “अरे वही तो तु ह आगे क कहानी समझाएँगे।” मलखान सह क परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। ाचार क नया के सभी काय ाचार-र हत ही होते ह। यही हमारे समाज क वडंबना है। एक कं यूटर टे ड नोट के साथ सारे सबूत टे बल पर सलीके से रखे ए थे। ऑ फस म कोई नह था, सवाय उस उ च अ धकारी के, जसका सरनेम यू.पी. के एक ब त बड़े नेता का सरनेम भी था। एक ब त ही व ासपा इस अ धकारी के ऑ फस म दा खल आ। उ च अ धकारी और उस म या बातचीत ई इसक खबर कसी को भी नह थी। थोड़ी दे र बाद यही व ासपा आदमी पास ही के एक पी.सी.ओ. क ओर जाता

दखाई दया। क म र को मठाई इस बार बो रय म द गई। नेता जी हँसते ए क म र के ऑ फस से बाहर नकला। नेता जी को हँसता आ दे ख कर, ाइवर ने भी मु कुराते ए सलाम बोला, “राधेराधे नेता जी। चलना है या?” “और नह तो या, यह पर धरना दे ने का इरादा है।” मु कुराते ए मलखान सह बोला। “ कधर चल?” “सीधा घर।” मलखान सह बोला। अगले बीस मनट म गाड़ी मलखान सह के घर के बाहर थी। मलखान सह जब घर के अंदर चला गया तो ाइवर ने एक मैसेज सड कया, ‘नेता जी ब त खुश लग रहे ह’ ये मैसेज पढ़ कर बलवीर सह के होश उड़ गए थे। आ खर बलवीर सह कोई आम इंसान नह था। वह जुम क नया का एक ‘सायाना’ आदमी था जसे मलखान सह क हर छोट -बड़ी बात का अथ समझने के लए जरा भी सोचने क ज रत नह पड़ती थी। बलवीर ने तुरंत एक मैसेज सड कया, ‘तुरंत नकलो और अंडर ाउंड हो जाओ।’ ये मैसेज पढ़ते ही, मु ा अंकुर से बोला, “भैया जी, हम अभी आते ह। आपको कुछ चा हए या?” मु ा का मतलब क से था। “नह । मगर तुम ज द आ जाना।” अंकुर और मु ा दोन अभी भी द ली म ही थे। मु ा वहाँ से नकला और फर कभी वापस नह आया। वह अंडर ाउंड हो गया था। जुम क काली नया के आका क नजर से बचाकर भी कुछ ‘जुगाड़’ बना कर रखना चा हए, ये बात बस एक मँझे ए खलाड़ी के दमाग म ही आ सकती है और बलवीर सह ऐसा ही मँझा आ खलाड़ी था।

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ठगने और ाइवर के साथ जो लीडर था, उसे सा हल और सो नया क बात पर जरा भी यक न नह था। इस लीडर के ऊपर भी कुछ लोग थे जो सफ बड़े-बड़े फैसले लया करते थे। एक आदमी जस पर पूरा यक न हो क वह ‘ च ड़या’ को फँसा लेगा, अगर अपने मकसद म कामयाब नह होता तो ये सबक नाकामी समझी जाएगी और इसके एवज म सभी को मलने वाली रकम से हाथ भी धोना पड़ सकता था। इसके अलावा ‘वे’ लोग इस नाकामी क या सजा मुकरर करगे—ये बात भी बड़ी परेशानी का सबब बनी ई थी। ाइवर और ठगने ने नकाह के लए सारे ज री सामान का इंतजाम कर लया था। वे उस होटल म दो दन बाद प ँचे—मगर सा हल और सो नया दोन गायब थे। इसका साफ मतलब था क दोन ने बगावत कर द है और उनके खलाफ जाने का फैसला कर लया। ये एक ब त ही ज री खबर थी जो अगर क मीर म बैठे ए आका को कसी और ज रए से पता लगती तो इन तीन आद मय क शामत आनी प क थी। इसी लए लीडर ने ठगने को दोन सा हल और सो नया को ढूँ ढ़ने भेज दया था। और मौके क नजाकत को दे खते ए लीडर ने मोबाइल पर एक नंबर मलाया, “सलाम वालेकुम जनाब।” “वालेकुम सलाम।” “क हए। या खबर है? सब खै रयत है वहाँ पर।” “जी सब खै रयत है जनाब। बस…” “बस या!” “वह च ड़या के जाल म फँस गया है और उसने हमसे बगावत कर द है।”

“कौन? कधर क बात कर रहे हो?” “उ म दे श क , उस लड़के क जसके चचा हमारे ब त पुराने वा कफ ह।” “ओह। सुहैल।” कुछ सोचते ए चीफ बोला, “मुझे इस नौजवान पर पूरा यक न था और इसने हमारा वो यक न आज तोड़ दया। ये खबर सभी लोग को पता लगेगी तो हम हमारे मकसद म कामयाब नह हो पाएँग।े और हमारे हाथ म आने वाली ‘ च ड़या’ भी उड़ती जाएगी।” चीफ को ये बात बड़ी नागवार लगी। अब फैसला लेने का व था। कुछ मनट तक चीफ खामोश रहने के बाद बोला, “सुनो।” “जी फरमाइए।” लीडर समझ रहा था क अब कोई बड़ा फैसला सुनाया जाएगा। “ये खबर हर उस जगह फैला दो जहाँ-जहाँ पर हमारे लड़के च ड़या को दाना डाले बैठे ह। उस गाँव, गली, कूचे और घर तक भी ये बात प ँचा दो क हमारे जाल म फँसी ई च ड़या हाथ से नकल गई है। और हमारा एक नौजवान भी बागी हो गया है।” ब त धीरे-धीरे सोचते ए चीफ ने अपनी बात कही। “मगर…” “मगर या?” “इससे तो हमारी हर जगह थू-थू हो जाएगी। हम अपने मकसद म कामयाब नह हो पाएँगे और सब कुछ ठ क होने म कई साल, कई महीने लग जाएँग।े हम फर सफ़र से आगाज करना होगा।” “तुमम और हमम यही फक है।” चीफ पूरे यक न से बोला। लीडर ने खामोश रहने म ही भलाई समझी। “जब हमारे नौजवान क नाकामयाबी और च ड़या क आजाद क खबर फैलेगी तो लोग ऐसा ही सोचगे और ऐसा ही करगे जैसे अभी तुमने बतलाया।” “यही तो म भी कह रहा ँ जनाब।” “मगर उसके बाद जब हम अपने ही आदमी को सजा दगे, तब सब लोग क बोलती बंद हो जाएगी—और रही बात उस च ड़या क , तो उसका वह ह होगा क बाक क च ड़या इस तरह क बात भी सोचने से घबराएगी।” “ या करने वाले ह चीफ उनके साथ!” लीडर ने हैरानी से पूछा। “मार दो, दोन को। ले कन ये खबर रहे क मौत एक ए सीडट लगे। और साथसाथ ये खबर भी लोग तक प ँच जाए क इसके पीछे हमारा ही हाथ है।” “जी जनाब। म पूरा इंतजाम करता ँ। कब तक करना है ये काम।” “ जतनी ज द हो सके। मगर खबर रहे क कोई सुराग या कोई गवाह न हो इस बात का।” “जी जनाब।” दो घंटे बाद, होटल म। सा हल फोन करने के लए रसे शन पर प ँचा। एक नंबर मलाया—नंबर मला नह । सा हल ने सरा नंबर मलाया—नंबर मला, बेल जा रही थी। “हैलो। श बो।”

“हैलो, कौन!” “म ँ सा हल। एक हे प चा हए।” “कैसी हे प? तुम हो कहाँ? सब खै रयत तो है। सोनू तु हारे साथ ही है न?” एक साथ कई सवालात क झड़ी शबनम ने लगा द । “हाँ वह मेरे साथ ही है। तुम कुछ पैसे मेरे अकाउंट म ांसफर कर सकती हो या। ब कुल खाली हो गया है। कल तक हमारे पास एक पया भी न होगा।” “तुम हो कहाँ?” “इधर बंगलु म। मेरा नंबर लखो।” “बोलो।” अभी सा हल ने अकाउंट नंबर बोलने के लए मुँह खोला ही था क उसे लगा क कोई उस पर नजर रखे ए है। सा हल ने हौले से गदन घुमाई। पीछे ठगना खड़ा मु कुरा रहा था। जुम के हाथ कानून से भी लंबे होते ह। ये बात ठगने को दे ख कर सा बत हो चुक थी। सा हल ने ठगने को अनदे खा कर दया। फोन रसीवर रख कर वह अपने कमरे क ओर बढ़ा। ठगना रसे शन पर खड़ा मंद-मंद मु कुराता रहा, जैसे चूहे को पजरे म दे ख कर इंसान खुश होते ह— य क इंसान को पता होता है क चूहे क भाग नकलने क सारी को शश बेकार जाने वाली ह। सा हल और सो नया छपते- छपाते कमरे से नकले और स वस ल ट से होते ए पा कग के बैक गेट से बाहर प ँच गए। अभी कुछ ही कदम चले थे क एक पुरानी-सी ह डा सट उनक तरफ तेजी से बढ़ । सा हल गाड़ी क पीड दे खकर उसके इरादे भाँप गया था, भागने क को शश बेकार ही जाएगी—ये बात सा हल जान चुका था। जैसे गाड़ी उनके करीब प ँची, सा हल ने समझदारी दखाते ए सो नया को आगे क तरफ ध का दे दया और सो नया गाड़ी के नीचे आने से बच गई। सो नया अचानक ध का लगने से चीख पड़ी। सो नया सड़क पर गर गई। उसने गरते ए पीछे दे खा। गाड़ी सा हल को र द कर जा चुक थी। सो नया च ला रही थी, रो रही थी। सो नया जो इस व दे ख पा रही, समझ पा रही थी वह कोई न दे ख सकता था और न कोई समझ सकता था। नया क नजर म एक घटना और सो नया क नजर म ये एक सोची-समझी ह या थी। सो नया पागल क तरह बड़बड़ा रही थी, “सा हल ने कहा था—तुम चाहे जो कर लो, मेरे रहते ए तुम सो नया को हाथ भी नह लगा सकते।” शायद सो नया उस रात क बात याद कर रही थी जब सा हल अपने चीफ से बात करते-करते च लाने लगा था और ऐसे चीखते ए सा हल ने अपने चीफ को ही ये धमक दे डाली थी।

15 मनट बीत चुके थे। आस-पास खड़े लोग क कुछ समझ नह आ रहा था। बंगलु क पु लस अपना काम कर रही थी। एक म हला पु लसकम ने सा हल के पास से सो नया को बड़े हौले से सां वना दे ते ए उठाया और उसे एक वैन म बठा दया। वैन सीधा बंगलु के सबसे बड़े अ पताल के सामने जा कर क । ये अ पताल दमागी प से बीमार लोग को ज द-से-ज द ठ क करने के लए व यात था। दरअसल सो नया को अचानक ई इस घटना ने बुरी तरह डरा दया था। वह एक चता और डर के लूप म फँस गई थी— जससे नकल पाना आसान नह होता! सा हल को एक ए बुलस म डाल कर सरे अ पताल ले जाया गया। अगले दन बंगलु के कई अखबार म एक लाइन क खबर छपी, “अ पसं यक समुदाय का एक सं द ध सड़क घटना म घायल।”

57

तीन महीने बाद, बंगलु के एक स मान सक अ पताल म, “सर, लीज। आप मुझे सफ एक बार उनसे मलने द। आपको नह पता मेरी जदगी का मकसद।” “बस उनको ठ क होते ए दे खना है।” बैसा खय के सहारे खड़ा वह आदमी अजीब-सी वेशभूषा म था। उसने गे आ रंग का शॉट कुता पहना आ था और एक काले रंग क ज स कमर पर लटकाई ई थी। ज स के पैर को सलीके से घुटने के ऊपर तक मोड़ा आ था। इस आदमी के कू हे का ह सा था ही नह । इसके अलावा सर पर एक सफेद रंग क जालीदार टोपी भी नजर आ रही थी। गले म पहनी ई तुलसी क माला पहने वह लड़का ह -मु लम एकता का जीता-जागता उदाहरण लग रहा था। “भाई तुम जाओ न यहाँ से। हम ब त काम है। इस तरह रोज-रोज आ कर तुम अपना और हमारा व य जाया करते हो।” “ लीज सर। आप मेरी परेशानी समझ नह रहे ह।” “और तुम हमारी नह समझ रहे हो।” दन भर मान सक रो गय के साथ रहतेरहते, डॉ टर भी इ रटे ट-सा होने लगता है। वह डॉ टर अभी नया ही था शायद वह अपना आपा खो बैठा और गु से म च लाया, “तुम य हम परेशान कर रहे हो। अपा हज हो इसी लए इतनी दे र से यार से समझा रहा था। पर, तुम तो मेरे पीछे ही पड़

गए।”

उस अपा हज आदमी ने इतनी झाड़ सुनने के बाद भी ह मत नह हारी। उसने फर ब त शालीनता से वनती क , “ लीज सर।” जू नयर डॉ टर ने इसक तरफ दे खा। अपा हज दोन हाथ को जोड़े उसक तरफ बड़ी ही आशा से दे ख रहा था। अपा हज क आँख म जो नमी थी वह कसी का भी दल पघलाने के लए काफ थी। ‘उफ, या मुसीबत है।’ जू नयर डॉ टर ने सोचा। वह बोला, “तुम वेट करो, शायद सी नयर डॉ टर तु हारी बात समझ पाए।” “जी। म उनका इंतजार क ँ गा।” अपा हज उस डॉ टर को को रडोर म जाते ए दे खता रहा। फर धीरे से उसके मुँह से नकला, “शायद मुझे दे ख कर ही सोनू को कुछ याद आ जाए। और वह बेहतर हो जाए।” “आमीन।” सा हल के पीछे एक लड़क खड़ी थी। वह ही शायद उसक दे खभाल करती होगी। लड़क ने हजाब पहना आ था। पूरे 15 मनट बाद वह जू नयर डॉ टर को रडोर म वापस आता आ दखाई दया। र से सा हल ने उसे दे ख लया था। डॉ टर ने उसे इशारा करके अपने पीछे आने को कहा। ल ट म प ँच कर डॉ टर ने तीसरे लोर का बटन दबा दया। ल ट म डॉ टर और सा हल के अलावा पाँच लोग थे— जनम वह लड़क भी थी। डॉ टर सा हल को समझाता जा रहा था क सो नया क कसी भी बात पर यादा रए ट न करे। जहाँ तक हो सके, सो नया क बात सुने और उससे यार और कोमलता से पेश आए। सा हल ने गदन हला कर हामी भरी। अब तक सी नयर डॉ टस क ट म भी सो नया के म तक प ँच चुक थी। सभी डॉ टर साधारण वेशभूषा म थे। डॉ टस इस मी टग का सो नया पर कैसा और कतना इफे ट पड़ा—ये जानना चाहते थे। “हैलो। सोनू, कैसी हो?” सो नया का कोई जवाब न आया। वह मुँह मोड़ कर द वार को दे ख रही थी। सा हल क तरफ सो नया क पीठ थी। “सोनू, म ँ तु हारा सा हल। तु हारा दो त।” सा हल और सो नया के बीच म लोहे क सलाख थ । सो नया को एक कमरे म नगरानी के लए रखा गया था। कभी-कभी सो नया यूँ अचानक ही ब त वायलट हो जाती थी और चीखने- च लाने लगती थी। डॉ टस को डर था क कह सो नया आज फर वायलेट न हो जाए। अभी तक सा हल क बात का, कोई असर सो नया पर होता नजर नह आ रहा था। “कुछ और बात करो।” डॉ टर ने मश वरा दया। “सोनू। मने उन सब लोग से बात कर ली है, उ ह समझा दया है। अब वे हम कुछ

नह कहगे। उ ह ने तुमसे माफ भी माँगी है।” सो नया ने गदन एक कंधे पर झुका ली, जैसे क कुछ सोच रही हो। इसी झुक ई गदन को उसने धीरे से घुमाया। सो नया क आँख म पानी था। चेहरा एकदम शांत था मगर एकदम पीला हो चुका था। पछले तीन महीन म सो नया सफ चीखती थी और च लाती थी। ये पहली बार था जब डॉ टस सो नया को रोते ए दे ख रहे थे। गम आँसु क श ल म बाहर नकल रहा था। सो नया के ठ क होने क या का शायद ये पहला चरण हो। सो नया सलाख क जाली के पास गई। डॉ टस उ सुकतावश सो नया को दे ख रहे थे। और सो नया एकटक सा हल को दे ख रही थी, नहार रही थी। सो नया एक पल के लए ब कुल सामा य नजर आई, जैसे क कभी कुछ आ ही न हो। वह कुछ बोलना चाह रही थी। अ प -सा एक श द सो नया के मुख से नकला, “सा हल।” “सोनू।” रोते ए सा हल धीमे वर म बोला। इस एक पल म सा हल को जैसे पूरे जहाँ क खु शयाँ हा सल हो गई ह । वाब का प रदा फर पंख फड़फड़ाने लगा। साथसाथ जीने क कसम याद आने लग । एक ठं डी हवा के झ के ने जैसे कड़कती धूप म शीतलता दान क हो। ले कन सा हल क ये खुशी एक पल के लए ही थी। सो नया फर से चीखने लगी, च लाने लगी, “सा हल ने कहा था, तुम चाहे जो कर लो मेरे रहते ए तुम उसे हाथ भी नह लगा सकते।” सो नया का ःख-दद और चता चीख-पुकार के ज रए सामने आ रहे थे जसे कोई कभी समझ नह पा रहा था। जू नयर डॉ टर ने एक बात नोट क । जस व सो नया सामा य से असामा य ई और चीखने- च लाने लगी, ठ क उसी पल, कमरे म एक ठगने कद का दा खल आ था। कमरे के, एक कोने म शबनम खड़ी ई उस दन को कोस रही थी जब शबनम ने सा हल और सो नया को पहली बार मलवाया था। शबनम सा हल और सो नया क इस हालत के लए ही खुद को दोषी मान रही थी। शबनम ने मरीज से मलने क सारी ज री कायवाही पूरी कर द थी। बस व ज टग पास को काउंटर पर वापस करना था। काउंटर पर जाते ए शबनम ने दे खा क एक नौजवान सर झुकाए रो रहा है। शबनम ने उसे दे खा और ध कारते ए आगे बढ़ गई। ये अंकुर था, शायद अपनी बहन का हाल-चाल लेने के लए अ पताल आया था। शबनम सा हल से बोली, “भाईजान तुमने उसे दे खा या?” जवाब म सा हल ने गदन झुका कर ‘हाँ’ कहा। बसी ई नया को उजाड़ने म एक पल नह लगता, मगर लाख को शश के बाद भी उजड़ी ई नया अपने पहले वाले प म नह लौट जाती। सावन का महीना था। आकाश म काले बादल छाए ए थे। दोपहर के व भी

शाम हो गई—ऐसा लग रहा था। एक काला-सा अंधकार सलामतगंज के आकाश पर का बज था। न जाने कैसी मन सयत-सी छाई ई थी, जो बहती ई हवा के साथ-साथ चार ओर फैलती जा रही थी। ये धीरे-धीरे से बहती ई हवा कभी भी आँधी का प ले सकती थी। यू.पी.। एक पेड़ के नीचे एक अधेड़-सा आदमी बैठा अखबार पढ़ रहा है— अखबार म एक खबर पढ़ कर इस क आँख से आँसू टपक-टपक कर अखबार पर गरने लगे। खबर थी—‘दो नाबा लग लड़ कय का रेप और ह या करके पेड़ पर लटकाने वाली घटना म नया मोड़। पु लस ने इसके पीछे पा रवा रक रं जश क आशंका जताई है!’ आकाश से बा रश क पहली-पहली बूँदे गरनी शु हो गई थ , जैसे काले बादल से भी आँसू टपक रहे ह । इस अधेड़ के लए, इसका छोटा भाई रोज क तरह खाना लेकर आ रहा था। पछले कई दन से इस अधेड़ ने इस पेड़ के नीचे डेरा जमाया आ था। गाँव वाले आपस म बात करने लगे थे क ह रया पागल हो गया है… आकाश से तेज बा रश हो रही थी, ऊपरवाला भी शायद इस घटना को दे खकर रोने लगा था!

आभार म आभारी ँ अपने (द गुड ड ुप स हत)उन सभी दो त का ज ह ने इस उप यास को लखने म मेरी मदद क और जनके सत्परामश से यह उप यास व तृत ववेचना के प ात् का शत आ, इसके लए म शु या अदा करता ँ— • अपनी माताजी ीमती सौभा या दे वी जी और अपने सभी भाइय -भा भय का, उनके आशीवाद और सहयोग के लए, • ी द नदयाल दे व और सु ी च दे व का, ज ह ने हर पल, हर घड़ी मुझे अपनी ब मू य और उदारतापूण सहायता दान क , • अपने परम म और परम हतैषी ी मनीष कुमार सागर और ी भूपे भट् ट का, ज ह ने ‘शरलॉक हो स’ क तरह मेरी पु तक क ेस-कॉपी को जाँचा-परखा और अपने ब मू य सुझाव से मुझे अवगत कराया एवं ूफ संशोधन भी कया, • सु ी बबीता शमा, सु ी भारती रावत, ी ई र सह, ी सतीश गौतम और ी श श शेखर पाठ जी का, मेरी रचना क ेस-कॉपी का थम पाठक बनने के लए, • सु ी स वता शमा जी का, सभी रेखा च के लए, • ी हेमंत कुमार गडा सया, ी गुरब श सह, ी ो साहन धान, ी सव र राऊत, ी मो हत शमा, ी रजत शमा, ी ववेक कुमार, ी चं पाल गौतम, ी मयंक जैन, ी रमनद प सह बस और ी सुखबीर सह जी का, ज ह ने कभी भी मेरा उ साह कम नह होने दया और समयसमय पर मुझे अपने सुझाव से अवगत कराया, • ी अजय शमा, ी ता बश सैफ , ी नरे शमा, ी अमरे ताप आन द, ी करन सह, ी दे वे वमा, ी र वकुमार शमा, और एडवोकेट ी मो हत सह व ी सतपाल यादव जी का, ज री सूचना एवं जानकारी जुटाने के लए, • ी कृ ण कुमार वमा व भाभी सु ी नीतू सोनी का, बेबाक परामश के लए, गु लीबाबा प ल शग हाउस क सम त ट म एवं काशक ी दनेश वमा जी का, ज ह ने ‘लव जहाद’ वषय पर लखी गई मेरी रचना को पढ़ा और इसके संदेश को समझकर इसे का शत करने का नणय लया। अंत म, उन सभी सा थय और दो त का शु या करता ँ, ज ह ने अपने सुझाव एवं सहयोग न प भाव से दए, जसके कारण म अपने भाव और वचार को एक पु तक के प म आपके सामने तुत कर पाया।

द गुड ड ुप:

1.  ी अ ण रावत 2.  ी च शेखर 3.  ी चाँद राम सागर 4.  ी द पक भार ाज 5.  ी गौरव म ल 6.  ी म नदर कुमार 7.  ी द प नेगी 8.  ी राज कुमार 9.  ी राजेश कुमार 10.  ी स चन पंवार 11.  ी स नत मेहता 12.  ी नरेश कुमार